संगीत की कोई भाषा नहीं होती कोई सरहदें नहीं होती। अच्छा संगीत, अच्छी धुन चाहे कहीं की भी हो आपको अपने आगोश में ले लेती है। यही वज़ह है कि जहाँ जय हो... की जयकार को पूरा विश्व ध्यान दे कर सुनता है वहीं आप भी फुटबाल के खेल का मज़ा लेते हुए सकीरा के वाका वाका ..को गुनगुनाना नहीं भूलते। पर ये भी सत्य है कि जो संगीत हमारे आस पास के परिवेश में ढला होता है वो जल्द ही हमें आकर्षित करता है।
शायद यही वज़ह रही कि भारतीय संगीतकार अपनी धुनों के साथ साथ पाश्चात्य धुनों को भारतीयता के रंग में ढाल कर उसे भारतीय श्रोताओं के सामने प्रस्तुत करते रहे और वाह वाही और निंदा दोनों लूटते रहे। मुझे इस तरह विदेशी धुनों पर हिंदी गीत बनाने में कोई आपत्ति नहीं है बशर्ते धुन के वास्तविक रचनाकार के नाम को पूरे क्रेडिट के साथ फिल्म और उसके एलबम में दिखाया जाए। पर पता नहीं क्यूँ हमारे नामी संगीतकार भी ऐसा करने से कतराते रहे हैं। कई बार ये संगीतकार गीतकारों की मदद से गीत को उसके आरिजनल से भी बेहतर बना देते हैं। पर उनकी ये मेहनत उसके मूल रचनाकार से बिना अनुमति व बिना क्रेडिट के धुल जाती है। मुझे नीलेश मिश्रा का लिखा गैंगस्टर का गीत लमहा लमहा दूरी यू पिघलती है.. याद आता है जिसकी मूल धुन वारिस बेग की थी पर अभिजीत की गायिकी ने उसे और बेहतरीन बना दिया था।
पर आज जिस हिंदी फिल्म की गीत की बात आपसे कर रहा हूँ उसका मूल रूप मैंने पहले सुना था। उस वक़्त हम लोग स्कूल में थे और भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड के दौरे पर थी। क्रिकेट के मैदान में हो रही गतिविधियों को जानने के लिए अक्सर मैं बीबीसी की वर्ल्ड सर्विस का सहारा लिया करता था। ऐसे ही खेल से जुड़े कार्यक्रम को ट्यून करते वक़्त वहाँ के संगीत कार्यक्रम में ये गाना सुनने को मिल गया। गीत के शब्द अक्षरशः भले ना समझ आए हों पर गीत की भावनाएँ और गायिकी ने इस अंग्रेजी गीत का मुरीद बना दिया।
ये गीत था अस्सी के दशक में अमेरिका वा ब्रिटेन में धूम मचाने वाले गायक स्टीवी वंडर (Stevie Wonder) का। वैसे तो वंडर का वास्तविक नाम Stevland Hardaway Judkins था पर संगीत जगत से जुड़ने के बाद वो 'वंडर' हो गए। जन्म के बाद से ही आँखों की रोशनी छिन जाने के बाद भी स्टीवी वंडर ने अमेरिकी संगीत जगत में जो मुकाम हासिल किया वो उनकी जीवटता की अद्भुत मिसाल है। स्टीवी ने I just called to say I love you.. गीत अपने एलबम The Woman in Red के लिए 1984 में रिकार्ड किया और 1985 में इस गीत को श्रेष्ठ गीत का एकाडमी एवार्ड भी मिला।
गीत में स्टीवी ने बड़े प्यारे अंदाज़ में ये कहना चाहा था कि यूँ तो उनके ज़िंदगी में ऍसा कुछ भी नहीं हो रहा जो उन्हें प्रफ्फुलित कर सके। महिने दर महिने बिना किसी उल्लास के यूँ ही निकल जाते गर उन्होंने उन तीन शब्दों का मर्म नहीं समझा होता। और आज जब वो उन्हें समझ आ गया है तो मन में उमंगों की सीमा नहीं है। इसिलिए तो अपने दिल के कोरों से निकली भावनाओं को व्यक्त करने के लिए वे इतने आतुर हैं। तो लीजिए सुनिए इस रचना को मूल रूप में गीत के शब्दों के साथ।
No New Year's Day to celebrate
No chocolate covered candy hearts to give away
No first of spring
No song to sing
In fact here's just another ordinary day
No April rain
No flowers bloom
No wedding Saturday within the month of June
But what it is, is something true
Made up of these three words that I must say to you
I just called to say I love you
I just called to say how much I care
I just called to say I love you
And I mean it from the bottom of my heart
No summer's high
No warm July
No harvest moon to light one tender August night
No autumn breeze
No falling leaves
Not even time for birds to fly to southern skies
No Libra sun
No Halloween
No giving thanks to all the Christmas joy you bring
But what it is, though old so new
To fill your heart like no three words could ever do
I just called to say I love you.. bottom of my heart
मैंने तो ये गीत बीबीसी के माध्यम से सुन लिया था पर अस्सी के दशक के आखिर में इस धुन को भारतीय जनमानस तक पहुँचाने का काम किया था संगीतकार राम लक्ष्मण ने, राजश्री प्रोडक्शन्स की फिल्म 'मैंने प्यार किया' में। यूँ तो राजश्री प्रोडक्शन की हर फिल्म उस ज़माने में अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि वाली पटकथाओं और कर्णप्रिय संगीत के लिए जानी जाती थी पर सूरज बड़जात्या शायद नए नवेले नायक सलमान खाँ (तब के सलमान अपेक्षाकृत दुबले पतले, धोनी कट लंबे बालों वाले थे) और नवोदित नायिका भाग्यश्री को लेकर बनाई गई इस फिल्म को सफल होने देने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते थे। शायद इसीलिए उन्होंने राम लक्ष्मण से स्टीवी वंडर की इस धुन पर एक गीत बनवा लिया।
राम लक्ष्मण का संगीत तो फिल्म के आने से पहले ही दिल दीवाना बिन सजना के... ,आजा शाम होने आई, आया मौसम दोस्ती का.. और फिर कबूतरी गीत की वज़ह से गीतमालाओं के शीर्ष पर उड़ान भरता रहा। और इसी लोकप्रियता की वज़ह से संगीतकार राम लक्ष्मण को साल का फिल्म फेयर एवार्ड भी मिला।
पर पूरी फिल्म में मुझे स्टीवी वंडर की धुन पर बनाया ये गीत ही सबसे प्रिय लगा।
मूलतः अंग्रेजी में लिखे इस गीत पर जब देव कोहली के शब्दों का कलेवर चढ़ा और गीत को मिली लता और एस पी बालासुब्रमण्यम जैसे मँजे गायकों की आवाज़ तो जैसे सोने पर सुहागा हो गया। मुझे याद है कि जब फिल्म आई थी तो ये गीत उतना नहीं बजा था जिसका ये हक़दार था। इसका एक कारण ये था कि गीत का इस्तेमाल फिल्म की शुरुआत में कास्टिंग दिखाते वक़्त किया गया था। पर अब जब इसे बारहा इसे रेडिओ पर बजते सुनता हूँ तो लगता है कि ये गीत दो दशकों बाद फिल्म का सबसे ज्यादा सुना जाने वाला गीत बन गया है।
गीत को भारतीय मिज़ाज में ढालने में देव कोहली साहब ने कमाल का काम किया था। आज तो तब भी प्रेम का भारतीय स्वरूप बहुत कुछ बदला है पर ये तो हम सब जानते हैं कि बीस साल पहले प्रेम को आमने सामने अभिव्यक्त करने में ही आशिकों के पसीने छूटने लगते थे। गुमनाम पत्र और टेलीफोन कर थोड़ी बहुत हिम्मत कुछ लोग दिखा दिया करते पर अधिकांश लुटे दिलवालों के पास दूर दूर से निहारने या नज़रों की लुकाछिपी के अतिरिक्त अपने 'उनके' दिल की भावनाओं को सोचने समझने का कोई चारा ना था। अब इस परिपेक्ष्य में देव साहब के शब्दों पे गौर करें कि उन्होंने गीत की मूल भावना से बिना छेड़छाड किए वो बात कह दी जो उस समय या कुछ हद तक आज के भारतीय प्रेमी की भावनाओं की अभिव्यक्ति करती है।
आते जाते, हँसते गाते
सोचा था मैं ने मन में कई बार
वो पहली नज़र, हलका सा असर
करता है क्यों दिल को बेक़रार
रुक के चलना, चल के रुकना
ना जाने तुम्हें है किस का इंतज़ार
तेरा वो यकीं, कहीं मैं तो नहीं
लगता है यही क्यों मुझको बार बार
यही सच है, शायद मैं ने प्यार किया
आते जाते, हँसते गाते
सोचा था मैं ने मन में कई बार
होंठों की कली कुछ और खिली
ये दिल पे हुआ है किसका इख़्तियार
तुम कौन हो, बतला तो दो
क्यों करने लगी मैं तुमपे ऐतबार
खामोश रहूँ या मैं कह दूँ
या कर लूँ मैं चुपके से ये स्वीकार
यही सच है, शायद मैं ने प्यार किया
हाँ हाँ, तुमसे, मैं ने प्यार किया
तो आइए सुनें ये गीत..
