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गुरुवार, मार्च 17, 2022

वार्षिक संगीतमाला Top Songs of 2021 थोड़े से कम अजनबी Thode Se Kam Ajnabi

पिछले साल के शानदार गीतों की शृंखला में आज बात फिल्म पगलैट के एक दिलकश गीत की जिसे पहली बार सुनते ही गीत मन में रम सा गया था। कहना मुश्किल था कि ये हिमानी की जादुई आवाज़ का असर था या अरिजीत की सुरीली बहती सी धुन का या फिर नीलेश मिश्र के शब्द जिसको महसूस करते हुए इस गीत के लिए श्रोताओं के दिल की खिड़की खोल दी थी। इस गीत का मर्म समझने के लिए आपको पगलैट फिल्म की कहानी से परिचय कराना बेहद जरूरी हैं क्यूँकि फिल्म का गीत संगीत उसी में अपनी राह बनाता हुआ चलता है। 

जैसा मैंने आपको पहले भी बताया था कि पगलैट एक ऐसी लड़की की कथा है जो शादी के चंद महीने बाद ही अपने पति को खो बैठती है। इतने कम समय में पति के साथ उसके मन के तार ठीक से जुड़ भी नहीं पाते हैं और तभी उसे पता चलता है कि जो अनायास ही ज़िंदगी से चला गया उसकी एक प्रेमिका भी थी। अपने पति के बारे में और जानने के लिए वो उसकी प्रेमिका से मिलती है और धीरे धीरे अपने पति के प्रति उसकी नाराज़गी व गलतफहमी दूर होने लगती है और इसलिए गीत के मुखड़े में नीलेश लिखते हैं थोड़े से कम अजनबी..मेरे दिल के घर में, खिड़की नयी है खुल गयी। 

मन के अंदर का चक्रवात शांत होगा तभी तो व्यक्ति सकारात्मक ढंग से भविष्य के बारे में सोच सकेगा। ज़िदगी से एक बार फिर प्यार कर सकेगा। नीलेश नायिका के मन को पढ़ते हुए इसी भाव को गीत में व्यक्त करते हैं।



अरिजीत, नीलेश और हिमानी इस गीत के साथ कैसे जुड़े ये जानना भी आपके लिए दिलचस्प होगा। फिल्म की निर्माता गुनीत मोंगा ये चाहती थीं कि फिल्म का संगीत अरिजीत दें, हालांकि इससे पहले अरिजीत ने स्वतंत्र रूप से बतौर संगीतकार कभी काम नहीं किया था। वहीं अरिजीत की शर्त थी कि कहानी पसंद आएगी तभी वे संगीत निर्देशन का काम सँभालेंगे। ज़ाहिर है उन्हें कहानी पसंद आई। 

नीलेश मिश्र पिछले कई सालों से फिल्मी गीतों को लिखना छोड़ चुके थे। उन्हें इस काम में मज़ा नहीं आ रहा था क्यूँकि जिस तरह की रचनात्मक स्वतंत्रता वो चाहते थे वो मिल नहीं रही थी।  फिल्म के पटकथा लेखक और निर्देशक उमेश बिष्ट ने उनकी ये इच्छा पगलैट में पूरी कर दी। एक बार पटकथा सुनाकर संगीतकार गीतकार की जोड़ी को बीच मझधार में छोड़ दिया ख़ुद ब ख़ुद किनारे तक पहुँचने के लिए। नीलेश और अरिजीत चाहते भी यही थे कि उन्हें अपनी नैया ख़ुद चलाने का मौका मिले। 

ये तो हम सभी जानते हैं कि अरिजीत सिंह ने गायिकी के साथ साथ प्रीतम दा के लिए सहायक के तौर पर काम किया है। प्रीतम और रहमान उनके लिए हमेशा प्रेरणा के स्रोत रहे हैं। यहाँ तक कि आख़िर आख़िर तक गीत में बदलाव की आदत भी उन्हें प्रीतम से मिली है। पगलैट के संगीत के बारे में अरिजीत कहते हैं कि उन्होंने पहले से कुछ संगीतबद्ध कर नहीं रखा था। नीलेश ने गीत के बोल लिखे और उन बोलों से ही मन में धुन बनती चली गयी। कहना होगा कि नीलेश और अरिजीत दोनों ने ही संध्या के मन को कहानी की पटकथा से खूब अच्छी तरह जाँचा परखा और इसी वज़ह से फिल्म का संगीत इतना प्रभावी बन पाया।

अरिजीत ने जब गीत की धुनें बनायीं तो उनके दिमाग में नीति मोहन, हिमानी कपूर , मेघना मिश्रा, चिन्मयी श्रीपदा और झूंपा मंडल की आवाज़ें थीं। उन्होने क्या कि सारे गीत सभी गायिकाओं को भेजे। सबने हर गीत को गाया और यही वज़ह है कि एलबम में आप एक ही गीत को दो वर्जन में भी सुन पाएँगे।

हिमानी कपूर अरिजीत सिंह के साथ

हिमानी मेरी पसंदीदा गायिका हैं और उसकी खास वज़ह उनकी आवाज़ कि एक विशिष्ट बुनावट या tonal quality है जिसे सुनकर आप तुरंत पहचान लेंगे कि ये गीत हिमानी गा रही हैं। वैसे तो हिमानी ने पंजाबी रॉक से लेकर सूफी, रूमानी गीतों से लेकर ग़ज़लें भी गायी हैं पर मुझे उनकी आवाज़ संज़ीदा गीतों और ग़ज़लों के बिल्कुल मुफ़ीद लगती है। हिमानी और अरिजीत ने रियालटी शो की दुनिया से संगीत जगत में कदम रखा है। इसलिए वे एक दूसरे की गायिकी से भली भांति परिचित रहे हैं।

पिछले साल अगस्त के महीने में हिमानी के जन्मदिन पर अरिजीत ने संदेशा भिजवाया कि वो उनसे अपनी फिल्म का एक गीत गवाना चाहते हैं। हिमानी के लिए जन्मदिन का इससे प्यारा तोहफा हो ही नहीं सकता था क्यूँकि अरिजीत के साथ काम करना उनके एक सपने का पूरा होना था। हिमानी का कहना है कि अरिजीत जैसे गुणी कलाकार के साथ सहूलियत ये है कि वो गायक को पूरी छूट देते हैं अपनी समझ से गीत में बदलाव लाने के लिए। गीत सुनने के बाद आश्चर्य होता है ये जानकर कि इतना प्यारा नग्मा लॉकडाउन की वज़ह से आनलाइन मोड में ही बना।

शुरुआत और अंतरों के बीच में गिटार के बहते नोट्स और अंत में निर्मल्य डे की बजाई बाँसुरी मन को सुकून पहुँचाती है। हिमानी की आवाज़ तो मन मोहती ही है और बीच में पार्श्व से उठता अरिजीत का उठता स्वर गीत को एक विविधता प्रदान करता है। इसमें कोई शक़ नहीं कि ये फिल्मों के लिए हिमानी का गाया अब तक का सबसे बेहतरीन गीत है। तो आइए सुनें हिमानी को पगलैट के इस गीत में

थोड़े ग़म कम अभी, थोड़े से कम अजनबी

मेरे दिल के घर में, खिड़की नयी है खुल गयी
थोड़े से कम अजनबी, थोड़े से कम अजनबी..ख्वाहिशें नयी,
होठों के मुंडेरों पे छिपी है ढेरों..छोटी छोटी सी ख़ुशी
थोड़े से कम अजनबी, अच्छी सी लगे है ज़िन्दगी

दिल चिरैया हो हो चिरैया, चिरैया नयी बातें बोले हमका
मुस्कुराएँ हम क्यों बेवजह, ताका झाँकी टोका टाकी
करता जाए दिल ज़िद पे अड़ा, मैंने ना की इसने हाँ की
धूप छाँव बुनते साथ कभी
भूल भुलैया में मिल जो जाते रस्ते तेरे मेरे सभी, ख्वाहिशें नयी
होठों के.. है ज़िन्दगी

   

अब दो ही गीत बचे हैं पिछले साल के शानदार गीतों की इस संगीतमाला में। गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग बताने का वक़्त पास आ रहा है। पर उससे पहले आप इन गीतों में अपनी पसंद का क्रम भी सजा लीजिए एक इनामी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए।

गुरुवार, जनवरी 20, 2022

वार्षिक संगीतमाला 2021 Top 15 : दिल उड़ जा रे, रस्ता दिखला रे Dil Udd Jaa Re

मुंबई फिल्म जगत में अक्सर ऐसा होता है कि बहुत सारे कलाकार बतौर गायक अपनी किस्मत आज़माने आते हैं पर परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बनती हैं कि बन जाते हैं संगीतकार। लेकिन एक बेहद सफल गायक का संगीतकार बनना थोड़ा तो अजूबा लगता है। पर अरिजीत सिंह हैं ही इतने गुणी कि पिछले साल उन्होंने ये मुकाम भी बड़े शानदार अंदाज़ में हासिल कर लिया फिल्म पगलेट का संगीत निर्देशन कर । वैसे अपने कैरियर की शुरुआत में अरिजीत संगीतकार प्रीतम के सहायक की भूमिका निभा चुके हैं। आज इसी फिल्म का गीत दिल उड़ जा रे शामिल हो रहा है मेरी वार्षिक संगीतमाला में जिसे लिखा है नीलेश मिश्रा ने और अपनी आवाज़ दी है नीति मोहन ने। 


इस गाने की पहली खासियत इसकी शुरुआत और अंतरों के बीच बजने वाला वाद्य है जिसे सुनकर मन सुकून की एक अलग ही दुनिया में पहुँच जाता है। दिल करता है वादक तापस रॉय की उँगलियाँ साज़ पर थिरकती ही रहें। ईरान का ये वाद्य तार के नाम से जाना जाता है। तीन जोड़ी तारों से मिलकर बना हुआ वाद्य ईरान के आलावा मध्य एशिया के कई देशों में भी प्रचलित है।


पगलैट एक ऐसी लड़की की कहानी है जो शादी के चंद महीने बाद ही अपने पति को खो बैठती है। इतने कम समय में पति के साथ उसके मन के तार ठीक से जुड़ भी नहीं पाते हैं और तभी उसे पता चलता है कि जो अनायास ही ज़िंदगी से चला गया उसकी एक प्रेमिका भी थी। दुख की इस घड़ी में उसके अंदर एक वितृष्णा सी जाग उठती है।  और नीलेश मिश्रा के शब्द उसके मन के इन्हीं भावों को इस गीत में टटोलते हैं। मन अशांत है, दिमाग पहेलियों में उलझा हुआ और आगे का रास्ता बेहद धुँधला। ऐसे में नए सफ़र पर इन सबके पार चलने का हौसला दिल की कोई उड़ान ही दे सकती है इसलिए नीलेश ने लिखा

लम्हा यूँ दुखता क्यूँ
क्यूँ मैं सौ दफा, खुद से हूँ ख़फा
कैसे पूछूँ निकला क्यूँ
इतना बेवफा, खुद से हूँ ख़फा

अरमान ये गुमसुम से
चाहें ये क्या, मुझको क्या पता
इनमें जो सपने थे, क्यूँ वो लापता
मुझको क्या पता
ख्वाहिशें तो करते हैं, ज़िन्दगी से डरते हैं
डूबते उबरते हैं
टूटे जो तारे, रूठे हैं सारे
दिल तू उड़ जा रे, रस्ता दिखला रे

   

नीलेश बरसों बाद फिल्मी गीतों को रचते नज़र आए हैं। यूँ तो उनके बहुत से प्यारे गीत हैं पर बर्फी का गीत क्यूँ ना हम तुम चलें टेढ़े मेरे से रस्ते पे नंगे पाँव रे उनका लिखा मेरा सबसे पसंदीदा गीत है। नीति मोहन ने इस संवेदनशील गीत को बखूबी निभाया है। तो आँख बंद कीजिए और नायिका की मायूसी का अनुभव कीजिए इस गीत में तापस के अद्भुत तार वादन के साथ..

 

अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत नीचे से ऊपर के क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी। और हाँ अगर आप सब का साथ रहा तो अंत में गीतमाला की आख़िरी लिस्ट निकलने के पहले 2019 की तरह एक प्रतियोगिता भी कराई जाएगी जिसमें अव्वल आने वालों को एक छोटा सा पुरस्कार मिलेगा। ☺☺

शनिवार, फ़रवरी 01, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 11 : झीनी रे झीनी याद चुनरिया (Jheeni Re Jheeni Yaad Chunaria)

वार्षिक संगीतमाला की पिछली चौदह सीढ़ियाँ चढ़ कर आ पहुँचे है हम ग्यारहवीं पायदान पर। ग्यारहवीं पायदान का ये गीत संगीतमाला में शामिल अन्य सभी गीतों से एक बात में अलहदा है और वो है इसकी लंबाई। करीब साढ़े सात मिनट लंबे युगल गीत पर जो सम्मिलित परिश्रम इसके संगीतकार, गीतकार और गायक द्वय ने किया है वो निश्चय ही काबिलेतारीफ़ है। ये गीत है फिल्म 'इसक' का और इसके संगीतकार हैं सचिन ज़िगर, जबकि शब्द रचना है नीलेश मिश्रा की।

इससे पहले उन्होंने 2011 में अपने गीत धीरे धीरे नैणों को धीरे धीरे , जिया को धीरे धीरे भायो रे साएबो से मुझे प्रभावित किया था। सचिन जिगर के संगीतकार बनने से पहले की दास्तान मैं आपको यहाँ बता चुका हूँ। पिछला साल तो इस जोड़ी के लिए फीका रहा पर इस साल रमैया वस्तावइया, ABCD, इसक और शुद्ध देशी रोमांस में उनके संगीतबद्ध गीतों को साल भर सुना जाता रहा। जब जब सचिन जिगर ने लीक से हटकर संगीत देने की कोशिश की है उनका काम शानदार रहा है। अब इसी गीत को लें हिंदुस्तानी वाद्यों से सजे संगीत संयोजन में तबले व सारंगी का कितना सुरीला इस्तेमाल किया हैं उन्होंने। इंटरल्यूड्स के बीच पार्श्व से आती सरगम की ध्वनि भी मन को बेहद सुकून पहुँचाती है।

गीतकार नीलेश मिश्रा एक बार फिर अपने हुनर का ज़ौहर दिखलाने में सफल रहे हैं। इतना लंबा गीत होने के बावज़ूद वे अपने खूबसूरत अंतरों द्वारा श्रोताओं का ध्यान गीत की भावनाओं से हटने नहीं देते। मिसाल के तौर पर इन पंक्तियों पर गौर करें ज़हर चखा है आग है पीली...चाँदनी कर गई पीड़ नुकीली..पर यादों की झालन चमकीली या फिर धूप में झुलस गए दूरियों से हारे...पार क्या मिलेंगे कभी छाँव के किनारे । मन खुश कर देती हैं ये पंक्तियाँ  खासकर तब जब उस्ताद राशिद खाँ और प्रतिभा वाघेल उसे अपनी आवाज़ से सँवारते हैं।


उस्ताद राशिद खाँ तो किसी परिचय के मुहताज नहीं पर प्रतिभा वघेल के बारे में ये बताना जरूरी होगा कि वर्ष 2009 में वो जी सारेगामा के फाइनल राउंड में पहुँची थीं। रीवा से ताल्लुक रखने वाली प्रतिभा बघेल ने शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा ली है।अपना अधिकतर समय संगीत से जुड़े कार्यक्रमों में बिताने वाली प्रतिभा की 'प्रतिभा' को हिंदी फिल्म संगीत में और मौके मिलेंगे इसकी उम्मीद रहेगी। राशिद साहब की भारी आवाज़ के सामने प्रतिभा का स्वर मिश्री की डली सा लगता है।

इससे पहले की आप ये गीत सुनें ये बता दूँ कि शायद गीत की लय की वज़ह से राशिद खाँ साहब इस गीत के मुखड़े में याद को 'यद' की तरह उच्चारित करते हैं जो पहली बार सुनने पर थोड़ा अटपटा लग सकता है।




अखिया किनारों से जो, बोली थी इशारों से जो
कह दे फिर से तू ज़रा
फूल से छुआ था तोहे, तब क्या हुआ था मोहे
सुन ले जो फिर से तू ज़रा
झीनी रे झीनी याद चुनरिया..लो फिर से तेरा नाम लिया

सारे जख़म अब मीठे लागें,
कोई मलहम भला अब क्या लागे
दर्द ही सोहे मोहे जो भी होवे
टूटे ना टूटे ना. टूटे ना टूटे ना......

सूझे नाही बूझे कैसे जियरा पहेली
मिलना लिखा ना लिखा पढ़ले हथेली
पढ़ली हथेली पिया, दर्द सहेली पिया
ग़म का है ग़म  अब ना हमें
रंग ये लगा को ऐसो, रंगरेज़ को भी जैसो
रंग देवे अपने रंग में
झीनी रे झीनी याद चुनरिया..लो फिर से तेरा नाम लिया

सुन रे मदा हूँ तेरे जैसी
काहे सताये आधी रात निदिया बैरी भयी
ज़हर चखा है आग है पीली
चाँदनी कर गई पीर नुकीली
पर यादों की झालन चमकीली
टूटे ना टूटे ना. टूटे ना टूटे ना......

धूप में झुलस गए दूरियों से हारे
पार क्या मिलेंगे कभी छाँव के किनारे
छाँव के किनारे कभी, कहीं मझधारे कभी
हम तो मिलेंगे देखना
तेरे सिराहने कभी, नींद के बहाने कभी
आएँगे हम ऐसे देखना
झीनी रे झीनी याद चुनरिया



बुधवार, मार्च 20, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 सरताज गीत : क्यूँ.., न हम-तुम चले टेढ़े-मेढ़े से रस्तों पे नंगे पाँव रे...

लगभग ढाई महिनों के इस सफ़र को तय कर आज बारी है वार्षिक संगीतमाला 2012 के शिखर पर बैठे गीत से आपको रूबरू कराने। वार्षिक संगीतमाला 2012 के सरताज गीत के गायक पहली बार किसी संगीतमाला का हिस्सा बने हैं और वो भी सीधे पहली पॉयदान पर। इस गीत के गीतकार वार्षिक सगीतमालाओं में दो बार प्रथम दस में अपनी जगह बना चुके हैं पर इस साल की संगीतमाला में वो पहली बार प्रवेश कर रहे हैं और इनके साथ हैं संगीतकार  प्रीतम जो पहली बार एक शाम मेरे नाम की शीर्ष पॉयदान पर अपना कब्जा जमा रहे हैं। जी हाँ आपने ठीक पहचाना ये गीत है फिल्म बर्फी का। इसे गाया है असम के जाने माने फ़नकार अंगराग  महंता वल्द पापोन ने सुनिधि चौहान के साथ और इस गीत के बोल लिखे हैं बहुमुखी प्रतिभा के धनी नीलेश मिश्रा ने।

यूँ तो इस संगीतमाला की प्रथम तीन पॉयदान पर विराजमान गीतों का मेरे दिल में विशेष स्थान रहा  है पर जब भी ये गीत बजता है मेरे को अपने साथ बहा ले जाता है एक ऐसी दुनिया में जो शायद वास्तविकता से परे है, जहाँ बस अनिश्चितता है,एक तरह का भटकाव है। पर ये तो आप भी मानेंगे कि अगर हमसफ़र का साथ मिल जाए और फुर्सत के लमहे आपकी गिरफ़्त में हों तो निरुद्देश्य अनजानी राहों पर भटकना भी भला लगता है।  नीलेश मिश्रा सरसराती हवाओं, गुनगुनाती फ़िज़ाओं, टिमटिमाती निगाहों व चमचमाती अदाओं के बीच प्रेम के निश्चल रंगों को भरते नज़र आते हैं।

  प्रीतम और नीलेश मिश्रा

नीलेश  के इन  शब्दों पर गौर करें ना हर्फ़ खर्च करना तुम,ना हर्फ़ खर्च हम करेंगे..नज़र की सियाही से लिखेंगे तुझे हज़ार चिट्ठियाँ ..ख़ामोशी झिडकियाँ तेरे पते पे भेज देंगे। कितने खूबसूरती से इन बावरे प्रेमियों के बीच का अनुराग शब्दों में उभारा है उन्होंने।

पर ये गीत अगर वार्षिक संगीतमाला की चोटी पर पहुँचा है तो उसकी वज़ह है पापोन की दिल को छूने वाली आवाज़ और प्रीतम की अद्भुत रिदम जो गीत सुनते ही मुझे उसे गुनगुनाने पर मजबूर कर देती है। मुखड़े के पहले की आरंभिक धुन हो या इंटरल्यूड्स प्रीतम का संगीत संयोजन मन में एक खुशनुमा अहसास पैदा करता है। प्रीतम असम के गायकों को पहले भी मौका देते रहे हैं। कुछ साल पहले ज़ुबीन गर्ग का गाया नग्मा जाने क्या चाहे मन बावरा सबका मन जीत गया था। अंगराग महंता यानि पापोन को भी मुंबई फिल्म जगत में पहला मौका प्रीतम ने  फिल्म दम मारो दम के गीत जीये क्यूँ में दिया था।

पापोन को संगीत की विरासत अपने माता पिता से मिली है। उनके पिता असम के प्रसिद्ध लोक गायक हैं। यूँ तो पापोन दिल्ली में एक आर्किटेक्ट बनने के लिए गए थे। पर वहीं उन्हें महसूस हुआ कि वो अच्छा संगीत रच और गा भी सकते हैं। युवा वर्ग में असम का लोक संगीत लोकप्रिय बनाने के लिए उन्होंने रॉक को लोक संगीत से जोड़ने की कोशिश की।

पापोन की आवाज़ का जादू सिर्फ मुझ पर सवार है ऐसा नहीं है। संगीतकार शान्तनु मोएत्रा का कहना है कि पापोन की आवाज़ का नयापन दिल में तरंगे पैदा करता है वही संगीतकार समीर टंडन नीचे के सुरों पर उनकी पकड़ का लोहा मानते हैं। क्यूँ ना हम तुम को जिस अंदाज़ में पापोन ने निभाया है वो माहौल में एक ऐसी अल्हड़ता और मस्ती भर देता है जिसे गीत को गुनगुनाकर ही समझा जा सकता है।

क्यूँ.., न हम-तुम
चले टेढ़े-मेढ़े से रस्तों पे नंगे पाँव रे
चल., भटक ले ना बावरे
क्यूँ., न हम तुम
फिरे जा के अलमस्त पहचानी राहों के परे
चल, भटक ले ना बावरे
इन टिमटिमाती निगाहों में
इन चमचमाती अदाओं में
लुके हुए, छुपे हुए
है क्या ख़याल बावरे

क्यूँ, न हम तुम
चले ज़िन्दगी के नशे में ही धुत सरफिरे
चल, भटक ले ना बावरे

क्यूँ, न हम तुम
तलाशें बगीचों में फुरसत भरी छाँव रे
चल भटक ले ना बावरे
इन गुनगुनाती फिजाओं में
इन सरसराती हवाओं में
टुकुर-टुकुर यूँ देखे क्या
क्या तेरा हाल बावरे

ना लफ्ज़ खर्च करना तुम
ना लफ्ज़ खर्च हम करेंगे
नज़र के कंकड़ों से
खामोशियों की खिड़कियाँ
यूँ तोड़ेंगे मिल के मस्त बात फिर करेंगे
ना हर्फ़ खर्च करना तुम
ना हर्फ़ खर्च हम करेंगे
नज़र की सियाही से लिखेंगे
तुझे हज़ार चिट्ठियाँ
ख़ामोशी झिडकियाँ तेरे पते पे भेज देंगे

सुन, खनखनाती है ज़िन्दगी
ले, हमें बुलाती है ज़िन्दगी
जो करना है वो आज कर
ना इसको टाल बावरे
क्यूँ, न हम तुम...




इसी के साथ वार्षिक संगीतमाला 2012 का ये सफ़र यहीं समाप्त होता है। इस सफ़र में साथ निभाने के लिए आप सब पाठकों का बहुत बहुत शुक्रिया !

शुक्रवार, जनवरी 20, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 15 : क्या आपको भी अपने दिल पे शक़ है ?

पिछले साल एक फिल्म आई थी इश्क़िया जिसका गीत दिल तो बच्चा है जी.. वार्षिक संगीतमाला का सरताज गीत बना था। निर्देशक मधुर भंडारकर को गीत का मुखड़ा इतना पसंद आया कि उन्होंने इसी नाम से एक फिल्म बना डाली। फिल्म तो मुझे ठीक ठाक लगी, पर खास लगा इसका एक प्यारा सा नग्मा जिसे लिखा है गीतकार नीलेश मिश्रा ने।

ओ हो! लगता है मैं गलत कह गया भई नीलेश को सिर्फ गीतकार कैसे कहा जा सकता है। अव्वल तो वे एक पत्रकार थे वैसे अभी भी वे शौक़िया पत्रकारिता कर रहे हैं (आजकल यूपी चुनाव कवर कर रहे हैं)। नीलेश एक लेखक, कवि और एक ब्लॉगर भी हैं। हाल ही में राहुल पंडिता के साथ मिलकर उन्होंने एक किताब लिखी जिसका नाम था The Absent State। इस किताब में उन्होंने देश में फैले माओवाद की वज़हों को ढूँढने का प्रयास किया है। 

नीलेश एक रेडिओ कलाकार व कहानीकार भी हैं। आप में से जो एफ एम रेडिओ सुनते हों वे बिग एफ़ एम पर उनके कार्यक्रम 'याद शहर' से जरूर परिचित होंगे जिसमें वो अपनी लिखी कहानियाँ गीतों के साथ सुनवाते थे। ठहरिए भाई लिस्ट पूरी नहीं हुई नीलेश एक बैंड लीडर भी हैं। उनके बैंड का नाम है A Band Called Nine। इस अनोखे बैंड में वो स्टेज पर जाकर कहानियाँ पढ़ते हैं और फिर उनके बाकी साथी गीत गाते हैं। तो चकरा गए ना आप  इस बहुमुखी प्रतिभा के बारे में जानकर..

बड़ी मज़ेदार बात है कि नीलेश मिश्रा के गीतकार बनने में परोक्ष रूप से स्वर्गीय जगजीत सिंह का हाथ था। लखनऊ,रीवा और फिर नैनीताल में अपनी आरंभिक शिक्षा पूरी करने वाले नीलेश कॉलेज के ज़माने से कविताएँ लिखते थे। जैसा कि उनकी उम्र का तकाज़ा था ज्यादातर इन कविताओं की प्रेरणा स्रोत उनकी सहपाठिनें होती। जगजीत सिंह के वे जबरदस्त प्रशंसक थे। सो एक बार उन्होंने उनको अपनी रचना जगजीत जी को गाने के लिए भेजी पर उधर से कोई जवाब नहीं आया। पर उनके दिल में गीत लिखने का ख्वाब जन्म ले चुका था। बाद में मुंबई में अपनी किताब के शोध के सिलसिले में वो महेश भट्ट से मिले। इस मुलाकात का नतीज़ा ये रहा कि नीलेश को भट्ट साहब ने फिल्म जिस्म के गीत लिखने को दिए। इस फिल्म के लिए नीलेश के लिखे गीत जादू है नशा है... ने सफलता के नए आयाम चूमें।

वार्षिक संगीतमालाओं में नीलेश के लिखे गीत बजते रहे हैं । फिल्म रोग का नग्मा मैंने दिल से कहा ढूँढ लाना खुशी और गैंगस्टर का गीत लमहा लमहा दूरी यूँ पिघलती है उनके लिखे मेरे सर्वप्रिय गीतों में से एक है।
वार्षिक संगीतमाला की पॉयदान पन्द्रह का गीत प्रेम में पड़े दिल की कहानी कहता है। नीलेश की धारणा रही है कि असली रोमांस छोटे शहरों में पनपता है। अपने कॉलेज की यादों में  तैरते इन लमहों को अक्सर वे अपने गीतों में ढाला करते हैं। इस गीत में भी उनका अंदाज़ दिल को जगह जगह छूता है। नीरज का दिल के लिए ये कहना....

कोई राज़ कमबख्त है छुपाये
खुदा ही जाने कि क्या है
है दिल पे शक मेरा
इसे प्यार हो गया

.....मन जीत लेता है। मुखड़े के बाद अंतरों में भी नीलेश कमज़ोर नहीं पड़े हैं। गीत के शब्द ऐसे हैं कि इस नग्में को गुनगुनाते हुए मन हल्का हो जाता है। संगीतकार प्रीतम की गिटार में महारत सर्वविदित है। इस गीत के मुखड़े में उन्होंने गिटार के साथ कोरस का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। प्रीतम ने इस गीत को गवाया हैं युवाओं के चहेते गायक मोहित चौहान जिनकी आवाज़ इस तरह के गीतों में खूब फबती है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को..


अभी कुछ दिनों से लग रहा है
बदले-बदले से हम हैं
हम बैठे-बैठे दिन में सपने
देखते नींदें कम हैं

अभी कुछ दिनों से सुना है दिल का
रौब ही कुछ नया है
कोई राज़ कमबख्त है छुपाये
खुदा ही जाने कि क्या है
है दिल पे शक मेरा
इसे प्यार हो गया...

अभी कुछ दिनों से मैं सोचता हूँ
कि दिल की थोड़ी सी सुन लूँ
यहाँ रहने आएगी
दिल सजा लूँ मैं
ख्वाब थोड़े से बुन लूँ
है दिल पे...

तू बेख़बर, या सब ख़बर
इक दिन ज़रा मेरे मासूम दिल पे गौर कर
पर्दों में मैं, रख लूँ तुझे
के दिल तेरा आ ना जाए कहीं ये गैर पर
हम भोले हैं, शर्मीले हैं
हम हैं ज़रा सीधे मासूम इतनी ख़ैर कर
जिस दिन कभी जिद पे अड़े
हम आएँगे आग का तेरा दरिया तैर कर

अभी कुछ दिनों से लगे मेरा दिल
धुत हो जैसे नशे में
क्यूँ लड़खड़ाए ये बहके गाए
है तेरे हर रास्ते में
है दिल पे...

बन के शहर चल रात भर
तू और मैं तो मुसाफ़िर भटकते हम फिरे
चल रास्ते जहाँ ले चले
सपनों के फिर तेरी आहों में थक के हम गिरे
कोई प्यार की, तरकीब हो
नुस्खे कोई जो सिखाये तो हम भी सीख लें
ये प्यार है, रहता कहाँ
कोई हमसे कहे उससे जा के पूछ लें

मैं सम्भालूँ पाँव फिसल न जाऊँ
नयी-नयी दोस्ती है
ज़रा देखभाल सँभल के चलना
कह रही ज़िन्दगी है
है दिल पे... लूँ


मंगलवार, फ़रवरी 23, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 : पायदान संख्या 9 - बड़े से शहर में छोटे छोटे घर में...

गीतमाला की नवीं सीढी पर स्वागत करें इस प्यारे से गीत का जिसमें मेलोडी है, सुकून देने वाला संगीत है, दिल छूने वाला मुखड़ा है और साथ ही है एक नए गायक का स्वर। मुझे यकीं है कि इस गीत को आप में से ज्यादातर ने नहीं सुना होगा। जैसा कि मैंने पिछली पोस्ट में इशारा किया था कि डरावनी फिल्मों के संगीत पर हमारा ध्यान सामान्यतः कम ही जाता है।

इस साल एक ऍसी ही फिल्म आई थी 13B। फिल्म का संगीत दिया था शंकर एहसान लॉय ने और उनके इस गीत ने पहली बार सुनने में ही मेरा दिल जीत लिया था।

गीतकार नीलेश मिश्रा जो हिंदुस्तान टाइम्स में पत्रकार, एक घुमक्कड़ और एक अनियमित ब्लॉगर भी हैं ने इस गीत के लिए जो मुखड़ा रचा है उसकी काव्यत्मकता और धनात्मक उर्जा मूड बना देती है या यूँ कहें कि इसे सुनकर आप खुद ब खुद अच्छा महसूस करने लगते हैं।

आँखों से बचाकर, लो रखो छुपाकर,
प्यार को कभी किसी की नज़र ना लगे
चाँद को चुराकर, माथे पे सजाकर
हौले चलना रात को खबर ना लगे
सितारे ढूँढ लाए हैं अँधेरों पे सजाए हैं
जैसे दीवाली की हो रात जिंदगी....


पर इस गीत के नवीं पॉयदान पर होने की एक वज़ह मेरे लिए निजी है। दरअसल नीचे के अंतरा मुझे उन लमहों से जोड़ता है जो मैंने बिहार के छोटे छोटे शहरों गया, सासाराम और आरा में रहने के बाद पटना आकर आफिसर्स हॉस्टल में बिताए। दो कमरों के उस छोटे से घर में बिताए जिंदगी के वो 16 साल जिसमें मुझे जिंदगी की खुशियाँ भी मिलीं और कुछ ग़म भी जो शायद जीवन पर्यन्त मेरे साथ रहें।

उस छोटे से घर में रहते हुए मेरे पहले याद रहने वाले दोस्त बनें, पहली बार दिल फिसला, जहाँ की बॉलकोनी से मैंने कितनी रातों को घंटों चाँद सितारों से मौन वार्तालाप किया। वो प्यारी दीपावली, स्कूल से रुसवा होना, भूकंप की भगदड़ और यहाँ तक की इंजीनियरिंग की परीक्षा में सफल होने की घोषणा करता वो अखबार उसी घर में तो आया था। इस लिए जब भी घर में ये गीत बजता है मैं इन पंक्तियों को बड़े मन से गाता हूँ

बड़े से शहर में छोटे छोटे घर में
इतनी ही खुशियाँ वो उनको रखने का हक़
प्यार मुस्कुराहट सपनों की आहट
जो भी माँगा मिल गया


आगे का अंतरा फिल्म की परिस्थितियों से जुड़ा है
आज कल इक नन्हे
मेहमाँ से बाते करो ख्वाबों में
दोनों कहानियाँ बनाते झूठी सच्ची है बताते
मैंने कल, उससे कहा
यार अब आ भी जाओ घर कभी
भीगने से ना तुम डरना
खुशियों की है बरसातें


सितारे ढूँढ लाए हैं अँधेरों पे सजाए हैं
जैसे दीवाली की हो रात जिंदगी....
बड़े से शहर में छोटे छोटे घर में
इतनी ही खुशियाँ वो उनको रखने का हक़
प्यार मुस्कुराहट सपनों की आहट
जो भी माँगा मिल गया



गीत तो आपने सुन लिया और मेरे उद्गार भी पढ़ लिए अब ये बताइए कि ये गीत गाया किसने हैं। चलिए मैं ही बता देता हूँ इस गीत के गायक हैं कार्तिक चित्र में बाँयी तरफ़ है गीतकार नीलेश और दाँयी ओर कार्तिक।



श्रीनिवास, विजय प्रकाश, राशिद अली, चिन्मया, नरेश अय्यर की तरह कार्तिक भी रहमान भक्त हैं और इन गायकों की तरह ही हिंदी फिल्म संगीत में प्रवेश करने का मौका कार्तिक को रहमान ने ही दिया। स्कूल में ही कर्नाटक संगीत सीखने वाले कार्तिक ने कॉलेज में अपने बैंड के लिए गाते रहे। रहमान के संपर्क में गायक श्रीनिवास की मदद से आए। साथिया, युवा, गज़नी और युवराज के कुछ गीत वे गा चुके हैं। पिछले साल उनका फिल्म गज़नी के लिए गाया गीत बहका मैं बहका.... काफी लोकप्रिय हुआ था।



वार्षिक संगीतमाला 2009 अब लेगी एक हफ्ते का विश्राम। होली के माहौल में अगली सीढ़ी पर बजने वाले ग़मगीन गीत से मैं आपको अभी मिलवाना नहीं चाहता। होली की मस्ती में आपको सराबोर करने के लिए अगली पोस्ट में सुनिएगा मेरी आवाज़ में एक मशहूर पाकिस्तानी शायर का रस भरा गीत। तो गुरुवार तक के लिए दीजिए इज़ाजत..

गुरुवार, दिसंबर 24, 2009

रेत में सर किए यूँ ही बैठा रहा, सोचा मुश्किल मेरी ऐसे टल जाएगी...

जिंदगी में बहुत कुछ अपने आस पास के हालात में, अपने समाज में, अपने देश में हम बदलते देखना चाहते हैं। पर सब कुछ वैसा ही रहने पर सारा दोष तत्कालीन व्यवस्था यानि सिस्टम पर मढ़ देते हैं।
  • राजनीति गंदी है कोई नैतिक स्तर तो आजकल रह ही न हीं गया है... ऐसे जुमले रोज़ उछाला करेंगे। पर मतदान का दिन आएगा तो उसे छुट्टी का आम दिन बनाकर बैठ जाएँगे।
  • भ्रष्टाचार चरम पर है इस पर कार्यालय और घर में लंबी चौड़ी बहस करेंगे पर अपना कोई काम फँस गया हो कहीं तो चपरासी से लेकर क्लर्क तक को छोटी मोटी रिश्वत देने से नहीं कतराएँगे।
  • अपने घर को साफ सुथरा रखेंगे पर घर से बाहर निकलेंगे तो फिर जहाँ जाएँगे कूड़ेदान की तलाश बिना किए चीजों को इधर उधर फेकेंगे। फिर ये भी टिप्पणी करने से नहीं चूकेंगे कि ये जगह कितनी गंदी है। सरकार कुछ भी नहीं करती।


ऐसे कितने ही और उदहारण दिए जा सकते हैं। मुद्दा ये है कि हमारा ध्यान इस बात पर ज्यादा है कि बाकी लोग क्या नहीं कर रहे हैं। ये विचार करने की बात है कि आखिर हमने समाज और अपने आसपास के हालातों को बदलने के लिए कितना कुछ किया है या फिर सब कुछ दूसरों के लिए छोड़ रखा है।

आज जबकि इस साल का अंत करीब आ रहा है आप सब को ऍसे ही विचारों से ओतप्रोत एक गीत सुनवाना चाहता हूँ जो हमें अपने समाज के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित करता है। साथ ही ये गीत इस बात की भी आशा दिलाता है कि ऍसा करने से शायद आपको अपनी जिंदगी के नए माएने भी दिख जाएँ।

सरल शब्दो का भी अगर सही ढ़ंग से मेल करवाया जाए तो उससे उपजी भावनाएँ भी मन पर गहरा असर डालती हैं। जब ऐसे गीतों को पूरी भावना से गायक या गायिका अपना स्वर देता है तो फिर गीत के साथ संगीत का रहना बेमानी सा हो जाता है। नवोदित गायिका शिल्पा राव के गाए इस गीत में भी वही बात है। तो आइए पहले इस गीत के बोलों से परिचित हो लें और फिर सुनें इस गीत को..






रेत में सर किए यूँ ही बैठा रहा
सोचा मुश्किल मेरी ऐसे टल जाएगी
और मेरी तरह सब ही बैठे रहे
हाथ से अब ये दुनिया निकल जाएगी
दिल से अब काम लो
दौड़ कर थाम लो
जिंदगी जो बची है फिसल जाएगी

थोड़ी सी धूप है आसमानों में अब
आँखें खोलों नहीं तो ये ढ़ल जाएगी
आँखें मूँदे हैं ये छू लो इसको ज़रा
नब्ज़ फिर जिंदगी की ये चल जाएगी

दिल से अब काम लो
दौड़ कर थाम लो
जिंदगी जो बची है फिसल जाएगी


क्या आपको नहीं लगता कि ये वक्त अपनी अपनी जिंदगियों में झाँकने का है ? साथ ही कहीं कोई फिसलन दिखे तो विचारने का है कि इसे हम किस तरह बदल सकते हैं।

वैसे ये बता दूँ कि ये गीत पिछले साल मुंबई पर हुए हमलों के मद्देनज़र लिखा गया था। इसे यू ट्यूब पर आप यहाँ देख सकते हैं।




चलते चलते 'एक शाम मेरे नाम' के सभी पाठकों को क्रिसमिस की हार्दिक शुभकामनाएँ। अब इस चिट्ठे के सालाना आयोजन वार्षिक संगीतमाला २००९ के आगाज़ के साथ आप से फिर मुलाकात होगी। तो तब तक के लिए आज्ञा..

गुरुवार, फ़रवरी 01, 2007

वार्षिक संगीतमाला गीत # 10 : लमहा - लमहा दूरी यूँ पिघलती है ...

तो दोस्तों पिछले महिने में आखिरी की १५ सीढ़ियाँ चढ़कर हम आ पहुँचे हैं पायदान संख्या १० पर । इस सीढ़ी पर गीत वो जिसके बारे में पहले भी इस चिट्ठे पर यहाँ लिख चुका हूँ गीत के बोल के साथ । दुख की बात ये कि ये इस गीतमाला का दूसरा ऍसा गीत है जिसकी धुन चुराने का इलजाम संगीतकार प्रीतम के सिर है । अंतरजाल पर खोज करने से पता चला कि इसकी धुन पाकिस्तानी गायक वारिस बेग के गीत 'कल शब देखा मैंने...' से ली गई है । बेग साहब का गीत यहाँ उपलब्ध है। वैसे जब मैंने आरिजिनल गीत सुना तो प्रीतम का प्रस्तुतिकरण काफी बेहतर लगा। बस उन्हें खुद इस गीत के कॉपीराइट खरीदने चाहिए थे ।


खैर चोरी की ही सही, पर मुझे इस धुन से खासा लगाव है । और फिर अभिजीत की आवाज में ये गीत सुनकर जी हल्का सा हो जाता है और बरबस ही गीत को गुनगुनाने लगता हूँ। नीलेश मिश्र ने गीत को एक काव्यात्मक जामा पहनाने की कोशिश की है ।

गैंगस्टर के इस गीत को आप
यहाँ भी सुन सकते हैं ।

अब चूंकि अंतिम दस का सिलसिला शुरु हो चुका है तो ये भी जानते चलें कि पिछले साल इस सीढ़ी पर कौन सा नग्मा पदस्थापित था ?

पिछले साल इस पायदान पर थे रब्बी शेरगिल बुल्ला कि जाणा मैं कौन ? के साथ !

रविवार, जनवरी 07, 2007

गीत # 21 :क्यूँ आजकल नींद कम ख्वाब ज्यादा है...

21 वी सीढ़ी पर एक बार फिर खड़े हैं केके मस्ती में डूबे रूमानियत भरे इस गीत के साथ । ये गीत है वो लमहे और इसे अपने खूबसूरत शब्द दिए हैं गीतकार नीलेश मिश्रा ने । रहा धुन का सवाल तो इसके बारे में साथी चिट्ठाकार नीरज दीवान पहले भी चर्चा छेड़ चुके हैं कि इस गीत की धुन बनाई नहीं बल्कि चुराई है प्रीतम ने !

इस गीत की धुन को उठाया गया है इंडोनेशियाई बैंड Tak Bisakah से
इस जालपृष्ठ www.itwofs.com के अनुसार

"Tak bisakah' means, Couldn't you? and is by one of Indonesia's most popular and successful pop groups, Peterpan. This track was part of the soundtrack of an Indonesian teen flick, 'Alexandria' (2005) and is apparently incredibly popular in those parts of the world!"
खैर, फिर भी चोरी से ही सही पर इस मधुर धुन के साथ ये गीत अच्छा बन पड़ा है । इसे सुनने के बाद आप अपने आप को हल्का फुलका और तरो ताजा अवश्य महसूस करेंगे खासकर तब जब आपको भी किसी से प्यार हो :)


क्यूँ आजकल नींद कम ख्वाब ज्यादा है
लगता खुदा का कोई नेक इरादा है
कल था फकीर, आज दिल शहजादा है
लगता खुदा का कोई नेक इरादा है
क्या मुझे प्यार है....याऽऽऽऽऽऽ
कैसा खुमार है.....याऽऽऽऽऽ

पत्थर के इन रस्तों पर, फूलों की इक चादर है
जब से मिले हो हमको, बदला हर इक मंजर है
देखो जहां में नीले नीले आसमां तले
रंग नए नए हैं जैसे घुलते हुए
सोए से ख्वाब मेरे जागे तेरे वास्ते
तेरे खयालों से भीगे मेरे रास्ते
क्या मुझे प्यार है....याऽऽऽऽऽऽ
कैसा खुमार है.....याऽऽऽऽऽ


 

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