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शुक्रवार, मई 17, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : कि देखो ना, बादल तेरे आँचल से बँध के आवारा ना हो जाए, जी

जुबली के गीत संगीत के बारे में इस गीतमाला में पहले भी चर्चा हो चुकी है और आगे और भी होगी क्यूँकि 2023 के पच्चीस बेहतरीन गीतों की इस शृंखला में बचे तीन गीतों में दो इसी वेब सीरीज के हैं। जहाँ उड़े उड़नखटोले ने आपको चालीस के दशक की याद दिला दी थी वहीं बाबूजी भोले भाले देखकर गीता दत्त और आशा जी के पचास के दशक गाए क्लब नंबर्स का चेहरा आँखों के सामने घूम गया था। 

"नहीं जी नहीं" इसी कड़ी में साठ के दशक के संगीत की यादें ताज़ा कर देता है जब फिल्म संगीत में संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन की तूती बोलती थी। शंकर जयकिशन के संगीत की पहचान थी उनका आर्केस्ट्रा। उनके संगीत रिकार्डिंग के समय वादकों का एक बड़ा समूह साथ होता था। अमित त्रिवेदी ने अरेंजर परीक्षित शर्मा की मदद से बला की खूबसूरती से इस गीत में वही माहौल फिर रच दिया है। इस गीत में वॉयलिन की झंकार भी है तो साथ में मेंडोलिन की टुनटुनाहट भी। कहीं ड्रम्स के साथ मेंडोलिन की संगत है तो कहीं वॉयलिन के साथ बाँसुरी की जुगलबंदी। एकार्डियन जैसे वाद्य भी अपनी छोटी सी झलक दिखला कर उस दौर को जीवंत करते हैं। 

वाद्य यंत्रों के छोटे छोटे टुकड़ों को अमित ने जिस तरह शब्दों के बीच पिरोया है उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए कम होगी।


इस मधुर संगीत रचना के बीच चलती है नायक नायिका की आपसी रूमानी नोंक झोंक, जिसे बेहद प्यारे बोलों से सजाया है गीतकार कौसर मुनीर ने। हिंदी फिल्मों में आपसी बातचीत या सवाल जवाब के ज़रिए गीत रचने की पुरानी परंपरा रही है। कौसर ने श्रोताओं को इसी कड़ी में एक नई सौगात दी है। अभी ये लिखते वक्त मुझे ख्याल आ रहा है "हम आपकी आँखों में इस दिल को बसा लें का" जिसमें ये शैली अपनाई गयी थी। मिसाल के तौर पर कौसर का लिखा इस गीत का मुखड़ा देखिए

कि देखो ना, बादल तेरे आँचल से बँध के आवारा ना हो जाए, जी
नहीं, जी, नहीं, कि बादल की आदत में तेरी शरारत नहीं
कि देखो ना, चंदा तेरी बिंदिया से मिल के कुँवारा ना रह जाए, जी
नहीं, जी, नहीं, कि चंदा की फ़ितरत में तेरी हिमाक़त नहीं

कि हमको भी भर लो नैनों में अपने, हो सुरमे की जैसे लड़ी
कि हमको भी भर लो नैनों में अपने, हो सुरमे की जैसे लड़ी
नज़र-भर के पहले तुझे देख तो लें कि जल्दी है तुझको बड़ी

कि देखो ना, तारे बेचारे हमारे मिलन को तरसते हैं, जी
नहीं, जी, नहीं, कि तारों की आँखों में तेरी सिफ़ारिश नहीं

कि अच्छा, चलो जी तुझे आज़माएँ, कहीं ना हो कोई कमी
कि अच्छा, चलो जी तुझे आज़माएँ, कहीं ना हो कोई कमी
कि जी-भर के अपनी कर लो तसल्ली, हूँ मैं भी, है तू भी यहीं

तो बैठो सिरहाने कि दरिया किनारे हमारी ही मौजें हैं, जी
नहीं, जी, नहीं, कि दरिया की मौजों में तेरी नज़ाकत नहीं
कि देखो ना, बादल .....नहीं, जी, नहीं

वैसे क्या आपको पता है कि जुबली का संगीत गोवा में बना था। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि 2022 में आई कला और जुबली की संगीत रचना एक साथ हुई थी। अमित त्रिवेदी इन फिल्मों के गीतकारों स्वानंद, अन्विता और कौसर को ले कर गोवा गए। उस दौर के गीतों के मूल तत्व को पकड़ने के लिए अमित त्रिवेदी ने कई दिनों तक लगातार चालीस, पचास और साठ के दशक के गाने सुने। उस दौर के अरेंजर से संपर्क साधा और फिर एक के बाद एक गानों की रिकार्डिंग करते गए। कमाल ये कि जुबली के गीतों में एक साथ आपको उस दौर के कई गीतों की झलक मिलेगी पर हर गीत बिना किसी गीत की कॉपी लगे अपनी अलग ही पहचान लिए नज़र आएगा।

वॉयलिन और ताल वाद्यों की मधुर संगत से इस गीत का आगाज़ होता है। पापोन की सुकून देती आवाज़ के साथ सुनिधि की गायिकी का नटखटपन खूब फबता है। पापोन जहाँ हेमंत दा की आवाज़ का प्रतिबिंब बन कर उभरते हैं वहीं सुनिधि की आवाज़ की चंचलता आशा जी और गीता दत्त की याद दिला देती है। वॉयलिन और ड्रम्स से जुड़े इंटरल्यूड में वॉयलिन पर सधे हाथ चंदन सिंह और उनके सहयोगियों के हैं। अगले इंटरल्यूड में वॉयलिन के साथ बाँसुरी आ जाती है। गीत के बोलों के साथ बजती मेंडोलिन के वादक हैं लक्ष्मीकांत शर्मा। तो आइए सुनिए इस गीत को और पहचानिए कि कौन सा वाद्य यंत्र कब बज रहा है?



इस गीत में आपको जोड़ी दिखेगी वामिका गब्बी और सिद्धार्थ गुप्ता की जिन्होंने पर्दे पर अपना अभिनय बखूबी किया है।

वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा


    मंगलवार, नवंबर 21, 2023

    एक अकेला इस शहर में : घरौंदा फिल्म का कालजयी गीत

    महानगरीय ज़िदगी में एक अदद घर की तलाश कितनी मुश्किल, कितनी भयावह हो सकती है एक प्रेमी युगल के लिए, इसी विषय को लेकर सत्तर के दशक में एक फिल्म बनी थी घरौंदा। श्रीराम लागू, अमोल पालेकर और ज़रीना वहाब अभिनीत ये फिल्म अपने अलग से विषय के लिए काफी सराही भी गयी थी।


    मुझे आज भी याद है कि हमारा पाँच सदस्यीय परिवार दो रिक्शों में लदकर पटना के उस वक़्त नए बने वैशाली सिनेमा हाल में ये फिल्म देखने गया था। फिल्म तो बेहतरीन थी ही इसके गाने भी कमाल के थे। दो दीवाने शहर में, एक अकेला इस शहर में, तुम्हें हो ना हो मुझको तो .. जैसे गीतों को बने हुए आज लगभग पाँच दशक होने को आए पर इनमें निहित भावनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक, उतनी ही अपनी लगती हैं।

    जयदेव का अद्भुत संगीत गुलज़ार और नक़्श ल्यालपुरी की भावनाओं में डूबी गहरी शब्द रचना और भूपिंदर (जो भूपेंद्र के नाम से भी जाने जाते हैं) और रूना लैला की खनकती आवाज़ आज भी इस पूरे एलबम से बार बार गुजरने को मजबूर करती रहती हैं। 

    आज इसी फिल्म का एक गीत आपको सुना रहा हूँ जिसे ग़ज़लों की सालाना महफिल खज़ाना में मशहूर गायक पापोन ने पिछले महीने अपनी आवाज़ से सँवारा था। 

    फिल्म के इस गीत को लिखा था गुलज़ार साहब ने।  गुलज़ार की लेखनी का वो स्वर्णिम काल था। सत्तर के दशकों में उनके लिखे गीतों से फूटती कविता एक अनूठी गहराई लिए होती थी। इसी गीत में एक अंतरे में नायक के अकेलेपेन और हताशा की मनःस्थिति को उन्होने कितने माकूल बिंबों में व्यक्त किया है। गुलज़ार लिखते हैं

    दिन खाली खाली बर्तन है 
    और रात है जैसे अंधा कुआँ
    इन सूनी अँधेरी आँखों में
    आँसू की जगह आता है धुआँ

    अपना घर बार छोड़ कर जब कोई नए शहर में अपना ख़ुद का मुकाम बनाने की जद्दोजहद करता है तो अकेले में गुलज़ार की यही पंक्तियाँ उसे आज भी अपना दर्द साझा करती हुई प्रतीत होती हैं।

    इन उम्र से लंबी सड़कों को
    मंज़िल पे पहुँचते देखा नहीं
    बस दौड़ती-फिरती रहती हैं
    हमने तो ठहरते देखा नहीं
    इस अजनबी से शहर में
    जाना-पहचाना ढूँढता है
    ढूँढता है, ढूँढता है

    संगीतकार जयदेव ने भी कितने प्यारे इंटल्यूड्स रचे थे इस गीत में जो दौड़ती भागती मुंबई के बीच नायक की उदासी ओर एकाकीपन कर एहसास को और गहरा कर देते थे। आपने ध्यान दिया होगा कि मुखड़े के बाद सीटी का भी कितना सटीक इस्तेमाल जयदेव ने किया था। वायलिन व गिटार के अलावा अन्य तार वाद्य भी गीत का माहौल को आपसे दूर होने नहीं देते।

    तो सुनिए पापोन की आवाज़ में गीत का यही अंतरा। इस महफिल में उनके साथ अनूप जलोटा और पंकज उधास तो हैं ही, साथ में कुछ नए चमकते सितारे जाजिम शर्मा, पृथ्वी गंधर्व व हिमानी कपूर जिन्होंने मूलतः ग़ज़लों के इस कार्यक्रम में अपनी गायिकी से श्रोताओं का मन मोहा था।



    फिल्म घरौंदा में ये गीत अमोल पालेकर पर फिल्माया गया था। जो गीत ज़िंदगी की सच्चाइयों को हमारे सामने उजागर करते हैं, हमें अपने संघर्षों के दिन की याद दिलाते हैं उनकी प्रासंगिकता हर पीढ़ी के लिए उतनी ही होती है। गुलज़ार के लफ्जों में कहूँ तो ऐसे गीत कभी बूढ़े नहीं होते। उनके चेहरे पर कभी झुर्रियाँ नहीं पड़ती। एक अकेला इस शहर में एक ऐसा ही नग्मा है...

    सोमवार, जनवरी 18, 2021

    वार्षिक संगीतमाला 2020 गीत # 17 : जो इक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम Mar Jaayein Hum

    विधु विनोद चोपड़ा अपनी फिल्मों के खूबसूरत फिल्मांकन और संगीत के लिए जाने जाते रहे हैं। बतौर निर्देशक परिंदा, 1942 A love story, करीब और मिशन कश्मीर का संगीत काफी सराहा गया था। इस साल थियेटर में रिलीज़ उनकी फिल्म शिकारा के गीत उतने तो सुने नहीं गए पर अगर आपको शांत बहता संगीत पसंद हो तो ये एल्बम आपको एक बार जरूर सुनना चाहिए। अगर मैं अपनी कहूँ तो मुझे इस संगीत एल्बम में ऐ वादी शहज़ादी... की आरंभिक कविता जिस अंदाज़ में पढ़ी गयी वो बेहद भायी पर जहाँ तक पूरे गीत की बात है तो इस गीतमाला में इस फिल्म का एक ही गीत शामिल हो पाया और वो है श्रद्धा मिश्रा और पापोन का गाया युगल गीत मर जाएँ हम..


    मर जाएँ हम एक प्यारा सा प्रेम गीत है ये जो संदेश शांडिल्य की लहराती धुन और झेलम नदी में बहते शिकारे के बीच इरशाद कामिल के शानदार बोलों की वज़ह से मन पर गहरा असर छोड़ता है। दरअसल जब आप  अपने अक़्स को भूल कर किसी दूसरे व्यक्तित्व की चादर को खुशी खुशी ओढ़ लेते हैं तभी प्रेम का सृजन होता है। इरशाद इन्ही भावनाओं को पहले अंतरे में उभारते हैं। 

    गीत के दूसरे अंतरे में उनका अंदाज़ और मोहक हो जाता है। अब इन पंक्तियों की मुलायमियत तो देखिए। कितने महीन से अहसास जगाएँ हैं इरशाद कामिल ने अपनी लेखनी के ज़रिए... तू कह रहा है, मैं सुन रही हूँ,मैं खुद में तुझको ही, बुन रही हूँ,....है तेरी पलकों पे फूल महके,...मैं जिनको होंठों से चुन रही हूँ,...होंठों पे आज तेरे मैं नमी देख लूँ,...तू कहे तो बुझूँ मैं, तू कहे तो चलूँ

    संगीत संयोजन में संदेश शांडिल्य ने गिटार और ताल वाद्यों के साथ संतूर का प्रयोग किया है। गीत का मुखड़ा जब संतूर पर बजता है तो मन सुकून से भर उठता है। संतूर पर इस गीत में उँगलिया थिरकी हैं रोहन रतन की।

    जो इक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम,
    जो एक पल तुमसे दूर जाएँ तो मर जाएँ हम,
    तू दरिया तेरे साथ ही भीगे बह जाएँ हम,
    जो इक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम...

    मैं तेरे आगे बिखर गयी हूँ,
    ले तेरे दिल में उतर गयी हूँ,
    मैं तेरी बाँहों में ढूँढूँ खुद को,
    यहीं तो थी मैं किधर गयी हूँ,
    खो गयी है तू मुझमें, आ गयी तू वहाँ,
    मिल रहे हैं जहाँ पे, ख्वाब से दो जहां,
    जो एक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम..

    तू कह रहा है, मैं सुन रही हूँ,
    मैं खुद में तुझको ही, बुन रही हूँ,
    है तेरी पलकों पे फूल महके,
    मैं जिनको होंठों से चुन रही हूँ,
    होंठों पे आज तेरे मैं नमी देख लूँ,
    तू कहे तो बुझूँ मैं, तू कहे तो चलूँ
    जो एक पल तुमको ना देखें... तो मर जाएँ हम,
    तू दरिया तेरे साथ ही भीगे..
    तू नदिया तेरे साथ ही भीगें, बह जाएँ  हम

    नवोदित गायिका श्रद्धा की आवाज़ की बनावट थोड़ी अलग सी है जो कि आगे के लिए संभावनाएँ जगाती हैं जबकि पापोन तो हमेशा की तरह अपनी लय में हैं। शिकारा में इस गीत को फिल्माया गया है आदिल और सादिया की युवा जोड़ी पर..

     

    वार्षिक संगीतमाला 2020


    बुधवार, फ़रवरी 05, 2020

    वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 10 : तेरा साथ है Tera Saath Hai

    असम के गायक अंगराग महन्ता  जिन्हें हम सब पापोन के नाम से जानते हैं की आवाज़ अपनी अलग बनावट की वज़ह से मुझे हमेशा से प्रिय रही है। एक शाम मेरे नाम की संगीतमालाओं में उनकी आवाज़ का जादू दो बार सरताज गीत बनकर गूँजा है। एक तो दम लगा के हइसा का मोह मोह के धागे और दूसरा बर्फी का क्यूँ ना हम तुम। 

    आज एक बार फिर पापोन के स्वर में संगीतमाला की चौथी पायदान पर अनजान सी फिल्म का बेहद मधुर गीत है। ये फिल्म थी पिछले साल अक्टूबर में रिलीज़ हुई Jacqueline I Am Coming  जो अपने एक अलग  विषय के बावज़ूद प्रचार प्रसार के अभाव में सिनेमा के पर्दों पर ज्यादा दिन तक टिक नहीं पाई। इस फिल्म के इस एकमात्र गीत का शानदार संगीत दिया है विपिन पटवा ने और इसके बोल लिखे हैं उनके कई सालों के जोड़ीदार डॉक्टर सागर ने। अगर आपको याद हो तो कुछ साल पहले भी इस तिकड़ी का एक गीत इस संगीतमाला में दाखिल हुआ था। फिल्म थी बॉलीवुड डायरीज़ और गीत के बोल थे ख्बाबों को सच करने के लिए तितली ने सारे रंग बेच दिए


    उत्तर प्रदेश के एक व्यापारी परिवार में जन्मे विपिन का शुरुआत से संगीत के प्रति रुझान और फिर शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा लेकर बतौर संगीतकार और गायक मुंबई की ओर रुख करने की बात तो मैं आपको पहले यहाँ बता ही चुका हूँ। 

    रही बात गीतकार सागर की तो उनका ताल्लुक उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिले बलिया से रहा है। अत्यंत गरीब परिवार में जन्मे सागर को स्कूल से ही भोजपुरी में कविता लिखने का शौक था। जिस स्कूल में वो पढ़ते थे वहाँ चार पाँच गाँवों के बच्चे पढ़ने आते थे। स्कूल में उनकी कविताई यूँ चमकी कि स्कूल तो स्कूल पूरे इलाके के लोकगीत कलाकार उनसे गीत लिखवाने के लिए उनके गाँव आने लगे। दो जून रोटी के संघर्ष ने उन्हें स्कूल के बाद कुछ सालों के लिए पढ़ाई लिखाई से दूर कर दिया पर उनकी जीवटता और कविता का प्रेम उन्हें ऐसे लोगों से मिलवाता गया जिनकी मदद से उन्होंने JNU से हिंदी में अपनी पीएचडी पूरी की। 

    विपिन पटवा और डॉ सागर
    दिल्ली में ही एक बार उनकी मुलाकात विपिन से हुई और बरसों बाद जब वे मुंबई पहुँचे तो ये पुरानी पहचान गीतकार संगीतकार की एक जोड़ी में तब्दील हो गई। विपिन के संगीत निर्देशन में उनका पहला गीत फिल्म ये स्टूपिड प्यार के लिए था जिसे विपिन के साथ श्रेया घोषाल ने गाया था। पिछले आठ सालों में इस जोड़ी ने बॉलीवुड डॉयरीज और दास देव जैसी फिल्मों के लिए अच्छा काम किया है। 

    बहरहाल लौटते हैं Jacqueline I Am Coming के इस गीत की तरफ। Jacqueline I Am Coming  की कहानी एक अधेड़ अविवाहित पुरुष की कहानी है जो अकेला जीवन जीते जीते एक युवा ईसाई स्त्री से प्रेम कर बैठता है। प्रेम, सामाजिक विरोध के बीच विवाह और फिर नायिका की मानसिक बीमारी की वजह से आने वाली परेशानियों के बीच फिल्म का एकमात्र गीत आता है और नायक के मन की भावनाओं और कठिनाइयों पर विजय पाने की उसकी उम्मीदों की बात कह जाता है। 

    आज ये गीत, गीतमाला के प्रथम दस गीतों में शामिल हुआ है तो उसकी सबसे बड़ी वजह विपिन पटवा की शानदार धुन और संगीत संयोजन है जिसे पापोन की दिल छूती गायिकी और सागर के सहज बोलों का भरपूर साथ मिला है। ये गीत इस बात को भी साबित करता है कि भारतीय वाद्य यंत्रों की अपनी एक अलग ही मिठास है जिसका स्वाद कभी फीका नहीं पड़ता।

    गीत की शुरुआत में विपिन ने ताल वाद्य के रूप में घड़े का इस्तेमाल किया है तो अंतरे में सितार की झुनझुनाहट है। गीत के अंत में मुखड़े के साथ शहनाई बजती है और उसके बाद आख़िर के आधे मिनट में जो संगीत बजता है वो मेरी आँखें तो हमेशा नम कर जाता है। 

    इन सब के बीच मुखड़े की मोहक धुन पापोन की आवाज़ के साथ फूल और खुशबू बन कर मन में समा जाती है। इतना ही नहीं पर्दे पर जब आप रघुबीर यादव जैसे अद्भुत कलाकार को इस गीत को अभिनीत करते देखते हैं तो गीत की सीधी सादी भावनाएँ और गहरी होकर उतर जाती हैं।


    तेरा साथ है हाथों में हाथ है
    फूलों सा दिन अब मेरा
    खुशबू सी रात है

    तेरे बिना कैसे रहूँ
    मेरा अधूरा है आशियाँ
    तेरे सिवा जाऊँ कहाँ
    कोई  नहीं है मेरा यहाँ

    तेरा साथ है हाथों में हाथ है
    फूलों सा दिन अब मेरा
    खुशबू सी रात है

    पूरब से आने लगा है उजाला
    बादल जो घेरे हैं वो छट जाएँगे
    तेरे संग अब मेरी ज़िंदगी के
    लमहे सुकूँ से कट जाएँगे

    तेरा साथ है हाथों में हाथ है
    फूलों सा दिन अब मेरा
    खुशबू सी रात है

    तो आइए सुनें पापोन की दिलकश आवाज़ में ये नग्मा जो पहले आपने शायद ही सुना हो



    वार्षिक संगीतमाला 2019 
    01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
    02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया 
    03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
    04. तेरा साथ हो   Tera Saath Ho
    05. मर्द  मराठा Mard Maratha
    06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए  Bharat 
    07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है  Aaj Jage Rahna
    08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र  Zikra
    09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए  Dil Royi Jaye
    10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ  Shaabaashiyaan
    11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
    12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
    13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
    14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
    15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
    16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
    17. ये आईना है या तू है Ye aaina
    18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
    19. बेईमानी  से.. 
    20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
    21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
    22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
    23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
    24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

    गुरुवार, जनवरी 24, 2019

    वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 6 : तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा Chaav Laaga

    संगीतमाला की आज की कड़ी में है अनु मलिक द्वारा संगीत निर्देशित सुरीला युगल गीत चाव लागा जो इस साल इतना बजा और सराहा गया है कि आप इससे भली भांति परिचित होंगे। इसके पहले जब शरद कटारिया, अनु मलिक, वरुण ग्रोवर, पापोन की चौकड़ी दम लगा के हइसा में साथ आई थी तो मोह मोह के धागे सा यादगार गीत बना था।

    मोह मोह के धागे एकल गीत था जिसे पापोन और मोनाली ठाकुर ने अलग अलग गाया था जबकि इस बार अनु मलिक ने सुई धागा के इस गीत को पापोन और रोंकिनी के युगल स्वर में गवाया। रोंकिनी की सधी हुई गायिकी तो आपने 2017 में  रफ़ू और पिछले साल तू ही अहम  में सुनी ही होगी। पापोन तो ख़ैर इस संगीतमाला में दो बार पहली बार बर्फी के गीत क्यूँ ना हम तुम और दूसरी बार मोह मोह के धागे के लिए सरताज गीत का गौरव प्राप्त कर ही चुके हैं। 


    सुई धागा की कथा एक निम्म मध्यम वर्गीय परिवार की है जिसका चिराग यानि नायक कोई नौकरी करने के बजाए हुनर के बलबूते पर अपने लिए एक अलग मुकाम बनाना चाहता है। उसकी ज़िंदगी तब खुशनुमा रंग ले लेती है जब उसकी नई नवेली पत्नी पूरे जोशो खरोश से उसके सपने को अपना लेती है।

    पति पत्नी के पनप रहे इस नए रिश्ते में कभी खराशें आती हैं तो कभी मुलायमियत के पल और इसी को ध्यान में रखते हुए वरुण ग्रोवर ने गीत का मुखड़ा लिखा कभी शीत लागा कभी ताप लागा तेरे साथ का है जो श्राप लागा.. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा।

    गीत  में शीत और ताप.. चाव और घाव.. नींद और जाग की उनकी जुगलबंदी तो कमाल की थी। एक दूसरे को समझते बूझते ये साथी इन प्यार भरी राहों में हल्के हल्के कदम भरना चाहते हैं और इसीलिए कह उठते हैं रास्ते आस्ते चल ज़रा।

    वैसे मुखड़े में "साथ का श्राप" थोड़ी ज़्यादा तीखी अभिव्यक्ति हो गयी ऐसा मुझे महसूस हुआ। इसी तरह शहर बिगाड़ने वाली पंक्तियाँ भी उतनी प्रभावी नहीं लगीं। इसीलिए मुझे गीत के दो अंतरों में दूसरा वाला अंतरा ज्यादा बेहतर लगा। वैसे क्या आपको पता है कि वरुण ने इस गीत के लिए एक तीसरा अंतरा भी रचा था। पहले अंतरे की जगह अगर वो इस्तेमाल हो जाता तो ये गीत और निखर उठता। देखिए कितना प्यारा लिखा था वरुण ने

    इकटक तुझपे, मन ये टिका है
    बाँध ले चाहे, खुल जाने दे
    आज मिलावट, थोड़ी कर के 
    ख़ुद में मुझको घुल जाने दे
    तुझपे ही खेला दाँव रे, दाँव रे
    तेरा चाव लागा, जैसे कोई घाव लागा

    रोकिनी  व  पापोन 
    गिटार की टुनटुनाहट के बीच रोंकिनी के मधुर आलाप से गीत का आगाज़ होता है और फिर गीत पापोन की मुलायम और रोंकिनी के शास्त्रीय रंग में रँगी आवाज़ों में घुलता मिलता आगे बढ़ जाता है। जब मैंने पहली बार ये गीत सुना था तो रोंकिनी जब रास्ते... आस्ते चले ज़रा गाती हैं तो किशोर कुमार का गाया एक गीत जेहन में कौंध उठा था जिसे मैं याद नहीं कर पा रहा था। बाद में मैंने जब रोंकिनी से ये प्रश्न किया तो उन्होंने बताया कि वो हिस्सा उन्हें भी मैं शायर बदनाम की याद दिलाता है। 

    अनु मलिक के संगीत संयोजन में गिटार और बाँसुरी इस गीत में प्रमुखता से बजती है। पहले इंटरल्यूड में गिटार पर अंकुर मुखर्जी की धुन सुनकर मन झूम उठता है वहीं दूसरे में बाँसुरी पर नवीन कुमार की बजाई धुन कानों में मिश्री घोलती है। अचरज ना होगा गर इस गीत की लोकप्रियता इसे फिल्मफेयर एवार्ड के गलियारों तक पहुँचा दे।  

    कभी शीत लागा कभी ताप लागा 
    तेरे साथ का है जो श्राप लागा 
    मनवा बौराया.. 
    तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा 

    रह जाएँ चल यहीं घर हम तुम ना लौटें 
    ढूँढें कोई ना आज रे 
    तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा 
    तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा 
    रास्ते, आस्ते चले ज़रा , रास्ते..., आस्ते चले ज़रा 
    तेरा चाव लागा ....

    संग में तेरे लागे नया सा 
    काम पुराना लोभ पुराने 
    दिन में ही आ जा शहर बिगाड़ें 
    जो भी सोचे लोग पुराने 
    तू नीदें तू ही जाग रे जाग रे 
    तेरा चाव लागा ...

    देख लिहाज़ की चारदीवारी 
    फाँद ली तेरे एक इशारे 
    प्रीत की चादर, छोटी मैली 
    हमने उस में पैर पसारे 

    काफी है तेरा साथ रे साथ रे..   




    वार्षिक संगीतमाला 2018  
    1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
    2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
    3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
    4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
    5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
    6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
    7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
    8.  एक दिल है, एक जान है 
    9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
    10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
    11 . तू ही अहम, तू ही वहम
    12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
    13. सरफिरी सी बात है तेरी
    14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
    15. तेरा यार हूँ मैं
    16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
    17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
    18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
    19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
    20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
    21. जिया में मोरे पिया समाए 
    24. वो हवा हो गए देखते देखते
    25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

    रविवार, जनवरी 01, 2017

    वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान #25 : ख़्वाबों को सच करने के लिए तितली ने सारे रंग बेच दिए Titli ne sare rang bech diye

    स्वागत है आप सब का एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला के इस ग्यारहवें संस्करण में जिसकी पहली पेशकश है फिल्म बॉलीवुड डायरीज़ से। पिछले साल फरवरी 2016 में प्रदर्शित बॉलीवुड डायरीज़ फिल्म अपने यथार्थ को छूते कथानक के लिए सराही गयी थी। इस गीत के संगीतकार हैं विपिन पटवा और गीत के बोल लिखे हैं डा. सागर ने। विपिन पटवा का संगीत और सागर द्वारा रचे बोल इस फिल्म के लिए  निश्चय ही ज्यादा सुर्खियाँ बटोरने की ताकत रखते थे। पर फिल्म और उसका संगीत ज्यादा ध्यान खींचे बिना ही सिनेमाघर के पर्दों से बाहर हो गया।


    उत्तर प्रदेश के एक व्यापारी परिवार से जन्मे विपिन को बचपन से ही शास्त्रीय संगीत में रुचि थी। पंडित हरीश तिवारी से आरंभिक शिक्षा लेने वाले विपिन स्नातक करने के बाद कुछ दिनों तक आकाशवाणी के लिए काम करते रहे। सात आठ साल पहले उन्होंने मायानगरी में कदम रखा और तीन चार छोटी मोटी फिल्में भी कीं। पर बॉलीवुड डायरीज़ मेरी समझ से उनका संगीत निर्देशित अब तक का सबसे बेहतर एलबम है। तितली के आलावा इस फिल्म के अन्य गीत  मनवा बहरुपिया और मन का मिरगा ध्यान आकर्षित करते हैं। मनवा बहरुपिया सुनकर मुझे कभी अलविदा ना कहना के चर्चित गीत मितवा कहे धड़कनें तुझसे क्या की याद आ गयी।

    विपिन पटवा
    तो बात करते हैं तितली की। दरअसल ये फिल्म मुंबई की फिल्मी दुनिया में पहुँचने की हसरत लिए तीन अलग अलग किरदारों की कहानी है जिनके सपनों के तार उन्हें एक दूसरे से जोड़ देते हैं। इन सपनों को पूरा करने के लिए वे क्या कुछ खोते हैं इसी व्यथा को व्यक्त करता है पच्चीसवीं पॉयदान का ये गीत। डा. सागर जिनकी शिक्षा दिक्षा जे एन यू से हुई है ने इस गीत के लिए जो बोल लिखे हैं उनमें ख़्वाबों को सच करने के लिए तितली ने सारे रंग बेच दिए वाली पंक्ति मन को सीधे कचोट जाती है। 

    बाहर से ये दुनिया हमें जितनी रंग बिरंगी दिखती है उतनी अंदर से होती नहीं। पर जब तक उसके इस रूप का दर्शन होता है हम बहुत कुछ दाँव पर लगा देते हैं। उस दलदल को पार करना ही एक रास्ता बचता है वापस लौटना नहीं। ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति अंदर ही अंदर घुलता जाता है पर कुछ कह नहीं पाता। सागर इन मनोभावों को गीत के अंतरे में बखूबी व्यक्त करते हैं।

    पियानो और सारंगी के मधुर संगीत संयोजन से गीत के मुखड़े की शुरुआत होती है। इंटरल्यूड्स में भी विपिन भारतीय वाद्यों सारंगी और सरोद का खूबसूरत इस्तेमाल करते हैं। पापोन की शुरुआती तान गीत की पीड़ा को सामने ले आती है। वैसे इस गीत को एलबम में सोमेन चौधरी ने भी गाया है पर पापोन अपनी गायिकी से कहीं ज्यादा प्रभावित करते हैं।

    कैसा ये कारवाँ, कैसे हैं रास्ते
    ख़्वाबों को सच करने के लिए तितली ने सारे रंग बेच दिए...

    सारा सुकूँ हैं खोया खुशियों की चाहत में
    दिल ये सहम सा जाए छोटी सी आहट में
    कुछ भी समझ ना आये जाना हैं कहाँ
    ख़्वाबों को सच करने के लिए तितली ने सारे रंग बेच दिए...

    अलफ़ाज़ साँसों में ही आ के बिखरते जाए
    खामोशियों में बोले ये आँखे बेजुबान
    परछाइयाँ हैं साथी, चलता ही जाए राही
    कोई ना देखे अब तो ज़ख्मों के निशान
    कुछ भी समझ ना आये जाना हैं कहाँ
    ख़्वाबों को सच करने के लिए तितली ने सारे रंग बेच दिए...

    ना रौशनी हैं कोई, आशाएँ खोयी खोयी
    टूटा फूटा हैं ये उम्मीदों का ज़हाँ
    ना बेकरारी कोई, बंदिश रिहाई कोई
    अब तो निगाहों में ना कोई इंतज़ार
    कुछ भी समझ ना आये जाना हैं कहाँ
    ख़्वाबों को सच करने के लिए तितली ने सारे रंग बेच दिए...



    मंगलवार, मार्च 01, 2016

    वार्षिक संगीतमाला 2015 सरताज गीत : मोह मोह के धागे Moh Moh Ke Dhage

    दो महीनों की इस संगीत यात्रा के बाद बारी है आज वार्षिक संगीतमाला 2015 के सरताजी बिगुल को बजाने की। संगीतमाला की चोटी पर गाना वो जिसके साथ संगीतकार अनु मलिक ने की है हिंदी फिल्म जगत में शानदार वापसी। शिखर पर एक बार फिर हैं  वरुण ग्रोवर के प्यारे बोल जो पापोन व मोनाली ठाकुर की आवाज़ के माध्यम से दिल में प्रीत का पराग छोड़ जाते हैं। यानि ये कहना बिल्कुल अतिश्योक्ति नहीं होगी कि वो होगा ज़रा पागल जिसने इसे ना चुना :)। तो चलिए आज इस आपको बताते हैं इस गीत की कहानी इसे बनाने वाले किरदारों की जुबानी।



    अनु मलिक का नाम हिंदी फिल्म संगीत में लीक से हटकर बनी फिल्मों के साथ कम ही जुड़ा है। पर जब जब ऐसा हुआ है उन्होंने अपने हुनर की झलक दिखलाई है। एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं के एक दशक से लंबे इतिहास में उमराव जान के गीत अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो के लिए वो ये तमगा पहले भी हासिल कर चुके हैं। पर इस बात का उन्हें भी इल्म रहा है कि अपने संगीत कैरियर का एक बड़ा हिस्सा उन्होंने  बाजार की जरूरतों को पूरा करने में बिता दिया। इतनी शोहरत हासिल करने के बाद भी उनके अंदर कुछ ऐसा करने की ललक बरक़रार है जिसे सुन कर लोग लंबे समय याद रखें। उनकी इसी भूख का परिणाम है फिल्म दम लगा के हईशा  का ये अद्भुत गीत ! 

    अनु मलिक ने गीत के मुखड़ा राग यमन में बुना जो आगे जाकर राग पुरिया धनश्री में मिश्रित हो जाता है। इंटरल्यूड्स में एक जगह शहनाई की मधुर धुन है तो दूसरे में बाँसुरी की। पर अनु मलिक की इस रचना की सबसे खूबसूरत बात वो लगती है जब वो मुखड़े के बाद तू होगा ज़रा पागल से गीत को उठाते हैं। पर  ये भी सच है की उनकी इतनी मधुर धुन को अगर वरुण ग्रोवर के लाजवाब शब्दों का साथ नहीं मिला होता तो ये गीत कहाँ अमरत्व को प्राप्त होता ?


    वरुण ग्रोवर और अनु मलिक
    वैसे इसी अमरत्व की चाह, कुछ अलग करने के जुनून  ने IT BHU के इस इंजीनियर को मुंबई की माया नगरी में ढकेल दिया। यूपी के मध्यम वर्गीय परिवार में पले बढ़े वरुण ग्रोवर का साहित्य से बस इतना नाता रहा कि उन्होंने बचपन में  बालहंस नामक बाल पत्रिका के लिए एक कहानी भेजी थी। हाँ ये जरूर था कि घर में पत्र पत्रिकाएँ व किताबें के आते रहने से उन्हें पढ़ने का शौक़ शुरु से रहा। वरुण कहते हैं कि छोटे शहरों में रहकर कई बार आप बड़ा नहीं सोच पाते। लखनऊ ने उन्हें अपने सहपाठियों की तरह इंजीनियरिंग की राह पकड़ा दी। बनारस गए तो पढ़ाई के साथ नाटकों से जुड़ गए और बतौर लेखक उनके मन में कुछ करने का सपना पलने लगा था। पुणे में नौकरी करते समय उन्होंने सोचा था कि दो तीन साल काम कर कुछ पैसे जमा कर लेंगे और फिर मुंबई की राह पकड़ेंगे। पर ग्यारह महीनों में  सॉफ्टवेयर जगत में काम करते हुए उनका अपनी नौकरी से  मोह भंग हो गया।

    लेखक के साथ वरुण को चस्का था कॉमेडी करने का तो मुंबई की फिल्मी दुनिया में उन्हें पहला काम ग्रेट इ्डियन कॉमेडी शो लिखने का मिला। बाद में वो ख़ुद ही स्टैंड अप कॉमेडियन बन गए पर साथ साथ वो फिल्मों में लिखने के लिए अवसर की तलाश कर रहे थे। जिन लोगों के साथ वो काम करना चाहते थे वहाँ पटकथा लिखने का तो नहीं पर गीत रचने का मौका था। सो वो गीतकार बन गए। नो स्मोकिंग के लिए गाना लिखा पर वो उसमें इस्तेमाल नहीं हो सका। फिर अनुराग कश्यप ने उन्हें दि गर्ल इन येलो बूट्स में मौका दिया पर वरुण पहली बार लोगों की नज़र में आए गैंग्स आफ वासीपुर के गीतों की वजह से। फिर दो साल पहले आँखो देखी आई जिसने उनके काम को सराहा गया और आज देखिए इस वार्षिक संगीतमाला की दोनों शीर्ष पायदानों पर उनके गीत राज कर रहे हैं।

    अनु मलिक ने अपने इस गीत के लिए जब पापोन को बुलाया तो वो तुरंत तैयार हो गए। अनु कहते हैं कि पहली बार ही गीत सुनकर पापोन का कहना था कि ये गाना जब आएगा ना तो जान ले लेगा

    मोनाली ठाकुर और पापोन
    जब गीत का फीमेल वर्सन बनने लगा तो अनु मलिक को मोनाली ठाकुर  की आवाज, की याद आई। ये वही मोनाली हैं जिन्होंने सवार लूँ से कुछ साल पहले लोगों का दिल जीता था।  मोनाली ने इंडियन आइडल में जब हिस्सा लिया था तो अनु जी ने उनसे वादा किया था कि वो अपनी फिल्म में उन्हें गाने का एक मौका जरूर देंगे। अनु मलिक को ये मौका देने में सात साल जरूर लग गए पर जिस तरह के गीत के लिए उन्होंने मोनाली को चुना उसके लिए वो आज भी उनकी शुक्रगुजार हैं। पापोन व मोनाली दोनों ने ही अपने अलग अलग अंदाज़ में इस गीत को बेहद खूबसूरती से निभाया है।

    वरुण ने क्या प्यारा गीत लिखा है। सहज शब्दों में इक इक पंक्ति ऐसी जो लगे कि अपने लिए ही कही गई हो। अब बताइए मोह के इन धागों पर किसका वश चला है? एक बार इनमें उलझते गए तो फिर निकलना आसान है क्या? फिर तो हालत ये कि आपका रोम रोम इक तारा बन जाता है जिसकी चमक आप उस प्यारे से बादल में न्योछावर कर देना चाहते हों । अपनी तमाम कमियों और अच्छाइयों के बीच जब कोई आपको पसंद करने लगता है, आपकी अनकही बातों को समझने लगता है तो फिर  व्यक्तित्व की भिन्नताएँ चाहे दिन या रात सी क्यूँ ना हों मिलकर एक सुरमयी शाम की रचना कर ही देती हैं। इसीलिए गीत में वरुण कहते हैं.

    हम्म... ये मोह मोह के धागे,तेरी उँगलियों से जा उलझे 
    कोई टोह टोह ना लागे, किस तरह गिरह ये सुलझे 
    है रोम रोम इक तारा.. 
    है रोम रोम इक तारा ,जो बादलों में से गुज़रे.. 

    ये मोह मोह के धागे....


    तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना 
    तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना 
    कैसे तूने अनकहा, तूने अनकहा सब सुना 
    तू होगा ज़रा पागल, तूने मुझको है चुना 
    तू दिन सा है, मैं रात आना दोनों  
    मिल  जाएँ शामों की तरह 

    बिना आगे पीछे सोचे अपने प्रिय के साथ बस यूं ही समय बिताना बिना किसी निश्चित मंजिल के भले ही एक यूटोपियन अहसास हो पर उस बारे में सोचकर ही मन कितना आनंदित हो जाता है...नहीं ?


    ये मोह मोह के धागे....
    कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था 
    कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था 
    चिट्ठियों को जैसे मिल गया ,जैसे इक नया सा पता 
    कि ऐसा बेपरवाह मन पहले तो न था 
    खाली राहें, हम आँख मूंदे जाएँ 
    पहुंचे कहीं तो बेवजह 

    ये मोह मोह के धागे। ... 

     
    अनु जी की धुन पर वरुण ने ये गीत पहले पापोन वाले वर्सन के लिए लिखा। मोनाली ठाकुर वाले वर्सन में गीत का बस दूसरा अंतरा बदल जाता है।

    कि तेरी झूठी बातें मैं सारी मान लूँ
    आँखों से तेरे सच सभी सब कुछ अभी जान लूँ
    तेज है धारा, बहते से हम आवारा
    आ थम के साँसे ले यहाँ



    तो बताइए कैसा लगा आपको ये सरताज नग्मा ? पिछले साल के गीत संगीत की विभिन्न विधाओं में अव्वल रहे कलाकारों की चर्चा के साथ लौटूँगा इस संगीतमाला के पुनरावलोकन में।


    वार्षिक संगीतमाला 2015

    1  ये मोह मोह के धागे  Moh Moh Ke Dhage

    सोमवार, जनवरी 04, 2016

    वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान #25 : सपना है निज़ाम का ..अपने तुर्रम खाँ का Turram Khan

    तो मेहरबान और कद्रदान हो जाइए तैयार एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला के साथ, जो है तो वैसे ग्यारह बरस पुरानी पर इस हिंदी ब्लॉग पर आज अपनी दसवीं वर्षगाँठ मना रही है। हर साल की तरह इस साल भी पिछले साल प्रदर्शित मेरी पसंद के पच्चीस गीतों का ये सिलसिला दो महीनों तक ज़ारी रहेगा। जो लोग एक शाम मेरे शाम की वार्षिक संगीतमाला से वाकिफ़ ना हों वो पिछली संगीतमालाओं और गीतों की चयन प्रक्रिया से यहाँ रूबरू हो सकते हैं


    पच्चीस वीं पायदान के लिए मैंने जो गाना चुना है वो है फिल्म हवाईज़ादा का। अगर गीत का शीर्षक देख आपके चेहरे पर मुस्कुराहट की रेखा उभर आई है तो यक़ीन मानिए इसे सुनने के बाद गीत की मस्ती से अपने आप को अछूता नहीं रख पाएँगे। पिछले साल जनवरी में प्रदर्शित ये फिल्म एक ऐसे शख़्स की कहानी है जिसका सपना एक  हवाईजहाज बनाने का है जिसमें बैठ कर लोग उड़ सकें। पर एक गरीब आदमी क्या इतने बड़े सपने देख सकता है?

    यही वज़ह थी कि फिल्म के निर्देशक व गीतकार विभु वीरेंद्र पुरी के मन में गीत के लिए तुर्रम खाँ का चरित्र उभरा। वैसे अगर आपने बचपन में शेखचिल्ली की कहानियाँ पढ़ी हों तो वहाँ भी एक तुर्रम खाँ हुआ करते थे जो तीसमार खाँ के अग्रज होने के आलवा बड़े बड़े कामों को अंज़ाम दिया करते थे। इन कथा कहानियों ने तुर्रम खान के चरित्र को एक लोकोक्ति में ही ढाल दिया और हर औकात से ज्यादा सपने देखने वालों के लिए लोग कहने लगे कि बड़ा तुर्रम खान बना फिरता है। यही बात हवाइज़ादे पर भी लागू होती है। हमारा ये हवाईज़ादा अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए घर से भागता है पर पैसे कमाने के लिए जिस काम में हाथ लगाता है उसका सत्यानाश कर देता है। पर उसकी उम्मीद फिर भी मरती नहीं है।

    गीत का संगीत दिया हे रोचक कोहली ने। चंडीगढ़ से ताल्लुक रहने वाले रोचक पिछले तीन चार सालों से आयुष्मान खुराना के साथ संगीत संयोजन करते रहें हैं। रोचक की पहचान विकी डोनर के गीत पानी दा रंग देख के से रही है। गिटार का प्रमुखता से इस्तेमाल करने वाले इस गीत में हल्की सी मायूसी, ढेर सारी आशा और जबरदस्त मस्ती है। सबसे मजा तब आता है जब गायक पापोन साथियों के साथ तु तु तु तुर्रू तु....तु तु तु तु तुर्रू ता.... तु तु तु तु तुर्रम खान का आलाप करते हैं  और मन गीत की लय के साथ झूमने लगता है।

    तो चलिए आपको सुनाते हैं ये हल्का फुल्का नग्मा..


    ज़िंदगी की सरकस में है सीखा
    सब को सलाम करके जीता
    अरे चाबुक खाते बेजुबान तुर्रम खाँ का
    सपना निज़ाम तु तु तु तुर्रू तु
    तु तु तु तु तुर्रू ता, तु तु तु तु तुर्रम खान का
    सपना है निज़ाम का
    अपने जैसे आम का
    तु तु तु तु तुर्रम खाँ का
    तु तु तु तुर्रू, तु तु तु तुर्रू
    तु तु तु तु तुर्रम खाँ का


    ऐ ज़िंदगी भर दो में दो है जोड़ा
    हाथ में बचा हे फिर भी थोड़ा
    करते करते काम नाकाम तुर्रम खाँ का
    सपना निज़ाम तु तु तु तुर्रू तु
    तु तु तु तु तुर्रू ता, तु तु तु तु तुर्रम खान का....

    हो ..मुस्कुराता बेबसी में
    फूट फूट रोता है खुशी में
    अरे मुस्कुराता साला बेबसी में
    फूट फूट रोता है खुशी में
    गरीबी में पलते महान तुर्रम खान का...
    सपना निज़ाम तु तु तु तुर्रू तु
    तु तु तु तु तुर्रू ता, तु तु तु तु तुर्रम खान का....

    एक दिन चमकेगा मेरा तारा
    मीठा लगेगा सुखारा
    एक दिन चमकेगा मेरा तारा
    ख़्वाब देखे जो बेलगाम तुर्रम खान का....
    सपना निज़ाम तु तु तु तुर्रू तु
    तु तु तु तु तुर्रू ता, तु तु तु तु तुर्रम खान का....


    इस गीत को आयुष्मान खुराना व पल्लवी शारदा पर फिल्माया गया है..

    वार्षिक संगीतमाला 2015

    मंगलवार, जनवरी 20, 2015

    वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 16 : अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ.. Tu Mera Afsana.

    वार्षिक संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर है मेरे चहेते गायकों की युगल जोड़ी यानि पापोन और श्रेया घोषाल ! पापोन पिछली बार वार्षिक संगीतमाला में अवतरित हुए थे 2012 मैं और वो भी सरताजी बिगुल के साथ यानी चोटी की पॉयदान पर बर्फी के यादगार गीत क्यूँ ना हम तुम के साथ। पिछले साल पापोन ने फिल्म लक्ष्मी और Happy Ending के लिए दो प्यारे से गाने गाए थे ..सुन री बावली तू अपने लिए ख़ुद ही माँग ले दुआ  (लक्ष्मी) और  तेरी याद में हुआ मैं सजायाफ़्ता  (Happy Ending)। पर वार्षिक संगीतमाला में उनके जिस गीत ने अपनी जगह बनाई है वो है विद्या बालन की फिल्म बॉबी जासूस से। पापोन को ये गीत फिल्म की सह निर्माता और अभिनेत्री दीया मिर्जा की वज़ह से मिला जो मेरी तरह ही उनकी मखमली आवाज़ की शैदाई हैं। इस गीत में पापोन का साथ दिया नए ज़माने की स्वर कोकिला श्रेया घोषाल ने।


    बॉबी जासूस के इस गीत के साथ संगीतमाला में दूसरी बार प्रवेश कर रही है शान्तनु मोइत्रा और स्वानंद किरकिरे की जोड़ी।  गीत के बनने की कहानी भी काफी दिलचस्प है। फिल्म के निर्माता और निर्देशक के साथ म्यूजिक सिटिंग चल रही थी। शान्तनु ने अपनी एक धुन सुनाई। किसी ने कोई प्रश्न नहीं किया ना ही कुछ आलोचना की। शान्तनु को समझ आ गया कि मामला कुछ जमा नहीं। उन्होंने थोड़ा जोख़िम लेते हुए अपनी एक दूसरी धुन निकाली जो शास्त्रीयता का पुट लिए हुई थी। जब उन्होंने उठ कर गाना शुरु किया तो सब उन्हें मंत्रमुग्ध से बैठे बैठे एकटक देखते रहे और दीया तो इतनी भावुक हो उठीं कि उनकी आँखों से आँसू बह निकले।

    गीत तो स्वीकृत हो गया पर उसे शब्दों का ज़ामा पहनाने की जवाबदेही स्वानंद को सौंपी गई और उन्होंने अपने हुनर से उसमें चार चाँद लगा दिए। ज़रा गौर फरमाइए इन काव्यात्मक बोलों पर आहटें कुछ नई सी जागी हैं..मौसीक़ी एक नई सी सुन जाओ या फिर जागी सी आँखों को, दे दो ना पलकों की चादर ज़रा..रूखे से होठों को, दे दो ना साँसों की राहत ज़रा। इतने प्यारे बोलों को सुनकर किसका मूड रूमानी ना हो जाए। वैसे क्या आपको पता है कि बहुगुण सम्पन्न स्वानंद एक गीतकार के रूप में अपने आप को स्थापित करने के बाद आजकल  क्रेजी कक्कड़ फैमिली में निभाए अपने किरदार की वज़ह से भी ढेरों वाहवाही लूट रहे हैं।

    शान्तनु का गीत एक द्रुत लय से शुरु होता है पर असली आनंद तब आता है जब शास्त्रीयता का रंग लिए अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ वाला हिस्सा कानों में पड़ता है। गीत में सितार और तबले का व्यापक इस्तेमाल हुआ है। अंतरों के बीच सितार से जुड़े कुछ टुकड़े ध्यान खींचते हैं। इस गीत के दो वर्सन है। इन दो रुपों में फर्क बस इतना है कि पहले में जो हिस्सा पापोन गाते हैं उसे दूसरे में श्रेया निभाती हैं। मुझे तो दोनों ही रूप पसंद हैं..देखें आपको कौन सा अच्छा लगता है।

     

    तू मेरा अफ़साना, तू मेरा पैमाना, तू मेरी आदत इबादत है तू
    तू मेरा मुस्काना, तू मेरा घबड़ाना, तु मेरी गुस्ताखी माफ़ी है तू
    तू मेरी रग रग में, तू मेरी नस नस में
    तू मेरी जाँ है और तू मेरी रुह
    तू ही जुनूँ भी है तू ही नशा भी है
    तू ही दुआ मेरी, सज़दा भी तू


    अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ
    सुन लो कुछ कह रहा है दिल आओ
    आहटें कुछ नई सी जागी हैं
    मौसीक़ी इक नई है सुन जाओ

    अर्जियाँ दे....तू

    जागी सी आँखों को, दे दो ना पलकों की चादर ज़रा
    रूखे से होठों को, दे दो ना साँसों की राहत ज़रा
    तनहा सी  रातों को दे दो ना ख़्वाबों की सोहबत ज़रा
    ख़्वाहिशे ये कहें, दे दो ना अपनी सी
    उल्फ़त ज़रा

    रंजिशें भूल कर चले आओ
    अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ...

    बिन तेरे ज़िंदगी यूँ ही बेवज़ह बेमानी लगे
    बिन तेरे ज़िंदगी, जैसे अधूरी कहानी लगे
    बिन तेरे बस्तियाँ क्यूँ दिल की सूनी वीरानी लगे
    बिन तेरे ज़िंदगी, क्यूँ ख़ुद ही ख़ुद से बेगानी लगे

    मर्जियाँ मोड़ कर चले आआो
    अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ...




    वैसे ये गीत मैं जितनी बार सुन रहा हूँ ये उतना ही बेहतर लग रहा है और शायद संगीतमाला के अंत तक ये कुछ छलांगे मारता और ऊपर पहुँच जाए तो आश्चर्य नहीं.. :)


    वार्षिक संगीतमाला 2014

    सोमवार, नवंबर 18, 2013

    बेनाम सी ख़्वाहिशें, आवाज़ ना मिले..बंदिशें क्यूँ ख़्वाब पे..परवाज़ ना मिले (Benaam si khwahishein...)

    पापोन यानि 'अंगराग महंता' की आवाज़ से मेरा परिचय बर्फी में उनके गाए लाजवाब गीतों से हुआ था। आपको तो मालूम ही है कि एक शाम मेरे नाम पर साल 2012 की वार्षिक संगीतमाला में सरताज गीत का खिताब पापोन के गाए गीत क्यूँ ना हम तुम... को मिला था। उस गीत के बारे में लिखते हुए बहुमुखी प्रतिभा संपन्न पापोन के बारे में बहुत कुछ पढ़ा और जाना । पर बतौर संगीतकार उन्हें सुनने का मौका पिछले महिने MTV के कार्यक्रम कोक स्टूडियो में मिला।

    पापोन यूँ तो उत्तर पूर्व के लोक गीतों और पश्चिमी संगीत को अपनी गायिकी में समेटते रहे हैं। पर इस कार्यक्रम के दौरान पिंकी पूनावाला की लिखी एक दिलकश नज़्म के मिज़ाज को समझते हुए जिस तरह उन्होंने संगीतबद्ध किया उसे सुनने के बाद बतौर कलाकार उनके लिए मेरे दिल में इज़्ज़त और भी बढ़ गयी। पापोन ने इस गीत को गवाया है अन्वेशा दत्ता गुप्ता (Anwesha Dutta Gupta) से। 


    ये वही अन्वेशा है जिन्होंने अपनी सुरीली आवाज़ से कुछ साल पहले अमूल स्टार वॉयस आफ इंडिया में अपनी गायिकी के झंडे गाड़े थे। 19 साल की अन्वेशा ने चार साल की छोटी उम्र से ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेनी शुरु कर दी थी। इतनी छोटी उम्र में उन्होंने अपनी आवाज़ में जो परिपक्वता हासिल की है वो आप इस गीत को सुन कर महसूस कर सकते हैं। ग़ज़ल और नज़्मों को गाने के लिए उसके भावों को परखने की जिस क्षमता और ठहराव की जरूरत होती है वो अन्वेशा की गायिकी में सहज ही नज़र आता है। नज़्म के बोल जहाँ मीटर से अलग होते हैं उसमें बड़ी खूबसूरती से अन्वेशा अपनी अदाएगी से भरती हैं। मिसाल के तौर पर दूसरे अंतरे में उनका क्यूँ ना जाए..आ जा को गाने का अंदाज़ मन को मोह लेता है।

    इस नज़्म को लिखा है नवोदित गीतकार पिंकी पूनावाला ने। अक्सर हमारी चाहतें ज़मीनी हक़ीकत से मेल नहीं खाती। फिर भी हम अपने सपनों की उड़ान को रुकने नहीं देना चाहते, ये जानते हुए भी को वो शायद कभी पूरे ना हों। पिंकी दिल की इन्हीं भावनाओं को रूपकों के माध्यम से नज़्म के अंतरों में उतारती हैं। वैसे आज के इस भौतिकतावादी समाज में पिंकी भावनाओं की ये मुलायमित कहाँ से ढूँढं पाती हैं? पिंकी का इस बारे में नज़रिया कुछ यूँ है...
    "मुझे अपनी काल्पनिक दुनिया में रहना पसंद है। मेरी उस दुनिया में सुंदरता है, प्यार है, सहानुभूति है, खुशी है। इस संसार का सच मुझे कोई प्रेरणा नहीं दे पाता। अपनी काल्पनिक दुनिया से मुझे जो  प्रेरणा और शक्ति मिलती है उसी से मैं वास्तविक दुनिया के सच को बदलना चाहती हूँ।"
    कोक स्टूडिओ जैसे कार्यक्रमों की एक ख़ासियत है कि आप यहाँ आवाज़ के साथ तरह तरह के साज़ों को बजता देख सकते हैं। पापोन ने इस नज़्म के इंटरल्यूड्स में सरोद और दुदुक (Duduk) का इस्तेमाल किया है। सरोद पर प्रीतम घोषाल और दुदुक पर निर्मलया डे की थिरकती ऊँगलियों से उत्पन्न रागिनी मन को सुकून पहुँचाती हैं। बाँसुरी की तरह दिखता दुदुन आरमेनिया का प्राचीन वाद्य यंत्र माना जाता है। इसके अग्र भाग की अलग बनावट की वज़ह से ये क्लारिनेट जैसा स्वर देता है।

    तो आइए सुनते हैं अन्वेशा की आवाज़ में ये प्यारा सा नग्मा...


    बेनाम सी ख़्वाहिशें, आवाज़ ना मिले
    बंदिशें क्यूँ ख़्वाब पे..परवाज़ ना मिले
    जाने है पर माने दिल ना तू ना मेरे लिए
    बेबसी ये पुकार रही है आ साजन मेरे

    चाँद तेरी रोशनी आफ़ताब से है मगर
    चाह के भी ना मिले है दोनों की नज़र
    आसमाँ ये मेरा जाने दोनों कब हैं मिले
    दूरियाँ दिन रात की हैं, तय ना हो फासले

    पतझड़ जाए, बरखा आए हो बहार
    मौसम बदलते रहे
    दिल के नगर जो बसी सर्द हवाएँ
    क्यूँ ना जाएँ
    आ जा आ भी जा मौसम कटे ना बिरहा के
     (परवाज़ :उड़ान,  आफ़ताब :  सूरज)

    तो इन बिना नाम की ख़्वाहिशों की सदा आपके दिल तक पहुँची क्या?
     

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