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गुरुवार, मार्च 17, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - सरताज गीत पर बह रही है गुलज़ार विशाल व राहत की त्रिवेणी...

तो भाइयों एवम बहनों वार्षिक संगीतमाला के ढाई महिने के सफ़र के बाद वक़्त आ गया है सरताजी बिगुल बजाने का। यहाँ संगीतकार व गीतकार की वही जोड़ी है जिसने पिछले साल भी मिलकर सरताज गीत का खिताब जीता था। वैसे तो पहली पाँच पॉयदानों के गीत अपने आप में कमाल हैं पर पहली पॉयदन का ये गीत हर लिहाज़ में अलहदा है। बाकी पॉयदानों के गीतों को ऊपर नीचे के क्रम में सजाने में मुझे काफी मशक्क़त करनी पड़ी थी। पर पहली सीढ़ी पर विराजमान इश्क़िया फिल्म का ये गीत कभी अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ। इस गीत के बोलों का असर देखिए कि साल पूरा हुआ नहीं कि गीत के मुखड़े को लेकर एक नई फिल्म रिलीज़ भी हो गई।


जी हाँ इस साल एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला का सरताज बनने का गौरव हासिल किया है गुलज़ार के लिखे, विशाल भारद्वाज द्वारा संगीतबद्ध और राहत फतेह अली खाँ द्वारा गाए गीत दिल तो बच्चा है जी ने..। इस गीत के बारे में नसीर भाई (जिन पर ये गाना फिल्माया गया है)की टिप्पणी दिलचस्प है. नसीर कहते हैं..
"गाने का काम है फिल्म में मूड को क्रिएट करना। जो जज़्बात उस वक़्त हावी हैं फिल्म में, उसको रेखांकित (underline) करना। मुझे नहीं मालूम था कि ये गाना फिल्म में बैकग्राउंड में होगा कि मैं इसे गाऊँगा। एक तरह से ये अच्छा ही हुआ कि मैंने गाया नहीं क्यूँकि इससे उससे उस आदमी (किरदार) के दिल के ख़्यालात और ज़ाहिर हुए।"

गुलज़ार के बारे में नसीर कहते हैं 
"आदमी उतना ही जवान या बूढ़ा होता है जितना आप उसे होने देते हैं और गुलज़ार भाई दिल से नौजवान हैं। बहुत कुछ ऐसा है गुलज़ार में जो आदमी उनसे अपेक्षा नहीं कर सकता और यही एक सच्चे कलाकार की निशानी है।"

सच, कौन नहीं जानता कि प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती। और ये भी कि प्रेम में पड़ जाने के बाद हमारा मस्तिष्क मन का दास हो जाता है। पर उन सर्वविदित अहसासों को गुलज़ार इतनी नफ़ासत से गीत की पंक्तियों में उतारते हैं कि सुनकर मन ठगा सा रह जाता है।

गुलज़ार की कलाकारी इसी बात में निहित हैं कि वो हमारे आस पास घटित होने वाली छोटी से छोटी बात को बड़ी सफाई से पकड़ते हैं । अब इसी गीत में प्रेम के मनोविज्ञान को जिस तरह उन्होंने समझा है उसकी उम्मीद सिर्फ गुलज़ार से ही की जा सकती है। अब गीत की इस पंक्ति को लें

हाए जोर करें, कितना शोर करें
बेवजा बातों पे ऐं वे गौर करें

बताइए इस 'ऐ वे' की अनुभूति तो हम सब ने की है। किसी की बेवजह की बकवास को भी मंत्रमुग्ध होते हुए सुना है। बोल क्या रहा है वो सुन नहीं रहे पर उसकी आवाज़ और अदाएँ ही दिल को लुभा रही हैं और मन खुश.. बहुत खुश.. हुआ जा रहा है। पर क्या कभी सोचा था कि कोई गीतकार प्रेम में होने वाले इन सहज से अहसासों को गीत में ढालेगा?

गुलज़ार की किसी जज़्बे को देखने और महसूस करने की अद्भुत क्षमता तो है ही पर साथ ही उनके बिंब भी बड़े प्रभावशाली होते हैं।मुखड़े में ढलती उम्र का अहसास दिलाने के लिए उनका कहना दाँत से रेशमी डोर कटती.. नहीं...मन को लाजवाब कर देता है।

संगीतकार विशाल भारद्वाज ने इस गीत का संगीत एक रेट्रो की फील देता है। ऐसा लगता है कि आप साठ के दशक का गाना सुन रहे हैं। वाद्य यंत्रों के नाम पर कहीं हल्का सा गिटार तो कहीं ताली को संगत देता हुआ हारमोनियम सुनाई दे जाता है। राहत फतेह अली खाँ को अक्सर संगीतकार वैसे गीत देते हैं जिसमें सूफ़ियत के साथ ऊँचे सुरों के साथ खेलने की राहत की महारत इस्तेमाल हो। पर वहीं विशाल ने इससे ठीक उलट सी परिस्थिति वाले (झिझकते शर्माते फुसफुसाते से गीत में) में राहत का इस्तेमाल किया और क्या खूब किया। तो आइए पहले सुनें और गुनें ये गीत



ऐसी उलझी नज़र उनसे हटती नहीं...
दाँत से रेशमी डोर कटती.. नहीं...
उम्र कब की बरस के सुफेद हो गयी
कारी बदरी जवानी की छटती नहीं


वर्ना यह धड़कन बढ़ने लगी है
चेहरे की रंगत उड़ने लगी है
डर लगता है तन्हा सोने में जी

दिल तो बच्चा है जी...थोड़ा कच्चा है जी

किसको पता था पहलु में रखा
दिल ऐसा पाजी भी होगा
हम तो हमेशा समझते थे कोई
हम जैसा हाजी ही होगा

हाय जोर करें, कितना शोर करें
बेवजा बातों पे ऐं वे गौर करें

दिल सा कोई कमीना नहीं..

कोई तो रोके , कोई तो टोके
इस उम्र में अब खाओगे धोखे
डर लगता है इश्क़ करने में जी


दिल तो बच्चा है जी
ऐसी उदासी बैठी है दिल पे
हँसने से घबरा रहे हैं
सारी जवानी कतरा के काटी
बीड़ी में टकरा गए हैं

दिल धड़कता है तो ऐसे लगता है वोह
आ रहा है यहीं देखता ही ना हो
प्रेम कि मारें कटार रे

तौबा ये लम्हे कटते नहीं क्यूँ
आँखें से मेरी हटते नहीं क्यूँ
डर लगता है तुझसे कहने में जी

दिल तो बच्चा है जी,थोड़ा कच्चा है जी

पर गीत को पूरी तरह महसूस करना है इस गीत का वीडिओ भी देखिए। गीत का फिल्मांकन बड़ी खूबसूरती से किया गया है। नसीर मुँह से कुछ नहीं बोलते पर उनकी आँखें और चेहरे के भाव ही सब कुछ कह जाते हैं..




इसी के साथ वार्षिक संगीतमाला का ये सालाना आयोजन यहीं समाप्त होता है। जो साथी इस सफ़र में साथ बने रहे उनका बहुत आभार।  

आप सब की होली रंगारंग बीते इन्हीं शुभकामनाओं के साथ..

सोमवार, मार्च 14, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - रनर्स अप : नैन परिंदे रौशन रौशन, अन्धियारे सारे धो देंगे,नैन परिंदे छलके छलके, पलकों को मूँद के रो लेंगे...

वार्षिक संगीतमाला की दूसरी पॉयदान पर गीत वो जिसे गाया शिल्पा राव, ने, धुन बनाई संगीतकार आर आनंद ने और इसके लाजवाब बोल लिखे स्वानंद किरकिरे ने। अब फिल्म का नाम बताने की जरूरत है क्या ? आधा नाम तो गीत के मुखड़े में ही है और उसमें बस लफंगा शब्द डाल दीजिए यानि कि 'लफंगे परिंदे'।

रुड़की विश्वविद्यालय से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले संगीतकार आर आनंद का परिचय इसी फिल्म के गीत 'मन लफंगा..' की चर्चा के दौरान कर चुका हूँ। पिछले बीस साल से विज्ञापनों के लिए धुन बनाने वाले आर आनंद ने अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में अपने मित्र गोपाल राव के साथ मिलकर एक स्टूडियो बनाया था। स्टूडियो का नाम ऐसा कि बड़े बड़ों को दिमाग की बत्ती जलाने के लिए मेन्टोस का सेवन करना पड़े।

जी हाँ उनके स्टूडियो का नाम था 'Aqua Regia' जिसका शाब्दिक अर्थ है 'Royal Water'। दरअसल रासायनशास्त्र की भाषा में इसे 'नाइट्रोहाइड्रोक्लोरिक एसिड' भी कहा जाता है और इस अम्ल को 'रॉयलटी' इस लिए मिली हुई है कि ये सोने और प्लेटिनम जैसी अकड़ में रहने वाली धातुओं को गलाने की क्षमता रखता है।

बाद में ड्रमवादक और आनंद के कॉलेज के मित्र, शालीन शर्मा भी इस समूह का हिस्सा बने और आगोश नाम के बैंड की शुरुआत हुई। बैंड ने एक एलबम जरूर बनाया पर वो ज्यादा चला नहीं और जैसा अक्सर होता है वक़्त के साथ बैंड बिखर गया।

प्रदीप सरकार एक ऐसे निर्देशक हैं जो अपनी फिल्मों के गीतकार व संगीतकार चुनने के बाद उन्हें अपने काम करने की पूरी आजादी दे देते हैं। आर आनंद कहते हैं कि नतीजन हमें भी लगने लगता है कि ऐसा काम किया जाए जिनसे उनके विश्वास पर खरा उतरा जा सके।


गीतकार स्वानंद किरकिरे को व्यावसायिक हिंदी सिनेमा में पहला मौका देने वाले भी प्रदीप सरकार ही थे। 'परिणिता' और 'लागा चुनरी में दाग' जैसी फिल्मों में स्वानंद ने जिस तरह का काम किया उसके बाद सरकार के लिए वो पहली पसंद ही बन गए। इस फिल्म की गीत रचना के बारे में स्वानंद कहते हैं

मुझे आनंद के कहा कि तुम पहले गीत लिख कर लाओ फिर मैं धुन बनाऊँगा। मैंने सोचा कि ये तो बड़ी अच्छी बात है। कितना भी लंबा गीत लिख दो कोई tension नहीं। फिल्म जिस तरह के युवाओं पर आधारित थी उनके बारे में सोचकर मुझे ख़्याल आया कि गली मोहल्लों के कई लड़के दिखते लफंगों जैसे हैं पर उनमें भी परिंदों की तरह उड़ान भरने की चाहत होती है। इस लिए लफंगे और परिंदे साथ हो गए। प्रदीप जी को ये शब्द इतने पसंद आए कि उन्होंने फिल्म का नाम भी यही रख दिया। मेरे लिए लफंगे और परिंदे शब्दों का साथ आना 'मन लफंगा' और 'नैन परिंदे' जैसे गीतों की रचना का सबब बन गया।

नैन परिंदे ..फिल्म का एकमात्र एकल गीत है जिसे फिल्म की हीरोइन पर फिल्माया गया है। दृष्टिहीन व्यक्ति भले ही देख नहीं सकता पर उसकी सोच का विस्तार वहाँ तक होता है जहाँ आम जन पहुँच भी नहीं पाते। स्वानंद ने अपने इस गीत में ऐसी ही एक लड़की के ख़्वाबों की उड़ान को शब्दों में बाँधने की कोशिश की है। स्वानंद सिर्फ तुकबंदी और राइमिंग को गीत रचना का ध्येय नहीं मानते। वो कोशिश करते हैं कि इनके अलावा गीत से वो विचार निकलें जो किरदार की भावनाओं को श्रोताओं तक पहुँचा सकें। स्वानंद की ये कोशिश मुखड़े और दोनों अंतरों में सफल होती नज़र आती है। वहीं संगीतकार आनंद का गिटार भी पहले इंटरल्यूड में अपना कमाल दिखला जाता है।

बाकी तो स्वानंद के शब्दों पर शिल्पा राव की आवाज़ मन में गहरी उतरती सी जाती है। जमशेदपुर से ताल्लुक रखने वाली शिल्पा राव को संगीत की दुनिया में लाने का श्रेय शंकर महादेवन को जाता है। जहाँ फिल्म आमिर में उनका गाया गीत इक लौ मुंबई पर हुए हमले के दौरान राष्ट्र का गीत बन गया था वहीं पिछले साल ख़ुदा जाने को बड़ी व्यावसायिक सफलता मिली थी। पर शिल्पा को उनकी प्रतिभा के हिसाब से जितने गीत मिलने चाहिए उतने मिल नहीं रहे। ख़ैर अभी तो सुनते हैं ये गीत..



नैन परिंदे, पगले दो नैन
नैन परिंदे, जागे दिन रैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन
नैन परिंदे, जागें दिन रैन
पंख झटक ये उड़ जाएँगे, आसमान में खो जाएँगे
मग़रूर बड़े, बंजारे नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन

नैन परिंदे बादल बादल, ख़्वाबों के सितारे चुग लेंगे
हो नैन परिंदे चाँद चुरा कर, पलकों से अपनी ढक लेंगे
पलक झपकते उड़ जाएँगे, सपनों को अपने घर लाएँगे
मशहूर बड़े, मतवाले नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन

हो नैन परिंदे रौशन रौशन, अन्धियारे सारे धो देंगे
हो नैन परिंदे छलके छलके, पलकों को मूँद के रो लेंगे
पलक झपकते उड़ जाएँगे, गम को भुला के मुस्काएँगे
मजबूर नहीं, सपनीले नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन

नैन परिंदे, पगले दो नैन...मग़रूर बड़े, बंजारे नैन




शीघ्र ही आपके सामने होगा वार्षिक संगीतमाला का सरताज गीत।

शनिवार, मार्च 12, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 पुनरावलोकन (Recap) : गीत जो संगीतमाला का हिस्सा बनते बनते रह गए..

वार्षिक संगीतमाला का इस साल का सफ़र अपने अंतिम मुकाम पर पहुँच रहा है। आइए देखते हैं कौन से गीत इस साल की गीतमाला में शामिल नहीं हो पाए और कैसा रहा इस साल का सफ़र संगीत से जुड़े महारथियों के लिए। अगर आप इस श्रृंखला में पेश किए गए गीतों पर नज़र डालेंगे तो ये निश्चय ही कहने में समर्थ होंगे कि मोटे तौर पर यह इस साल के संगीत पर किसी खास संगीतकार या गीतकार का वर्चस्व नहीं रहा। हाँ ये जरूर है कि कुछ के लिए ये साल पिछले से फीका जरुर रहा।

ए र रहमान इस साल हिंदी फिल्मों में ज्यादा सक्रिय नहीं रहे। रावण में उनकी गुलज़ार के साथ जोड़ी वो कमाल नहीं दिखला सकी जिसकी मुझे आशा थी। शंकर अहसान लॉए ने My Name is Khan में बेहतरीन संगीत दिया पर पूरे साल बाकी फिल्मों में दिया उनका संगीत कुछ विशेष उल्लेखनीय नहीं रहा। यही हाल संगीतकार सलीम सुलेमान का भी रहा। इस साल की फिल्मों में सबसे सुकून देने वाले संगीत की रचना का श्रेय साज़िद वाज़िद,विशाल शेखर,अमित त्रिवेदी और प्रीतम को जाता है। साज़िद वाज़िद ने 'दबंग' और 'वीर' के संगीत पर बेहतरीन काम कर फिल्म उद्योग में अपनी नई पहचान बना ली। विशाल शेखर भी 'I Hate Love Storys', 'अनजाना अनजानी' में अपने फार्म में नज़र आए वहीं प्रीतम ने साल में कम फिल्में करते हुए भी 'Once Upon A Time in Mumbai' और 'आक्रोश' में कर्णप्रिय संगीत दिया।

ए र रहमान को अपना प्रेरणा स्रोत मानने वाले और मेरे पसंदीदा संगीतकार अमित त्रिवेदी ने पिछले सालों की तरह इस साल भी 'उड़ान' और 'आयशा' में अपनी प्रतिभा के ज़ौहर दिखलाए। अपनी फिल्म 'आमिर' की बदौलत वार्षिक संगीतमाला का सरताज गीत का सेहरा पहनने वाले अमित अभी भी अपने संगीत में नित नए प्रयोगों से एक अलग तरह की आवाज़ हम तक पहुँचा रहे हैं। उनकी इस मुहिम में गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने बेहतरीन साथ दिया है। हिंदी कविता के प्रेमियों के लिए 'उड़ान' इस साल का एक यादगार एलबम रहेगा और अमिताभ भट्टाचार्य को इसका पूरा श्रेय जाना चाहिए।

गीतकारों की बात की जाए तो इस साल अमिताभ के आलावा गुलज़ार, स्वानंद किरकिरे और इरशाद क़ामिल का काम बेहतरीन रहा। गुलज़ार की प्रशंसा में जितना कहा जाए कम है। 'वीर' और 'इश्क़िया' में उनके रचे गीतों पर लोग अभी भी वाहवाहियाँ रुकी नहीं हैं। वहीं 'परिणिता', 'लगे रहो मुन्नाभाई' और 'थ्री इडियट्स' जैसी भिन्न प्रकृति की फिल्मों की सफल गीत रचना के बाद स्वानंद ने 'लफंगे परिंदे' और 'पीपली लाइव' के गीतों के माध्यम से 'सार्थक गीतो् को रचने वाले गीतकार' की अपनी छवि को बनाए रखा है। इरशाद क़ामिल के बारे में इस संगीतमाला के दौरान कई बार चर्चा हुई है और मेरा विश्वास है कि आगे के सालों में भी होती रहेगी। ये जरूर है कि इस साल जावेद अख़्तर और प्रसून जोशी जैसे माने हुए गीतकारों की झोली से कुछ खास नहीं निकला। नए गीतकारों में जीतेंद्र जोशी ने अपने लिखे गीत चमचम से मुझे खासा प्रभावित किया।

भले ही गीतकार और संगीतकारों ने इस साल की संगीतमाला में मिल कर सफलता के झंडे गाड़े हों पर पार्श्वगायिकी में ये साल पूरी तरह राहत फतेह अली खाँ के नाम रहा। संगीतमाला की आरंभिक दस पॉयदानों में से छः पर कब्जा जमाने वाले राहत ने अपनी बेमिसाल गायिकी से संगीतप्रेमियों के दिल में साल भर खूब राहत पहुँचाई। राहत के अलावा मोहित चौहान,रेखा भारद्वाज और श्रेया घोषाल के गाए गीतों को भी काफी लोकप्रियता मिली। जगजीत सिंह, सोनू निगम और शिल्पा राव के एक एक गीत इस गीतमाला में बजे पर उन गीतों में उन्होंने अपनी गायिकी से मन को मोहित कर दिया।

हर साल की तरह इस साल भी अंतिम पच्चीस में कुछ गीत आते आते रह गए। इस फेरहिस्त में बस इतनी सी तुमसे गुजारिश है.. गुजारिश, अब मुझे कोई इंतज़ार कहाँ ...इश्क़िया, जिंदगी दो पल की..Kites, बहने दे.. रावण, तेरे नैना My Name is Khan जैसे गीत शामिल हैं । ये गीत तो आपने पहले भी सुने होंगे पर आज मैं आपको सुनाना चाहता हूँ इस साल की संगीतमाला तैयार करते वक़्त सुने गए चार अनसुने गीत जो कुछ हट कर सुनने का अहसास मन में जगा गए..

पल में मिला जहाँ श्रेया घोषाल द्वारा गाया ऐसा नग्मा है जो उदास तो करता है पर मन को शांत भी कर देता है। गीत में संगीत ना के बराबर है पर भावों में डूबती श्रेया की गायिकी उसकी कमी महसूस नहीं होने देती।



फिल्म स्ट्राइकर के इस गीत फिर यूँ हुआ में गुलज़ार के शब्द और विशाल की आवाज़ का वैसा ही अद्भुत संगम है जिससे हम ओंकारा के ओ साथी रे और फिल्म कमीने के क्या करें जिंदगी इसको जो हम मिले के दौरान गुजर चुके हैं



अब आते हैं दस तोला के इस गीत पर जिसे गाया है सोनू निगम ने । ख़ुद गुलज़ार इस फिल्म में अपने रचे गीतों को पिछले साल की अपनी संतोषजनक कृतियों में मानते हैं।



अमित त्रिवेदी वेस्टर्न और भारतीय संगीत के फ्यूजन में माहिर हैं। एडमिशन ओपन में श्रृति पाठक द्वारा गाए गीत में हारमोनियम जैसे वाद्य से की गई कलाकारी तुरंत ध्यान खींचती है


तो आइए साल के सरताज और रनर्स अप गीत से रूबरू होने के पहले एक बार नज़रें घुमा लेते हैं ढाई महिने पुराने इस सफ़र पर...
  1.  
  2. नैन परिंदे पगले दो नैन.., संगीत: आर आनंद, गीत :स्वानंद किरकिरे, गायिका: शिल्पा राव चलचित्र :लफंगे परिंदे
  3. सजदा तेरा सजदा दिन रैन करूँ , संगीत: शंकर अहसान लॉए, गीत : निरंजन अयंगार, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : My Name is Khan
  4. फूल खिला दे शाखों पर पेड़ों को फल दे मौला, संगीत: रूप कुमार राठौड़, गीत : शकील आज़मी, गायक : जगजीत सिंह, चलचित्र : Life Express 
  5.  बिन तेरे बिन तेरे कोई ख़लिश है, संगीत: विशाल शेखर, गीत : विशाल ददलानी, गायक : शफ़कत अमानत अली खाँ, सुनिधि चौहान, चलचित्र : I hate Luv Storys
  6. तेरे मस्त मस्त दो नैन, संगीत:साज़िद वाज़िद, गीत : फ़ैज़ अनवर, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : दबंग
  7.  सुरीली अँखियों वाले, संगीत:साज़िद वाज़िद, गीत : गुलज़ार, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : वीर
  8. तू ना जाने आस पास है ख़ुदा, संगीत: विशाल शेखर, गीत : विशाल ददलानी, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : अनजाना अनजानी
  9. मन के मत पे मत चलिओ, संगीत: प्रीतम, गीत : इरशाद क़ामिल, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : आक्रोश
  10. मँहगाई डायन खात जात है, संगीत:राम संपत, गायक :रघुवीर यादव, चलचित्र : पीपली लाइव
  11. देश मेरा रंगरेज़ ऐ बाबू, संगीत:Indian Ocean, गीत :स्वानंद किरकिरे, संदीप शर्मा , गायक :राहुल राम, चलचित्र : पीपली लाइव
  12. कान्हा बैरन हुई रे बाँसुरी, संगीत:साज़िद वाज़िद, गीत : गुलज़ार, गायक : रेखा भारद्वाज, चलचित्र : वीर
  13. चमचम झिलमिलाते ये सितारों वाले हाथ, संगीत:शैलेंद्र बार्वे, गीत : जीतेंद्र जोशी, गायक : सोनू निगम, चलचित्र : स्ट्राइकर
  14. बहारा बहारा हुआ दिल पहली बार वे, संगीत: विशाल शेखर, गीत : कुमार, गायक : श्रेया घोषाल, चलचित्र : I hate Luv Storys
  15. आज़ादियाँ, संगीत: अमित त्रिवेदी, गीत : अमिताभ भट्टाचार्य, गायक : अमित व अमिताभ, चलचित्र : उड़ान
  16. तुम जो आए, संगीत: प्रीतम, गीत : इरशाद क़ामिल, गायक : राहत फतेह अली खाँ, चलचित्र : Once Upon A Time in Mumbai
  17. सीधे सादे सारा सौदा सीधा सीधा होना जी , संगीत: प्रीतम, गीत : इरशाद क़ामिल, गायक : अनुपम अमोद, चलचित्र : आक्रोश
  18. पी लूँ तेरे गोरे गोरे हाथों से शबनम, संगीत: प्रीतम, गीत : इरशाद क़ामिल, गायक :मोहित चौहान चलचित्र : Once Upon A Time in Mumbai
  19. Cry Cry इतना Cry करते हैं कॉय को, संगीत: ए आर रहमान, गीत : अब्बास टॉयरवाला, गायक : राशिद अली, श्रेया घोषाल, चलचित्र : झूठा ही सही
  20. नूर ए ख़ुदा , संगीत: शंकर अहसान लॉए, गीत : निरंजन अयंगार, गायक : शंकर महादेवन, अदनान सामी, श्रेया घोषाल , चलचित्र : My Name is Khan
  21. मन लफंगा बड़ा अपने मन की करे, संगीत: आर आनंद, गीत :स्वानंद किरकिरे, गायक :मोहित चौहान चलचित्र :लफंगे परिंदे
  22. गीत में ढलते लफ़्जों पर, संगीत: अमित त्रिवेदी, गीत : अमिताभ भट्टाचार्य, गायक : अमित व अमिताभ, चलचित्र : उड़ान
  23. यादों के नाज़ुक परों पर, संगीत: सलीम सुलेमान, गीत :स्वानंद किरकिरे, गायक :मोहित चौहान चलचित्र :आशाएँ
  24. खोई खोई सी क्यूँ हूँ मैं, संगीत: अमित त्रिवेदी, गीत : जावेद अख़्तर, गायक : अनुषा मणि, चलचित्र : आयशा
  25. तुम हो कमाल, तुम लाजवाब हो आयशा , संगीत: अमित त्रिवेदी, गीत : जावेद अख़्तर, गायक : अमित त्रिवेदी, चलचित्र : आयशा 

गुरुवार, मार्च 10, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : सजदा तेरा सजदा, दिन रैन करूँ .ना ही चैन करूँ..

वार्षिक संगीतमाला का सरताज बिगुल बजने में अब सिर्फ दो पॉयदानों की दूरी है। यानि आज है तीसरी पॉयदान की बारी। गीतमाला की इस सीढ़ी पर जो गीत है उसकी खास बात ये है कि ये गीतकार का रचा पहला गीत है। गीतकार वही जो नूर ए ख़ुदा के साथ आपसे बीसवीं पॉयदान पर मुख़ातिब हुए थे। जी हाँ फिल्म My Name Is Khan का लिखा गीत सज़दा निरंजन अयंगार का बतौर गीतकार रचा पहला गीत है।

निरंजन के कच्चे गीतों से पक्के गीतकार बनने का वाक़या मैं आपसे पहले ही बाँट चुका हूँ। संगीतकार शंकर अहसान लॉए ने फिल्म की पटकथा के हिसाब से एक ऐसे गीत की दरकार थी जिसमें प्रेम के साथ सूफ़ियत का रंग भी हो और जिसकी शुरुआत सज़दा जैसे शब्द से हो। निरंजन को इसी आधार पर एक कच्चे गीत को लिखने का काम सौंपा गया। निरंजन ने जो गीत रचा उसे जब करण ज़ौहर घर ले के गए तो गीत के बोल सुन कर उनकी माँ ने पूछा क्या इसे जावेद साहब ने लिखा है? बाद में करण और शंकर एकमत हुए कि जो गीत निरंजन ने लिखा है वो ही फिल्म में जाएगा।

पर क्या आपके मन में ये प्रश्न नहीं आ रहा कि एक तमिल होते हुए भी निरंजन अयंगार ने अपने पहले कुछ गीतों में ही सूफ़ियत का इतना प्यारा रंग कैसे डाल दिया? दरअसल निरंजन को सूफ़ी और उर्दू कवियों की रचनाएँ शुरु से भाती रही हैं और वे बुल्ले शाह, गुलाम फ़रीद, ज़िगर मुरादाबादी और अहमद फ़राज़ जैसे शायरों को निरंतर पढ़ते रहे हैं।

सज़दा एक ऍसा गीत है जिसका संगीत संयोजन और गायिकी अव्वल दर्जे की है। गीत शुरु होता है ॠचा शर्मा के गहरे स्वर में। ॠचा प्रेम में अपने रोम रोम डूब जाने की बात खत्म करती ही हैं कि राहत अपनी रुहानी आवाज़ में सज़दा शब्द को इस तरह उठाते हैं कि दिल वाह वाह कर उठता है। पर जब इन गायकों के सुरीले स्वर के बाद कोरस उभरता है ये गीत एक अलग ही धरातल पर पहुँच जाता है और क्या आम क्या खास सभी संगीतप्रेमी इसे गुनगुनाने नज़र आते हैं।

शंकर अहसान लॉए ने इंटरल्यूड्स में सिंथेसाइजर और तबले के संयोजन से जो धुन निकाली है वो सहज ही आपका ध्या

न खींचती है। शंकर इस गीत के बारे में कहते हैं कि एक सहज गीत को संगीतबद्ध करना मुश्किल होता है। खासकर तब जब वो दिल को छूते वो एक सही और प्यारी सी बात भी कहता चले। पर इस मुश्किल काम को निभाने में शंकर अहसान लॉए की जोड़ी सफल रही है।

आइए सुनें ये नग्मा जो प्रेम की बात को एक आध्यात्मिक रंग देता हुआ चला जाता है...



रोम रोम तेरा नाम पुकारे
एक हुए दिन रैन हमारे
हम से हम ही छिन गए हैं
जब से देखे नैन तिहारे
सजदा ….

तेरी काली अँखियों से ज़िंद मेरी जागे
धड़कन से तेज दौडूँ, सपनों से आगे
अब जान लुट जाए, ये ज़हाँ छूट जाए
संग प्यार रहे, मैं रहूँ ना रहूँ

सजदा तेरा सजदा, दिन रैन करूँ .ना ही चैन करूँ
सजदा तेरा सजदा, लख बार करूँ मेरी जान करूँ

अब जान ....सजदा तेरा सजदा....

रांझणा.. नैनो के तीर चल गए..
साजना.. साँसों से दिल सिल गए…
पलकों में छुपा लूँ, तेरा सजदा करूँ
सीने में समा लूँ, दिन रैन करूँ
पलकों में छुपा लूँ, सीने में समा लूँ
तेरे अंग अंग रंग मेरा बोले
अब जान ....सजदा तेरा सजदा....

बेलिया…क्या हुआ जो दिल खो गया
माहिया.. इश्क़ में ख़ुदा मिल गया
जरा अँख से पिला दे..तेरा सजदा करूँ
जरा ख़्वाब सजा दे..ओ दिन रैन करूँ
अब जान ....सजदा तेरा सजदा....
तेरी काली ... ना रहूँ
सजदा तेरा सजदा.....

वैसे इस गीत के दौरान शाहरुख और काजोल की शादी को फिल्माया जाना था। शूटिंग स्थल था कॉलेज आफ फाइन आर्टस कैलीफोर्निया। पर शादी के लिए सजावट के लिए रंग बिरंगे कपड़े से पंडाल सजाना था। पर शूटिंग के दौरान हवा इतनी तेज हो गई कि शादी को एक बड़े पेड़ के नीचे शूट करना पड़ा।

सोमवार, मार्च 07, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक, धरती जितनी प्यासी है, उतना तो जल दे मालिक...

कभी कभी सीधी सहज बातें भी ग़जब का असर करती हैं खासकर जब वो दिल से कही गई हों। वार्षिक संगीतमाला की चौथी सीढ़ी का गीत एक ऐसा ही गीत है। जब भी मैं इस गीत को सुनता हूँ तो आँखें नम हो जाती हैं और अगर गुनगुनाने की कोशिश करूँ तो गला भर्रा जाता है।

देश के आम आदमी के जीवन की दरिद्रता को दर्शाता ये गीत भारत में व्याप्त आर्थिक असमानता को एक दम से सामने ला खड़ा करता है। गीत में ईश्वर से की जा रही प्रार्थना आपको ये सोचने पर मजबूर कर देती है हैं कि क्यूँ इतनी तरक्की के बावज़ूद हम अपने नागरिकों की छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने में आज तक असमर्थ हैं?

ग़ज़लगायिकी के बादशाह जगजीत सिंह ने फिल्मों में गीत यदा कदा ही गाए हैं। पर जब जब उनकी गायिकी फिल्मी पर्दे पर आई है तब तब उनकी आवाज़ का जादू सर चढ़कर बोला है। होठों से छू लो तुम.., तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो.., तुमको देखा तो ये ख्याल आया.., जाग के काटी सारी रैना.., होशवालों को ख़बर क्या ....जितना भी सोचता हूँ उनके गाई फिल्मी गीतों ग़ज़लों की फेरहिस्त सालों साल बाद भी उसी तरह ज़ेहन में तुरंत आ जाती है।


फिल्म लाइफ एक्सप्रेस में जब गायक रूप कुमार राठौड़ जिन्होंने इस फिल्म में संगीत दिया है, जगजीत के पास गए तो गिरते स्वास्थ के चलते कम सक्रिय रहने के बावज़ूद वो उनकी इल्तज़ा को ठुकरा नहीं सके। इस गीत के बारे में जगजीत कहते हैं कि

"रूप कुमार राठौड़ मेरे छोटे भाई की तरह हैं। बतौर संगीतकार ये उसकी तीसरी फिल्म है और ये मेरा उसके साथ गाया दूसरा गीत। फिल्म के लिए उसने बहुत बढ़िया संगीत रचा है। खासकर मेरे द्वारा गाए गीत का संगीत तो एकदम सहज मगर असरदार है।"
अफ़सोस ये रहा कि 'सरोगेट मदर' पर केंद्रित पटकथा पर बनी ये फिल्म अपने निर्माण की अन्य ख़ामियों की वज़ह से ज्यादा नहीं चली। इसलिए जगजीत का गाया ये बेहतरीन गीत ज्यादा चर्चा नें नहीं आया। रूप कुमार राठौड़ ने इस करुणामयी प्रार्थना के मूड के हिसाब से ही संगीत रचना की है। इस गीत का एक वर्जन रूप कुमार राठौड़ की आवाज़ में भी है पर जब शक़ील आज़मी के लिखे इस गीत को जगजीत की रुहानी आवाज़ का स्पर्श मिलता है तो सुननेवाले के मन में भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। आज इस गीत के प्रति मेरी भावनाओं को मैं शब्दों के बजाए इस गीत को गुनगुनाकर व्यक्त करना चाहूँगा।



फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक,
धरती जितनी प्यासी है, उतना तो जल दे मालिक

वक़्त बड़ा दुखदायक है, पापी है संसार बहुत,
निर्धन को धनवान बना, दुर्बल को बल दे मालिक

कोहरा कोहरा सर्दी है, काँप रहा है पूरा गाँव,
दिन को तपता सूरज दे, रात को कम्बल दे मालिक

बैलों को इक गठरी घास, इंसानों को दो रोटी,
खेतों को भर गेहूँ से, काँधों को हल दे मालिक

हाथ सभी के काले हैं, नजरें सबकी पीली हैं,
सीना ढाँप दुपट्टे से, सर को आँचल दे मालिक

अब सुनिए इस गीत को जगजीत सिंह के स्वर में...




अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

शनिवार, मार्च 05, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे... कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे...

वार्षिक संगीतमाला 2010 का सफ़र अब अपने अंतिम दौर में पहुँच गया है। और अब बात बची है संगीतमाला के प्रथम पाँच गीतों की। ये पाँचों नग्मे ऍसे हैं जिनको सुन कर मन उनमें डूबता सा जाता है। वैसे भी जब कोई गीत आपको अपने अभी के मूड से हटाकर सीधे गीत की भावनाओं में बहा ले जाता है तो वो आपके लिए विशिष्ट हो उठता है। पाँचवी पॉयदान के इस गीत को गाया है शफक़त अमानत अली खाँ और सुनिधि चौहान ने। फिल्म का नाम तो आप समझ ही चुके होंगे 'I Hate Luv Storys'.

मैंने ये फिल्म नहीं देखी पर इसके गीत संगीत पर विशाल शेखर ने जो काम किया है वो निश्चय ही प्रशंसनीय है। जैसा कि अनजाना अनजानी के गीत तू ना जाने आस पास है ख़ुदा ... के बारे में बातें करते वक़्त मैंने आपको बताया था कि विशाल और शेखर एकदम भिन्न संगीतिक परिवेश से आए हैं। पर इस भिन्नता को इन्होंने अपनी ताकत की तरह इस्तेमाल किया है। कुछ दिनों पहले मैं कोमल नाहटा द्वारा उनके टीवी पर लिए साक्षात्कार को सुन रहा था। साक्षात्कार में उनसे पूछा गया कि अपना संगीत वो किस तरह रचते हैं। क्या उनके पास कोई म्यूजिक बैंक है ? विशाल शेखर का कहना था..

आज का युग धुनों को इकट्ठा करके उन्हें इस्तेमाल करने का नहीं रह गया है। आज तो सारे निर्देशक हमें स्क्रिप्ट लिखने के समय से ही हमें विचार विमर्श में शामिल कर लेते है। हमारी खुशकिस्मती है कि अब तक हम लोगों ने जितने निर्देशकों के साथ काम किया है उनमें ज्यादातर हमारे निकट के मित्र थे। इसलिए धुन सुनाते समय हमें उनकी निष्पक्ष राय मिलती रही। वैसे भी अगर हम सफल हैं तो बस ऊपरवाले की वजह से। चाहे हम कितनी भी मेहनत कर लें पर विश्वास मानिए वो मेहनत गीत का मुखड़ा हमारे मन में नहीं लाती। हमारे अधिकांश लोकप्रिय नग्मों का सृजन कॉफी शाप में, गाड़ी में ड्राइव पर या ऐसी ही किसी अनौपचारिक अवस्था में हुआ है । इसीलिए हम अपने आप को बस एक माध्यम मानते हैं उसका जो हमसे ये करा रहा है। कोई गीत हिट होगा या नहीं इससे ज्यादा हमें ये बात ज्यादा मायने की लगती है कि हम अपने रचे संगीत का आनंद ले पा रहे हैं या नहीं।

विशाल ददलानी इस गीत के गीतकार भी हैं। गीतकार और संगीतकार की दोहरी भूमिकाएँ वो पहले भी निभा चुके हैं। वैसी भी रॉक बैंड से अपने संगीत के सफ़र की शुरुआत करने वाले विशाल को ये काम आसान लगता है क्यूँकि बैंड में काम करने वालों को गीत लिखने से लेकर उसके संगीत और गायन का काम खुद ही करना पड़ता है।

गिटार की धुन और फिर शुरुआती अंग्रेजी कोरस से इस गीत का आगाज़ होता है।

Lost n lonely coz you're the only
One that knows me
That I can't be without you
Lost n lonely coz you're the only
One that knows me
That I can't be without you


फिर उभरती है पार्श्व से शफक़त अमानत अली खाँ की आवाज़ जो मुखड़े के साथ ही आपको गीत की उदासी में भिंगो लेती है। बन कर बिगड़ते रिश्तों की पीड़ा गीत में सहज ही व्यक्त होती है। नतीजा ये कि नायक की जिंदगी का एकाकीपन आपको भी काटने सा दौड़ता है । खासकर तब जब अमानत तरह तरह से बिन तेरे..कोई ख़लिश है हवाओं में को अपने अलग अलग अंदाजों में दोहराते हैं। शफक़त अमानत अली खाँ , राहत की तरह हिंदी फिल्मों में निरंतरता से तो नहीं गाते पर अपने गिने चुने गीतों में वो खासा असर छोड़ जाते हैं। मितवा... और मोरा सैयाँ मोसे बोले ना... में उनकी गायिकी का मैं हमेशा से मुरीद रहा हूँ। तो आइए सुने उनकी व सुनिधि की आवाज़ में इस बेहतरीन नग्मे को...



है क्या ये जो तेरे मेरे दरमियाँ है
अनदेखी अनसुनी कोई दास्तां है
लगने लगी अब ज़िन्दगी खाली, है मेरी
लगने लगी हर साँस भी खाली
बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे
कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे

अजनबी से हुए क्यूँ पल सारे
ये नज़र से नज़र ये मिलाते ही नहीं
इक घनी तन्हाई छा रही है
मंजिलें रास्तों में ही गुम होने लगी
हो गयी अनसुनी हर दुआ अब मेरी
रह गयी अनकही बिन तेरे
बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे

राह में रौशनी ने है क्यूँ हाथ छोड़ा
इस तरफ शाम ने क्यूँ है अपना मुँह मोड़ा
यूँ के हर सुबह इक बेरहम सी रात बन गयी
है क्या ये ......

ये गीत इरफान खान और सोनम कपूर पर फिल्माया गया है और कोई ताज्जुब नहीं कि दोनों ही इसे इस फिल्म का सबसे अच्छा गीत मानते हैं।


इस गीत का एक और वर्सन भी फिल्म में है जिसे लिखा है कुमार ने और गाया है शेखर ने। इस वर्सन की खास बात ये है कि इसमें वाद्य यंत्र के रूप में सिर्फ गिटार का इस्तेमाल हुआ है।



चलते चलते गीत के मूड को क़ायम रखना चाहता हूँ कंचन जी की इन पंक्तियों के साथ

हँसी बेफिक्र वही और हमारी फिक्र वही,
तेरी शरीर निगाहों में मेरा ज़िक्र वही,
दिखाई देती न हो उसकी इबारत लेकिन,
है सारी बात फिज़ा में वही, हवा में वही...


तुम्हारी खुशबू अभी भी यही पे बिखरी है
तुम्हारी मुस्कुराहटें हैं आस पास वही...

गुरुवार, मार्च 03, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 6 : तेरे मस्त मस्त दो नैन..मेरे दिल का ले गये चैन

कुछ साल पहले की बात है जनाब अमज़द इस्लाम अमज़द साहब का इक शेर पढ़ा था। सालाना संगीतमाला की छठी पॉयदान पर विराजमान इस गीत को देख कर वही शेर बरबस याद आ जाता है

जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक
आँखों में तेरी डूब के देखेंगे किसी दिन

सच किसी भी चेहरे की जान होती हैं ये आँखें। इसीलिए शायरों की कलम जब भी इनकी तारीफ़ में चली है..चलती ही गई है। और नतीजा ये है कि

इन आँखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं
इन आँखों के वाबस्ता अफ़साने हजारों हैं

उन्हीं अफ़सानों को और समृद्ध करता फैज़ अनवर का लिखा फिल्म दबंग का ये गीत ऐसे ही दो मनचले शोख़ नयनों की कहानी कह रहा है। वैसे भी नैनों के वार से आशिक़ जन्म जन्मांतर से घायल होते रहे हैं। जगजीत जी की गाई ग़ज़ल की वो पंक्तियाँ याद है ना आपको

उनकी इक नज़र काम कर गई
होश अब कहाँ होश ए यार में

दबंग का ये गीत साल के सबसे चर्चित में से एक रहा है और इसकी मुख्य वज़ह है साज़िद वाज़िद की बेहद कर्णप्रिय धुन और राहत की गायिकी। वैसे क्या आपको पता है कि इन भाइयों की संगीतकार जोड़ी में कौन बड़ा है और कौन छोटा? चलिए आपकी मुश्किल मैं आसान किए देता हूं। बड़े हैं साज़िद जिन्हें रिदम में खास महारत हासिल है वहीं छोटे भाई वाज़िद शास्त्रीय संगीत सीखे हुए गायक हैं। संगीत इनके परिवार में कई पीढ़ियों से जुड़ा रहा है। इनके पिता उस्ताद शराफ़त खाँ माने हुए तबला वादक हैं।

इस जोड़ी ने जिस तरह पूरे गीत में तबले और इंटरल्यूड्स में गिटार का इस्तेमाल किया है वो एक बार सुन कर ही मन मोहित हो जाता है। पर गीत को लोकप्रियता के इस मुकाम तक पहुँचाने में राहत की गायिकी का भी बराबर का हाथ रहा है। वैसे इस गीत को राहत से गवाने के लिए साज़िद वाज़िद को काफी मशक्क़त उठानी पड़ी थी। मुंबई में जब रिकार्डिंग करने का समय आया तो राहत को भारत आने का वीसा नहीं मिल पाया। फिर गीत की रिकार्डिंग पाकिस्तान में हुई तो उसकी गुणवत्ता से साज़िद वाज़िद संतुष्ट नहीं हुए। अंत में साज़िद वाज़िद ने राहत को लंदन बुलाकर रिकार्डिंग करवाई।

उनकी गायिकी पर इतना विश्वास रखने वाले इन संगीतकारों के इस परिश्रम को राहत ने व्यर्थ जाने नहीं दिया और सम्मिलित प्रयासों से जो नतीजा निकला वो गीत के बाजार में आते ही हर संगीतप्रेमी शख़्स के होठों पर था। तो आइए एक बार फिर से आनंद लें इस गीत का.



ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में... हाए, नैनों में..... हाए...
ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में बसियाँ जैसे नैन ये तेरे
नैनों में बसियाँ जैसे नैन ये तेरे
तेरे मस्त मस्त दो नैन
मेरे दिल का ले गये चैन
मेरे दिल का ले गये चैन
तेरे मस्त मस्त दो नैन

पहले पहल तुझे देखा तो दिल मेरा
धड़का हाए धड़का, धड़का हाए
जल जल उठा हूँ मैं, शोला जो प्यार का
भड़का हाए भड़का, भड़का हाए
नींदों में घुल गये हैं सपने जो तेरे
बदले से लग रहे हैं अंदाज़ मेरे
बदले से लग रहे हैं अंदाज़ मेरे

तेरे मस्त मस्त दो नैन...

माही बेआब सा, दिल ये बेताब सा
तडपा जाए तडपा, तडपा जाए
नैनों की झील में, उतरा था यूँ ही दिल,
डूबा जाए डूबा, डूबा जाए
होशो हवास अब तो खोने लगे हैं
हम भी दीवाने तेरे होने लगे हैं
हम भी दीवाने तेरे होने लगे हैं
तेरे मस्त मस्त दो नैन...

ताकते रहते तुझको सांझ सवेरे
नैनों में बंसिया जैसे नैन ये तेरे
नैनों में बंसिया जैसे नैन ये तेरे
तेरे मस्त मस्त दो नैन.....

और गीत का वीडिओ जो सलमान और सोनाक्षी सिन्हा पर फिल्माया गया है ये रहा।



सोनाक्षी कहती हैं कि वो सिर्फ सपने में सोचती थी कि उनकी आँखों को केंद्र में रखकर कोई गीत फिल्माया जाए। और देखिए उनका सपना कितनी जल्दी पूरा हो गया। चलते चलते उनके नयनों के लिए तो बस यही कहना चाहूँगा कि

डूब जा उन हसीं आँखों में फराज़
बड़ा हसीन समंदर है खुदकुशी के लिये

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सोमवार, फ़रवरी 28, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 7: सुरीली अँखियों वाले, सुना है तेरी अँखियों से बहती हैं नींदें...और नींदों में सपने

अँखियाँ भी क्या सुरीली हो सकती हैं? सच कहूँ तो कभी आँखों के सुरीलेपन को जाँचने की कोशिश की ही कहाँ मैंने? शायद उसके लिए गुलज़ार जैसी शायराना तबियत की जरूरत थी। हाँ ये जरूर है कि जब से गुलज़ार ने आँखों के लिए इस विशेषण का इस्तेमाल अपने लिखे इस गीत में कर दिया है तबसे मैं भी एक जोड़ी सुरीले नयनों की तलाश में हूँ। देखूँ ढूँढ पाता हूँ या नहीं :)!

शायरों की यही तो खासियत है कि ऐसे ऐसे रूपकों को इस्तेमाल करते हैं जिन्हें सुन कर सुनने वाला पहले तो ये सोचता है कि ये ख़्याल उसके मन में पहले क्यूँ नहीं आया और फिर लिपटता चला जाता है शायर द्वारा बिछाए गए कल्पनाओं के जाल में। वार्षिक संगीतमाला की सातवीं पॉयदान पर फिल्म वीर का ये गीत हृदय में कुछ ऐसा ही अहसास दे कर चला जाता है।


साज़िद वाज़िद वैसे तो बतौर संगीतकार पिछले बारह सालों से फिल्म उद्योग से जुड़े हैं। पर उनके द्वारा रचे गए पहले के संगीत में ऍसी कोई बात दिखती नहीं थी कि उन्हें संगीतकारों की भीड़ से अलग दृष्टि से देखा जाए। इस लिए जब निर्देशक अनिल शर्मा को अंग्रेजी राज के ज़माने की इस ऍतिहासिक प्रेम कथा के संगीत रचने के लिए साज़िद वाज़िद का नाम सलमान खाँ द्वारा सुझाया गया तो वो मन से इसके लिए तैयार नहीं थे। पर साज़िद वाज़िद की जोड़ी ने अपने बारे में उनकी सोच को बदलने पर मज़बूर कर दिया। गीतकार गुलज़ार जिन्होंने पहली बार साज़िद वाज़िद के साथ इस फिल्म में काम किया ने पिछले साल स्क्रीन पत्रिका में दिये गए एक साक्षात्कार में कहा था कि

साज़िद वाज़िद बेहद प्रतिभाशाली हैं। इन्हें इनके हुनर के लिए जो सम्मान मिलना चाहिए वो अब तक उन्हें नहीं मिला। शायद इस फिल्म के बाद लोगों में वो अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल हों। पहली मुलाकात में ही इन्होंने मुझे प्रभावित कर दिया। उन्नीसवीं शताब्दी के ब्रिटिश राज में उपजी इस प्रेम कहानी को पाश्चात्य और लोक धुनों के जिस सम्मिश्रण की आवश्यकता थी वो इन दोनों ने भली भांति पूरी की है।

खुद भाइयों की ये संगीतकार जोड़ी मानती हैं कि ये फिल्म उन्हें सही समय पर मिली। अगर कैरियर की शुरुआत में ऐसी फिल्म मिलती तो उसके साथ वे पूरा न्याय नहीं कर पाते। इस फिल्म को करते हुए उन्होंने अपने एक दशक से ज्यादा के अनुभव का इस्तेमाल किया। संगीत के हर टुकड़ों को रचने के लिए पूरा वक्त लिया और सही असर पैदा करने के लिए गीत की 'लाइव' रिकार्डिंग भी की।

गिटार और पियानो की पार्श्व धुन से शुरु होते इस गीत को जब गुलजार के बहते शब्दों और राहत की सधी हुई गायिकी का साथ मिलता है तो मूड रोमांटिक हो ही जाता है। गीत के पीछे के संगीत संयोजन में कम से कम वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल हुआ है पर उसकी मधुरता और बहाव गीत की भावनाओं के अनुरूप है। फिल्म के पश्चिमी परिवेश की वजह से गीत का एक अंतरा अंग्रेजी में लिखा गया है जिसे सूजन डिमेलो ने अपनी आवाज़ से सँवारा है।

तो आइए डूबते हैं गुलज़ार के शब्दों के साथ राहत जी के द्वारा गाए हुए इस बेमिसाल गीत में..



सुरीली अँखियों वाले, सुना है तेरी अँखियों से
बहती हैं नींदें...और नींदों में सपने
कभी तो किनारों पे, उतर मेरे सपनों से
आजा ज़मीन पे और मिल जा कहीं पे
मिल जा कहीं, मिल जा कहीं समय से परे
समय से परे मिल जा कहीं
तू भी अँखियों से कभी मेरी अँखियों की सुन
सुरीली अँखियों वाले, सुना है तेरी अँखियों से...

जाने तू कहाँ है
उड़ती हवा पे तेरे पैरों के निशां देखे
ढूँढा है ज़मीं पे छाना है फ़लक पे
सारे आसमाँ देखे
मिल जा कहीं समय से परे
समय से परे मिल जा कहीं
तू भी अँखियों से कभी मेरी अँखियों की सुन

सुरीली अँखियों वाले सुना दे ज़रा अँखियों से

Everytime I look into your eyes, I see my paradise
The stars are shining right up in the sky, painting words or designs
Can this be real, are you the one for me
You have captured my mind, my heart, my soul on earth
You are the one waiting for
Everytime I look into your eyes, I see my paradise
Stars are shining right up in the sky, painting words or designs

ओट में छुप के देख रहे थे,
चाँद के पीछे, पीछे थे
सारा ज़हाँ देखा, देखा ना आँखों में
पलकों के नीचे थे
आ चल कहीं समय से परे
समय से परे चल दे कहीं
तू भी अँखियों से कभी मेरी अँखियों की सुन



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रविवार, फ़रवरी 27, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 8 : जब 'राहत' करवाते हैं सीधे ऊपरवाले से बात-.तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…

चलिए बढ़ते हें वार्षिक संगीतमाला की आठवीं पॉयदान पर। हम सब के जीवन में एक वक़्त ऐसा भी आता है जब हर बाजी आपके खिलाफ़ पलटती नज़र आती है। संगी साथी सब आपका साथ एक एक कर के छोड़ने लगते हैं। हताशा और अकेलेपन की इस घड़ी में आगे सब कुछ धुँधला ही दिखता है। आठवीं पॉयदान का गीत एक ऐसा गीत है जो ज़िंदगी के ऐसे दौर में विश्वास और आशा का संचार ये कहते हुए करता है मुश्किल के इन पलों में और कोई नहीं तो वो ऊपरवाला तुम्हारे साथ है।

फिल्म 'अनजाना अनजानी' के इस गीत को गाया है राहत फतेह अली खाँ ने और संगीत रचना है विशाल शेखर की। विशाल शेखर को इस गीत को बनाने के पहले निर्देशक ने सिर्फ इतना कहा था कि आपको ऐसा गीत बनाना है जिसमें भगवान ख़ुद इंसान को अपने होने का अहसास दिला रहे हैं। विशाल शेखर की जोड़ी के शेखर रवजियानी ने झटपट मुखड़ा रच डाला तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…। पर इस मुखड़े के बाकी अंतरे विशाल ददलानी ने लिखे हैं।

विशाल शेखर की ज्यादातर संगीतबद्ध धुनें हिंदुस्तानी और वेस्टर्न रॉक के सम्मिश्रण से बनी होती हैं। दरअसल जहाँ शेखर ने विधिवत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली है वहीं विशाल मुंबई के रॉक बैंड पेंटाग्राम के गायक रहे हैं। इस अलग अलग परिवेश से आने का प्रभाव उनके संगीत पर स्पष्ट दिखता है।


पर जहाँ पिछले गीत में इरशाद क़ामिल के बोलों को मैंने गीत की जान माना था यहाँ वो श्रेय पूरी तरह से राहत फतेह अली खाँ को जाता है। उन्होंने पूरे गीत को इतना डूब कर गाया है कि श्रोता गीत की भावनाओं से अपने आपको एकाकार पाता है। मुखड़े की उनकी अदाएगी इतनी जबरदस्त है कि उनकी आवाज़ की प्रबलता आपको भावविभोर कर देती है और मन अपने आप से गुनगुनाने लगता है तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…। विशाल शेखर के गिटार के इंटरल्यूड्स मन को सुकून देते हैं। राहत से हर संगीतकार कोई सरगम कोई आलाप अपने गीतों में गवाता ही है। राहत यहाँ भी अपनी उसी महारत का बखूबी प्रदर्शन करते हैं।

तो आइए सुनें इस गीत को




धुँधला जाएँ जो मंज़िलें, इक पल को तू नज़र झुका
झुक जाये सर जहाँ वहीं, मिलता है रब का रास्ता
तेरी किस्मत तू बदल दे, रख हिम्मत, बस चल दे
तेरे साथ ही मेरे कदमों के हैं निशां

तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…
ख़ुद पे डाल तू नज़र, हालातों से हार कर कहाँ चला रे
हाथ की लकीर को मोड़ता मरोड़ता है, हौसला रे
तो ख़ुद तेरे ख्वाबों के रंग में तू अपने ज़हां को भी रंग दे
कि चलता हूं मैं तेरे संग में, हो शाम भी तो क्या
जब होगा अंधेरा, तब पाएगा दर मेरा
उस दर पे फिर होगी तेरी सुबह
तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…

मिट जाते हैं सब के निशां, बस एक वो मिटता नहीं, हाय
मान ले जो हर मुश्किल को मर्ज़ी मेरी, हाय
हो हमसफ़र ना तेरा जब कोई, तू हो जहाँ रहूँगा मैं वहीं
तुझसे कभी ना एक पल भी मैं जुदा
तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…

फिल्म में ये गीत रणवीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा पर फिल्माया गया है।



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गुरुवार, फ़रवरी 24, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 9 : मन के 'मत' पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा

वार्षिक संगीतमाला की नवीं पॉयदान पर एक बार फिर आ रहे हैं जनाब राहत फतेह अली खाँ । राहत इधर कुछ गलत कारणों से समाचार पत्रों में सुर्खियाँ बटोर रहे थे। अपनी रूहानी आवाज़ से जो शख़्स मन को शांत और मुदित कर देता है उससे इस तरह के आचरण की उम्मीद कम से कम हम और आप जैसे प्रशंसक तो नहीं ही कर सकते। आशा है राहत इस घटना से सबक लेंगे और भविष्य में जब भी उनकी चर्चा हो तो सिर्फ उनकी गायिकी के लिए...

जब राहत का पिछला गीत सोलहवीं पॉयदान पर बजा था तो मेंने आपसे कहा था कि इस साल की वार्षिक संगीतमाला में राहत ने अपने गीतों से जो धूम मचाई है उसकी मिसाल पहले की किसी भी संगीतमाला में देखने को नहीं मिली। राहत की गायिकी के दबदबे का अंदाज़ आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस साल के प्रथम दस गीतों में से पाँच उनके द्वारा गाए नग्मे हैं।

तो अब बात करें नवीं पॉयदान के इस गीत की जो लिया गया है फिल्म 'आक्रोश' से। अनुपम अमोद की आवाज़ में इस फिल्म का एक और प्यारा गीत सौदा उड़ानों का है या आसमानों का है, ले ले उड़ानें मेरी.. आप पहले ही संगीतमाला में सुन चुके हैं। आक्रोश का संगीत दिया है प्रीतम ने और लिखा है इरशाद क़ामिल ने। दरअसल राहत की गायिकी तो अपनी जगह है ही पर इस गीत की जान है इरशाद क़ामिल के बोल। रूमानियत भरे गीतों में इरशाद कमाल करते हैं वो तो आप पिछले सालों में जब वी मेट, लव आज कल, अजब प्रेम की गजब कहानी और इस साल Once Upon A Time In Mumbai सरीखी फिल्मों में पहले ही देख चुके हैं। पर आक्रोश के इस गीत में इरशाद गीत के बोलों में एक दार्शनिक चिंतन का भी सूत्रपात करते हैं। वैसे तो गीत के हर अंतरे में इरशाद अपनी लेखनी से चमत्कृत करते हैं पर खास तौर पर उनकी लिखी ये पंक्तियाँ मन को लाजवाब सा कर देती हैं।

"..मन से थोडी अनबन रखना,
मन के आगे दर्पण रखना
मनवा शकल छुपा लेगा.."

इरशाद क़ामिल आज हिंदी फिल्म संगीत में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाते जा रहे हैं। पर अगर उनके पिता की चलती तो वो आज इंजीनियरों की जमात में खड़े होते। रासायन शास्त्र के प्रोफेसर के पुत्र होने के नाते उन्हें कॉलेज में गणित और विज्ञान विषयों को जबरन चुनना पड़ा। अरुचिकर विषयों का साथ और उसके साथ चार चार ट्यूशन करने की बाध्यता इरशाद को नागवार गुज़री। कॉलेज की उस व्यस्त दिनचर्या में क़ामिल कुछ सुकून की तलाश में रंगमंच में रुचि लेने लगे। साल के अंत में जब नतीजे निकले तो वो गणित और भौतिकी में फेल हो गए थे। क़ामिल के पिता के लिए वो निराशा का दिन था पर क़ामिल इसे अपनी जिंदगी की सबसे अच्छी असफलताओं में गिनते हैं क्यूँकि इस असफलता ने ही उन्हें जीवन की नई दिशा प्रदान की।

वैसे तो मानव मन की विचित्रताओं पर पहले भी गीत लिखे जा चुके हैं और इरशाद साहब का ये गीत उसी कड़ी में एक उल्लेखनीय प्रयास है। प्रीतम संगीत के साथ यहाँ ज्यादा प्रयोग नहीं करते और गीत के फक़ीराना मूड को अपनी धुन से बरक़रार रखते हैं।

वैसे मन के भटकाव के बारे में सब जानते समझते भी क्या हम इसकी इच्छाओं के आगे घुटने नहीं टेक देते, इसके दास नहीं बन जाते। खासकर तब जब हमारे हृदय में किसी के प्रति प्रेम की वैतरणी बहने लगती है। तो आइए सुनते हैं इस अर्थपूर्ण गीत को राहत जी के स्वर में..



इस गीत को आप यहाँ भी सुन सकते हैं

इश्क मुश्क पें जोर ना कोई
मनसे बढकर चोर ना कोई
बिन आग बदन सुलगा देगा
ये रग रग रोग लगा देगा


मन के 'मत' पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा
मन के 'मत' पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा
माशूक़ मोहल्ले में जाके बेसब्रा रोज दगा देगा
हो. मन की मंडी, मन व्यापारी, मन ही मन का मोल करे
हा हा हा...
भूल भाल के नफ़ा मुनाफा, नैन तराजू तोल करे
नैन तराजू तोल करे
खुद ही मोल बढा दे मनवा, खुद ही माल छुपा दे मनवा
खुद ही भाव गिरा देगा


मन के मत पे मत चलिओ, ये जीते जी मरवा देगा


मन बहकाए, मन भटकाए, मन बतलाए सौ रस्ते
मन की मत में प्यार हैं मँहगा, प्राण पखेरू हैं सस्ते
प्राण पखेरू हैं सस्ते
मन से थोडी अनबन रखना, मन के आगे दर्पण रखना
मनवा शकल छुपा लेगा
मन के मत पे चलिओ..

चलते चलते इरशाद क़ामिल की लिखी इन पंक्तियों के साथ आपको छोड़ना चाहूँगा

जो सामने है सवाल बनके…
कभी मिला था ख़याल बनके…
देगी उसे क्या मिसाल दुनिया …
जो जी रहा हो मिसाल बनके

इरशाद बतौर गीतकार एक मिसाल बन कर उभरें, मेरी उनके लिए यही शुभकामनाएँ हैं..

अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

मंगलवार, फ़रवरी 22, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 10 : रूसा भात, माटी धान हमारी जान है..मँहगाई डायन खायत जात है...

वक़्त आ गया है वार्षिक संगीतमाला के अंतिम दस में प्रवेश करने का और यहाँ वो गीत है जो इस साल का सबसे प्रासंगिक गीत साबित हुआ है। जी हाँ सही पहचाना आपने ये गीत या यूं कहें कि ये लोकगीत है सखी सैयाँ तो खूबई कमात हैं, मँहगाई डायन खायत जात है..। मँहगाई तो साल दर साल सत्ताधारी दलों की सरकारों का नासूर बनती रही है। पर जब ये बुंदेलखंडी लोकगीत पीपली लाइव के लिए रिकार्ड किया गया तो पेट्रोल से ले के खाद्यान्नों की कीमतें निरंतर बढ़ती जा रही थीं।

गीत के मूल लेखक गया प्रसाद प्रजापति व गीतकार स्वानंद किरकिरे की तारीफ़ करनी होगी की चंद पंक्तियों में उन्होंने मँहगाई के चलते देश के आम नागरिकों और विशेषकर किसानों को हो रही परेशानियों को इस तरह छुआ कि ये गीत पूरे देश की आवाज़ बन गया। गीत के पहले अंतरे में जहाँ वो बढ़ती मँहगाई से हो रही गरीबों की दुर्दशा का चित्रण करते हैं

हर महिना उछले पेट्रोल
डीजल का उछला है रोल
शक्कर भाई के का बोल
रूसा भात, माटी धान हमारी जान है
मँहगाई डायन खायत जात है.

वहीं दूसरे अंतरे में वे अप्रत्याशित बदलते मौसमों की वज़हों से हो रही फसलों की तबाही और किसानों पर आए संकट को भी बखूबी व्यक्त करते हैं...

सोयाबीन का हाल बेहाल
गरमी से पिचके हैं गाल
गिर गए पत्ते, पक गए बाल
और मक्का जी भी खाए गए मात हैं
मँहगाई डायन खायत जात है.

संगीतकार राम संपत ने इस गीत में बस ये ध्यान रखा कि गाँव की चौपालों या कीर्तन मंडलियों के साथ जिस तरह का संगीत बजता है उससे तनिक भी छेड़ छाड़ ना की जाए। इसलिए आपको गीत के साथ सिर्फ ढोलक, झाल, मजीरे और हारमोनियम का स्वर सुनाई देता है। बिलकुल वैसा ही जैसा आपने अपने गली मोहल्ले में सुना होगा।

पर मुझे गीत के असली हीरो लगते हैं चरित्र अभिनेता रघुवीर यादव। रघुबीर यादव ने जिस अंदाज़ में इस गीत को अपनी आवाज़ दी है उससे लोगों को यही लगेगा कि कोई मँजा हुआ लोकगायक गा रहा है। वैसे दिलचस्प बात ये कि इस गीत को रात में खुले आसमान के नीचे रिकार्ड किया गया था। गीत में कुछ विविधताएँ रघुवीर जी ने खुद जोड़ी थीं और गीत बिना किसी रीटेक के ही ओके कर लिया गया था।

आपको ये जानकर हैरानी होगी कि फिल्म मैसी साब और टीवी धारावाहिक मुँगेरी लाल के हसीन सपने से अपने कैरियर के आरंभिक दिनों में चर्चा में आया ये शख़्स वास्तव में जबलपुर के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखता है। और तो और पन्द्रह साल की उम्र में जब रघुवीर अपने गाँव को छोड़कर निकले थे तो अभिनेता बनने नहीं बल्कि एक गायक के रूप में अपना कैरियर बनाने के लिए।

पर भाग्य को कछ और मंजूर था। रोज़ी रोटी के जुगाड़ में पहले उन्होंने एक पारसी थिएटर कंपनी में छः सालों तक काम किया। फिर तीन साल नेशनल स्कूल और ड्रामा में और अध्ययन करने के बाद वो एक दशक तक वहाँ पढ़ाते रहे। फिर फिल्मों में काम मिलना शुरु हुआ तो गायक बनने का ख़्वाब, ख़्वाब ही रह गया। पर आज भी उन्हें संगीत से प्यार है क्यूँकि अच्छा संगीत उन्हें मन की शांति देता है। एक कलहपूर्ण दामपत्य जीवन की वज़ह से कोर्ट,कचहरी और यहाँ तक कि जेल की हवा खा चुकने वाले रघुवीर यादव को पीपली लाइव में अभिनय के आलावा गायिकी के लिए जो वाहवाही मिल रही है वो उन जैसे गुणी कलाकार के लिए आगे भी सफलता की राह खोलेगी ऐसी मेरी मनोकामना है।

आइए फिलहाल तो सुनते हैं ये गीत।





चलते चलते गीत से जुड़े दो रोचक तथ्य और। फिल्म वैसे तो एक काल्पनिक गाँव पीपली की कहानी कहती है पर इस इस गीत के साथ जो गायन मंडली है वो मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल के पास स्थित गाँव बदवाई से ताल्लुक रखती है। वहीं इस फिल्म की शूटिंग भी हुई। फिल्म की लोकप्रियता बढ़ने पर इस गाँव के लोगों ने फिल्म के निर्माता आमिर से अस्पताल, विद्यालय, सड़क की माँग नहीं की बल्कि एक अभिनय सिखाने वाले संस्थान खोलने की पेशकश की। शायद गायन मंडली को बतौर पारिश्रमिक मिले छः लाख रुपए इसकी वज़ह रहे हों।

शनिवार, फ़रवरी 19, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 11 : देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू, घाट-घाट यहाँ घटता जादू

वार्षिक संगीतमाला की ग्यारहवीं पॉयदान पर स्वागत कीजिए संगीत बैंड ' Indian Ocean' का जो पहली बार किसी संगीतमाला का हिस्सा बन रहा है। पिछले कई महिनों से इनके द्वारा बनाए इस गीत के माध्यम से आप अपने देश के रंग रँगीले प्रजातंत्र के विभिन्न रूपों की झलक देखते रहे है। वैसे भी इस बात में क्या शक हो सकता है कि 'देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू घाट-घाट यहाँ घटता जादू.....'।

निर्देशिका अनुषा रिज़वी ने पीपली लाइव के जिन दो गीतों के लिए 'Indian Ocean' को चुना उनमें से ये वाला गीत उनके एलबम 'झीनी' में शामिल था। हाँ ये जरूर हुआ कि मूलतः संजीव शर्मा के लिखे इस गीत के बोलों में पीपली लाइव के लिए गीतकार स्वानंद किरकिरे ने कुछ बदलाव किए और जो नतीजा निकला वो फिल्म रिलीज़ होने के पहले ही देश की जनता की जुबान पर आ गया।

अपने देश की विसंगतियों को ये गीत व्यंग्यात्मक दृष्टि से देखता जरूर है पर एक बाहरवाले के नज़रिए से नहीं बल्कि एक आम भारतीय के परिपेक्ष्य से। गीत के बोलों में जहाँ देश की मिट्टी का सोंधापन है वही यह गीत देश के वास्तविक हालातों का आईना भी पेश करता है। अब इन्हीं पंक्तियों को लें जिनमें देश का दर्द समाया सा लगता है..

सूखे नैना, रुखी अँखियाँ
धुँधला धुँधला सपना
आँसू भी नमकीन है प्यारे
जो टपके सो चखना

राहुल की आवाज़ की ताकत और गहरापन इस ज़मीनी हक़ीकत को और पुख्ता करता है।

आइए इस गीत के अन्य पहलुओं पर चर्चा करने के पहले इस बैंड से आपका परिचय करा दूँ। बैंड 1984 में गिटार वादक सुस्मित सेन और गायक असीम चक्रवर्ती जो कि ताल वाद्यों में भी प्रवीण थे ने शुरु किया। 1990 में बैंड का नामाकरण Indian Ocean किया गया। 1991 में राहुल राम जो आज कल इस बैंड के मुख्य गायक हैं, इसका हिस्सा बने। 1994में अमित कीलम ड्रमर के रूप में बैंड में आए। दिसंबर २००९ में असीम का हृदय गति रुक जाने से असामयिक निधन हो गया। आजकल ये बैंड अपने नए एलबम '16/330 खजूर रोड' के लांच में व्यस्त है।

पूरे गीत में बैंड ने ताल वाद्यों और गिटार का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। मुखड़े के बाद ही तबले, ढोलक , डमरू का जो सम्मिलित स्वर उभरता है वो आपको एकदम से देशी वातावरण में खींच ले जाता है। राहुल राम और उनके साथी प्पप परा रा..धूम ततक धिन के कोरस के साथ गीत में एक जोश और उर्जा सी भरते हैं।


पर गीत की सबसे सुंदर तान सुस्मित सेन की उँगलियों से निकलती हैं। गीत शुरु होने के 2.50 मिनट बाद लगभग चालिस सेकेंड तक सुस्मित अपनी थिरकती ऊँगलियों से वो जादू पैदा करते हैं कि मन मंत्रमुग्ध और ठगा सा रह जाता है। लगता है गिटार और सितार का अंतर ही समाप्त हो गया। सुस्मित अपने संगीत को अपने अनुभवों का निचोड़ बताते हैं। उन्हे जाज़ और रॉक से ज्यादा हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत पसंद आता है।(चित्र सौजन्य)


वैसे क्या आप जानते हैं कि बैंड के मुख्य गायक राहुल राम जो अपनी लंबी दाढ़ी और अलग सी वेश भूषा से अपनी अलग सी पहचान रखते हैं के पास पीएचडी की उपाधि भी है। और तो और राहुल नर्मदा बचाव आंदोलन का भी हिस्सा रह चुके हैं। अब अगर राहुल अपने आप को बुद्धिजीवियों में गिनते हों तो इसमें क्या गलत हो सकता है। यही वजह हे कि उनके साथी उन्हें 'लॉजिक बाबा' और 'ज्ञानदेव' के नाम से बुलाते हैं। (चित्र सौजन्य)

तो आइए सुनें इस गीत को



देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू
घाट-घाट यहाँ घटता जादू
देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू

देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू
घाट-घाट यहाँ घटता जादू

राई पहाड़ है कंकर-शंकर
बात है छोटी बड़ा बतंगड़
राई पहाड़ है कंकर-शंकर
बात है छोटी बड़ा बतंगड़

इंडिया सर यह चीज़ धुरंधर
इंडिया सर यह चीज़ धुरंधर
रंग रँगीला परजातंतर
रंग रँगीला परजातंतर

प प रे .....

सात रंग सतरंगा मेला
बदरंगा सा बड़ा झमेला
सात रंग सतरंगा मेला
बदरंगा सा बड़ा झमेला

गिरा गगन से खजूर ने झेला
सुच-दुःख पकड़म-पकड़ी खेला

है..एक रंग गुनियों का निराला
एक रंग अज्ञानी
रंग रंग मैं होड़ लगी है
रंगरंगी मनमानी

देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू
घाट-घाट यहाँ घटता जादू
देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू
घाट-घाट यहाँ घटता जादू

सूखे नैना, रुखी अँखियाँ
धुँधला धुँधला सपना
आँसू भी नमकीन है प्यारे
जो टपके सो चखना

धुँधला धुँधला सपना प्यारे
धुँधला धुँधला सपना

सूखे नैना, रुखी अँखियाँ
सूखे नैना, रुखी
धुँधला धुँधला सपना प्यारे
धुँधला धुँधला सपना
देस मेरा रंगरेज़ ये बाबू हे....

और अगर आमिर खान को ड्रमर का रोल सँभालते देखना चाहें तो गीत का वीडिओ ये रहा...

बुधवार, फ़रवरी 16, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 12 : कान्हा . बैरन हुयी बाँसुरी... दिन तो कटा, साँझ कटे, कैसे कटे रतियाँ ?

बारहवी पॉयदान पर पहली बार इस साल की संगीतमाला में प्रवेश कर रहे हैं संगीतकार साज़िद वाज़िद। पर फिल्म दबंग के लिए नहीं बल्कि साल के शुरु में आई फिल्म 'वीर' के लिए। गीत के बोल लिखे हैं गुलज़ार साहब ने और इसे अपनी आवाज़ दी है रेखा भारद्वाज ने। जब भी किसी गीत के क्रेडिट में रेखा जी का नाम आता है गीत की प्रकृति के बारे में बहुत कुछ अंदाज मिल जाता है। सूफ़ी संगीत से अपने कैरियर की शुरुआत और पहचान बनाने वाली रेखा जी ने जहाँ पिछले कुछ वर्षों में लोकगीत के रंग में समाए ठेठ गीत गाए हैं वहीं उप शास्त्रीय गीतों में भी उनकी आवाज़ और लयकारी कमाल की रही है।

अपने उसी अंदाज़ को रेखा जी ने वीर फिल्म की इस 'ठुमरी' में बरक़रार रखा है। वैसे शास्त्रीय संगीत से ज्यादा नहीं जुड़े लोगों के लिए उप शास्त्रीय संगीत की इस विधा के बारे मे् कुछ बातें जानना रोचक रहेगा। शास्त्रीय संगीत के जानकार उन्नीसवी शताब्दी को ठुमरी का उद्भव काल बताते हैं। ठुमरी से जुड़े गीत रूमानी भावों से ओतप्रोत होते हुए भी सात्विक प्रेम पर आधारित होते हैं और अक्सर इन गीतों में नायक के रूप में भगवान कृष्ण यानि हमारे कान्हा ही नज़र आते हैं। ठुमरी की लोकप्रियता लखनऊ में नवाब वाज़िद अली शाह के शासनकाल में बढ़ी।

ठुमरी में रागों के सम्मिश्रण और अदाकारी का बड़ा महत्त्व है। वैसे तो अक्सर ठुमरियाँ राग खमाज़,पीलू व काफ़ी पर आधारित होती हैं पर संगीतकार साज़िद वाज़िद ने इस ठुमरी के लिए एक अलग राग चुना। अपने इस गीत के बारे में वो कहते हैं
हमने इस ठुमरी में किसी एक थाट का प्रयोग नहीं किया जैसा कि प्रायः होता है। जिस तरह हमने इस गीत में मिश्रित राग से विशुद्ध राग नंद में प्रवेश किया वो रेखा जी ने खूब पसंद किया। गीत में तबला उसी तरह बजाया गया है जैसा आज से डेढ सौ वर्षों पहले बजाया जाता था। हमने ऐसा इसलिए किया ताकि जिस काल परिवेश में ये फिल्म रची गई वो उसके संगीत में झलके।

ठुमरी उत्तरप्रदेश मे पली बढ़ी इस लिए इस रूप में रचे गीत बृजभाषा में ही लिखे गए। गुलज़ार साहब ने ठुमरी का व्याकरण तो वही रखा पर गीत के बोलों से (खासकर अंतरों में) किसी को भी गुलज़ारिश भावनाओं की झलक मिल जाएगी। कान्हा की याद में विकल नायिका की विरह वेदना को जब दिन के उजियारे, साँझ की आभा और अँधियारी रात की कालिमा जैसे प्राकृतिक बिंबों का साथ मिलता है तो वो और प्रगाढ़ हो जाती है।


गीत एक कोरस से शुरु होता हैं जिसमें आवाज़े हैं शरीब तोशी और शबाब साबरी की। फिर रेखा जी की कान्हा को ढूँढती आवाज़ दिलो दिमाग को शांत और गीत में ध्यानमग्न सा कर देती है। मुखड़े और कोरस के बाद गीत का टेम्पो एकदम से बदल जाता है और मन गीत की लय के साथ झूम उठता है। वैसे भी गुलज़ार की लेखनी मे..साँझ समय जब साँझ लिपटावे, लज्जा करे बावरी. जैसे बोलों को रेखा जी का स्वर मिलता है तो फिर कहने को और रह भी क्या जाता है..


पवन उडावे बतियाँ हो बतियाँ, पवन उडावे बतियाँ
टीपो पे न लिखो चिठिया हो चिठिया, टीपो पे न लिखो चिठिया
चिट्ठियों के संदेसे विदेसे जावेंगे जलेंगी छतियाँ

रेत के टीले पर क्या लिखने बैठ गई? जानती नहीं कि पवन का एक झोंका इन इबारतों को ना जाने कहाँ उड़ा कर ले जाएगा और एक बार तुम्हारे दिल की बात उन तक पहुँच गई तो सोचो उनका हृदय भी तो प्रेम की इस अग्नि से धधक उठेगा ना..

कान्हा आ.. बैरन हुयी बाँसुरी

हो कान्हा आ आ.. तेरे अधर क्यूँ लगी
अंग से लगे तो बोल सुनावे, भाये न मुँहलगी कान्हा
दिन तो कटा, साँझ कटे, कैसे कटे रतियाँ

कान्हा अब ये बाँसुरी भी तो मुझे अपनी सौत सी लगने लगी है। जब जब सोचती हूँ कि इसने तेरे अधरों का रसपान किया है तो मेरा जी जल उठता है। और तो और इसे प्यार से स्पर्श करूँ तो उल्टे ये बोल उठती है। तुम्हीं बताओ मुझे ये कैसे भा सकती है? तुम्हारे बिना दिन और शाम तो कट जाती है पर ये रात काटने को दौड़ती है

पवन उडावे बतियाँ हो बतियाँ, पवन उडावे बतियाँ..
रोको कोई रोको दिन का डोला रोको, कोई डूबे, कोई तो बचावे रे
माथे लिखे म्हारे, कारे अंधियारे, कोई आवे, कोई तो मिटावे रे
सारे बंद है किवाड़े, कोई आरे है न पारे
मेरे पैरों में पड़ी रसियाँ

चाहती हूँ के इस दिन की डोली को कभी अपनी आँखो से ओझल ना होने दूँ। जानती हूँ इसके जाते ही मन डूबने लगेगा। मेरे भाग्य में तो रात के काले अँधियारे लिखे हैं।  समाज की बनाई इस चारदीवारी से बाहर निकल पाने की शक्ति मुझमें नहीं और कोई दूसरा भी तो नहीं जो मुझे इस कालिमा से तुम्हारी दुनिया तक पहुँचने में सहायता कर सके।

कान्हा आ.. तेरे ही रंग में रँगी
हो कान्हा आ आ... हाए साँझ की छब साँवरी
साँझ समय जब साँझ लिपटावे, लज्जा करे बावरी
कुछ ना कहे अपने आप से आपी करें बतियाँ

जानते हो जब ये सलोनी साँझ आती है तो मुझे अपने बाहुपाश में जकड़ लेती है। तेरे ख्यालों में डूबी अपने आप से बात करती हुई तुम्हारी ये बावरी उस मदहोशी से बाहर आते हुए कितना लजाती है ये क्या तुम्हें पता है?

दिन तेरा ले गया सूरज, छोड़ गया आकाश रे
कान्हा कान्हा कान्हा.....



अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

सोमवार, फ़रवरी 14, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 वेलेंटाइन डे स्पेशल - पॉयदान संख्या 13 : चमचम झिलमिलाते,ये सितारों वाले हाथ,भीनी भीनी खुशबू, जैसे तेरी मीठी बात

वेलेंटाइन डे के मौके पर 'एक शाम मेरे नाम' के स्नेही पाठकों को प्यार भरी शुभकामनाएँ।  इस अवसर पर आपके लिए तोहफे के रूप में पेश है वार्षिक संगीतमाला की तेरहवीं पॉयदान पर प्रेम की सोंधी सोंधी खुशबू फैलाता हुआ ये प्यारा सा नग्मा। इस नग्मे को आप में से ज्यादातर ने नहीं सुना होगा क्यूँकि जिस फिल्म में ये नग्मा था वो मुख्यतः म्ल्टीप्लेक्सों की शोभा कुछ दिन बढ़ाकर चलती बनी। ये फिल्म थी 'स्ट्राइकर'। अब इस स्ट्राइकर से इसे कोई मार धाड़ वाली फिल्म ना मान लीजिएगा। ये स्ट्राइकर कैरमबोर्ड वाला है और फिल्म भी कैरम खेलने वाले एक खिलाड़ी की कहानी कहती है।

ये बात ध्यान देने की है कि लीक से हटकर फिल्में बनाने वाले निर्देशक आजकल संगीत में जिस विविधता और प्रयोग की छूट अपने संगीतकारों को देते हैं वो मुख्यधारा के नामी निर्माता निर्देशकों से देखने को नहीं मिलती। अब Striker को ही लें। निर्देशक चंदन अरोड़ा ने फिल्म के आठ गीतों के लिए छः अलग अलग संगीतकारों का चुना। इनमें विशाल भारद्वाज और स्वानंद किरकिरे के संगीतबद्ध गीत भी थे। पर इन गीतों में जो गीत संगीतमाला में जगह बना पाया है वो है एक नई मराठी गीत संगीतकार जोड़ी का। इस गीत के संगीतकार हैं शैलेंद्र बार्वे और गीतकार हैं जीतेंद्र जोशी

जीतेंद्र जोशी एक बहुमुखी प्रतिभा वाले कलाकार है। मराठी फिल्मों, नाटकों और सीरियलों में बतौर अभिनेता का काम करते हैं और कविताएँ लिखने का शौक भी रखते हैं। पुणे से अपनी आंरंभिक और कॉलेज की शिक्षा प्राप्त करने वाले जीतेंद्र गुलज़ार और विशाल भारद्वाज के बड़े प्रशंसक हैं। ये गीत देखकर उन दिनों की याद दिला देते है जब प्यार संवाद से नहीं पर मूक भावनाओं, आँखों के इशारे और छत पर पत्थर से बाँध के फेंके गए ख़तों से आगे बढ़ता था।

जोशी और बार्वे को भी फिल्म में एक ऍसी परिस्थिति दी गई जहाँ नायक अपने ठीक सामने के घर में रहने वाली एल लड़की के मोहजाल में इस क़दर डूब जाता है कि दिन रात उसकी हर इक गतिविधि का साझीदार हो जाता है। ये तो आप भी मानेंगे कि जब प्रेम संवादविहीन होता है तो उसकी गहराई दिन दूनी रात चौगुनी कुलाँचे भरने लगती है। आप किसी के बारे में सोचना शुरु करते हैं, दिन रात सोचते हैं तो आपकी कल्पनाओं के पंख लग जाते हैं। अपने प्रेमी का हर कृत्य आपको इस अवस्था में अद्बुत सा नज़र आता है। जोशी नायक के मन में चल रही कल्पनाओं की उड़ान को अपने लफ़्जों में इस तरह बुनते हैं कि मन का हर कोना रूमानियत के रंगों से भींग जाता है।

शैलेंद्र बार्वे ने इस गीत में प्रेम के सच्चे और भोले स्वरूप को जाग्रृत करने के लिए सूफ़ी संगीत का रंग देने का प्रयास किया है। हिंदुस्तानी वाद्य यंत्र और ताली के सम्मिलित संगीत संयोजन के साथ उन्होंने गीत का टेम्पो धीमा रखा है जिससे हर शब्द को एक खिंचाव के साथ गाना पड़ता है। इस गीत को निभाने के लिए एक ऐसे कलाकार की आवाज़ की जरूरत थी जो कुछ नया करने में विश्वास रखता हो और इसीलिए गायक के तौर पर सोनू निगम को चुना गया। सोनू ने इस कठिन गीत को इस बेहतरीन तरीके से निभाया है कि उनकी गाई हर पंक्ति, हर आलाप पर बस वाह वाह ही निकलती है। सोनू निगम ख़ुद इस गीत को अपने द्वारा गाए गीतों में सबसे अच्छों में से एक गिनते हैं।

तो आइए सुनते हैं इस प्यारे से गीत को इसके लाजवाब बोलों के साथ
हो जन्नतों के दर खुले, कुछ बाशिंदे थे चले
ले आए वो, नन्ही जान
उस ख़ुदा का इक पयाम
तब से तू है ज़हाँ में
बनके रौनक यहाँ की मेरी जान
ख़्वाहिशों से भी आगे जो ख़ुशी का मिले वो अरमान
रा रे रा रा आ..

चमचम झिलमिलाते,ये सितारों वाले हाथ
भीनी भीनी खुशबू, जैसे तेरी मीठी बात
उजला उजला सा ये तन, जैसा महका हो चन्दन
बाहों में तेरी गुजरे, मेरा ये सारा जीवन
तेरी अदा में मासूमियत है
फिर भी है शोखी, रंगीनियत है
तारों से भर दूँ मैं, आँचल तेरा
रब से भी प्यारा है, चेहरा तेरा, चेहरा तेरा, चेहरा तेरा
रा रे रा रा आ...

फूल होंठों पे खिले, चाँद आँखों में मिले
फूल होंठों पे खिले, चाँद आँखों में मिले
बिखरे मोती जुबान की जैसे किरणें तेरी यह मुस्कान
नूर बरसे नज़र से नूरी तुझमें बसी है मेरी जान
नूर बरसे नज़र से नूरी तुझमें बसी है मेरी जान
तेरी झलक की प्यासी नज़र है, दीवानगी ये तेरा असर है
रूहाने रंगों का ये आँचल तेरा
सपनो इरादों का ये बादल मेरा बादल मेरा बादल मेरा
रा रे रा रा आ

धीरे धीरे सर चढ़ा, तेरा जादू, आगे बढ़ा
धीरे धीरे सर चढ़ा, तेरा जादू, आगे बढ़ा
हुआ खुद से जुदा फिर भी तुझपे फ़िदा मैं मेरी जान
इश्क ले ले तू ले ले ,ले ले तू मेरा इम्तिहान
इश्क ले ले तू ले ले ,ले ले ले ले मेरा इम्तिहान
सूने सफ़र की तू सोहबत है.
बख्शी खुदा ने, यह मिलकियत है
आजा सजा दे गोरी आँगन मेरा
जैसे सजाया तूने लमहा मेरा

रा रे रा रा आ....

ये गीत एक ऐसा गीत है जिसका नशा धीरे धीरे चढ़ता है इसलिए इसे जब भी सुनिएगा फुर्सत से सुनिएगा...

चलते चलते इस गीत के फिल्मांकन के बारे में कुछ बातें। दो सटे सटे घरों के बीच होते प्रेमपूर्ण भावनाओं के आदान प्रदान को मेरी पीढ़ी ने अपनी आँखों से देखा और महसूस किया है। गीत में भी इस वास्तविकता का बखूबी चित्रण हुआ है। शूटिंग के दौरान एक बड़ा मजेदार वाक़या हुआ।  

नायक को अपना प्रेम पत्र कागज के तिकोने जहाज के रूप में ऐसा फेंकना था कि वो सामने की बॉलकोनी में खड़ी नायिका के पास गिरे। पर पहले चार टेकों में बच्चों वाला ये मामूली काम नायक अंजाम नहीं दे पाए। दो बार वो जहाज नायिका के घर के खपड़ैल की छत पर जा पहुँचा और दो बार नीचे जा गिरा। :)

तो आइए देखते हैं इस गीत का वीडिओ..
 

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स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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