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रविवार, जून 26, 2022

चन कित्थाँ गुज़ारी रात वे Chan Kithan Guzari by Ali Sethi

लोकगीतों की एक अलग ही मिठास होती है क्यूँकि उसके बोल जनमानस के बीच से निकलते हैं। उनमें अपने घर आँगन, रीति रिवाज़, आबो हवा की एक खुशबू होती है। उसके बोलों में आप उस इलाके के जीवन की झलक भी सहजता से महसूस कर पाते हैं। यही वज़ह है कि ऐसे गीत पीढ़ी दर पीढ़ी उत्सवों या बैठकी में गाए गुनगुनाते जाते  रहे हैं। ऐसा ही एक लोकगीत जिसे आज आपके सामने पेश कर रहा हूँ वो करीब सौ साल पहले रचा गया और देखिए आज इतने साल बाद भी इंस्टाग्राम पर धूम मचा रहा है। 



ऐसा कहते हैं कि इस गीत को मूलतः पाकिस्तान के ख़ैबर पख्तूनवा राज्य के डेरा इस्माइल खाँ कस्बे से किसी पोखरी बाई बात्रा ने लिखा था। डेरा इस्माइल खाँ में उस वक्त साराइकी भाषा बोली जाती थी जो पंजाबी से बहुत हद तक मिलती जुलती है। बाद में वहीं के प्रोफेसर दीनानाथ ने इसे पहली बार संगीतबद्ध किया। आज़ादी मिलने के बाद संगीतकार विनोद ने 1948 में फिल्म चमन में इसे पुष्पा हंस जी से गवाया। देश के बँटवारे के बाद तो दीनानाथ जी दिल्ली चले आए पर ये लोकगीत सरहद के दोनों ओर पंजाब के गाँव कस्बों में गूँजता रहा।। फिर तो सुरिंदर कौर, अताउल्लाह खान से होते हुए हाल फिलहाल में इसके बदले हुए रूपों को आयुष्मान खुराना और अली सेठी जैसे युवा गायकों ने आवाज़ दी है। 

पर इन सारे गायकों में जिस तरह से अली सेठी ने अपनी गायिकी और गीत की धुन में से गीत के मूड को पकड़ा है वैसा असर औरों को सुन कर नहीं आ पाता। इस लोकगीत को सुनते हुए आप शब्दों का अर्थ ना समझते हुए भी गीत में अंतर्निहित विरह के स्वरों को दिल में गूँजता पाते हैं। चाँद के माध्यम से अपने प्रेमी को उलाहना देते हुए इस लंबे  लोकगीत के सिर्फ दो अंतरे ही अली सेठी ने इस्तेमाल किए हैं पर वही काफी हैं आपका दिल जीतने के लिए

सराइकी में इस तरह के लोकगीत को दोहरा या दोडा कहा जाता है। इसकी दो पंक्तियों के अंतरों में जो पहली पंक्ति होती है वो सिर्फ रिदम बनाने का काम करती है और अर्थ के संदर्भ में उसका दूसरी से कोई संबंध नहीं होता। चलिए इस गीत के बोलों के साथ का अर्थ आपको बता दूँ ताकि सुनने वक्त भाव और स्पष्ट हो जाए। 

चन कित्थाँ गुज़ारी आयी रात वे?
मेंडा जी दलीलां दे वात वे 
चन कित्थाँ गुज़ारी आयी?
चाँद तुमने पिछली रात किसके साथ , कहाँ गुजारी? तुम मुझसे मिलने भी नहीं आए। सारी रात मेरे दिल मुझसे ये सवाल करता रहा और मैं तरह तरह की दलीलें दे कर उसे दिलासा देती रही।
कोठड़े उत्थे कोठड़ा माही 
कोठे सुखदियाँ तोरियाँ 
कोठड़े उत्थे कोठड़ा माही 
कोठे सुखदियाँ तोरियाँ 
कल्लियाँ रातां जाग के असां 
गिनियाँ तेरियां दूरियां 

छत के ऊपर जो छत है वहाँ कल सब्जियाँ सुखाई जा रही थीं वहीं रात में उसी छत पर मैं अकेले जागती हुई सोच रही थी कि तुम मुझसे कितनी दूर हो।
कोठड़े उत्थे कोठड़ा माही
कोठे बैठा कां भला
कोठड़े उत्थे कोठड़ा माही
कोठे बैठा कां बलां
मैं बन जावां माछली तू
बगला बन के आ भला वे
चन कित्थाँ गुज़ारी आयी रात वे.. 
छत के ऊपर जो छत है वहाँ एक कौआ बैठा था और मैं ये सोच रही थी कि काश मैं मछली बन जाती और तुम बगुला बन कर आते और मुझे उठा कर अपने देश में ले जाते।
पाकिस्तान से ताल्लुक रखने वाले 38 वर्षीय अली सेठी पहली बार सुर्खियों में 2009 में आए थे जब उन्होंने The Wish Maker  नाम की एक किताब लिखी थी। उनकी किताब को वो सफलता तो नहीं मिली जिसकी उन्हें  उम्मीद थी।  उसके बाद पिछले एक दशक से संगीत की ओर उनका गंभीरता से झुकाव हुआ। चन कित्थाँ गुज़ारी  रात वे  तो 2017 में लोकप्रिय हुआ पर फिलहाल कोक स्टूडियो में उनका गाया हुआ पसूरी इंटरनेट पर छाया हुआ है। 

इस गीत में भी साद सुल्तान के साथ मिलकर जो उन्होंने माहौल रचा है वो दिल को सुकून पहुँचाता है। गिटार और ढोलक के साथ बीच में बजती बीन खासतौर पर ध्यान खींचती है। अली सेठी की आवाज़ में इस लोक गीत में छुपा दर्द सजीव हो उठता है। तो कभी सुनिए इस गीत को अकेले छत पर बैठे हुए चाँद तारों के साथ और याद कीजिए अपने किसी करीबी को जिससे आप वर्षों से ना मिल पाए हों..
 

 इस गीत को पुष्पा हंस और उसके बाद सुरिंदर कौर ने एक अलग अंदाज़ में गाया था। सुरिंदर कौर को भी सुन लीजिए..

 
 

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