जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वार्षिक संगीतमाला 2024 के 25 बेहतरीन गीतों की फेरहिस्त में आज बारी है उस गीत की जिसे संगीतबद्ध किया एक बार फिर से संगीतकार जोड़ी सचिन जिगर ने, लिखा भी पिछले गीत की तरह अमिताभ भट्टाचार्य ने पर आवाज़ (वो जो इस गीतमाला में पहली बार सुनाई देगी) है विशाल मिश्रा की। यह गीत है फिल्म स्त्री 2 का और यहां बात हो रही है खूबसूरती की।
हिंदी फिल्म जगत में नायिका की खूबसूरती पर तमाम गीत लिखे गए हैं। हर गीत में स्त्री की सुंदरता के बारे में नए नए विचार..नई-नई काव्यमय कल्पनाएं।
1968 में इन्दीवर ने फिल्म सरस्वतीचंद के गीतों के लिए बेहद प्यारे शब्द रचे थे। शुद्ध हिंदी में वर्णित उनका सौदर्य बोध सुनते ही बनता था। क्या मुखड़ा था ...चंदन सा बदन, चंचल चितवन धीरे से तेरा ये मुस्काना...मुझे दोष ना देना जगवालों, हो जाऊँ अगर मैं दीवाना.
इस गीत के अंतरे भी सौंदर्य प्रतिमानों से भरे पड़े थे । मसलन पहला अंतरा कुछ यूं था। ये काम कमान भंवे तेरी, पलकों के किनारे कजरारे...माथे पर सिंदूरी सूरज, होंठों पे दहकते अंगारे....साया भी जो तेरा पड़ जाए....आबाद हो दिल का वीराना। लगभग सत्तर सालों बाद भी ये गीत कानों में वैसी ही मिसरी घोल देता है।
नब्बे के दशक की शुरुआत में 1942 A Love Story फिल्म में जावेद अख्तर साहब का वह गीत आपको जरूर याद होगा जिसमें उन्होंने एक लड़की की खूबसूरती को इतने सारे बिंबों में बांधा था कि कहना ही क्या। वह गीत था एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा। उस गीत मैं एक कन्या की तुलना एक खिलते गुलाब, शायर के ख़्वाब, उजली किरण, वन में हिरण, चांदनी रात, सुबह का रूप, सर्दी की धूप जैसे 21 रूपकों से की गई थी। गाना सुनते हुए उस वक्त दिल करता था कि रूपकों का ये सिलसिला चलता रहे।
वैसे खूबसूरत शब्द को लेकर नीलेश मिश्रा ने फिर 2005 में फिल्म रोग के लिए लिखा कि खूबसूरत है वो इतना सहा नहीं जाता..कैसे हम ख़ुद को रोक लें रहा नहीं जाता....चांद में दाग हैं ये जानते हैं हम लेकिन....रात भर देखे बिना उसको रहा नहीं जाता
एम एम कीरावनी के संगीत और उदित नारायण की अदायगी ने तब इस गीत को खासी लोकप्रियता दिलवाई थी। पिछले साल अमिताभ भट्टाचार्य ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चौदहवीं पायदान के इस गीत के लिए क्या खूब लिखा कि
धूप भी तेरे रूप के सोने पे, कुर्बान हुई है तेरी रंगत पे खुद, होली की रुत हैरान हुई है तुझको चलते देखा, तब हिरणों ने सीखा चलना तुझे ही सुनके कोयल को, सुर की पहचान हुई है तुझसे दिल लगाए जो, उर्दू ना भी आए तो शख़्स वो शायरी करने लगता है कि कोई इतना खूबसूरत....कैसे हो सकता है?
अब कोयल और हिरण तो बेजुबान ठहरे वर्ना अमिताभ पर मानहानि का मुकदमा जरूर दायर करते। वैसे मजाक एक तरफ अमिताभ के लिखे बोलों में एक नयापन तो है ही जो सुनने में अच्छा लगता है।
सचिन जिगर यहां संगीत संयोजन में एक पाश्चात्य वातावरण रचते हैं जिसमें थिरकने की गुंजाइश रह सके हालांकि फिल्म की कहानी से इसका कोई लेना देना नहीं है। दरअसल ये गीत फिल्म के मूल कथानक के समाप्त होने के बाद आता है जहां वरुण धवन अतिथि कलाकार के रूप में पहली बार अपनी शक्ल दिखाते हैं। आजकल फिल्मी गीतों के बीच कोरस का प्रचलन बढ़ गया है। सचिन जिगर भी इसी शैली का यहां सफल अनुसरण करते दिखते हैं।
रही गायिकी की बात तो विशाल मिश्रा का गाने का अपना एक अलग ही अंदाज है। वह हर गाना बड़ा डूब कर गाते हैं। युवाओं का उनका ये तरीका भाता भी है। कबीर सिंह, एनिमल और हाल फिलहाल में सय्यारा में उनके गाए गीत काफी लोकप्रिय हुए हैं। ये अंदाज़ रूमानी गीतों पर फबता भी है पर बार बार वही तरीका अपनाने से एक एकरूपता भी आती है जिससे विशाल को सावधान रहना होगा।
तो आइए सुनते है ये गीत जिसे फिल्माया गया है राज कुमार राव, वरुण धवन और श्रद्धा कपूर पर
खूबसूरती पर तेरी, खुद को मैंने कुर्बान किया मुस्कुरा के देखा तूने, दीवाने पर एहसान किया खूबसूरती पर तेरी, खुद को मैंने कुर्बान किया मुस्कुरा के देखा तूने, दीवाने पर एहसान किया कि कोई इतना खूबसूरत, कोई इतना खूबसूरत कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकता है?
जो देखे एक बार को, पलट के बार-बार वो खुदा जाने, क्यों तुझे देखने लगता है सच बोलूं ईमान से, ख़बर है आसमान से हैरत में चांद भी तुझको तकता है कि कोई इतना खूबसूरत....कैसे हो सकता है?
चलते चलते तो मैं बस आदिल फ़ारूक़ी साहब का ये शेर अर्ज करना चाहूंगा कि
वार्षिक संगीतमाला की 15वें पायदान पर विराजमान इस अगले रूमानी गीत को लिखा है अमिताभ भट्टाचार्य ने। Dev D और आमिर जैसी फिल्मों से अपना लगभग दो दशकों का फिल्मी सफ़र तय करने वाले अमिताभ आज के युग के शैलेन्द्र कहे जा सकते हैं। सहज बोलों से जादू पैदा करना उनकी फितरत रही है। हालांकि वो फिल्म उद्योग में एक गीतकार नहीं बल्कि एक गायक बनने आए थे।
गायक के रूप में वो अपने आप को स्थापित तो नहीं कर पाए पर उसी संघर्ष के दौरान मिले गीत लिखने के मौकों से उनके मन में ये विश्वास जगा कि वो एक सफल गीतकार बन सकते हैं। शुरुआती दिनों में गायिकी का सपना उनके मन में इतना जोर मारता था कि वो गीत लिखते वक्त अपना नाम इंद्रनील रख लेते थे ताकि लोग उन्हें सिर्फ बतौर गायक जानें। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया के इस गीत "तुम से..." को भी उन्होंने इंद्रनील के नाम से लिखा है। पर आज जब वो लोकप्रियता की ऊंचाइयों पर हैं तो उनके द्वारा इस नाम को अपनाने का कारण कुछ दूसरा है।
उन्होंने ऐसा फैसला किया है कि जिस फिल्म में सारे गीत उनसे नहीं लिखवाए जाएंगे उसमें वो अपना असली नाम नहीं देंगे।
अमूमन मैं ज्यादा फिल्में नहीं देखता पर संयोगवश ये ओटीटी पर देख ली थी। शाहिद कपूर यहां एक ऐसी कन्या के प्यार में पड़े है जो कि एक सामान्य मनुष्य नहीं बल्कि रोबोट है। हालांकि इस गीत से शायद ही आपको इस फिल्म की अलग सी प्रेम कथा का अनुमान मिलेगा।
इसका एक कारण ये भी है कि संगीतकार सचिन जिगर ने अमिताभ से ये गीत फिल्म बनने के पहले ही लिखा लिया था। उन्होंने इस गीत को गवाया युवा गायक वरुण जैन से जिनकी आवाज़ से इस गीत माला में शामिल पिछले गीत से आप रूबरू हो चुके हैं। अलीगढ़ से ताल्लुक रखने वाले वरुण अपनी गायिकी में बहुत कुछ अरिजीत की याद दिला जाते हैं। जिस तरह से उनके गाए चुनिंदा गीत फिल्मों में हिट हो रहे हैं उससे स्पष्ट है कि लोग उनकी आवाज़ को पसंद कर रहे हैं। हालांकि लंबे समय तक संगीतप्रेमी उन्हें याद रखें उसके लिए ये जरूरी होगा कि वो अपना एक अंदाज़ विकसित करें।
वरुण से जब बचपन में पूछा जाता था कि बड़े होकर क्या बनोगे तो उनका एक ही जवाब होता था कि मैं सिंगर बनेगा हालांकि उसे छोटी उम्र में उन्हें यह भी नहीं मालूम था कि सिंगर बनना का मतलब क्या है और सिंगर कैसे बना जाता है।
वरुण बचपन में पोगो चैनल काफी देखा करते थे और उनमें जो कार्यक्रम आते थे जैसे नोडी का किरदार उन्हें बहुत पसंद था तो नोडी जो भी गाता था वह उसके साथ गाते थे। ऐसे तो घर में संगीत का कोई ऐसा माहौल नहीं था पर यह जरूर था कि वरुण के दादाजी गाते और लिखते भी थे। उसका असर वरुण पर जरूर पड़ा। वरुण को फिल्मों में गाने का मौका सबसे पहले सचिन जिगर ने ही दिया था और इस गीत को भी गाते हुए उनका ब्रीफ यही था कि इसके खूबसूरत बोलों को जितना दिल लगा कर गा सकते हो उतना कोशिश करो और वरुण ने क्या खूबसूरत कोशिश की।
अलग तुझमें असर कुछ है कि दिखता नहीं मगर कुछ है फ़िदा हूँ मैं तो एक नज़र, बस एक नज़र बस एक नज़र तक के लगे भी तो ये और किधर, अब और किधर दिल संग तेरे लग के
सही वो भी लगे मुझको ग़लत तुझमें अगर कुछ है अलग तुझमें असर कुछ है
तुम से किरण धूप की तुम से सियाह रात है तुम बिन मैं बिन बात का तुम हो तभी कुछ बात है
तेरी ये सोहबत हुई मुझे नसीब है जब से थोड़ा तो बेहतर, ख़ुदा क़सम, हुआ हूँ मैं मुझसे है तू ही तू तसव्वुर में, है तू ही तू तसव्वुर में कहाँ अपनी ख़बर कुछ है, अलग तुझमें असर कुछ है, हो तुम से किरण धूप की...तुम हो तभी कुछ बात है
करिश्मे सच में होते हैं इस बात की तू मिसाल है सवालों का जवाब है या ख़ुद ही तू एक सवाल है? जितनी भी तारीफ़ करूँ मैं , वो कम है क़सम से, तू कमाल है, तू कमाल है
सचिन जिगर की रची इस गीत की मेलोडी मन को सुकून देती है खासकर तुम से किरण धूप की वाला हिस्सा तो बड़ा प्यारा लगता है। तो आइए आप भी सुनिए इस गीत को अगर आपने न सुना हो इसे अब तक
वार्षिक संगीतमाला में शामिल आज का ये गीत शायद ही आपने न सुना हो क्योंकि पिछले साल एफएम रेडियो पर खूब बजा और यू ट्यूब पर भी करोड़ों लोगों की पसंद बना। दरअसल हर फिल्म में एक ऐसा गीत रखने की कोशिश होती है कि जो फिल्म रिलीज़ के पहले ही इतनी लोकप्रियता अर्जित कर ले कि लोग उसे पर्दे पर देखने के लिए सिनेमाघरों में खिंचे चले जाएं।
संगीतमाला की इस पायदान पर के संगीतकार हैं सचिन जिगर। सचिन यानि सचिन संघवी और जिगर यानि जिगर सरैया की ये जोड़ी फिल्म जगत में ये पिछले डेढ़ दशक से सक्रिय हैं। पहले संगीतकार राजेश रोशन और फिर प्रीतम के लिए काम करने के बाद हिंदी फिल्म संगीत में इन्होंने स्वतंत्र रूप से काम करना शुरु किया।
शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लिये हुए सचिन के मन में संगीतकार बनने का ख्वाब ए आर रहमान ने पैदा किया। सचिन रोज़ा में रहमान के संगीत संयोजन से इस क़दर प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि मुझे भी यही काम करना है। अपने मित्र अमित त्रिवेदी के ज़रिए उनकी मुलाकात ज़िगर से हुई। दो गुजरातियों का ये मेल एक नई जोड़ी का अस्तित्व ले बैठा।
सचिन जिगर की जोड़ी को विश्वास था कि ज़रा हटके ज़रा बचके फिल्म के लिए बनाई उनकी इस धुन और अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे बोलों में ये बात है, बस वो एक ऐसा गायक लेना चाहते थे जो इस धुन और बोलों को अपनी गायिकी से जनता के हृदय में ले जा सके।
अब इस काम के लिए अरिजीत सिंह से बेहतर गायक कौन हो सकता था? वैसे भी सचिन जिगर की इस गुजराती संगीतकार जोड़ी का अरिजीत से पुराना राब्ता रहा है। अरिजीत ने अपने शुरुआती दौर में जब प्रीतम के लिए सहायक की भूमिका निभाई थी तब सचिन जिगर वहां अरेंजर हुआ करते थे।
सचिन जिगर ने संगीतकार के साथ गायक की भी भूमिका कई बार निभाई है पर जब जिक्र अरिजीत का होता है तो वो हमेशा उनकी प्रतिभा और विनम्रता की प्रशंसा करते नहीं थकते। उनका कहना है कि अरिजीत अपनी आवाज़ की बनावट में परिवर्तन करना जानते हैं। उनसे आप किसी तरह के भी गाने गवा सकते हैं। कंपोजर तो हैं ही। और इतना सब होते हुए भी वे व्यवहार में उतनी ही सहजता के साथ सबसे पेश आते हैं। इसीलिए उनके साथ काम करना किसी भी संगीतकार के लिए यादगार पल होता है। उनके हिसाब से तू है तो मुझे और क्या चाहिए में अरिजीत की गायिकी खिल के बाहर आई है।
अमिताभ का लिखा मुखड़ा सचिन जिगर की धुन के साथ जल्द ही जुबां पर चढ़ता है। मुखड़े के अलावा मुझे इस गीत की सबसे प्यारी पंक्ति ज़ख्मों को मेरे मरहम की जगह बस तेरा छुआ चाहिए लगती है।
वाद्य यंत्रों में सचिन जिगर ने बांसुरी और गिटार का प्रमुखता से किया है पर गीत की जान सचिन जिगर की धुन और अरिजीत की गायिकी ही है।
बदले तेरे माही, ला के जो कोई सारी दुनिया भी दे दे अगर तो, किसे दुनिया चाहिए तू है तो मुझे, फिर और क्या चाहिए तू है तो मुझे, फिर और क्या चाहिए किसी की ना मदद, ना दुआ चाहिए तू है तो मुझे फिर और क्या चाहिए सौ बार जनम लूं तो भी तू ही हमदम हर दफा चाहिए
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
वार्षिक संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर पिछले गीत की तरह ही एक बार फिर हल्का फुल्का गीत है जो कि पिछले साल खूब पसंद किया गया। फिल्म है ज़रा हटके ज़रा बचके और गाना तो आप समझ ही गए होंगे "तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा..."।
हिंदी फिल्मों में तो चाँद सितारों को तोड़ के लाने की बातें पहले भी हुई हैं। शाहरुख खाँ पर फिल्माया एक गाना चाँद तारे तोड़ लाऊँ बस इतना सा ख़्वाब है.... तो आपको याद ही होगा। पर जब प्रेम का ही प्रदर्शन करना है तो इतनी तोड़ फोड़ क्यूँ करनी? इसीलिए गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने इस बार जुमला बदला और लिखा ..तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाउँगा, सोलह सत्रह सितारे संग बाँध लाउँगा🙂
तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाउँगा
सोलह सत्रह सितारे संग बाँध लाउँगा
चाँद तारों से कहो, अभी ठहरें ज़रा
चाँद तारों से कहो कि अभी ठहरें ज़रा पहले इश्क़ लड़ा लूँ उसके बाद लाउँगा हम हैं ज़रा हट के, जनाब-ए-आली रहना ज़रा बच के....
पर इस गीत की खासियत ये नहीं कि वादा क्या किया जा रहा है। खासियत ये है कि वादे से किस खूबसूरती से पलटा जा रहा है। अमिताभ आगे लिखते हैं
देखा जाए तो वैसे, अपने तो सारे पैसे रह के ज़मीन पे ही वसूल हैं चेहरा है तेरा चंदा, नैना तेरे सितारे अंबर तक जाना ही फ़िज़ूल है
अंबर तक जाना ही फ़िज़ूल है
इसके बाद भी अगर तुझे चैन ना मिले पूरी करके मैं तेरी ये मुराद आउँगा तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाउँगा सोलह सत्रह सितारे संग बाँध लाउँगा
अगर ये काबिलियत आप में आ गयी तो प्रेम से लेकर राजनीति सारे समीकरण अपके पक्ष में ही बैठेंगे। सचिन जिगर ने ताल वाद्यों और गिटार के साथ एक फड़कती सी धुन बनाई है जिस पर आप नायक नायिका की तरह आसानी से ठुमके लगा सकते हैं।
पहली बार जब मैंने इस गीत को सुना तो लगा कि ये गाना भी अरिजीत ने गाया होगा पर बाद में पता चला कि गवैया तो कोई और है। दरअसल इस गीत को गाया है युवा गायक वरूण जैन ने। अरिजीत की गायिकी का उन पर स्पष्ट प्रभाव है। मैंने जब उनके गाए पिछले गानों को खँगाला तो पाया कि उन्होंने इससे पहले अरिजीत के गीतों के कई कवर वर्जन गाए हैं।
वैसे इसके दो साल पहले उन्हें फिल्म हम दो हमारे दो में रेखा भारद्वाज जैसी हुनरमंद गायिका के साथ गाने का मौका मिल चुका है। पर तेरे वास्ते ने उनकी गायिकी को गुमनामी के अंधेरों से निकाल कर सबके सामने ला दिया है।
इस गीत की सफलता के बाद वरुण ने कहा है कि लोगों की अपेक्षाएँ उनसे और बढ़ गयी हैं और अपने संगीत के प्रति वे पहले से ज्यादा जिम्मेदार हो गए हैं। आशा है वो आगे भी अपनी आवाज़ से श्रोताओं का दिल जीतते रहेंगे।
देखने से लगते तो नहीं पर 34 वर्षीय वरुण की आवाज़ में एक ताज़गी है। अपने म्यूजिक वीडियोज़ वे बिल्कुल सादा लिबास में बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ गिटार लिए मिलेंगे।
गीत के कोरस में वरूण का बखूबी साथ दिया है जिगर सरैया और फरीदी बंधुओं ने। तो आइए सुनते हैं ये मज़ेदार गीत
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
जैसा मैंने पहले भी आपको बताया कि इस बार की वार्षिक संगीतमाला में गीत बिना किसी क्रम यानी रैंकिंग के बज रहे हैं। मेरी कोशिश है कि हर मूड के गीत को बारी बारी से पेश करूँ। राताँ लंबियाँ सुनकर आप जहाँ झूम उठे थे, वहीं जीतेगा जीतेगा में एक जोश पैदा करनी की ताकत थी जबकि पिछली पोस्ट दिल उड़ जा रे में नायिका के मन की मायूसी गीत में उभर कर आई थी। मायूसी के बादलों से बाहर निकलते हुए आज बारी है रूमानियत की नदी में गोते लगाने की एक प्यारी सी सोच के साथ।
आज का गीत है फिल्म रूही से जिसकी भूत प्रेत वाली कहानी के बारे कुछ ना ही कहा जाए तो बेहतर रहेगा क्यूँकि बहुत लोगों को ये अझेल लगी थी। फिल्म का आइटम नंबर नदियों पार सजन दा थाना ही सिर्फ प्रमोट किया गया था। यही वज़ह थी कि सचिन जिगर का इतना प्यारा सा नग्मा आसान किस्तों में तू प्यार कर अनसुना ही रह गया।
बड़ा खूबसूरत संयोजन किया है सचिन जिगर ने इस गीत की शुरुआत में। पियानो के आंरंभिक नोट्स और फिर वॉयलिन की खूबसूरत बयार जो कि अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे बेहतरीन शब्दों के साथ गीत का रोमांटिक मूड तय कर देती है।
जीवन में जब कोई चीज़ हमें बेहद पसंद आती है तो हम कोशिश करते हैं कि देर तक उसका लुत्फ उठाते रहें। अपनी कहूँ तो बचपन में जब मेहमान आते थे तभी घर में शर्बत बनता था और मैं उसे घूँट घूँट कर पीता था ताकि जीभ पर उसका स्वाद देर तक बना रहे। अमिताभ ने वही बात प्रेम रूपी शर्बत के लिए कही है। अपने प्रियतम के लिए तो मन में ढेर सारी भावनाएँ उमड़ती घुमड़ती रहती हैं। उनको एक साथ प्रकट कर खाली हो जाएँगे तो फिर प्यार करने का क्या आनंद? प्रेम में जितना ज्यादा कहा उससे कहीं ज्यादा अनकहा रह जाता है और उसे समझने बूझने की मन की वर्जिश जीवन में रस घोलती रहती है। इसीलिए अमिताभ कहते हैं
छुप छुप के दिलबर का दीदार कर
ऐ दिल तू आहिस्ता इज़हार कर
सारा का सारा ना करना अभी से
आसान किस्तों में तू प्यार कर
छुप छुप के दिलबर का दीदार कर
ऐ दिल तू आहिस्ता इज़हार कर
पगले, सारा का सारा ना करना अभी से
आसान किस्तों में तू प्यार कर
पहले निभा के देखी है तूने
मँहेगी मोहब्बत विलायती
पड़ जाए जिसमें लेने का देना
घाटे का सौदा निहायती
करना अगर ही है तू प्यार करले
सस्ता स्वदेशी किफायती
पहले तू जितना लापरवाह था
उतना संभल के ही इस बार कर
पगले, सारा का सारा ना करना अभी से
आसान किस्तों में तू प्यार कर
अंतरे में सचिन जिगर वॉयलिन के साथ बाँसुरी का मधुर इस्तेमाल करते हैं पर अंतरे के बाद गीत अचानक से खत्म हो जाता है तो लगता है कि शायद गीत का एक और अंतरा होता तो कितना अच्छा होता। जुबीन नौटियाल की आवाज़ में पहली बार सुनकर ही ये गाना गुनगुनाने का मन हो आया। अगर आपको भी मुलायम रूमानी संगीत पसंद है तो इस गाने का जरूर सुनिए और अपने दिलवर को भी सुनाइए..
वार्षिक संगीतमाला में अब है शुरुआती पन्द्रह गीतों की बारी। यकीन कीजिए यहाँ से पहली पॉयदान तक का सफ़र बड़ा मज़ेदार होने वाला है। पन्द्रहवीं पॉयदान का गीत वो जिसे एक बार सुनकर ही आप थिरकने पर मजबूर हो जाएँगे। ये गीत है फिल्म अंग्रेजी मीडियम का जो अभिनेता इरफान खान की आख़िरी फिल्म थी। इरफान इस फिल्म में एक ऐसे पिता का रोल निभा रहे थे जिसकी बेटी का सपना हर हाल में विदेश जाकर पढ़ाई करने का है।
मार्च में सिनेमा हॉल और फिर कोरोना काल में फिर से ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज़ हुई ये फिल्म अपनी पूर्ववर्ती हिंदी मीडियम की तरह उतनी सफल नहीं हो पाई पर इसके कुछ गाने खासे लोकप्रिय हुए जिसमें कुड़ी नूँ नचने दे का जलवा अपनी आकर्षित करती धुन और गीत में निहित संदेश की वज़ह से फिल्म के प्रदर्शित होने के महीनों बाद भी बरक़रार है।
ये गीत अंग्रेजी मीडियम की नायिका का ही नहीं बल्कि उन सारी लड़कियों की आवाज़ बन गया जिन्होंने अपने जीवन के लिए कुछ सपने देखे हैं और उनको मूर्त रूप देने के लिए अपनी सोच और मन मुताबिक राह चुनना चाहती हैं। अंग्रेजी मीडियम के इस गीत को संगीतबद्ध किया सचिन जिगर की जोड़ी ने।
सचिन जिगर सिमरन बदलापुर, भूमि, हैप्पी एंडिंग, मेरी प्यारी बिंदु, शुद्ध देशी रोमांस और शोर इन दि सिटी जैसी फिल्मों के गीतों के ज़रिए पिछले एक दशक से एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं में दस्तक देते रहे हैं। अंग्रेजी मीडियम के इस गीत को उन्होंने एक ऐसी धुन में ढाला है जिसे एक बार सुनकर ही मन झूम उठता है। जिगर की पत्नी और गीतकार प्रिया सरैया ने पंजाबी बोलों की सरलता बनाए रखी है ताकि उसके भाव आम जनता को भी आसानी से समझ आ सकें। लड़कियों को अपने मन की करने की आज़ादी के लिए प्रेरित करते इस गीत में अपनी दमदार आवाज़ से उर्जा भरी है विशाल ददलानी ने।
हो मीठी-मीठी सी ये मुनिया सर पे डाले है ये चुनिया क्यूँ..हाँ क्यूँ हो सोणी-सोणी सी कुड़ी नूँ मौज में रहने दे ना दुनियाँ क्यूँ, हाँ दुनियाँ क्यूँ है किन्नी शानदार कुड़ी ये कर देगी कमाल इसे झूमने दे अपनी बीट ते, कुड़ी नूँ नचने दे, हाँ नचने दे तू आज लगाने दे ठुमके हाँ जमके कुड़ी नु नचने दे हाँ नचने दे तू सारियाँ फ़िकरां नूँ छड के बन-ठन के कुड़ी नूँ नचने दे, नचने दे हाँ नचने दे, नचने दे तू आज लगाने दे ठुमके हाँ जमके, कुड़ी नूँ नचने दे...बन-ठन के
हो वड्डी-वड्डी बात तेरी छोटी-छोटी सोच क्यूँ है जी, ओहो पाजी हो उखड़े-उखड़े क्यूँ खड़े जी हँस दो तो, हँस देगी दुनिया भी, हाँ हाँ हाँ जी हो आये जो ऑन द फ्लोर कुड़ी तो खूब मचाये शोर तू भी झूम लेना इसकी बीट पे कुड़ी नूँ नचने दे...बन-ठन के
इस गीत की एक खास बात ये है कि इसमें एक दो नहीं बल्कि आठ अभिनेत्रियाँ आपको एक ही गीत में नज़र आएँगी। इन नामी सिनेतारिकाओं द्वारा लॉकडाउन में अपने अपने घरों के आसपास शूट किए गए टुकड़ों को निर्देशक होमी अदजानिया ने इस खूबसूरती से पिरोया है कि देखने वाला गीत गुनगुनाने के साथ इन नायिकाओं के साथ ही थिरकने पर मजबूर हो जाता है। आलिया भट्ट, अनुष्का शर्मा, कैटरीना कैफ़, अनन्या पांडे, जान्ह्वी कपूर, कियारा आडवाणी, कृति सैनन के साथ राधिका मदान ने अपने रचनात्मक नृत्य के ज़रिये इस गीत को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
आशा है ये गीत सुन और देख कर आप भी उतने ही आनंदित होंगे जितना मैं हुआ हूँ..
वार्षिक संगीतमाला का ये सिलसिला अब अपनी समाप्ति की ओर बढ़ रहा है और अब बची हैं आख़िरी की चार पायदानें। ये चारों गीत मेरे दिल के बेहद करीब हैं और अगर आप नए संगीत पर थोड़ी भी नज़र रखते हैं तो इनमें से कम से कम दो गीतों को आपने जरूर सुना होगा। आज का गीत है फिल्म मेरी प्यारी बिन्दु से जिसे पिछले साल काफी सुना और सराहा गया।
चौथी पायदान के इस गीत को गाया है एक कुशल अभिनेत्री ने जिनकी फिल्मों में की गयी अदाकारी से आप भली भांति परिचित होंगे। पिछले कुछ सालों में करीना कपूर, श्रद्धा कपूर, आलिया भट्ट और प्रियंका चोपड़ा की आवाज़ें फिल्मी गीतों में आप सुन चुके हैं। इस सूची में नया नाम जुड़ा है परिणिति चोपड़ा का जो अपनी चचेरी बहन प्रियंका चोपड़ा की तरह ही संगीत की छात्रा रही हैं। संगीत में स्नातक, परिणिति पढ़ाई में हमेशा अव्वल रहा करती थीं और एक बैंकर बनने के लिए विदेश में पढ़ाई भी कर चुकी थीं। पर संयोग कुछ ऐसा बना कि वो यशराज फिल्म के PRO में काम करते करते अभिनेत्री बन बैठीं।
यूँ तो चोपड़ा परिवार व्यापार से संबंध रखता है पर उनके पिता और घर के अन्य लोग भी गायिकी में दिलचस्पी रखते रहे। इसीलिए जब फिल्म के निर्माता, निर्देशक और संगीतकार की तरफ़ से उन्हें फिल्म के सबसे अहम गीत को गाने का मौका मिला तो उनके मन में वर्षों से दबी इच्छा फलीभूत हो गयी।
परिणिति अपने गायन को लेकर कितनी गंभीर थीं इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उन्होंने इस गीत को अंतिम रूप से गाने के पहले घर में भी लगभग तीन महीने रियाज़ किया और फिर स्टूडियो में आयीं। भले ही वो अन्य पार्श्व गायिकाओं की तरह पारंगत नहीं है पर उनकी गहरी आवाज़ गीत की भावनाओं के साथ न्याय करती दिखती है ।
इस गीत को लिखा है कौसर मुनीर ने जो सीक्रेट सुपरस्टार में भी इस साल बतौर गीतकार की भूमिका निभा चुकी हैं। ये साल महिला गीतकारों के लिए बेहतरीन रहा है और इस गीतमाला के करीब एक चौथाई गीतों को युवा महिला गीतकारों अन्विता दत्त, प्रिया सरैया और कौसर मुनीर ने लिखा है। यहाँ तक कि प्रथम दस गीतों में तीन में वे अपना स्थान बनाने में सफल रही हैं।
इस गीत की खासियत ये है कि इसे पहले लिखा गया और फिर इसकी धुन बनाई गयी। मेरी प्यारी बिन्दु का ये पहला रिकार्ड किया जाने वाला गाना था। कौसर ने जब गीत का मुखड़ा सुनाया तो वो एक बार में ही संगीतकार सचिन जिगर और फिल्म के निर्देशक अक्षय राय से स्वीकृत हो गया। ये गीत फिल्म के अंत में आता है जब नायक और नायिका एक दूसरे के प्रेम में पड़ने और बिछड़ने के कई सालों बाद एक बार फिर मिलते हैं। अब दोनों के रास्ते जुदा हैं पर दिल में एक दूसरे के लिए जो स्नेह है वो ना तो गया है और ना ही जाने वाला है। कौसर को इन्हीं भावनाओं को लेकर एक गीत रचना था।
जब भी मैं इस गीत के मुखड़े और अंतरों से गुजरता हूँ तो अंग्रेजी के एक प्रचलित शब्द Self Denial यानि आत्मपरित्याग की याद आ जाती हैं। आख़िर हम इस अवस्था में कब आते हैं? तभी ना जब हम अपनी भावनाओं को छुपाते हुए प्रकट रूप से वो करते हैं जो हमारे साथी की वर्तमान खुशियों और सामाजिक परिस्थितियों के अनुरूप बैठता है। अब ये दो प्रेमियों का Self Denial mode ही है जो प्यार और यारी होते हुए भी कौसर से कहलाता है कि माना कि हम यार नहीं, लो तय है कि प्यार नहीं। पर ये तो सबको दिखाने की बात है अंदर से ना कोई बेज़ारी है और ना ही एक दूसरे से मिले बगैर क़रार आता है।
माना कि हम यार नहीं, लो तय है कि प्यार नहीं फिर भी नज़रें ना तुम मिलाना, दिल का ऐतबार नहीं माना कि हम यार नहीं.. रास्ते में जो मिलो तो, हाथ मिलाने रुक जाना हो.. साथ में कोई हो तुम्हारे, दूर से ही तुम मुस्काना लेकिन मुस्कान हो ऐसी कि जिसमे इकरार नहीं नज़रों से ना करना तुम बयाँ, वो जिससे इनकार नहीं माना कि हम यार नहीं.. फूल जो बंद है पन्नों में, तुम उसको धूल बना देना बात छिड़े जो मेरी कहीं तुम उसको भूल बता देना लेकिन वो भूल हो ऐसी, जिससे बेज़ार नहीं तू जो सोये तो मेरी तरह, इक पल को भी क़़रार नहीं माना कि हम यार नहीं..
इस गीत का सबसे मजबूत पहलू है सचिन जिगर की धुन जो जिसे सुनते ही मन करता है कि आँखें बंद कर के उसकी मधुरता का आनंद लेते रहो। गीत के आरंभ में बजती कर्णप्रिय धुन अंतरों में भी दोहराई जाती है। सचिन जिगर दरअसल फिल्म के इस माहौल के लिए इक ग़ज़ल संगीतबद्ध करना चाहते थे पर निर्माता के कहने पर उसे एक गाने की शक़्ल में तब्दील करना पड़ा और ये परिवर्तित रूप अंत में श्रोताओं को काफी पसंद आया। इस गीत के दूसरे रूप में परिणिति को सोनू निगम की आवाज़ का भी साथ मिला है।
पिछला साल संजय दत्त के फिल्म उद्योग में वापसी का साल था और उनकी वापसी हुई थी फिल्म भूमि के साथ। फिल्म और उसका संगीत, समीक्षको और जनता दोनों को ही पसंद नहीं आया। फिल्म तो मैंने नहीं देखी पर इसका एक गीत मुझे बेहद कर्णप्रिय लगा। इस गीत की खास बात है कि संगीतकार सचिन जिगर की जोड़ी के एक स्तंभ सचिन संघवी ने इस गीत को अपनी आवाज़ दी है।
इस गीत का संगीत संयोजन कह लें या सचिन की बहती आवाज़ का जादू कि इस गीत को सुन के मन एक सुकून से भर उठता है। आश्चर्य की बात है कि पिछले एक दशक में दर्जनों फिल्में संगीतबद्ध करने के बाद भी ये पहला मौका है जब एकल स्वर में सचिन ने आपनी आवाज़ दी है। उनकी इस पहली कोशिश को फिल्मफेयर ने भी शानदार पार्श्व गायन के लिए नामित किया और ये भी उनके लिए फक्र की बात होगी।
जैसा कि मैं पहली भी सचिन जिगर से जुड़े आलेखों में बता चुका हूँ कि शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लिये हुए सचिन के मन में संगीतकार बनने का ख़्वाब ए आर रहमान ने पैदा किया। सचिन रोज़ा में रहमान के संगीत संयोजन से इस क़दर प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि मुझे भी यही काम करना है। अपने मित्र अमित त्रिवेदी के ज़रिए उनकी मुलाकात जिगर से हुई। दो गुजरातियों का ये मेल एक नई जोड़ी का अस्तित्व ले बैठा।
सचिन जिगर का भूमि के इस गाने के लिए किया संगीत संयोजन संजय लीला भंसाली के रचे गीतों आयत और लाल इश्क़ की याद दिला देता है। सचिन जिगर ने संभवतः इस गीत के संगीत संयोजन में राग यमन का प्रयोग किया है। ताल वाद्यों के साथ गिटार, बाँसुरी और हल्के हल्के बजे मँजीरे की संगत में सचिन की लहराती आवाज़ के साथ मन गीत की दुनिया में खो जाता है।
आदमी जब किसी की मोहब्बत की गिरफ्त में होता तो उसका "मैं" "हम" में तब्दील हो जाता है क्यूँकि वो अपने वज़ूद की कल्पना अपने प्रियतम से अलग रहकर नहीं कर सकता। मुझे मीर को वो शेर याद आता है जिसे फिल्म बाजार में लता जी ने अपनी आवाज़ से सँवारा था। मीर ने वहाँ कहा था दिखाई दिए यूँ कि बेख़ुद किया..मुझे आप से जुदा कर चले.. उसी भाव को प्रिया सरैया जो इस गीत की गीतकार और जिगर की अर्धांगिनी भी हैं मुखड़े में कुछ यूँ बयाँ करती हैं खो दिया है मैंने खुद को जबसे हमको है पाया .. रूठा है रब, छूटा मज़हब छूटा है ये जग सारा।
गीत के अंत में बड़ा खूब प्रश्न किया है उन्होंने कि इश्क़ और दरिया में किसकी गहराई ज्यादा है? वैसे इस सवाल का उत्तर तो एक बार प्रेम में डूब कर ही पता चल सकता है। डूबने की बात पर अमज़द इस्लाम अमज़द साहब का लिखा ये शेर याद आ रहा है
जाती है किसी झील की गहराई कहाँ तक? आँखों में तेरी डूब के देखेंगे किसी दिन..
तो जब तक मैं इस शेर में डूबा हूँ आप इस गीत में डूबकर देख लीजिए..
खो दिया है मैंने ख़ुद को जबसे हमको है पाया रूठा है रब, छूटा मज़हब छूटा है ये जग सारा खो दिया है मैंने खुद को ... मेरे प्यार को ना समझ ये गलत आ.. आ.. इन निगाहों का तेरी ही तो कायल हूँ मैं उम्र भर.. मैं तुझे.. उम्र भर मैं तुझे देखता ही रहूँ इस ख़ता की हर सजा मंज़ूर है खो दिया है मैंने ख़ुद को ... तू दरिया तो मैं इश्क़ हूँ कुछ देर मुझसा बन के तो देख कौन कितना गहरा है मुझमे जरा.. जरा डूब के तो देख
सचिन जिगर का नाम एक शाम मेरे नाम की संगीतमालाओं के लिए नया नहीं रहा है। पिछले पाँच छः सालों से वो बराबर अपने रचे संगीत के दम पर वार्षिक संगीतमालाओं में अपना स्थान बनाते रहे हैं। इससे पहले बदलापुर, हैप्पी एंडिंग, शुद्ध देशी रोमांस , शोर इन दि सिटी और इसक जैसी फिल्मों के गीतों ने उनके संगीत की ओे मेरा ध्यान आकर्षित किया था। 2016 उनके लिए कोई खास अच्छा साल नहीं था पर 2017 में उन्होंने जबरदस्त वापसी की है और उनके तीन गीत शुरुआती दर्जन भर पायदानों का हिस्सा बने हैं। बाकी के दो गीत कौन से हैं ये तो आपको बाद में पता चलेगा ही पर आज उनके रचे जिस गीत की बात कर रहा हूँ वो है फिल्म सिमरन का जिसके बोल लिखे हैं प्रिया सरैया ने और गाया है अरिजीत सिंह ने।
सचिन जिगर की खासियत है कि वो बड़े बैनरों के पीछे नहीं भागते। उन्होंने कम बजट की कई फिल्मों में अपना योगदान दिया है जो कभी सफल तो कभी असफल होती रही हैं। पिछले साल सितंबर में रिलीज़ हुई सिमरन भी एक ऐसी ही फिल्म थी जो ज्यादा तो नहीं चली पर कंगना के अभिनय और संगीत के लिए सराही गयी। सिमरन के ज्यादातर गीत तो फिल्म की परिस्थितियों से पनपे हैं पर मीत एक ऐसा रोमंटिक गीत है जिसे आप फिल्म से इतर भी सुनें तो भी आप इससे अपने को जोड़ पाते हैं।
इस गीत में सचिन जिगर का संगीत संयोजन मुख्यतः गिटार और बाँसुरी में सिमटा हुआ है और शब्दों के बीच बहता हुआ मन को एक शांति, इक सुकून सा दे जाता है। इस गीत की खासियत है इसकी मधुरता और प्रिया के सहज पर जुबाँ पर शीघ्र चढ़ने वाले शब्द जिन्हें अरिजीत ने बड़े डूबकर गाया है। उनकी गायिकी में एक ईमानदारी है इसीलिए जब वो भावों को आपनी आवाज़ का पैरहन पहनाते हैं तो लगता है कि जो भी कहा जा रहा है सच्चे दिल से कहा जा रहा है।
प्रियतम के मिलने की तुलना जिस तरह प्रिया ने पहले कोरे काग़ज़ पर ग़ज़ल लिखने और फिर नर्म धूप से की है वो हृदय में एक मुलायम सा अहसास जगा जाती है। गीत का सबसे आकर्षक हिस्सा है इसका मुखड़ा जो गीत के सुनने के बाद भी होठों पर बना रहता है और आप उसे बार बार गुनगुना चाहते हैं तू ही मेरा मीत है जी, तू ही मेरी प्रीत है जी..जो लबों से हो सके ना जुदा, ऐसा मेरा गीत है जी।
तो आइए सुनते हैं. फिल्म सिमरन के इस गीत को .
कोरे से पन्ने, जैसे ये दिल ने, कोई गज़ल पायी पहली बारिश, इस ज़मी पे, इश्क ने बरसाई हर नज़र में, ढूँढी जो थी, तुझ में पाई वफ़ा जान मेरी बन गया तू ,जान मैंने लिया तू ही मेरा मीत है जी, तू ही मेरी प्रीत है जी जो लबों से हो सके ना जुदा, ऐसा मेरा गीत है जी तू ही मेरा मीत है.. ओ.. खोलूँ जो आँखें सुबह को मैं चेहरा तेरा ही पाऊँ ये तेरी नर्म सी धूप में अब से जहां ये मेरा सजाऊँ ज़रा सी बात पे जब हँसती, है तू ,हँसती है मेरी ज़िन्दगी तू ही मेरा मीत है जी .... गीत है जी. तू ही मेरा मीत है..
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
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