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रविवार, सितंबर 04, 2016

तुम मेरे पास रहो .. फ़ैज़ की दिलकश नज़्म नैयरा नूर की आवाज़ में Tum Mere Paas Raho : Nayyara Noor

आज से दस बारह साल पहले इंटरनेट में कविता ग़ज़लों को पसंद करने वाले कई समूह सक्रिय थे। प्रचलित भाषा में इन्हें बुलेटिन बोर्ड कहा जाता था। वैसे तो आज भी ये समूह हैं पर सोशल मीडिया के अन्य माध्यमों ने उनकी प्रासंगिकता खत्म कर दी है। ऐसी ही उर्दू कविता के समूह में फ़ैज़ की गज़लों पर चली एक कड़ी में मैंने "हम तो ठहरे अजनबी इतनी मदारातों के बाद... पहले पढ़ी और फिर सुनी थी। इस ग़ज़ल की वज़ह से ही मेरी पहचान नैयरा नूर की खूबसूरत गायिकी से हुई थी। फिर तो उनकी आवाज़ मुझे इतनी प्यारी लगी कि उनकी गायी कई अन्य मशहूर ग़ज़लें व नज़्में मुझे अपने दिल पे नाज़ था..., ऐ जज़्बा दिल गर मैं चाहूँ... , रात यूँ दिल में.... , कभी मैं खूबसूरत हूँ ... खोज खोज कर सुनी।

वैसे क्या आप जानते हैं कि लाहौर में पली बढ़ी नैयरा की पैदाइश भारत के शहर गुवहाटी में हुई थी। उनका परिवार अमृतसर से रोज़ी रोटी की तलाश में गुवाहाटी में बस गया था। जब भी उनसे अपने बचपन के दिनों के बारे में पूछा जाता वे गुवाहाटी की हरी भरी खूबसूरत पहाड़ियों के बीच बसे अपने घर  की बात जरूर बतातीं और साथ ही ये भी कि रात में उनके उस घर के बाहर सैकड़ों की तादाद में पतंगे  कैसे उमड़ पड़ते थे। पर उनके जन्म के छः सात साल  बाद उनका परिवार 1957 के करीब लाहौर चला गया। 

लाहौर में उनकी शिक्षा नेशनल आर्ट्स कॉलेज में हुई। कॉलेज के ज़माने में वे संगीत की हर प्रतियोगिता में हिस्सा लेतीं। ऐसी ही प्रतियोगिताओं में उनकी मुलाकात शहरयार ज़ैदी से हुई जो ख़ुद एक उभरते गायक थे। नैयरा ने संगीत का कोई प्रथम पुरस्कार भले ही शहरयार को लेने ना दिया हो पर अपना दिल वे  उनसे जरूर हार बैठीं।

नैयरा नूर  और फ़ैज़ , सामने हैं फैज़ की बेटी सलीमा हाशमी
सत्तर के दशक की शुरुआत में कॉलेज के कार्यक्रम में जब वो लता का गाया भजन जो तुम तोड़ो पिया ... गा रही थीं तब उनकी आवाज़ पर प्रोफेसर असरार का ध्यान गया। असरार संगीतविद्य होने के साथ एक कम्पोजर भी थे। असरार ने ना केवल नैयरा नूर को गाने के लिए प्रोत्साहन दिया बल्कि अपने संगीतबद्ध नग्मे भी उनसे गवाए। नैयरा ने अगले कुछ सालों में पाकिस्तान टेलीविजन के ड्रामों में अपनी आवाज़ दी पर उनकी आवाज़ को लोगों ने पहचानना तब शुरु किया जब फ़ैज साहब की ग़ज़लों के एक एलबम में उनके दामाद शोएब हाशमी ने नैयरा को मौका दिया।

नैयरा ने शास्त्रीय संगीत की बक़ायदा शिक्षा नहीं ली पर ऐसा उन्हें  सुनने से महसूस नहीं होता। नैयरा की गाई जिस नज़्म को आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ वो इसी एलबम की है। ग़ज़ब सी कशिश है इस नज़्म में जो हाशमी साहब के दावतखाने में एक टेपरिकार्डर सरीखे यंत्र पर रिकार्ड की गई थी।

रात के गहराते सायों में एकाकी मन जब काटने को दौड़ता है और धड़कता दिल गुजारिश करता है  उनके पास रहने की.. तो इस नज़्म की वादियों में मन ख़ुद ही भटक जाता है। आइए देखते हैं कि क्या कहते हैं फ़ैज़ इस नज़्म में..

तुम मेरे पास रहो
तुम मेरे पास रहो

तुम मेरे पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो
जिस घड़ी रात चले
जिस घड़ी रात चले
आसमानों का लहू पी के स्याह रात चले
मरहम-ए-मुश्क लिए नश्तर-ए-अल्मास लिए
बैन करती हुई, हँसती हुई, गाती निकले
दर्द के कासनी, पाज़ेब बजाती निकले


मुझे पूरी तरह चेतना शून्य करने वाले मेरे प्रिय मेरे पास रहो। जब आस्मां का  नीला लहू पी के ये रात स्याह हो जाती है, तो हीरे के नश्तर सी ये दिल में  चुभती है। इसकी नीली पायल मेरे  दर्द की आवाज़ बन जाती है। कभी विलाप करती, कभी हँसती, कभी गाती तो कभी अपनी सुगंध से दिल को मरहम लगाती इस रात में मैं तुम्हारी कमी महसूस करता हूँ। ऐसी रातों में तुम मेरे पास रहो।

जिस घड़ी सीनों में डूबे हुए दिल
आस्तीनों में निहाँ हाथों की,
राह तकने लगे, आस लिये
और बच्चों के बिलखने की तरह, क़ुल-क़ुल-ए-मय
बहर-ए-नासूदगी मचले तो मनाये न मने

जब कोई बात बनाये न बने
जब न कोई... बात चले
जिस घड़ी रात चले
जिस घड़ी मातमी, सुन-सान, स्याह रात चले
पास रहो

तुम मेरे पास रहो
तुम मेरे पास रहो
मेरे क़ातिल, मेरे दिलदार, मेरे पास रहो


जब तेरी यादों में दिल डूबता है, तब आस्तीनों में छुपे तुम्हारे बाहुपाश की आस दिल को बेचैन करती है। इस बेचैनी में गिलास में गिरती शराब का स्वर भी बच्चों के बिलखने जैसा लगता है।  किसी तरह भी मन इस नैराश्य से निकल नहीं पाता। ना कोई बात सूझती है ना दोस्तों से बात करने का मन करता है। और तुम हो कि ऐसी दुखभरी सुनसान अँधेरी रात में भी पास नहीं रहती । अब तो रहोगी ना?



नैयरा फ़ैज़ से जुड़ी अपनी यादों के बारे में कहती हैं कि जब मैं अपने सहगायकों के साथ रिकार्डिंग के लिए हाशमी साहब के घर पर होती तो फ़ैज़ साहब भी दूर बैठ कर हमें सुनते रहते। वैसे भी फ़ैज़ साहब को महफिलों में शिरक़त करना और दूसरों को सुनना पसंद था। उनकी चुप्पी तभी टूटती जब उनसे कोई राय माँगी जाती। जब भी हम कोई कठिन सुर लगाते तो कनखियों से फ़ैज़ साहब की ओर देखते और हमेशा हमें प्रोत्साहित करती मुस्कान उनके चेहरे पर होती। उन्हें देखकर हमें यही लगता कि वो भी हमारी गायिकी का पूरा आनंद उठा रहे  हैं ।

शहरयार से शादी के बाद अस्सी के दशक के उत्तरार्ध से नय्यारा ने अपने आप को घर परिवार तक सीमित कर दिया। वो कहती हैं कि पारिवारिक जिम्मेदारियों को वहन करते हुए संगीत से जुड़े अपने पेशे को ठहराव देने का उन्हें कोई मलाल नहीं है।   अपनी पोतियों से दादी का शब्द सुनना ही आज उनके लिए संगीत है।

मंगलवार, मार्च 06, 2012

होली के रंग इब्ने इंशा के संग : जले तो जलाओ गोरी, पीत का अलाव गोरी..

एक पाकिस्तानी शायर का गीत और वो भी होली के माहौल के अनुरूप । कुछ अटपटा सा नहीं लगता । बिल्कुल लगता अगर वो शायर इब्ने इंशा की जगह कोई और होते।

इब्ने इंशा को उनके गद्य और पद्य दोनों के लिए याद किया जाता है। जालंधर में जन्मे इब्ने इंशा ने स्नातक की पढ़ाई पंजाब यूनिवर्सिटी से की। और शायद इसी अंतराल में उन्हें हिंदी भाषा से लगाव पैदा हुआ जो आगे जाकर उनकी कविताओं और गीतों में झलका। कुछ काव्य समीक्षकों का मानना है कि उनकी काव्य शैली पर अमीर खुसरो की भाषा और कबीर की सोच का जबरदस्त प्रभाव था।

उर्दू शायरी के समीक्षक अब्दुल बिसमिल्लाह इब्ने इंशा की कविता के बारे अपनी दिलचस्प टिप्पणी में कहते हैं

इब्ने इंशा को रूप-सरूप, जोग-बिजोग, परदेसी, बिरहन और माया आदि का काव्यबोध कैसे हुआ, कहना कठिन है। किंतु यह बात असंदिग्ध है कि उर्दू शायरी की केंद्रीय अभिरुचि से यह काव्यबोध विलग है। यह उनका निजी तख़य्युल (अंदाज़) है और इसीलिए उनकी शायरी जुते हुए खेत की मानिंद दीख पड़ती है।
इब्ने इंशा की शायरी पर विस्तृत चर्चा तो फिर कभी। अभी तो माहौल होली का है तो बात उनकी इस रसभरे गीत की की जाए।

इब्ने इंशा का ये गीत मैंने तीन चार महिने पहले अपनी एक रेल यात्रा के दौरान पढ़ा था। गीत की भावनाओं के साथ इस तरह की मस्ती थी कि मन कर रहा था कि इसे जोर जोर से गा कर पढ़ूँ। अब ट्रेन के डिब्बे में वो तो संभव नहीं था पर तभी ये इरादा किया था कि होली के अवसर पर अपनी ये इच्छा अपने ब्लॉग पर पूरी करूँगा। ट्रेन में पढ़ते वक्त अपने आप ही इस कविता की लय बनती चली गई थी। आज उसी रूप में ये आपके सामने पेश है। अगर मेरा ये अंदाज़ आपको नागवार गुजरे तो सारा दोष इब्ने इंशा जी का ही है :)





जले तो जलाओ गोरी, पीत का अलाव गोरी
अभी ना बुझाओ गोरी, अभी से बुझाओ ना ।
पीत में बिजोग भी है, कामना का सोग भी है
पीत बुरा रोग भी है लगे तो लगाओ ना ।।

गेसुओं की नागिनों से, बैरिनों अभागिनों से
जोगिनों बिरागिनों से, खेलती ही जाओ ना ।
आशिकों का हाल पूछो, करो तो ख़याल पूछो
एक दो सवाल पूछो, बात जो बढ़ाओ ना ।।

रात को उदास देखे, चाँद का निरास देखे
तुम्हें ना जो पास देखें, आओ पास आओ ना
रूप रंग मान दे दें, जी का ये मकान दे दें
कहो तुम्हें जान दे दें, माँग लो लजाओ ना

और भी हजार होंगे, जो कि दावेदार होंगे
आप पे निसार होंगे, कभी आज़माओ ना
शेर में नज़ीर ठहरे, जोग में कबीर ठहरे
कोई ये फक़ीर ठहरे, और जी लगाओ ना

जले तो जलाओ गोरी, पीत का अलाव गोरी
अभी ना बुझाओ गोरी, अभी से बुझाओ ना ।
पीत में बिजोग भी हे , कामना का सोग भी है
पीत बुरा रोग भी है लगे तो लगाओ ना ।।


तो चलिए हुज़ूर अगर आपने मुझे झेल लिया तो इसके लिए कुछ तोहफ़ा तो मिलना ही चाहिए आपको। तो आइए सुनते हैं इसी गीत को कोकिल कंठी नैयरा नूर की आवाज़ में। पिछले हफ्ते ही मुझे पता चला कि नैयरा नूर ने भी इस गीत को अपनी आवाज़ दी है जिसकी धुन बहुत कुछ पुराने फिल्मी गीतों की याद दिलाती है। पर गीत में कुछ शब्दों का हेर फेर है जो किताब वाले वर्सन से मेल नहीं खाता

शुक्रवार, नवंबर 14, 2008

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज़ था, सर ए बज़्म रात ये क्या हुआ : नैयरा नूर / इकबाल अज़ीम

बहुत दिनों पहले एक ग़ज़ल पढ़ी थी और उसे उतारा था अपनी डॉयरी में। पर इसके शायर का नाम पता नहीं था। पर कुछ ही दिन पहले कहीं पड़ा कि इसे लिखा है पाकिस्तान के मक़बूल शायर इकबाल अज़ीम साहब ने। साथ ही ये भी जानकारी मिली कि इसके के कुछ हिस्से को गाया है पाकिस्तान की मशहूर ग़ज़ल गायिका नैयरा नूर ने। अब इकबाल अज़ीम के बारे में तो मुझे भी ज्यादा मालूम नहीं पर उनकी पढ़ी इस ग़ज़ल का ये वीडिओ मिला तो सोचा शायर की पहचान के लिए इस ग़ज़ल को सुनाने के पहले ये वीडियो दिखाना मुनासिब रहेगा



वैसे बड़े कमाल के अशआर हैं इस ग़जल के। अब मतले पर गौर करें तो आप पाएँगे कि कितनी बार आपके साथ खुद ऍसा हो चुका होगा कि लाख आपने अपनी भावनाओं पर काबू करने की कोशिश की होगी, पर ना चाहते हुए भी किसी के सामने आँसुओं का सैलाब बह निकला होगा। इसी बात को शायर किस खूबसूरती से कहते हैं

मुझे अपने ज़ब्त पे नाज था, सर ए बज़्म रात ये क्या हुआ
मेरी आँख कैसे छलक गई, मुझे रंज है ये बुरा हुआ

बाकी की ग़ज़ल को पढ़ें और फिर सुनें नैयरा नूर की खूबसूरत अदाएगी, खुद बा खुद इस ग़ज़ल के रंग में रंग जाएँगे

मेरी जिंदगी के चराग का ये मिज़ाज कोई नया नहीं
अभी रोशनी, अभी तीरगी1, ना जला हुआ ना बुझा हुआ
1.अँधेरा

मुझे जो भी दुश्मन ए जाँ मिला वही पुख्ता कार जफ़ा 2 मिला
ना किसी की ज़र्ब हलक पड़ी 3 ना किसी का तीर खता हुआ
2. क्रूरता की हद, 3. वार गलत होना

मुझे आप क्यूँ ना समझ सके कभी अपने दिल से पूछिए
मेरी दास्तान ए हयात4 का है वर्क5 वर्क खुला हुआ

4.जिंदगी की किताब, 5. पन्ना,

जो नज़र बचा के गुजर गए मेरे सामने से अभी अभी
ये मेरे ही शहर के लोग थे, मेरे घर से घर है मिला हुआ

हमें इस का कोई हक़ नहीं कि शरीक ए बज्म खुलूस हों
ना हमारे पास नक़ाब है, ना कुछ आस्तीं में छुपा हुआ

मेरे एक गोशा ए फिक्र 6 में मेरी जिंदगी से अज़ीज़ तर
मेरा एक ऍसा भी दोस्त है, जो कभी मिला ना जुदा हुआ

6.दिमाग एक कोने में

मुझे एक गली में पड़ा हुआ, किसी बदनसीब का खत मिला
कहीं खून ए दिल से लिखा हुआ, कहीं आँसुओं से मिटा हुआ

मुझे हमसफ़र भी मिला कोई तू शिकस्ता हाल मेरी तरह
कई मंजिलों का थका हुआ, कहीं रास्ते में लुटा हुआ

हमें अपने घर से चले हुए सर ए राह उम्र गुजर गई
कोई जुस्तज़ू का सिला मिला, ना सफ़र का हक़ अदा हुआ



 

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