जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वार्षिक संगीतमाला में अब है शुरुआती पन्द्रह गीतों की बारी। यकीन कीजिए यहाँ से पहली पॉयदान तक का सफ़र बड़ा मज़ेदार होने वाला है। पन्द्रहवीं पॉयदान का गीत वो जिसे एक बार सुनकर ही आप थिरकने पर मजबूर हो जाएँगे। ये गीत है फिल्म अंग्रेजी मीडियम का जो अभिनेता इरफान खान की आख़िरी फिल्म थी। इरफान इस फिल्म में एक ऐसे पिता का रोल निभा रहे थे जिसकी बेटी का सपना हर हाल में विदेश जाकर पढ़ाई करने का है।
मार्च में सिनेमा हॉल और फिर कोरोना काल में फिर से ओटीटी प्लेटफार्म पर रिलीज़ हुई ये फिल्म अपनी पूर्ववर्ती हिंदी मीडियम की तरह उतनी सफल नहीं हो पाई पर इसके कुछ गाने खासे लोकप्रिय हुए जिसमें कुड़ी नूँ नचने दे का जलवा अपनी आकर्षित करती धुन और गीत में निहित संदेश की वज़ह से फिल्म के प्रदर्शित होने के महीनों बाद भी बरक़रार है।
ये गीत अंग्रेजी मीडियम की नायिका का ही नहीं बल्कि उन सारी लड़कियों की आवाज़ बन गया जिन्होंने अपने जीवन के लिए कुछ सपने देखे हैं और उनको मूर्त रूप देने के लिए अपनी सोच और मन मुताबिक राह चुनना चाहती हैं। अंग्रेजी मीडियम के इस गीत को संगीतबद्ध किया सचिन जिगर की जोड़ी ने।
सचिन जिगर सिमरन बदलापुर, भूमि, हैप्पी एंडिंग, मेरी प्यारी बिंदु, शुद्ध देशी रोमांस और शोर इन दि सिटी जैसी फिल्मों के गीतों के ज़रिए पिछले एक दशक से एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं में दस्तक देते रहे हैं। अंग्रेजी मीडियम के इस गीत को उन्होंने एक ऐसी धुन में ढाला है जिसे एक बार सुनकर ही मन झूम उठता है। जिगर की पत्नी और गीतकार प्रिया सरैया ने पंजाबी बोलों की सरलता बनाए रखी है ताकि उसके भाव आम जनता को भी आसानी से समझ आ सकें। लड़कियों को अपने मन की करने की आज़ादी के लिए प्रेरित करते इस गीत में अपनी दमदार आवाज़ से उर्जा भरी है विशाल ददलानी ने।
हो मीठी-मीठी सी ये मुनिया सर पे डाले है ये चुनिया क्यूँ..हाँ क्यूँ हो सोणी-सोणी सी कुड़ी नूँ मौज में रहने दे ना दुनियाँ क्यूँ, हाँ दुनियाँ क्यूँ है किन्नी शानदार कुड़ी ये कर देगी कमाल इसे झूमने दे अपनी बीट ते, कुड़ी नूँ नचने दे, हाँ नचने दे तू आज लगाने दे ठुमके हाँ जमके कुड़ी नु नचने दे हाँ नचने दे तू सारियाँ फ़िकरां नूँ छड के बन-ठन के कुड़ी नूँ नचने दे, नचने दे हाँ नचने दे, नचने दे तू आज लगाने दे ठुमके हाँ जमके, कुड़ी नूँ नचने दे...बन-ठन के
हो वड्डी-वड्डी बात तेरी छोटी-छोटी सोच क्यूँ है जी, ओहो पाजी हो उखड़े-उखड़े क्यूँ खड़े जी हँस दो तो, हँस देगी दुनिया भी, हाँ हाँ हाँ जी हो आये जो ऑन द फ्लोर कुड़ी तो खूब मचाये शोर तू भी झूम लेना इसकी बीट पे कुड़ी नूँ नचने दे...बन-ठन के
इस गीत की एक खास बात ये है कि इसमें एक दो नहीं बल्कि आठ अभिनेत्रियाँ आपको एक ही गीत में नज़र आएँगी। इन नामी सिनेतारिकाओं द्वारा लॉकडाउन में अपने अपने घरों के आसपास शूट किए गए टुकड़ों को निर्देशक होमी अदजानिया ने इस खूबसूरती से पिरोया है कि देखने वाला गीत गुनगुनाने के साथ इन नायिकाओं के साथ ही थिरकने पर मजबूर हो जाता है। आलिया भट्ट, अनुष्का शर्मा, कैटरीना कैफ़, अनन्या पांडे, जान्ह्वी कपूर, कियारा आडवाणी, कृति सैनन के साथ राधिका मदान ने अपने रचनात्मक नृत्य के ज़रिये इस गीत को यादगार बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
आशा है ये गीत सुन और देख कर आप भी उतने ही आनंदित होंगे जितना मैं हुआ हूँ..
गीतमाला की पिछली दो पॉयदानों पर आपने दो अलग मिज़ाज के गीत सुने। जहाँ आईना बदल गया..... के गहरे बोलों में उदासी का रंग था तो वहीं आफ़रीन....... रूमानी रंगों से सराबोर था। वार्षिक संगीतमाला की बीसवीं पॉयदान पर जो गीत आज मैं आपको सुनवाने जा रहा हूँ वो इन दोनों रंगों से अलग है। ज़िंदगी ना मिले दोबारा के इस गीत में मौज है, मस्ती है और उस उमंग को आप तक पहुँचाने वाला जबरदस्त संगीत है।
जिन्होंने ये फिल्म देखी है या इस गीत को टीवी पर देखा है वो जानते होंगे कि इस गीत में स्पेन के ला टोमेटीना पर्व को पूरे हुड़दंग के साथ पर्दे पर क़ैद करने की कोशिश की गई है। शकर अहसान लॉए के समक्ष चुनौती थी कि संगीत में जिस उमंग और उर्जा की जरूरत है उसे वो कैसे उत्पन्न करें? एहसान बताते हैं कि कीबोर्ड में रोबोटिक वॉयस एफेक्ट के जरिए ऊ आ... की रिदम बनी और उससे खेलते खेलते पूरे गीत का संगीत बन गया। इस गीत में इस तिकड़ी का दिया संगीत ऐसा है जो आपको अपनी जगह से उठाकर थिरकने पर मज़बूर कर दे।
जावेद साहब ने भी अपने बोलो को गीत की परिस्थिति के अनुसार रचा है। आख़िर जब हम इस तरह के माहौल में अपने आप को पाते हैं तो फिर एक नई उमंग और तरंग मन में प्रवाहित होने लगती है। और उस तरंग के साथ हमारा ख़ुद का अस्तित्व नहीं रह जाता । रहती है बस सारे समूह के साथ मस्ती के रंग में अपने को डुबो लेने की इच्छा । इसीलिए तो जावेद साहब गीत के मुखड़े में इन हालातों को कुछ यूँ बयान करते हैं
इक जुनूँ इक दीवानगी
हर तरफ़ हर तरफ़
बेखुदी बेखुदी बेखुदी
हर तरफ़ हर तरफ़
कहे हल्के हल्के,ये रंग छलके छलके
जो किस्से हैं कल के भुला दे तू
कोई हौले हौले, मेरे दिल से बोले
किसी का तू हो ले, चल जाने दे कोई जादू
और विशाल और शंकर की मुख्य आवाज़ों में ये मुखड़ा सुनते ही मन झूमने लगता है। टमाटरों की वर्षा से पूरी राह की रंगत लाल हो जाती है और फिर कोरस का स्वर उभरता है..
Oo-Aa Take The World And Paint it Red
Oo-Aa Paint it Red
जावेद अख्तर हल्के फुल्के शब्दों के साथ अगले दो अंतरों में गीत का ये मूड बरक़रार रखते हैं..
ये पल जो भरपूर हैं जो नशे में चूर हैं
इस पल के दामन में हैं मदहोशियाँ
अब तो ये अंदाज़ है हाथों हाथों साज है
आवाज़ों में घुलती है रंगीनियाँ
कहे हल्के हल्के ...जादू
सब जंजीरें तोड़ के, सारी उलझन छोड़ के
हम हैं दिल है और है आवारगी
कुछ दिन से हम लोग पर, आता है सबको नज़र
आया है जो दौर है आवारगी
कहे हल्के हल्के ...जादू
क्या आप जानते हैं कि इस गीत में ला टोमेटीना पर्व को पुनर्जीवित करने के लिए करीब एक करोड़ रुपये में 16 टन टमाटरों को पुर्तगाल से मँगाया गया। फिल्म के पर्दे पर आपको फरहान, अभय, हृतिक और कैटरीना भले ही टमाटरों की इस फेंका फेंकी में प्रफुल्लित दिखाई पड़े पर असलियत ये थी कि शूटिंग के थोड़ी देर में ही टमाटर की बास से उनकी हालत ये थी कि हर शॉट के बाद वो गर्म पानी की बाल्टी अपने सर पर डाल रहे थे। टमाटरों के दिन भर के इस सानिध्य ने कलाकारों की ये दशा कर दी कि उन्होंने हफ्तों अपने भोजन के किसी भी हिस्से में टमाटर का मुँह नहीं देखा। तो आइए देखते हैं इस गीत का फिल्मांकन..
चलिए बढ़ते हें वार्षिक संगीतमाला की आठवीं पॉयदान पर। हम सब के जीवन में एक वक़्त ऐसा भी आता है जब हर बाजी आपके खिलाफ़ पलटती नज़र आती है। संगी साथी सब आपका साथ एक एक कर के छोड़ने लगते हैं। हताशा और अकेलेपन की इस घड़ी में आगे सब कुछ धुँधला ही दिखता है। आठवीं पॉयदान का गीत एक ऐसा गीत है जो ज़िंदगी के ऐसे दौर में विश्वास और आशा का संचार ये कहते हुए करता है मुश्किल के इन पलों में और कोई नहीं तो वो ऊपरवाला तुम्हारे साथ है।
फिल्म 'अनजाना अनजानी' के इस गीत को गाया है राहत फतेह अली खाँ ने और संगीत रचना है विशाल शेखर की। विशाल शेखर को इस गीत को बनाने के पहले निर्देशक ने सिर्फ इतना कहा था कि आपको ऐसा गीत बनाना है जिसमें भगवान ख़ुद इंसान को अपने होने का अहसास दिला रहे हैं। विशाल शेखर की जोड़ी के शेखर रवजियानी ने झटपट मुखड़ा रच डाला तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…। पर इस मुखड़े के बाकी अंतरे विशाल ददलानी ने लिखे हैं।
विशाल शेखर की ज्यादातर संगीतबद्ध धुनें हिंदुस्तानी और वेस्टर्न रॉक के सम्मिश्रण से बनी होती हैं। दरअसल जहाँ शेखर ने विधिवत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली है वहीं विशाल मुंबई के रॉक बैंड पेंटाग्राम के गायक रहे हैं। इस अलग अलग परिवेश से आने का प्रभाव उनके संगीत पर स्पष्ट दिखता है।
पर जहाँ पिछले गीत में इरशाद क़ामिल के बोलों को मैंने गीत की जान माना था यहाँ वो श्रेय पूरी तरह से राहत फतेह अली खाँ को जाता है। उन्होंने पूरे गीत को इतना डूब कर गाया है कि श्रोता गीत की भावनाओं से अपने आपको एकाकार पाता है। मुखड़े की उनकी अदाएगी इतनी जबरदस्त है कि उनकी आवाज़ की प्रबलता आपको भावविभोर कर देती है और मन अपने आप से गुनगुनाने लगता है तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…। विशाल शेखर के गिटार के इंटरल्यूड्स मन को सुकून देते हैं। राहत से हर संगीतकार कोई सरगम कोई आलाप अपने गीतों में गवाता ही है। राहत यहाँ भी अपनी उसी महारत का बखूबी प्रदर्शन करते हैं।
तो आइए सुनें इस गीत को
धुँधला जाएँ जो मंज़िलें, इक पल को तू नज़र झुका
झुक जाये सर जहाँ वहीं, मिलता है रब का रास्ता
तेरी किस्मत तू बदल दे, रख हिम्मत, बस चल दे
तेरे साथ ही मेरे कदमों के हैं निशां
तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…
ख़ुद पे डाल तू नज़र, हालातों से हार कर कहाँ चला रे
हाथ की लकीर को मोड़ता मरोड़ता है, हौसला रे
तो ख़ुद तेरे ख्वाबों के रंग में तू अपने ज़हां को भी रंग दे
कि चलता हूं मैं तेरे संग में, हो शाम भी तो क्या
जब होगा अंधेरा, तब पाएगा दर मेरा
उस दर पे फिर होगी तेरी सुबह
तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…
मिट जाते हैं सब के निशां, बस एक वो मिटता नहीं, हाय
मान ले जो हर मुश्किल को मर्ज़ी मेरी, हाय
हो हमसफ़र ना तेरा जब कोई, तू हो जहाँ रहूँगा मैं वहीं
तुझसे कभी ना एक पल भी मैं जुदा
तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…तू ना जाने आस पास है ख़ुदा…
फिल्म में ये गीत रणवीर कपूर और प्रियंका चोपड़ा पर फिल्माया गया है।
वार्षिक संगीतमाला 2008 में लग गया था बेक्र जिस वज़ह से मेरी ये गाड़ी पॉयदान संख्या 7 पर रुकी हुई थी। और इसी बीच हिंदी फिल्म संगीत ने वो मुकाम तय किया जो अब तक हमें कभी नहीं मिला था। तो सबसे पहले ए आर रहमान और गुलज़ार की जोड़ी को आस्कर एवार्ड मिलने के लिए एक बड़ा सा जय हो ! ये इस बात को पुख्ता करता है कि भले ही हम अपने फिल्म संगीत के स्वर्णिम अतीत को पीछे छोड़ आए हों पर नया संगीत भी असीम संभावनाओं से भरा है और इससे बिलकुल नाउम्मीदी सही नहीं है।
तो चलें इस संगीतमाला की आखिर की छः सीढ़ियों का सफ़र तय करें कुछ अद्भुत गीतों के साथ। छठी पायदान पर एक ऐसे कलाकार हैं जो एक नामी संगीतकार जोड़ी का अहम हिस्सा तो हैं ही, वे गाते भी हैं और अपनी चमकदार चाँद के साथ दिखते भी बड़े खूब हैं। पर हुजूर अभी इनकी खूबियाँ खत्म नहीं हुई हैं। छठी पायदान के इस गीत को लिखा भी इन्होंने ही है। जी हाँ ये हैं विशाल ददलानी और मेरी संगीतमाला की छठी पायदान पर गीत वो जिसे फिल्म दोस्ताना में आवाज़ दी है शान ने...
गर जिंदगी की जद्दोज़हद में अगर आप उबे हुए हों तो निश्चय ही ये गीत आपके लिए मरहम का काम करेंगा। पियानों के प्यारे से आरंभिक नोट्स , शान की मखमली आवाज़ और गिरती मनःस्थिति में मन को सहलाते विशाल के शब्द इस गीत के मेरे दिल में जगह बनाने की मुख्य वज़हें रहीं हैं। तो आइए सुनें ये गीत जो एक शाम मेरे नाम पर प्रस्तुत किया जाने वाला १०० वाँ गीत भी है
कुछ कम रौशन है रोशनी
कुछ कम गीली हैं बारिशें
थम सा गया है ये वक्त ऍसे
तेरे लिए ही ठहरा हो जैसे कुछ कम रौशन है रोशनी.... क्यूँ मेरी साँस भी कुछ भींगी सी है
दूरियों से हुई नज़दीकी सी है
जाने क्या ये बात है हर सुबह अब रात है
कुछ कम रौशन है रोशनी.....
फूल महके नहीं कुछ गुमसुम से हैं
जैसे रूठे हुए, कुछ ये तुमसे हैं
खुशबुएँ ढल गईं, साथ तुम अब जो नहीं
कुछ कम रौशन है रोशनी........
और इससे पहले कि आगे बढ़ें एक नज़र उन गीतों पर जो इस साल की संगीतमाला की शोभा बढ़ा चुके हैं।
तो चलिए आज आपको ले चलते हैं वार्षिक संगीतमाला की एक चौबीसवीं सीढ़ी पर जहाँ गाना वो जिसे लिखा अन्विता दत्त गुप्तन ने, तर्ज बनाई विशाल शेखर की जोड़ी ने और जिसे आवाज़ दी इसी संगीतकार जोड़ी के सदस्य विशाल ददलानी ने। ये भी नहीं है कि इस गीत के बोल कुछ खास गहराई लिए हों। पर जब आप इस गीत को सुनते हैं तो गीत में कही गई बात सीधे दिल पर असर करती है। विशाल शेखर ने अंग्रेजी जुमलों को हिंदी के साथ इस तरह संगीतबद्ध किया है कि दोनों भाषाएँ एक दूसरे में घुलती मिलती सी दिखती हैं।
लौटते हैं गीत की भावनाओं की ओर। हम सभी की जिंदगी में कोई तो कोई तो होता ही है ना जिसके आस पास होने से हम अपने आप को निश्चिंत सा महसूस करते हैं। उसकी एक नज़र मन को तसल्ली देती है, उसकी एक मुस्कुराहट दिन को खुशगवार बना देती है। अभी हाल ही में साथी चिट्ठाकार कंचन चौहान ने लिखा था
जिंदगी
कुछ नही......! बस ये अहसास .....!
कि तुम हो मेरे गिर्द....!"
अन्विता दत्त गुप्तान भी यही बात अपने इस हिंगलिश गीत से कहने की कोशिश की है और सच मे जब भी इस गीत को सुनता हूँ तो बरबस मुखड़ा गुनगुनाने से अपने आप को रोक नहीं पाता जाने क्यूँ दिल जानता है तू है तो I'll be allright
तू है तो टेढ़ी मेढ़ी राहें
उलटी पुलटी बातें, सीधी लगती हैं
तू है तो झूठे मूठे वादे
दुश्मन के इरादे सच्चे लगते हैं
जो दिल में तारे वारे दे जगा, वो तू ही है, तू ही है
जो रोते रोते दे हँसा, तू ही है वही
जाने क्यूँ दिल जानता है तू है तो I'll be allright
I'll be allright I'll be allright
सारी दुनिया इक तरफ है, इक तरफ हैं हम
हर खुशी तो दूर भागे, मिल रहे हैं गम
But When U Smile For Me, World Seems All Right
ये मेरी जिंदगी, पल में ही खिल जाए जाने क्यूँ
जाने क्यूँ दिल जानता है तू है तो I'll be allright
छोटे छोटे कुछ पलों का ये दोस्ताना ये
जाने क्यूँ अब लग रहा है ये जाना माना ये
Cos When Smile For Me, World Seems All Right
ये सारे पल यहीं, यूँही थम से जाएँ जाने क्यूँ.
जाने क्यूँ दिल जानता है तू है तो I'll be allright
तो विशाल ददलानी की आवाज़ में सुनिए ये प्यारा सा हल्का फुलका नग्मा
तो नवें नंबर पर है वो गीत जिसे गाया विशाल-शेखर की जोड़ी वाले विशाल ददलानी ने। ये एक ऍसा गीत है जो आपको ये सोचने पर विवश कर देता है कि क्यूँ सब जानते समझते भी हम अपने बच्चों को गलाकाट प्रतिस्पर्धा के इस दौर में अपनी आंकाक्षाओं के बोझ तले दबा डालते हैं ? ज्यादातर बच्चे समाज और माता पिता की इच्छा अनुसार इस सिस्टम में अपने आप को ढ़ाल लेते हैं।
पर क्या सारे बच्चे ऍसा कर पाते हैं?
अगर ऍसा हो पाता तो अवसाद, अलगाव और यहाँ तक की अपने जीवन को समाप्त करने की निरंतर होती घटनाओं को अपने सामने घटते हुए हम नहीं देख रहे होते।
गीत के पहले हिस्से में जहाँ लायक कहलाने वाले बच्चों की जीवनशैली का चित्रण है तो दूसरे में ठीक इससे पलट वैसे बच्चों का जो अपनी ही दुनिया में जीने की तमन्ना रखते हैं पर ये शिक्षा प्रणाली और ऊपर उठने की ये दौड़ उन्हें वैसा करने नहीं देती। शंकर-अहसॉन-लॉए ने अपने संगीत को गीत के मूड के हिसाब से बदलते रखा है।
ये गीत मुझे अगर इतना पसंद है तो वो इस वज़ह से कि बच्चों के इस दर्द को इतनी सहजता से ऊपर लाते हुए ये दिल पर सीधी चोट करता है। ये अहसास दिलाता है कि समाज के एक हिस्से के रूप में चाहे माता-पिता या अध्यापक की हैसियत से, इस तंत्र को फलने फूलने में हमारा भी कुछ दोष बनता है।
तो पहले पढ़ें प्रसून जोशी के उठाए गए इन मासूम से सवालों को.. कस के जूता कस के बेल्ट
खोंस के अंदर अपनी शर्ट
मंजिल को चली सवारी
कंधों पे जिम्मेदारी
हाथ में फाइल मन में दम
मीलों मील चलेंगे हम
हर मुश्किल से टकराएँगे
टस से मस ना होंगे हम
दुनिया का नारा जमे रहो
मंजिल का इशारा जमे रहो
दुनिया का नारा जमे रहो
मंजिल का इशारा जमे रहो
ये सोते भी हैं अटेन्शन
आगे रहने की हैं टेंशन
मेहनत इनको प्यारी है
एकदम आज्ञाकारी हैं
ये आमलेट पर ही जीते हैं
ये टॉनिक सारे पीते हैं
वक़्त पे सोते वक़्त पे खाते
तान के सीना बढ़ते जाते
दुनिया का नारा जमे रहो
मंजिल का इशारा जमे रहो...
*********************************************************** यहाँ अलग अंदाज़ है
जैसे छिड़ता कोई साज़ है
हर काम को टाला करते हैं
ये सपने पाला करते हैं
ये हरदम सोचा करते हैं
ये खुद से पूछा करते हैं
क्यूँ दुनिया का नारा जमे रहो ?
क्यूँ मंजिल का इशारा जमे रहो ?
ये वक़्त के कभी गुलाम नहीं
इन्हें किसी बात का ध्यान नहीं
तितली से मिलने जाते हैं
ये पेड़ों से बतियाते हैं
ये हवा बटोरा करते हैं
बारिश की बूंदे पढ़ते हैं
और आसमान के कैनवस पे
ये कलाकारियाँ करते हैं
क्यूँ दुनिया का नारा जमे रहो ?
क्यूँ मंजिल का इशारा जमे रहो ?
शायद आपके पास इन प्रश्नों का कोई सीधा सादा हल ना हो पर ये गहन चिंतन का विषय है इस बात से आप इनकार नहीं कर सकेंगे।
और हाँ एक बात और, तारे जमीं पर फिल्म के इस गीत को देखते हुए सबको अपने घर के सुबह वाली भागमभाग के दृश्य जरूर याद आएँगे।
कभी परेशान तो कभी हैरान करती जिंदगी ...
रोज रोज की वही चिर परिचित आपा - धापी ...
जी नहीं करता आपका कि निकल पड़ें कभी उस अनजान राह की ओर...
चिन्ताओं को दिलो दिमाग से दूर झटकते हुए..
क्या कहा ? कैसी बात करता हूँ !
पहले तो आफिस से छुट्टी नहीं मिलेगी...और अगर मिल भी गई तो कौन सी हवा और फिजा साथ होगी... लटक जाएगी घरवाली हमारे नमूनों के साथ ...हम्मम..आपकी बात तो गौर करने की है..कोई नहीं जी हम आपको दूसरा आसान सा नुस्खा बताए देते हैं। बस झटपट अच्छे मन से ये स्फूर्तिदायक गीत सुनिए, आप शर्तिया मन को तरो -ताजा और हल्का महसूस करेंगे । वार्षिक संगीतमाला की १७ वीं पायदान के इस गीत को गाया है एक नवोदित गायक ने । इनका ताल्लुक एक ऐसे राज्य से है जिस राज्य ने भूपेन हजारिका जैसे महारथी भारतीय फिल्म जगत को दिए हैं यानि असम से । जी, मैं बात कर रहा हूँ जुबीन गर्ग साहब की जो इस साल पहली बार चर्चा में आए गैंगस्टर के अपने हिट गीत या अली..... के साथ ! इनकी आवाज का जादू ये है कि इस गीत को आप तक पहुँचाते पहुँचाते मैं खुद इसे गुनगुना उठा हूँ..अरे तो फिर आप चुप क्यूँ हैं ? शुरू हो जाइए ना....
सुबह सुबह ये क्या हुआ
ना जाने क्यूँ अब मैं हवाओं में, चल रहा हूँ
नई सुबह, नई जगह,नई तरह से नयी दिशाओं में चल रहा हूँ
नई -नई हैं मेरी नजर, या हैं नजारे नए
या देखते ख्वाब मैं, चल रहा हूँ
सुबह-सुबह ये क्या हुआ
ना जाने क्यूँ अब मैं हवाओं में, चल रहा हूँ
नई सुबह, नई जगह, नई नजर से नजारे मैं देखता हूँ
ये गुनगुनाता हुआ समां, ये मुसकुराती फिजा
जहान के साथ मैं चल रहा हूँ
सुबह-सुबह ये क्या हुआ....
जो अभी है उसी को जी लें, जो जिया वो जी लिया
वो नशा पी लिया
कल नशा है इक नया जो, ना किया तो क्या जिया
हर पल को पी के अगर दिल ना भर दिया
सुबह-सुबह ये क्या हुआ....
ना जाने क्यूँ अब मैं हवाओं में, चल रहा हूँ
चलचित्र I See You ! के इस गीत की कर्णप्रिय धुन बनाई विशाल- शेखर की जोड़ी ने और बोल लिखे खुद विशाल ने ।
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।