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गुरुवार, जनवरी 30, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 12 : हवन कुंड मस्तों का झुंड.. (Maston ka Jhund)

मस्ती के माहौल को बरक़रार रखते हुए हम आ पहुँचे हैं वार्षिक संगीतमाला 2013 की बारहवीं पायदान पर। शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी ने भाग मिल्खा भाग के गीतों के ज़रिये ये साबित कर दिया कि उनमें अभी भी पिछले सालों का दम खम बाकी है। एक फौज़ी के कठिन जीवन के बीच मस्ती भरे पलों को दर्शाते इस गीत को ही लें। गीत की शुरुआत में मुँह से की जाने वाली आवाज़ हो, या भाँगड़े के साथ रिदम बैठाता इकतारा या फिर फौजी की कठोर ज़िदगी को दिखाने के लिए पार्श्व में बजता पश्चिमी संगीत हो, संगीतकार त्रयी हर जगह श्रोताओं को अपने संगीत संयोजन मुग्ध करने में सफल रही है।


दिव्य कुमार की गायिकी से आप संगीतमाला की 19 वीं पायदान पर रूबरू हो चुके हैं। मस्तों का झुंड उनकी झोली में कैसे आया इसकी कहानी वे कुछ यूँ बयाँ करते हैं।
"शंकर एहसान लॉय के साथ मैंने पहले पहल 2011 के विश्व कप शीर्षक गीत दे घुमा के .....में काम किया था। उसके पहले भी कुछ गीतों और विज्ञापनों के लिए उनके साथ मैंने काम किया था। उनके द्वारा संचालित संगीत कार्यक्रमों के दूसरे चरण में मुझे महालक्ष्मी ऐयर के साथ गाने का मौका मिला। तभी शंकर को लगा था कि मेरी आवाज़ एक सिख चरित्र के लिए आदर्श होगी और मैं 'भाग मिल्खा भाग' का हिस्सा बन सकता हूँ। मैंने मस्तों का झुंड के लिए अपना दो सौ प्रतिशत दिया क्यूँकि इस स्वर्णिम अवसर को मैं यूँ ही हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। परिणाम भी शानदार रहा जैसा शंकर एहसान लॉय के साथ होता है। गाते वक़्त मुझे बस इतना कहा गया था कि मुझे एकदम मस्ती में गाना है और पंजाबी उच्चारण को एकदम पकड़ कर चलना है क्यूँकि मेरी आवाज़ एक सिख किरदार की है।"
और पंजाबियत की सोंधी खुशबू हम तक पहुंचाने के लिए दिव्य 'हवन' को 'हवण' की तरह उच्चारित करते हैं। दरअसल इस गीत में एक तरह का पागलपन है जो इसके संगीत और बोलों में सहज ही मुखरित होता है। जिन लड़कों ने कॉलेज की ज़िंदगी का एक हिस्सा हॉस्टल में रहकर गुजारा है उन्हें ऐसी पागलपनती से अपने को जोड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी। गीत में चरित्रों की भाव भंगिमाएँ,उनके थिरकने का अंदाज़ सब कुछ उन पुराने दिनों की याद ताज़ा करा देता है जिसे हम सबने अपने सहपाठियों के साथ जिया है।

जीव जन्तु सब सो रहे होंगे..भूत प्रेत सब रो रहे होंगे जैसे बोल लिखने वाले प्रसून जोशी को सहूलियत ये थी कि वे गीतों को लिखने के साथ साथ फिल्म की पटकथा भी लिख रहे थे। वे कहते हैं कि गीत लिखते समय वो उन चरित्रों को वो नए आयाम दे सके जो पटकथा में स्पष्ट नहीं थे। फरहान अख्तर और साथी कलाकारों ने मस्ती और उमंग से भरे इस गीत में जो भाँगड़ा किया है वो किसी का भी चित्त प्रसन्न करने में सक्षम है। तो आइए एक बार फिर उल्लास के माहौल से सराबोर हो लें इस गीत के साथ..



ओए हवन कुंड मस्तों का झुंड
सुनसान रात अब
ऐसी रात, रख दिल पे हाथ, हम साथ साथ
बोलो क्या करेंगे
हवन करेंगे..हवन करेंगे..हवन करेंगे

ओए जीव जन्तु सब सो रे होंगे
भूत प्रेत सब रो रहे होंगे
ऐसी रात सुनसान रात रख दिल पे हाथ
हम साथ साथ बोलो क्या करेंगे
हवन करेंगे..हवन करेंगे..हवन करेंगे

नहाता धोता, नहाता धोता सुखाता
सारे आर्डर
सारे आर्डर बजाता
परेड थम
नहाता धोता सुखाता आहो ..
सारे आर्डर बजाता आहो ..
तभी तो फौजी कहलाता
परेड थम

दौड़ दौड़ के लोहा अपना
बदन करेंगे ...बदन करेंगे हवन करेंगे
ओए हवन कुंड मस्तों का झुंड ..

ओ जंगली आग सी भड़कती होगी
लकड़ी दिल की भी सुलगती होगी
सुनसान रात अब
ऐसी रात रख दिल पे हाथ हम साथ साथ
बोलो क्या करेंगे
हवन करेंगे..हवन करेंगे..हवन करेंगे


सोमवार, जनवरी 13, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान संख्या 19 : अल्लाह मेहरबान तो दिल गुले गुल गुलिस्तान (Allah Meherban...)

आप को कव्वाली तो जरूर पसंद होगी। पर आज कल बीते ज़माने की तरह की कव्वालियाँ होती कहाँ हैं? आज के संगीत के लिहाज से Out of Fashion जो हो गई हैं। पर कुछ प्रयोगधर्मी संगीतकार गायिकी की इस विधा पर भी फ्यूजन के दाँव आज़मा रहे हैं। ऐसा ही एक प्रयास किया है अमित त्रिवेदी ने अपनी फिल्म घनचक्कर के इस गीत में जो की 19 वीं सीढ़ी की शोभा बढ़ा रहा है। इस गीत को जब पहली बार मैंने सुना तो मन मस्ती से झूम उठा पर ये नहीं समझ पाया कि इस गीत के पीछे की दमदार आवाज़ किस की है। बाद में पता चला कि घनचक्कर की इस फ्यूजन कव्वाली को अपनी आवाज़ दी है दिव्य कुमार ने ।

ये वही दिव्य कुमार हैं जिनके भाग मिल्खा भाग के गीत 'मस्तों का झुंड...' ने पूरे देश में लोकप्रियता हासिल की है। पर बिना किसी विधिवत शास्त्रीय संगीत की शिक्षा के बतौर पार्श्वगायक मुंबई फिल्म उद्योग में कदम रखने के लिए दिव्य कुमार को छः साल का कठिन संघर्ष करना पड़ गया। दिव्य कुमार एक सांगीतिक पृष्ठभूमि वाले परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके दादा को वी शातारांम और पिता को पंचम के साथ काम करने का मौका मिल चुका है। गायक बनने की सोच उन्हें उनकी माँ ने दी।


बचपन से ही वो संगीत से जुड़े कार्यक्रमों में हिस्सा लेते रहे और बाद में वो कल्याण जी-आनंद जी के संगीत समूह से जुड़ गए। इसी बीच उन्होंने संगीत के रियालटी शो में भी हाथ आज़माया पर कई कोशिशों के बाद भी वो इन कार्यक्रमों में अपनी जगह नहीं बना सके। अपने दोस्तों के माध्यम से उनका परिचय अमित त्रिवेदी से हुआ और इशकज़ादे से उनके हिंदी फिल्म कैरियर की शुरुआत हुई।

ख़ैर दिव्य कुमार के बारे में तो आगे भी वार्षिक संगीतमाला में बातें होती रहेंगी, आइए देखें गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने इस गीत में क्या कहना चाहा है। ये गीत फिल्म में तब आता है जब नायक अपनी याददाश्त भूल जाने के बाद डाक्टर के पास जाता है और उसकी रिपोर्ट देख वो उसके ठीक होने के लिए दवा से ज्यादा दुआ की जरूरत बताते हैं। अमिताभ ने फिल्म की इस परिस्थिति को ध्यान में रखकर ये याद दिलाना चाहा है कि इंसान कितना भी होशियार, हुनरमंद और सफल क्यूँ ना हो ईश्वर के दिये एक ही झटके से उसे अपनी औकात का अंदाज़ा हो जाता है। दिव्य कुमार जीवन से जुड़े इस सत्य को अपनी ज़मीनी आवाज़ में पूरी बुलंदी से हम तक पहुँचाते हैं। 



अल्लाह अल्लाह
तेरी साँसों की उजड़े है खेत रे..उजड़े है खेत रे..उजड़े है खेत रे
जैसे मुट्ठी से फिसली है रेत रे..फिसली है रेत रे..फिसली है रेत रे..
माने रे..माने रे..माने रे..नइयो नन्ही जान
चौड़ा सीना तान, चला रे इंसान
अल्लाह मेहरबान तो दिल गुले गुल गुलिस्तान

अपनी कमज़ोरी में घोल दे जर्दा, ख़ुदा मददगार है गर हिम्मते मर्दा
जैसा आगाज़ वैसा अंजाम है, हरक़त मैली तो मैला ही नाम है
माया माया माया रे माया दोज़ख का सामान
बचा के ईमान चला रे इंसान
अल्लाह मेहरबान तो ...

दो दिन की चाँदनी के चाँद भी झूठे
काली करतूतों के दाग ना छूठें
सारी उस्तादी कब्रों में गाड़ के, एक दिन हर ऊँट नीचे पहाड़ के
आया आया आया रे आया माने या ना मान
काहे का बलवान, ठहरा तू इंसान
अल्लाह मेहरबान तो ...


तो हुज़ूर अल्लाह की मेहरबानी का शुक्रिया अदा कीजिए और गीत की मस्ती में अपने दिल को गुले गुल गुलिस्तान बना ही डालिए।
 

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