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बुधवार, जनवरी 30, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 सरताज गीत : मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता Aahista

पूरे एक महीने की संगीत यात्रा की अलग अलग सीढ़ियों को चढ़ते हुए वक़्त आ गया है एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला की चोटी पर स्थित पायदान यानी साल के सरताज गीत के खुलासे का। सच तो ये है कि इस साल के प्रथम दस गीत सभी एक से बढ़कर एक थे। सब का एक अपना अलग रंग था। कहीं पारिवारिक विछोह था, कहीं किसी के आने की अंतहीन प्रतीक्षा थी, कहीं आर्केस्ट्रा का जादू था, कहीं देशभक्ति की पुकार थी, कहीं शास्त्रीयता की बहार थी, कहीं एक अजीब सा पागलपन था तो कहीं प्रेम से रससिक्त सुरीली तान थी। 

मैंने इस साल के सरताज गीत के लिए जो रंग चुना है वो है प्रेम में अनिश्चितता का, बेचैनी का, दूरियों का, और इन तकलीफों के बीच भी आपसी अनुराग का। ये रंग समाया है लैला मजनूँ के गीत आहिस्ता में। इस गीत की धुन बनाई नीलाद्रि कुमार ने, लिखा इरशाद कामिल ने और गाया अरिजीत सिंह और जोनिता गाँधी की जोड़ी ने। 


फिल्म लैला मजनूँ के लिए नीलाद्रि ने चार गीतों को संगीतबद्ध किया। पिछले साल के इस सबसे शानदार एलबम के कुछ  गीतों तुम, ओ मेरी लैला ,सरफिरी और हाफिज़ हाफिज़ से आप मिल ही चुके हैं। इससे पहले कि आपको इस गीत से मिलवाऊँ क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे कि इम्तियाज़ अली ने सितार/ जिटार वादक नीलाद्रि को इस संगीतमय फिल्म की आधी जिम्मेदारी भी क्यूँ सौंपी? इससे पहले नीलाद्रि ने सिर्फ एक बार हिंदी फिल्मों के एक गीत में संगीत दिया था। दरअसल इम्तियाज़ अली के एक मित्र जो अक्सर अपने नाटकों में उन्हें बुलाया करते थे ने उनको नीलाद्रि के बारे में बताया था। नीलाद्रि के व्यक्तित्व को परिभाषित करने का उनका अंदाज़ निराला था   
"एक म्यूजिकल उस्ताद है जो यंग है और क्रिकेट भी खेलता है और अपने जैसा कूल है तू मिल उससे"।
इम्तियाज़ उनसे मिले तो उन्होंने नीलाद्रि को वैसा ही पाया सिवाय इस बात के कि वो सिर्फ क्रिकेट नहीं बल्कि फुटबाल भी खेलते हैं। तब तक लैला मजनूँ के कुछ गीतों की कमान दूसरे संगीतकारों को मिल चुकी थी। नीलाद्रि एक फिल्म में एक संगीतकार वाली शैली के हिमायती हैं पर कश्मीर घाटी में पनपती एक प्रेम कहानी में संगीत देना उन्हें एक आकर्षक चुनौती की तरह लगा जिसमें वो अपने संगीत के विविध रंग भर सकते थे।

नीलाद्रि ने लैला मजनूँ के संगीत में गीतों की सामान्य शैली से हटकर संगीत दिया और उनके अनुसार ये सब स्वाभाविक रूप से होता चला गया। उनकी कही बात एक बार फिर आपसे बाँटना चाहूँगा..
"मैं अपनी रचनाओं में किसी खास तरह की आवाज़ पैदा करने का प्रयत्न नहीं करता। मेरे लिए संगीत ऐसा होना चाहिए जो एक दृश्य आँखों के सामने ला दे, बिना कहानी सामने हुए भी उसके अंदर की भावना जाग्रत कर दे। चूँकि मैं एक वादक हूँ मेरे पास बोलों की सहूलियत नहीं होती अपना संदेश श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए। शब्दों का ना होना हमारे काम को कठिन बनाता है पर कभी कभी उनकी उपस्थिति एक मनोभाव को धुन के ज़रिए प्रकट करने में मुश्किलें पैदा करती है। ऐसी ही परिस्थितियों में इरशाद कामिल जैसे गीतकार मदद करते हैं। 
मैंने अपने कैरियर में कई धुनें बनाई है अपने गीतों और वाद्य वादन के लिए। अगर मुझसे 10-15 साल बाद कहा जाए कि उन्हें फिर से बनाओ तो मैं उनमें बदलाव लाऊँगा पर आहिस्ता के लिए मैं ऐसा नहीं कह सकता।"  
नीलाद्रि कुमार  और इरशाद कामिल 

आहिस्ता  एक ऐसा गीत है जो प्रेम की विभिन्न अवस्थाओं की बात करता है। पहला दौर वो जिस में प्रेम पनप रहा होता है। नायिका आहिस्ता आहिस्ता अपने प्रेमी को दिल में जगह देना चाहती है। वहीं नायक के मन में अपने दिल की बात को उस तक पहुँचाने की उत्कंठा है। फिर उसकी बात के मर्म को ठीक ठीक ना समझे जाने का भय भी है। सबसे बड़ा संकट है पूर्ण अस्वीकृति  की हर समय लटकती तलवार का। अब ऐसे में नायक का दिल परेशां ना हो तो क्या हो और इसीलिए कामिल साहब लिखते हैं कि पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला...दिल सवालों से ही ना, दे रुला

तुम मिलो रोज ही 
मगर है ये बात भी 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता

तुम, मेरे हो रहे 
या हो गये, या है फासला
पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला 
दिल सवालों से ही ना, दे रुला 
होता क्या है, आहिस्ता आहिस्ता 
होना क्या है, आहिस्ता आहिस्ता

चलिए प्रेम हो भी गया पर सामाजिक हालातों  ने आपको अपने प्रेमी से दूर कर दिया।अब सहिए वेदना। लोग तो शायद दिलासा देंगे कि वक़्त के साथ सब ठीक हो जाएगा पर नायक नायिका जानते हैं कि ये दुनिया कितनी झूठी हैं और ये वक़्त  किस तरह प्रेमियों को छलता रहा है। इरशाद कामिल इन भावों को कुछ यूँ शब्द देते हैं

दूरी, ये कम ही ना हो 
मै नींदों में भी चल रहा 
होता, है कल बेवफा 
ये आता नहीं, छल रहा

लाख वादे जहां के झूठे हैं  
लोग आधे जहां के झूठे हैं  
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता

फिर भी देखिए ना इतनी तकलीफ के बाद भी मन में अपने प्रेमी के लिए जो अनुराग हैं ना वो खत्म नहीं होता और इस बात को इरशाद कामिल इतनी खूबसूरती से कहते हैं कि

मैंने बात, ये तुमसे कहनी है 
तेरा प्यार, खुशी की टहनी है 
मैं शाम सहर अब हँसता हूँ 
मैंने याद तुम्हारी पहनी है 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
होता क्या है आहिस्ता आहिस्ता 
होता क्या है आहिस्ता आहिस्ता

खुशी की टहनी और यादों को पहनने का भाव मन को रोमांचित कर जाता है। आप गीत में खो चुके होते हैं कि नीलाद्रि जिटार पर अपनी मधुरता बिखेरते सुनाई पड़ते हैं। 

अरिजीत और जोनिता 
अरिजीत और जोनिता इस गीत में जगह पाकर बहुत खुश थे और दोनों ने ही बखूबी इस गीत को अपनी आवाजें  दी हैं।। अरिजीत ने तो ये भी कहा कि गीत के बोलों से वो एक ही बार में जुड़ गए।  अरिजीत का हिस्सा थोड़ा कठिन था पर जिस कोटि के वे गायक हैं उन्होंने उसे भी पूरे भाव के साथ निभाया। 

वो कहते हैं ना कि किसी गाने में एक मीठा सा दर्द है तो ये वैसा ही गाना है़ और ऐसे गीत मुझे हमेशा से मुतासिर करते रहे हैं। आज जब रीमिक्स और रैप के ज़माने में भी नीलाद्रि और इम्तियाज अली जैसे लोग संगीत की आत्मा को अपनी फिल्मों में इस तरह सँजों के रखते हैं तो बेहद खुशी होती है और दिल में आशा बँधती है हिंदी फिल्म संगीत के सुनहरे भविष्य की। तो आइए आहिस्ता आहिस्ता महसूस कीजिए इस गीत की मधुर पीड़ा को..




इस साल की संगीतमाला का अगला और अंतिम आलेख होगा एक शाम मेरे नाम के पिछले साल के संगीत सितारों के नाम जिसमें बात होगी  कलाकारों के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत प्रदर्शन की :)

वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

बुधवार, जनवरी 23, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 7 : नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ Hafiz Hafiz

जैसा कि मैंने आपसे पहले भी कहा था कि संगीतमाला के शुरुआती दर्जन भर गीतों में एक तिहाई गीत ऐसे हैं जो टीवी या रेडियो पर पिछले साल बेहद कम बजे पर मेरे दिल के बेहद करीब रहे। तू ही अहम को तो आपने ग्यारहवीं पायदान पर सुना ही। आज की पायदान पर जो गीत बज रहा है वो भी एक ऐसा ही गीत है जिसे आपने पहले शायद ही सुना हो। फिल्म लैला मजनूँ के इस गीत को आवाज़ दी है मोहित चौहान ने और धुन बनाई है नीलाद्रि कुमार ने। मैं अक्सर गीतों को पहले देखता नहीं सिर्फ सुनता हूँ, पर जैसे जैसे मैंने लैला मजनूँ में नीलाद्रि कुमार के रचे गीतों को सुनना शुरु किया तो पहले इसके गीतों और उसके बाद इस फिल्म को देखने की इच्छा बढ़ती चली गयी। 


आशिकी, तड़प और पागलपन का जो सम्मिलित  चित्र उन्होंने संगीत से एक पेंटिंग सरीखा इस गीत  में उकेरा है, उसका असर शब्दों में व्यक्त कर मैं कम नहीं करना चाहता। जो बात मैंने हाफिज़ हाफिज़ के संगीत में महसूस की वही भावना जब उनके साक्षात्कार में दिखी तो मुझे लगा कि उनकी बात कम से कम मुझ तक पहुँची है।

"हाफिज़ हाफिज़ का संगीत रचना मेरे लिए सबसे कठिन था। फिल्म में गीत से जुड़े निर्देश बार बार बदलते रहे। मुझे इस गीत में कहानी के उस मोड़ की बात करनी थी जब मजनूँ की शख्सियत आशिक से एक पागल में बदल जाती है। ये गीत कहानी को आगे बढ़ाता है। मेरा ऐसा मानना है कि फिल्म के गीत एक धागे के समान हैं जो उसके सिरों को जोड़े रखते हैं। संगीत संयोजन में एक निरंतरता जरूरी है। अगर आप फिल्म ना भी देख रहे हों तो आपको आभास हो जाना चाहिए कि वहाँ क्या चल रहा होगा। संगीत के मायने होने चाहिए। मेरे लिए इसे रचना एक कहानी कहने जैसा है।"
नीलाद्रि कुमार
नीलाद्रि के इस गीत की शुरुआत की सवा मिनट की धुन को दर्जनों बार सुनते हुए मैंने अपनी आँखें गीली की हैं। क्यूँ की हैं मुझे ख़ुद भी पता नहीं! अजीब सी कशिश है उनके जिटार या इलेक्ट्रिक सितार आधारित इस धुन में जिसे सुन मन उदासियों के रंग में रँग जाता है । बाद में जब  वीडियो देखा तो पाया कि गीत का प्रील्यूड वहाँ से शुरु होता है जब फिल्म में मजनूँ को पहला पत्थर लगता है। 

गीत में कश्मीरी दर्शन का पुट भरने के लिए शुरुआत में वहाँ के एक लोकप्रिय गीत की पंक्तियाँ ली गयी हैं 

हुकुस बुकुस तेली वान चेकुस
मोह बतुक लोगम डेग
श्वास खिच खिच वांगमय
भरुामन दारस पोयुन चुक
तेकिस तक्या बाने त्युक

जिनका अर्थ है मैं कौन हूँ, तुम कौन हो और कौन है ये हमें बनानेवाला जो हम दोनों में व्याप्त है? अभी तो मेरा शरीर भौतिक सुखों और मोह माया की खुराक़ से लिप्त है। जिस दिन मैं आंतरिक शुद्धि की उस अवस्था में पहुँचूँगा उस दिन मेरी हर साँस पवित्र होगी, मेरा मन दिव्य प्रेम के सागर में डुबकियाँ लगाएगा और चंदन की सुगंध की तरह मेरा अस्तित्व पूरी सृष्टि में फैल जाएगा।

मोहित चौहान
इरशाद कामिल के लिखे अगले दो अंतरे समाज से लताड़े दुत्कारे मजनूँ के हालात और मानसिक अवस्था का मार्मिक चित्रण करते हैं। दर्द जब एक हद से गुजर जाए तो फिर वो इंसान को कुछ और ही बना देता है इसलिए कामिल लिखते हैं हर दर्द मिटा हर फर्क मिटा मैं और हुआ । जिटारकी सम्मोहक धुन इस गीत के पहले मिनट के आस पास बजती है और फिर साढ़े चार मिनट बाद उसकी वही धुन फिर उभरती है जब मजनूँ का पागलपन अपने चरम पर होता है।

मोहित चौहान भले ही आजकल कम सुनाई देते हों पर इम्तियाज अली की फिल्मों से वो जब वी मेट के ज़माने से ही जुड़े हुए हैं। इस गीत में इश्क़ के जुनून उसके पागलपन को उन्होंने अपनी आवाज़ में उभारने की पुरज़ोर कोशिश की है। मेरी गुजारिश है कि आप इस गीत को पहले सुनें और फिर देखें तभी आप नीलाद्रि कुमार की कही इस बात का मर्म समझ सकते हैं...

"मैं अपनी रचनाओं में किसी खास तरह की आवाज़ पैदा करने का प्रयत्न नहीं करता। मेरे लिए संगीत ऐसा होना चाहिए जो एक दृश्य आँखों के सामने ला दे, बिना कहानी सामने हुए भी उसके अंदर की भावना जाग्रत कर दे। चूँकि मैं एक वादक हूँ मेरे पास बोलों की सहूलियत नहीं होती अपना संदेश श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए। शब्दों का ना होना हमारे काम को कठिन बनाता है पर कभी कभी उनकी उपस्थिति एक मनोभाव को धुन के ज़रिए प्रकट करने में मुश्किलें पैदा करती है। ऐसी ही परिस्थितियों में इरशाद कामिल जैसे गीतकार मदद करते हैं।" 

कोई फिक्र नहीं है, कोई गर्ज़ नहीं
बस इश्क़ हुआ है, कोई मर्ज़ नहीं
मुझे फिकर नहीं है, मुझे अकल नहीं
मैं असल में तू हूँ, तेरी नक़ल नहीं
कोई फिक्र नहीं...

जग में जग सा होकर रह तू
(जग में जग सा होकर रह तू)
सुनता रह बस कुछ ना कह तू
(सुनता रह बस कुछ ना कह तू)
बातें पत्थर ताने तोहमत
(बातें पत्थर ताने तोहमत)
हो हमसा होकर हँस के सह तू
(हमसा होकर हँस के सह तू)

शोर उठा घनघोर उठा फिर गौर हुआ
हर दर्द मिटा हर फर्क मिटा मैं और हुआ
कोई बात नई करामात नई कायनात नई
इक आग लगी कुछ खाक हुआ कुछ पाक हुआ

बदल गया भला क्यों जहां तेरा
यहाँ वहाँ घनघोर से घिरा
खतम हुआ अकल का सफर तेरा
सँभल ज़रा सुनसान राज़ का
ज़हर भरा आदमी भटक रहा
भाग कहाँ निकलेगा ये बता
कोई फिक्र नहीं है...


प्यार के पवित्र एहसास में डूबे एक इंसान को एक पागल और वहशी क़रार देना वैसा ही है जैसा क़ुरान याद रखने वाले हाफिज़ को काफिर की पहचान  दे देना। इसी लिए इरशाद कामिल गीत का अंत कुछ यूँ करते हैं..

हाफिज़ हाफिज़ हो गया हाफिज़...
काफ़िर काफ़िर बन गया काफ़िर...

ये गीत मेरे ज़हन में धीरे धीरे चढ़ा और इतना चढ़ा कि प्रथम दस में अपनी जगह बना गया। धीरे धीरे ही सही शायद आप पर भी असर करे..




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

बुधवार, जनवरी 16, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 13 : सरफिरी सी बात है तेरी Sarphiri

वार्षिक संगीतमाला का जो अगला गीत है वो एक बार फिर आ रहा है लैला मजनूँ से। फर्क इतना है कि इस बार जोय बरुआ की जगह संगीत का दारोमदार है नीलाद्रि कुमार पर। हिंदी फिल्म संगीत में अलग अलग काल खंडों में हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के कलाकारों को जगह मिलती रही है। सितार और ज़िटार वादक नीलाद्रि कुमार इस कड़ी में एक और नया नाम हैं। नीलाद्रि ने चार वर्ष की उम्र से ही अपने पिता से सितार सीखना शुरु किया। सितार में देश विदेश में अपनी कला प्रदर्शन कर चुकने के बाद उन्होंने जिटार यानि इलेक्ट्रिक सितार को ईजाद किया। उनके वाद्य वादन से जुड़े एलबम के बाद हर साल आते रहे। बीच बीच में फिल्मी गीतों में भी उनकी धुनें बजती रहीं। हालांकि हिंदी फिल्मों में बतौर संगीतकार उनका पहला गीत फिल्म शोरगुल में तेरे बिना जी ना लगे था जो 2016 में रिलीज़ हुई थी। 


इस साल लैला मजनूँ एलबम के दस गीतों में चार उनके हिस्से में आए और इतनी खूबसूरत रचनाएँ दीं उन्होंने इस फिल्म के लिए कि  ये एलबम इस साल के सर्वश्रेष्ठ एलबम होने का प्रबल दावेदार बन गया है। लैला मजनूँ के गीतों में एक अजीब किस्म की मेलोडी है जिसका असर गीतों को सुनते सुनते और बढ़ता चला जाता है। अब सरफिरी को ही लूँ तो गीत का प्रील्यूड सुनते ही चित्त शांत होने लगता है। गीत के इंटरल्यूड में सरोद और गिटार और गीत के उतार चढ़ाव के साथ ताल वाद्यों का प्रयोग नीलाद्रि बड़ी खूबी से करते हैं। 

प्रेम में पड़ने के दौरान हमारा मन मैं कैसी उथल पुथल होती है इसकी एक झलक ये गीत दिखलाता है। दरअसल इस फिल्म में ऐसे दो गीत हैं एक "तुम " जो कि मजनूँ के मानसिक हालातों को चित्रित करता है तो दूसरी ओर "सरफिरी " जिसमें लैला अपने दिल की बात कह रही है।

इश्क़ में तर्क काम नहीं करते, दिल हमेशा दिमाग पर हावी रहता है। अपने आप पर नियंत्रण खोने लगता है। अब देखिए यहाँ लड़का सरफिरा है बेतुकी बातें करता है फिर भी लैला का दिल उस की ओर खिंचा चला जा रहा है। दिमाग हिदायतें दे रहा है कि सँभल जा अभी भी वक़्त है और दिल है कि उस हिदायत को अनुसुना कर अपने प्रेमी को अपनाने के लिए आतुर है। इरशाद कामिल बड़ी खूबी से इन भावनाओं को शब्द देते हुए कहते हैं सरफिरी सी, बात है तेरी, आएगी ना, ये समझ मेरी.. है ये फिर भी डर मुझको मैं ना कह दूँ, हाँ तुझको। अंतरे में कितना प्यारा है उनका ये अंदाज़ जब वो कहते हैं तेरी बातें, सोचती हूँ मैं, तेरी सोचें, ओढ़ती हूँ मैं, मुझे ख़ुद में, उलझा कर...किया घर में, ही बेघर भई वाह इरशाद कामिल साहब! आपकी लेखनी यूँ ही अपना कमाल दिखलाती रहे।




इस मुश्किल से गीत को गाया है श्रेया घोषाल और बाबुल सुप्रियो ने। हिंदी फिल्म संगीत के इस दौर में एक बात जो देखने को मिल रही है वो ये दौर बेहतरीन गायकों के लिए भी इतना आसान नहीं है। इंटरनेट के इस दौर में अपनी आवाज़ को आम जनता या फिर फिल्म उद्योग तक पहुँचाना पहले से ज्यादा आसान हुआ है। इस सहूलियत ने लेकिन गायकों और गायिकाओं की एक फौज खड़ी कर दी है और संगीतकारों को एक गीत गवाने कि लिए दर्जनों विकल्प है। एक एक गाने को कई लोगों से गवाया जा रहा है। इतनी कठिन प्रतिस्पर्धा की वजह से नए गायक मुफ्त में भी गाने का तैयार है अगर उनका नाम एक अच्छे बैनर से जुड़ जाए। ऐसी हालत में  सोनू निगम और श्रेया घोषाल जैसे गायकों को भी जितना काम उनके हुनर के हिसाब से मिलना चाहिए वो नहीं मिल रहा है। आने वाला दौर उन संगीतकारों का होगा जो गायक का भी काम करेंगे और ऐसा मैं लगभग हर दूसरी फिल्म में देख भी रहा हूँ। 

अब श्रेया को ही देखिए पिछले साल कर हर मैदान फतह, धड़क के शीर्षक गीत और पल एक पल जैसे गीतों में उन्हें मात्र दो तीन पंक्तियाँ गाने को मिली। उनकी आवाज़ का अगर ढंग से इस्तेमाल हुआ तो वो पद्मावत के गीत घूमर और लैला मजनूँ के इस गीत सरफिरी में। जहाँ तक मेरा मत है सरफिरी उनका पिछले साल का गाया सबसे बेहतरीन गीत है। इस गीत के उतार चढ़ावों को अपनी सधी आवाज़ से जिस तरह वो निभाती हैं वो काबिलेतारीफ है। बाबुल सुप्रियो भी बहुत दिनों बाद फिल्मों में वापस लौटे हैं। आशा है उनको हम आगे भी लगातार सुन पाएँगे। तो आइए सुनें इस गीत को..

सरफिरी सी, बात है तेरी
आएगी ना, ये समझ मेरी
है ये फिर भी डर मुझको 
मैं ना कह दूँ, हाँ तुझको
सरफिरी सी, बात…

भूली मैं, बीती...ऐसे हूँ, जीती
आँखों से, मैं तेरी...ख़्वाबों को, पीती हुई
सरफिरी सी, बात है मेरी
आएगी ना, ये समझ तेरी

चलो बातों में बातें घोलें, 
आओ थोड़ा सा खुद को खोलें
जो ना थे हम, जो होंगे नहीं
आजा दोनों, वो हो लें

तेरी बातें, सोचती हूँ मैं
तेरी सोचें, ओढ़ती हूँ मैं
मुझे ख़ुद में, उलझा कर
किया घर में, ही बेघर
सरफिरी सी बात है मेरी
सरफिरी सी बात है तेरी 




वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

रविवार, जनवरी 15, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान #21 : तेरे बिना जी ना लगे..जब एक राजनीतिज्ञ ने थामी गीत की डोर Tere Bina Jee Na Lage...

शोरगुल इस फिल्म का नाम आपने सुना क्या? सुनें भी तो कैसे? अपने लचर निर्देशन की वज़ह से देश के अधिकतर भागों में ये फिल्म पहले हफ्ते से ज्यादा का सफ़र तय नहीं कर पाई थी। पर वार्षिक संगीतमाला की इक्कीसवीं सीढ़ी पर जो गीत खड़ा है वो  इसी फिल्म का है । 



वैसे इस गीत से जुड़ी दो बातें आपको चौंकने पर मजबूर कर देंगी। पहली तो इसके गीतकार का नाम और दूसरी इसके संगीतकार द्वारा बजाया जाने वाला एक अनूठा वाद्य यंत्र। इस गीत को रचा है कपिल सिब्बल ने। जी आपने ठीक सुना वही सिब्बल साहब जो कांग्रेस सरकार में केन्द्रीय मंत्री का पद सँभाल रहे थे। एक धुरंधर वकील और राजनीतिज्ञ से ऐसे रूमानी गीत के लिखे जाने की कल्पना कम से कम मैंने तो नहीं की थी। कपिल साहब को कविताएँ लिखने का भी शौक़ है और जब उन्हें इस फिल्म के गीतों को लिखने का अवसर मिला तो उन्होंने खुशी खुशी हामी भर दी।

नीलाद्रि कुमार
इस गीत को रचने के लिए कपिल सिब्बल ने मशहूर सितार वादक नीलाद्रि कुमार जो इस फिल्म के संगीतकार भी हैं और कपिल के चहेते वादक भी के साथ नौ महीने का वक़्त लिया। नीलाद्रि कुमार संगीत की दुनिया में उभरता हुआ नाम हैं और अपने द्वारा विकसित किए गए वाद्य यंत्र जिटार के लिए वे काफी चर्चा में रहे थे। आप सोच रहे होंगे कि आख़िर ये जिटार क्या बला है? दरअसल जिटार एक इलेक्ट्रिक सितार है। जिटार को विकसित करने में नीलाद्रि की सोच के पीछे दो कारण थे। पहले तो सितार के प्रति विश्व के संगीतज्ञों का ध्यान आकर्षित करना और दूसरे ताल वाद्यों के शोर में से सितार की ध्वनि को मुखरित करना । नीलाद्रि कहते हैं कि जिटार का एक अपना मुकाम है और इसे सितार और गिटार का संकर नहीं मानना चाहिए।

नीलाद्रि ने इस गीत में पियानो की धुन के बीच उभरते कोरस के साथ गीत की शुरुआत की है।  यूँ तो जिटार गीत के पार्श्व में जब तब अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहता है पर गीत में डेढ़ मिनट के बाद इसकी आवाज़ आप स्पष्टता से सुन सकते हैं। ज़िंदगी में बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं जो आपके आस पास तो नहीं रहते पर जिनसे दिल का नाता बरसों का रहता है। कपिल ऐसे ही एक किरदार के दिल की बेचैनी को गीत में व्यक्त करते हैं।  प्रेम और विरह की बातें बड़े सहज शब्दों में कहते इस गीत को अरिजीत सिंह अपनी गायिकी के शास्त्रीय अंदाज़ से खास बना देते हैं।

तेरे बिना जी ना लगे , तेरे बिना जी ना लगे

नज़रों में भी तू ही दिखे, तुम ना मिले रातों जगे
ख़ामोशी में सब कह गए हैं, जहां मिल गया, जब तुम मिले
आगे बढ़े सब जान के, तेरे लिए हम जी रहे

है याद मुझे तेरी हर अदा, तेरी बातों में नशा ही नशा
खयालों में मैं तेरे खो गया, रहूँ न रहूँ तेरा हो गया
साथी बना साया ही रहा, दूरी में भी करीब ही रहा
मिलने पे भी जी ना भरा, तुम ना रहे सब खो गया
तेरे बिना जी ना लगे , तेरे बिना जी ना लगे


हाँ चलते चलते इस गीत से जुड़े कुछ और रोचक तथ्य। गीत के कोरस में समाज के वंचित वर्गों के बच्चों को प्रशिक्षित कर उनकी आवाज़ का इस्तेमाल किया गया है। पानी के अंदर गीत के एक बड़े हिस्से को फिल्माया गया है तुर्की की मशहूर मॉडल और इस फिल्म की नायिका सूहा पर !
 

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