जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वार्षिक संगीतमाला 2024 के 25 बेहतरीन गीतों की फेरहिस्त में आज बारी है उस गीत की जिसे संगीतबद्ध किया एक बार फिर से संगीतकार जोड़ी सचिन जिगर ने, लिखा भी पिछले गीत की तरह अमिताभ भट्टाचार्य ने पर आवाज़ (वो जो इस गीतमाला में पहली बार सुनाई देगी) है विशाल मिश्रा की। यह गीत है फिल्म स्त्री 2 का और यहां बात हो रही है खूबसूरती की।
हिंदी फिल्म जगत में नायिका की खूबसूरती पर तमाम गीत लिखे गए हैं। हर गीत में स्त्री की सुंदरता के बारे में नए नए विचार..नई-नई काव्यमय कल्पनाएं।
1968 में इन्दीवर ने फिल्म सरस्वतीचंद के गीतों के लिए बेहद प्यारे शब्द रचे थे। शुद्ध हिंदी में वर्णित उनका सौदर्य बोध सुनते ही बनता था। क्या मुखड़ा था ...चंदन सा बदन, चंचल चितवन धीरे से तेरा ये मुस्काना...मुझे दोष ना देना जगवालों, हो जाऊँ अगर मैं दीवाना.
इस गीत के अंतरे भी सौंदर्य प्रतिमानों से भरे पड़े थे । मसलन पहला अंतरा कुछ यूं था। ये काम कमान भंवे तेरी, पलकों के किनारे कजरारे...माथे पर सिंदूरी सूरज, होंठों पे दहकते अंगारे....साया भी जो तेरा पड़ जाए....आबाद हो दिल का वीराना। लगभग सत्तर सालों बाद भी ये गीत कानों में वैसी ही मिसरी घोल देता है।
नब्बे के दशक की शुरुआत में 1942 A Love Story फिल्म में जावेद अख्तर साहब का वह गीत आपको जरूर याद होगा जिसमें उन्होंने एक लड़की की खूबसूरती को इतने सारे बिंबों में बांधा था कि कहना ही क्या। वह गीत था एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा। उस गीत मैं एक कन्या की तुलना एक खिलते गुलाब, शायर के ख़्वाब, उजली किरण, वन में हिरण, चांदनी रात, सुबह का रूप, सर्दी की धूप जैसे 21 रूपकों से की गई थी। गाना सुनते हुए उस वक्त दिल करता था कि रूपकों का ये सिलसिला चलता रहे।
वैसे खूबसूरत शब्द को लेकर नीलेश मिश्रा ने फिर 2005 में फिल्म रोग के लिए लिखा कि खूबसूरत है वो इतना सहा नहीं जाता..कैसे हम ख़ुद को रोक लें रहा नहीं जाता....चांद में दाग हैं ये जानते हैं हम लेकिन....रात भर देखे बिना उसको रहा नहीं जाता
एम एम कीरावनी के संगीत और उदित नारायण की अदायगी ने तब इस गीत को खासी लोकप्रियता दिलवाई थी। पिछले साल अमिताभ भट्टाचार्य ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चौदहवीं पायदान के इस गीत के लिए क्या खूब लिखा कि
धूप भी तेरे रूप के सोने पे, कुर्बान हुई है तेरी रंगत पे खुद, होली की रुत हैरान हुई है तुझको चलते देखा, तब हिरणों ने सीखा चलना तुझे ही सुनके कोयल को, सुर की पहचान हुई है तुझसे दिल लगाए जो, उर्दू ना भी आए तो शख़्स वो शायरी करने लगता है कि कोई इतना खूबसूरत....कैसे हो सकता है?
अब कोयल और हिरण तो बेजुबान ठहरे वर्ना अमिताभ पर मानहानि का मुकदमा जरूर दायर करते। वैसे मजाक एक तरफ अमिताभ के लिखे बोलों में एक नयापन तो है ही जो सुनने में अच्छा लगता है।
सचिन जिगर यहां संगीत संयोजन में एक पाश्चात्य वातावरण रचते हैं जिसमें थिरकने की गुंजाइश रह सके हालांकि फिल्म की कहानी से इसका कोई लेना देना नहीं है। दरअसल ये गीत फिल्म के मूल कथानक के समाप्त होने के बाद आता है जहां वरुण धवन अतिथि कलाकार के रूप में पहली बार अपनी शक्ल दिखाते हैं। आजकल फिल्मी गीतों के बीच कोरस का प्रचलन बढ़ गया है। सचिन जिगर भी इसी शैली का यहां सफल अनुसरण करते दिखते हैं।
रही गायिकी की बात तो विशाल मिश्रा का गाने का अपना एक अलग ही अंदाज है। वह हर गाना बड़ा डूब कर गाते हैं। युवाओं का उनका ये तरीका भाता भी है। कबीर सिंह, एनिमल और हाल फिलहाल में सय्यारा में उनके गाए गीत काफी लोकप्रिय हुए हैं। ये अंदाज़ रूमानी गीतों पर फबता भी है पर बार बार वही तरीका अपनाने से एक एकरूपता भी आती है जिससे विशाल को सावधान रहना होगा।
तो आइए सुनते है ये गीत जिसे फिल्माया गया है राज कुमार राव, वरुण धवन और श्रद्धा कपूर पर
खूबसूरती पर तेरी, खुद को मैंने कुर्बान किया मुस्कुरा के देखा तूने, दीवाने पर एहसान किया खूबसूरती पर तेरी, खुद को मैंने कुर्बान किया मुस्कुरा के देखा तूने, दीवाने पर एहसान किया कि कोई इतना खूबसूरत, कोई इतना खूबसूरत कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकता है?
जो देखे एक बार को, पलट के बार-बार वो खुदा जाने, क्यों तुझे देखने लगता है सच बोलूं ईमान से, ख़बर है आसमान से हैरत में चांद भी तुझको तकता है कि कोई इतना खूबसूरत....कैसे हो सकता है?
चलते चलते तो मैं बस आदिल फ़ारूक़ी साहब का ये शेर अर्ज करना चाहूंगा कि
वार्षिक संगीतमाला की 15वें पायदान पर विराजमान इस अगले रूमानी गीत को लिखा है अमिताभ भट्टाचार्य ने। Dev D और आमिर जैसी फिल्मों से अपना लगभग दो दशकों का फिल्मी सफ़र तय करने वाले अमिताभ आज के युग के शैलेन्द्र कहे जा सकते हैं। सहज बोलों से जादू पैदा करना उनकी फितरत रही है। हालांकि वो फिल्म उद्योग में एक गीतकार नहीं बल्कि एक गायक बनने आए थे।
गायक के रूप में वो अपने आप को स्थापित तो नहीं कर पाए पर उसी संघर्ष के दौरान मिले गीत लिखने के मौकों से उनके मन में ये विश्वास जगा कि वो एक सफल गीतकार बन सकते हैं। शुरुआती दिनों में गायिकी का सपना उनके मन में इतना जोर मारता था कि वो गीत लिखते वक्त अपना नाम इंद्रनील रख लेते थे ताकि लोग उन्हें सिर्फ बतौर गायक जानें। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि तेरी बातों में ऐसा उलझा जिया के इस गीत "तुम से..." को भी उन्होंने इंद्रनील के नाम से लिखा है। पर आज जब वो लोकप्रियता की ऊंचाइयों पर हैं तो उनके द्वारा इस नाम को अपनाने का कारण कुछ दूसरा है।
उन्होंने ऐसा फैसला किया है कि जिस फिल्म में सारे गीत उनसे नहीं लिखवाए जाएंगे उसमें वो अपना असली नाम नहीं देंगे।
अमूमन मैं ज्यादा फिल्में नहीं देखता पर संयोगवश ये ओटीटी पर देख ली थी। शाहिद कपूर यहां एक ऐसी कन्या के प्यार में पड़े है जो कि एक सामान्य मनुष्य नहीं बल्कि रोबोट है। हालांकि इस गीत से शायद ही आपको इस फिल्म की अलग सी प्रेम कथा का अनुमान मिलेगा।
इसका एक कारण ये भी है कि संगीतकार सचिन जिगर ने अमिताभ से ये गीत फिल्म बनने के पहले ही लिखा लिया था। उन्होंने इस गीत को गवाया युवा गायक वरुण जैन से जिनकी आवाज़ से इस गीत माला में शामिल पिछले गीत से आप रूबरू हो चुके हैं। अलीगढ़ से ताल्लुक रखने वाले वरुण अपनी गायिकी में बहुत कुछ अरिजीत की याद दिला जाते हैं। जिस तरह से उनके गाए चुनिंदा गीत फिल्मों में हिट हो रहे हैं उससे स्पष्ट है कि लोग उनकी आवाज़ को पसंद कर रहे हैं। हालांकि लंबे समय तक संगीतप्रेमी उन्हें याद रखें उसके लिए ये जरूरी होगा कि वो अपना एक अंदाज़ विकसित करें।
वरुण से जब बचपन में पूछा जाता था कि बड़े होकर क्या बनोगे तो उनका एक ही जवाब होता था कि मैं सिंगर बनेगा हालांकि उसे छोटी उम्र में उन्हें यह भी नहीं मालूम था कि सिंगर बनना का मतलब क्या है और सिंगर कैसे बना जाता है।
वरुण बचपन में पोगो चैनल काफी देखा करते थे और उनमें जो कार्यक्रम आते थे जैसे नोडी का किरदार उन्हें बहुत पसंद था तो नोडी जो भी गाता था वह उसके साथ गाते थे। ऐसे तो घर में संगीत का कोई ऐसा माहौल नहीं था पर यह जरूर था कि वरुण के दादाजी गाते और लिखते भी थे। उसका असर वरुण पर जरूर पड़ा। वरुण को फिल्मों में गाने का मौका सबसे पहले सचिन जिगर ने ही दिया था और इस गीत को भी गाते हुए उनका ब्रीफ यही था कि इसके खूबसूरत बोलों को जितना दिल लगा कर गा सकते हो उतना कोशिश करो और वरुण ने क्या खूबसूरत कोशिश की।
अलग तुझमें असर कुछ है कि दिखता नहीं मगर कुछ है फ़िदा हूँ मैं तो एक नज़र, बस एक नज़र बस एक नज़र तक के लगे भी तो ये और किधर, अब और किधर दिल संग तेरे लग के
सही वो भी लगे मुझको ग़लत तुझमें अगर कुछ है अलग तुझमें असर कुछ है
तुम से किरण धूप की तुम से सियाह रात है तुम बिन मैं बिन बात का तुम हो तभी कुछ बात है
तेरी ये सोहबत हुई मुझे नसीब है जब से थोड़ा तो बेहतर, ख़ुदा क़सम, हुआ हूँ मैं मुझसे है तू ही तू तसव्वुर में, है तू ही तू तसव्वुर में कहाँ अपनी ख़बर कुछ है, अलग तुझमें असर कुछ है, हो तुम से किरण धूप की...तुम हो तभी कुछ बात है
करिश्मे सच में होते हैं इस बात की तू मिसाल है सवालों का जवाब है या ख़ुद ही तू एक सवाल है? जितनी भी तारीफ़ करूँ मैं , वो कम है क़सम से, तू कमाल है, तू कमाल है
सचिन जिगर की रची इस गीत की मेलोडी मन को सुकून देती है खासकर तुम से किरण धूप की वाला हिस्सा तो बड़ा प्यारा लगता है। तो आइए आप भी सुनिए इस गीत को अगर आपने न सुना हो इसे अब तक
वार्षिक संगीतमाला में 2023 के पच्चीस बेहतरीन गीतों की शृंखला अब अपने अंतिम चरण में आ पहुंची है। आज जिस गीत के बारे में मैं आपसे चर्चा करने जा रहा हूं उसकी रूपरेखा एक विशुद्ध मुंबईया फिल्मी गीत सरीखी है। यहां हसीन वादियां हैं, खूबसूरत परिधानों में परी सी दिखती नायिका है और साथ में एक छैल छबीला नायक जो हवा के झोंकों के बीच बहती सुरीली धुन और मन को छूते शब्दों में अपने प्रेम का इज़हार कर रहे हैं। हालांकि वास्तव में नायक वहां है नहीं पर नायिका उसकी उपस्थिति महसूस कर रही है। यथार्थ से परे होकर भी भारतीय दर्शक गीतों में इस larger than life image को दिल से पसंद करते हैं क्यूंकि ऐसे गीतों की परंपरा हिन्दी सिनेमा में शुरू से रही है या यूं कह लें कि ये बॉलीवुड की विशिष्टता है जिसे हम सबने अपनी थाती बनाकर अपने दिल में बसा लिया है।
ये गीत है फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी से। पिछले साल के अंत में आई ये फिल्म हिट तो हुई ही थी, इसके गाने भी खूब पसंद किए गए थे। वे कमलेया और वाट झुमका से तो आप परिचित होंगे ही। आज के गीत, तुम क्या मिले जो इस फिल्म का मेरा सबसे पसंदीदा गीत है, को मैंने पिछले साल खूब सुना था और अब तक सुन रहा हूं। मुझे यकीन है कि अगर आपने ये गीत अब तक नहीं सुना तो इसे सुन कर आप अवश्य इसकी मधुरता के कायल हो जाएंगे।
अक्सर गीतों के मुखड़ों के पहले कई संगीतकार पियानो का बेहद प्यार इस्तेमाल करते हैं। तुम क्या मिले की शुरुआत भी इसी वाद्य यंत्र से होती है। जब जब इस गीत को सुनना शुरु करता हूँ पियानो की ये धुन मुझे अलग ही दुनिया में ले जाती है। वो जो प्रेम की मीठी सी कसक होती है न वही कुछ है हिमांशु पारिख के बजाए मन को तरंगित करते इस टुकड़े में । मन इस स्वरलहरी में हिलोरे ले ही रहा होता है कि अमिताभ भट्टाचार्य के शब्द समय के उस छोर पे मुझे ले जाते हैं जब ऐसी ही भावनाएँ दिल में घर बनाया करती थीं।
भला किसको अपनी ज़िंदगी में किसी ऐसे शख़्स से मिलने का इंतज़ार नहीं होता जो उसकी बेरंगी शामों को रंगीन बना दे। फीके लम्हों में नमकीनियाँ भर दे। और जब दिल की ये मुराद पूरी हो जाती है तो यही चाहत बेचैनी और मुसीबत का सबब भी बन जाती है और इसीलिए अमिताभ ने गीत के मुखड़े में लिखते हैं
बेरंगे थे दिन, बेरंगी शामें
आई हैं तुम से रंगीनियाँ
फीके थे लम्हे जीने में सारे
आई हैं तुम से नमकीनियाँ
बे-इरादा रास्तों की बन गए हो मंज़िलें
मुश्किलें हल हैं तुम्हीं से या तुम्हीं हो मुश्किलें?
पियानो की मिठास अब भी इन शब्दों के पीछे बरक़रार रहती है। अरिजीत के मोहक स्वर में तुम क्या मिले की पंच लाइन आते आते ढोलक, तबले के साथ साथ तार वाद्य और ट्रम्पेट अपनी संगत से गीत का मूड खुशनुमा कर देते हैं और फिर फ़िज़ा में तैर जाती है श्रेया की दिलकश आवाज़। अंतरों के बीच श्रेया का आलाप रस की फुहार जैसा प्रतीत होता है। प्रीतम मेलोडी के बादशाह है। श्रोताओं के कानों में कब कैसा रस घोलना है वो बखूबी जानते हैं। अरिजीत, श्रेया और अमिताभ उनके संगीत संयोजन को गायिकी और बोल से ऐसे उभारते हैं कि मन रूमानी हो ही जाता है। गीत का अंत तरार वाद्यों के साथ बजते ट्रम्पेट के उत्कर्ष से होता है।
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले हम ना रहे हम, तुम क्या मिले जैसे मेरे दिल में खिले फागुन के मौसम, तुम क्या मिले तुम क्या मिले, तुम क्या मिले तुम क्या मिले, तुम क्या मिले
कोरे काग़ज़ों की ही तरह हैं इश्क़ बिना जवानियाँ दर्ज हुई हैं शायरी में, जिनकी हैं प्रेम कहानियाँ हम ज़माने की निगाहों में कभी गुमनाम थे अपने चर्चे कर रही हैं अब शहर की महफ़िलें
तुम क्या मिले,....
हम थे रोज़मर्रा के, एक तरह के कितने सवालों में उलझे उनके जवाबों के जैसे मिले झरने ठंडे पानी के हों रवानी में, ऊँचे पहाड़ों से बह के ठहरे तालाबों से जैसे मिले
तुम क्या मिले....
गीत के बारे में इतना कुछ कहने के बाद इसके फिल्मांकन की बात ना करूँ तो कुछ चीजें अधूरी रह जाएँगी। करण जौहर ने जब इस गीत का फिल्मांकन किया तो उनके मन में यश चोपड़ा की फिल्मों के गीत उमड़ घुमड़ रहे थे।
इस गीत में गुलमर्ग, पहलगाम और श्रीनगर के शूट किए दृश्य इतने शानदार हैं कि उन्हें देख मन बर्फ की वादियों में तुरंत लोट पोट करने का करता है। अमिताभ एक जगह लिखते हैं झरने ठंडे पानी के हों रवानी में, ऊँचे पहाड़ों से बह के ..ठहरे तालाबों से जैसे मिले...तुम क्या मिले.... और कैमरा पहाड़ से गिरती बलखाती नदी का एरियल शॉट ले रहा होता है।
प्राकृतिक खूबसूरती के साथ साथ आलिया बर्फ की सफेद चादर के परिदृश्य में अपनी रंग बिरंगी शिफॉन की साड़ियों से दर्शकों का मन मोह जाती हैं। इस गीत के बाद उन साड़ियों का ऐसा क्रेज हुआ कि वे कुल्फी साड़ियों के नाम से बाजार में बिकने भी लगीं। आलिया के व्यावसायिक कौशल की तारीफ़ करनी होगी कि प्रेगनेंसी के चार महीने बाद ही पूरी तरह फिट हो कर इस गीत के लिए कश्मीर के ठंडे मौसम में अपने आप को तैयार किया।
आइए देखें ये पूरा गीत जो है रॉकी और रानी की प्रेम कहानी का।
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
वार्षिक संगीतमाला में अब सिर्फ पाँच गीतों से आपका परिचय कराना रह गया है और उनमें से आज का गीत है फिल्म रॉकी और रानी की प्रेम कहानी से। गीत का मुखड़ा शुरु होता है वे कमलेया.. से। हिंदी फिल्म के गानों ने पिछले एक दो दशकों में आम जन को हिंदी से ज्यादा पंजाबी शब्दों से खासा रूबरू कराया है भले ही पंजाबी चरित्र फिल्म में हों या ना हों। वैसे यहाँ वो मसला नहीं है और बात रॉकी रंधावा के पागल दिल की हो रही है। दरअसल कमलेया शब्द कमली से निकला है जिसका शाब्दिक अर्थ है पागल या जुनूनी।
पिछले साल आई फिल्मों में रॉकी और रानी की प्रेम कहानी की सफलता का बहुत बड़ा श्रेय इसके संगीत को जाता है। फिल्म का संगीत रचने के पहले निर्माता करण जौहर ने दो हिदायतें दी थीं प्रीतम को। पहली ये कि गाने लंबे यानी कम से कम दो अंतरों के होने चाहिए और दूसरी कि गीतों में नब्बे के दशक की छाप होनी चाहिए। हालांकि फिल्म के संपादन में अक्सर गाने की लंबाई पर कैंची चलती है। इस फिल्म में भी यही हुआ पर उसके पहले पूरा एलबम इतना कामयाब हो चुका था कि मेरे जैसे दर्शक तो फिल्म के गाने सुनते सुनते इसे देखने पहुँच गए। अंतरों के बीच कोरस का इस्तेमाल तो पहले भी होता था और प्रीतम ने उसी खांचे को यहाँ भी फिट करने की कोशिश की है।
जहाँ फिल्म की कथा में भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा हो तो कोई गीत तभी दिल को छूता है जब उसके शब्द के साथ आप अपने को जोड़ पाएँ। प्रेम या विरह गीतों के साथ ये सहूलियत है कि आप उन्हें फिल्म से इतर भी सुनें तो वो उतना ही असर छोड़ते हैं क्यूँकि ये ऐसे जज़्बात है जिन्हें शायद ही किसी ने महसूस नहीं किया होगा। अमिताभ प्रेमी के बेचैन दिल की दास्तान की कितनी प्यारी शुरुवात करते हुए लिखते हैं ....दो नैनों के पेचीदा सौ गलियारे इन में खो कर तू मिलता है कहाँ?......तुझको अम्बर से पिंजरे ज्यादा प्यारे उड़ जा कहने से सुनता भी तू है कहाँ ? अमिताभ की लेखनी का कमाल दूसरे अंतरे में भी बना रहता है। प्रेम में डूबे दिल के लिए कितना सही लिखा उन्होंने..... जिनपे चल के मंजिल मिलनी आसान हो, वैसे रस्ते तू चुनता है कहाँ.?... कसती है दुनिया कस ले फ़िक़रे, ताने उँगली पे आखिर गिनता भी तू है कहाँ ?
प्रीतम की मेलोडी पर बेहतरीन पकड़ है। उनकी फिल्मों में बोल लिखने का काम ज्यादातर या तो अमिताभ के पास होता है या फिर इरशाद कामिल के पास। दोनों ही कमाल के गीतकार हैं। रही बात अरिजीत की तो वो हमेशा संगीतकार की अपेक्षा से बढ़कर कर काम करते हैं। प्रीतम, अमिताभ और अरिजीत के मन के तार कहीं और भी जा के मिलते हैं। अरिजीत और अमिताभ ने अपने कैरियर के आरंभिक दौर में प्रीतम के सहायक का काम किया था। संघर्ष के उन दिनों में इस बंगाली जोड़ी को निर्माता निर्देशकों तक पहुँचाने में प्रीतम की अहम भूमिका थी। इतना समय साथ बिताने की वज़ह से उनके बीच की आपसी समझ पुख्ता हुई है। यही वज़ह है कि ये तिकड़ी जहाँ भी एक साथ होती है कुछ अच्छा बन के ही निकलता है।
वे कमलेया वे कमलेया, वे कमलेया मेरे नादान दिल दो नैनों के पेचीदा सौ गलियारे इन में खो कर तू मिलता है कहाँ तुझको अम्बर से पिंजरे ज्यादा प्यारे उड़ जा कहने से सुनता भी तू है कहाँ गल सुन ले आ गल सुन ले आ वे कमलेया मेरे नादान दिल
जा करना है तो प्यार कर ज़िद पूरी फिर इक बार कर कमलेया वे कमलेया मनमर्ज़ी कर के देख ले बदले में सब कुछ हार कर कमलेया वे कमलेया
तुझपे खुद से ज्यादा यार की चलती है इश्क़ है ये तेरा या तेरी गलती है गर सवाब है तो क्यों सज़ा मिलती है
जिनपे चल के मंजिल मिलनी आसान हो वैसे रस्ते तू चुनता है कहाँ.
कसती है दुनिया कस ले फिकरे ताने
उँगली पे आखिर गिनता भी तू है कहाँ मर्ज़ी तेरी जी भर ले आ वे कमलेया मेरे नादान दिल...
अरिजीत के साथ गीत का एक छोटा सा हिस्सा श्रेया ने भी गाया है। एक साल बीत गया पर अभी भी ये गीत लोगों की जुबां पे है। तो आइए सुनें इस गीत को एक बार फिर
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
वार्षिक संगीतमाला में शामिल आज का ये गीत शायद ही आपने न सुना हो क्योंकि पिछले साल एफएम रेडियो पर खूब बजा और यू ट्यूब पर भी करोड़ों लोगों की पसंद बना। दरअसल हर फिल्म में एक ऐसा गीत रखने की कोशिश होती है कि जो फिल्म रिलीज़ के पहले ही इतनी लोकप्रियता अर्जित कर ले कि लोग उसे पर्दे पर देखने के लिए सिनेमाघरों में खिंचे चले जाएं।
संगीतमाला की इस पायदान पर के संगीतकार हैं सचिन जिगर। सचिन यानि सचिन संघवी और जिगर यानि जिगर सरैया की ये जोड़ी फिल्म जगत में ये पिछले डेढ़ दशक से सक्रिय हैं। पहले संगीतकार राजेश रोशन और फिर प्रीतम के लिए काम करने के बाद हिंदी फिल्म संगीत में इन्होंने स्वतंत्र रूप से काम करना शुरु किया।
शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लिये हुए सचिन के मन में संगीतकार बनने का ख्वाब ए आर रहमान ने पैदा किया। सचिन रोज़ा में रहमान के संगीत संयोजन से इस क़दर प्रभावित हुए कि उन्होंने ठान लिया कि मुझे भी यही काम करना है। अपने मित्र अमित त्रिवेदी के ज़रिए उनकी मुलाकात ज़िगर से हुई। दो गुजरातियों का ये मेल एक नई जोड़ी का अस्तित्व ले बैठा।
सचिन जिगर की जोड़ी को विश्वास था कि ज़रा हटके ज़रा बचके फिल्म के लिए बनाई उनकी इस धुन और अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे बोलों में ये बात है, बस वो एक ऐसा गायक लेना चाहते थे जो इस धुन और बोलों को अपनी गायिकी से जनता के हृदय में ले जा सके।
अब इस काम के लिए अरिजीत सिंह से बेहतर गायक कौन हो सकता था? वैसे भी सचिन जिगर की इस गुजराती संगीतकार जोड़ी का अरिजीत से पुराना राब्ता रहा है। अरिजीत ने अपने शुरुआती दौर में जब प्रीतम के लिए सहायक की भूमिका निभाई थी तब सचिन जिगर वहां अरेंजर हुआ करते थे।
सचिन जिगर ने संगीतकार के साथ गायक की भी भूमिका कई बार निभाई है पर जब जिक्र अरिजीत का होता है तो वो हमेशा उनकी प्रतिभा और विनम्रता की प्रशंसा करते नहीं थकते। उनका कहना है कि अरिजीत अपनी आवाज़ की बनावट में परिवर्तन करना जानते हैं। उनसे आप किसी तरह के भी गाने गवा सकते हैं। कंपोजर तो हैं ही। और इतना सब होते हुए भी वे व्यवहार में उतनी ही सहजता के साथ सबसे पेश आते हैं। इसीलिए उनके साथ काम करना किसी भी संगीतकार के लिए यादगार पल होता है। उनके हिसाब से तू है तो मुझे और क्या चाहिए में अरिजीत की गायिकी खिल के बाहर आई है।
अमिताभ का लिखा मुखड़ा सचिन जिगर की धुन के साथ जल्द ही जुबां पर चढ़ता है। मुखड़े के अलावा मुझे इस गीत की सबसे प्यारी पंक्ति ज़ख्मों को मेरे मरहम की जगह बस तेरा छुआ चाहिए लगती है।
वाद्य यंत्रों में सचिन जिगर ने बांसुरी और गिटार का प्रमुखता से किया है पर गीत की जान सचिन जिगर की धुन और अरिजीत की गायिकी ही है।
बदले तेरे माही, ला के जो कोई सारी दुनिया भी दे दे अगर तो, किसे दुनिया चाहिए तू है तो मुझे, फिर और क्या चाहिए तू है तो मुझे, फिर और क्या चाहिए किसी की ना मदद, ना दुआ चाहिए तू है तो मुझे फिर और क्या चाहिए सौ बार जनम लूं तो भी तू ही हमदम हर दफा चाहिए
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
वार्षिक संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर पिछले गीत की तरह ही एक बार फिर हल्का फुल्का गीत है जो कि पिछले साल खूब पसंद किया गया। फिल्म है ज़रा हटके ज़रा बचके और गाना तो आप समझ ही गए होंगे "तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा..."।
हिंदी फिल्मों में तो चाँद सितारों को तोड़ के लाने की बातें पहले भी हुई हैं। शाहरुख खाँ पर फिल्माया एक गाना चाँद तारे तोड़ लाऊँ बस इतना सा ख़्वाब है.... तो आपको याद ही होगा। पर जब प्रेम का ही प्रदर्शन करना है तो इतनी तोड़ फोड़ क्यूँ करनी? इसीलिए गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने इस बार जुमला बदला और लिखा ..तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाउँगा, सोलह सत्रह सितारे संग बाँध लाउँगा🙂
तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाउँगा
सोलह सत्रह सितारे संग बाँध लाउँगा
चाँद तारों से कहो, अभी ठहरें ज़रा
चाँद तारों से कहो कि अभी ठहरें ज़रा पहले इश्क़ लड़ा लूँ उसके बाद लाउँगा हम हैं ज़रा हट के, जनाब-ए-आली रहना ज़रा बच के....
पर इस गीत की खासियत ये नहीं कि वादा क्या किया जा रहा है। खासियत ये है कि वादे से किस खूबसूरती से पलटा जा रहा है। अमिताभ आगे लिखते हैं
देखा जाए तो वैसे, अपने तो सारे पैसे रह के ज़मीन पे ही वसूल हैं चेहरा है तेरा चंदा, नैना तेरे सितारे अंबर तक जाना ही फ़िज़ूल है
अंबर तक जाना ही फ़िज़ूल है
इसके बाद भी अगर तुझे चैन ना मिले पूरी करके मैं तेरी ये मुराद आउँगा तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाउँगा सोलह सत्रह सितारे संग बाँध लाउँगा
अगर ये काबिलियत आप में आ गयी तो प्रेम से लेकर राजनीति सारे समीकरण अपके पक्ष में ही बैठेंगे। सचिन जिगर ने ताल वाद्यों और गिटार के साथ एक फड़कती सी धुन बनाई है जिस पर आप नायक नायिका की तरह आसानी से ठुमके लगा सकते हैं।
पहली बार जब मैंने इस गीत को सुना तो लगा कि ये गाना भी अरिजीत ने गाया होगा पर बाद में पता चला कि गवैया तो कोई और है। दरअसल इस गीत को गाया है युवा गायक वरूण जैन ने। अरिजीत की गायिकी का उन पर स्पष्ट प्रभाव है। मैंने जब उनके गाए पिछले गानों को खँगाला तो पाया कि उन्होंने इससे पहले अरिजीत के गीतों के कई कवर वर्जन गाए हैं।
वैसे इसके दो साल पहले उन्हें फिल्म हम दो हमारे दो में रेखा भारद्वाज जैसी हुनरमंद गायिका के साथ गाने का मौका मिल चुका है। पर तेरे वास्ते ने उनकी गायिकी को गुमनामी के अंधेरों से निकाल कर सबके सामने ला दिया है।
इस गीत की सफलता के बाद वरुण ने कहा है कि लोगों की अपेक्षाएँ उनसे और बढ़ गयी हैं और अपने संगीत के प्रति वे पहले से ज्यादा जिम्मेदार हो गए हैं। आशा है वो आगे भी अपनी आवाज़ से श्रोताओं का दिल जीतते रहेंगे।
देखने से लगते तो नहीं पर 34 वर्षीय वरुण की आवाज़ में एक ताज़गी है। अपने म्यूजिक वीडियोज़ वे बिल्कुल सादा लिबास में बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ गिटार लिए मिलेंगे।
गीत के कोरस में वरूण का बखूबी साथ दिया है जिगर सरैया और फरीदी बंधुओं ने। तो आइए सुनते हैं ये मज़ेदार गीत
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
वार्षिक संगीतमाला में आज का गीत फिल्म मिमी से। फिल्म का संगीत एक बार फिर ए आर रहमान ने दिया था। इस फिल्म में कई गीत हैं। खासकर डांस नंबर पसंद करने वाले गीत परम सुंदरी पर कई बार झूम चुके होंगे। पर 2021 के 15 उल्लेखनीय गीतों की मेरी सूची में इस फिल्म का वो गाना शामिल हो रहा है जिसमें आवाज़ है कैलाश खेर की और शब्द अमिताभ भट्टाचार्य के।
पिछले साल सरोगेसी जैसे विषय पर बनी ये फिल्म काफी सराही गयी थी। जिस बच्चे को आप अपने गर्भ में नौ महीने तक पालते हैं उससे एक भावानात्मक लगाव हो जाना स्वाभाविक सा है खासकर तब जब जन्म के बाद भी उसका कुछ सालों तक लालन पालन आपने किया हो। सच्ची बात तो ये है कि शिशु के लिए तो माँ वही है जिसने उसे पाला पोसा हो। उसे क्या पता खून या गर्भ के रिश्ते के बारे में। संसार में आने के बाद जहाँ से ममता की छाँव मिली उसी को उसने माँ का सच्चा रूप मान लिया।
नायिका मिमी की आपबीती भी कुछ ऐसी ही है। मिमी ने पैसे लेकर गर्भ धारण किया पर बच्चे के जन्म के पहले ही उसे उसके वास्तविक माता पिता ने त्याग दिया और फिर सालों बाद जब उनकी मति फिरी तो मिमी और उसके परिवार के लिए उस बच्चे को छोड़ना असहनीय हो उठा।
परिवार की इसी पीड़ा को अमिताभ भट्टाचार्य ने इस गीत में अपने शब्द दिए हैं। गीतों के बोल और रहमान द्वारा दिया संगीत एक लोकगीत सा माहौल रचता है। कैलाश खेर की धारदार आवाज़ इस दुख को और गहरा कर देती है। कैलाश एक कमाल के गायक हैं। विगत कुछ वर्षों से निजी जीवन में अपने आचार व्यवहार की वज़ह से कई विवादों से घिरे रहे हैं। यही कारण है कि उनकी रुहानी आवाज़ श्रोताओं को पिछले एक दो सालों में कम सुनने को मिली है।
अमिताभ वैसे गीतकारों में हैं जिन्हें साल दर साल अपने गीतों का स्तर बनाए रखा है और उनकी लेखनी फिल्म की कहानी के अनुरूप गीत के मूड को अपने बोलों से ढालने में सफल रही है। इसी गीत में देखिए कितने प्यारे बोल लिखे हैं उन्होंने ...
छोटी सी चिरैया छोटी सी चिरैया उड़के चली किस गाँव रह गया दाना रह गया पानी सूनी भई अमवा की छाँव मुनिया मोरी सूनी भई अमवा की छाँव छोटी सी चिरैया ... गाँव
अजब निराली मोह की माया, समझे समझ नहीं आए अंगना से तोरी चहक तो जाए, तोहरी महक नहीं जाए नैन समंदर सात भरे पर , भरे ना करेजवा के घाव मुनिया मोरी भरे ना करेजवा के घाव छोटी सी चिरैया छोटी सी चिरैया ..
दे विदाई में तुझे क्या कीमती समान दे जा निंदिया रैन की सुबहों की ले मुस्कान भरके अपनी चोंच में ले जा हमरे प्राण आ छोटी सी चिरैया ...की छाँव
रहमान ने संगीत संयोजन में मुखड़े और पहले अंतरे के बीच विश्व मोहन भट्ट द्वारा बजाई मोहन वीणा पर सबसे पहले ध्यान जाता है। मुखड़े और दूसरे अंतरे में वीणा के साथ सारंगी का छोटा सा टुकड़ा भी आपको सुनने को मिलेगा। कैलाश खैर की बुलंद आवाज़ के साथ वैसे भी ज्यादा साज़ों की आवश्यकता नहीं होती। बस संगत में घटम, तबले व हारमोनियम का धीमा मधुर स्वर कानों को सहलाता चलता है। पर ये सब सुनने के लिए आपको गीत का ऑडियो सुनना होगा। वीडियो वर्जन में गीत का पहला अंतरा नहीं है।
अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत नीचे से ऊपर के क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी।
जैसा मैंने पहले भी आपको बताया कि इस बार की वार्षिक संगीतमाला में गीत बिना किसी क्रम यानी रैंकिंग के बज रहे हैं। मेरी कोशिश है कि हर मूड के गीत को बारी बारी से पेश करूँ। राताँ लंबियाँ सुनकर आप जहाँ झूम उठे थे, वहीं जीतेगा जीतेगा में एक जोश पैदा करनी की ताकत थी जबकि पिछली पोस्ट दिल उड़ जा रे में नायिका के मन की मायूसी गीत में उभर कर आई थी। मायूसी के बादलों से बाहर निकलते हुए आज बारी है रूमानियत की नदी में गोते लगाने की एक प्यारी सी सोच के साथ।
आज का गीत है फिल्म रूही से जिसकी भूत प्रेत वाली कहानी के बारे कुछ ना ही कहा जाए तो बेहतर रहेगा क्यूँकि बहुत लोगों को ये अझेल लगी थी। फिल्म का आइटम नंबर नदियों पार सजन दा थाना ही सिर्फ प्रमोट किया गया था। यही वज़ह थी कि सचिन जिगर का इतना प्यारा सा नग्मा आसान किस्तों में तू प्यार कर अनसुना ही रह गया।
बड़ा खूबसूरत संयोजन किया है सचिन जिगर ने इस गीत की शुरुआत में। पियानो के आंरंभिक नोट्स और फिर वॉयलिन की खूबसूरत बयार जो कि अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे बेहतरीन शब्दों के साथ गीत का रोमांटिक मूड तय कर देती है।
जीवन में जब कोई चीज़ हमें बेहद पसंद आती है तो हम कोशिश करते हैं कि देर तक उसका लुत्फ उठाते रहें। अपनी कहूँ तो बचपन में जब मेहमान आते थे तभी घर में शर्बत बनता था और मैं उसे घूँट घूँट कर पीता था ताकि जीभ पर उसका स्वाद देर तक बना रहे। अमिताभ ने वही बात प्रेम रूपी शर्बत के लिए कही है। अपने प्रियतम के लिए तो मन में ढेर सारी भावनाएँ उमड़ती घुमड़ती रहती हैं। उनको एक साथ प्रकट कर खाली हो जाएँगे तो फिर प्यार करने का क्या आनंद? प्रेम में जितना ज्यादा कहा उससे कहीं ज्यादा अनकहा रह जाता है और उसे समझने बूझने की मन की वर्जिश जीवन में रस घोलती रहती है। इसीलिए अमिताभ कहते हैं
छुप छुप के दिलबर का दीदार कर
ऐ दिल तू आहिस्ता इज़हार कर
सारा का सारा ना करना अभी से
आसान किस्तों में तू प्यार कर
छुप छुप के दिलबर का दीदार कर
ऐ दिल तू आहिस्ता इज़हार कर
पगले, सारा का सारा ना करना अभी से
आसान किस्तों में तू प्यार कर
पहले निभा के देखी है तूने
मँहेगी मोहब्बत विलायती
पड़ जाए जिसमें लेने का देना
घाटे का सौदा निहायती
करना अगर ही है तू प्यार करले
सस्ता स्वदेशी किफायती
पहले तू जितना लापरवाह था
उतना संभल के ही इस बार कर
पगले, सारा का सारा ना करना अभी से
आसान किस्तों में तू प्यार कर
अंतरे में सचिन जिगर वॉयलिन के साथ बाँसुरी का मधुर इस्तेमाल करते हैं पर अंतरे के बाद गीत अचानक से खत्म हो जाता है तो लगता है कि शायद गीत का एक और अंतरा होता तो कितना अच्छा होता। जुबीन नौटियाल की आवाज़ में पहली बार सुनकर ही ये गाना गुनगुनाने का मन हो आया। अगर आपको भी मुलायम रूमानी संगीत पसंद है तो इस गाने का जरूर सुनिए और अपने दिलवर को भी सुनाइए..
क्या आपके ख्याल में ऐसा कोई गाना आता है जिसको पूरा करने के लिए फिल्म की कहानी ट्विस्ट और टर्न लेती हो। किसी गीत को कहानी के प्लॉट में इतनी तवोज्जह मिली फिल्म दिल बेचारा के गीत मैं तुम्हारा में जो बना है इस साल की वार्षिक संगीतमाला की पाँचवी सीढ़ी का गीत।
दरअसल फिल्म में नायिका एक ऐसे गीत को गुनगुनाती रहती है जिसे उसके गीतकार ने आधा ही लिख कर छोड़ दिया। अपनी बीमारी से लड़ती नायिका के मन में ये प्रश्न हमेशा कौंधता है कि आख़िर लिखने वाले ने इतना प्यारा मुखड़ा बीच में ही क्यूँ छोड़ दिया? फिल्म की कहानी के अंत में नायक किस तरह इस गीत के लेखक से नायिका को मिलवाता है और गीत को पूरा करवाता है ये तो आपने फिल्म में देखा ही होगा। आखिर ऐसा क्या भाव था इस गीत के मुखड़े में ?
ज़िदगी में हम कई लोगों से प्रेम करते हैं। उनमें कुछ के करीब हम जा पाते हैं तो कुछ दूर से ही हमारे आसमान में जुगनू की तरह चमकते रहते हैं। ये गीत उन जुगनुओं को ये विश्वास दिलाता है कि भले हम उन्हें अपनी हथेली में सजाकर सहला ना पाए हों पर उनकी चमक से हमारा हृदय हमेशा जगमग होता रहा है। गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने इन्हीं भावों को गीत के मुखड़े में चाँद से दूर चमकने वाले सितारो और समंदर की दूर जाती लहरों को अपलक ताकते किनारों जैसे खूबसूरत बिंबों से बाँधा है ।
संगीतकार रहमान को भी क्या पता था कि वो जिस सुरीली धुन को रच रहे हैं वो फिल्म के नायक के जीवन की आख़िरी फिल्म का गीत बन कर रह जाएगा । सुशांत तो असमय चले गए पर जब जब वो याद किए जाएँगे ये गीत हमारे होठों पर होगा।
इस युगल गीत को अपनी आवाज़ें दी हृदय गट्टाणी और जोनिता गाँधी की जोड़ी ने। हृदय के पिता रहमान के संगीत कार्यक्रम के प्रबंधन से बरसों से जुड़े रहे। इसका फायदा ये भी हुआ कि उनके पुत्र को संगीत सीखने के लिए रहमान जैसे वट वृक्ष की छाया मिली़। हृदय को रहमान ने फिल्मों में पहले भी मौके दिए थे पर ये गीत उनके छोटे से कैरियर के लिए मील का पत्थर साबित होगी इसमें मुझे कोई संदेह नहीं है। जहाँ तक जोनिता की बात है तो वो पिछले सात आठ सालों से अपनी गायिकी का परचम लहरा रही हैं। इस गीत को वो अपने सबसे सुरीले गीतों में मानती हैं। गीत के शब्द इतने प्रभावी हैं कि हल्के फुल्के तार वाद्यों और बीच बीच में नवीन कुमार की बजाई खूबसूरत बाँसुरी के आलावा रहमान ने ज्यादा वाद्यों की जरूरत नहीं समझी।
तो आइए सुनते हैं दर्द की चाशनी में डूबा ये गीत जिसका मुखड़ा एक बार सुनते ही दिल में बस गया था।
हिंदी फिल्मों में ए आर रहमान का संगीत आजकल साल में इक्का दुक्का फिल्मों में ही सुनाई देता है। रहमान भी मुंबई वालों की इस बेरुखी पर यदा कदा टिप्पणी करते रहे हैं। तमाशा और मोहनजोदड़ो के बाद पिछले पाँच सालों में उनको कोई बड़े बैनर की फिल्म मिली भी नहीं है। दिल बेचारा पर भी शायद लोगों का इतना ध्यान नहीं जाता अगर सुशांत वाली अनहोनी नहीं हुई होती। फिल्म रिलीज़ होने के पहले रहमान ने सुशांत की याद में एक संगीतमय पेशकश रखी थी जिसमें एलबम के सारे गायक व गायिकाओं ने हिस्सा भी लिया था। रहमान के इस एलबम में उदासी से लेकर उमंग सब तरह के गीतों का समावेश था। इस फिल्म के दो गीत इस साल की गीतमाला में अपनी जगह बना पाए जिनमें पहला तारे गिन संगीतमाला की नवीं पायदान पर आसीन है।
इस गीत की सबसे खास बात इसका मुखड़ा है। कितने प्यारे बोल लिखे हैं अमिताभ भट्टाचार्य ने। इश्क़ का कीड़ा जब लगता है तो मन की हालत क्या हो जाती है वो इन बोलों में बड़ी खूबी से उभर कर आया है। जहाँ तक तारे गिनने की बात है तो एकाकी जीवन में अपने हमसफ़र की जुस्तज़ू करते हुए जिसने भी खुली छत पर तारों की झिलमिल लड़ियों को देखते हुए रात बिताई हो वे इस गीत से ख़ुद को बड़ी आसानी से जोड़ पाएँगे।
जब से हुआ है अच्छा सा लगता है
दिल हो गया फिर से बच्चा सा लगता है
इश्क़ रगों में जो बहता रहे जाके
कानों में चुपके से कहता रहे
तारे गिन, तारे गिन सोए बिन, सारे गिन
एक हसीं मज़ा है ये, मज़ा है या सज़ा है ये
अंतरे में भी अमिताभ एक प्रेम में डूबे हृदय को अपनी लेखनी से टटोलने में सफल हुए हैं।
रोको इसे जितना, महसूस हो ये उतना
दर्द ज़रा सा है थोड़ा दवा सा है
इसमें है जो तैरा वो ही तो डूबा है
धोखा ज़रा सा है थोड़ा वफ़ा सा है
ये वादा है या इरादा है
कभी ये ज़्यादा है कभी ये आधा है
तारे गिन, तारे गिन सोए बिन, सारे गिन
श्रेया घोषाल और मोहित चौहान पहले भी रहमान के चहेते गायक रहे हैं और इस युगल जोड़ी ने अपनी बेहतरीन गायिकी से रहमान के विश्वास को बनाए रखने की पुरज़ोर कोशिश की है।
रहमान अपने गीतों में हमेशा कुछ नया करने की कोशिश करते रहते हैं। यहाँ उन्होंने श्रेया की आवाज़ को अलग ट्रैक पर रिकार्ड कर मोहित की आवाज़ पर सुपरइम्पोज़ किया है। पर रहमान के इस नए प्रयोग की वज़ह से अंतरे में गीत के बोल (खासकर श्रेया वाले) उतनी सफाई से नहीं समझ आते। अंत में रहमान स्केल बदलकर गीत का समापन करते हैं।
मुझे इस गीत का पहले दो मिनटों का हिस्सा बहुत भाता है और मन करता है कि आगे जाए बिना उसी हिस्से को रिपीट मोड में सुनते रहें। काश रहमान इस गीत की वही सहजता अंतरे में भी बनाए रहते ! गीत का आडियो वर्जन एक मिनट ज्यादा लंबा है और इस वर्जन के के आख़िर में वॉयलिन का एक खूबसूरत टुकड़ा भी है जिसे संजय ललवानी ने बजाया है। तो आइए सुनते हैं इस गीत का वही रूप...
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।