जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वार्षिक संगीतमाला की अठारह वीं पायदान पर है एक बार फिर सोनू निगम की आवाज़। फिल्म एक बार फिर से चमनबहार। इस फिल्म के एक अन्य गीत के बारे में लिखते हुए मैं बता ही चुका हूँ कि चमनबहार एक पान की दुकान चलाने वाले नवयुवक की इकतरफा प्रेम कहानी है। छत्तीसगढ़ के छोटे से कस्बे लोरमी में रची बसी इस कहानी को इसी राज्य के बिलासपुर शहर से ताल्लुक रहने वाले अपूर्व धर हैं जो प्रकाश झा की फिल्मों में कई बार सहायक निर्देशक की भूमिका निभा चुके हैं।
इकतरफा प्रेम तो आप जानते ही है कि ख़्वाबों खयालों में पलता है। निर्देशक अपूर्व धर (Apurva Dhar Badgayin) जो इस गीत के गीतकार भी हैं ने इस गीत के माध्यम से नायक के सपनों की मीठी उड़ान भरी है। ज़ाहिर सी बात है कि जब सैयाँ पानवाले हों तो उनकी छबीली जर्दे की हिचकी और गुलकंद के तोले जैसी ही थोड़ी तीखी थोड़ी मीठी होगी। इसीलिए गीत की शुरुआत वे कुछ इन शब्दों से करते हैं । 😀😀😀
दो का चार तेरे लिए सोलह तू जर्दे की हिचकी,गुलकंद का तोला तू मीठा पान मैं कत्था कोरिया देखा जो तुझको मेरा दिल ये बोला
दूसरे अंतरे में भी अपूर्व की लेखनी नायक द्वारा नायिका को कई अन्य मज़ेदार बिंबों में बाँधती नज़र आती है।
तू राज दुलारी मैं शंभू भोला तू मन मोहिनी मेरा बैरागी चोला तू तेज़ चिंगारी मैं चरस का झोला तू मीठी रूहफज़ा मैं बर्फ का गोला उड़ती है खुशबू किमामी होता नशा जाफरानी मैं बेतोड़ दर्द की कहानी तू ही तो है मेरा मलहम यूनानी दो का चार तेरे लिए गल्ला तू ही तो अल्लाह तू ही मोहल्ला दो का चार....
गीत का संगीत रचा है अंशुमन मुखर्जी ने। गीत की शुरुआत और खासकर अंतरों के बीच में तार वाद्यों के साथ वॉयलिन का प्रयोग कर्णप्रिय लगता है। गीत के फिल्मांकन में नायक की भूमिका में जीतेन्द्र कुमार का अभिनय किसी भी आम से लड़के को इस इकतरफा प्रेम कहानी से जोड़ेगा। सोनू की आवाज़ का सुरीलापन तो आकर्षित करता ही है, साथ ही जिस तरह वो गीत की भावनाओं में रम कर गाते हैं वो भी काबिलेतारीफ है।
तो आइए सुनें सोनू निगम की आवाज़ में ये चुलबुला नग्मा
वार्षिक संगीतमाला अब अपने दूसरे चरण यानी शुरु के बीस गानों के पड़ाव तक पहुँच चुकी है और इस पड़ाव से आगे का रास्ता दिखा रहे हैं सोनू निगम। सोनू निगम ज्यादा गाने आजकल तो नहीं गा रहे पर जो भी काम उन्हें मिल रहा है वो थोड़ा अलग कोटि का है। पियानो और की बोर्ड पर महारत रखने वाले संगीतकार मिथुन शर्मा को ही लीजिए। मेरी संगीतमाला में पिछले पन्द्रह सालों से उनके गीत बज रहे हैं पर ये पहला मौका है उनकी बनाई किसी धुन को सोनू निगम की आवाज़ का साथ मिल रहा है।
पिछले साल ये मौका आया फिल्म ख़ुदाहाफिज़ में। डिज़्नी हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई इस फिल्म का संगीत भी हैप्पी हार्डी एंड हीर की तरह काफी प्रभावशाली रहा। इस फिल्म के तीन गाने इस गीतमाला में शामिल होने की पंक्ति में थे पर इसी फिल्म का अरमान मलिक का गाया हुआ गाना मेरा इंतज़ार करना बड़े करीब से अंतिम पच्चीस की सूची के बाहर चला गया।
बहरहाल जहाँ तक इस गीत में सौनू और मिथुन की पहली बार बनती जोड़ी का सवाल है तो लाज़िमी सा प्रश्न बनता है कि आख़िर मिथुन को इतनी देर क्यूँ लगी सोनू को गवाने में ? मिथुन का मानना है कि सोनू निगम तकनीकी रूप से सबसे दक्ष गायक हैं। उनकी प्रतिभा से न्याय करने के लिए मिथुन को एक अच्छी धुन की तलाश थी जो ख़ुदाहाफिज़ के गीत 'आख़िरी कदम तक' पर जाकर खत्म हुई।
मिथुन ने जब सोनू को इस गीत को गाने का प्रस्ताव दिया तो वो एक बार में ही सहर्ष तैयार हो गए। वैसे तो मिथुन के संगीतबद्ध ज्यादातर गीत सईद क़ादरी लिखते आए हैं पर इधर हाल फिलहाल में अपने गीतों को लिखना भी शुरु कर दिया है। शायद आशिकी 2 में उनके लिखे गीत क्यूँकि तुम ही हो की सफलता के बाद उन्हें अपनी लेखनी पर ज्यादा आत्मविश्वास आ गया हो। अब दिक्कत सिर्फ ये थी कि सोनू निगम लॉकडाउन में दुबई में डेरा डाले थे जबकि मिथुन मुंबई में। पर तकनीक के इस्तेमाल ने इन दूरियों को गीत की रिकार्डिंग में आड़े नहीं आने दिया।
ख़ुदाहाफिज़ एक ऐसे मध्यमवर्गीय युवा दम्पत्ति की कहानी है जो शादी के बाद देश में बेरोज़गार हो जाने पर विदेश में नौकरी कर करने का फैसला लेता है। कथा में नाटकीय मोड़ तब आता है जब नायिका परदेश में गुम हो जाती है। पर नायक हिम्मत नहीं हारता और अपने जी को और पक्का कर जुट जाता है अपनी माशूका की खोज में। उसे बताया जाता है कि उसका क़त्ल हो चुका है। साथ साथ जीवन और मरण का जो सपना नायक ने देख रखा था वो पल में चकनाचूर हो जाता है। अपनी पत्नी की अंतिम यात्रा में नायक के मन में उठते मनोभावों को मिथुन कुछ इस तरह शब्दों में ढालते हैं।
नज़रों से करम तक
ईमां से धरम तक, हक़ीक़त से लेकर भरम तक
दुआ से असर तक, ये सारे सफ़र तक
फरिश्तों के रोशन शहर तक, आँसू से जशन तक जन्मों से जनम तक, सेहरे को सजा के कफ़न तक तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक ....
ये रात काली ढल जाएगी उल्फ़त की होगी फिर से सुबह जिस देश आँसू ना दर्द पले है वादा मैं तुझसे मिलुँगा वहाँ ज़ख़्मों से मरहम तक, जुदा से मिलन तक डोली में बिठा के दफ़न तक तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक ...
गीत की शुरुआती पंक्तियाँ वाकई बेहद संवेदनशील बन पड़ी हैं। शब्दों के अंदर बिखरे भावनाओं के सैलाब को सोनू निगम ने अपनी आवाज़ में इस तरह एकाकार किया कि नायक का दर्द सीधे दिल में महसूस होता है। सोनू की सशक्त आवाज़ के पीछे मिथुन ने नाममात्र का संगीत संयोजन रखा है जो उनके प्रिय पियानो तो कभी गिटार के रूप में प्रकट होता है। अगर आप सोनू निगम की आवाज़ और गायिकी के प्रशंसक हैं तो ये गीत अवश्य पसंद करेंगे।
वैसे सोनू निगम की आवाज़ से इस संगीतमाला में एक बार फिर आगे भी मुलाकात होगी हालांकि वो गीत बिल्कुल अलग मूड लिये हुए है।
वार्षिक संगीतमाला का अगला गीत है फिल्म मरुधर एक्सप्रेस से। जानता हूँ इस फिल्म का नाम भी आपने शायद ही सुना होगा। यूँ तो इसका संगीत काफी पहले रिलीज़ हुआ था पर ये फिल्म पिछले साल जुलाई में रिलीज़ हुई और एक एक्सप्रेस ट्रेन की तरह सिनेमाघरों में बिना ज्यादा देर रुके फिल्मी पर्दे से उतर गयी।
इस फिल्म का संगीत दिया था एक समय प्रीतम के जोड़ीदार रह चुके जीत गांगुली ने। फिल्म का तो पता नहीं पर एलबम में इस गीत के दो अलग वर्जन थे। एक में उर्जा से भरपूर सोनू निगम की आवाज़ थी तो दूसरी ओर इस गीत के अपेक्षाकृत शांत रूप को असीस कौर ने निभाया था। जीत का संगीत संयोजन वहाँ भी बेहतरीन है पर असीस उसे और बेहतर गा सकती थीं ऐसा मुझे लगा। सोनू निगम को भले ही आज के दौर में गाने के ज़्यादा मौके नहीं मिलते पर इस छोटे बजट की फिल्म के लिए भी अपना दम खम लगा कर ये गीत निभाया है।
संगीतमाला में अगर ये गीत शामिल हो सका है उसकी एक बड़ी वज़ह जीत गाँगुली की धुन और संगीत संयोजन है जिसकी वज़ह से ये गीत तुरंत मन में स्थान बना लेता है। जीत ने एक सिग्नेचर ट्यून का इस्तेमाल किया है जो मुखड़े के पहले और अंतरे में बार बार बजती है और कानों को बड़ी भली लगती है।
गीत का मूड रूमानी है और मनोज मुंतशिर की कलम तो ऐसे गीतों पर बड़ी सहजता से चलती है। मनोज सहज भाषा में अपने गीतों में कविता का पुट देने में माहिर रहे हैं। हाँ ये जरूर है कि इस गीत का लिबास तैयार करते हुए उन्होंने उर्दू शब्दों के गोटे जरूर जड़ दिए हैं जिससे गीत की खूबसूरती बढ़ जरूर गई है। मिसाल के तौर पर जब वो प्रेमिका को कहते हैं कि उसे एक पल भी नहीं भूले हैं तो उसका विश्वास पुख्ता हो उसके लिए वो आकाशगंगा के ग्रहों की गवाही लेना नहीं भूलते और गीत में लिखते हैं शाहिद (गवाह) हैं सय्यारे (सारे ग्रह)...इक पल मैं ना भूला तुझे।
शहरे दिल की रौनक तू ही, तेरे बिन सब खाली मिर्ज़ा... तू ही बता दे कैसे काटूँ, रात फ़िराक़ा वाली मिर्ज़ा... मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे शाहिद हैं. सय्यारे...इक पल मैं ना भूला तुझे मिर्ज़ा तेरा कलमा पढ़ना, मिर्ज़ा तेरी जानिब बढ़ना तेरे लिए ख़ुदा से लड़ना, मिर्ज़ा मेरा जीना-मरना सिर्फ़ तेरे इशारे पे है..ओ... सिर्फ़ तेरे इशारे पे है... चाँद वाली रातों में, तेरी शोख़ यादों में डूब-डूब जाता है यह दिल मोंम सा पिघलता है, बुझता ना जलता है देख तू कभी आ के ग़ाफ़िल मिर्ज़ा वे. सुन जा रे. वो जो कहना है कब से मुझे.... ओ ख़ुदाया सीने में ज़ख़्म इतने सारे हैं जितने तेरे अंबर पे तारे... जो तेरे समंदर हैं, मेरे आँसुओं से ही हो गये हैं खारे-खारे मिर्ज़ा वे. .....
वार्षिक संगीतमाला की आज की सीढ़ी पर गाना वो जिसे गाया सोनू निगम ने, धुन बनाई राणा मजूमदार ने और बोल लिखे अमिताभ भट्टाचार्य ने। मिलन टाकीज़ यूँ तो किसी सिनेमाहाल का नाम ही है पर कब ये फिल्म पिछले साल मार्च में सिनेमा के पर्दे पर आई और निकल गयी खास पता नहीं चला। शायद इस फिल्म में कोई बड़ा नामी चेहरा ना होना भी इसकी एक वज़ह रही हो। मिलन टाकीज़ फिल्मों में काम करने वाले दो कलाकारों की प्रेम कथा है जो उग्र पारिवारिक विरोध के चलते बेपटरी हो जाती है।
इस फिल्म का एक गीत संगीतकार राणा मजूमदार ने सोनू निगम से गवाया। सोनू की ये विशिष्टता है कि वो आम से लगने वाले गाने को भी खास बना देते हैं। उनके गाए हर गीत के पीछे उनकी मेहनत का असर दिखता है। इस गाने की जान इसका द्रुत गति से चलता हुआ मुखड़ा है जिसे सोनू ने बड़ी खूबसूरती से निभाया है। गीत का मुखड़ा कुछ यूँ शुरु होता है..
सड़कों पे चाहे महलों में रहे, जितने भी चाहे पहरों में रहे
कोई हमें कभी कर पाए ना जुदा, गिरजा में नहीं मंदिर नहीं
किसी दरगाह के दर पर नहीं, देखा मैने तेरे चेहरे में ही ख़ुदा..
राणा मजूमदार व सोनू निगम
आजकल गानों में तकनीक का कैसा इस्तेमाल हो रहा है ये गाना इस बात का जीता जागता उदाहरण है। हिंदी से ज्यादा बांग्ला फिल्मों में अपनी पहचान बनाने वाले राणा ने इस गीत के सांगीतिक व्यवस्था का जिम्मा स्वीडन के वादकों पर छोड़ा। गीत में जो वायलिन, सेलो. वॉयला, गिटार और बाँसुरी की गूँज सुनाई दी है उसे स्वीडन में रिकार्ड किया गया जबकि सोनू की आवाज़ मुंबई में। मिक्सिंग के बाद जो गीत बना वो आपके सामने है। अगर आप सोनू निगम की गायिकी के प्रशंसक हैं तो ये गीत आपको जरूर जँचेगा..
सड़कों पे चाहे महलों में रहे जितने भी चाहे पहरों में रहे कोई हमें कभी कर पाए ना जुदा गिरजा में नहीं मंदिर नहीं किसी दरगाह के दर पर नहीं देखा मैने तेरे चेहरे में ही ख़ुदा अपने मिलन की कहानी अधूरी रही तो अधूरी सही तेरे अलावा न चाहूँ किसी को ये शर्त खुद से रखी मैने शर्त खुद से रखी सड़कों पे चाहे... नज़दीक से चाहतों के दावे तो हमने किए पर दूर रहके ही समझे तुम क्या हो मेरे लिये हो नज़दीक से... इक बार तुमसे बिछड़े तो जाना क़ीमत है क्या प्यार की तेरे अलावा न चाहूँ... मुश्किल है आना तुम्हारा माना ये शक है मुझे फिर भी बिछाई हैं पलके इतना तो हक़ है मुझे हो मुश्किल है आना... तकदीर से भी लड़के रहेगा ज़िद है तेरे यार की तेरे अलावा न चाहूँ...
इस गाने को पर्दे पर अभिनीत किया है अली हसन और श्रद्धा श्रीनाथ ने..
पिछले साल मार्च के महीने में एक फिल्म आई थी अनारकली आफ आरा जिसके बारे में मैंने उस वक़्त लिखा भी था। चूँकि ये फिल्म एक नाचने वाली की ज़िंदगी पर बनाई गयी थी इसलिए इसका गीत संगीत कहानी की मुख्य किरदार अनारकली की ज़िदगी में रचा बसा था। फिल्म के ज्यादातर गाने लोक रंग में रँगे हुए थे जिन्हें सुनते ही किसी को कस्बाई नौटंकी या गाँव वाले नाच की याद आ जाए। नाचने गाने वालियों के शास्त्रीय संगीत के ज्ञान को ध्यान में रखकर एक ठुमरी भी रखी गयी थी जिसे रेखा भारद्वाज ने अपनी आवाज़ दी थी। ये गाने तो फिल्म की सशक्त पटकथा के साथ खूब जमे पर इस फिल्म का जो गीत पूरे साल मेरे साथ रहा वो था सोनू निगम का गाया और प्रशांत इंगोले का लिखा हुआ नग्मा मन बेक़ैद हुआ।
फिल्म के निर्देशक अविनाश दास ने फिल्म रिलीज़ होने के समय इस फिल्म से जुड़े कई किस्से सोशल मीडिया पर बाँटे थे और उन्हीं में से एक किस्सा इस गीत की कहानी का भी था। अविनाश ने लिखा था
"अनारकली का एक बहुत ही नाजुक क्षण था, जिसमें चुप्पी ज़्यादा थी। पटकथा के हिसाब से तो वह सही थी, लेकिन फिल्म की पूरी बुनावट के बीच यह चुप्पी खल रही थी। कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए कि कहानी की गति भी बनी रहे और मामला संवेदना के अतिरेक में जाने से बच भी जाए। एक दिन अचानक हमारे संगीतकार रोहित शर्मा ने सुझाव दिया कि एक धुन उनके पास है, जो इस पूरे दृश्य को एक नया अर्थ दे सकती है। अपनी खुद की आवाज में उसका एक टुकड़ा भी उनके पास था। उन्होंने सुनाया, तो बस मुझे लगा कि यह गीत अब अनारकली की संपत्ति है और इसे हमसे कोई छीन नहीं सकता।"
गीत तो स्वीकार हो गया पर अब बारी गायक खोजने की थी। सोनू निगम से बात हुई। वो तैयार भी हो गए पर जिस दिन रिकार्डिंग थी उसी दिन कुछ ऐसा हुआ कि उसे रद्द करना पड़ा। सोनू उस वक़्त एक सर्जरी से फ़ारिग होकर काम पर लौटे थे। हफ्ते भर बाद फिर उनसे अनुरोध किया गया। सोनू निगम का जवाब भी बड़ा रोचक था। उन्होंने कहा कि बहुत दिनों बाद कोई ऐसा गीत गाने को मिला है जिसकी भावनाएँ उनकी रुह तक पहुँची हैं।
रोहित शर्मा और प्रशांत इंगोले
सोनू इस गीत को अपनी जानदार गायिकी से एक अलग ही धरातल पर ले गए पर ऐसा वो इसलिए कर सके उन्हें संगीतकार रोहित शर्मा और गीतकार प्रशांत का साथ मिला। प्रशांत इंगोले को लोग अक्सर बाजीराव मस्तानी के गीत मल्हारी या फिर मेरी कोम के उनके लिखे गीत जिद्दी दिल के लिए जानते हैं। पर जितनी गहनता से उन्होंने इस गीत में मानव भावनाओं को टटोला है वो निश्चत रूप से काबिलेतारीफ़ है। इस फिल्म में एक किरदार है हीरामन तिवारी का जो अनारकली की बुरे वक़्त में मदद करता है और धीरे धीरे वो उसके मन में घर बनाने लगती है। हीरामन उसकी अदाओं को देख मन ही मन पुलकित होता हुआ इस बात को भी नज़रअंदाज कर देता है कि अनारकली का एक सहचर भी है और उसकी जिंदगी की डोर किसी और से बँधी है।
जिंदगी की भाग दौड़ में कब हमारा दिल रूखा सा हो जाता है हमें पता ही नहीं चलता। पर फिर कोई प्रेम की खुशबू आती है जिसकी गिरफ्त में मन का कोर कोर भींगने लगता है। फिल्म में हीरामन के इन भावों को शब्द देते हुए प्रशांत लिखते है मिटटी जिस्म की गीली हो चली..खुशबु इसकी रूह तक घुली..इक लम्हा बनके आया है..सब ज़ख्मों का वैद्य..मन बेक़ैद हुआ..मन बेक़ैद। अगले अंतरों में हीरामन के इस बेक़ैद मन की उड़ानें हैं जो उसके दबे अरमानों को, उसके दिल में छिपी चिंगारी को हवा दे रही हैं। हिंदी गीतों में वैद्य यानि हक़ीम शब्द का प्रयोग शायद ही पहले हुआ हो और यहाँ प्रशांत प्रेम की तुलना ऐसे मरहम से करते हैं जो पुराने जख्मों का दर्द हर ले रहा है।
मिटटी जिस्म की गीली हो चली मिटटी जिस्म की.. खुशबू इसकी रूह तक घुली खुशबू इसकी... इक लम्हा बनके आया है सद ज़ख्मों का वैद्य मन बेक़ैद हुआ..मन बेक़ैद मन बेक़ैद हुआ..मन बेक़ैद रफ्ता रफ्ता मुश्किलें, अपने आप खो रही इत्मीनान से कशमकश कहीं जा के सो रही दस्तक देने लगी हवा अब चट्टानों पे... जिंदा हैं तो किसका बस है अरमानों पे... कोई सेहरा बाँधे आया है, सद ज़ख्मों का वैद्य मन बेक़ैद हुआ..मन बेक़ैद ... अब तलक जो थे दबे...राज़ वो खुल रहे... दरमियाँ के फासले, इक रंग में घुल रहे .. दो साँसों से जली जो लौ अब वो काफी है मेरी भीतर कुछ न रहा पर तू बाकी है इक क़तरा बन के आया है, सद ज़ख्मों का वैद्य मन बेक़ैद हुआ..मन बेक़ैद ...
इस फिल्म का संगीत दिया है रोहित शर्मा ने जो कि वैसे तो एक इंजीनियरिंग की डिग्री के मालिक हैं पर संगीत प्रेम ने उन्हें बँधी बँधाई नौकरी को छोड़ वर्ष 2000 वर्ष में फिल्मी दुनिया में किस्मत आज़माने को प्रेरित कर दिया। जिंगलों की दुनिया में बरसों भटकने के बाद बुद्धा इन ए ट्राफिक जॉम में उनके दिए संगीत को सराहा गया और अनारकली आफ आरा उनके कैरियर का अहम पड़ाव साबित हुई। इस गीत मे उन्होंने गिटार के साथ तबले, वायलिन व बाँसुरी का मधुर उपयोग किया है। तो आइए सुनते हैं ये गीत सोनू निगम की भावपूर्ण आवाज़ में
पूरा गीत सुनने के लिए इस एलबम के ज्यूकबॉक्स की लिंक ये रही।
पिछले साल हमारा फिल्म उद्योग क्रिकेटरों पर बड़ा मेहरबान रहा। एक नहीं बल्कि दो दो फिल्में बनी हमारे भूतपूर्व क्रिकेट कप्तानों पर। हाँ भई अब तो अज़हर के साथ हमारे धोनी भी तो भूतपूर्व ही हो गए। बॉलीवुड ने इन खिलाड़ियों की जीवनियाँ तो पेश की हीं साथ ही साथ इनके व्यक्तित्व को भी बेहद रोमांटिक बना दिया।
अब हिंदी फिल्मों में जहाँ रोमांस होगा तो वहाँ ढेर सारे गाने भी होंगे। सो इन दोनों फिल्मों के नग्मे रूमानियत से भरपूर रहे। ऐसा ही एक गीत विराजमान है वार्षिक संगीतमाला की 23 वीं सीढ़ी पर फिल्म अज़हर से। पूरे एलबम के लिहाज़ से अज़हर फिल्म का संगीत काफी मधुर रहा। अमल मलिक का संगीतबद्ध और अरमान मलिक का गाया गीत बोल दो तो ना ज़रा मैं किसी से कहूँगा नहीं और अतिथि संगीतकार प्रीतम की मनोज यादव द्वारा लिखी रचना इतनी सी बात है मुझे तुमसे प्यार है खूब सुने और सराहे गए।
मुझे भी ये दोनों गीत अच्छे लगे पर सोनू निगम की आवाज़ में अमल मलिक की उदास करती धुन दिल से एक तार सा जोड़ गई। काश इस गीत को थोड़े और अच्छे शब्दों और गायिका का साथ मिला होता तो इससे आपकी मुलाकात कुछ सीढ़ियाँ ऊपर होती। सोनू निगम की आवाज़ इस साल भूले भटके ही सुनाई दी। इस गीत के आलावा फिल्म वज़ीर के गीत तेरे बिन में वो श्रेया के साथ सुरों का जादू बिखेरते रहे। समझ नहीं आता उनकी आवाज़ का इस्तेमाल संगीतकार और क्यों नहीं करते ?
सदियों पहले मीर तक़ी मीर ने एक बेहतरीन ग़ज़ल कही थी जिसका मतला था पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है, जाने ना जाने गुल ही ना जाने बाग़ तो सारा जाने है। इस मतले का गीत के मुखड़े के रूप में मज़रूह सुल्तानपूरी ने आज से करीब 35 वर्ष पूर्व फिल्म एक नज़र में प्रयोग किया था। लता और रफ़ी की आवाज़ में वो गीत बड़ा मशहूर हुआ था।
गीतकार कुमार की प्रेरणा भी वही ग़ज़ल रही और सोनू ने क्या निभाया इसे। जब वो पत्ता पत्ता जानता है, इक तू ही ना जाने हाल मेरा तक पहुँचते हैं दिल में मायूसी के बादल और घने हो जाते हैं। सोनू अपनी आवाज़ से उस प्रेमी की बेबसी को उभार लाते हैं जो अपने प्रिय के स्नेह की आस में छटपटा रहा है, बेचैन है।
अमल मालिक और सोनू निगम
रही बात प्रकृति कक्कड़ की तो अपना अंतरा तो उन्होंने ठीक ही गाया है पर मुखड़े के बाद की पंक्ति में इक तेरे पीछे माही का उनका उच्चारण बिल्कुल स्पष्ट नहीं है। इस गीत को सुनते हुए अमल मलिक के बेहतरीन संगीत संयोजन पर ध्यान दीजिए। गिटार और बाँसुरी के प्रील्यूड के साथ गीत शुरु होता है। इटरल्यूड्स में रॉक बीट्स के साथ बजता गिटार और फिर पंजाबी बोलों के बाद सारंगी (2.10) का बेहतरीन इस्तेमाल मन को सोहता है। अंतिम अंतरे के पहले गिटार, बाँसुरी और अन्य वाद्यों का मिश्रित टुकड़ा (3.30-3.45) को सुनकर भी आनंद आ जाता है।
समंदर से ज्यादा मेरी आँखों में आँसू जाने ये ख़ुदा भी है ऐसा क्यूँ तुझको ही आये ना ख़्याल मेरा पत्ता पत्ता जानता है इक तू ही ना जाने हाल मेरा पत्ता पत्ता जानता है इक तू ही ना जाने हाल मेरा नित दिन नित दिन रोइयाँ मैं, सोंह रब दी ना सोइयाँ मैं इक तेरे पीछे माही, सावन दियां रुतां खोइयाँ मैं दिल ने धडकनों को ही तोड़ दिया, टूटा हुआ सीने में छोड़ दिया हो दिल ने धडकनों को ही तोड़ दिया टूटा हुआ सीने में छोड़ दिया खुशियाँ ले गया, दर्द कितने दे गया ये प्यार तेरा..पत्ता पत्ता ... मेरे हिस्से आई तेरी परछाईयां लिखी थी लकीरों में तनहाइयाँ हाँ मेरे हिस्से आई तेरी परछाईयां लिखी थी लकीरों में तनहाइयाँ हाँ करूँ तुझे याद मैं है तेरे बाद इंतज़ार तेरा..., पत्ता पत्ता ...
वार्षिक संगीतमाला की अंतिम छः पायदान का एक एक नग्मा मुझे बेहद पसंद है। छठी पायदान के इस गीत को पहली बार मैंने तब सुना जब अपनी संगीतमाला के लिए गीतों का चयन कर रहा था और पहली बार सुनते ही मैं इसके सम्मोहन में आ गया। क्या शब्द. क्या संगीत और क्या गायिकी। वैसे अगर मैं आपके सामने संगीतकार अजय अतुल, सोनू निगम व अमिताभ भट्टाचार्य की तिकड़ी का नाम लूँ तो बताइए आपके मन में कौन सा लोकप्रिय गीत उभरता है? अरे वही अग्निपथ का संवेदनशील नग्मा अभी मुझ में कहीं बाकी थोड़ी सी है ज़िदगी जिसने वार्षिक संगीतमाला के 2012 के अंक में रनर्स अप का खिताब जीता था। इन तीनों ने मिलकर एक बार फिर ब्रदर्स ले लिए एक बेहद सार्थक, मधुर, सुकून देने वाला रोमांटिक नग्मा रचा है।
मराठी संगीत के जाने माने चेहरे अजय अतुल के बारे में अग्निपथ व सिंघम के गीतों के ज़रिए आपका परिचय करा चुका हूँ। करण मेहरोत्रा की पहली फिल्म अग्निपथ की सफलता के पीछे उनके शानदार संगीत का भी बहुत बड़ा हाथ था। ज़ाहिर सी बात थी कि अगली फिल्म के लिए भी बतौर संगीतकार उन्होंने अजय अतुल को चुना। तो आइए जानते हैं कि क्या कहना है संगीतकार जोड़ी का इस गीत के बारे में। तो पहले जानिए कि अतुल के विचार
आजकल जिस तरह का संगीत बॉलीवुड में चल रहा है उसको देखते हुए बड़ा कलेजा चाहिए था सपना जहाँ जैसे गीत को चुनने के लिए। रोहित को एक भावपूर्ण गीत की जरूरत थी और उन्होंने इस धुन को चुना। रोहित हमारे मित्र की तरह हैं। हम जो भी करते हैं वो तभी करते हैं गर वो चीज़ हमें अच्छी लगती है। जब ये गाना बन रहा था उसी दिन मैंने कहा था कि ये भी अभी मुझ में कहीं.. जितना ही गहरा व प्यारा गीत बनेगा। सोनू की आवाज़ की बुनावट में अक्षय की सी परिपक्वता है इसीलिए हमने इस गीत के लिए उनको चुना और क्या निभाया उन्होंने इस गीत को।
वहीं अजय सोनू निगम की सहगायिका नीति मोहन के बारे में कहते हैं
उनके गाए अब तक सारे गाने मुझे अच्छे लगे थे। तू रूह है की जो लय है उसे सँभालते हुए बड़े प्यार से उन्हें गीत में प्रवेश करना था जो थोड़ा कठिन तो था पर उन्होंने बखूबी किया।
ये गीत नायक की ज़िदगी की पूरी कहानी को मुखड़ों और अंतरों में समा लेता है। गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य को अपनों से अलग थलग एक बेमानी सी जिंदगी जीते हुए इंसान की कहानी के उस मोड़ की दास्तान बयाँ करनी थी जब वो नायिका से मिलता है और देखिए तो उन्होंने कितनी खूबसूरती से लिखा.. सपना जहाँ दस्तक ना दे, चौखट थी वो आँखे मेरी...बातों से थीं तादाद में, खामोशियाँ ज्यादा मेरी.. जबसे पड़े तेरे कदम, चलने लगी दुनिया मेरी।
सहज शब्दों में काव्यात्मक अंदाज़ में कहीं बातें जो दिल को सहजता से छू लें अमिताभ के लिखे गीतों की पहचान हैं। मुखड़े में आगे भटकते हुए बादल की आसमान में ठहरने की बात तो पसंद आती ही है, पहले अंतरे में रूह के साथ काया, उम्र के साथ साया और बैराग के साथ माया की जुगलबंदी व सोच भी बतौर गीतकार उनके हुनर को दर्शाती है।
अजय अतुल का संगीत भी बोलों की नरमी की तरह ही एक मुलायमियत लिए हुए है। पियानों की मधुर धुन से नग्मा शुरु होता है। बीच में बाँसुरी के इंटरल्यूड के आलावा गीत के साथ ताल वाद्यों की हल्की थपकी ज़ारी रहती है। गीत का फिल्मांकन भी असरदार है तो आइए सुनते हैं इस गीत को..
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सपना जहाँ दस्तक ना दे, चौखट थी वो आँखें मेरी बातों से थीं तादाद में, खामोशियाँ ज्यादा मेरी जबसे पड़े तेरे कदम, चलने लगी दुनिया मेरी
मेरे दिल मे जगह खुदा की खाली थी देखा वहाँ पे आज तेरा चेहरा है मैं भटकता हुआ सा एक बादल हूँ जो तेरे आसमान पे आ के ठहरा है
तू रूह है तो मैं काया बनूँ ता-उम्र मैं तेरा साया बनूँ कह दे तो बन जाऊँ बैराग मैं कह दे तो मैं तेरी माया बनूँ तू साज़ हैं, मैं रागिनी तू रात हैं, मैं चाँदनी
मेरे दिल मे .... ठहरा हैं
हम पे सितारों का एहसान हो पूरा, अधूरा हर अरमान हो एक दूसरे से जो बाँधे हमें बाहों मे नन्ही सी इक जान हो आबाद हो छोटा सा घर लग ना सके किसी की नज़र
वर्षिक संगीतमाला का सफ़र अब मुड़ रहा हैं थिरकते, मुस्कुराते गीतों से अपेक्षाकृत गंभीर और रूमानी गीतों की तरफ़ और इस कड़ी की पहली पेशकश है सत्रहवीं पायदान पर बैठा तनु वेड्स मनु रिटर्न का ये नग्मा। संगीतकार क्रस्ना सोलो व गीतकार राजशेखर की जोड़ी इससे पहले 2011 में वार्षिक संगीतमाला के सरताज गीत यानि शीर्ष पर रहने का तमगा हासिल कर चुकी है। ज़ाहिर है जब इस फिल्म का सीक्वेल आया तो इस जोड़ी के मेरे जैसे प्रशंसक को थोड़ी निराशा जरूर हुई।
पिछली फिल्म में शर्मा जी के प्यार का भोलापन पहली फिल्म में राजशेखर सेकितने दफ़े दिल ने कहा, दिल की सुनी कितने दफ़े और रंगरेज़ जैसे गीत लिखा गया था। पर सीक्वेल में चरित्र बदले परिवेश बदला उसमें गीतकार संगीतकार के लिए पटकथा ने कुछ ज्यादा गंभीर व प्यारा करने लायक छोड़ा ही ना था। लिहाजा गीत संगीत फिल्म की परिस्थितियों के अनुरूप लिखे गए जो देखते समय तो ठीक ही ठाक लगे पर कानों में कोई खास मीठी तासीर नहीं छोड़ पाए। फिल्म देखने के बाद जब इस एलबम के गीतों को फिर से सुना तो एक गीत ऐसा मिला जिसे मैं फिल्म की कहानी से जोड़ ही नहीं पाया क्यूँकि शायद इसका फिल्म में चित्रांकन तो किया ही नहीं गया था। अब जब नायिका के तेवर ऐसे हों कि शर्मा जी हम बेवफ़ा क्या हुए आप तो बदचलन हो गए तो फिर शर्मा जी क्या खाकर बोल पाते कि ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे.. हाथों की अब गिरह दी ऐसे की टूटे ये कभी ना..
बहरहाल गीत की परिस्थिति फिल्म में भले ना बन पाई हो राजशेखर के लिखे बेहतरीन बोलों और सोनू निगम की गायिकी ने इस गीत का दाखिला संगीतमाला में करा ही दिया। बिहार के मधेपुरा के एक किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले हुनरमंद राजशेखर के मुंबई पहुँचने की कहानी तो आपको यहाँ मैं पहले ही बता चुका हूँ। पिछले साल बिहार के चुनावों में बिहार में बहार हो, नीतीशे कुमार हो का उनका गीत खासा लोकप्रिय हुआ। बचपन में माँ पापा से नज़रे बचाकर पन्द्रह सोलह घंटे रेडियो सुनने वाले इस बालक के लिखे गाने लोग उसी रेडियो पर बड़े चाव से सुन रहे हैं।
ज़िदगी का खट्टा मीठा सफ़र अपने प्रियतम के साथ गुजारने की उम्मीद रखते इस गीत की सबसे प्यारी पंक्तियाँ मुझे वो लगती हैं जब राजशेखर कहते हैं..
हम जो बिखरे कभी तुमसे जो हम उधड़े कहीं बुन लेना फिर से हर धागा हम तो अधूरे यहाँ तुम भी मगर पूरे कहाँ करले अधूरेपन को हम आधा
सच अपने प्रिय से ऐसी ही उम्मीद तो दिल में सँजोए रखते हैं ना हम !
संगीतकार क्रस्ना सोलो का नाम अगर आपको अटपटा लगे तो ये बता दूँ कि वो ये उनका ख़ुद का रचा नाम है ताकि जब वो अपने विश्वस्तरीय संगीतज्ञ बनने का सपना पूरा कर लें तो लोगों को उनके नाम से ख़ुद को जोड़ने में दिक्कत ना हो। वैसे माता पिता ने उनका नाम अमितव सरकार रखा था। क्रस्ना ने इस गीत की जो धुन रची है वो सामान्य गीतों से थोड़ी हट के है और इसीलिए उसे मन तक उतरने में वक़्त लगता है। मुखड़े के बाद का संगीत संयोजन गीत के बोलों जितना प्रभावी नहीं है। रही गायिकी की बात तो कठिन गीतों को चुनौती के रूप में स्वीकार करना सोनू निगम की फितरत रही है। इस गीत में बदलते टेम्पो को जिस खूबसूरती से उन्होंने निभाया है वो काबिले तारीफ़ है। तो आइए सुनें ये गीत..
ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे.. हाथों की अब गिरह दी ऐसे की टूटे ये कभी ना.. चल ना कहीं सपनों के गाँव रे छूटे ना फिर भी धरती से पाँव रे आग और पानी से फिर लिख दें वो वादे सारे साथ ही में रोए हँसे, संग धूप छाँव रे ओ साथी मेरे.. हम जो बिखरे कभी तुमसे जो हम उधड़े कहीं बुन लेना फिर से हर धागा हम तो अधूरे यहाँ तुम भी मगर पूरे कहाँ कर ले अधूरेपन को हम आधा जो भी हमारा हो मीठा हो या खारा हो आओ ना कर ले हम सब साझा ओ साथी मेरे.. हाथों में तेरे .. गहरे अँधेरे या उजले सवेरे हों ये सारे तो हैं तुम से ही आँख में तेरी मेरी उतरे इक साथ ही दिन हो पतझड़ के रातें या फूलों की कितना भी हम रूठे पर बात करें साथी मौसम मौसम यूँ ही साथ चलेंगे हम लम्बी इन राहों में या फूँक के फाहों से रखेंगे पाँव पे तेरे मरहम आओ मिले हम इस तरह आए ना कभी विरह हम से मैं ना हो रिहा हमदम तुम ही हो हरदम तुम ही हो अब है यही दुआ साथी रे उम्र के सलवट भी साथ तहेंगे हम गोद में ले के सर से चाँदी चुनेंगे हम मरना मत साथी पर साथ जियेंगे हम ओ साथी मेरे..
भारतीय समाज में जिस ढाँचे के भीतर रहकर हम पलते बढ़ते हैं उसमें माता पिता व भाई बहन के आलावा कई रिश्ते साथ फलते फूलते हैं। दादा दादी और नाना नानी के साथ बीते पल आप में से कइयों की ज़िंदगी के अनमोल पल रहे होंगे। ये चरित्र भारतीय हिंदी फिल्मों का भी हिस्सा रहे हैं और समय समय पर उनको केंद्र में रखकर गीत भी बनते रहे हैं।
बुजुर्गों पर बने दो गीतों को तो मैं कभी नहीं भुला सकता। एक तो दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ, छोड़ो भी ये गुस्सा ज़रा हँस के दिखाओ.. और दूसरा नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए, बाकी जो बचा वो काले चोर ले गए....। बचपन में ना केवल इन गीतों को गुनगुनाने में मज़ा आता था पर साथ ही जब बाहर से कोई आता तो उसके सामने इसकी कुछ पंक्तियाँ दोहराते ही ढेर सारी शाबासी मिल जाया करती थी। थोड़े बड़े हुए तो ये गीत अंत्याक्षरी के बहाने याद कर लिए जाते थे। आज भी इन गीतों को याद कर बचपन सामने आ जाता है।
इसीलिए पिछले साल के गीतों में फिल्म सुपर नानी में नानी माँ को समर्पित ये गीत दिखाई दिया तो सुखद आश्चर्य हुआ। नानी के प्रति अपनी कृतज्ञता को प्रदर्शित करते इस गीत को सोनू निगम ने जिस भावप्रवणता से गाया है वो काबिलेतारीफ़ है। पर अगर ये गीत इतना प्रभावी बन पड़ा है तो इसमें संगीतकार हर्षित सक्सेना का बेहतरीन संगीत संयोजन और समीर के सहज पर मन को छूते शब्दों का भी हाथ है।
अगर आप टीवी चैनलों पर संगीत से जुड़े कार्यक्रम देखते हों तो हर्षित सक्सेना को जरूर पहचानते होंगे। अमूल स्टार वॉयस आफ इ्डिया में बतौर गायक अपने हुनर का परचम लहराने वाला लखनऊ का ये जवान आज उस गायक के साथ बतौर संगीत निर्देशक के काम कर रहा है जो कभी रियालटी शो में उनके जज की भुमिका निभाते थे। तोशी शाबरी की तरह हर्षित उन कुछ प्रतिभागियों में है जो संघर्ष कर कुछ हद तक मु्बई के फिल्म जगत में पैठ बनाने में सफ़ल हुए हैं। आज भी संगीतकार से ज्यादा वो अपने आप को गायक मानते हैं पर उस दिशा में अरिजित जैसी सफलता प्राप्त करने के लिए उन्हें एक लंबे और कठिन सफ़र के लिए तैयार रहना होगा।
फिल्म सुपर नानी के इसगीत का आरंभ गिटार व बाँसुरी की धुन से होता है। इंटरल्यूड्स में बाँसुरी का साथ देता आर्केस्ट्रा मन को सोहता है। सोनू निगम ने गीत में हो रहे सुरो से उतार चढ़ाव को बड़ी खूबसूरती से निभाया है। इस साल उनके गाए गीतों से ऐसा लग रहा है कि हिंदी फिल्मों में पार्श्व गायिकी के प्रति पिछले कुछ सालों में उनके मन में जो उदासीनता आ गई थी उसे दूर हटाते हुए अपना पूरा ध्यान अब वो अपनी गायिकी पर लगा रहे हैं। तो आइए सुनते हैं उनकी आवाज़ में ये नग्मा..
पलकें ना भिगोना, ना उदास होना तुझको है कसम मेरी, अब कभी ना रोना तूने मुस्कान दी, सबको पहचान दी सबपे वार दी ज़िन्दगी दुःख सबका लिया,दी है सबको ख़ुशी कोई शिकवा किया ना कभी सूरज, चंदा, ज़मीन, आसमान कोई तुझसा नहीं है यहाँ, नानी माँ.. नानी माँ .. मेरी माँ भी बुलाये तुझे कह के माँ तेरा दर्ज है रब से भी ऊँचा यहाँ तेरे आँचल में धूप है साया तूने ही जीना सबको सिखाया सबपे लुटाती है जान नानी माँ.. नानी माँ .. चोट खाती रही ज़ख्म सीती रही तू तो औरों की खातिर ही जीती रही तूने खुद को ना पहचाना मोल तेरा तूने ना जाना
वार्षिक संगीतमाला की तेइसवीं पायदान पर गीत वो जिसके संगीतकार शैक्षिक योग्यता के हिसाब से एक डॉक्टर हैं पर संगीत के प्रति उनका प्रेम उन्हें सिटी आफ जॉय यानि कोलकाता से मुंबई की मायानगरी में खींच लाया है। ये संगीतकार हैं अर्को प्रावो मुखर्जी (Arko Pravo Mukherjee) और इस गीत को गाया है आज के सबसे हुनरमंद गायक सोनू निगम ने फिल्म तमंचे के लिए।
सोनू निगम व अर्को मुख्रर्जी
कोलकाता में पले बढ़े अर्को ने संगीत की विधिवत शिक्षा भले ना ली हो पर बचपन से ही उनका झुकाव रवींद्र संगीत की ओर जरूर रहा। दूसरी ओर अपने शहर के संगीतप्रेमी युवाओं के चलन के हिसाब से वे भी उन दिनों एक रॉक बैंड का हिस्सा बने। यही वज़ह है कि उनकी दिलचस्पी संगीत देने के आलावा गायिकी और गीत लिखने की भी है। तमंचे के इस गीत को भी अर्को ने ही लिखा है। कहानी दिल्ली से जुड़ी है तो गीत पर भी हल्का सा ही सही यारा, दिलदारा, रब्बा और सोणया जैसे चिरपरिचित शब्दों के रूप में पंजाबियत का तड़का जरूर है।
कुल मिलाकर बतौर संगीतकार अर्को मुझे जितना प्रभावित करते हैं उसकी तुलना में उनके लिखे बोलों को मैं हमेशा कमज़ोर पाता हूँ। इस साल उनका संगीतबद्ध लोकप्रिय गीत मेहरबानी इसी वज़ह से मेरी पसंद के अंतिम पच्चीस में अपनी जगह नहीं बना पाया। तमंचे का ये गीत आज अगर मेरी इस संगीतमाला का हिस्सा बन रहा है तो उसकी एक बड़ी वज़ह है सोनू निगम की बेमिसाल गायिकी और अर्को की बेहद सुरीली धुन।
अर्को जब इस गीत को लेकर पहली बार सोनू निगम के पास गए तो उन्हें ये भय सता रहा था कि सोनू गीत को अपने स्तर का ना मान कर उनके अनुरोध को ठुकरा ना दें। पर जब अर्को ने एक रॉक गायक वाले अंदाज़ में सोनू को ये गीत सुनाया तो उन्हें ये पहली बार में ही पसंद आ गया। सोनू ने इस गीत के बारे में रेडियो मिर्ची पर बात करते हुए कहा था
"मेंने जब पहली बार ये गाना गाया था तो अर्को की स्टाइल में गाया था। बाद में फिल्म के नायक निखिल ने आकर मुझसे कहा कि आप बिल्कुल अर्को के लहज़े में गा रहे हैं। बेहतर है आप गीत को अपने अंदाज़ में ही गाएँ। सो मैंने कहा चलो ठीक है। पर पहले गाकर रास्ता तो अर्को ने दिखा ही दिया था और इस गीत के लिए वही मेरा रेफरेंस प्वाइंट (reference point) बन गया। अर्को अपने संगीत को आइटम, सैड या रोमांटिक के हिसाब से वर्गीकृत नहीं करते बल्कि एक सोच के हिसाब से संगीत देते हैं। अगर संगीतकार एक विचारक या सोचने वाला नहीं हो तो मुक्तलिफ़ चीज़ बन कर बाहर नहीं आ सकती।"
सोनू निगम जिस प्यार से पूरी तरह डूबकरओए दिलदारा ओए दिलदारा ...से गीत की शुरुआत करते हैं कि मन गीत से बँधता चला जाता है। गिटार, ट्रम्पेट और ताल वाद्यों से सजी अर्को की धुन की मिठास सोनू की बेहतरीन अदाएगी का साथ पाकर ऐसा प्रभाव रचती है कि गीत बार बार सुनने का मन होता है। बातें सारी बोल दी जाएँ और खुशिया तमाम दी जाएँ की जगह बातें सारी बोल दिया जाये... और खुशियाँ तमाम दिया जाए सुनना थोड़ा खटकता जरूरत है। आशा है अर्को अपनी शब्द रचना पर भविष्य में थोड़ा और ध्यान देंगे।
ओए दिलदारा ओए, ओए दिलदारा, मैं बंजारा ओए मैं बंजारा ओह तेरे वास्ते मैं सारा जग..छोड़ के दिखाऊँ क़िस्मत की कलाइयाँ..मरोड़ के दिखाऊँ ओह तेरे वास्ते मैं सारा जग छोड़ के दिखाऊँ क़िस्मत की कलाइयाँ मरोड़ के दिखाऊँ यारा सोनिया, दिलदारा सोनिया
ओह तेरी छोटी छोटी बातों पे, मैं गौर किये जाऊँ तेरी सारौ फरियादों पे, मैं मर मिटा जाऊँ यारा सोनिया.. दिलदारा सोनिया
ओह रब्बा तेरी-मेरी बातें सारी बोल दिया जाये ओह रब्बा दिल में है राज़ तो वो खोल दिया जाये यारा.. इश्क़-इ-शैदाई का मोल दिया जाए सारे जहां के गुनाहों को भी तौल दिया जाए तेरी ज़िन्दगी में खुशियाँ तमाम दिया जाए .... मैरी जींद मेरी जान तेरे नाम किया जाए ओए दिलदारा ओए....
तो चलिए सुनते हैं तमंचे फिल्म का ये गीत सोनू निगम की आवाज़ में..
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
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