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बुधवार, जनवरी 16, 2019

वार्षिक संगीतमााला 2018 पायदान # 12 : पहली बार है जी, पहली बार है जी.. Pehli Baar

दो हफ्तों के इस सफ़र में आधी दूरी पार कर के अब बारी साल के बारह ऐसे गीतों की जो मुझे बेहद पसंद रहे हैं। इन बारह गीतों में एक तिहाई शायद ऐसे भी गीत होंगे जिन्हें इस साल बेहद कम सुना गया है। कौन हैं वो गीत उसके लिए तो आपको हुजूर साथ साथ चलना होगा इस संगीतमाला के। आज एक बार फिर मैं हूँ अजय अतुल के इस गीत के साथ जिससे जुड़ी चर्चा दो सीढ़ियों पहले यानि धड़क के शीर्षक गीत के बारे में बात करते हुए मैंने की थी। बड़ा प्यारा गीत है ये। अजय अतुल ने ये गीत सबसे पहले अपनी फिल्म सैराट के लिए संगीतबद्ध किया था और फिर उसे धड़क के लिए हिंदी बोलों के साथ फिर से बनाया गया। ये गीत मिसाल है किस तरह पश्चिमी वाद्य यंत्रों से निकली सिम्फनी को हिंदुस्तानी वाद्यों के साथ मिलाकर खूबसूरत माहौल रचा जा सकता है।


अजय अतुल के आर्केस्टा में वॉयलिन बड़ी प्रमुखता से बजता है। साथ में कई बार पियानो भी होता है। छोटे शहरों से आगे निकल कर बढ़े इन भाइयों को पश्चिमी शास्त्रीय संगीत से कैसे लगाव हुआ इसकी भी अलग एक कहानी है। 1989 में इन्होंने इलयराजा की संगीतबद्ध फिल्म अप्पू राजा देखी। फिल्म में इस्तेमाल हुए संगीत से वे बहुत प्रभावित हुए । इलयराजा के संगीत को सुनते सुनते ही उनमें पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के प्रति उत्सुकता जगी। मोत्सार्ट, बीथोवन और बॉक की सिम्फनी ने उन्हें बेहद आकर्षित किया। फिर हॉलीवुड के संगीतज्ञों जॉन विलियम्स और ज़िमर की धुनों को भी उन्होंने काफी सुना। यही वज़ह कि सलिल चौधरी के अंदाज़ में उनके गीतों में पश्चिमी सिम्फनी आर्केस्ट्रा की स्वरलहरियाँ बार बार उभरती हैं।

सैराट या बाद में धड़क में पश्चिमी संगीत का ऐसा माहौल रचने के पीछे अजय अतुल के मन में एक और वजह भी थी। वो ये कि उन्होंने अक्सर गौर किया था कि वॉयलिन और गिटार से सजी धुने उच्च वर्ग की प्रेम गीतों और कहानियों तक सीमित रह जाती हैं जिसमें हीरो लंबी कारों को ड्राइव करता है और आलीशान कॉलेजों में पढ़ता है। सैराट के चरित्र ज़मीन से जुड़े थे, मामूली लोगों की बातें करते थे पर उन्होंने सोचा कि उनका प्रेम पर्दे पर बड़ा दिखना चाहिए। संगीत में नाटकीयता झलकनी चाहिए और उसका स्वरूप अंतरराष्ट्रीय होना चाहिए। इस सोच का नतीजा ये हुआ कि अजत अतुल ने इस गीत की शुरुआत वायलिन के एक कोरस से की जो प्रील्यूड के  आख़िर में बाँसुरी की मधुर धुन से जा मिलता है।

अजय अतुल 
हर अंतरे के शुरु की पंक्तियाँ के दौरान पीछे वाद्य बेहद धीमे बजते हैं और फिर जैसे जैसे गीत की लय तेज होती है संगीत भी मुखर हो उठता है और दूसरे अंतरे के शुरुआत के साथ वापस अपनी पुरानी लय में चला जाता है।  पहला इंटरल्यूड अपनी प्रकृति में पूरी तरह यूरोपीय है तो दूसरे में ताल वाद्यों के साथ बाँसुरी की वही मधुर धुन फिर प्रकट होती है। 

गीत के बोलों में गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने शुरुआती प्रेम के लक्षणों को इतनी सहजता से पकड़ा है कि कहीं उन्हें सुनते हुए आप मुस्कुरा उठते हैं तो कभी उन यादों में डूब जाते हैं जब ऐसा ही कुछ आपके या आपके दोस्तों के साथ घटित हुआ था। अजय ने मराठी फिल्म  में भी इस गीत को अपनी आवाज़ दी है और यहाँ भी उसे दोहराने का लोभ छोड़ नहीं सके हैं। उनकी गायिकी मुझे पसंद है पर यही गीत अरिजीत गाते तो शायद इस गीत का प्रभाव थोड़ा और बढ़ जाता...

पहली बार है जी, पहली बार है जी
इस कदर किसी की, धुन सवार है जी
जिसकी आस में, हुई सुबह से दोपहर
शाम को उसी का इंतज़ार है जी
होश है ज़रा, ज़रा-ज़रा खुमार है जी
छेड़ के गया, वो ऐसे दिल के तार है जी
पहली बार है जी ... इंतज़ार है जी

हड़बड़ी में हर घड़ी है, धड़कनें हुई बावरी
सारा दिन, उसे ढूँढते रहे, नैनो की लगी नौकरी
दिख गयी तो है उसी में, आज की कमाई मेरी
मुस्कुरा भी दे, तो मुझे लगे, जीत ली कोई लॉटरी.
दिल की हरकतें. मेरी समझ के पार है जी
हे.. इश्क है इसे, या मौसमी बुखार है जी.
पहली बार है जी..पहली बार है जी...हम्म.

सारी सारी रात जागूँ, रेडियो पे गाने सुनूँ
छत पे लेट के, गिन चुका हूँ जो
रोज वो सितारे गिनूँ
क्यूँ न जानूँ दोस्तों की, दोस्ती में दिल ना लगे
सबसे वास्ता तोड़ ताड़ के, चाहता हूँ तेरा बनूँ
अपने फैसले पे मुझको ऐतबार है जी
ओ हो. तू भी बोल दे कि तेरा क्या विचार है जी.
हम्म हम्म.ला रे ला रा रा.



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

रविवार, जनवरी 13, 2019

वार्षिक संगीतमााला 2018 पायदान # 14 : तेरे नाम की कोई धड़क है ना Dhadak Hai Na

वार्षिक संगीतमाला की इन सीढ़ियों पर अगला गीत फिल्म धड़क से जिसे शायद ही पिछले साल आपने रेडियो या टीवी पर ना सुना हो। मराठी फिल्म सैराट के हिंदी रीमेक धड़क पर वैसे ही सिनेप्रेमियों की नज़रे टिकी हुई थीं। करण जौहर अपने द्वारा निर्मित फिल्मों के प्रचार प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ते और यहाँ तो दो नए चेहरों का कैरियर दाँव पर लगा था जिसमें एक चेहरा मशहूर अभिनेत्री श्रीदेवी की पुत्री जाह्न्वी का था। निर्माता निर्देशक ने संगीत की जिम्मेदारी अजय अतुल की जोड़ी पर सौंपी थी जिन्होंने इसके पहले मूल मराठी फिल्म सैराट का भी संगीत दिया था। इंटरनेट के इस ज़माने में सैराट गैर हिंदी हलकों में भी इतनी देख ली गयी थी कि उसके गीतों की धुन से बहुत लोग वाकिफ़ थे। अजय अतुल पर दबाव था कि इस फिल्म के लिए कुछ ऐसा नया रचें जिससे धड़क फिल्म के संगीत को सैराट से एक पृथक पहचान मिले।

जिन्होंने अजय अतुल के संगीत का पिछले एक दशक में अनुसरण नहीं किया है उनको बता दूँ कि वे मराठी फिल्मों में एक जाना माना नाम रहे हैं। मेरा उनके संगीत से पहला परिचय 2011 में सिंघम के सुरीले गीत बदमाश दिल तो ठग है बड़ा से हुआ। फिर 2012 में अग्निपथ में सोनू निगम के गाए गीत अभी मुझ में कहीं, बाकी थोड़ी सी है ज़िंदगी से उन्होंने खास वाह वाहियाँ बटोरीं। फिर तीन साल बाद 2015 में सोनू निगम ने उनके लिए उनके भावपूर्ण गीत सपना जहाँ दस्तक ना दे से फिर उन्होंने मेरी संगीतमाला में दस्तक दी़। एक बार फिर तीन साल के अंतर पर वो पिछले साल धड़क, जीरो और ठग्स आफ हिंदुस्तान जैसी फिल्मों में कहीं थोड़ा कम कहीं थोड़ा ज्यादा कमाल दिखाते नज़र आए। रोमांस पर उनकी पकड़ गहरी रही ही है, साथ ही चिकनी चमेली, सुरैयाझिंगाट जैसे डांस नबरों से वो लोगों को झुमाने की काबिलियत रखते हैं।


महाराष्ट्र के पुणे, जुन्नार व शिरूर जैसे शहरों में पले बढ़े अजय और अतुल गोगावले जिस परिवार से आते हैं उसका संगीत से कोई लेना देना नहीं था। गोगावले बंधुओं की कठिन आर्थिक परिस्थितियों का मैंने पहले भी जिक्र किया है पर उनकी कथा इतनी प्रेरणादायक है कि उसे बार बार दोहराने की जरूरत है। छात्र जीवन में उनके पास कैसेट खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते थे। जहाँ से जो संगीत सुनने को मिलता उसके लिए वे अपने कान खुले रखते वे अक्सर ऐसे लोगों को अपना मित्र बनाते जिनके पास पहले से कोई वाद्य यंत्र हो ताकि उनसे माँग कर उसे बजाना सीख सकें। स्कूम में अजय गोगावले गाया करते तो अतुल हारमोनियम सँभालते। फिर उन्होंने पुणे में ही टीवी सीरियल और जिंगल के लिए संगीत देने का काम करना शुरु किया। तब निर्माताओं के यहाँ वो साइकिल पर हारमोनियम चढ़ा कर जाया करते थे। कभी कभी तो उन्हें अपनी धुनों को वाद्य यंत्र के अभाव में मुँह से सुनानी पड़ती थी।  उनके संगीत प्रेम को देखते हुए पिता ने उधार के पैसों से उन्हें कीबोर्ड ला कर दिया।
अजय और अतुल गोगावले

उनके संगीत में मराठी लोक संगीत और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। छोटे शहरों से आगे निकल कर बढे इन भाइयों को पश्चिमी शास्त्रीय संगीत से कैसे लगाव हुआ उसकी चर्चा संगीतमाला में आगे करेंगे। अजय अतुल ने सैराट बनाते समय जिन धुनों पर मेहनत की थी उन्हीं में से एक पर उन्होंने दोबारा काम करना शुरु किया जो कि धड़क के शीर्षक गीत के रूप में इस शक़्ल में सामने आया। 

अग्निपथ की सफलता के बाद से अजय अतुल ने अपने गीत लिखवाने के लिए अमिताभ भट्टाचार्य का दामन नहीं छोड़ा है और अमिताभ हर बार उनके इस विश्वास पर खरे उतरे हैं। देखिए कितना खूबसूरत मुखड़ा लिखा उन्होंने इस गीत के लिए 

मरहमी सा चाँद है तू, दिलजला सा मैं अँधेरा
एक दूजे के लिए हैं, नींद मेरी ख्वाब तेरा
तू घटा है फुहार की, मैं घड़ी इंतज़ार की
अपना मिलना लिखा इसी बरस है ना..
जो मेरी मंजिलों को जाती है
तेरे नाम की कोई सड़क है ना
जो मेरे दिल को दिल बनाती है
तेरे नाम की कोई धड़क है ना


जिसे गीत की हुक लाइन (या यूँ कह लीजिए कि श्रोताओं को फाँस कर रखने वाली पंक्ति) बोलते हैं वो तो कमाल ही है जो मेरी मंजिलों को जाती है तेरे नाम की कोई सड़क है ना..जो मेरे दिल को दिल बनाती है..तेरे नाम की कोई धड़क है ना। फिल्म का नाम भी आ गया और बोल भी दिल के आर पार हो गए। गीत की इतनी अच्छी शुरुवात कि गायिका श्रेया घोषाल को भी कहना पड़ा कि ये गीत कानों को वैसा ही सुकून देता है जैसे  तपती धरती को उस पर  गिरती  बारिश की पहली बूँदें देती हैं । 

जैसे ही मुखड़ा खत्म होता है वैसे ही पियानो की टुंगटुंगाहट और पीछे बजते वॉयलिन के स्वर आपको गीत की मेलोडी में बहा ले जाते हैं और उसी  के बीच श्रेया की मीठी आवाज़ आपके कानों में पड़ती है। 

कोई बांधनी जोड़ा ओढ़ के
बाबुल की गली आऊँ छोड़ के
तेरे ही लिए लाऊँगी पिया
सोलह साल के सावन जोड़ के
प्यार से थामना.. डोर बारीक है
सात जन्मों की ये पहली तारीख है

डोर का एक मैं सिरा
और तेरा है दूसरा
जुड़ सके बीच में कई तड़प है ना

जो मेरी मंजिलों को जाती है
तेरे नाम की कोई सड़क है ना
जो मेरे दिल को दिल बनाती है
तेरे नाम की कोई धड़क है ना

बीच के अंतरे मुखड़ों जैसे प्रभावी तो नहीं है पर गीत का मूड बनाए रखते हैं। गीत का समापन संगीतकार बाँसुरी की मधुर स्वरलहरी से करते हैं। अजय गोगावले की आवाज़ की बनावट में एक नयापन है। वैसे भी आजकल का चलन ही ये है कि संगीतकार अगर गायक भी हो तो अपनी धुनों को ख़ुद गाना पसंद करता है। तो आइए एक बार फिर सुनें इस गीत को।



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां
 

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