रंग दे बसंती याद है ना आपको! नौ साल पहले आई इस फिल्म ने समूचे जनमानस विशेषकर युवाओं के मन को खासा उद्वेलित किया था। फिल्म के साथ साथ इसके गीत भी बेहद चर्चित हुए थे। शीर्षक गीत मोहे तू रंग दे बसंती तो लोकप्रिय हुआ ही था, साथ ही साथ रूबरू, खलबली, पाठशाला, लुका छिपी भी पसंद किए गए थे। ए आर रहमान द्वारा संगीत निर्देशित इस फिल्म में प्रसून जोशी का लिखा एक रूमानी नग्मा और भी था जिसे सुन कर मन में आज भी एक तरह का सुकून तारी हो जाता है। गीत के बोल थे तू बिन बताए मुझे ले चल कहीं... जहाँ तू मुस्कुराए मेरी मंज़िल वहीं... तो आज बात करते हैं इसी गीत के बारे में
पहली पहली बार किसी से प्रेम होता है तो ढेर सारी बैचैनियाँ साथ लाता है। एक ओर तो मन उस संभावित सहचर के साथ मीठे मीठे सपने भी बुन रहा होता है तो दूसरी ओर उसे अपनी अस्वीकृति का भय भी सताता है।
पर प्रसून जोशी का लिखा ये नग्मा प्रेम के प्रारंभिक चरण की इस उथल पुथल से आगे की बात कहता है जब प्रेम में स्थायित्व आ चुका होता है। रिश्ते की जड़ें इतनी मजबूत हो जाती हैं कि प्रेमी उससे निकलते नित नए पल्लवों व पुष्पों के सानिध्य से आनंदित होता रहता है। दरअसल प्रेम आपसी विश्वास और सम्मान का दूसरा नाम है और जब इनका साथ हो तो गलतफ़हमियों की कोई हवा उस पौधे को उखाड़ नहीं सकती।
प्रसून जोशी ने इस गीत के बारे अपनी किताब Sunshine Lanes में लिखा है
"प्यार कैसे किसी व्यक्ति को पूर्णता प्रदान करता है..कैसे अपने परम प्रिय की शारीरिक अनुपस्थिति भी उसे उसके प्रभाव घेरे से मुक्त नहीं कर पाती..ये बात मुझे हमेशा से अचंभित करती रही है। अपने उस ख़ास की छाया, उसकी बोली, उसके स्पर्श के अहसास से हम कभी दूर नहीं हो पाते। सिर्फ उस इष्ट के ख्याल मात्र से मन की सूनी वादी एक दम से हरी भरी लगने लगती है। प्रेम के इस अवस्था में प्रश्नों के लिए कोई स्थान नहीं । जगह होती है तो सिर्फ समर्पण की,वो भी बिना सवालों के और मेरा ये गीत प्रेम के इसी पड़ाव के बीच से मुखरित होता है।"
रंग दे वसंती का ये गीत गाया है मधुश्री ने। मधुश्री ए आर रहमान की संगीतबद्ध फिल्मों में बतौर गायिका एक जाना पहचाना चेहरा रही हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि कभी नीम नीम कभी शहद शहद (युवा), हम हैं इस पल यहाँ ...(कृष्णा), इन लमहों के दामन में ....(जोधा अकबर) जैसे शानदार नग्मों को गाने वाली मधुश्री का वास्तविक नाम सुजाता भट्टाचार्य है। रवीन्द भारती विश्वविद्यालय से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने वाली मधुश्री ने हिंदी के आलावा तमिल, तेलगु, कन्नड़ और बांग्ला फिल्मों के गाने भी गाए हैं।
इस गीत की अदाएगी के बारे में एक रोचक तथ्य ये है कि इसके मुखड़े में शास्त्रीय संगीत में प्रयुक्त होने वाले अलंकार मींड का इस्तेमाल हुआ है। आपने गौर किया होगा तू...बिन..बताए....मुझे...ले.. ..चल.कहीं में शब्दों के बीच एक सुर से दुसरे सुर तक जाने का जो सहज खिंचाव है जो गीत की श्रवणीयता को और मधुर बना देता है। फिल्म में ये गीत पार्श्व से आता है। नायक नायिका या उनके मित्रों को कुछ कहने की जरूरत नहीं होती। पीछे से आते बोल उन भावनाओं को मूर्त रूप दे देते हैं जो चरित्रों के मन में चल रही होती हैं।
इस गीत में मधुश्री का साथ दिया है गायक नरेश अय्यर ने। तो आइए सुनते हैं ये प्यारा सा नग्मा
तू बिन बताए मुझे ले चल कहीं
जहाँ तू मुस्कुराए मेरी मंज़िल वहीं
मीठी लगी, चख के देखी अभी
मिशरी की डली, ज़िंदगी हो चली
जहाँ हैं तेरी बाहें मेरा साहिल वहीं
तू बिन बताए ........मेरी मंज़िल वहीं
मन की गली तू फुहारों सी आ
भीग जाए मेरे ख्वाबों का काफिला
जिसे तू गुनगुनाए मेरी धुन है वहीं
तू बिन बताए ........मेरी मंज़िल वहीं
बताए ........मेरी मंज़िल वहीं
