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शुक्रवार, जनवरी 31, 2020

वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 10 : मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए Bharat

शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी पिछले दो दशकों से भी ज्यादा समय से फिल्म संगीत में सक्रिय है और बीच के कुछ सालों को छोड़ दें तो इनके द्वारा रचे संगीत की चमक फीकी नहीं पड़ी है। 2018 में राजी के गीत ऐ वतन और दिलबरो ने खासी लोकप्रियता अर्जित की थी तो इस साल मणिकर्णिका साल के बेहतरीन एलबमों में से एक रहा। इस संगीतमाला में बोलो कब प्रतिकार करोगे, राजा जी के बाद सातवीं पायदान पर दाखिल हो रहा है इसी फिल्म का गीत  मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए


संगीत के मामले में मणिकर्णिका अगर इतनी सफल रही तो उसके पीछे एक बड़ा योगदान इसके गीतकार प्रसून जोशी को जाता है। इन सारे गीतों में उनकी शब्द रचना कमाल की है। देशप्रेम से ओतप्रोत उनके गीतों को सिर्फ पढ़ने से ही पूरे बदन में झुरझुरी हो उठती है। कुछ वैसे ही जैसी स्कूल के दिनों में रामधारी सिंह 'दिनकर' की कविताओं को सुन कर होती थी। प्रसून ने इस फिल्म की पटकथा भी लिखी है। अपनी अन्य जिम्मेदारियों की वजह से बतौर गीतकार 2016 में आई नीरजा के बाद उन्होंने किसी फिल्म में काम नहीं किया था। झाँसी की रानी का शौर्य उन्हें हमेशा आकर्षित करता रहा इसलिए मणिकर्णिका लिए पटकथा और गीत लिखने का काम उन्हें मिला तो उसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया । 

 मणिकर्णिका के इस गीत के मुखड़े के बारे में प्रसून का कहना है कि 

देश को आज़ादी सिर्फ नारे लगाने वालों से नहीं मिली। बहुत लोगों ने अपना सर्वस्व त्यागा तब ये मुकाम हासिल हुआ। सिर्फ नारों से नहीं खून की धाराओं से भी मिली है ये आज़ादी। आज लेकिन बहुत से युवा इस बात को नहीं समझते। रानी लक्ष्मी बाई की कहानी हमें प्रेरित करती हैं। ये हमसे पूछती है कि क्या आप अपना जीवन यूँ ही व्यर्थ करना चाहते हैं या देश के लिए न्योछावर करना चाहते हैं ? आख़िर अपने पराक्रम की वज़ह से रानी को क्या मिला? वो चाहती तो पेंशन ले कर ज़िंदगी अच्छे से गुजार सकती थीं। उनकी व्यक्तित्व की यही बात मेरे दिल को लग गयी और इसीलिए मैंने लिखा कि देश से है प्यार तो हर पल यह कहना चाहिए..मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए

मुखड़ा तो मुखड़ा गीत का अंतरा भी प्रसून ने गजब का लिखा है। अब आप ही बताइए ये तो केवल एक गीत है, ऐसी पंक्तियाँ तो किसी कविता को एक अलग स्तर पर ले जाएँगी मेरी नस नस तार कर दो और बना दो एक सितार, ......राग भारत मुझपे छेड़ो झनझनाओ बार बार ......देश से ये प्रेम आँखों से छलकना चाहिए, .....मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए 


इतने अच्छे शब्दों को चाहिए थी एक शानदार आवाज़ और शंकर महादेवन के रहते हुए गायक की और जगह कौन ले सकता था? इस गीत को रिलीज़ करते समय उन्होंने कहा था कि मुझे गर्व है अपने भारतीय होने पर। गीत में तार वाद्यों से जुड़ा आर्केस्टा बांबे स्ट्रिंग का है और अंतरों के बीच की बाँसुरी बजाई है नवीन कुमार ने। तो आइए एक बार फिर सुनते हैं भारत और भारत को प्रेम करने वाले लोगों को समर्पित ये गीत।

देश से है प्यार तो हर पल यह कहना चाहिए
मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए
सिलसिला ये बाद मेरे यूँ ही चलना चाहिए
मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए

मेरी नस नस तार कर दो और बना दो एक सितार
राग भारत मुझपे छेड़ो झनझनाओ बार बार
देश से ये प्रेम आँखों से छलकना चाहिए
मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए

शत्रु से कह दो ज़रा सीमा में रहना सीख ले
ये मेरा भारत अमर है सत्य कहना सीख ले
भक्ति की इस शक्ति को बढ़कर दिखना चाहिए
मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए

है मुझे सौगंध भारत सौगंध भारत है मुझे
भूलूँ ना एक क्षण तुझे हम्म..
रक्त की हर बूँद तेरी है तेरा अर्पण तुझे
युद्ध ये सम्मान का है मान रहना चाहिए



वार्षिक संगीतमाला 2019 
01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया 
03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
04. तेरा साथ हो   Tera Saath Ho
05. मर्द  मराठा Mard Maratha
06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए  Bharat 
07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है  Aaj Jage Rahna
08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र  Zikra
09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए  Dil Royi Jaye
10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ  Shaabaashiyaan
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी  से.. 
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

शनिवार, जनवरी 18, 2020

वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 15 : ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी Rajaji

एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला अब उस हिस्से में पहुँच गयी है जहाँ से ऊपर बजने वाला हर एक गीत मेरे दिल के बेहद करीब है। मेरा यकीन है कि इन पन्द्रह गीतों में से आधे गीत ऐसे होंगे जिनको आपने शायद पिछले साल सुना ही नहीं होगा। ऊपर की इन पन्द्रह पायदानों में जो पहला गीत है वो है फिल्म मणिकर्णिका से। 


आप तो जानते ही हैं कि इस फिल्म के गीत लिखे हैं प्रसून जोशी ने और साल के इस बेहतरीन एलबम के संगीतकार हैं शंकर एहसान लॉय! ये हस्तियाँ तो इतनी नामी हैं कि उनके बारे में आज ना बात करते हुए मैं आपको मिलवाना चाहूँगा इस गीत की गायिका प्रतिभा सिंह बघेल से। प्रतिभा की बहुमुखी प्रतिभा की झलकियाँ मैं पिछले एक दशक से देख रहा हूँ पर बतौर पार्श्व गायिका उन्हें इतना बड़ा ब्रेक मिलता देख मुझे दिल से खुशी हुई।

मध्यप्रदेश के शहर रीवाँ से ताल्लुक रखने वाली प्रतिभा भी सा रे गा मा पा के मंच की ही खोज हैं। वर्ष 2008 के चैलेंज में सा रे गा मा पा लक्ष्य घराने से अंतिम पाँच में जगह बनाने वाली प्रतिभा पिछले एक दशक से बतौर पार्श्व गायिका अपना मुकाम बनाने के लिए प्रयत्नशील हैं। ऐसा नहीं हैं कि उन्हें फिल्मों में इसके पहले गाने के अवसर नहीं मिले। आपने उनके गाए गीत इसक, शोरगुल, बॉलीवुड डायरीज़, हम्पटी शर्मा की दुल्हनिया जैसी फिल्मों में सुने होंगे पर सा रे गा मा पा के अपने पहले गुरु शंकर महादेवन द्वारा दिया गया अवसर इस पुलिस इंस्पेक्टर की बेटी के लिए एक विशेष मायने रखता है। 

कंगना रणावत जैसी अभिनेत्री और भारतीय इतिहास की वीर नायिका रानी लक्ष्मी बाई की आवाज़ बनना उनके कैरियर के लिए एक अहम पड़ाव होगा ऐसा मुझे लगता है। प्रतिभा एक ऐसे परिवार में पली बढ़ी हैं जहाँ गाने और बजाने का शौक तो सबको था पर इसे बतौर कैरियर अपनाने का काम अपने काका के बाद प्रतिभा ने ही किया।

शास्त्रीय संगीत में पारंगत प्रतिभा जिस सहजता से ठुमरियाँ गाती हैं उतने ही मनोयोग से गुलाम अली, मेहदी हसन और हरिहरण की ग़ज़लों को भी गुनगुना लेती हैं। पिछले साल से उन्होंने संगीत नाटिका मुगलेआज़म और उमराव जान के मंचन में गायिका के साथ साथ अभिनय पर भी हाथ आजमाया है। आने वाले दिनों में आप उनकी ग़ज़ल का एक एलबम भी सुन पाएँगे।

तो चलिए लौटते हैं  इस गीत की तरफ। मणिकर्णिका के इस गीत के लिए शंकर ने उन्हें इतना ही कहा कि तुम गाओ..  टेंशन नहीं लेना। रिकार्डिंग के समय प्रतिभा थोड़ी नर्वस थीं और उन्होंने शंकर जी से जाकर कहा भी कि सर अगर अच्छा नहीं हुआ हो तो मैं दुबारा गा लूँगी पर उसकी नौबत ही नहीं आई। उन्होंने इसी फिल्म के लिए एक लोरी भी गायी है 'टकटकी' जो भले ही इस संगीतमाला का हिस्सा ना हो पर है एक प्यारा गीत।

मुखड़े के पहले का संगीत मन को शांत कर देता है और उसी के बीच प्रतिभा की मीठी आवाज़ अपने राजाजी को पुकारती हुई उभरती है। प्रसून मन की रुनझुन को खनकते, चितचोर, चुगलखोर नैनों से प्रकट करते हुए जब दिल का हाल कुछ यूँ बताते हैं ...सिंदूरी भोर, नहीं ओर-छोर....बाँधी कैसी ये डोर...धड़कन बेताल, सपने गुलाल....किया कैसा हाल, राजा जी...तो उनके शब्दों के इस कमाल पर शाबासी देने की इच्छा होती है। शंकर अहसान लॉय की संगीतकार त्रयी ने गीत में कोरस और बाँसुरी का बेहतरीन इस्तेमाल किया है। प्रतिभा के गाए इस गीत की अंतिम पंक्तियों में साथ दिया है रवि मिश्रा ने।

ओ राजा जी, ओ महाराजा जी
नैना चुगलखोर राजा जी

मन की रुनझुन छुप ना पाए
खनक-खनक खनके नैना
बड़ी अजब है रीत प्रीत की
बिन बोले सब कुछ कहना
कुनकुनी-सी धूप बिखरी
जाए रे मनवा कुहू-कुहू बौराये रे
ओ राजा जी, नैना चुगलखोर, राजा जी
ओ महाराजा जी, नैना हैं चितचोर, राजा जी

सिंदूरी भोर, नहीं ओर-छोर
बाँधी कैसी ये डोर
धड़कन बेताल, सपने गुलाल
किया कैसा हाल, राजा जी

तेरा ध्यान भी छैल-छबीला
लचक-मचक के आए रे
मन ख़ुद से ही बातें करके
मन ही मन मुस्काए रे
कुनकुनी-सी धूप बिखरी...राजा जी

मन-अँगना कोई आया
शीतल छैयाँ बन छाया
इक चंचल नदिया को रस्तों से मिलाया
इक बहती हवा ने कानों में कहना सीखा
कल-कल जल ने इक पल रुकके रहना सीखा
पगडंडी को रस्ते मिल गये
धीरे-धीरे राहें नयी खुलती जाएँ रे


ये गीत गाने में इतना आसान भी नहीं हैं पर प्रतिभा ने गीत के उतार चढ़ावों को भली भांति निभाया हैं। ये गीत उन गीतों में से है जो धीरे धीरे आपके मन में बसता है और एक बार बस जाए तो फिर निकलने का नाम नहीं लेता। 😊



वार्षिक संगीतमाला 2019 
01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया 
03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
04. तेरा साथ हो   Tera Saath Ho
05. मर्द  मराठा Mard Maratha
06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए  Bharat 
07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है  Aaj Jage Rahna
08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र  Zikra
09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए  Dil Royi Jaye
10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ  Shaabaashiyaan
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी  से.. 
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

रविवार, दिसंबर 29, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 30 : बोलो कब प्रतिकार करोगे? Bolo Kab Pratikar Karoge ?

वार्षिक संगीतमाला में पिछली पोस्ट थी माँ को याद करते एक संवेदनशील गीत की। उसके पहले चिट्ठिये, इक मलाल और तुम ही आना जैसे गीतों से आप मिल ही चुके हैं। प्रेम, वात्सल्य  और विरह के रंगों के बाद अब बारी एक ऐसे गीत की जिसके शब्दों में इतनी ताकत है कि वो आपके शरीर में उर्जा का संचार कर दे।

प्रसून जोशी एक ऐसे गीतकार है जिन्होंने हिंदी कविता का परचम फिल्मी गीतों में बड़ी शान से फहरा रखा है। तारे ज़मीं से लेकर फिर मिलेंगे और लंदन ड्रीम्स से लेकर भाग मिल्खा भाग तक जिस खूबसूरती से उन्होंने ठेठ हिंदी शब्दों का प्रयोग किया है वो अस्सी के दशक से आज तक शायद ही किसी गीतकार के गीतों में मिलेगा। फिर मिलेंगे  के गीत के लिए जब वो कहते हैं

झील एक आदत है तुझमें ही तो रहती है और नदी शरारत है, तेरे संग बहती है
उतार ग़म के मोजे जमीं को गुनगुनाने दे कंकरों को तलवों में, गुदगुदी मचाने दे
खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे...


तो दिल करता है कि उनको गले लगा लूँ। इतनी प्यारी कविता गीतों में कहाँ मिुलती है। लंदन ड्रीम्स में उनका चटपटा सा गीत था मन को अति भावे और मिसाल के तौर पर ये अंतरा देखिए कि कैसे उन्होंने इसमें संकेत, निकट, क्षण जैसे ठेठ हिंदी शब्दों का इस्तेमाल कितनी सहजता से कर दिया।

संकेत किया प्रियतम ने आदेश दिया धड़कन ने
सब वार दिया फिर हमने, हुआ सफल सफल जीवन
अधरों से वो मुस्काई काया से वो सकुचाई
फिर थोड़ा निकट वो आई था कैसा अद्भुत क्षण

मैं आज ये चर्चा इसलिए छेड़ रहा हूँ क्यूंकि इस साल भी मणिकर्णिका के लिए प्रसून ने एक गीत में  अंग्रेजों के जुल्म के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए जोश भरते हुए ऐसे अंतरे लिखे हैं जिसे पढ़ कर  वाह वाह निकलती है।  फिल्म की कहानी से पनपा ये परिस्थिजन्य गीत इस संगीतमाला का हिस्सा है तो वो प्रसून के इन ओजमयी बोलों के लिए। उनकी लिखी इन पंक्तियों पर गौर फरमाइए

अग्नि वृद्ध होती जाती है, यौवन निर्झर छूट रहा है
प्रत्यंचा भर्रायी सी है, धनुष तुम्हारा टूट रहा है
कब तुम सच स्वीकार करोगे, बोलो, बोलो कब प्रतिकार करोगे?

गीत का दूसरा अंतरा भी उतना ही प्रभावी है

कम्पन है वीणा के स्वर में, याचक सारे छन्द हो रहे
रीढ़ गर्व खोती जाती है, निर्णय सारे मंद हो रहे
क्या अब हाहाकार करोगे?,बोलो, बोलो कब प्रतिकार करोगे?

प्रसून अपने गीतों में हिदी कविता की मशाल यूँ ही जलाए रहें आगे भी उनसे ऐसी आशा है। तो आइए सुनते हैं सुखविंदर और शंकर महादेवन के सम्मिलित स्वर में इस गीत को। इस फिल्म का संगीत दिया है शंकर अहसान और लॉय की तिकड़ी ने।


 

प्रथम पच्चीस के आस पास रहने वाले इन छः गीतों की कड़ियों में आख़िरी कड़ी होगी ऐसे गीत की जिसके बोल आप तभी समझ पाएँगे अगर फिल्म में नायिका की समस्या का आपको पहले से भान हो।

वार्षिक संगीतमाला 2019 
01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया 
03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
04. तेरा साथ हो   Tera Saath Ho
05. मर्द  मराठा Mard Maratha
06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए  Bharat 
07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है  Aaj Jage Rahna
08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र  Zikra
09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए  Dil Royi Jaye
10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ  Shaabaashiyaan
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी  से.. 
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

बुधवार, मई 31, 2017

खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे...बूँदों को धरती पर साज एक बजाने दे Khul Ke Muskura Le Tu

कई बार आप सब ने गौर किया होगा। रोजमर्रा की जिंदगी भले ही कितने तनावों से गुज़र रही हो, किसी से हँसी खुशी दो बातें कर लेने से मन हल्का हो जाता है। थोड़ी सी मुस्कुराहट मन में छाए अवसाद को कुछ देर के लिए ही सही, दूर भगा तो डालती ही है। पर दिक्कत तब होती है जब ऐसे क्षणों में आप बिलकुल अकेले होते हैं। बात करें तो किससे , मुस्कुराहट लाएँ तो कैसे ?



पर सच मानिए अगर ऍसे हालात से आप सचमुच गुजरते हैं तो भी किसी का साथ हर वक़्त आपके साथ रहता है। बस अपनी दिल की अँधेरी कोठरी से बाहर झाँकने भर की जरूरत है। जी हाँ, मेरा इशारा आपके चारों ओर फैली उस प्रकृति की ओर है जिसमें विधाता ने जीवन के सारे रंग समाहित किए हैं।

चाहे वो फुदकती चिड़िया का आपके बगीचे में बड़े करीने से दाना चुनना हो...

या फिर बाग की वो तितली जो फूलों के आस पास इस तरह मँडरा रही हो मानो कह रही हो..अरे अब तो पूरी तरह खिलो, नया बसंत आने को है और अभी तक तुम अपनी पंखुड़ियां सिकोड़े बैठे हो ?


या वो सनसनाती हवा जिसका स्पर्श एक सिहरन के साथ मीठी गुदगुदी का अहसास आपके मन में भर रहा हो....


या फिर झील का स्थिर जल जो हृदय में गंभीरता ला रहा हो...


या उफनती नदी की शोखी जो मन में शरारत भर रही हो..


या बारिश की बूदें जो पुरानी यादों को फिर से गीला कर रहीं हों...

हम जितने तरह के भावों से अपनी जिंदगी में डूबते उतराते हैं, सब के सब तो हैं इस प्रकृति में किसी ना किसी रूप में...मतलब ये कि अपने आस पास की फ़िज़ा को जितना ही महसूस करेंगे, अपने दर्द, अपने अकेलेपन को उतना ही दूर छिटकता पाएँगे।



कुछ ऍसी ही बातें प्रसून जोशी ने अपने इस गीत में करनी चाही हैं  फिल्म फिर मिलेंगे से लिया गया है। ये एक ऐसे युवती की कहानी है जिसे अचानक पता चलता है कि वो AIDS वॉयरस से संक्रमित है। प्रसून की लेखनी इस गीत में उसके इर्द गिर्द की ढहती दुनिया के बीच उजाले की किरण तलाशने निकलती है। मुझे हमेशा जानने का मन करता था कि इस गीत को लिखते हुए प्रसून के मन में क्या भाव रहे होगे। मुझे अपनी जिज्ञासा का उत्तर उनकी किताब धूप के सिक्के पढ़ते वक़्त मिला जहाँ उन्होंने इस गीत के बारे में लिखा..
"दुख और दर्द तो प्रकट हैं, पर मैं उन्हें उम्मीद के समक्ष बौना दिखाना चाहता था। यह ऐसा नहीं था कि कोई निराशा के अँधेरों में हो और उसे बलपूर्वक सूरज की रोशनी के सामने खड़ा कर दिया जाए। यहाँ भाव था हौले से मनाने का। यह कहने का कि देखो वह झरोखे से आती धूप की किरणें कितनी सुंदर दिखती हैंन? यह वैसे ही था कि आप दर्द से गुजर रहे व्यक्ति के गले में हाथ डालकर, धीरे से पूरी संवेदनशीलता के साथ उन छोटी छोटी मगर खूबसूरत बातों की ओर उसका ध्यान ले चलें, जिसे देख उसके मन में उम्मीद को गले लगाने की चाह जागे।"

मुझे ये गीत बेहद बेहद पसंद है और  प्रसून के काव्यात्मक गीतों में ये मुझे सबसे बेहतरीन लगता है। इसे बड़ी संवेदनशीलता से गाया है बाम्बे जयश्री ने और इसकी धुन बनाई  है शंकर एहसान और लॉ॓ए ने जो कमाल की है।




खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे
बूँदों को धरती पर साज एक बजाने दे
हवाएँ कह रही हैं आजा झूमें ज़रा
गगन के गाल को चल, जा के छू लें ज़रा

झील एक आदत है तुझमें ही तो रहती है
और नदी शरारत है, तेरे संग बहती है
उतार ग़म के मोजे जमीं को गुनगुनाने दे
कंकरों को तलवों में, गुदगुदी मचाने दे
खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे...


बाँसुरी की खिड़कियों पे सुर ये  क्यूँ ठिठकते हैं
आँख के समंदर क्यूँ बेवजह छलकते हैं
तितलियाँ ये कहती हैं अब वसंत आने दे
जंगलों के मौसम को बस्तियों में छाने दे
खुल के मुस्कुरा ले तू, दर्द को शर्माने दे...

खूबसूरत बोल और बेहतरीन संगीत के इस संगम को कभी फुर्सत के क्षणों में सुनें, आशा है ये गीत आपको भी पसंद आएगा।

बुधवार, अगस्त 19, 2015

तू बिन बताए मुझे ले चल कहीं ... Tu bin bataye .. Rang De Basanti

रंग दे बसंती याद है ना आपको! नौ साल पहले आई इस फिल्म ने समूचे जनमानस विशेषकर युवाओं के मन को खासा उद्वेलित किया था। फिल्म के साथ साथ इसके गीत भी बेहद चर्चित हुए थे। शीर्षक गीत मोहे तू रंग दे बसंती तो लोकप्रिय हुआ ही था, साथ ही साथ रूबरू, खलबली, पाठशाला, लुका छिपी भी पसंद किए गए थे। ए आर रहमान द्वारा संगीत निर्देशित इस फिल्म में प्रसून जोशी का लिखा एक रूमानी नग्मा और भी था जिसे सुन कर मन में आज भी एक तरह का सुकून तारी हो जाता है। गीत के बोल थे तू बिन बताए मुझे ले चल कहीं... जहाँ तू मुस्कुराए मेरी मंज़िल वहीं... तो आज बात करते हैं इसी गीत के बारे में

पहली पहली बार किसी से प्रेम होता है तो ढेर सारी बैचैनियाँ साथ लाता है। एक ओर तो मन उस संभावित सहचर के साथ मीठे मीठे सपने भी बुन रहा होता है तो दूसरी ओर उसे अपनी अस्वीकृति का भय भी सताता है।

पर प्रसून जोशी का लिखा ये नग्मा प्रेम के प्रारंभिक चरण की इस उथल पुथल से आगे की बात कहता है जब प्रेम में स्थायित्व आ चुका होता है। रिश्ते की जड़ें इतनी मजबूत हो जाती हैं कि प्रेमी उससे निकलते नित नए पल्लवों व पुष्पों के सानिध्य से आनंदित होता रहता है। दरअसल प्रेम आपसी विश्वास और सम्मान का दूसरा नाम है और जब इनका साथ हो तो गलतफ़हमियों की कोई हवा उस पौधे को उखाड़ नहीं सकती।

प्रसून  जोशी ने इस गीत के बारे अपनी किताब Sunshine Lanes में लिखा है

"प्यार कैसे किसी व्यक्ति को पूर्णता प्रदान करता है..कैसे अपने परम प्रिय की शारीरिक अनुपस्थिति भी उसे उसके प्रभाव घेरे से मुक्त नहीं कर पाती..ये बात मुझे हमेशा से अचंभित करती रही है। अपने उस ख़ास की छाया, उसकी बोली, उसके स्पर्श के अहसास से हम कभी दूर नहीं हो पाते। सिर्फ उस इष्ट के ख्याल मात्र से मन की सूनी वादी एक दम से हरी भरी लगने लगती है। प्रेम के इस अवस्था में प्रश्नों के लिए कोई स्थान नहीं । जगह होती है तो सिर्फ समर्पण की,वो भी बिना सवालों के और मेरा ये गीत प्रेम के इसी पड़ाव के बीच से मुखरित होता है।"

रंग दे वसंती का ये गीत गाया है मधुश्री ने। मधुश्री ए आर रहमान की संगीतबद्ध फिल्मों में बतौर गायिका एक जाना पहचाना चेहरा रही हैं। बहुत कम लोगों को पता है कि कभी नीम नीम कभी शहद शहद  (युवा), हम हैं इस पल यहाँ ...(कृष्णा), इन लमहों के दामन में ....(जोधा अकबर) जैसे शानदार नग्मों को गाने वाली मधुश्री का वास्तविक नाम सुजाता भट्टाचार्य है। रवीन्द भारती विश्वविद्यालय से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने वाली मधुश्री ने हिंदी के आलावा तमिल, तेलगु, कन्नड़ और बांग्ला फिल्मों के गाने भी गाए हैं। 

इस गीत की अदाएगी के बारे में एक रोचक तथ्य ये है कि इसके मुखड़े में शास्त्रीय संगीत में प्रयुक्त होने वाले अलंकार मींड का इस्तेमाल हुआ है। आपने गौर किया होगा तू...बिन..बताए....मुझे...ले.. ..चल.कहीं में शब्दों के बीच एक सुर से दुसरे सुर तक जाने का जो सहज खिंचाव है जो गीत की श्रवणीयता को और मधुर बना देता है। फिल्म में ये गीत पार्श्व से आता है। नायक नायिका या उनके मित्रों को कुछ कहने की जरूरत नहीं होती। पीछे से आते बोल उन भावनाओं को मूर्त रूप दे देते हैं जो चरित्रों के मन में चल रही होती हैं।

इस गीत में मधुश्री का साथ दिया है गायक नरेश अय्यर ने। तो आइए सुनते  हैं ये प्यारा सा नग्मा

 

तू बिन बताए मुझे ले चल कहीं
जहाँ तू मुस्कुराए मेरी मंज़िल वहीं

मीठी लगी, चख के देखी अभी
मिशरी की डली, ज़िंदगी हो चली
जहाँ हैं तेरी बाहें मेरा साहिल वहीं
तू बिन बताए ........मेरी मंज़िल वहीं

मन की गली तू फुहारों सी आ
भीग जाए मेरे ख्वाबों का काफिला
जिसे तू गुनगुनाए मेरी धुन है वहीं
तू बिन बताए ........मेरी मंज़िल वहीं
बताए ........मेरी मंज़िल वहीं

शुक्रवार, दिसंबर 19, 2014

पेशावर हमले पर प्रसून जोशी की कविता...समझो कुछ गलत है Samjho Kuch Ghalat Hai ...

कभी कभी सोचता हूँ कि आख़िर भगवान के मन में ऐसा क्या आया होगा कि उसने मानव मात्र की रचना करने की सोची। क्या फर्क पड़ जाता अगर इस दुनिया में पेड़ पौधे, पर्वत, नदियाँ, सागर और सिर्फ जानवर होते? आख़िर जिस इंसान को प्रेम, करुणा, वातसल्य से परिपूर्ण एक सृजक के रूप में बाकी प्रजातियों से अलग किया जाता है उसी इंसान ने आदि काल से विध्वंसक के रूप में घृणा, द्वेष, क्रूरता और निर्ममता के अभूतपूर्व प्रतिमान रचे हैं और रचता जा रहा है।

आख़िर इंसानों ने आपने आप को इस हद तक गिरने कैसे दिया है? मानवीय मूल्यों के इस नैतिक पतन की एक वज़ह ये भी है कि हमने अपने आप को परिवार, मज़हब, शहर, देश जैसे छोटे छोटे घेरों में बाँट लिया है। हम उसी घेरे के अंदर सत्य-असत्य, न्याय अन्याय की लड़ाई लड़ते रहते हैं और घेरे के बाहर ऐसा कुछ भी होता देख आँखें मूँद लेते हैं क्यूँकि उससे सीधा सीधा नुकसान हमें नहीं होता। यही वज़ह है कि समाज के अंदर जब जब हैवानियत सर उठाती है हम उसे रोकने में अक़्सर अपने को असहाय पाते हैं क्यूँकि हम अपने घेरे से बाहर निकलकर एकजुट होने की ताकत को भूल चुके हैं।

पेशावर हमले में मारे गए मासूम

पेशावर में जो कुछ भी हुआ वो इसी हैवानियत का दिल दहला देने वाला मंज़र था। पर ये मत समझिएगा कि ये मानवता का न्यूनतम स्तर है। हमारी मानव जाति में इससे भी ज्यादा नीचे गिरने की कूवत है। ये गिरावट तब तक ज़ारी रहेगी जब तक ये दुनिया है और जब तक इंसान अपने चारों ओर बनाई इन अदृश्य दीवारों को तोड़कर एकजुट होने की कोशिश नहीं करता।

पेशावर से जुड़ी इस घटना पर प्रसून जोशी जी की दिल को छूती इस कविता को पढ़ा तो लगा कि मेरी भावनाओं को शब्द मिल गए। आज मन में उठती इन्हीं भावनाओं को अपनी आवाज़ के माध्यम से आप तक पहुंचाने की कोशिश की है..'

 

जब बचपन तुम्हारी
गोद में आने से कतराने लगे
जब मां की कोख से झांकती जिंदगी
बाहर आने से घबराने लगे
समझो कुछ गलत है।

जब तलवारें फूलों पर जोर आजमाने लगें
जब मासूम आँखों में खौफ़ नजर आने लगे
समझो कुछ गलत है।

जब ओस की बूँदों को हथेलियों पर नहीं
हथियारों की नोक पर तैरना हो
जब नन्हे नन्हे तलवों को
आग से गुजरना हो
समझो कुछ गलत है...।

जब किलकारियाँ सहम जाएँ
जब तोतली बोलियाँ खामोश हो जाएँ
समझो कुछ गलत है।

कुछ नहीं बहुत कुछ गलत है
क्योंकि जोर से बारिश होनी चाहिए थी
पूरी दुनिया में

हर जगह टपकने चाहिए थे आँसू
रोना चाहिए था ऊपर वाले को
आसमान से, फूटफूटकर।

शर्म से झुकनी चाहिए थी
इंसानी सभ्यता की गर्दनें
शोक नहीं, सोच का वक्त है
मातम नहीं, सवालों का वक्त है।

अगर इसके बाद भी
सर उठाकर खड़ा हो सकता है इंसान
समझो कुछ गलत है।


वे बच्चे तो इस दुनिया में नहीं है पर शायद उनकी असमय मौत हममें से कुछ को जरूर सोचने में मदद करे कि हम कहाँ गलत थे।

रविवार, जून 08, 2014

सीखो ना नैनों की भाषा पिया. Seekho Na Nainon Ki Bhasha Piya

करीब तीन हफ्तों के लंबे अंतराल के बाद इस ब्लॉग पर लौट रहा हूँ। क्या करूँ घर की एक शादी, फिर कनाडा का अनायास दौरा और वापस लौटकर कार्यालय की व्यस्तताओं ने यहाँ चाह कर भी आने की मोहलत नहीं दी। पर कभी कभी इन व्यस्तताओं के बीच भी कुछ मधुर सुनने को मिल जाता है। अब इसी गीत की बात लीजिए। इसे पिछले हफ्ते अपने कार्यालयी दौरों के बीच एक शाम मित्रों के साथ गाने गुनगुनाने की बैठक में पहली बार सुना और तबसे ही इसकी गिरफ्त में हूँ। तो सोचा आप तक इसे पहुँचा कर इस गिरफ़्त से आज़ादी ले लूँ। 

इस गीत को गाया है हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के साथ हिंदी पॉप में भी अपना दखल देने वाली शुभा मुद्गल जी ने। शुभा जी की आवाज़ जहाँ एक ओर पारंपरिक ठुमरी, ख़याल और दादरा की याद दिला देती है वहीं अली मोरे अँगना, अब के सावन, प्यार के गीत सुना जा रे जैसे गैर फिल्मी गीतों की भी, जो दस पन्द्रह साल पहले बेहद लोकप्रिय हुए थे और आज भी लोगों के दिलो दिमाग से गए नहीं हैं। 1999 में उनका एक एलबम आया था 'अब के सावन' जिसे संगीतबद्ध किया था शान्तनु मोइत्रा ने । इस एलबम का एक गीत था 'सीखो ना नैनों की भाषा पिया..' जिसे लिखा था प्रसून जोशी ने।


काव्यात्मक गीतों की रचना में आज प्रसून जोशी अग्रणी गीतकारों में माने जाते हैं। ये गीत इस बात को साबित करता है कि उनका ये हुनर उनके शुरुआती दिनों से उनके साथ रहा है।  रूपा पब्लिकेशन द्वारा पिछले साल अपनी प्रकाशित पुस्तक Sunshine Lanes में इस गीत की चर्चा करते हुए उन्होंने लिखा है..
"मैंने इस गीत पर दिल्ली में काम करना शुरु किया क्यूँकि उस वक़्त वही मेरा ठिकाना था। पर जब 'अब के सावन' एलबम के गीतों की रिकार्डिंग शुरु हुई तो मुझे रिकार्डिंग टीम के साथ मुंबई जाना पड़ा। वहीं जुहू के शांत होटल के एक कमरे में ये गीत अपनी आख़िरी शक़्ल ले सका। ठुमरियाँ लिखना मुझे हमेशा से प्रिय रहा है। ये गीत भले ठुमरी की परिभाषा में पूरी तरह ख़रा नहीं उतरता पर फिर भी उसकी सुगंध को गीत की अदाएगी के साथ आप महसूस कर सकते हैं।
किसी भी प्रेमी की सबसे बड़ी हसरत उसे समझे जाने की होती है। सिर्फ शब्दों के ज़रिए नहीं पर उन छोटी छोटी बातों से जो उसकी भावनाओं और भाव भंगिमाओं में रह रह कर प्रकट होती हैं। मैंने इस गीत में इसी भाव को और गहराई से परखने की कोशिश की। वैसे तो ये गीत नारी मनोभावों को ज़रा ज्यादा छूता है पर ऐसा भी नहीं है कि पुरुषों में अपने आप को समझे जाने की चाहत नहीं होती।"
प्रसून की बातें तो आपने पढ़ लीं। ज़रा देखिए उन्होंने इस गीत में लिखा क्या है..

सीखो ना नैनों की भाषा पिया
कह रही तुमसे ये खामोशियाँ
सीखो ना
लब तो ना खोलूँगी मैं समझो दिल की बोली
सीखो ना नैनों की भाषा पिया...

सुनना सीखो तुम हवा को
सनन सन सनन सन कहती है क्या
पढ़ना सीखो.. सल..वटों को
माथे पे ये बलखा के लिखती हैं क्या

आहटों की है अपनी जुबाँ
इनमें भी है इक दास्तान
जाओ जाओ जाओ जाओ जाओ पिया

सीखो ना नैनों की भाषा...

ठहरे पानी जैसा लमहा
छेड़ो ना इसे हिल जाएँगी गहराइयाँ
थमती साँसों के शहर में
देखो तो ज़रा बोलती हैं क्या परछाइयाँ

कहने को अब बाकी है क्या
आँखों ने सब कह तो दिया
हाँ जाओ जाओ जाओ जाओ जाओ पिया

इसीलिए हुज़ूर अगली बार जब अपने प्रियतम के साथ हों तो बहती हवा की सनसनाहट में ये देखना ना भूलिए कि वो उन्हें गुदगुदा रही है या उकता रही है। अगर वो एकटक आपकी आँखों में आँखें डाले बैठे हों तो कुछ बोल कर प्रेम में डूबे उन गहरे जज़्बातों को हल्का ना कीजिए।बल्कि उनके साथ उनमें और डूबिए। वो लमहा तो गुजर जाएगा पर उसकी कसक, उसकी मुलायमियत आप वर्षों महसूस कर सकेंगे।

बहरहाल मैंने जिस दिन ये गीत सुना उस दिन ना तो फिज़ाओं में हवाएँ थीं और ना तो आकाश की गोद में उमड़ती घटाएँ। थी तो बस ढलती शाम में एक प्यारी सी आवाज़ जो गीत के बोलों के उतार चढ़ावों , उसकी भावनाओं को भली भांति प्रतिध्वनित करती हुई गर्मी की उस उष्णता को शीतलता में बदल रही थी। शायद यही कारण था कि शाखों से झूलते पत्ते भी बिना हिले डुले एकाग्रचित्त होकर इस गीत का आनंद ले रहे थे। 

इस गीत को सुनने के बाद मैंने तुरंत घर आकर शुभा मुद्गल की आवाज़ में इस गीत को सुना। पर अपने प्रिय संगीतकार शान्तनु मोइत्रा के संगीत संयोजन ने मुझे बेहद निराश किया। इस गीत को एक ठहराव और सुकून वाले न्यूनतम संगीत संयोजन की जरूरत थी जिसका मज़ा शान्तनु ने गीत के साथ चलती ताल वाद्यों की गहरी बीट्स से थोड़ा तो जरूर खराब कर दिया। अगर ऐसा नहीं होता तो शुभा जी की गायिकी और निखर कर  सामने आती।

नेट पर मैंने इस गीत को बिना संगीत के सुनना चाहा और मुझे कई अच्छी रिकार्डिंग्स हाथ लगी। उनमें से एक थी निकिता दाहरवाल की सो वही आपको पहले सुना रहा हूँ। इसी गीत को युवा गायिका और फिलहाल इंग्लैंड में अपनी शिक्षा पूरी कर रही निकिता दहरवाल ने भी पूरे मनोयोग से गाया है। निकिता की आवाज़ की तुलना शुभा जी की खुले गले वाली गहरी आवाज़ से तो नहीं की जा सकती पर उसने गीत की भावनाओं को सहजता से अपनी आवाज़ में पकड़ने की कोशिश जरूर की है।



और अब सुनिए इसे शुभा मुद्गल की आवाज़ में..



वैसे लोचनों की इस भाषा को पढ़ने में आपका अनुभव कैसा रहा है? क्या ऐसा तो नहीं कि आपने समझ कर भी उसे नज़रअंदाज़ कर दिया हो या फिर उनमें निहित भावनाओं को जरूरत से ज्यादा आँका हो ?

पुनःश्च दिसंबर 2019 इसी हफ्ते इस शानदार गीत को अपनी प्यारी आवाज़ से एक नई ऊँचाई पर पहुँचाया है हिमानी कपूर ने। जिन्हें इस गीत से प्यार है उन्हें ये वर्सन भी पसंद आएगा ऐसी मुझे उम्मीद है

गुरुवार, जनवरी 30, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 12 : हवन कुंड मस्तों का झुंड.. (Maston ka Jhund)

मस्ती के माहौल को बरक़रार रखते हुए हम आ पहुँचे हैं वार्षिक संगीतमाला 2013 की बारहवीं पायदान पर। शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी ने भाग मिल्खा भाग के गीतों के ज़रिये ये साबित कर दिया कि उनमें अभी भी पिछले सालों का दम खम बाकी है। एक फौज़ी के कठिन जीवन के बीच मस्ती भरे पलों को दर्शाते इस गीत को ही लें। गीत की शुरुआत में मुँह से की जाने वाली आवाज़ हो, या भाँगड़े के साथ रिदम बैठाता इकतारा या फिर फौजी की कठोर ज़िदगी को दिखाने के लिए पार्श्व में बजता पश्चिमी संगीत हो, संगीतकार त्रयी हर जगह श्रोताओं को अपने संगीत संयोजन मुग्ध करने में सफल रही है।


दिव्य कुमार की गायिकी से आप संगीतमाला की 19 वीं पायदान पर रूबरू हो चुके हैं। मस्तों का झुंड उनकी झोली में कैसे आया इसकी कहानी वे कुछ यूँ बयाँ करते हैं।
"शंकर एहसान लॉय के साथ मैंने पहले पहल 2011 के विश्व कप शीर्षक गीत दे घुमा के .....में काम किया था। उसके पहले भी कुछ गीतों और विज्ञापनों के लिए उनके साथ मैंने काम किया था। उनके द्वारा संचालित संगीत कार्यक्रमों के दूसरे चरण में मुझे महालक्ष्मी ऐयर के साथ गाने का मौका मिला। तभी शंकर को लगा था कि मेरी आवाज़ एक सिख चरित्र के लिए आदर्श होगी और मैं 'भाग मिल्खा भाग' का हिस्सा बन सकता हूँ। मैंने मस्तों का झुंड के लिए अपना दो सौ प्रतिशत दिया क्यूँकि इस स्वर्णिम अवसर को मैं यूँ ही हाथ से जाने नहीं देना चाहता था। परिणाम भी शानदार रहा जैसा शंकर एहसान लॉय के साथ होता है। गाते वक़्त मुझे बस इतना कहा गया था कि मुझे एकदम मस्ती में गाना है और पंजाबी उच्चारण को एकदम पकड़ कर चलना है क्यूँकि मेरी आवाज़ एक सिख किरदार की है।"
और पंजाबियत की सोंधी खुशबू हम तक पहुंचाने के लिए दिव्य 'हवन' को 'हवण' की तरह उच्चारित करते हैं। दरअसल इस गीत में एक तरह का पागलपन है जो इसके संगीत और बोलों में सहज ही मुखरित होता है। जिन लड़कों ने कॉलेज की ज़िंदगी का एक हिस्सा हॉस्टल में रहकर गुजारा है उन्हें ऐसी पागलपनती से अपने को जोड़ने में कोई परेशानी नहीं होगी। गीत में चरित्रों की भाव भंगिमाएँ,उनके थिरकने का अंदाज़ सब कुछ उन पुराने दिनों की याद ताज़ा करा देता है जिसे हम सबने अपने सहपाठियों के साथ जिया है।

जीव जन्तु सब सो रहे होंगे..भूत प्रेत सब रो रहे होंगे जैसे बोल लिखने वाले प्रसून जोशी को सहूलियत ये थी कि वे गीतों को लिखने के साथ साथ फिल्म की पटकथा भी लिख रहे थे। वे कहते हैं कि गीत लिखते समय वो उन चरित्रों को वो नए आयाम दे सके जो पटकथा में स्पष्ट नहीं थे। फरहान अख्तर और साथी कलाकारों ने मस्ती और उमंग से भरे इस गीत में जो भाँगड़ा किया है वो किसी का भी चित्त प्रसन्न करने में सक्षम है। तो आइए एक बार फिर उल्लास के माहौल से सराबोर हो लें इस गीत के साथ..



ओए हवन कुंड मस्तों का झुंड
सुनसान रात अब
ऐसी रात, रख दिल पे हाथ, हम साथ साथ
बोलो क्या करेंगे
हवन करेंगे..हवन करेंगे..हवन करेंगे

ओए जीव जन्तु सब सो रे होंगे
भूत प्रेत सब रो रहे होंगे
ऐसी रात सुनसान रात रख दिल पे हाथ
हम साथ साथ बोलो क्या करेंगे
हवन करेंगे..हवन करेंगे..हवन करेंगे

नहाता धोता, नहाता धोता सुखाता
सारे आर्डर
सारे आर्डर बजाता
परेड थम
नहाता धोता सुखाता आहो ..
सारे आर्डर बजाता आहो ..
तभी तो फौजी कहलाता
परेड थम

दौड़ दौड़ के लोहा अपना
बदन करेंगे ...बदन करेंगे हवन करेंगे
ओए हवन कुंड मस्तों का झुंड ..

ओ जंगली आग सी भड़कती होगी
लकड़ी दिल की भी सुलगती होगी
सुनसान रात अब
ऐसी रात रख दिल पे हाथ हम साथ साथ
बोलो क्या करेंगे
हवन करेंगे..हवन करेंगे..हवन करेंगे


गुरुवार, जनवरी 23, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 15 : स्लो मोशन अँग्रेज़ा.. (Slow Motion angreza) आख़िर ये वुलुमुलु क्या है?

वार्षिक संगीतमाला की पन्द्रहवीं पायदान का गीत अब तक प्रस्तुत गीतों से अलग एक भिन्न कोटि का गीत है।  अगर आपको अपने तन मन को तरंगित करना हो तो बस इस गीत की एक खुराक ही काफी होगी। शंकर एहसान लॉय द्वारा संगीतबद्ध इस गीत को लिखा प्रसून जोशी ने और इसे आपनी बेशकीमती आवाज़ से बख्शा है सुखविंदर सिंह ने। वैसे गायिकी में उनका साथ दिया है लॉय मेन्डोसा और शंकर महादेवन ने। 

इस गीत में एक तरह की शोख़ी और शरारत है जो आपको ना केवल झूमने पर मज़बूर करती है बल्कि साथ आपके मूड को भी तरोताज़ा कर देती है। फिल्म भाग मिल्खा भाग के इस गीत को मिल्खा सिंह के मेलबर्न ओलंपिक के परिपेक्ष्य में फिल्माना था। इस गीत के संगीत  संयोजन के बारे में लॉय मेन्डोसा कहते हैं..
हमें ये पता लगाना था कि पचास और साठ के दशक में किस तरह का आस्ट्रेलियाई संगीत प्रचलित था। अपने अनुसंधान से हमें लगा कि इस गीत के संगीत में Country और Western संगीत का मिश्रण करना होगा। शंकर ने कहा कि मुखड़े में किसी ध्यान खींचने वाले जुमले की जरूरत है और हमारी खोज वुलुमुलु पर खत्म हुई। दरअसल इसी नाम की एक स्ट्रीट सिडनी में भी है। जब हम सिडनी गए तो वहाँ से भी गुजरे और वो जगह हमें बेहद पसंद आई।

इस गीत की शुरुआत की पंक्तियाँ ख़ुद
I just met a girl
And she is from wulu-mulu wulu-mulu wonder
I can dance and she can sing
We can rock the whole night longer

लॉय मेंडोसा ने गायी हैं और इतना ही नहीं अगर आपने फिल्म देखते हुए ध्यान दिया हो वो ख़ुद ही इस गीत को गाते हुए भी दिखाई दिए हैं। पर गीत में अपनी बेमिसाल गायिकी से जान डालने वाले सुखविंदर सिंह की जितनी तारीफ़ की जाए कम है। गीत में पंजाबी तड़का लगाने पहुँचे सुखविंदर अपनी गायिकी से इसके शब्दों में वो मस्ती ले आते हैं कि तन मन थिरक उठता है और जब तक वो पीने दे रज के... तक आते हैं शरीर को स्थिर रखना बड़ा मुश्किल हो जाता है।। प्रसून के शब्द गीत के मूड के हिसाब से लिखे गए हैं इसीलिए गीत के असर से लहरें भी टल्ली हो रही हैं ।

हो स्लो मोशन अँग्रेज़ा, हुन क्यों टाइम गँवाए
सीधे बाहों में भर ले, सरसरी क्यों बढ़ाए
मेरी व्हिस्कीए मेरी ठर्रिए, तू मैनू चढ़ गयी मेरी सोनिए
रोको ना टोको ना, हो.. मुझको पीने दे रज के
घुल मिल घुल मिल लौंडा घुल मिल घुल मिल
घुल मिल घुल मिल लौंडा घुल मिल घुल मिल
सिंग..वुलु मुलु वुलु मुलु वंडर, वुलु मुलु वुल मुलु..
.

रात बढ़ती जो जाए, हाथ क्या क्या टटोले
झूठ बोले ज़ुबान भी, धरम ईमान डोले हाए..
तू जो दरिया में उतरे, सारा पानी गुलाबी हाए..
हो तू जो दरिया में उतरे सारा पानी गुलाबी
टल्ली टल्ली हों लहरें, मछलियाँ भी शराबी
मेरी व्हिस्कीए मेरी ठर्रिए....पीने दे रज के
घुल मिल घुल मिल................

हो काँच सी है तू नाज़ुक,
काँच सी है तू नाज़ुक, साँस लेना संभल के
टूट जाए कहीं ना, बस करवट बदल के

तुझको मेरी ज़रूरत, आ मैं तुझको उठा लूँ
तुझको मेरी ज़रूरत, आ मैं तुझको उठा लूँ
धीरे धीरे से चलना, अपनी आदत बना लूँ
मेरी व्हिस्कीए मेरी ठर्रिए....पीने दे रज के
घुल मिल घुल मिल................





ये तो सब जानते हैं कि इस गीत को फरहान अख़्तर पर फिल्माया गया है और सच पर्दे पर उनकी उर्जात्मक प्रस्तुति के क्या कहने ! पर क्या आपको पता है कि इस गाने में फरहान का साथ किसने निभाया ? फरहान अख्तर के साथ फिल्मी पर्दे पर दिखने वाली अभिनेत्री रिबेका ब्रीड्स (Rebecca Breeds) हैं जो आस्ट्रेलिया से ताल्लुक रखती हैं।

गुरुवार, जनवरी 16, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान 18 :ओ बस तू भाग मिल्खा (Bas Tu Bhag Milkha...)

वार्षिक संगीतमाला की सात सीढियाँ चढ़ते हुए आज हम आ पहुँचे हैं गीतमाला की अठारवीं पॉयदान पर। वैसे तो इस गीत के संगीतकार के रूप में शंकर एहसान लॉय की तिकड़ी है पर नाममात्र संगीत पर बने इस गीत को इस पॉयदान तक पहुँचाने के असली हक़दार इसके गायक और गीतकार हैं। गायक ऐसा जिसकी आवाज़ की गर्मी से पानी भी भाप बन जाए और गीतकार ऐसे जिनके लिखे काव्यात्मक गीत हृदय में भावनाओं का ज्वार उत्पन्न कर दें। अगर आप अभी तक इस गायक गीतकार की जोड़ी को लेकर असमंजस में हैं तो बता दूँ कि मैं बात कर रहा हूँ पाकिस्तान के पंजाबी लोक गायक आरिफ़ लोहार और अपने गीतकार कवि प्रसून जोशी की।


आरिफ लोहार की आवाज़ से मेरा प्रथम परिचय कोक स्टूडियो में उनके मीशा सफ़ी के साथ गाए जुगनी गीत अलिफ़ अल्लाह चंबे दी बूटी...दम गुटकूँ दम गुटकूँ से हुआ था। उनकी आवाज़  की ठसक, उच्चारण की स्पष्टता और ऊँचे सुरों को आसानी से निभा लेने की सलाहियत ने मुझे बेहद प्रभावित किया था। इस गीत को भारत में इतनी लोकप्रियता मिली कि इसमें थोड़ा बदलाव ला के  इसका प्रयोग हिंदी फिल्मों में भी हुआ। ख़ुद आरिफ़ का अपनी गायिकी के बारे में क्या कहना है उनकी ही जुबानी पढ़िए..
"मेरा एक अलग ही अंदाज़ होता है। मैं समझता हूँ कि हर कलाकार का एक अलग अंदाज़ होना चाहिए। मुझे जानकर अच्छा लगता है कि भारत में लोग मुझे दमगुटकूँ के गायक के नाम से जानते हैं। मेरा सूफी संगीत उस समय लोकप्रिय हुआ जब उसकी जरूरत थी। मैं जब भी गाऊँगा अपने तरीके से गाऊँगा। मैं चिमटा ले कर भी अपने आप को राकस्टार मानता हूँ।"
जी हाँ आरिफ़ जब भी स्टेज पर होते हैं उनके हाथ में चिमटा होता है।  उनके  गीतों की धुनें चिमटों के टकराहट से उपजी बीट्स से निकलती हैं। इस गीत में भी शुरु से आख़िर तक शंकर अहसान लाए ने लोहार के चिमटे के साथ इकतारे और गिटार का ही प्रयोग किया है। पर फिल्म भाग मिल्खा भाग के इस शीर्षक गीत में आरिफ़ गायन की जिस बुलंदी पर पहुँचे हैं उसमें प्रसून जोशी के शब्दों की उड़ान का बहुत बड़ा हाथ है।  इस गीत की एक एक पंक्ति किस तरह एक धावक के मन में उत्साह का संचार करती है उसके लिए इस लंबे गीत को बस एक बार पढ़ कर देखिए।

अरे शक्ति माँग रहा संसार, अब तू आने दे ललकार
तेरी तो बाहें पतवार, कदम हैं तेरे हाहाकार
तेरी नस नस लोहाकार, तू है आग मिल्खा
ओ बस तू भाग मिल्खा

अरे छोड़ दे बीते कल की बोरी, काट दे रस्सी सुतली डोरी
तुझ से पूछेगी ये मट्टी, करके साँस साँस को भट्टी
अब तू जाग मिल्खा, बस तू भाग मिल्खा

ओ सरिया, ओ कश्ती,
ओ सरिया ओ सरिया, ओए मोड़ दे आग का दरिया
ओ कश्ती ओ कश्ती, ओ डूब जाने में ही है हस्ती
हो जंगल, हो जंगल, आज शहरों से है तेरा दंगल
अब तू भाग भाग, भाग भाग भाग मिल्खा़ अब तू भाग मिल्खा

धुआँ धुआँ धमकाए धूल, राह में राने बन गए शूल
तान ले अरमानों के चाकू, मुश्किलें हो गयीं सारी डाकू
तू बन जा नाग ,नाग , नाग मिल्खा़ अब तू भाग मिल्खा

तेरा तो बिस्तर है मैदान, ओढना धरती तेरी शान
तेरे सराहने है चट्टान, पहन ले पूरा आसमान
तू पगड़ी बाँध मिल्खा, अब तू भाग मिल्खा....

हो भँवर भँवर है चक्कर चक्कर चक्कर
गोदी में उठाया माँ ने, चक्कर चक्कर चक्कर
गोदी उठाया बापू ने, चक्कर चक्कर चक्कर
भँवर भँवर है आज खेल तू, भँवर को खेल बना दे
आँधियाँ रेल बना दे, पटखनी दे उलझन को
चीख बना दे सरगम को, ओ चक्कर चक्कर चक्कर
उतार के फेंक दे सब जंजाल, बीते कल का हर कंकाल
तेरे तलवे हैं तेरी नाल, तुझे तो करना है हर हाल
अब तू जाग मिल्खा़, जाग मिल्खा़, जाग मिल्खा़, अब तू...

खोल तू रथ के पहिए खोल, बना के चक्र सुदर्शन गोल
जंग के फीते कस के बाँध, खुली है आज शेर की माँद
तू गोली दाग मिल्खा, दाग मिल्खा, दाग मिल्खा, अब तू...

दाँत से काट ले बिजली तार, चबा ले तांबे की छनकार
फूँक दे खुद को ज्वाला ज्वाला, बिन खुद जले  ना होए उजाला
लपट है आग मिल्खा, आग मिल्खा, आग मिल्खा, अब तू..
अब तू जाग मिल्खा, तू बन जा नाग मिल्खा
तू पगड़ी बाँध मिल्खा, तू गोली दाग मिल्खा,
ओह तू है आग मिल्खा, ओह तू भाग मिल्खा, अब तू..
अब तू भाग मिल्खा...



प्रसून ने गीत में उस ओजमयी भाषा का प्रयोग किया है जिसे लिख कर वीर रस का कवि भी गर्व महसूस करेगा। इन उत्प्रेरक शब्दों को जब आरिफ लोहार की बुलंद आवाज़ का सहारा मिलता है तो बस भागने के आलावा चारा क्या बचता है? :)

गुरुवार, अगस्त 25, 2011

लो मशालों को जगा डाला किसी ने,भोले थे कर दिया 'भाला' किसी ने : प्रसून जोशी

पिछले एक हफ्ते से मन अनमना सा है। अन्ना हजारे ने देश में जो अलख जगाई है उससे एक ओर तो मन अभिभूत है पर दूसरी ओर इस बात की चिंता भी है कि क्या अन्ना इस जन आंदोलन को उसके सही मुकाम तक पहुँचा पाएँगे । आज जबकि राजनेताओं पर अविश्वास चरम पर है लोकपाल पर पूर्ण समझौते के आसार कम हैं। अन्ना के समर्थकों को समझना होगा कि ये लड़ाई जल्द खत्म नहीं होने वाली। जनसमर्थन से जन लोकपाल  बिल को संसद में पेश करवाना एक बात है पर उसपर आम सहमति बनाने के लिए सकरात्मक दबाव बनाने की जरूरत है ना कि अक्षरशः पारित करवाने की जिद पर अड़े रहने की। जिस जज़्बे को अन्ना लाखों करोड़ों आम जनों में पैदा करने में सफल रहे हैं उसे जलते रहने देना है। भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम का ये तो पहला कदम है ऐसे कई और कदमों की जरूरत है।


नेता संविधान व संसद की सर्वोच्चता के बारे में चाहे जो कुछ भी बोलते रहें पर लोकतंत्र पर गर्व करने वाली जनता आज अगर इन संस्थाओं की कार्यशैली पर प्रश्न उठा रही है तो इसकी पूर्ण जवाबदेही इन राजनेताओं पर है। जनता के मन से इतना कटे रहने वाले ये नेता और ये सरकार अपने आप को जनता के नुमांइदे कैसे कह सकते हैं? सरकार को समझना होगा कि जनता की आशाओं को पूरा करने के लिए उसे अपने और सरकार के अंदर काम कर रहे तंत्र की कार्यशैली में व्यापक बदलाव लाने की जरूरत है। इस देश की जनता बेहद सहनशील है पर इसका मतलब ये नहीं कि लोकतंत्र की आड़ में वो सब कुछ निर्बाध चलता रहे जिसकी इज़ाजत ना इस देश का कानून देता है ना संविधान।

प्रसून एक ऐसे गीतकार हैं जिनके गीतों से भी कविता छलकती है। मुंबई हमलों की बात हो या आज भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अपना विरोध दर्ज कराते जनसैलाब की, प्रसून की लेखनी समय के अनुरूप लोगों की भावनाओं को उद्वेलित करने में सक्षम रही है।

देश में इस वक़्त लोगों के मन में वर्तमान हालातों से जो असंतोष व नाराजगी है उसे प्रसून जोशी ने अपनी एक कविता में बेहद संजीदगी से ज़ाहिर किया है। आज जब इस देश की नब्ज़ अन्ना की धड़कनों के साथ सुर में सुर मिला कर धड़ंक रही है आइए सुनते हैं कि प्रसून आज सत्ता में बैठे लोगों को अपनी इस कविता से क्या संदेश देना चाहते हैं?



लो मशालों को जगा डाला किसी ने
भोले थे कर दिया 'भाला' किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने

है शहर ये कोयलों का
ये मगर न भूल जाना
लाल शोले भी इसी बस्ती में रहते हैं युगों से

रास्तो में धूल है ..कीचड़ है, पर ये याद रखना
ये जमीं धुलती रही संकल्प वाले आँसुओं से

मेरे आँगन को है धो डाला किसी ने
लो मशालों को जगा डाला किसी ने
भोले थे कर दिया 'भाला' किसी ने
लो मशालों...

आग बेवजह कभी घर से निकलती ही नहीं है,
टोलियाँ जत्थे बनाकर चींखकर यूँ चलती नहीं है..
रात को भी देखने दो, आज तुम.. सूरज के जलवे
जब तपेगी ईंट तभी होश में आएँगे तलवे
तोड़ डाला मौन का ताला किसी ने,


लो मशालों को जगा डाला किसी ने,
भोले थे अब कर दिया 'भाला' किसी ने
लो मशालों...

गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 : पॉयदान संख्या 11 -बावली सी प्रीत मोरी अब चैन कैसे पावे,आजा रसिया मोहे अंग लगा ले ...

वार्षिक संगीतमाला की ग्यारहवीं पॉयदान का गीत एक ऐसा गीत हे जिससे शायद आप अभी तक अनजान हों। वैसे तो ये गीत जिस फिल्म से है उसका विभिन्न चैनलों पर काफी प्रमोशन किया गया था। पर प्रमोशन के दौरान इस गीत के बजाए अन्य गीतों को ज्यादा तरज़ीह दी गई। इस गीत की गायिका का फिल्मों के लिए गाया ये सिर्फ तीसरा गीत है। पर इनकी गायिकी का कमाल देखिए कि पिछले साल अपने पहले गीत के लिए इन्हें फिल्मफेयर एवार्ड के लिए नामित कर दिया गया।


आप भी सोच रहे होंगे कि ये बंदा पहेलियाँ ही बुझाता रहेगा या गायिका का नाम भी बताएगा। तो चलिए आपकी उत्सुकता भी शांत किए देते हैं। ये गायिका हैं श्रुति पाठक जिनका फैशन फिल्म के लिए गाया गीत मर जावाँ... बेहद लोकप्रिय हुआ था और पिछले साल मेरी संगीतमाला की 16 वीं पॉयदान पर बजा भी था। पर उस पोस्ट में श्रृति के बारे में आपसे ज्यादा बातें नहीं हो पाई थीं।

27 वर्षीय श्रुति पाठक गुजरात से ताल्लुक रखती हैं। संगीत की प्रारंभिक शिक्षा श्रुति ने अपने गुरु दिवाकर ठाकुर जी से अहमदाबाद में ली। स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो मुंबई आ गईं। फिलहाल वो सुनील गुरगावकर से संगीत की शिक्षा ले रही हैं। यूँ तो श्रुति का नाम फैशन फिल्म के संगीत रिलीज होने के बाद चमका पर उन्हें गाने का पहला मौका ले के पहला पहला प्यार... के रीमिक्स वर्सन (एलबम - बेबी डॉल) को गाने में मिला था। अगला मौका मिलने में श्रुति को 3 साल लग गए और इसके लिए नवोदित संगीतकार अमित त्रिवेदी से उनकी जान पहचान काम आई जिन्होंने फिल्म Dev D में उन्हें गाने का मौका दिया।

आपको जानकर आश्चर्य होगा कि श्रुति गाने के साथ साथ गीत लिखने का शौक भी रखती हैं। देव डी के गीत पायलिया .... को गाने के साथ उसे अपनी कलम से सँवारने का काम भी उन्होंने किया। श्रुति सोनू निगम की जबरदस्त प्रशंसक हैं और रोज़ कम से कम दो घंटे का समय रियाज़ में देती हैं।

आखिर क्या खास है श्रुति की आवाज़ में.. कुछ ऐसा कि आप उस आवाज़ की गहराइयों में डूबते चले जाएँ। ऐसी आवाज़ रूमानियत भरे नग्मों को आपकी संवेदनाओं के काफी करीब ले जाने की क्षमता रखती है। इसीलिए फैशन के बास फिल्म कुर्बान में जब संगीतकार सलीम सुलेमान के सामने एक शादी शुदा जोड़े के बीच प्रणय दृश्य की परिस्थिति आई तो एक बार फिर उन्होंने श्रुति पाठक को ही चुना। और श्रृति ने गीतकार प्रसून जोशी के शब्दों में निहित भावनाओं को बखूबी अपनी आवाज़ के साँचे में ढाल कर श्रोताओं तक पहुँचा दिया।

तो आइए सुनें कुर्बान फिल्म का ये गीत।



ओ रसिया...रसिया..

बावली सी प्रीत मोरी
अब चैने कैसे पावे
आ जा रसिया मोहे
अंग लगा ले

अंग लगा ले..अंग लगा ले

गेसुओं सी काली रतियाँ
अधरों पे काँपे बतियाँ
सांवली सी साँसे मोरी
अरज सुनावें
आके मोरी श्वेत प्रीत पे
रंग सजा दे

बावली सी प्रीत मोरी ....





और हाँ अगर पहले अंतरे के बाद की आवाज़ आपको अलग तरह की लगे तो बता दूँ कि गीत के बीच की ये पंक्तियाँ करीना कपूर ने पढ़ी हैं।
तन एक, जाँ एक
अपना खूँ ज़हाँ एक
ऐसे लिपटे रुह से रुह
कि हो जाए ईमाँ एक...


आशा है श्रुति की इस खास आवाज़ का फ़ायदा संगीतकार आगे भी उठाते रहेंगे जिससे हम जैसे संगीतप्रमियों को उनकी आवाज़ के अन्य आयामों का भी पता चल सके।

सोमवार, फ़रवरी 08, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 : पॉयदान संख्या 14 - ज़मीन से उखड़े लोगों में उम्मीद जगाते प्रसून जोशी

वार्षिक संगीतमाला 2009 में आज बारी है 14 वीं पॉयदान पर के गीत की। ये एक ऐसा गीत है जो हफ्ते दर हफ्ते मेरे मन में घर बनाता जा रहा है और मेरी आरंभिक सोच से छः पॉयदानों की छलाँग लगा कर ये आ पहुँचा है इस पॉयदान पर। पहली बार जब इसे सुना था तो लगा था कि एक बैंड को प्रमोट करने की परिस्थिति के अनुरूप ही इस गीत का मुखड़े और साथ का धूम धड़ाका रचा गया है। पर फिर भी कुछ बात थी इस नग्मे में कि मैंने इसे बाद में सुनने के लिए सहेज कर रख लिया।

दरअसल पाश्चात्य संगीत आयोजन के आवरण में आम सा लगने वाला गीत खास तब हो जाता है जब गीत के पहले 75 सेकेंड बीत चुके होते हैं। उसके बाद आ ज़माने आ.. के साथ गीत की लय यूँ बदलती है कि मन झूम उठता है और गायक के साथ सुर में सुर मिलाने को उद्यत हो जाता है।

प्रसून जोशी ने यहाँ एक बार फिर अपनी कलम की जादगूरी का बेहतरीन नमूना पेश किया है। वैसे तो गीत की परिस्थिति विदेशी ज़मीन पर अपने मुकाम की तलाश कर रहे बैंड के जज़्बे को दिखाने की है पर प्रसून ने गीत के माध्यम से विस्थापित जिंदगियों में रंग भरने की सफल कोशिश की है। अपनी जमीन से उखड़े लोगों के दर्द के बारे में हमारे साथी चिट्ठाकार हमेशा लिखते रहे हैं। इस बारे में कुछ दिनों पहले शरद कोकास और महिनों पहले रवीश कुमार का लिखा लेख तुरंत ही याद पड़ता है। प्रसून अपने इस गीत में ऍसे ही लोगों को विषय बना कर उनमें एक अच्छे कल के लिए नई आशा का संचार करते हुए दीखते हैं। प्रसून के इस साल के लिखे गीतों में ये गीत मुझे बोलों के हिसाब से सबसे बेहतरीन लगा। प्रसून अपने इस गीत के बारे में कहते हैं
खानाबदोश जिप्सी को कहते हैं, बंजारे को कहते हैं, जिसका बना बनाया ठिकाना नहीं है वो हम जैसा नहीं है जो जहाँ चल पड़ा वही घर है जहाँ बिस्तरा बिछा लिया वहीं उसका बेड रूम है। ये सिर्फ सलमान और अजय का गाना नहीं है ये उन सब लोगों का गीत है जो प्रवासी हैं जो विदेशों में या देश के अलग अलग शहरों में जाकर कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं। उनकी सोच है कि हम तो अपनी जड़ों से कट कर निकल चुके हैं और अब तो सारी दुनिया ही हमारा घर है। ये गीत सिर्फ अप्रवासी भारतीयों की नहीं बल्कि उन सभी लोगों की बात करता है जो अपना अपना गाँव अपना कस्बा छोड़कर देश के विभिन्न शहरों में जा बसे हैं। वो सब लोग जो काफ़िले में हैं, जो एक सफ़र में हैं, जिनके अंदर एक जुनून है, एक तलाश है जिनके पास, जिनकी आँखों में एक नए कल का सपना है ये उन सब का गाना है।
शंकर अहसान लॉय के संगीत से सजा ये नग्मा वेस्टर्न बीट्स और चुटकी के अद्भुत मिश्रण से शुरु होता है। संगीतकार जोड़ी चाहती तो ये गीत खुद शंकर महादेवन से गवा सकती थी। पर ये इनका बड़प्पन है कि इस गीत को गाने के लिए नवोदित गायक मोहन को चुना गया। तो चलें लंदन ड्रीम्स फिल्म के इस गीत में गायक मोहन की गायिकी का लुत्फ़ उठाने...




खानाबदोश खानाबदोश
फिरते हैं हम ख्वाबों के संग लिए
लंदन ड्रीम्स

है होठों पे सीटी, पैरों में सफ़र है
है दूर मंजिल, साथ बस हुनर है

गुनगुनाएँगे हम, चलते जाएँगे हम
जब तक देखे ना, सुने ना
समझे ना , माने ना, ये सारा ज़हाँ

आ ज़माने आ, आ ज़माने आ,
आजमाने आ, आजमाने आ,
पेशेवर हवा, पेशेवर हवा,
मुश्किलें सजा, हो ओ ओ हो
ख़्वाब ना सगे, ख़्वाब ना सगे,
ज़िंदगी ठगे,ज़िंदगी ठगे,


फिर भी जाने क्यूँ, फिर भी जाने क्यूँ,
उम्मीद जगे हो ओ ओ हो
खानाबदोश खानाबदोश
फिरते हैं हम ख्वाबों के संग लिए
लंदन ड्रीम्स

हम तो नदी ताल के,लहरें उछाल के
रहते वहीं जहाँ, बहते हैं हम
दिल की सुराही, सोंधी सोंधी गहराई
जहाँ छलके हैं गीत, जिन्हें कहते हैं हम
आ ज़माने आ, आ ज़माने आ,
आजमाने आ.... उम्मीद जगे

आसमाँ से छनती है, आँधियों से बनती है
ठोकरों में हैं, अपने तो मस्तियाँ
सागरों के यार हैं, झूमने से प्यार है
डोलते रहेंगे हैं आवारा कश्तियाँ
खानाबदोश खानाबदोश

शनिवार, जनवरी 23, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 : पॉयदान संख्या 19 - शंकर की मस्ती और प्रसून का जादू मन को अति भावे..

तो हो जाइए थिरकने को तैयार क्यूँकि आ रहा है वार्षिक संगीतमाला की 19 वीं पॉयदान पर एक ऐसा गीत जो ना केवल आपको झूमने पर विवश करेगा बल्कि साथ ही हिंदी के उस रूप की भी आपको याद दिला दे जाएगा जिसे आज के हिंग्लिश माहौल में लगभग आप भूल चुके हैं।


लंदन ड्रीम्स के इस रोमांटिक गीत में परस्थिति ये है कि नायक मस्ती में भावविहृल हो उठे हैं और अपने प्रेम के इस जुनून को शब्दों में व्यक्त करना चाहते हैं। जब फिल्म के निर्देशक गीतकार प्रसून जोशी के पास इस परिस्थिति को ले कर गए तो प्रसून को गीत के स्वरूप को ढालने में तीन चार दिनों का वक़्त लगा। प्रसून को लगा कि हिंदी के आलावा बृज भाषा के लहज़े को भी गीत में आत्मसात किया जाए। ज़ाहिर सी बात है कि प्रसून यह दिखाना चाहते थे कि जब भी हम भावातिरेक में होते हैं तो कुछ वैसे शब्दों का इस्तेमाल जरूर करते हैं जो कि हमारी आंचलिक भाषा से जुड़े हों.

पर आंचलिक शब्दों का सहारा प्रसून ने मुख्यतः मुखड़े में लिया है। गीत के पहले अंतरे से ही वो विशुद्ध हिंदी शब्दों का प्रयोग करते हैं। दरअसल ये गीत इस बात को सामने लाता है कि आज के हिंदी गीतकारों ने किस तरह अपने आप को उन्हीं रटे रटाये चंद जुमलों में संकुचित कर लिया है। आज की खिचड़ी भाषाई संस्कृति से जुड़ते युवा वर्ग के लिए प्रसून का ये प्रयोग वाकई काबिल-ए-तारीफ़ है। युवा वर्ग में इस गीत की लोकप्रियता इस बात को साबित करती है कि अगर सलीके से तत्सम शब्दों का प्रयोग किया जाए तो उसका भी एक अलग आनंद होता है। अपने इस गीत के बारे में बनाए गए वीडिओ में प्रसून कहते हैं...

इस गीत को रचते समय मेरे मन में सलमान खाँ का वो रूप आया जिसे मैं पसंद करता हूँ। गीत की भावनाओं में प्रेम का जुनून उन्हीं को ध्यान में रख कर आया है। इस गीत में हिंदी के ऍसे शब्दों का हुज़ूम है जो कि आपको आनंदित कर देगा। मैंने कोशिश की है कि इस गीत में वैसे शब्दों का प्रयोग करूँ जो खड़ी बोली या संस्कृत से आए हैं। ये वैसे शब्द हैं जिन्हें लोगों ने सालों साल नहीं सुना होगा या उन्हें अपनी स्कूल की हिंदी पुस्तकों में पढ़ा होगा।
शंकर अहसान लॉए की तिकड़ी द्वारा संगीतबद्ध लंदन ड्रीम्स के इस गीत की प्रकृति इस एलबम के अन्य गीत जो कि कॉनसर्ट के माहौल में गाए से सर्वथा भिन्न है। इस गीत को गाने में जिस मस्ती और जिस पागलपन की जरूरत थी उसे शंकर महादेवन ने बखूबी पूरा किया है। तो गीत का प्ले बटन दबाने के पहले ज़रा खड़े हो जाइए और गीत के अनुरूप शरीर में ऐसी लोच पैदा कीजिए कि धरती कंपित हो उठे..



मन को अति भावे सैयाँ करे ताता थैया,
मन गाए रे हाए रे हाए रे हाए रे हाए रे
हम प्रियतम हृदय बसैयाँ पागल हो गइयाँ
मन गाए रे हाए रे हाए रे हाए रे हाए रे
जो मारी नैन कंकरिया तो छलकी प्रेम गगरिया
और भीगी सारी नगरिया, सब नृत्य करे संग संग
तोरे बान लगे नस नस में, नहीं प्राण मोरे अब बस में
मन डूबा प्रेम के रस में, हुआ प्रेम मगन कण कण
हो बेबे बेबे सौंपा तुझको तन मन

मन को अति भावे सैयाँ करे ताता थैया,
मन गाए रे हाए रे

क्या उथल पुथल बावरा सा पल, साँसों पे सरगम का त्योहार है
बनके मैं पवन चूम लूँ गगन, हो ॠतुओं पे अब मेरा अधिकार है
संकेत किया प्रियतम ने आदेश दिया धड़कन ने
सब वार दिया फिर हमने, हुआ सफल सफल जीवन
अधरों से वो मुस्काई काया से वो सकुचाई
फिर थोड़ा निकट वो आई था कैसा अद्भुत क्षण
ओ बेबे बेबे मैं हूँ संपूर्ण मगन
मन को अति भावे.... हाए रे...

हो पुष्प आ गए, खिलखिला गए उत्सव मनाता है सारा चमन
चंद्रमा झुका सूर्य भी रुका, दिशाएँ मुझे कर रही हैं नमन
तूने जो थामी बैयाँ सबने ली मेरी बलैयाँ
सुध बुध मेरी खो गइयाँ हुआ रोम रोम उपवन
जब बीच फसल लहराई, धरती ने ली अँगड़ाई
और मिलन बदरिया छाई, कसके बरसा सावन
ओ बेबे बेबे सब हुआ तेरे कारण
मन को अति भावे.... हाए रे...

लंदन ड्रीम्स का ये गीत फिल्म में सलमान और असिन पर फिल्माया गया है।


और हाँ आपकी पसंद जानने के लिए साइड बार में एक वोटिंग भी चालू कर दी गई है। उसमें हिस्सा लें ताकि आप सब की पसंद का पता लग सके।

शुक्रवार, जनवरी 08, 2010

वार्षिक संगीतमाला 2009 - पायदान संख्या 24 - कहाँ से आई ये मसककली ?

वार्षिक संगीत माला की 24 वीं पायदान पर स्वागत कीजिए मोहित चौहान, ए आर रहमान और प्रसून जोशी की तिकड़ी का। इस तिकड़ी का ही कमाल है कि मसककली के माध्यम से इन्होंने कबूतर जैसे पालतू पक्षी की ओर हम सबका ध्यान फिर से आकर्षित कर दिया।:)

वैसे पुरानी दिल्ली की छतों पर तो नहीं पर कानपुर के अपने ननिहाल वाले घर में कबूतरों को पालने और पड़ोसियों के कबूतर को अपनी मंडली में तरह तरह की आवाज़े निकालकर आकर्षित करने के जुगाड़ को करीब से देखा है। इतना ही नहीं शाम के वक़्त उन्हीं आवाजों के सहारे झरोखों से मसककलियों को भी निकलते देख बचपन में मैं हैरान रह जाता और सोचता क्या ये गुर मामा हमें भी सिखाएँगे।

आप भी सोच रहे होंगे कि गीत के बारे में कुछ बातें ना कर ये मैं क्या कबूतरों की कहानी ले कर बैठ गया। अब क्या करें पहली बार जब टीवी के पर्दे पर मसकली को सलोनी सोनम कपूर के ऊपर फुदकते देखा तो मन कबूतर कबूतरी की जोड़ी पर अटक गया और गीत के बोल उनके पीछे भटक गए। गीत सुनते समय मुझे ये लगा था कि पहले अंतरे में मनमानी मनमानी कहते कहते मोहित की आवाज़ वैसे ही अटक गई है जैसे पुराने रिकार्ड प्लेयरों की अटकती थी।

वो तो भला हो कलर्स (Colors) वालों का जिन्होंने दिसंबर के महिने में जब ये फिल्म दिखाई तो फिर इस गीत को गौर से सुनने का मौका मिला। ये भी समझ आया कि प्रसून कबूतर के साथ कम और नायिका रूपी कबूतरी से ज्यादा बातें कर रहे हैं इस गीत के माध्यम से। प्रसून की विशेषता है कि उनका हिन्दी भाषा ज्ञान आज के गीतकारों से कहीं ज्यादा समृद्ध है। इसलिए वो जब प्यारे किंतु सहज हिंदी शब्दों का चयन अपने गीतों में करते हैं तो गीत निखर उठता है। पर कहीं कहीं मीटर से बाहर जाने की वज़ह से गीत को निभाने में जो कठिनाई आई है उसे मोहित चौहान ने चुनौती के रूप में लेकर एक बेहतरीन प्रयास किया है।

वैसे आप ये जरूर जानने को उत्सुक होंगे कि ये मसककली शब्द आया कहाँ से । इस गीत की उत्पत्ति के बारे में प्रसून ने 'मिड डे' को दिए अपने एक साक्षात्कार में बताया था

'मसककली' शब्द का निर्माण तो अनायास ही हो गया। रहमान अपनी एक धुन कंप्यूटर पर बजा रहे थे कि उनके मुँह से ये शब्द निकला। मैंने पूछा ये क्या है तो वो मुस्कुरा दिए। पर वो शब्द मेरे दिमाग में इस तरह रच बस गया कि मैंने उसे अपने गीत में इस्तेमाल करने की सोची और इसीलिए कबूतर का नाम भी मसककली रखा गया़।

और तो और एक मजेदार तथ्य ये भी है कि प्रसून के इस गीत ने लका प्रजाति के कबूतरों के दाम दिल्ली के बाजारों में आठ गुना तक बढ़ा दिए और लोग विदेशी कबूतरों से ज्यादा इसे ही लेने के पीछे पड़े रहे।

तो मोहित चाहौन की गायिकी और रहमान की धुन की बदौलत से ये गीत जा पहुँचा है मेरी इस गीतमाला की 24 वीं पायदान पर। तो इस गीत को सुनिए देखिए कहीं मसककली की तरह आपका मन हिलोरें हिलोरें लेते लेते फुर्र फुर्र करने के लिए मचल ना उठे।




ऐ मसककली मसककली, थोड़ा मटककली मटककली
ऐ मसकली मसा मसा कली, थोड़ा मटककली मटककली

ज़रा पंख झटक गई धूल अटक
और लचक मचक के दूर भटक
उड़ डगर डगर कस्बे कूचे नुक्कड़ बस्ती
तड़ी से मुड़ अदा से उड़
कर ले पूरी दिल की तमन्ना, हवा से जुड़ अदा से उड़
पुर्र भुर्र भुर्र फुर्र, तू है हीरा पन्ना रे
मसककली मसककली, थोड़ा मटककली मटककली


घर तेरा सलोनी, बादल की कॉलोनी
दिखा दे ठेंगा इन सबको जो उड़ना ना जाने
उड़ियो ना डरियो कर मनमानी मनमानी मनमानी
बढ़ियो ना मुड़ियो कर नादानी
अब ठान ले , मुस्कान ले, कह सन ननननन हवा
बस ठान ले तू जान ले,कह सन ननननन हवा

ऐ मसककली मसककली, थोड़ा मटककली मटककली
ऐ मसकली मसा मसा कली, थोड़ा मटककली मटककली

तुझे क्या गम तेरा रिश्ता, गगन की बाँसुरी से है
पवन की गुफ़्तगू से है, सूरज की रोशनी से है

उड़ियो ना डरियो कर मनमानी मनमानी मनमानी
बढ़ियो ना मुड़ियो कर नादानी

ऐ मसकली मसकली, उड़ मटककली मटककली
ऐ मसकली मसा मसा कली, उड़ मटकली मटकली
अब ठान ले , मुस्कान ले, कह सन ननननन हवा
बस ठान ले तू जान ले,कह सन ननननन हवा


 

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