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शुक्रवार, जनवरी 24, 2020

वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 15 : मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve

वार्षिक संगीतमाला का अगला गीत है फिल्म मरुधर एक्सप्रेस से। जानता हूँ इस फिल्म का नाम भी आपने शायद ही सुना होगा। यूँ तो इसका संगीत काफी पहले रिलीज़ हुआ था पर ये फिल्म पिछले साल जुलाई में रिलीज़ हुई और एक एक्सप्रेस ट्रेन की तरह सिनेमाघरों में बिना ज्यादा देर रुके फिल्मी पर्दे से उतर गयी। 


इस फिल्म का संगीत दिया था एक समय प्रीतम के जोड़ीदार रह चुके जीत गांगुली ने। फिल्म का तो पता नहीं पर एलबम में इस गीत के दो अलग वर्जन थे। एक में उर्जा से भरपूर सोनू निगम की आवाज़ थी तो दूसरी ओर इस गीत के अपेक्षाकृत शांत रूप को असीस कौर ने निभाया था। जीत का संगीत संयोजन वहाँ भी बेहतरीन है पर असीस उसे और बेहतर गा सकती थीं ऐसा मुझे लगा। सोनू निगम को भले ही आज के दौर में गाने के ज़्यादा  मौके नहीं मिलते पर इस छोटे बजट की फिल्म के लिए भी अपना दम खम लगा कर ये गीत निभाया है।

संगीतमाला में अगर ये गीत शामिल हो सका है उसकी एक बड़ी वज़ह जीत गाँगुली की धुन और संगीत संयोजन है जिसकी वज़ह से ये गीत तुरंत मन में स्थान बना लेता है। जीत ने एक सिग्नेचर ट्यून का इस्तेमाल किया है जो मुखड़े के पहले और अंतरे में बार बार बजती है और कानों को बड़ी भली लगती है। 

गीत का मूड रूमानी है और मनोज मुंतशिर की कलम तो ऐसे गीतों पर बड़ी सहजता से चलती है। मनोज सहज भाषा में अपने गीतों में कविता का पुट देने में माहिर रहे हैं। हाँ ये जरूर है कि इस गीत का लिबास तैयार करते हुए उन्होंने उर्दू शब्दों के गोटे जरूर जड़ दिए हैं जिससे गीत की खूबसूरती बढ़ जरूर गई है। मिसाल के तौर पर जब वो प्रेमिका को कहते हैं कि उसे एक पल भी नहीं भूले हैं तो उसका विश्वास पुख्ता हो उसके लिए वो आकाशगंगा के ग्रहों की गवाही लेना नहीं भूलते और गीत में लिखते हैं शाहिद (गवाह) हैं सय्यारे (सारे ग्रह)...इक पल मैं ना भूला तुझे।

शहरे दिल की रौनक तू ही, तेरे बिन सब खाली मिर्ज़ा...
तू ही बता दे कैसे काटूँ, रात फ़िराक़ा वाली मिर्ज़ा...
मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे
शाहिद हैं. सय्यारे...इक पल मैं ना भूला तुझे
मिर्ज़ा तेरा कलमा पढ़ना, मिर्ज़ा तेरी जानिब बढ़ना
तेरे लिए ख़ुदा से लड़ना, मिर्ज़ा मेरा जीना-मरना
सिर्फ़ तेरे इशारे पे है..ओ... सिर्फ़ तेरे इशारे पे है...

चाँद वाली रातों में, तेरी शोख़ यादों में
डूब-डूब जाता है यह दिल
मोंम सा पिघलता है, बुझता ना जलता है
देख तू कभी आ के ग़ाफ़िल
मिर्ज़ा वे. सुन जा रे.
वो जो कहना है कब से मुझे....

ओ ख़ुदाया सीने में ज़ख़्म इतने सारे हैं
जितने तेरे अंबर पे तारे...
जो तेरे समंदर हैं, मेरे आँसुओं से ही
हो गये हैं खारे-खारे
मिर्ज़ा वे. .....

(ग़ाफ़िल - अनिभिज्ञ, फ़िराक़ - वियोग, जानिब - तरफ, सय्यारे - ग्रह)

सोनू ने काफी द्रुत ताल में इस गीत को निभाया है। अगर आप सोनू निगम की गायिकी के अंदाज़ के मुरीद हैं तो इस गीत को आप जरूर पसंद करेंगे।

 

वार्षिक संगीतमाला 2019 
01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया 
03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
04. तेरा साथ हो   Tera Saath Ho
05. मर्द  मराठा Mard Maratha
06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए  Bharat 
07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है  Aaj Jage Rahna
08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र  Zikra
09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए  Dil Royi Jaye
10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ  Shaabaashiyaan
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी  से.. 
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

सोमवार, जनवरी 23, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान #18 : ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला Le Chala

वार्षिक संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर गाना वो जिसकी मधुरता पिछले कुछ हफ्तों में मुझे उसे लगातार सुनने को मजबूर करती रही है। हाल ही में कच्छ की यात्रा पर निकला तो वहाँ खान पान के साथ चल रहे Live Music के दौरान मैंने इस गीत की फर्माइश की और बड़ा आनंद आया जब गायक ने इसका मुखड़ा और एक अंतरा सुनाकर मेरी वो फर्माइश पूरी की। रूमानी गीतों से मुझे हमेशा प्रेम रहा है। पर यहाँ तो प्रेम में रससिक्त शब्दों के साथ गायक की आवाज़ में जो सुकून है और संगीत में जो ठहराव, वो तो दिल ही ले जाता है।



आइए वार्षिक संगीतमाला में स्वागत करें संगीतकार जीत गांगुली व गीतकार मनोज मुन्तसिर के साथ उभरते हुए उत्तराखंडी गायक जुबिन नौटियाल का। दरअसल पिछले साल जब मैंने जुबीन का बजरंगी भाईजान में गाया नग्मा  कुछ तो बता ज़िंदगी अपना पता ज़िंदगी सुना था तो मुझे ये भ्रम हो गया था कि कहीं ये जुबिन असम वाले तो नहीं हैं।

जुबिन नौटियाल
27 वर्षीय जुबिन की पैदाइश देहरादून में हुई। उनके पिता को गाने का शौक था। ये शौक जब उन तक पहुँचा तो उन्होंने संगीत को अपने स्कूल में एक विषय की तरह ले लिया। स्कूल के बाद उन्होंने अपनी गुरु वंदना श्रीवास्तव जी से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली।  बनारस में कुछ वक़्त उन्होंने छन्नूलाल मिश्रा जी के साथ भी बिताया तो चेन्नई में रहकर पाश्चात्य संगीत पर अपनी पकड़ मजबूत की। बॉलीवुड में पिछले पाँच सालों से सक्रिय जुबिन की आवाज़ को बजरंगी भाईजान के आलावा दि शौकीन्स के गीत मेहरबानी से भी सांगीतिक हलकों में पहचाना जाने लगा। इस साल फिल्म One Night Stand के इस गीत के आलावा फितूर के लिए सुनिधि चौहान के साथ उनका गाया युगल गीत तेरे लिए भी चर्चा का केंद्र रहा।

अमिताभ भट्टाचार्य की तरह ये साल अमेठी से ताल्लुक रखने वाले गीतकार मनोज मुन्तशिर के लिए भी बेहद अच्छा रहा है और क्यूँ ना रहे उनके शब्द प्यार में डूबे बेसब्र बेचैन दिलों की जुबान जो रहे हैं। आप ही देखिए ज़रा मनोज ने कितना प्यारा मुखड़ा रचा है इस गीत का

छू गयीं उँगलियाँ जाने किस ख़्वाब से
आज क्यूँ नींद से उठ गयीं ख्वाहिशें
ये ख़लिश है नयी ये जुनूँ है नया
ले चला... दिल कहाँ..., दिल कहाँ... ले चला..


सचमुच उनके शब्द हमें कुछ क्षणों के लिए ही सही प्रेम की वादियों में भटकने के लिए प्रेरित जरूर कर देते हैं। कभी प्रीतम दा के सहयोगी रहे जीत गाँगुली पियानो के नोट्स से गीत की शुरुआत करते हैं और यही मधुर धुन पहले इंटरल्यूड् में फिर प्रकट होती है। जीत का संगीत संयोजन कभी गायिकी और लफ़्जों से आपको दूर नहीं जाने देता। जुबिन की आवाज़ में इस गीत को सुनना हवा में तैरना जैसा है।  जीवन में कभी आपको किसी से प्रेम हुआ हो ना तो ये फिर इस गीत को गुनगुनाते हुए अपने प्रिय को याद कर लीजिए। एकदम से मूड हल्का ना हो जाए तो कहिएगा..

बस अभी तो मिले, और चले दो क़दम
कैसे फिर आ गए हाँ इस क़दर पास हम
सच है ये या वहम, क्या ख़बर, क्या पता
ले चला... दिल कहाँ..., दिल कहाँ... ले चला..

यूँ लहर की तरह, ज़िन्दगी बह गयी
खो गया मैं कहीं, सिर्फ तू रह गयी
क्या यही है सफ़र जिस्म से रुह का
ले चला... दिल कहाँ..., दिल कहाँ... ले चला..


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक

गुरुवार, जनवरी 21, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 16 : इश्क़ सच्चा वही..जिसको मिलती नहीं मंज़िलें मंज़िलें Humari Adhoori Kahani ..

पियानो के दिल पर चोट से करते नोट्स..वायलिन की उदास करती धुन और फिर अरिजीत की दर्द की चाशनी में डूबती उतरती आवाज़ के साथ जो गीत आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ वो है फिल्म हमारी अधूरी कहानी का।

ज़िदगी ज्यूँ ज्यूँ आगे बढ़ती है हमारे रिश्तों की पोटली भी भारी होने लगती है। कई रिश्तों को हम ताउम्र ढोते रहते हैं तो कईयों को चाहे अनचाहे अपने से अलग कर देते हैं। अपने इर्द गिर्द की परिस्थितियाँ हमारे रिश्तों के दायरों को तय करती हैं। ज़ाहिर है इश्क़ के जिस मुकाम की तलाश में हम भटकते हैं वो इन दायरों की तंग गलियों में फँस कर कई बार मंज़िल से दूर ही रह जाता है। कभी विकलता से छटपटाता हुआ तो कभी हालात से समझौता करता हुआ। पर भले ही कहानियाँ दम तोड़ देती हैं इश्क़ वहीं का वहीं रहता है दिल के किसी कोने में सुलगता हुआ।

फिल्म हमारी अधूरी कहानी का ये शीर्षक गीत मन में कुछ ऐसी ही भावनाओं का संचार करता है। इस गीत को लिखा है रश्मि सिंह ने। रश्मि के लिखे गीतों को पहली बार मैंने पिछले साल फिल्म सिटीलाइट्स में सुना था और उनका लिखा नग्मा सोने दो ख़्वाब बोने दो... पिछले साल की संगीतमाला में शामिल भी हुआ था। इसी फिल्म के एक अन्य गीत मुस्कुराने की वज़ह के लिए उन्हें पिछले साल फिल्मफेयर ने सर्वश्रेष्ठ गीतकार के पुरस्कार से नवाज़ भी था।

रश्मि आजकल अपने जोड़ीदार पटकथालेखक व गीतकार विराग मिश्रा के साथ रश्मि विराग के नाम से साझा गीत रच रही हैं। शीर्षक गीत होने की वज़ह से गीतकार द्वय के सामने हर अंतरे को हमारी अधूरी कहानी से इस तरह ख़त्म करने की चुनौती थी कि वो सार्थक भी लगे और गीत की लय भी बनी रहे और उन्होंने गीत में बखूबी ये कर भी दिखाया है।  गीत में एक पंक्ति आती है कि इश्क़ सच्चा वही..जिसको मिलती नहीं मंज़िलें मंज़िलें.. आशावादी इससे सहमत तो नहीं होंगे पर शायद लेखिका ने कहना ये चाहा हो कि दूरियाँ इश्क़ की पवित्रता उसकी प्रगाढ़ता को बनाए रखती हैं।

संगीतकार जीत गाँगुली मुकेश भट्ट मोहित सूरी की फिल्मों  के हाल फिलहाल के अनिवार्य अंग रहे हैं। फिल्म के अपने इकलौते गीत में पियानो, बाँसुरी के साथ उन्होंने वॉयलिन का प्रमुखता से इस्तेमाल किया है पर इस गीत को चार चाँद लगाया है अरिजीत सिंह ने अपनी आवाज़ से। गीत के बोलो के अंदर के भावों को जिस ईमानदारी से उन्होंने पकड़ा है वो दिल को छू जाता है। तो आइए याद करें अपनी अधूरी कहानियों को और सुनें ये संवेदनशील नग्मा..

 

पास आए..
दूरियाँ फिर भी कम ना हुई
एक अधूरी सी हमारी कहानी रही
आसमान को ज़मीन ये ज़रूरी नहीं ...जा मिले.. जा मिले..
इश्क़ सच्चा वही..जिसको मिलती नहीं मंज़िलें मंज़िलें


रंग थे, नूर था जब करीब तू था, इक जन्नत सा था, ये जहान
वक़्त की रेत पे कुछ मेरे नाम सा, लिख के छोड़ गया तू कहाँ
हमारी अधूरी कहानी....

खुश्बुओं से तेरी यूँ ही टकरा गए
चलते चलते देखो ना हम कहाँ आ गए

जन्नतें गर यहीं, तू दिखे क्यूँ नहीं, चाँद सूरज सभी है यहाँ
इंतज़ार तेरा सदियों से कर रहा, प्यासी बैठी है कब से यहाँ
हमारी अधूरी कहानी

प्यास का ये सफर खत्म हो जायेगा
कुछ अधूरा सा जो था पूरा हो जायेगा

झुक गया आसमान, मिल गए दो जहान, हर तरफ है मिलन का समाँ
डोलियां हैं सजी, खुशबुएँ हर कहीं, पढ़ने आया ख़ुदा ख़ुद यहाँ
हमारी अधूरी कहानी... 


वार्षिक संगीतमाला 2015

रविवार, जनवरी 11, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान संख्या 20 : सोने दो, ख्वाब बोने दो, जागेंगे, फिर थामेंगे, कोई वजह जीने की ..

वार्षिक संगीतमाला का पहला चरण पूरा कर आज आ पहुँचे हैं हम प्रथम बीस गीतो के दरवाज़े पर, जहाँ से झाँक रहा है फिल्म सिटीलाइट्स का ये नग्मा। पर इससे पहले मैं इस गाने की बात करूँ, ये बताना जरूरी है कि Citylights एक ऐसे विस्थापित की कहानी है जो राजस्थान के एक गाँव में सब कुछ खो कर मुंबई की महानगरी में अपने परिवार के साथ जीवन की नैया को बीच भँवर से किनारे तक ला पाने में संघर्षरत है। ये गीत महानगरीय ज़िदगी की तीखी सच्चाइयों से रूबरू हुए नायक की आंतरिक पीड़ा को व्यक्त करता है।


इस गीत में एक तड़प है, एक बेचैनी है। बेबस आँखों से अपने सपनों को हाथों से फिसलते देखने का दर्द है। महानगर की भीड़ में अपने अकेले होने का अहसास है। नवोदित गीतकार रश्मि सिंह जिन्हें शायद पहली बार इतने बड़े कैनवास पर ये जिम्मेदारी सौंपी गई है ने फिल्म की परिस्थितियों से पूरा न्याय करते वो शब्द गढ़े हैं जो दिल में एक चुभन, एक टीस सी पैदा करते हैं। जब मैंने इस गीत का मुखड़ा सोने दो, ख्वाब बोने दो पहली बार सुना  तो मुझे गुलज़ार की वो चार पंक्तियाँ याद आ गयीं जो उन्होंने फिल्म गुरु के लिए इस्तेमाल की थीं..

जागे हैं देर तक हमें कुछ देर सोने दो
थोड़ी सी रात और है सुबह तो होने दो
आधे-अधूरे ख़्वाब जो पूरे न हो सके
इक बार फिर से नींद में वो ख़्वाब बोने दो

रश्मि गुलज़ार के इसी ख्याल को पकड़कर आगे कहती हैं..  जागेंगे, फिर थामेंगे, कोई वजह जीने की। पर गीत की की मेरी सबसे प्रिय पंक्ति वो है जिसमें रश्मि मन के बारे में कहती हैं ....चाँद को मुट्ठी में भरने को, करता रोज़ जतन..प्यासे से, इस पंछी को, कोई नदी मिलने दो ना....। अपने दिल पर हाथ रखकर बताइए क्या आपने अपने जीवन में चंदा रूपी उन सपनीली ख्वाहिशों का पीछा नहीं किया जो शायद आपकी कभी होने वाली ही नहीं थी। सच तो ये है कि हम सब के अंदर वो पखेरू है जो मुक्त आकाश में अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए सपनों की उस बहती नदी का स्पर्श पाना चाहता है, उसमें डूबना चाहता है।

जैसा कि सुनो ना संगमरमर के बारे में बात करते हुए आपको बताया था भट्ट परिवार से जुड़ी फिल्मों में संगीतकार जीत गाँगुली आजकल एक अनिवार्य हिस्सा बने हुए हैं। अब जहाँ जीत रहेंगे वहाँ अरिजित कहाँ दूर रह सकते हैं :)। अरिजित की गायिकी जीत को कितनी पसंद है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म के तीनों एकल गीत अरिजित ने ही गाए हैं। जीत गाँगुली ने इस गीत के लिए जो संगीत संयोजन किया है उसमें पश्चिमी और शास्त्रीय संगीत के तत्त्व हैं। गीत के मुखड़े के पहले और बाद में बजती गीत की Signature tune गीत के उदासी भरे मूड को परिभाषित करती है। दूसरे अंतरे के बाद गीत के अंत में शास्त्रीय सरगम के साथ इसी धुन के खूबसूरत संगम से गीत का समापन होता है। तो आइए अरिजित की आवाज़ में सुनते हैं ये संवेदनशील नग्मा..


सोने दो, ख्वाब बोने दो
जागेंगे, फिर थामेंगे, कोई वजह जीने की
सोने दो...

परछाई के पीछे पीछे भाग रहा है मन
चाँद को मुट्ठी में भरने को, करता रोज़ जतन
प्यासे से, इस पंछी को, कोई नदी मिलने दो ना
सोने दो...

इतने सारे चेहरे हैं और तन्हा सब के सब
तेरे शहर का, काम है चलना यूँ बेमतलब
चेहरों के, इस मेले में, अपना कोई मिलने दो ना
सोने दो...

   

वार्षिक संगीतमाला 2014

बुधवार, जनवरी 07, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 22 : सुनो ना संगमरमर की ये मीनारें... Suno Na Sangemarmar...

वार्षिक संगीतमाला अपने सफ़र के पहले हफ्ते को पूरा करते हुए आज पहुँच चुकी है अपनी बाइसवीं सीढ़ी पर।  इस गीत को अपनी मधुर धुन से सँवारा है बंगाली फिल्मों के लोकप्रिय संगीतकार और कभी प्रीतम के जोड़ीदार रह चुके जीत गाँगुली ने। 


कोलकाता के संगीत परिवार में जन्मे जीत ने शास्त्रीय संगीत जहाँ अपने पिता एवम् गुरु काली गांगुली से सीखा, वहीं बाद में पश्चिमी संगीत की पकड़ उन्हें गिटार वादक कार्लटन किट्टू के सानिध्य से मिली। बतौर संगीतकार जीत आजकल महेश भट्ट की फिल्मों में अक्सर नज़र आते हैं। पिछले साल की चर्चित फिल्म आशिक़ी 2 में कुछ गीतों का संगीत भी उन्होंने ही दिया था। यंगिस्तान के जिस गीत की बात मैं आज आपसे करने जा रहा हूँ उसकी धुन का इस्तेमाल जीत अपनी बंगाली फिल्म रंगबाज़ में वर्ष 2013 में कर चुके थे। वो गीत था कि कोरे तोके बोलबो..। चलिए पहले इसे ही सुन लेते हैं।


गीतकार कौसर मुनीर ने कि कोरे तोके बोलबो को सुनो ना संगमरमर  में रूपांतरित कर दिया। अक्सर निर्माता निर्देशकों की गीतकारों से फर्माइश रहती है कि वो गीत में कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग करें कि लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा जाए। इस कोशिश में कई बार गीतकार आयातित शब्द का प्रयोग करते हैं तो कई बार अंचलिक भाषा के शब्दों का। Te Amo , कतिया करूँ, अम्बरसरिया ऍसे ही कुछ गीतों के उदाहरण हैं। पर महिला गीतकार क़ौसर मुनीर ने अपने गीत में संगमरमर जैसा शब्द लिया जो काफी प्रचलित तो है पर गीतों में इस्तेमाल नहीं होता। वेसे इससे पहले भी क़ौसर ''इश्क़ज़ादे'' जैसे नए लफ्ज़ को गीतों में ला चुकी हैं। क़ौसर इस गीत के बारे में कहती हैं।
"एक गीतकार की हैसियत से मुझे फिल्म में जो छोटा सा हिस्सा मिलता है उसका मुझे इस्तेमाल इस तरह से करना होता है कि वो कानों को श्रवणीय लगे। संगमरमर पर बहस तो खूब हुई पर फिल्म में गीत इस तरह फिल्माया गया कि शब्द दृश्य से घुल मिल गए।"

क़ौसर गीत के मुखड़े में लिखती हैं सुनो ना संगमरमर की ये मीनारें, कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे.. आज से दिल पे मेरे राज तुम्हारा...ताज तुम्हारा... और तब कैमरा ताजमहल की मीनारों को फोकस कर रहा होता है। अब शाश्वत प्रेम के लिए ताजमहल से बढ़िया प्रतीक हो ही क्या सकता था? क़ौसर के लिखे आखिरी अंतरे की पंक्तियाँ भी दिल को लुभाती हैं जब वो लिखती हैं..ये देखो सपने मेरे, नींदों से होके तेरे..रातों से कहते हैं लो, हम तो सवेरे हैं वो...सच हो गए जो... :)

सुनो ना संगमरमर की ये मीनारें
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे
आज से दिल पे मेरे राज तुम्हारा
ताज तुम्हारा
सुनो ना संगमरमर...

बिन तेरे मद्धम-मद्धम,
भी चल रही थी धड़कन
जबसे मिले तुम हमें
आँचल से तेरे बंधे
दिल उड़ रहा है
सुनो ना आसमानों के ये सितारे
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे

ये देखो सपने मेरे, नींदों से हो के तेरे
रातों से कहते हैं लो, हम तो सवेरे हैं वो
सच हो गए जो
सुनो ना दो जहानों के ये नज़ारे
कुछ भी नहीं है आगे तुम्हारे
आज से दिल पे...
सुनो ना संगमरमर.

इस गीत को गाया है उदीयमान गायक अरिजित सिंह ने। इस साल भले ही किसी एक संगीतकार, गीतकार या एलबम का दबदबा ना रहा हो पर जहाँ गायिकी का सवाल है ये साल अरिजित सिंह के नाम रहा है। पिछले साल की तमाम फिल्मों के गीत खँगालते हुए मैंने पाया कि सबसे ज्यादा अच्छे गीत  इसी गायक की झोली में गए हैं। तो आइए सुनें अरिजित की आवाज़ में इस गीत को..




वार्षिक संगीतमाला 2014
 

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स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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