जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
फिल्म संगीत हो , वेब सीरीज या फिर स्वतंत्र संगीत अमित त्रिवेदी अपनी रचनात्मकता श्रोताओं के सामने लाते ही रहे हैं। विगत कुछ सालों में Songs of Love, Songs of Trance, जादू सलोना जैसे स्वतंत्र संगीत से जुड़े एल्बम रचने के बाद 2024 के आखिरी महीनों में उनका नया एल्बम आया Azaad Collab.। इस एल्बम में उन्होंने कई ऐसे गायक गायिकाओं के साथ गीत के वीडियो बनाए जो अक्सर उनकी फिल्मों में बतौर पार्श्व गायक नज़र आते हैं। अमित का कहना था कि उन्होंने Play back singers को इस एल्बम के जरिए Play front करवाया यानी वो सिर्फ सुनाई ही नहीं बल्कि गीत के फिल्मांकन में दिखाई भी देंगे।
चौदह गीतों से सजे इसी एल्बम का एक गीत है वल्लो वल्लो जिसे मैने चुना है वार्षिक संगीतमाला की 18 वीं पायदान के लिए। इस गीत को गाया है नीति मोहन और असीस कौर ने। ये वही नीति मोहन हैं जिन्होने गुलज़ार के गीत जिया जिया रे ( जब तक है जान)से फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाई थी। उसके बाद सपना जहां और दिल उड़ जा रे में भी उन्होंने अपनी गायिकी से मुझे प्रभावित किया था। इस गीतमाला में भी उनका एक गीत प्रथम पाँच में अपनी जगह बनाता हुआ दिख रहा है।
असीस कौर ने तो वैसे बहुतेरे गाने गाए हैं पर मुझे उनका गाया वे कमलेया कमाल लगता हैं। हालांकि फिल्म में श्रेया वाला वर्सन ही इस्तेमाल हुआ। इस गीत को लिखने वाले हैं गीत सागर जो गाहे बगाहे फिल्मी गीतों में अपनी आवाज़ भी देते रहे है और एक रियलिटी शो X Factor के विजेता भी रह चुके हैं। जावेद अख़्तर साहब के शैदाई हैं और एक रेडियो जॉकी भी हैं। जाहिर है एक अच्छी आवाज़ के मालिक भी होंगे ही। हालांकि मुझे वो एक गायक की तुलना में गीतकार व रेडियो जॉकी के रूप में ज्यादा पसंद आए ।
वल्लो वल्लो एक तरह का अभिवादन है कश्मीरी शादी में दूल्हे के लिए। दरअसल ये युगल गीत में दोनों कश्मीरी लड़कियां ये सोच रही हैं कि उनका होने वाला हमसफ़र कैसा होगा? गीत सागर के लिए ये विषय नया था पर उन्होंने इस गीत को दो लड़कियों की बातचीत को उर्दू के शब्दों से इस तरह तराशा कि ये गीत एक अफ़साना सा ही बन गया।
मेरा दिलदार यार होगा कभी रूबरू मेरे दिल को भी प्यार होगा कभी हूबहू वो जिसकी हर अदा पे जाऊँगी क़ुर्बान मैं वो जिसका इश्क़ बनूँगी वो जिसकी जान मैं वो जिसके साथ फिरुँगी मैं सदा कूबकू कूबकू
उनकी लिखी कुछ पंक्तियों पर गौर फरमाएं जो मुझे खास तौर पर पसंद आईं.. ध्यान रहे यहां बात होने वाले पतिदेव के व्यक्तित्व की हो रही है
वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो.... खुरदुरी आवाज़ में ओस की नमी जिसको देख देख चले साँस मद्धमी जिसका रोब देख के रास्ते खुले जिसके नैन देख के तड़पे चाँदनी
तड़पे चाँदनी तड़पे चाँदनी
मेरी हस्ती ज़रा चमके किसी जुगनू की तरह
मेरी साँसें सदा महकें नई खुशबू की तरह
किसी तितली की तरह खुश लगे ये जस्तजू जस्तजू
ओह वल्लो वल्लो,,,महजबीं हसीन दुल्हन से मिलो
वल्लो वल्लो महाराजो वल्लो वल्लो
ना जी ना अभी अहर्ताएं और भी हैं और ये तो और ज्यादा जरूरी हैं
किसी ज़ेवर की तरह साथ रखे याद मेरी
किसी बच्चे की तरह ज़िंदगी हो शाद मेरी
मेरे हँसने मेरे रोने से उसे फर्क पड़े
उसे पा कर के लगे ज़िंदगी दिलशाद मेरी
फरियाद मेरी ओ फरियाद मेरी
खुश रहे तू अज़ीज़ा आबाद मेरी
शगुन वाली रात आई, खुशियों के जज़्बात लाई रौनकें सब साथ लाई, देखो देखो देखो देखो
अमित त्रिवेदी का संगीत और वाद्य यंत्रों का चुनाव आपको कश्मीर की वादियों में ले जाता है। नीति मोहन और असीस कौर दोनों ही बेहतरीन गायिका हैं और इस गीत में उनकी आवाज और अभिनय दोनों में ही परफेक्ट ट्यूनिंग है। अगर बात कश्मीर की हो तो रबाब का इस्तेमाल तो गीत में होना ही था और उसके साथ बौज़ौकी भी है जिसे तापस रॉय ने हमेशा की तरह बखूबी बजाया है। गीत के बोल, गायिकी और संगीत की जुगलबंदी से ये गीत मन को एक खुशनुमा अहसास से भर देता है।
गायिकाओं , संगीतकार गीतकार की जोड़ी के साथ इस गीत के वीडियो में कुछ प्यारे बच्चे भी हैं जिनकी वज़ह से वो देखने लायक बन गया है। अमित त्रिवेदी ने भी अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि वो इस गीत से एक खास लगाव रखते हैं। इस गीत को देखिए कहीं आप भी मेरी तरह इसके अनुरागी बन जाएँ
एक महीने का सांगीतिक सफ़र जो हमें ले आया है वार्षिक संगीतमाला के पच्चीस गीतों की फेरहिस्त के ठीक मध्य में। गीतमाला के अगले दोनों गीत मेलोडी और रूमानियत से भरपूर हैं। गीतमाला की तेरहवीं सीढ़ी है पर है फिल्म ख़ुदाहाफिज़ का एक और गीत। ख़ुदाहाफिज़ फिल्म के इस गीत को लिखा और संगीतबद्ध किया है मिथुन शर्मा ने जो फिल्म उद्योग में सिर्फ मिथुन के नाम से जाने जाते हैं। मज़े की बाद ये है कि इसे गाया भी एक संगीतकार ने ही है। जी हाँ, इस गीत की पीछे की आवाज़ है विशाल मिश्रा की जो अपनी संगीतबद्ध रचनाओं को पहले भी आवाज़ दे चुके हैं।
पिछले साल उनका कबीर सिंह में गाया गीत तू इतना जरूरी कैसे हुआ खासा लोकप्रिय हुआ था। जहाँ तक एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं की बात है तो विशाल का फिल्म करीब करीब सिंगल का संगीतबद्ध गीत जाने दे साल 2017 का रनर्स अप गीत रह चुका है। वैसे आपको ताज्जुब होगा कि विशाल एक समय कानून के विद्यार्थी रहे हैं और उन्होंने संगीत सुन सुन के सीखा है। आज देखिए अपने हुनर को माँजते माँजते वो गाने के साथ ढेर सारे वाद्य यंत्र बजाने की महारत भी रखते हैं। विशाल ने इस गीत को गाया भी बहुत डूब के है और यही वज़ह है कि इस गीत में उनकी आवाज़ सीधे दिल में उतर जाती है।
इस गीत में विशाल का साथ दिया है असीस कौर ने जिनकी आवाज़ को पहले बोलना (Kapoor & Sons) और फिर पिछले साल वे माही (केसरी) में काफी सराहा गया था। पानीपत की इस कुड़ी ने गुरुबानी गा कर संगीत का ककहरा पढ़ा था जो बाद में गुरुओं की संगत में और निखरा। रियालटी शो उन्हें मायानगरी तक खींच लाया। उनकी आवाज़ की बनावट थोड़ी हट के है जो उनकी गायिकी को एक अलग पहचान देने में सफल रही है।
मिथुन गिटार और तबले के नाममात्र संगीत संयोजन में भी शुरु से अंत तक धुन की मधुरता की बदौलत श्रोताओं को बाँधे रहते हैं। फिल्म में ये गीत नायक नायिका के पनपते प्रेम को दर्शाते इस गीत को उन्होंने बड़ी सहजता से अपनी लेखनी में बाँधा है।
अहसास की जो ज़ुबान बन गए दिल में मेरे मेहमान बन गए आप की तारीफ़ में क्या कहें आप हमारी जान बन गए आप ही रब आप ईमान बन गए आप हमारी जान बन गए
किस्मत से हमें आप हमदम मिल गए जैसे कि दुआ को अल्फाज़ मिल गए सोचा जो नहीं वो हासिल हो गया चाहूँ और क्या की खुदा दे अब मुझे
रब से मिला एक अयान बन गए ख्वाबों का मेरे मुकाम बन गए आप की तारीफ़ में क्या कहें आप हमारी जान बन गए
दीन है इलाही मेरा मान है माही मैं तो सजदा करूँ उनको अर्ज रुबाई मेरी फर्ज़ दवाई मेरी इश्क़ हुआ मुझको...जान बन गए
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
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