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सोमवार, मार्च 16, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 - पायदान संख्या 3 : सत्ता की ये भूख विकट आदि है ना अंत है, अब तो प्रजातंत्र है...

वार्षिक संगीतमाला में अब बची है आखिरी की तीन पॉयदान। तीसरी पॉयदान पर गीत वो जिसे आपके सुनने की संभावना कम ही होगी क्यूंकि इस गीत की चर्चा हिंदी चिट्ठा जगत में अब तक तो नहीं हुई है। नुक्कड़ गीतों की शैली में रचा ये गीत एक समूह गीत है जो इस देश में प्रजातंत्र की गौरवशाली परंपरा को पहले तो याद करता है और फिर आज के लोकतंत्र में आए खोखलेपन का जिक्र करता है। अब जब की लोकसभा के चुनावों की घोषणा हो गई है अगर इलेक्ट्रानिक मीडिया की नज़र इस गीत पर जाए तो इसका इस चुनावी मौसम में अच्छा इस्तेमाल हो सकता है।

नुक्कड़ गीतों की शैली में रचा ये गीत एक समूह गीत है जो इस देश में प्रजातंत्र की गौरवशाली परंपरा को पहले तो याद करता है और फिर आज के लोकतंत्र में आए खोखलेपन का जिक्र करता है। दरअसल इस तरह के गीत हिंदी फिल्मों में बेहद कम नज़र आते हैं जबकि आज के सामाजिक राजनीतिक हालातों में ऍसे कई गीतों की जरूरत है जो साठ सालों से चल रहे इस लोकतंत्र के बावजूद पैदा हुई विसंगतियों को रेखांकित कर सकें। पर ऍसे गीत तभी लिखे जाएँगे जब इन विषयों को लेकर फिल्में बनाई जाएँगी।

इस गीत को लिखा है अशोक मिश्रा ने। अशोक मिश्रा को इस तरह के गीत की रचना करने का मौका दिया निर्देशक श्याम बेनेगल ने अपनी फिल्म वेलकम टू सज्जनपुर में ! गीतकार ने गीत के दोनों अंतरे में जो बातें कहीं है वो आज के राजनीतिक हालातों का सच्चा आईना हैं। चाहे वो सत्ता की कभी ना मरने वाली भूख हो या फिर नोटों के बल पर वोटों की ताकत को प्रभावशून्य करने की बात।

संगीतकार शान्तनु मोइत्रा ने लोक धुन का स्वरूप अपनाते हुए इस समूह गान के मुख्य स्वर में कैलाश खेर को चुना जो कि शत प्रतिशत सही और प्रभावी चुनाव रहा। कुल मिलाकर कैलाश की गूंजती आवाज़, प्रभावी बोल और गीत के अनुरूप बनाई गई प्यारी धुन ने इस गीत को वार्षिक संगीतमाला की पहली तीन पॉयदानों में ला खड़ा किया है। तो आइए इस गीत के माध्यम से याद करें प्रजातंत्र के मूल तत्त्वों को और अपने वोट की अहमियत को पहचानते हुए मतदान का संकल्प लें।


आदमी आज़ाद है, देश भी स्वतंत्र है
राजा गए रानी गई अब तो प्रजातंत्र है

जन के लिए, जन के द्वारा जनता का राज है
प्रजातंत्र सबसे बड़ा, हम सबको नाज़ है
वोट छोटा सा मगर शक्ति में अनंत है
अब तो प्रजातंत्र है, अब तो प्रजातंत्र है

खिल रही थी कली कली, महके थी हर गली
आप कभी साँप हुए, हम हो गए छिपकली
सत्ता की ये भूख विकट आदि है ना अंत है

अब तो प्रजातंत्र है, अब तो प्रजातंत्र है

अरे जिसकी लाठी उसकी भैंस आपने बना दिया
हे नोट की खन खन सुना के वोट को गूँगा किया
पार्टी फंड, यज्ञ कुंड घोटाला मंत्र है

अब तो प्रजातंत्र है, अब तो प्रजातंत्र है

आदमी आज़ाद है, देश भी स्वतंत्र है
राजा गए रानी गई अब तो प्रजातंत्र है
 

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