रवि लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रवि लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, जून 14, 2010

आप आए तो खयाल-ए-दिल-ए-नाशाद आया :साहिर, रवि व महेंद्र कपूर की यादगार सौगात.!.......

कल जगजीत सिंह की गाई एक ग़ज़ल की तलाश में यू ट्यूब पे निकला था कि भटकते-भटकते ये गीत सामने आ गया। अब इसे सुने एक अर्सा हो गया था। दोबारा सुना तो इसकी गिरफ़्त से निकलना मुश्किल था। आजकल कितने गीतों में ये माद्दा है कि वो पाँच मिनट के अंदर ही दर्शकों को नायक नायिका के प्रेम, बेवफाई और विरह की पूरी कहानी कह जाएँ। पर अगर गीतकार कोई और नहीं, साहिर लुधयानवी जैसा संज़ीदा शायर हो तो उनके लिए ये ज़रा भी मुश्किल काम नहीं रहा होगा। गुमराह फिल्म के यूँ तो सारे गीत ही चर्चित हुए थे, पर रेडिओ पर बाकी गीतों की तुलना में महेंद्र कपूर का गाया ये गीत कम ही बजा है। संगीतकार रवि के संगीत निर्देशन में महेंद्र कपूर के गाए गीत हमेशा से ज्यादा लोकप्रिय हुए हैं। गीत के आरंभ का संगीत संयोजन का अंदाज़ा आप गीत के वीडियो से भी लगा सकते हैं। 
महेंद्र कपूर और साहिर जैसे कलाकारों के बारे में तो पहले भी आपको बताता रहा हूँ। पर आज कुछ बातें इस नग्मे के संगीतकार रवि के बारे में। वैसे इस गीत के संगीतकार रवि यानि 'रवि शंकर शर्मा' आज भी हमारे बीच हैं। गुमराह के अलावा चौंदवीं का चाँद, हमराज, वक़्त, नीलकमल जैसी फिल्मों का गीत देने वाले रवि ने 1970 के बाद से हिंदी फिल्मों के लिए संगीत देना छोड़ दिया। 1982 में ये सिलसिला फिल्म 'निकाह' में उनके द्वारा संगीत निर्देशित करने से टूटा। पर इसी दशक में उन्होंने ये निर्णय लिया कि वो सिर्फ मलयालम फिल्मों के लिए बांबे रवि के नाम से संगीत निर्देशित करेंगे। अपनी प्रतिभा के बल पर रवि मलयालम फिल्मों में दिए अपने संगीत से भी छा गए। 

आज भी पुराने ज़माने की तरह रवि पहले गीतकारों द्वारा लिखे गीतों को सुनकर ही उसके अनुरूप संगीत देते हैं। विधिवत संगीत की शिक्षा ना लेते हुए भी रवि जी ने अपने लिए जो मुकाम बनाया है वो उनके लिए क्या किसी भी संगीतकार के लिए गर्व का विषय हो सकता है। फिलहाल तो महेंद्र कपूर के गाए इस गीत की रूमानियत में डूबिए और शाबासी दीजिए साहिर, रवि और कपूर साहब की इस तिकड़ी को जिनके सम्मिलित प्रयास से ये गीत इतना जानदार बन पड़ा है। पर उसके पहले मेरी आवाज़ में सुनिए इस गीत के मुखड़े और अंतरे की गुनगुनाहट... 

आप आए तो खयाल ए दिले नाशाद आया 
कितने भूले हुए जख़्मों का पता याद आया  
('दिल‍- ए- नाशाद' का मतलब हैं दिल का दुखी, अप्रसन्न होना) 

आप के लब पे कभी अपना भी नाम आया था 
शोख नज़रों-सी मुहब्बत का सलाम आया था 
उम्र भर साथ निभाने का पयाम आया था 
आपको देख के वो अहदे वफ़ा याद आया 
कितने भूले हुए ज़ख्मों का पता याद आया 

रूह में जल उठे बुझती हुई यादों के दीये 
कैसे दीवाने थे हम, आपको पाने के लिए 
यूँ तो कुछ कम नहीं जो आपने ऐहसान किए 
पर जो माँगे से ना पाया वो सिला याद आया 
कितने भूले हुए ज़ख्मों का पता याद आया 

आज वो बात नहीं फिर भी कोई बात तो है 
मेरे हिस्से में ये हल्की-सी मुलाकात तो है 
ग़ैर का होके भी ये हुस्न मेरे साथ तो है 
हाय किस वक्त मुझे कब का गिला याद आया 

वो युग था प्रत्यक्ष यानि लाइव रिकार्डिंग का। अब क्या किसी गीत की रिकार्डिंग के पहले वाइलिन, सितार और बाँसुरी वादकों का समूह दिखता है जैसा कि इस गीत के वीडियो के आरंभ में दिखाया गया है।

 

फिल्म गुमराह में ये गीत फिल्माया गया है सुनील दत्त, माला सिन्हा व अशोक कुमार पर। सुनील दत्त गीत को गा तो रहे हैं पर माला सिन्हा ने भी गीत के भावों को अपनी चेहरे की भाव भंगिमाओं से जिस खूबसूरती से उभारा है वो देखते ही बनता है।
 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
Freedom at Midnight
Aapka Bunti
Madhushala
कसप Kasap
Great Expectations
उर्दू की आख़िरी किताब
Shatranj Ke Khiladi
Bakul Katha
Raag Darbari
English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
Mahabhoj
मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


Manish Kumar's favorite books »

स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie