लैला मजनूँ का नाम लेने से मुझे तो सबसे पहले सत्तर के दशक की फिल्म याद आ जाती है जिसके गाने कई सालों तक भी रेडियो और दूरदर्शन के चित्रहार में धूम मचाते रहे। संगीतकार मदनमोहन ने लता और रफ़ी की आवाज़ में हुस्न हाज़िर है मोहब्बत की सजा पाने को, तेरे दर पे आया हूँ.., इस रेशमी पाजेब की झनकार के सदके, होके मायूस तेरे दर से सवाली ना गया, बर्बाद ए मोहब्बत की दुआ साथ लिए जा जैसे गीतों का गुलदस्ता दिया जो हमेशा हमेशा के लिए हमारे दिलों मे नक़्श हो गया।
मुझे लगता है कि इम्तियाज अली ने जब अपने छोटे भाई साजिद अली के साथ 2018 में इसी नाम से फिल्म बनाने का निश्चय किया तो उनके मन में ये विचार जरूर कौंधा होगा कि लैला मजनूँ का संगीत उसकी सांगीतिक विरासत के अनुरूप होना चाहिए। अपने दो सिपाहसलारों यानी संगीतकारों नीलाद्रि कुमार और जोय बरुआ की मदद से वो इस कार्य में कितने सफल हुए वो आप इस संगीतमाला के साथ साथ ख़ुद महसूस कर सकेंगे।
इम्तियाज अली की लैला मजनूँ कोई ऐतिहासिक प्रेम गाथा नहीं बल्कि एक सहज सी प्रेम कथा है जो कश्मीर की वादियों में फलती फूलती है। संगीतमाला में इस फिल्म का जो पहला गीत शामिल हो रहा है, एक बेहद ख़ुशमिज़ाज गीत है जो प्रेम में डूबे दो अजनबियों के उल्लासित मन की खुशी बयाँ करता है। ये दूसरी दफा है कि असम का कोई संगीतकार इस साल की संगीतमाला में अपनी जगह बना रहा है। इससे पहले मैंने आपकी मुलाकात मुल्क की कव्वाली पिया समाए में युवा व उभरते हुए संगीतकार अनुराग सैकिया से कराई थी। अनुराग सैकिया और जोय बरुआ दोनों ही पश्चिमी शास्त्रीय और पॉप संगीत से प्रभावित रहे हैं और उनकी ज्यादातर रचनाएँ इसी कोटि की रही हैं। ये उनकी बहुमुखी प्रतिभा का ही कमाल है कि अनुराग ने जहाँ मुल्क में कव्वाली संगीतबद्ध की वहीं जोय ने लैला मजनूँ के लिए कश्मीरी लोक संगीत और पश्चिमी वाद्यों को मिलाते हुए कई धुनें तैयार कीं।
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इरशाद कामिल और जोय बरुआ |
वैसे अनुराग की तरह जोय हिंदी फिल्म संगीत के लिए कोई नया नाम नहीं हैं। बतौर गायक पिछले डेढ़ दशक से लगभग दर्जन भर गीतों में अपनी आवाज़ दे चुके हैं पर उनका ज्यादातर बेहतरीन काम अंग्रेजी या असमी संगीत के लिए हुआ है। लैला मजनूँ के कुछ गीतों को संगीत देने का सुनहरा मौका उन्होंने दोनों हाथों से बेहद कुशलतापूर्वक लपका है।
मुखड़े और हर अंतरे का अंत जोय ने द्रुत गति के कोरस से किया है। रुबाब की धुन से शुरु होता ये गीत जैसे जैसे कोरस तक पहुँचकर अपनी लय पकड़ता है वैसे वैसे गीत की उर्जा सुनने वालों को वशीभूत करने में कामयाब होती है। रूबाब का स्वर मुझे बेहद पसंद है और वो गीत में हमेशा रहता है कभी अकेला तो कभी अन्य वाद्यों के साथ। इस गीत के साथ ही इस साल पहली बार इरशाद कामिल का कोई गीत संगीतमाला में आया है और इस गुणी गीतकार के बोलों का फर्क आप पढ़ कर ही समझ सकते हैं। वो चाहे भूली अठन्नी का नोस्टालजिया हो या फिर बंद आँखें करूँ दिन को रातें करूँ ..तेरी जुल्फों को सहला के बातें करूँ की मुलायमियत, इरशाद गीत में कई बार मन गुदगुदा जाते हैं।
पत्ता अनारों का, पत्ता चनारों का, जैसे हवाओं में
ऐसे भटकता हूँ दिन रात दिखता हूँ, मैं तेरी राहों में
मेरे गुनाहों में मेरे सवाबों में शामिल तू
भूली अठन्नी सी बचपन के कुर्ते में, से मिल तू
रखूँ छुपा के मैं सब से वो लैला
माँगूँ ज़माने से, रब से वो लैला
कब से मैं तेरा हूँ कब से तू मेरी लैला
तेरी तलब थी हाँ तेरी तलब है
तू ही तो सब थी हाँ तू ही तो सब है
कब से मैं तेरा हूँ कब से तू मेरी लैला
ओ मेरी लैला, लैला ख़्वाब तू है पहला
कब से मैं तेरा हूँ कब से तू मेरी लैला
माँगी थी दुआएँ जो उनका ही असर है हम साथ हैं
ना यहाँ दिखावा है ना यहाँ दुनयावी जज़्बात हैं
यहाँ पे भी तू हूरों से ज्यादा हसीं
यानी दोनों जहानों में तुमसा नहीं
जीत ली हैं आखिर में हम दोनों ने ये बाजियाँ..
रखूँ छुपा के मैं .... लैला
तेरी तलब थी ..... लैला.
ओ मेरी लैला...
जायका जवानी में ख़्वाबों में यार की मेहमानी में
मर्जियाँ तुम्हारी हो खुश रहूँ मैं तेरी मनमानी में
बंद आँखें करूँ दिन को रातें करूँ
तेरी जुल्फों को सहला के बातें करूँ
इश्क में उन बातों से हो मीठी सी नाराज़ियाँ
रखूँ छुपा के मैं .... लैला
तेरी तलब थी ..... लैला.
ओ मेरी लैला...
ये इस गीतमाला में आतिफ असलम का तीसरा गाना है और इस बार वो अपनी गायिकी के अलग अलग रंगों में दिखे हैं। इस गीत में उनका साथ दिया है ज्योतिका टांगरी ने। वैसे ये गीत आतिफ का ही कहलाएगा पर ज्योतिका ने अपना हिस्सा भी अच्छा ही निभाया है। तो आइए सुनते हैं लैला मजनूँ का ये नग्मा...
वार्षिक संगीतमाला 2018
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता
2. जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3. ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4. आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5. मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
6. तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7. नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़
8. एक दिल है, एक जान है
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा
21. जिया में मोरे पिया समाए
