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सोमवार, मार्च 14, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - रनर्स अप : नैन परिंदे रौशन रौशन, अन्धियारे सारे धो देंगे,नैन परिंदे छलके छलके, पलकों को मूँद के रो लेंगे...

वार्षिक संगीतमाला की दूसरी पॉयदान पर गीत वो जिसे गाया शिल्पा राव, ने, धुन बनाई संगीतकार आर आनंद ने और इसके लाजवाब बोल लिखे स्वानंद किरकिरे ने। अब फिल्म का नाम बताने की जरूरत है क्या ? आधा नाम तो गीत के मुखड़े में ही है और उसमें बस लफंगा शब्द डाल दीजिए यानि कि 'लफंगे परिंदे'।

रुड़की विश्वविद्यालय से मेकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने वाले संगीतकार आर आनंद का परिचय इसी फिल्म के गीत 'मन लफंगा..' की चर्चा के दौरान कर चुका हूँ। पिछले बीस साल से विज्ञापनों के लिए धुन बनाने वाले आर आनंद ने अपने कैरियर के शुरुआती दिनों में अपने मित्र गोपाल राव के साथ मिलकर एक स्टूडियो बनाया था। स्टूडियो का नाम ऐसा कि बड़े बड़ों को दिमाग की बत्ती जलाने के लिए मेन्टोस का सेवन करना पड़े।

जी हाँ उनके स्टूडियो का नाम था 'Aqua Regia' जिसका शाब्दिक अर्थ है 'Royal Water'। दरअसल रासायनशास्त्र की भाषा में इसे 'नाइट्रोहाइड्रोक्लोरिक एसिड' भी कहा जाता है और इस अम्ल को 'रॉयलटी' इस लिए मिली हुई है कि ये सोने और प्लेटिनम जैसी अकड़ में रहने वाली धातुओं को गलाने की क्षमता रखता है।

बाद में ड्रमवादक और आनंद के कॉलेज के मित्र, शालीन शर्मा भी इस समूह का हिस्सा बने और आगोश नाम के बैंड की शुरुआत हुई। बैंड ने एक एलबम जरूर बनाया पर वो ज्यादा चला नहीं और जैसा अक्सर होता है वक़्त के साथ बैंड बिखर गया।

प्रदीप सरकार एक ऐसे निर्देशक हैं जो अपनी फिल्मों के गीतकार व संगीतकार चुनने के बाद उन्हें अपने काम करने की पूरी आजादी दे देते हैं। आर आनंद कहते हैं कि नतीजन हमें भी लगने लगता है कि ऐसा काम किया जाए जिनसे उनके विश्वास पर खरा उतरा जा सके।


गीतकार स्वानंद किरकिरे को व्यावसायिक हिंदी सिनेमा में पहला मौका देने वाले भी प्रदीप सरकार ही थे। 'परिणिता' और 'लागा चुनरी में दाग' जैसी फिल्मों में स्वानंद ने जिस तरह का काम किया उसके बाद सरकार के लिए वो पहली पसंद ही बन गए। इस फिल्म की गीत रचना के बारे में स्वानंद कहते हैं

मुझे आनंद के कहा कि तुम पहले गीत लिख कर लाओ फिर मैं धुन बनाऊँगा। मैंने सोचा कि ये तो बड़ी अच्छी बात है। कितना भी लंबा गीत लिख दो कोई tension नहीं। फिल्म जिस तरह के युवाओं पर आधारित थी उनके बारे में सोचकर मुझे ख़्याल आया कि गली मोहल्लों के कई लड़के दिखते लफंगों जैसे हैं पर उनमें भी परिंदों की तरह उड़ान भरने की चाहत होती है। इस लिए लफंगे और परिंदे साथ हो गए। प्रदीप जी को ये शब्द इतने पसंद आए कि उन्होंने फिल्म का नाम भी यही रख दिया। मेरे लिए लफंगे और परिंदे शब्दों का साथ आना 'मन लफंगा' और 'नैन परिंदे' जैसे गीतों की रचना का सबब बन गया।

नैन परिंदे ..फिल्म का एकमात्र एकल गीत है जिसे फिल्म की हीरोइन पर फिल्माया गया है। दृष्टिहीन व्यक्ति भले ही देख नहीं सकता पर उसकी सोच का विस्तार वहाँ तक होता है जहाँ आम जन पहुँच भी नहीं पाते। स्वानंद ने अपने इस गीत में ऐसी ही एक लड़की के ख़्वाबों की उड़ान को शब्दों में बाँधने की कोशिश की है। स्वानंद सिर्फ तुकबंदी और राइमिंग को गीत रचना का ध्येय नहीं मानते। वो कोशिश करते हैं कि इनके अलावा गीत से वो विचार निकलें जो किरदार की भावनाओं को श्रोताओं तक पहुँचा सकें। स्वानंद की ये कोशिश मुखड़े और दोनों अंतरों में सफल होती नज़र आती है। वहीं संगीतकार आनंद का गिटार भी पहले इंटरल्यूड में अपना कमाल दिखला जाता है।

बाकी तो स्वानंद के शब्दों पर शिल्पा राव की आवाज़ मन में गहरी उतरती सी जाती है। जमशेदपुर से ताल्लुक रखने वाली शिल्पा राव को संगीत की दुनिया में लाने का श्रेय शंकर महादेवन को जाता है। जहाँ फिल्म आमिर में उनका गाया गीत इक लौ मुंबई पर हुए हमले के दौरान राष्ट्र का गीत बन गया था वहीं पिछले साल ख़ुदा जाने को बड़ी व्यावसायिक सफलता मिली थी। पर शिल्पा को उनकी प्रतिभा के हिसाब से जितने गीत मिलने चाहिए उतने मिल नहीं रहे। ख़ैर अभी तो सुनते हैं ये गीत..



नैन परिंदे, पगले दो नैन
नैन परिंदे, जागे दिन रैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन
नैन परिंदे, जागें दिन रैन
पंख झटक ये उड़ जाएँगे, आसमान में खो जाएँगे
मग़रूर बड़े, बंजारे नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन

नैन परिंदे बादल बादल, ख़्वाबों के सितारे चुग लेंगे
हो नैन परिंदे चाँद चुरा कर, पलकों से अपनी ढक लेंगे
पलक झपकते उड़ जाएँगे, सपनों को अपने घर लाएँगे
मशहूर बड़े, मतवाले नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन

हो नैन परिंदे रौशन रौशन, अन्धियारे सारे धो देंगे
हो नैन परिंदे छलके छलके, पलकों को मूँद के रो लेंगे
पलक झपकते उड़ जाएँगे, गम को भुला के मुस्काएँगे
मजबूर नहीं, सपनीले नैन
नैन परिंदे, पगले दो नैन

नैन परिंदे, पगले दो नैन...मग़रूर बड़े, बंजारे नैन




शीघ्र ही आपके सामने होगा वार्षिक संगीतमाला का सरताज गीत।

सोमवार, जनवरी 17, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 21 : मन लफंगा बड़ा, अपने मन की करे...

वार्षिक संगीतमाला की इक्कीसवीं पॉयदान पर एक ऐसा गीत है जिसके संगीतकार पहली बार 'एक शाम मेरे नाम' की किसी संगीतमाला में दाखिल हो रहे हैं। दाखिल होते भी कैसे? इसके पहले उन्होंने 1997 में एक हिंदी फिल्म 'जोर' का संगीत निर्देशन किया था। हिन्दी फिल्म संगीत से इनका वनवास, भगवान राम के वनवास से एक साल कम यानि तेरह सालों का रहा। पर इन वर्षों में ये बिल्कुल संगीत से दूर रहे हों ऐसा भी नहीं है। इन तेरह सालों में ये कई विज्ञापनों गीतों के लिए संगीत रचते रहे। बचपन से ही वीणा बजाने में रुचि रखने वाले और इंजीनियरिंग में पढ़ते वक़्त गिटार बजाने में महारत हासिल करने वाले ये संगीतकार हैं आर आनंद

प्रदीप सरकार, जो खुद विज्ञापन जगत से जुड़े रहे हैं ने फिल्म लफंगे परिंदे के लिए अनध को संगीतकार चुना। चेन्नई से ताल्लुक रखने वाले आर अनध, रहमान के सहपाठी रह चुके हैं। फिल्म तो समीक्षकों द्वारा ज्यादा सराही नहीं गई पर अपने संगीत के लिए जरूर ये चर्चा में रही। इस संगीतमाला में इस फिल्म के दो गीत शामिल हैं। 21 वीं सीढ़ी के गीत को अपने शब्द दिए हैं स्वानंद किरकिरे ने और आवाज़ है मोहित चौहान की।

स्वानंद किरकिरे ने इस गीत में एक आम इंसान के मन की फ़ितरत को व्यक़्त करने की कोशिश की है। हमारा मन कब चंचल हो उठता है और कब उद्विग्न, कब उदास हो जाए और कब बेचैन ....क्या ये हमारे बस में है? खासकर तब जब ये किसी के प्रेम में गिरफ़्तार हो जाए। सच, मन तो अपनी मर्जी का मालिक है और इसकी इसी लफंगई को स्वानंद ने बड़े खूबसूरत अंदाज में उभारा है गीत के मुखड़े और दो अंतरों में। जब स्वानंद लिखते हैं कि
धीमी सी आँच में इश्क सा पकता रहे
हो तेरी ही बातों से पिघलता है
चाय में चीनी जैसे घुलता है
तो मन सच पूछिए गीत में और घुलने लगता है।

संगीतकार आर आनंद ने गीत के इंटरल्यूड में गिटार की मधुर धुन रची है वैसे पूरे गीत में ही गिटार का प्रयोग जगह - जगह हुआ है। मोहित की आवाज़ ऐसे रूमानी गीतों के लिए एकदम उपयुक्त है। वो गीत के बोलों से मन को उदास भी करते हैं और फिर गुनगुनाने पर भी मजबूर करते हैं। हाँ ये जरूर है कि ये गीत धीरे धीरे आपके मन में घर बनाता है। तो आइए सुनें लफंगे परिंदे फिल्म का ये गीत


मन लफंगा बड़ा, अपने मन की करे
हो यूँ तो मेरा ही है, मुझसे भी ना डरे
हो भीगे भीगे ख्यालों में डूबा रहे
मैं संभल जा कहूँ, फिसलता रहे
इश्क मँहगा पड़े, फिर भी सौदा करे
मन लफंगा बड़ा, अपने मन की करे

जाने क्यूँ उदासी इसको प्यारी लगे, चाहे क्यूँ नई सी कोई बीमारी लगे
बेचैनी रातों की नींदों में आँखें जगे, लम्हा हर लम्हा क्यूँ बोझ सा भारी लगे
ओ भँवरा सा बन कर मचलता है
बस तेरे पीछे पीछे चलता है
जुनूँ सा लहू में उबलता है
लुच्चा बेबात ही उछलता है
हो भीगे भीगे ख्यालों ..अपने मन की करे

हो अम्बर के पार ये जाने क्या तकता रहे, बादल के गाँव में बाकी भटकता रहे
तेरी ही खुशबू में ये तो महकता रहे.......
धीमी सी आँच में इश्क़ सा पकता रहे
हो तेरी ही बातों से पिघलता है,चाय में चीनी जैसे घुलता है
दीवाना ऐसा कहाँ मिलता है, प्यार मैं यारो सब चलता है
हो भीगे भीगे ख्यालों ..अपने मन की करे



 

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