ये इश्क़ है जिसने इसे रहने के काबिल कर दिया

जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से! अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
कई बार फिल्मों में ऐसे गीत बनते हैं जो उस वक्त देश और समाज के हालातों को अपने शब्दों में पिरो डालते हैं और एक तरह से देश के इतिहास का हिस्सा बन जाते हैं। अभी हाल ही में सदन में प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर तंज कसते हुए एक गीत की चर्चा की ये कहते हुए कि विपक्ष के शासन के दौरान मँहगाई इतनी बढ़ गयी थी कि मँहगाई डायन खाए जात है जैसे गीत बनने लगे थे। पिछले साल के पच्चीस शानदार गीतों की इस वार्षिक संगीतमाला में जो गीत आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ शायद इसमें वर्णित घटनाओं की चर्चा कुछ सालों बाद कोई और करे। कोविड की महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की अपने घरों की ओर लौटने में जो बदतर हालत हुई थी ये गीत उसी का यथार्थवादी चित्रण करता है।
कवने कानूनवा में हम घिरैलीं
कवन बहेलिया बिछावे रे जाल
काहे भइल बा एतना लाचारी
सुई, दवाई एगो टिकिया मुहाल
हाकिम लोग कीड़ा मकौड़ा बूझे
कीटनाशक हमरा पे छिड़काइल बा
जतिया धर्मवा के ऐसन अफीम हो
सुतही से केहू चटावे हो राम
हथवा में लेके नफ़रत के लाशा
धीरे से केहू सटावे हो राम
बचके जिय तनि बचके पिया
एही कुइयाँ में भाँगवा घोराइल बा
आज जिस गीत को आपके सामने ले के आ रहा हूँ वो ज्यादातर लोगों के लिए अनजाना ही होगा। दरअसल ये एक ऐसा गीत है जो उस दौर के गीत संगीत की याद दिला आता है जिसे फिल्म संगीत का स्वर्णिम काल कहा जाता है। श्री वल्लभ व्यास के लिखे इस गीत के बोल थोड़े अटपटे से हैं पर उसे स्वानंद किरकिरे अपनी खुशमिजाज़ आवाज़ से यूँ सँवारते हैं कि उन्हें सुनते सुनते इस गीत को गुनगुनाने का दिल करने लगता है। वही ठहराव और वही मधुरता जो आजकल के गीतों में बहुत ढूँढने से मिलती है।
ये गीत है फिल्म सीरियस मेन का जो नेटफ्लिक्स पर पिछले अक्टूबर में रिलीज़ हुई थी। वैज्ञानिकों के बीच छोटे पद पर काम करते हुए अपने को कमतर माने जाने की कसक नायक के दिलो दिमाग में इस कदर घर कर जाती है कि वो प्रण करता है कि अपने बच्चे को ऐसा बनाएगा कि सारी दुनिया उसकी प्रतिभा को नमन करे। पर इस काली रात से सुबह के उजाले तक पहुँचने के लिए वो अपने तेजाबी झूठ का ऐसा जाल रचता जाता है कि गीतकार को कहना पड़ता है...रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद.... तेजाब उड़ेला किसने इस पर जान ना पाए भेद
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अनुराग सैकिया व शकील आज़मी |
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