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बुधवार, जुलाई 30, 2025

वार्षिक संगीतमाला 2024 Top 25: इश्क़ है ये इश्क़ है Mismatched

वार्षिक संगीतमाला की अगली पायदान पर गाना वो जिसका एक हिस्सा कव्वाली है तो दूसरा हिस्सा ठुमरी की शक्ल में है और इन हिस्सों के बीच में इश्क़ से इबादत का सफ़र तय करता एक रूमानी गीत भी है। ये गीत है "इश्क़ है ये इश्क़ है...."। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि OTT पर Mismatched Season III में सम्मिलित ये गीत Spotify के वॉयरल गीतों की सूची में कई दिनों तक अव्वल नंबर पर बना रहा था। ज़ाहिर है Gen Z ने इस गीत को हाथों हाथ लिया था। 

राजशेखर ने इस गीत को लिखा पहले और फिर अनुराग ने इसकी धुन बनाई। इसी सीरीज़ के पिछले सत्र में उन्होंने एक नज़्म ऐसे क्यूँ लिखी थी जो काफी सराही गई थी। राजशेखर की इस बात पर मैं भी यकीं करता हूँ कि कव्वाली या ग़ज़ल का युग चला गया ये गलत सोच है। दरअसल बहुत निर्माता निर्देशक भ्रम पाल लेते हैं कि ऐसे जोनर नहीं चलेंगे पर सच ये है कि अगर कोई गीत कथ्य के अनुरूप पूरी ईमानदारी से बनाया जाता है तो नव युवा से प्रौढ़ जनता के बीच श्रोताओं का एक बड़ा वर्ग उसे मन से स्वीकार करता है। 


जहाँ तक मेरी पसंद का सवाल है तो मुझे इस गीत का सबसे प्यारा हिस्सा लगी राग नंद पर आधारित मधुबंती बागची की गायी ठुमरी जिसे अलग से ना जाने मैं कितनी ही बार सुन चुका हूँ। साथ ही इस गीत की दूसरी खासियत रही इश्क़ को सूफियत के रंग में रँगने वाले राजशेखर के लिखे बेहतरीन बोल। जब भी मैं किसी फिल्म में बतौर गीतकार राजशेखर का नाम देखता हूँ तो ये आशा बँध जाती है कि फिल्म के गीतों में कविता की एक धारा बहती जरूर दिखाई देगी। चाहे वो मीरा का भक्ति राग हो या सूफी संतो की वाणी, इश्क़ के आसमानी सफ़र की अंतिम मंजिल एक ही है और इसीलिए राजशेखर कया खूब लिखते हैं...

बरसी है मुझ पे मेहर आसमानी, मोहब्बत का देखो असर आसमानी
पैरों के नीचे ज़मीं उड़ रही है, है इश्क़ में हर सफ़र आसमानी

गीत की शुरुआत कव्वाली से होती है जिसकी शब्द रचना जानदार है। पर राग देश पर आधारित मुखड़े में संगीतकार अनुराग सैकिया की धुन को सुनकर एक डेजा वू का अहसास होता है मानो वो उतार चढाव पहले भी किसी गीत में सुने से हों। कव्वाली में रोमी की गायिकी में सुकून कम शोर ज्यादा सुनाई देता है पर सुकून की इस कमी को वरुण जैन की मखमली आवाज़ और मधुबंती बागची की ठुमरी पूरा कर देती है। राग नंद या नंद कल्याण से मेरा प्रेम तबका है जब मैंने इस पर आधारित एक ठुमरी अज हूँ न आए श्याम, बहुत दिन बीते सुनी थी। मधुबंती की आवाज़ एक अलग ही बुनावट लिए हुए है और उसमें इस बंदिश "मोपे ये करम भी कीजे...लागे नहीं तुम बिन जियरा...ऐसी बेखुदी ही दीजे ...मोपे ये करम भी कीजे" सुनना मन को प्रेम और सुकून से भर देता है। 

तो चलिए पूरे गीत को सुनने से पहले ये टुकड़ा आपको सुनवाता चलूँ




देखो तो क्या ही बात है, कमबख्त इस जहां में
ये इश्क़ है जिसने इसे रहने के काबिल कर दिया

रौशनी ही रौशनी है चार-सू जो चार-सू
इश्क़ है ये इश्क़ है इश्क़ है इश्क़ है
जो छुपा है हर नज़र में हर तरफ जो रूबरू
इश्क़ है ये इश्क़ है इश्क़ है इश्क़ है

तुमसे मिले तो कुछ गुनगुनी सी होने लगी है सर्दियां
तुमसे मिले तो देखो शहर में खिलने लगी हैं वादियां
साया मेरा है तू और मैं तेरा
तू दिखे या ना दिखे तू तेरी खुशबू कूबकू
इश्क़ है ये इश्क़ है इश्क़ है इश्क़ है

कोई कहता इश्क़ हमें आबाद करता है
कोई कहता इश्क़ हमें बर्बाद करता है
जेहन की तंग दीवारों से उठकर
मैं कहता हूं इश्क़ हमें आज़ाद करता है

मोपे ये करम भी कीजे
मोपे ये करम भी कीजे
लागे नहीं तुम बिन जियरा
ऐसी बेखुदी ही दीजे ़़मोपे ये करम भी कीजे

हाँ.. साया मेरा हो तू और मैं तेरा
ये ही मेरी वहशतें हैं ये ही मेरी जुस्तजू
इश्क़ है ये इश्क़ है इश्क़ है इश्क़ है

बरसी है मुझ पे मेहर आसमानी, मोहब्बत का देखो असर आसमानी
पैरों के नीचे ज़मीं उड़ रही है, है इश्क़ में हर सफ़र आसमानी
तुमसे मिले तो बैठे बिठाए, छूने लगे हैं आसमां
तुमसे मिले तो छोटा सा किस्सा, बनने को है एक दास्तां

ये ही गीत का पूरा ऑडियो

मिसमैच्ड की कहानी किशोरावस्था से युवावस्था की ओर बढ़ते युवाओं की है जिन्हें रिश्ते इसी इश्क़ की बुनियाद पर पल बढ़ तो कभी बिखर रहे हैं।

मंगलवार, फ़रवरी 27, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर जहाँ माटी में सोना हेराइल बा

कई बार फिल्मों में ऐसे गीत बनते हैं जो उस वक्त देश और समाज के हालातों को अपने शब्दों में पिरो डालते हैं और एक तरह से देश के इतिहास का हिस्सा बन जाते हैं। अभी हाल ही में सदन में प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर तंज कसते हुए एक गीत की चर्चा की ये कहते हुए कि विपक्ष के शासन के दौरान मँहगाई इतनी बढ़ गयी थी कि मँहगाई डायन खाए जात है जैसे गीत बनने लगे थे। पिछले साल के पच्चीस शानदार गीतों की इस वार्षिक संगीतमाला में जो गीत आज आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ शायद इसमें वर्णित घटनाओं की चर्चा कुछ सालों बाद कोई और करे। कोविड की महामारी के दौरान प्रवासी मजदूरों की अपने घरों की ओर लौटने में जो बदतर हालत हुई थी ये गीत उसी का यथार्थवादी चित्रण करता है।  

फिल्म भीड़ के इस गीत की धुन बनाई संगीतकार अनुराग सैकिया ने और इसे गाया है लोक गायक ओम प्रकाश यादव ने। डा. सागर के लिखे गीतों की चर्चा  पहले भी वार्षिक संगीतमाला में हुई है। सागर मेरे गृह जिले बलिया से आते हैं और जीवन में बहुत तप कर बॉलीवुड के संसार में अपने कदम जमा पाए हैं। उनके संघर्ष के दिनों की बात लिखी थी मैंने पहले यहाँ। हिंदी फिल्मों में उनके गीत हर साल आते ही रहे हैं पर मुंबई में का बा की सफलता के बाद उनके काम को और सम्मान से देखा जाने लगा है।


मज़े की बात ये है कि ये गीत हिंदी में नहीं नहीं बल्कि भोजपुरी है। बिहार यूपी के पुरवइया मजदूरों का दर्द बयाँ करने के लिए भोजपुरी से अच्छी भाषा क्या हो सकती थी। मैंने सागर के हिंदी फिल्मी और गैर फिल्मी गीतों को सुना है पर इस गीत में इतना बढ़िया खाका खींचा है उन्होंने उस वक़्त की परिस्थितियों का कि ये गीत उनके सबसे अच्छे कामों में आगे भी गिना जाएगा। मुखड़े में सागर लिखते हैं...खुनवा-पसीना सहरिया में भैया, कउड़ी के भाव में बिकाइल बा...चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर, जहाँ माटी में सोना हेराइल बा। भोजपुरी में सुगना तोते को कहते हैं और हेराइल मतलब छिपा हुआ। अंतरों में भी उनके बिंब कमाल के हैं.. भीड़ में ऐसे छिंटा गईनी ऐसे...बोरा से सरसों छिंटाइल बा या फिर धुआँ धुआँ हो गइल अल्हड़ जवनियाँ...चूल्हा में ऐसे झोंकाइल बा...हाकिम लोग कीड़ा मकौड़ा बूझे..कीटनाशक हमरा पे छिड़काइल बा



क्या क्या नहीं सहा हमारे मजदूरों ने और उनके दिल का सारा दर्द सागर ने महज कुछ अंतरों में हमारे आगे उड़ेल दिया। आज के माहौल में लाउड स्पीकर पर बजते भोजपुरी गीत किस लिए जाने जाते हैं ये मुझे बताने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में सागर जैसे प्रतिभाशाली गीतकार चैती, कजरी, सोहर, बिरहा से सम्पन्न भोजपुरी संस्कृति को अपने गीतों से एक नई दिशा दे रहे हैं जिसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी। 

खुनवा-पसीना सहरिया में भैया, 
कउड़ी के भाव में बिकाइल बा...
चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर, 
जहाँ माटी में सोना हेराइल बा

घर अँगनइया के सपना सजाकर 
मशिनियो से बेसी देहिया खटवनी
हाय रे करम यही पेटवा की ख़ातिर
अब वाचमैनी के ड्यूटी बजवनी
भीड़ में ऐसे छिंटा गईनी ऐसे
बोरा से सरसों छिंटाइल बा

कवने कानूनवा में हम घिरैलीं
कवन बहेलिया बिछावे रे जाल
काहे भइल बा एतना लाचारी
सुई, दवाई एगो टिकिया मुहाल
हाकिम लोग कीड़ा मकौड़ा बूझे
कीटनाशक हमरा पे छिड़काइल बा

भटके शहरिया में ए भइया जेकर 
खेत खलिहानवा हो बाटे छिनाइल 
गहना गुरिया के बतिया न पूछ 
बाटे समान मोरा बनकी धराइल 
धुआँ धुआँ हो गइल अल्हड़ जवनियाँ
चूल्हा में ऐसे झोंकाइल बा

जतिया धर्मवा के ऐसन अफीम हो
सुतही से केहू चटावे हो राम
हथवा में लेके नफ़रत के लाशा
धीरे से केहू सटावे हो राम
बचके जिय तनि बचके पिया
एही कुइयाँ में भाँगवा घोराइल बा 

अब कुछ बातें इस गीत में संगीत देने वाले अनुराग कीं। अनुराग सैकिया एक अद्भुत संगीतकार हैं। थप्पड़ में उनका संगीतबद्ध गीत एक टुकड़ा धूप का.. मेरी गीतमाला के सरताज गीत का तमगा में ले चुका है। दो साल पहले राजशेखर के साथ ऐसे क्यूँ ने तो युवाओं और बड़ों सबका दिल जीत लिया था। अनुराग असम से आते हैं और वहाँ के लोक संगीत में रच बस कर ही उन्होंने अपनी संगीत की कारीगरी सीखी है। शायद इसीलिए उन्होने इस गीत को गवाने के लिए बिरहा गायक ओम प्रकाश यादव को चुना। शब्द प्रधान इस गीत में संगीत नाममात्र सा ही है। फिर भी ऊस थोड़े से संगीत में तॉपस रॉय का दो तारा और तेजस की बजाई बाँसुरी मन को लुभाती है।

वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा

    गुरुवार, अप्रैल 01, 2021

    वार्षिक संगीतमाला 2020 सरताज गीत: एक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है Ek Tukda Dhoop

    वक़्त आ गया है एक शाम मेरे नाम के सालाना जलसे वार्षिक संगीतमाला के सरताजी बिगुल को बजाने का। ये कहने में मुझे कोई झिझक नहीं कि पिछले साल के तमाम गीतों में से इस गीत को चोटी पर रखने में मुझे ज्यादा दुविधा नहीं हुई। पायदान दो से छः तक के गीतों में आपस में ज्यादा अंतर नहीं था पर थप्पड़ से लिया गया ये गीत अपने गहरे शब्दों. धुन और गायिकी के सम्मलित प्रभावों के मेरे आकलन में अपने प्रतिद्वन्दियों से कहीं आगे रहा ।


    अनुभव सिन्हा ने जबसे गंभीर और लीक से हट कर विषयों पर फिल्में बनानी शुरु कीं तबसे उनकी फिल्मों के गीत संगीत पर मेरा हमेशा ध्यान रहता है। अपनी पिछली कुछ फिल्मों में उन्होंने संगीत निर्देशन की जिम्मेदारी जहाँ अनुराग सैकिया को सौंपी है वहीं उनकी फिल्मों के अधिकांश गीतों के बोल शायर शकील आज़मी साहब ने लिखे हैं। 

    इस जोड़ी का फिल्म मुल्क के लिए बनाया  गीत जिया में मोरे पिया समाए 2018 में वार्षिक संगीतमाला का हिस्सा बना था। इन दोनों द्वारा रचा आर्टिकल 15 का इंतज़ारी भी बेहद चर्चित रहा था। जहाँ तक थप्पड़ का सवाल है ये एक बेहद संवेदनशील विषय पर बनी फिल्म थी। नायक नायिका के वैवाहिक जीवन को एक पार्टी में सबके सामने लगाया गया थप्पड़ चरमरा कर रख देता है। नायिका इस थप्पड़ की वज़ह से अपने रिश्ते का पुनर्मूल्यांकन करते हुए कई ऐसे छोरों पर पहुँचती है जहाँ से वापसी की राह बेहद धुँधली दिखाई देती है।

    अनुराग सैकिया व शकील आज़मी

    असम के प्रतिभावान युवा संगीतकार अनुराग सैकिया का अनुभव सिन्हा से रिश्ता एक गाइड या पथ प्रदर्शक का है। ये अनुभव की ही फिल्में थीं जिनकी वज़ह से अनुराग को बतौर संगीतकार मुंबई में पहचान मिली है। यही वज़ह है कि अनुराग जब भी कोई धुन बनाते हैं तो उसे अनुभव सिन्हा को जरूर भेजते हैं। इस गीत की भी धुन अनुराग ने पहले बनाई। अनुभव को धुन पसंद आई और उन्होंने अनुराग को अगले ही दिन थप्पड़ की पटकथा सुनाई।गीत लिखने की जिम्मेदारी एक बार फिर शकील के कंधों पर थी। शकील आज़मी ने कहानी को इतने करीने से समझते हुए इस धुन पर अपने बोल लिखे कि बस कमाल ही हो गया। 

    जो भी शायराना तबियत रखता है उनके लिए शकील आज़मी किसी पहचान के मुहताज नहीं है। वे जिस मुशायरे में जाते हैं अपने बोलने के अंदाज़ और अशआरों की पुख्तगी से सबका दिल जीत लेते हैं। आजमगढ़ से ताल्लुक रखने वाले पचास वर्षीय शकील का नाम माता पिता ने शकील अहमद खाँ रखा था पर शकील ने जब अदब की दुनिया में कदम रखा तो कैफ़ी आज़मी का नाम बुलंदियों पर था। उनकी शोहरत का उन पर ऐसा असर हुआ कि उन्होंने अहमद हटाकर अपने नाम के आगे आज़मी लगाना शुरु कर दिया। उनके करीब आधा दर्जन कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिसमें परों को खोल उनका सबसे ताज़ा संग्रह है। 

    शकील साहब मानते हैं कि एक कवि या शायर गीत के बोलों के साथ ज्यादा न्याय कर सकता है क्यूँकि उसने उन शब्दों को सालों साल जिया और तराशा है। अच्छे बोल गीतों की उम्र बढ़ा देते हैं। मैं शकील साहब की इस बात से पूरा इत्तिफाक रखता हूँ । अब इसी गीत को देखें। ये उनकी शायरी की काबिलियत का ही नमूना है कि वो मुखड़े की चंद पंक्तियों में पूरी कहानी का दर्द सहज शब्दों में गहराई से उतार लाए हैं ..

    टूट के हम दोनों में, जो बचा वो कम सा है
    एक टुकड़ा धूप का अंदर अंदर नम सा है
    एक धागे में हैं उलझे यूँ, कि बुनते बुनते खुल गए
    हम थे लिखे दीवार पे, बारिश हुई और धुल गए
    टूट के हम दोनो में....नम सा है

    उलझे धागों से बुनते बुनते खुल जाने का ख्याल हो या फिर पोपले धरातल पर बने रिश्ते के टूटने को दीवार पर लिखी इबारत के तेज बारिश में धुल जाने से की गई उनकी तुलना..मन वाह वाह कर ही उठता है। नायिका के मन की आंतरिक उथल पुथल को भी वो गीत के  तीनों अंतरों में बखूबी उभारते हैं। 

    टूटे फूटे ख़्वाब की हाए...दुनिया में रहना क्या
    झूठे मूठे वादों की हाए..लहरों में बहना क्या
    दिल ने दिल में ठाना है, खुद को फिर से पाना है
    दिल के ही साथ में जाना है
    टूट के हम दोनों में....नम सा है 

    सोचो ज़रा क्या थे हम हाय..क्या से क्या हो गए
    हिज्र वाली रातों की हाय कब्रों में सो गए
    तुम हमारे जितने थे..सच कहो क्या उतने थे ?
    जाने दो मत कहो कितने थे
    रास्ता हम दोनों में, जो बचा वो कम सा है
    एक टुकड़ा धूप का, अंदर अंदर नम सा है
    टूट के हम दोनों में....नम सा है 

    इस गीत का एक अंतरा और भी है जो गीत के वीडियो में इस्तेमाल नहीं हुआ

    तेरी ही तो थे हमपे हाय जितने भी रंग थे
    बेख़्याली में भी हम हाय...तेरे ही तो संग थे 
    रंग जो ये उतरे हैं, मुश्किलों से उतरे हैं 
    जीते जी जाँ से हम गुजरे है 
    रास्ता हम दोनों में, जो बचा वो कम सा है

    गीत के आडियो वर्सन में आप इस अंतरे को सुन पाएँगे।



    राघव चैतन्य

    इतने खूबसूरत बोलों को कम से कम संगीत की जरूरत थी। अनुराग मात्र गिटार, वुडविंड वाद्यों और बाँसुरी की मदद से इस गीत के लिए कहानी के अनुरूप  एक बेहद गमगीन सा माहौल रचने में सफल हुए हैं। इस काम में उनकी मदद की है राघव चैतन्य ने जिनका बॉलीवुड के लिए शायद ये पहला ही गीत होगा। 

    मेरठ में पले बढ़े 27 वर्षीय राघव पिछले छः साल से मुंबई में अपना संगीत बना रहे हैं। उनके रचे संगीत को यू ट्यूब और इंटरनेट के संगीत चैनलों पर खासी मकबूलियत मिली है । अनुराग ने पहले भी उनके साथ काम किया था और इस गीत के लिए उन्हें राघव की आवाज़ का ही ख्याल आया क्यूँकि उन्हें लगा कि उसमें लोगों का दिल छूने की ताकत है। राघव के लिए ये शुरुआती दिन हैं पर उन्होंने इतने कम अनुभव के बाद भी गीत की भावनाओं को बेहतरीन तरीके से अपनी आवाज़ में उतारा है।

    वाद्य यंत्रों में वुडविंड वाद्यों जिनमें एक शहनाई जैसी सुनाई देती है पर आइ डी दास का काम मुझे बेहद प्रभावशाली लगा। मुखड़े और अंतरे के बीच भास्कर ज्योति की बाँसुरी भी कानों को सोहती है। तो एक बार फिर सुनते हैं चोटी पर के इस गीत को जिसके बारे में फिल्म की नायिका तापसी पन्नू का कहना था कि जब भी कोई मुश्किल सीन शूट करना होता तो मैं इस गाने को सुनकर अपना मूड बना लेती थी।

     
     
    तो कैसा लगा आपको ये गीत? वार्षिक संगीतमाला की आखिरी कड़ी होगी पिछले साल के संगीत सितारों के नाम..

    वार्षिक संगीतमाला 2020


    सोमवार, जनवरी 11, 2021

    वार्षिक संगीतमाला 2020 : गीत # 19 : रात है काला छाता... Raat Hai Kala Chhata

    आज जिस गीत को आपके सामने ले के आ रहा हूँ वो ज्यादातर लोगों के लिए अनजाना ही होगा। दरअसल ये एक ऐसा गीत है जो उस दौर के गीत संगीत की याद दिला आता है जिसे फिल्म संगीत का स्वर्णिम काल कहा जाता है। श्री वल्लभ व्यास के लिखे इस गीत के बोल थोड़े अटपटे से हैं पर उसे स्वानंद किरकिरे अपनी खुशमिजाज़ आवाज़ से यूँ सँवारते हैं कि उन्हें सुनते सुनते इस गीत को गुनगुनाने का दिल करने लगता है। वही ठहराव और वही मधुरता जो आजकल के गीतों में बहुत ढूँढने से मिलती है।

    ये गीत है फिल्म सीरियस मेन का जो नेटफ्लिक्स पर पिछले अक्टूबर में रिलीज़ हुई थी। वैज्ञानिकों के बीच छोटे पद पर काम करते हुए अपने को कमतर माने जाने की कसक नायक के दिलो दिमाग में इस कदर घर कर जाती है कि वो प्रण करता है कि अपने बच्चे को ऐसा बनाएगा कि सारी दुनिया उसकी प्रतिभा को नमन करे। पर इस काली रात से सुबह के उजाले तक पहुँचने के लिए वो अपने तेजाबी झूठ का ऐसा जाल रचता जाता है कि गीतकार को कहना पड़ता है...रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद.... तेजाब उड़ेला किसने इस पर जान ना पाए भेद


    इस गीत की मूल धुन का क्रेडिट गीत में फ्रांसिस मेंडीज़ को दिया गया है पर इसे इस रूप में लाने का श्रेय है असम से ताल्लुक रखने वाले अनुराग सैकिया को जो पहले भी अनुभव सिन्हा की फिल्मों में अपने बेहतरीन काम से हिंदी फिल्म जगत में अपना सिक्का जमा चुके हैं। प्रवासी मजदूरों पर गीतकार सागर के लिखे लोकप्रिय गीत मुंबई में का बा का संगीत निर्देशन भी उन्होंने ही किया था। इस गीत के संगीत संयोजन में उन्होंने गिटार और बैंजो के आलावा पियानिका और मेंडोलिन का प्रयोग किया है। इन वाद्य यंत्रों पर उँगलियाँ थिरकी हैं सोमू सील की।

    रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद
    तेजाब उड़ेला किसने इस पर जान ना पाए भेद
    ता रा रा रा.रा रा ... रा रा रा.रा रा .

    अब खेलेगा खेल विधाता, चाँद बनेगा बॉल, बॉल... 
    सभी लड़कियाँ सीटी होंगी सारे शहर को कॉल
    खेल में गड़बड़ नहीं चलेगी, सीटी हरदम बजी रहेगी
    जारा ध्यान से इसे बजाना, खुल जाएगी पोल

    हम आवारा और लफंगे हैं, लेते सबसे पंगे हैं
    लेकिन पंगे सँभल के लेना, वर्ना पड़ जाएगा लेने को देना
    रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद...

    तो आइए सुनें स्वानंद की आवाज़ में सीरियस मेन के इस गीत को..


    है ना मजेदार गाना? वैसे अगर आप में से किसी ने इसकी मूल धुन सुनी हो तो मुझे जरूर बताएँ। 

    वार्षिक संगीतमाला 2020


    शनिवार, जनवरी 05, 2019

    वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 21 : जिया में मोरे पिया समाए Piya Samaye

    इस साल की शुरुआत से चल रही एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला की कड़ियों में आज का गीत है एक कव्वाली की शक़्ल में फिल्म मुल्क से और इसे अपनी आवाज़ से सँवारा है शफ़क़त अमानत अली खाँ ने। इक ज़माना था जब पुरानी हिंदी फिल्मों में अलग अलग परिस्थितियों में कव्वालियों का इस्तेमाल हुआ करता था। पुरानी फिल्मों की कव्वालियों को याद करूँ तो मन में तुरंत ना तो कारवाँ की तलाश है, तेरी महफिल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे, निगाहें मिलाने को जी चाहता है, पर्दा है पर्दा और हैं अगर दुश्मन जैसे तमाम गीतों की याद उभरती है। 

    पिछले कुछ दशकों से कव्वाली, फिल्मों में सूफ़ियत से रँगे गीतों में ही सिमट कर रह गयी है। अगर आज के फिल्मी परिदृश्य में कव्वालियों का इतना स्वरूप भी बचा है तो इसमें ए आर रहमान व नुसरत फतेह अली खाँ का खासा योगदान है। रहमान ने पिछले दशक में  ख्वाजा मेरे ख्वाजा, कुन फाया कुन और पिया मिलेंगे जैसे अपने संगीतबद्ध  गीतों से कव्वालियों  को फिर लोकप्रियता के नए शिखर तक पहुँचाया। 


    मुल्क की इस कव्वाली पिया समाए को लिखा है शकील आज़मी ने। पिछले एक दशक में दर्जन भर फिल्मों में गीत लिखने वाले शकील एक गीतकार से ज्यादा एक लोकप्रिय शायर के रूप में चर्चित रहे हैं। अपने साहित्यिक जीवन में उनके पाँच छः काव्य संकलन छप चुके हैं। मेरे ख्याल से मुल्क के इस गीत में पहली बार शकील को अपना हुनर सही ढंग से दिखाने का मौका मिला है।

    गीत में पिया शब्द से ईश्वर को संबोधित किया गया है। शकील ने इस गीत के माध्यम से कहना चाहा है कि सबका परवरदिगार एक है भले ही उसके रंग अलग अलग हों। इसलिए लोगों में धर्म के नाम पर भ्रम जाल पैदा करने वाले लोगों के लिए वो लिखते हैं..सात रंग हैं सातों पिया के...देख सखी कभी तू भी लगा के...सातों से मिल के भयी मैं उलझी...कोई हरा कोई गेरुआ बताए। ।गीत में शकील ने गौरैया, पीपल,कबूतर जैसे बिंबों का बड़ी खूबसूरती से प्रयोग किया है।


    अनुराग सैकिया व शकील आज़मी
    इस कव्वाली की धुन बनाई है इस साल कारवाँ और मुल्क जैसी फिल्मों से अपना सांगीतिक सफ़र शुरु करने वाले असम के लोकप्रिय संगीतकार अनुराग सैकिया ने। मुल्क में ये मौका देने के पहले अनुभव सिन्हा ने उन्हें अपने स्टूडियो में बुलाया और उनके संगीतबद्ध गीतों को सुनने की इच्छा ज़ाहिर की। अनुराग बताते हैं कि तब उन्होंने आनन फानन में अपनी ई मेल मे पड़े गीतों को  बजाया पर अनुभव जी ने उन्हें कुछ और सुनाने को कहा। तब जाकर अनुराग ने अनुभव सिन्हा को वो गीत सुनाए जो व्यक्तिगत तौर पर पसंद थे पर उनकी ऐसी मान्यता थी कि इसे शायद ही कोई निर्माता निर्देशक पसंद करेगा। इन गीतों में एक निदा फ़ाज़ली का लिखा गीत भी था जो अनुभव को पसंद आ गया। कुछ दिनों दोनों की आपस में बात होती रही और अंततः मुल्क की इस  कव्वाली को संगीतबद्ध करने का जिम्मा अनुराग को मिला।

    परम्परागत भारतीय ताल वाद्यों ढोलक व तबला के साथ अनुराग ने गीत में हारमोनियम व गिटार का इस्तेमाल किया। गीत के बीच में इस्तेमाल की गयी उनकी सरगम मन मोहती है। इस गीत में शफक़त का साथ दिया है अरशद हुसैन और साथियों ने। गीत के बोल बनारसी लहजे में रँगे हैं। शफक़त की गायिकी तो हमेशा की तरह जानदार है पर एक जगह सातों से मिल के भयी मैं उलझी की जगह वो उझली बोलते सुनाई पड़े हैं। तो आइए सुनते हैं मुल्क फिल्म की ये कव्वाली

    मोरे पिया, मोरे पिया..
    सब सखियों का पिया प्यारा
    सब में है और सब स्यूं न्यारा
    सब सखियों का पिया प्यारा
    भा गिया ये मुझे भा

    जागी है मिलने की चाह
    सब सखियों का पिया प्यारा ...हो..
    पिया समाए पिया समाए
    जिया में मोरे पिया समाए
    नि सा सा नि सा रे सा...
    मा पा धाा पा मा गा रे...

    हो.. सात रंग हैं सातों पिया के

    देख सखी कभी तू भी लगा के
    सात रंग हैं सातों पिया के
    देख सखी कभी तू भी लगा के
    सातों से मिल के...
    सातों से मिल के भयी मैं उलझी
    कोई हरा कोई गेरुआ बताए
    पिया समाए ....पिया समाए

    ओ पिया समाए पिया समाए
    जिया में मोरे पिया समाए

    हो.. काशी भी मुझ में, काबा भी मुझ में

    घी मोरा दर मोरी चौखट
    इश्क़ है मोरे पिया का मज़हब
    केहू से मोरा काहे का झंझट
    काहे का झंझट
    मंदिर के छज्जे मैं गौरैया

    पीपल है मोरा रैन बसेरा
    मस्जिद के गुंबज की मैं कबूतर
    मैं जो उड़ूँ तो होवे सवेरा

    तू है ऐसी रंगानी

    भयी ना पुरानी
    इंद्रधनुष है मोरी चुनरिया
    पिया को मोरे महू ना देखूँ
    देखे मगर मोरे मॅन की नज़रिया
    मोरे मॅन की नज़रिया
    सात रंग हैं ...गेरुआ बताए
    पिया समाए पिया समाए


    वार्षिक संगीतमाला 2018  
    1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
    2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
    3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
    4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
    5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
    6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
    7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
    8.  एक दिल है, एक जान है 
    9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
    10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
    11 . तू ही अहम, तू ही वहम
    12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
    13. सरफिरी सी बात है तेरी
    14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
    15. तेरा यार हूँ मैं
    16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
    17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
    18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
    19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
    20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
    21. जिया में मोरे पिया समाए 
    24. वो हवा हो गए देखते देखते
    25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां
     

    मेरी पसंदीदा किताबें...

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    Freedom at Midnight
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    कसप Kasap
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    Shatranj Ke Khiladi
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