इस साल की संगीतमाला अब अपने अंतिम चरण में पहुँच गई है। आखिरी पाँच पायदानों पर विराजमान गीतों में काफी विविधता है । कहीं मेलोडी की बहार है तो कहीं दिल को झकझोर देने वाले शब्द। कहीं नुक्कड़ गीतों की झलक है तो कही लोक संगीत और आज के संगीत का अद्भुत मिश्रण है।

लट उलझी सुलझा जा बालम
माथे की बिंदिया
बिखर गई है
अपने हाथ सजा जा बालम
लट उलझी
मनमोहिनी
मनमोहिनी मोरे मन भाए..
मनमोहिनी मन भाए..
वार्षिक संगीतमाला 2008 में अब तक :

पर पाँचवी पॉयदान का गीत तो इन सबसे अलग है। राग भीमपलासी पर आधारित इस गीत को संगीतकार ए आर रहमान ने सिंथिसाइजर की पार्श्व धुन के साथ मिश्रित किया है। इस गीत की धुन और गायक विजय प्रकाश का उत्कृष्ट शास्त्रीय गायन आपको गीत के साथ बहा ले जाता है। गीत की एकमात्र कमज़ोरी इसकी लंबाई है जो केवल 3 मिनट ग्यारह सेकेंड की है। जैसे ही इस गीत से अपने को आत्मसात पाता हूँ ये गीत खत्म हो जाता है। काश! रहमान गुलज़ार के लिखे इस गीत में एक अंतरा और बढ़वा लेते तो सोने पर सुहागा होता।
पर इससे पहले कि आप युवराज फिल्म के इस गीत को सुनें कुछ बातें गायक विजय प्रकाश के बारे में। विजय प्रकाश कर्नाटक से आते हैं और जी टीवी पर आने वाले कार्यक्रम सा रे गा मा की उपज है। १९९९ में सा रे गा मा प्रतियोगिता में ये फाइनल तक पहुँचे थे। अपनी आवाज़ की गुणवत्ता के हिसाब से विजय को उतने गीत नहीं मिले जितने मिलने चाहिए थे पर इस गीत की सफलता के बाद शायद हिंदी फिल्म जगत में उनका सितारा और बुलंद हो। वैसे एक बात बतानी यहाँ लाजिमी होगी की स्लमडॉग मिलयनियर के गीत के लिए रहमान ने जिन चार गायकों को अनुबंधित किया था उनमें विजय प्रकाश एक थे। हालांकि अंत में सुखविंदर ने इस गीत को गाया पर गीत में हाई पिच पर जय हो का उद्घोष विजय ने किया है।
गीत तूम तनना... के आकर्षित करने वाले लूप से शुरु होता है और फिर विजय अपनी शास्त्रीय गायन का हुनर बखूबी दिखाते हैं। ऍसे गीतों में बोल सुरों के उतार चढ़ाव के लिए सिर्फ सेतु का काम करते हैं...
लट उलझी सुलझा जा बालम
माथे की बिंदिया
बिखर गई है
अपने हाथ सजा जा बालम
लट उलझी
मनमोहिनी
मनमोहिनी मोरे मन भाए..
मनमोहिनी मन भाए..
वार्षिक संगीतमाला 2008 में अब तक :
