सज्जाद अली की आवाज़ से पहली बार मैं फिल्म बोल के गीत दिल परेशां है रात भारी है से परिचित हुआ था और तबसे मैं उनकी आवाज़ का शैदाई हूँ। यूँ तो उन्होंने हर तरह के गीत लिखे हैं पर उदासी भरे गीतों में उनकी गायिकी का कमाल देखते ही बनता है। कुछ ही महीने पहले मैंने आपको उनकी आवाज़ में आफ़ताब मुज़्तर की लिखी ग़ज़ल हर जुल्म येरा याद है भूला तो नहीं हूँ सुनवाई थी। ये उनकी आवाज़ का ही असर है कि संगीतप्रेमियों को तो इसका हर शेर दिल में नासूर सा बन कर रह रह कर टीसता है। तुम नाराज हो में मामूली से शब्द को भी अपनी गायकी से वे श्रोताओं के दिल के करीब ले आते हैं। यही वज़ह है कि संगीतकार ए आर रहमान तक उनकी प्रतिभा का लोहा मानते हैं।
ऍसा ही जादू वो एक बार फिर जगाने में सफल रहे हैं कोक स्टूडियो के नए सीजन 10 में। फर्क सिर्फ इतना है कि इस बार उनके लफ़्ज़ रूमानियत की चाशनी में घुले हैं और उदासी की बजाए गीत की मधुरता और संगीत का रिदम मन को खुश कर देता है। अपने इस गीत के बारे में वो कहते हैं
"बहुत साल पहले मैंने एक रोमांटिक गाना बनाया था जिसके बोल थे मैंने इक किताब लिखी है, उस किताब के पहले सफ़े पे तेरा नाम लिखा है। बस इतना ही लिखा था। कुछ महीने पहले कोक स्टूडियो के लिए इस गाने को पूरा लिखना था। पर जब मैं लिखने बैठा तो ये गाना काग़ज़ पर इस तरह उतरता गया कि ये एक हम्द (भगवान की स्तुति में गाया जाने वाला गीत) बन गयी।"
बहरहाल मुझे तो ये गीत अभी भी प्रेम में डूबे हुए आशिक़ का ही नज़र आता है जिसके दिलो दिमाग पर बस एक ही चेहरा है, एक ही आवाज़ है, एक ही अस्तित्व है और वो है अपनी माशूका का। सज्जाद की आवाज़ की चंचलता मन को लुभाती है वहीं गीत की धुन झूमने पर मजबूर कर देती है।
पर अगर आप सज्जाद का नज़रिया देखें तो किताब के पन्ने ज़िंदगी के अलग अलग मोड़ पर परवरदिगार को खोजने परखने और अपने उत्तरों को पाने की कोशिश का पर्याय बन जाते हैं।
सज्जाद इस गीत के संगीतकार भी हैं। इस गीत को उन्होंने जब पहली बार लिखा था तभी एक धुन उनके दिमाग में थी। उनकी कोशिश यही थी कि जो रिदम उन्होंने गीत के लिए सोची थी उसी में चीजें आती जाएँ और अपनी जगह उसी रिदम में बनाती जाएँ। गीत में गिटार, वायलिन और ताल वाद्यों की धनक के साथ बाँसुरी का अच्छा मिश्रण है। तो सुनिए एक बार ये गीत feel good का अहसास देर तक तारी रहेगा...
मैंने इक किताब लिखी है
उस किताब के पहले सफ़े पर
तेरा नाम तेरा नाम तेरा नाम लिखा है तेरा नाम
दूसरे सफ़े पे मैंने
सीधी साधी बातें लिखीं
लिखी हुई बातों से भी आती है आवाज़
मैंने जो आवाज़ सुनी है
उस आवाज़ के पहले सुरों में
तेरा नाम तेरा नाम तेरा नाम सुना है तेरा नाम
तीसरा सफ़ा क्या लिखा
कहकशाएँ खुलने लगीं
सदियों पुराने सभी राज खुल गए
मुझ पे क़ायनात खुली है
क़ायनात के पहले सिरे पर
तेरा नाम तेरा नाम तेरा नाम खुला है तेरा नाम
वैसे आपको बता दूँ कि सज्जाद पचास की उम्र पार कर चुके हैं फिर भी उनकी आवाज़ की शोखी जस की तस है। कोक स्टूडियो में इस बार उन्होंने अपनी बेटी ज़ाव अली के साथ भी एक नज़्म गाई है। ख़ैर उसकी बात तो फिर कभी फिलहाल अपने "उस" के नाम की मदहोशी में मेरी तरह आप भी डूबिए...
