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गुरुवार, जनवरी 21, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 16 : इश्क़ सच्चा वही..जिसको मिलती नहीं मंज़िलें मंज़िलें Humari Adhoori Kahani ..

पियानो के दिल पर चोट से करते नोट्स..वायलिन की उदास करती धुन और फिर अरिजीत की दर्द की चाशनी में डूबती उतरती आवाज़ के साथ जो गीत आज मैं आपको सुनाने जा रहा हूँ वो है फिल्म हमारी अधूरी कहानी का।

ज़िदगी ज्यूँ ज्यूँ आगे बढ़ती है हमारे रिश्तों की पोटली भी भारी होने लगती है। कई रिश्तों को हम ताउम्र ढोते रहते हैं तो कईयों को चाहे अनचाहे अपने से अलग कर देते हैं। अपने इर्द गिर्द की परिस्थितियाँ हमारे रिश्तों के दायरों को तय करती हैं। ज़ाहिर है इश्क़ के जिस मुकाम की तलाश में हम भटकते हैं वो इन दायरों की तंग गलियों में फँस कर कई बार मंज़िल से दूर ही रह जाता है। कभी विकलता से छटपटाता हुआ तो कभी हालात से समझौता करता हुआ। पर भले ही कहानियाँ दम तोड़ देती हैं इश्क़ वहीं का वहीं रहता है दिल के किसी कोने में सुलगता हुआ।

फिल्म हमारी अधूरी कहानी का ये शीर्षक गीत मन में कुछ ऐसी ही भावनाओं का संचार करता है। इस गीत को लिखा है रश्मि सिंह ने। रश्मि के लिखे गीतों को पहली बार मैंने पिछले साल फिल्म सिटीलाइट्स में सुना था और उनका लिखा नग्मा सोने दो ख़्वाब बोने दो... पिछले साल की संगीतमाला में शामिल भी हुआ था। इसी फिल्म के एक अन्य गीत मुस्कुराने की वज़ह के लिए उन्हें पिछले साल फिल्मफेयर ने सर्वश्रेष्ठ गीतकार के पुरस्कार से नवाज़ भी था।

रश्मि आजकल अपने जोड़ीदार पटकथालेखक व गीतकार विराग मिश्रा के साथ रश्मि विराग के नाम से साझा गीत रच रही हैं। शीर्षक गीत होने की वज़ह से गीतकार द्वय के सामने हर अंतरे को हमारी अधूरी कहानी से इस तरह ख़त्म करने की चुनौती थी कि वो सार्थक भी लगे और गीत की लय भी बनी रहे और उन्होंने गीत में बखूबी ये कर भी दिखाया है।  गीत में एक पंक्ति आती है कि इश्क़ सच्चा वही..जिसको मिलती नहीं मंज़िलें मंज़िलें.. आशावादी इससे सहमत तो नहीं होंगे पर शायद लेखिका ने कहना ये चाहा हो कि दूरियाँ इश्क़ की पवित्रता उसकी प्रगाढ़ता को बनाए रखती हैं।

संगीतकार जीत गाँगुली मुकेश भट्ट मोहित सूरी की फिल्मों  के हाल फिलहाल के अनिवार्य अंग रहे हैं। फिल्म के अपने इकलौते गीत में पियानो, बाँसुरी के साथ उन्होंने वॉयलिन का प्रमुखता से इस्तेमाल किया है पर इस गीत को चार चाँद लगाया है अरिजीत सिंह ने अपनी आवाज़ से। गीत के बोलो के अंदर के भावों को जिस ईमानदारी से उन्होंने पकड़ा है वो दिल को छू जाता है। तो आइए याद करें अपनी अधूरी कहानियों को और सुनें ये संवेदनशील नग्मा..

 

पास आए..
दूरियाँ फिर भी कम ना हुई
एक अधूरी सी हमारी कहानी रही
आसमान को ज़मीन ये ज़रूरी नहीं ...जा मिले.. जा मिले..
इश्क़ सच्चा वही..जिसको मिलती नहीं मंज़िलें मंज़िलें


रंग थे, नूर था जब करीब तू था, इक जन्नत सा था, ये जहान
वक़्त की रेत पे कुछ मेरे नाम सा, लिख के छोड़ गया तू कहाँ
हमारी अधूरी कहानी....

खुश्बुओं से तेरी यूँ ही टकरा गए
चलते चलते देखो ना हम कहाँ आ गए

जन्नतें गर यहीं, तू दिखे क्यूँ नहीं, चाँद सूरज सभी है यहाँ
इंतज़ार तेरा सदियों से कर रहा, प्यासी बैठी है कब से यहाँ
हमारी अधूरी कहानी

प्यास का ये सफर खत्म हो जायेगा
कुछ अधूरा सा जो था पूरा हो जायेगा

झुक गया आसमान, मिल गए दो जहान, हर तरफ है मिलन का समाँ
डोलियां हैं सजी, खुशबुएँ हर कहीं, पढ़ने आया ख़ुदा ख़ुद यहाँ
हमारी अधूरी कहानी... 


वार्षिक संगीतमाला 2015

रविवार, जनवरी 11, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान संख्या 20 : सोने दो, ख्वाब बोने दो, जागेंगे, फिर थामेंगे, कोई वजह जीने की ..

वार्षिक संगीतमाला का पहला चरण पूरा कर आज आ पहुँचे हैं हम प्रथम बीस गीतो के दरवाज़े पर, जहाँ से झाँक रहा है फिल्म सिटीलाइट्स का ये नग्मा। पर इससे पहले मैं इस गाने की बात करूँ, ये बताना जरूरी है कि Citylights एक ऐसे विस्थापित की कहानी है जो राजस्थान के एक गाँव में सब कुछ खो कर मुंबई की महानगरी में अपने परिवार के साथ जीवन की नैया को बीच भँवर से किनारे तक ला पाने में संघर्षरत है। ये गीत महानगरीय ज़िदगी की तीखी सच्चाइयों से रूबरू हुए नायक की आंतरिक पीड़ा को व्यक्त करता है।


इस गीत में एक तड़प है, एक बेचैनी है। बेबस आँखों से अपने सपनों को हाथों से फिसलते देखने का दर्द है। महानगर की भीड़ में अपने अकेले होने का अहसास है। नवोदित गीतकार रश्मि सिंह जिन्हें शायद पहली बार इतने बड़े कैनवास पर ये जिम्मेदारी सौंपी गई है ने फिल्म की परिस्थितियों से पूरा न्याय करते वो शब्द गढ़े हैं जो दिल में एक चुभन, एक टीस सी पैदा करते हैं। जब मैंने इस गीत का मुखड़ा सोने दो, ख्वाब बोने दो पहली बार सुना  तो मुझे गुलज़ार की वो चार पंक्तियाँ याद आ गयीं जो उन्होंने फिल्म गुरु के लिए इस्तेमाल की थीं..

जागे हैं देर तक हमें कुछ देर सोने दो
थोड़ी सी रात और है सुबह तो होने दो
आधे-अधूरे ख़्वाब जो पूरे न हो सके
इक बार फिर से नींद में वो ख़्वाब बोने दो

रश्मि गुलज़ार के इसी ख्याल को पकड़कर आगे कहती हैं..  जागेंगे, फिर थामेंगे, कोई वजह जीने की। पर गीत की की मेरी सबसे प्रिय पंक्ति वो है जिसमें रश्मि मन के बारे में कहती हैं ....चाँद को मुट्ठी में भरने को, करता रोज़ जतन..प्यासे से, इस पंछी को, कोई नदी मिलने दो ना....। अपने दिल पर हाथ रखकर बताइए क्या आपने अपने जीवन में चंदा रूपी उन सपनीली ख्वाहिशों का पीछा नहीं किया जो शायद आपकी कभी होने वाली ही नहीं थी। सच तो ये है कि हम सब के अंदर वो पखेरू है जो मुक्त आकाश में अपने पंखों को फड़फड़ाते हुए सपनों की उस बहती नदी का स्पर्श पाना चाहता है, उसमें डूबना चाहता है।

जैसा कि सुनो ना संगमरमर के बारे में बात करते हुए आपको बताया था भट्ट परिवार से जुड़ी फिल्मों में संगीतकार जीत गाँगुली आजकल एक अनिवार्य हिस्सा बने हुए हैं। अब जहाँ जीत रहेंगे वहाँ अरिजित कहाँ दूर रह सकते हैं :)। अरिजित की गायिकी जीत को कितनी पसंद है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस फिल्म के तीनों एकल गीत अरिजित ने ही गाए हैं। जीत गाँगुली ने इस गीत के लिए जो संगीत संयोजन किया है उसमें पश्चिमी और शास्त्रीय संगीत के तत्त्व हैं। गीत के मुखड़े के पहले और बाद में बजती गीत की Signature tune गीत के उदासी भरे मूड को परिभाषित करती है। दूसरे अंतरे के बाद गीत के अंत में शास्त्रीय सरगम के साथ इसी धुन के खूबसूरत संगम से गीत का समापन होता है। तो आइए अरिजित की आवाज़ में सुनते हैं ये संवेदनशील नग्मा..


सोने दो, ख्वाब बोने दो
जागेंगे, फिर थामेंगे, कोई वजह जीने की
सोने दो...

परछाई के पीछे पीछे भाग रहा है मन
चाँद को मुट्ठी में भरने को, करता रोज़ जतन
प्यासे से, इस पंछी को, कोई नदी मिलने दो ना
सोने दो...

इतने सारे चेहरे हैं और तन्हा सब के सब
तेरे शहर का, काम है चलना यूँ बेमतलब
चेहरों के, इस मेले में, अपना कोई मिलने दो ना
सोने दो...

   

वार्षिक संगीतमाला 2014
 

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