जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
2023 के बेहतरीन गीतों की इस वार्षिक संगीतमाला में अगला गीत है एक sequel से जो कि अंत अंत में आकर इस गीतमाला में शामिल हुआ है। ये गीत है फिल्म गदर 2 का।
आज से दो दशक पहले जब फिल्म गदर रिलीज़ हुई थी तो फिल्म के साथ-साथ उसके संगीत में भी काफी धमाल किया था। उड़ जा काले कावां कह लीजिए या फिर मैं निकला गड्डी लेकर तो जबरदस्त हिट हुए ही थे, साथ ही साथ मुसाफ़िर जाने वाले और आन मिलो सजना ने तो दिल ही को छू लिया था। इस फिल्म के लिए उदित नारायण की गायकी को आज तक सराहा जाता है।
इसकी पुनरावृत्ति गदर दो में होनी तो मुश्किल ही थी फिर भी संगीतकार मिथुन ने एक ईमानदार कोशिश जरूर की। फिल्म के दो गीत तो पुरानी फिल्म से ही ले लिए गए पर दो-तीन गीत और जोड़े गए और उनमें एक गीत ऐसा जरूर रहा जिसका मुखड़ा गुनगुनाना मुझे अच्छा लगता है। ये गीत है दिल झूम झूम जाए और इसके बोल लिखे हैं सईद क़ादरी साहब ने जो कि बतौर गीतकार तीन दशकों से सक्रिय हैं और मिथुन की संगीतबद्ध फिल्मों में अक्सर नज़र आते हैं।
गीत का मुखड़ा कुछ यूं है
ये शोख़ ये शरारत, ये नफ़ासत नज़ाकत बहुत खूबसूरत हो आप सर से पांव तक दिल झूम झूम, दिल झूम झूम, दिल झूम झूम जाए तुम्हें हूर हूर, तुम्हें हूर हूर, हां, हूर सा ये पाए दिल झूम झूम, दिल झूम झूम, दिल झूमता ही जाए
अब अगर गीत रूमानी तबीयत का हो तो आज की तारीख़ में लगभग हर संगीतकार अरिजीत पर सबसे ज्यादा विश्वास रखते हैं । इसमें तो कोई शक ही नहीं कि अरिजीत अच्छी धुनों को अपनी गायिकी से और कर्णप्रिय बना देते हैं। अब देखिए ये गीत आपको झुमा पता है या नहीं
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
संगीतमाला की दूसरी पायदान पर एक बार फिर है प्रीतम और अरिजीत की जोड़ी। फर्क सिर्फ इतना है कि इस दफ़ा गीतकार का किरदार सँभाला है सईद क़ादरी ने और क़ादरी साहब के बोल ही थे जो इस गीत कौ तीसरी या चौथी सीढ़ी से खिसकाकर इस साल का रनर अप बनाने में सफल हुए। ये गीत है फिल्म लूडो का हरदम हमदम।
जैसा कि मैं पहले भी कह चुका हूँ कि अनुराग बसु और प्रीतम की दोस्ती उनकी साझा फिल्मों में कमाल की केमेस्ट्री पैदा करती है। जग्गा जासूस और बर्फी और उसके पहले Gangster और Life In a Metro जैसी फिल्मों में इनके संगीत का स्वाद आप चख ही चुके होंगे।
लूडो के गाने भी बेहद पसंद किए गए। हरदम हमदम की धुन प्रीतम ने अनुराग को बरसों पहले सुनाई थी। अनुराग ने इसे सुनते ही ये वादा ले लिया था कि वो इसे अपनी किसी फिल्म में शामिल करेंगे। वो मौका आया लूडो में। प्रीतम का कहना था कि लूडो जैसी क्राइम थ्रिलर में ढेर सारे गीतों की जरूरत नहीं थी पर अनुराग बसु की कोई कहानी गीतों के बिना दौड़ ही नहीं सकती सो लूडो के लिए चार गीत बनाए गए।
प्रीतम की जैसी आदत है उन्होंने हरदम हमदम की पुरानी धुन को अलग अलग संगीत संयोजन में बाँधा। प्रीतम ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि इस गीत के नौ वर्जन उन्होंने तैयार किए थे पर उनमें अनुराग को जँचा सबसे पहला वाला जिसे फिल्म वर्सन के नाम से जाना गया हालांकि फिल्म के प्रमोशन के लिए झटक मटक वाले वर्सन का इस्तेमाल किया गया।
राजस्थान के जोधपुर से ताल्लुक रखने वाले सईद क़ादरी पिछले दो दशकों से हिंदी फिल्म जगत में सक्रिय हैं। आपको याद होगा कि सईद क़ादरी ने महेश भट्ट की फिल्म जिस्म के आवारापन बंजारापन से हिंदी फिल्मों की दुनिया में क़दम रखा था। मर्डर में उनके गीत भींगे होठ तेरे और कहो ना कहो ने काफी सुर्खियाँ बटोरी थीं। 2007 में उनका गीत जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए, जितने भी मौसम दिए...सब नम दिए पहली बार किसी संगीतमाला का हिस्सा बना। फिर 2011 में Murder 2 का फिर मोहब्बत करने चला है तू और 2012 में बर्फी का गीत फिर ले आया दिल मजबूर क्या कीजे ने मेरा दिल जीता। पर उसके बाद क़ादरी साहब को आठ साल लगे अपने किसे लिखे गीत के ज़रिए इस संगीतमाला में शिरकत करने के लिए।
सईद क़ादरी
अब इस रूमानी गीत के बारे में क्या कहा जाए पूरा गीत ही ऐसा है कि जिसे किसी भी को अपने खास के लिए गाने का दिल करेगा। सिर्फ इतना जरूर कहूँगा कि मुझे इसके दूसरे अंतरे की मुलायमियत बेहद पसंद आई। कितना प्यारा लिखा क़ादरी साहब ने दिल चाहे हर घड़ी तकता रहूँ तुझे....जब नींद में हो तू, जब तू सुबह उठे....ये तेरी ज़ुल्फ़ जब चेहरा मेरा छुए......दिल चाहे उंगलियाँ उनमें उलझी रहें। बोलों के आलावा प्रीतम की धुन और अरिजीत की गायिकी तो बेहतरीन है ही।
लूडो में चार रंग की गोटियों की तरह चार समानांतर कहानियाँ चलती हैं और कहानियों के किरदार के आपसी प्रेम को एक साथ जोड़ कर ये गीत फिल्माया गया है। तो आइए पहले सुने इस गीत का वो वर्जन जो फिल्म के प्रमोशन में इस्तेमाल हुआ। गीत की आरंभिक धुन में गिटार प्रमुखता से बजता है। बीच में सरोद और सितार की भी मधुर ध्वनि सुनाई देती है। अंतरे में प्रीतम ने प्रमोशन वाले वर्जन में डांस की रिदम डाली है तो फिल्म वर्सन में इस प्रभाव को टोन डाउन किया गया है।
इस गीत के संगीत में एक मस्ती है और बोलों में पुराने गीतों सा सौंदर्य और मिठास जो इसे अलहदा बनाती है।
ये ली है मेरी आँखों ने, क़सम ऐ यार रखेगी तुझे ख़्वाब में, हमेशा, हरदम हरपल हरशब हमदम-हमदम
कितना हूँ चाहता कैसे कहूँ तुझे साया तेरा दिखे तो चूम लूँ उसे जिस दिन तुझे मिलूँ, दिल ये दुआ करे दिन ये ख़त्म ना हो, ना शाम को ढले रहे है बस साथ हम, तू रहे पास रखूँ मैं तुझे बाहों में हमेशा हरदम
हर पल, हर शब, हमदम-हमदम
तो आइए सबसे पहले सुनें इस गीत का प्रमोशनल वर्सन
फिल्म वर्जन में संगीत संयोजन तो बदलता ही है, साथ ही गीत का दूसरा अंतरा भी सुनाई देता है।
दिल चाहे हर घड़ी तकता रहूँ तुझे जब नींद में हो तू, जब तू सुबह उठे ये तेरी ज़ुल्फ़ जब चेहरा मेरा छुए दिल चाहे उंगलियाँ उनमें उलझी रहें सुन ऐ मेरे सनम, सुन मेरी जान तू है एहसास में
हमेशा, हरदम हर पल, हर शब, हमदम-हमदम
अरिजीत के आलावा इस गीत को प्रीतम ने शिल्पा राव से भी गवाया जो शायद फिल्म में इस्तेमाल नहीं हुआ।
लो देते हैं हम तुम्हें
कसम फिर यार
बहेंगे हम अश्क में
आँखों से हर दम हमदम
हरदम हमदम हरदम
कितना हूँ...ना शाम को ढले
छाने ये दिल बात में
तेरे ही जज़्बात में
सजना मेरी बातों में
तुम ही तो हर दम हमदम
हरदम हमदम हरदम
अब वार्षिक संगीतमाला की बस आख़िरी पायदान बची है जो निश्चय ही अपनी गुणवत्ता में बाकी सब गीतों से कहीं ऊपर है यानी उसे चुनते हुए मुझे पिछले साल के किसी और गीत का दूर दूर तक भी ख़्याल नहीं आया। तो बताइए ये गीत कैसा लगा और कौन है इस साल का सरताज गीत?
वार्षिक संगीतमाला की तेरहवीं पॉयदान पर है एक बार फिर बर्फी फिल्म का एक और रूमानी नग्मा जिसे लिखा है सईद क़ादरी साहब ने। बतौर गीतकार पिछले छः सालों में सईद कादरी के लिखे गीत चार बार वार्षिक संगीतमालाओं की शोभा बढ़ा चुके हैं। तेरे बिन मैं कैसे जिया (2006), तो फिर आओ मुझको सताओ (2007), ज़िदगी ने ज़िदगी भर गम दिए जितने भी मौसम दिए सब नम दिए (2007) और पिछले साल दिल सँभल जा ज़रा फिर मोहब्बत करने चला है तू (2011)। पर क्या आप जानते हैं कि रोमांटिक गीतों में अपनी अलग पहचान बनाने वाला ये गीतकार पेशे से एक बीमा एजेंट है?
अस्सी के दशक में पहली बार काम की तलाश में सईद क़ादरी जोधपुर से मुंबईआए तो वो महेश भट्ट से मिले। महेश भट्ट को उनका काम तो पसंद आया पर तब तक उन्होंने अपने पारिवारिक बैनर तले फिल्में बनानी शुरु नहीं की थीं सो क़ादरी खाली हाथ ही वापस लौट आए। पर 'जिस्म' के गीतों के लिए महेश भट्ट ने सईद क़ादरी को जो मौका दिया उसके बाद उन्हें काम के लिए फिर दौड़ना नहीं पड़ा।
क़ादरी अपना ज्यादातर समय अभी भी अपने पेशे को देते हैं। उनके बारे में मशहूर है कि वो अपने गीत संगीतकारों को जोधपुर में रहते हुए ही फोन पर ही लिखा देते हैं। उनके लिए गीत लिखना एक शौक़ है। साहिर जैसे शायर उनके आदर्श रहे हैं और उनका मानना है कि ऐसे महान शायरों को पढ़कर उन्हें जो आनंद मिला है उसे वो अपने गीतों में ढाल सकें तो उससे बेहतर उनके लिए कुछ भी नहीं है। प्रीतम की फिल्मों के लिए सईद क़ादरी पहले भी लिखते रहे हैं और इस फिल्म में लिखा उनका इकलौता नग्मा उसमें व्यक्त भावनाओं के लिए बेहद सराहा गया।
शायद ही कोई शख़्स होगा जो प्रेम जैसी भावना से दो चार ना हुआ हो। पर प्रेम होना एक बात है और अपने दिल की बात को हिम्मत करके अपने प्रेमी तक पहुँचाना दूसरी। एकतरफा प्रेम के किस्से किसने नहीं सुने। कहीं दिल में एक आँच जल चुकी होती है पर दूसरा शख़्स उसकी तपन का अंदाज़ ही नहीं लगा पाता। सईद कादरी साहब अपने इस गीत में यही कहना चाहते हैं कि प्रेम की जो आस तुमने अपने मन में जगाई है उसे अधूरा मत छोड़ो। वैसे भी प्यार में डूबा मन तुम्हें कहाँ इसकी इज़ाजत देने वाला है?
मुखड़े के पहले का प्रीतम द्वारा दिया संगीत मन में एक शीतलता सा भरता है। गीत के मिज़ाज को ध्यान में रखते हुए प्रीतम ने संगीत को अर्थपूर्ण बोलों पर चढ़ने नहीं दिया है। वैसे तो इस गीत को रेखा भारद्वाज, अरिजित सिंह और शफक़त अमानत अली खाँ तीनों से गवाया गया है पर मुझे रेखा जी का वर्जन ज्यादा पसंद आता है तो आइए सुनते हैं उनकी आवाज़ में ये नग्मा...
फिर ले आया दिल मजबूर क्या कीजे रास न आया रहना दूर क्या कीजे दिल कह रहा उसे मुकम्मल कर भी आओ वो जो अधूरी सी बात बाकी है वो जो अधूरी सी याद बाकी है
(मुकम्मल - पूरा करना)
करते हैं हम आज कुबूल क्या कीजे हो गयी थी जो हमसे भूल क्या कीजे दिल कह रहा उसे मयस्सर कर भी आओ वो जो दबी सी आस बाकी है वो जो दबी सी आँच बाकी है
(मयस्सर - उपलब्ध, प्राप्त)
किस्मत को है ये मंज़ूर क्या कीजे आए मिलते रहे हम बादस्तूर क्या कीजे दिल कह रहा है उसे मुसलसल कर भी आओ वो जो रुकी सी राह बाकी है वो जो रुकी सी चाह बाकी है
(मुसलसल - सिलसिलेवार )
वार्षिक संगीतमाला की अगली तीन पॉयदानों की खासियत है कि उन पर विराजमान गीत न केवल बेहद सुरीले हैं पर रूमानियत के अहसास से लबरेज भी। ये गीत ऐसे हैं जिनकी धुन अगर आप एक बार भी सुन लें तो उसे गुनगुनाने के लोभ से आप अपने आप को शायद ही ज्यादा देर तक दूर रख पाएँ। इसी कड़ी में आज आपके सामने है युवा संगीतकार मिथुन शर्मा का संगीतबद्ध मर्डर 2 का ये नग्मा।
वार्षिक संगीतमालाओं में पहले भी तीन दफ़े शिरक़त करने वाले 26 वर्षीय मिथुन ने ग्यारह साल की उम्र से नामी संगीत संयोजक नरेंद्र शर्मा (जो उनके पिता भी हैं) से संगीत सीखना शुरु किया था। बाद में उन्होंने पियानो और की बोर्ड की भी शिक्षा ली। हिंदी फिल्मों की दुनिया में 'बस एक पल' से शुरुआत करने वाले मिथुन अनवर, दि ट्रेन. लमहा जैसी चर्चित फिल्मों में संगीतनिर्देशन कर चुके हैं। मर्डर 2 के इस गीत में मिथुन का साथ दिया है गीतकार सईद क़ादरी और युवा गायक मोहम्मद इरफ़ान ने।
मिथुन के समव्यस्क हैदराबाद से ताल्लुक रखने वाले मोहम्मद इरफ़ान अली को भी कमल खान की तरह ही रियालटी शो की पैदाइश माना जा सकता है। वैसे तो इरफ़ान एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं पर अमूल स्टार वॉयस आफ इंडिया 2007 के प्रतिभागी के तौर पर उन्हें पहली बार संगीतप्रेमियों के बीच बतौर गायक की पहचान मिली। उस प्रतियोगिता में तो इरफ़ान सफ़ल नहीं हुए पर गायिकी की दुनिया में प्रवेश करने के लिए वे पूरी मेहनत के साथ लग गए।
एक कार्यक्रम में एस पी बालासुब्रमणियम उनके गायन से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने वादा किया कि वे रहमान से उनकी गायिकी की चर्चा करेंगे। इरफ़ान बताते हैं कि इस कार्यक्रम के डेढ़ साल बाद एक दिन सचमुच रहमान साहब का फोन आ गया और इस तरह उनकी आवाज़ फिल्म रावण के चर्चित गीत बहने दे... का हिस्सा बन गई। इरफ़ान की आवाज़ की बनावट या texture बहुत कुछ आज के लोकप्रिय पाकिस्तानी गायकों से मिलता है। इस बात का अंदाजा आपको इस गीत को सुनने से मिल जाएगा।
गीत की शुरुआत गिटार की मधुर धुन से होती है जिसमें मन रम रहा होता ही है कि इरफ़ान की आवाज़ गूँजती सी कानों में पड़ती है।
जब जब तेरे पास मै आया इक सुकून मिला
जिसे मैं था भूलता आया वो वज़ूद मिला
जब आए मौसम ग़म के तुझे याद किया
जब सहमे तनहापन से तुझे याद किया
दिल सँभल जा ज़रा, फिर मोहब्बत करने चला है तू
दिल यहीं रुक जा ज़रा, फिर मोहब्बत करने चला है तू
मिथुन ने गिटार के संयोजन में गीत का मुखड़ा बड़ी खूबसूरती से रचा है और जब इरफ़ान गीत की पंच लाइन दिल सँभल जा ज़रा, फिर मोहब्बत करने चला है तू तक पहुँचते हैं, सँभला हुआ दिल भी गीत के आकर्षण में होश खो बैठता है। मिथुन के इंटरल्यूड्स शानदार हैं। अंतरों में सईद क़ादरी के बोल और बेहतर हो सकते थे पर मिथुन का संगीत और इरफ़ान की गायिकी इस कमी को महसूस होने नहीं देती। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसे फिल्माया गया है इमरान हाशमी पर..
जैसे-जैसे वार्षिक संगीतमाला की ऊपर की पायदानों की ओर रास्ता खुल रहा है गीतों को क्रम देने की मशक्कत बढ़ती जा रही है। एक बार क्रम बना लेने के बाद मैं बार-बार उन गीतों को सुनता रहता हूँ और फिर लगता है कि नहीं, इस गीत को कुछ और ऊपर बजना चाहिए । इसी वज़ह से २० वीं पायदान के गीत ने पाँच पायदानों की छलाँग लगा कर रुख किया है १५ वीं पायदान का :)। और २० वीं पायदान पर सीधे विराज रहा है ये नया गीत।
इस संगीतमाला में ये दूसरी बार ऍसा हुआ है कि किसी पायदान पर संगीतकार ही गायक का किरदार सँभाल रहे हैं। और मजे की बात ये है कि इस युवा संगीतकार का आज यानि ११ जनवरी को २२ वाँ जन्मदिन है.
जी हाँ दोस्तों मैं बात कर रहा हूँ मिथुन शर्मा की जिन्होंने पहली बार मेरी २००६ की संगीतमाला के ५वें नंबर के गीत 'तेरे बिन मैं कैसे जिया....' के रूप में प्रवेश किया था और जिनके फिल्म अनवर के दो गीत 'मौला मेरे' और 'तो से नैना लागे सांवरे' २००६ की मेरी सूची में आते-आते रह गए थे। खैर मिथुन प्रतिभावान हैं इसमें तो कोई शक नहीं है पर ये प्रतिभा बहुत कुछ उन्हें खानदानी विरासत के रूप में मिली है। वे संगीतज्ञ नरेश शर्मा के पुत्र और प्यारेलाल(लक्ष्मीकांत प्यारेलाल वाले) के भतीजे हैं।
बीसवीं पायदान पर जो गीत मैंने चुना है वो फिल्म 'दि ट्रेन' से है। मिथुन का गाने का अंदाज बहुत कुछ आतिफ असलम जैसा है और बहुधा लोग उनकी आवाज़ को सही नहीं पकड़ पाते हैं। पर २० वीं पायदान पर इस गीत के होने की वज़ह सईद कादरी के बोल भी हैं। गीत का ये अंतरा मुझे सबसे पसंद है
जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए
जितने भी मौसम दिए...सब नम दिए
इक मुकम्मल कशमकश है जिंदगी
उसने हमसे की कभी ना...दोस्ती
जब मिली, मुझको आँसू के, वो तोहफे दे गई
हँस सके हम, ऍसे मौके कम दिये
जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए
जितने भी मौसम दिए...सब नम दिए
तो सुनिए २० वीं पायदान का ये गीत जो मौसम के नाम से भी जाना जाता है
और हाँ चलते-चलते एक बात और इस गीतमाला के आगे के सारे गीतों में आप मनभावन गीत का टैग देखेंगे यानि ये ऍसे गीत हैं जिनका ना केवल संगीत पर उनके बोल भी मुझे दिल से छूते हैं।
इस संगीतमाला के २२ वें नंबर का गीत एक अलग सा मूड लिए हुए है। इसे गाया है पाकिस्तान के नवोदित गायक मुस्तफा ज़ाहिद ने।
मन मायूस हो और दिल बेहद भरा भरा सा तो अपनी आंतरिक पीड़ा बाहर निकालने की छटपटाहट हृदय को व्याकुल कर ही देती है और अपनी हताशा को निकलने के लिए ऍसे ही स्वर प्रस्फुटित होते हैं। बड़ी बखूबी निभाया है मुस्तफा ने इसे। दरअसल मुस्तफा ज़ाहिद ने ये गीत अपने एलबम Rozen-e-deewar (राक्सन) में खुद रचा था और वो २००६ में पाकिस्तान में बेहद लोकप्रिय हुआ था।
राहत फतेह अली खां और उसके बाद आतिफ असलम के संगीत को भारत के लोगों के बीच पहुँचाने वाले निर्देशक महेश भट्ट ने जब मुस्तफा ज़ाहिद का ये एलबम सुना तो उसे वो अपनी फिल्म 'आवारापन' में लेने के लिए तैयार हो गए। संगीत को प्रीतम ने फिर से पुनः संयोजित किया और सईद कादरी ने भी बोलों में और असर लाने के लिए थोड़े बदलाव किए। मैंने इस गीत के दोनों रूप आरंभिक और परिवर्त्तित दोनों सुने हैं और उस हिसाब से प्रीतम और कादरी साहब ने गीत को भावनाओं को और पुरजोर ढ़ंग से रखा है।
पर गीत के असली हीरो मुस्तफा ज़ाहिद हैं। २५ वर्षीय मुस्तफा को जब ये गीत गाने को कहा गया तो उन्होंने स्टूडिओ की पूरी बत्तियाँ बंद करने की मांग की। ज़ाहिद कहते हैं कि फिल्म के निर्देशक मोहित सूरी ने कहा कि ये गीत फिल्म के climax में आता है और तुम्हें इसे इस तरह गाना है कि इसकी हर पंक्ति से वो दर्द उभरे जो नायक का किरदार महसूस कर रहा है। तो मुस्तफा ज़ाहिद ने ये गाना घने अंधकार में गाया और जब वो रिकार्डिंग स्टूडियो से बाहर निकले तो उनकी आँखों की लाली किसी से छुप नहीं रही थी।
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ
दिल बादल बने, आँखें बहने लगें
आहें ऍसे उठें जैसे आँधी चले
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ
आ भी जाओ.....
ग़म ले जा तेरे, जो भी तूने दिए
या फिर मुझको बता, इनको कैसे सहें
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ,
आ भी जाओ, आ भी जाओ,......
अब तो इस मंज़र से, मुझको चले जाना है
इन राहों पे मेरा यार है
उन राहों को मुझे पाना है
तो फिर आओ मुझको सताओ
तो फिर आओ मुझको रुलाओ,
आ भी जाओ, आ भी जाओ......
तो जनाब आप भी शांत माहौल में इस गीत को सुनें इसका असर खुद-ब-खुद महसूस करेंगे
पिछला हफ्ता कार्यालय के दौरों में बीता । नतीजा ये कि इस गीतमाला की गाड़ी वहीं की वहीं रुक गई । अब इससे पहले कि फिर बाहर निकलूँ अपनी गाड़ी को ५ वीं सीढ़ी तक पहुँचा ही देता हूँ। आज का ये गीत यहाँ इसलिए है क्योंकि इसे जिस अंदाज में गाया गया है वो अपनेआप में काबिले तारीफ है । 'बस एक पल' के इस गीत के असली हीरो आतिफ असलम हैं। स्कूल के दिनों में आतिफ पढ़ाई के बाद अपना सारा समय क्रिकेट के अभ्यास में लगाते थे। उनका ख्वाब था पाकिस्तान की टीम में एक तेज गेंदबाज की हैसियत से दाखिल होना । अपनी लगन से वो कॉलेज टीम में भी आ गए । कॉलेज के जमाने में ही दोस्तों के सामने ये राज खुला कि उनकी आवाज भी उनकी गेंदबाजी की तरह धारदार है । सो फिर क्या था दोस्तों ने उनका नाम एक संगीत प्रतियोगिता में डलवा दिया । फिर तो जो हुआ वो अब इतिहास है। उसके बाद काँलेज की हर संगीत प्रतियोगिता वो जीतते रहे । फिर जल , आदत आदि एलबमों की सफलता के बाद वो संगीत से पूरी तरह जुड़ गए । फिर जहर के लोकप्रिय ट्रैक ने उन्हें भारत में भी प्रसिद्धि दिला दी । आतिफ की गायिकी में सबसे खास बात ये है कि ये ऊपर के सुर सहजता से लगा लेते हैं । सईद कादरी ने प्रेम और फिर विरह की भावना को केन्द्र बिन्दु रख कर ये गीत लिखा है और आतिफ ने अपनी आवाज द्वारा उस विरह वेदना को बखूबी उभारा है । तेरे बिन मैं यूँ कैसे जिया कैसे जिया तेरे बिन लेकर याद तेरी, रातें मेरी कटीं मुझसे बातें तेरी करती है चाँदनी तनहा है तुझ बिन रातें मेरी दिन मेरे दिन के जैसे नहीं तनहा बदन, तनहा है रुह, नम मेरी आँखें रहें आजा मेरे अब रूबरू जीना नहीं बिन तेरे तेरे बिन .... कबसे आँखें मेरी, राह में तेरे बिछीं भूले से ही कहीं, तू मिल जाए कहीं भूले ना.., मुझसे बातें तेरी भींगी है हर पल आखें मेरी क्यूँ साँस लूँ, क्यूँ मैं जियूँ जीना बुरा सा लगे क्यूँ हो गया तू बेवफा, मुझको बता दे वजह तेरे बिन....
मिथुन द्वारा संगीतबद्ध इस गीत को आप यहाँ और यहाँ सुन सकते हैं ।
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।