जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
वार्षिक संगीतमाला 2024 के 25 बेहतरीन गीतों की फेरहिस्त में आज बारी है उस गीत की जिसे संगीतबद्ध किया एक बार फिर से संगीतकार जोड़ी सचिन जिगर ने, लिखा भी पिछले गीत की तरह अमिताभ भट्टाचार्य ने पर आवाज़ (वो जो इस गीतमाला में पहली बार सुनाई देगी) है विशाल मिश्रा की। यह गीत है फिल्म स्त्री 2 का और यहां बात हो रही है खूबसूरती की।
हिंदी फिल्म जगत में नायिका की खूबसूरती पर तमाम गीत लिखे गए हैं। हर गीत में स्त्री की सुंदरता के बारे में नए नए विचार..नई-नई काव्यमय कल्पनाएं।
1968 में इन्दीवर ने फिल्म सरस्वतीचंद के गीतों के लिए बेहद प्यारे शब्द रचे थे। शुद्ध हिंदी में वर्णित उनका सौदर्य बोध सुनते ही बनता था। क्या मुखड़ा था ...चंदन सा बदन, चंचल चितवन धीरे से तेरा ये मुस्काना...मुझे दोष ना देना जगवालों, हो जाऊँ अगर मैं दीवाना.
इस गीत के अंतरे भी सौंदर्य प्रतिमानों से भरे पड़े थे । मसलन पहला अंतरा कुछ यूं था। ये काम कमान भंवे तेरी, पलकों के किनारे कजरारे...माथे पर सिंदूरी सूरज, होंठों पे दहकते अंगारे....साया भी जो तेरा पड़ जाए....आबाद हो दिल का वीराना। लगभग सत्तर सालों बाद भी ये गीत कानों में वैसी ही मिसरी घोल देता है।
नब्बे के दशक की शुरुआत में 1942 A Love Story फिल्म में जावेद अख्तर साहब का वह गीत आपको जरूर याद होगा जिसमें उन्होंने एक लड़की की खूबसूरती को इतने सारे बिंबों में बांधा था कि कहना ही क्या। वह गीत था एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा। उस गीत मैं एक कन्या की तुलना एक खिलते गुलाब, शायर के ख़्वाब, उजली किरण, वन में हिरण, चांदनी रात, सुबह का रूप, सर्दी की धूप जैसे 21 रूपकों से की गई थी। गाना सुनते हुए उस वक्त दिल करता था कि रूपकों का ये सिलसिला चलता रहे।
वैसे खूबसूरत शब्द को लेकर नीलेश मिश्रा ने फिर 2005 में फिल्म रोग के लिए लिखा कि खूबसूरत है वो इतना सहा नहीं जाता..कैसे हम ख़ुद को रोक लें रहा नहीं जाता....चांद में दाग हैं ये जानते हैं हम लेकिन....रात भर देखे बिना उसको रहा नहीं जाता
एम एम कीरावनी के संगीत और उदित नारायण की अदायगी ने तब इस गीत को खासी लोकप्रियता दिलवाई थी। पिछले साल अमिताभ भट्टाचार्य ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए चौदहवीं पायदान के इस गीत के लिए क्या खूब लिखा कि
धूप भी तेरे रूप के सोने पे, कुर्बान हुई है तेरी रंगत पे खुद, होली की रुत हैरान हुई है तुझको चलते देखा, तब हिरणों ने सीखा चलना तुझे ही सुनके कोयल को, सुर की पहचान हुई है तुझसे दिल लगाए जो, उर्दू ना भी आए तो शख़्स वो शायरी करने लगता है कि कोई इतना खूबसूरत....कैसे हो सकता है?
अब कोयल और हिरण तो बेजुबान ठहरे वर्ना अमिताभ पर मानहानि का मुकदमा जरूर दायर करते। वैसे मजाक एक तरफ अमिताभ के लिखे बोलों में एक नयापन तो है ही जो सुनने में अच्छा लगता है।
सचिन जिगर यहां संगीत संयोजन में एक पाश्चात्य वातावरण रचते हैं जिसमें थिरकने की गुंजाइश रह सके हालांकि फिल्म की कहानी से इसका कोई लेना देना नहीं है। दरअसल ये गीत फिल्म के मूल कथानक के समाप्त होने के बाद आता है जहां वरुण धवन अतिथि कलाकार के रूप में पहली बार अपनी शक्ल दिखाते हैं। आजकल फिल्मी गीतों के बीच कोरस का प्रचलन बढ़ गया है। सचिन जिगर भी इसी शैली का यहां सफल अनुसरण करते दिखते हैं।
रही गायिकी की बात तो विशाल मिश्रा का गाने का अपना एक अलग ही अंदाज है। वह हर गाना बड़ा डूब कर गाते हैं। युवाओं का उनका ये तरीका भाता भी है। कबीर सिंह, एनिमल और हाल फिलहाल में सय्यारा में उनके गाए गीत काफी लोकप्रिय हुए हैं। ये अंदाज़ रूमानी गीतों पर फबता भी है पर बार बार वही तरीका अपनाने से एक एकरूपता भी आती है जिससे विशाल को सावधान रहना होगा।
तो आइए सुनते है ये गीत जिसे फिल्माया गया है राज कुमार राव, वरुण धवन और श्रद्धा कपूर पर
खूबसूरती पर तेरी, खुद को मैंने कुर्बान किया मुस्कुरा के देखा तूने, दीवाने पर एहसान किया खूबसूरती पर तेरी, खुद को मैंने कुर्बान किया मुस्कुरा के देखा तूने, दीवाने पर एहसान किया कि कोई इतना खूबसूरत, कोई इतना खूबसूरत कोई इतना खूबसूरत कैसे हो सकता है?
जो देखे एक बार को, पलट के बार-बार वो खुदा जाने, क्यों तुझे देखने लगता है सच बोलूं ईमान से, ख़बर है आसमान से हैरत में चांद भी तुझको तकता है कि कोई इतना खूबसूरत....कैसे हो सकता है?
चलते चलते तो मैं बस आदिल फ़ारूक़ी साहब का ये शेर अर्ज करना चाहूंगा कि
वार्षिक संगीतमाला में अब शीर्ष के सात नग्मे रह गए हैं और उनमें से आज का गीत है फिल्म एनिमल का जिसकी मधुर धुन बनाई व गाया विशाल मिश्रा ने और बोल लिखे राजशेखर ने। यूपी बिहार की इस संगीतकार गीतकार की जोड़ी ने अपने इस गीत के माध्यम से देश विदेश में अपनी सफलता का परचम लहराया। वैसे क्या आपको पता है कि ये पूरा गीत मात्र डेढ घंटे में ही बन कर तैयार हो गया था :) ।
संदीप वांगा ने एनिमल के पहले विशाल के साथ कबीर सिंह में काम किया था। विशाल एक अर्से से संगीत जगत में काम कर रहे थे पर कबीर सिंह के गीत कैसे हुआ कैसे हुआ..इतना जरूरी तू कैसे हुआ को युवाओं ने हाथों हाथ लिया। एक तरह से इस गीत ने विशाल की पहचान फिल्म उद्योग में बना दी।
तीन साल बाद जब विशाल को संदीप ने अपनी नई फिल्म के लिए गाना लिखने के लिए बुलाया तो विशाल ने गीतकार के लिए राजशेखर का नाम सुझाया। राजशेखर का नाम सुझाने के पीछे विशाल के पास दो वज़हें थी। एक तो राजशेखर लिखते बहुत बढ़िया हैं और दूसरी विशेष बात ये कि कभी साथ काम करते हुए राजशेखर ने विशाल से ये कहा था कि अगर मेरा कोई गाना रणवीर पर फिल्माया गया तो कैसा दिखेगा? यानी राजशेखर की दिली तमन्ना थी कि उनका लिखा हुआ कोई गीत रणवीर पर शूट हो। विशाल के ज़ेहन में ये बात रह गई और इस तरह पहली बार राजशेखर की मुलाकात संदीप वांगा से हुई।
पहली सिटिंग में जैसे ही विशाल ने पियानो पर आरंभिक धुन बजाई, संदीप ने गाना अनुमोदित कर दिया और उस धुन पर डेढ़ घंटे के भीतर विशाल ने राजशेखर के साथ मिलकर पूरा गीत तैयार कर लिया।
संदीप वांगा की फिल्में, उनकी चुनी कहानियाँ मुझे नहीं रुचतीं इसलिए ना मैंने कबीर सिंह देखी और न ही एनिमल। पर ये जरूर है कि उनकी फिल्मों का संगीत अलहदा होता है। सतरंगा और पहले भी मैं के अलावा जिस तरह उन्होंने इस फिल्म में रहमान के सदाबहार गीत दिल है छोटा सा छोटी सी आशा की धुन का इस्तेमाल किया वो काबिलेतारीफ़ था।
अगर किसी ने फिल्म ना देखी हो तो उन्हें ये गीत एक एक रूमानी गीत ही लगेगा पर फिल्म में दोनों ही चरित्र के बीच का लगाव सच्चे सहज प्रेम से कोसों दूर है। यही वज़ह है कि नायक राजशेखर के शब्दों में ख़ुद को टटोलता हुआ अपनी भावनाओं को लेकर थोड़ा भ्रमित नज़र आता है।
पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ, पहली दफा ही मिलके लगा तूने छुआ जख्मों को मेरे, मरहम मरहम दिल पे लगा पागल पागल हैं थोड़े, बादल बादल हैं दोनों खुल के बरसे भीगे आ ज़रा मैं अरसे से खुद से ज़रा लापता हूँ तुम्हें अगर मिलूँ तो पता देना खो ना जाना मुझे देखते देखते तू ही ज़रिया, तू ही मंज़िल है या के दिल है, इतना बता
विशाल का मुखड़े के पहले पियानो का टुकड़ा गीत की जान है। बाकी गिटार और ड्रम्स आवाज़ के उतार चढ़ाव के अनुरूप अपनी संगत देते हैं। विशाल संगीतकार तो अच्छे हैं ही, रूमानी गीतों को बहुत डूब कर गाते हैं।
फिल्म संगीत में ऐसा कई बार होता है कि आपके कई बेहतरीन काम नज़रअंदाज़ हो जाते हैं और अचानक ही कोई गीत ऐसा चमक उठता है जिसकी कल्पना भी बनाने वाले ने नहीं की होगी। नेट पर इस गीत को इतना सुना गया कि ये एक समय ये देश विदेश के Music Charts पर ट्रेंड करने लगा था।
राजशेखर तनु वेड्स मनु के ज़माने से ही मेरे मेरे प्रिय गीतकार रहे हैं। तनु वेड्स मनु का रंगरेज़ और कितने दफ़े दिल ने कहा, करीब करीब सिंगल का जाने दे और हाल फिलहाल में उनका मिसमैच्ड में लिखा गीत ऐसे क्यूँ.... कुछ ऐसे नग्मे लगते हैं जिसमें उन्होंने इंसानी रिश्तों की बारीक पड़ताल की है। तनु वेड्स मनु हिट भी हुई पर कमाल देखिए कि उसके तीन साल बाद तक राजशेखर को ढंग का काम नहीं मिला। इसीलिए विशाल कहते हैं कि अपने आप को साबित करने के लिए आपको निरंतर लगे रहना पड़ता है और जब सफलता हाथ लगती है तो पीछे की हुई सारी मेहनत, सारे अच्छे बुरे तजुर्बे काम आते हैं।
राजशेखर ने इस गीत का एक अंतरा और लिखा था जो कि नायिका के मनोभावों को व्यक्त करता है। इसे अपने एक साक्षात्कार में विशाल ने गा के सुनाया था।
तुम्हारे बदन की महक ख़्वाब सी है
मैं चाहूँ कि इसमें ही खोई रहूँ
मैं सुबहों को बाहों में अपनी छुपा के
तेरे साथ यूँ ही मैं सोई रहूँ
पूरे दिन बस तुझे देखते-देखते
पहले भी मैं तुमसे मिली हूँ, पहली दफा ही मिलके लगा तूने छुआ जख्मों को मेरे, मरहम मरहम दिल पे लगा पागल पागल हैं थोड़े, बादल बादल हैं दोनों खुल के बरसे भीगे आ ज़रा
बिना किसी संगीत के भी विशाल की आवाज़ मन को छू जाती है। वैसे बतौर गायक आपको विशाल मिश्रा कैसे लगते हैं?
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
इस संगीतमाला की शुरुआत में मैंने आपको हीमेश रेशमिया की फिल्म हैप्पी हार्डी और हीर के दो गाने सुनाए थे। पहला गीत था आदत और दूसरा तेरी मेरी कहानी । वे दोनों गीत तो बीस के नीचे की पायदानों पर सिमट गए थे।आज बारहवीं पायदान पर इस फिल्म का तीसरा और इस संगीतमाला में शामिल होने वाला आखिरी गीत ले कर आया हूँ जिसे गाया है अरिजीत सिंह और श्रेया घोषाल ने।
ये बात मैंने गौर की है कि प्रीतम की तरह ही हीमेश भी अपने गीतों में सिग्नेचर ट्यून का बारहा इस्तेमाल करते हैं। सिग्नेचर ट्यून मतलब संगीत का एक छोटा सा टुकड़ा जो पूरे गीत में बार बार बजता है। इन टुकड़ों की कर्णप्रियता इतनी ज्यादा होती है कि उसे एक बार सुन लेने के बाद आप उसके गीत में अगली बार बजने का इंतज़ार करते हैं।
एक खूबसूरत आलाप से ये गीत शुरु होता है और फिर पहले गिटार और उसी धुन का साथ देते तबले का जादू गीत के प्रति श्रोता का आकर्षण तेजी से बढ़ा देता है। सिग्नेचर ट्यून की तरह इस गीत की एक सिग्नेचर लाइन भी है जो हर अंतरे के बात लगातार दोहराई जाती है। वो पंक्ति है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा, है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना। इस गीत को लिखने वाले का नाम पढ़ कर मैं चकित रह गया। जी हाँ इस गीत को लिखा है संगीतकार विशाल मिश्रा ने जो संगीतमाला की पिछली पायदान पर गायक की भूमिका निभा रहे थे।
इश्क की भावनाओं से लबरेज इस गीत में विशाल के बिंब और बोलों का प्रवाह देखने लायक है। खासकर शब्दों का दो बार बार दोहराव सुनने में मन को सोहता है।
है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना, है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा, है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना
इश्क़ मज़हब जैसे ख़ुदा, इश्क़ निस्बत जैसे दुआ ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना है इश्क मेरा सरफिरा फ़साना
तेरी आँखों में हम अपनी ज़िन्दगी का हर एक सपना देखते हैं ओ रांझणा ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना है इश्क मेरा सरफिरा फ़साना ...आ आ..
धूप में तुझसे ठंडक, सर्द में तुझसे राहत रूह की तुम शिद्दत, आह की तुम चाहत दवा दवा में तू है, ज़फा ज़फा में तू है सफ़ा सफ़ा में तू है, मेरे ख़ुदा मेरे ख़ुदा इश्क़ सोहबत जैसे वफ़ा, इश्क़ फितरत जैसे नशा ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा है इश्क मेरा सरफिरा फ़साना
अश्कों में तेरी खुशियाँ पल में बस बीती सदियाँ दिन सी ये लगती रतियाँ, खट्टी मीठी ये बतियाँ सबा सबा में तू है, हवा हवा में तू है घटा घटा में तू है मेरे ख़ुदा, मेरे ख़ुदा, मेरे ख़ुदा.. इश्क कुदरत जैसे फ़ना, इश्क़ तोहमत जैसे सज़ा ओ हीरिये मेरी सुन ज़रा है इश्क़ मेरा सरफिरा फ़साना ....
श्रेया घोषाल को इस गीत में दो ही पंक्तियाँ मिली हैं पर उतने में ही वो अपना कमाल दिखा जाती हैं। अब इस मिश्री सी मधुर धुन को अरिजित की आवाज़ का साथ मिले तो गीत कैसे ना पसंद आए। तो आइए सुनते हैं हीमेश, विशाल, श्रेया और अरिजीत के इस सम्मिलित कमाल को जो ऐश्वर्या मजूमदार, ॠतुराज, सलमान शेख और अनु दत्त के कोरस और आलापों से और श्रवणीय हो गया है।
एक महीने का सांगीतिक सफ़र जो हमें ले आया है वार्षिक संगीतमाला के पच्चीस गीतों की फेरहिस्त के ठीक मध्य में। गीतमाला के अगले दोनों गीत मेलोडी और रूमानियत से भरपूर हैं। गीतमाला की तेरहवीं सीढ़ी है पर है फिल्म ख़ुदाहाफिज़ का एक और गीत। ख़ुदाहाफिज़ फिल्म के इस गीत को लिखा और संगीतबद्ध किया है मिथुन शर्मा ने जो फिल्म उद्योग में सिर्फ मिथुन के नाम से जाने जाते हैं। मज़े की बाद ये है कि इसे गाया भी एक संगीतकार ने ही है। जी हाँ, इस गीत की पीछे की आवाज़ है विशाल मिश्रा की जो अपनी संगीतबद्ध रचनाओं को पहले भी आवाज़ दे चुके हैं।
पिछले साल उनका कबीर सिंह में गाया गीत तू इतना जरूरी कैसे हुआ खासा लोकप्रिय हुआ था। जहाँ तक एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं की बात है तो विशाल का फिल्म करीब करीब सिंगल का संगीतबद्ध गीत जाने दे साल 2017 का रनर्स अप गीत रह चुका है। वैसे आपको ताज्जुब होगा कि विशाल एक समय कानून के विद्यार्थी रहे हैं और उन्होंने संगीत सुन सुन के सीखा है। आज देखिए अपने हुनर को माँजते माँजते वो गाने के साथ ढेर सारे वाद्य यंत्र बजाने की महारत भी रखते हैं। विशाल ने इस गीत को गाया भी बहुत डूब के है और यही वज़ह है कि इस गीत में उनकी आवाज़ सीधे दिल में उतर जाती है।
इस गीत में विशाल का साथ दिया है असीस कौर ने जिनकी आवाज़ को पहले बोलना (Kapoor & Sons) और फिर पिछले साल वे माही (केसरी) में काफी सराहा गया था। पानीपत की इस कुड़ी ने गुरुबानी गा कर संगीत का ककहरा पढ़ा था जो बाद में गुरुओं की संगत में और निखरा। रियालटी शो उन्हें मायानगरी तक खींच लाया। उनकी आवाज़ की बनावट थोड़ी हट के है जो उनकी गायिकी को एक अलग पहचान देने में सफल रही है।
मिथुन गिटार और तबले के नाममात्र संगीत संयोजन में भी शुरु से अंत तक धुन की मधुरता की बदौलत श्रोताओं को बाँधे रहते हैं। फिल्म में ये गीत नायक नायिका के पनपते प्रेम को दर्शाते इस गीत को उन्होंने बड़ी सहजता से अपनी लेखनी में बाँधा है।
अहसास की जो ज़ुबान बन गए दिल में मेरे मेहमान बन गए आप की तारीफ़ में क्या कहें आप हमारी जान बन गए आप ही रब आप ईमान बन गए आप हमारी जान बन गए
किस्मत से हमें आप हमदम मिल गए जैसे कि दुआ को अल्फाज़ मिल गए सोचा जो नहीं वो हासिल हो गया चाहूँ और क्या की खुदा दे अब मुझे
रब से मिला एक अयान बन गए ख्वाबों का मेरे मुकाम बन गए आप की तारीफ़ में क्या कहें आप हमारी जान बन गए
दीन है इलाही मेरा मान है माही मैं तो सजदा करूँ उनको अर्ज रुबाई मेरी फर्ज़ दवाई मेरी इश्क़ हुआ मुझको...जान बन गए
साल के शानदार गीतों का ये सफ़र अब जा पहुँचा है शुरुआती बीस गीतों की ओर और यहाँ गीत एक बार फिर फिल्म कबीर सिंह का। कबीर सिंह के मुख्य चरित्र को लेकर हुए वाद विवाद के बाद भी ये फिल्म इस साल की सफल फिल्मों में एक रही। युवाओं ने इसे खासा पसंद किया और इसमें इसके संगीत की भी एक बड़ी भूमिका रही। संगीतमाला का पिछला गीत भी इसी फिल्म से था। इस गीत की धुन और गायिकी दोनों का दारोमदार विशाल मिश्रा ने सँभाला। पर बेख्याली और तुझे कितना चाहने लगे हम को पीछे छोड़ता ये गीत संगीतमाला में दाखिल हुआ है तो वो मनोज मुंतशिर के प्यारे बोलों की बदौलत।
जहाँ तक इस गीत के बनने की बात है तो संगीतकार विशाल मिश्रा ने इस गीत की धुन चंद मिनटों में बनाई। रातों रात गाना स्वीकृत हुआ और विशाल ने मनोज को काम पर लगा दिया। ये एक ऐसा गीत है जिसके बोलों को सुनकर आप उन दिनों की यादों में डूब सकते हैं जब पहले प्यार ने आपको अपनी गिरफ्त में लिया था।
घर की बालकोनी हो या ट्यूशन की वो क्लास, कॉलेज का कैंटीन हो या फिर दोस्त की शादी का उत्सव...कॉलेज के हॉस्टल में पहले प्यार की कहानियाँ कुछ ऐसी ही जगहों से शुरु होती थीं। जिस लड़के में इस मर्ज के लक्षण दिखते उसे सँभालना ही मुश्किल हो जाता था। रात दिन सोते जागते ऐसे लोगों पर बस एक ही ख्याल तारी रहता था। मनोज ने भी शायद ऐसे ही वाकयों से प्रेरणा ली होगी ये कहने में कि "तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ"?
एक रोचक तथ्य ये भी है कि पहले इस पंक्ति की जगह मनोज ने लिखा था "जो ना होना था कैसे हुआ"। वो तो गीत को सुनते वक्त टी सीरीज़ के मालिक भूषण कुमार ने सलाह दी कि इसे थोड़ा डिफाइन करो कि क्या होना था, क्या नहीं हुआ ताकि वो पंक्ति अपने आप में पूर्ण लगे और इस तरह गीत की पंच लाइन तू इतना जरूरी कैसे हुआ अस्तित्व में आई। मनोज ने गीत के तीन अंतरे लिखे और उसमें एक विशाल ने पसंद किया।
अंतरे में जो बहती कविता है वो मुझे इस गीत की जान लगती है।बतौर संगीतकार मैंने देखा है कि विशाल की शब्दों की समझ बेहतरीन है। करीब करीब सिंगल में राजशेखर के गहरे बोलों वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे पर संगीत रचने वाले भी वही थे।
यहाँ मनोज का खूबसूरत बयाँ बारिश की बोली को समझने से ले के अस्त व्यस्त जीवन की आवारगी के बाद आते ठहराव को गीत के बोलों में इस तरह उभारता है कि उन दिनों के कई मंज़र स्मृतियों के आईने में उभर उठते हैं ।
हँसता रहता हूँ तुझसे मिलकर क्यूँ आजकल बदले-बदले हैं मेरे तेवर क्यूँ आजकल आँखें मेरी हर जगह ढूंढें तुझे बेवजह ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह कैसे हुआ? कैसे हुआ? तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? कैसे हुआ? कैसे हुआ? तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? मैं बारिश की बोली समझता नहीं था हवाओं से मैं यूँ उलझता नहीं था है सीने में दिल भी, कहाँ थी मुझे ये खबर कहीं पे हो रातें, कहीं पे सवेरे आवारगी ही रही साथ मेरे "ठहर जा, ठहर जा, " ये कहती है तेरी नज़र क्या हाल हो गया है ये मेरा? आँखें मेरी हर जगह ढूंढें तुझे बेवजह ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह? कैसे हुआ? कैसे हुआ?
तो आइए सुनें शाहिद कपूर और कियारा आडवाणी पर फिल्माए गए इस गीत को
हमारे यहाँ की फिल्मी कथाओं में प्रेम का कोई अक़्स ना हो ऐसा शायद ही कभी होता है। यही वज़ह है कि अधिकांश फिल्में एक ना एक रूमानी गीत के साथ जरूर रिलीज़ होती हैं। फिर भी गीतकार नए नए शब्दों के साथ उन्हीं भावनाओं को तरह तरह से हमारे सम्मुख परोसते रहते हैं। पर एक गीतकार के लिए बड़ी चुनौती तब आती है जब उसे सामान्य परिस्थिति के बजाए उलझते रिश्तों में से प्रेम की गिरहें खोलनी पड़ती हैं। ऐसी ही एक चुनौती को बखूबी निभाया है राज शेखर ने वार्षिक संगीतमाला 2017 के रनर्स अप गीत के लिए जो कि है फिल्म करीब करीब सिंगल से।
राज शेखर एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं के लिए कोई नई शख़्सियत नहीं हैं । बिहार के मधेपुरा से ताल्लुक रखने वाले इस गीतकार ने अपनी शुरुआती फिल्म तनु वेड्स मनु में वडाली बंधुओं के गाए गीत रंगरेज़से क्रस्ना के साथ मिलकर वार्षिक संगीतमाला के सरताज़ गीत का खिताब जीता था। हालांकि तनु वेड्स मनु की सफलता राज शेखर के कैरियर में कोई खास उछाल नहीं ला पाई। तनु वेड्स मनु रिटर्न के साथ वो लौटे जरूर पर अभी भी वो फिल्म जगत में अपनी जड़े जमाने की ज़द्दोजहद में लगे हुए हैं। आजकल अपनी कविताओं को वो अपने बैंड मजनूँ का टीला के माध्यम से अलग अलग शहरों में जाकर प्रस्तुत भी कर रहे हैं।
करीब करीब सिंगल में राज शेखर के लिखे गीत को संगीतबद्ध किया विशाल मिश्रा ने। वैसे तो विशाल ने कानून की पढ़ाई की है और विधिवत संगीत सीखा भी नहीं पर शुरुआत से वो संगीत के बड़े अच्छे श्रोता रहे हैं। सुन सुन के ही उन्होंने संगीत की अपनी समझ विकसित की है। आज वे सत्रह तरह के वाद्य यंत्रों को बजा पाने की काबिलियत रखते हैं। विकास ने भी इस गीत की धुन को इस रूप में लाने के लिए काफी मेहनत की। चूँकि वो एक गायक भी हैं तो अपनी भावनाओं को भी गीत की अदाएगी में पिरोया। जब गीत का ढाँचा तैयार हो गया तो उन्हें लगा कि इस गीत के साथ आतिफ़ असलम की आवाज़ ही न्याय कर सकती है। इसी वज़ह से गीत की रिकार्डिंग दुबई में हुई। ये भी एक मसला रहा कि गीत में जाने दे या जाने दें में से कौन सा रूप चुना जाए? आतिफ़ को गीत के बहाव के साथ जाने दें ही ज्यादा अच्छा लग रहा था जिसे मैंने भी महसूस किया पर आख़िर में हुआ उल्टा।
विशाल मिश्रा, आतिफ़ असलम और राजशेखर
राज शेखर कहते हैं कि इस गीत को उन्होंने फिल्म की कहानी और कुछ अपने दिल की आवाज़ को मिलाकर लिखा। तो आइए देखें कि आख़िर राजशेखर ने इस गीत में ऍसी क्या बात कही है जो इतने दिलों को छू गयी। ज़िदगी इतनी सीधी सपाट तो है नहीं कि हम जिससे चाहें रिश्ता बना लें और निभा लें। ज़िंदगी के किसी मोड़ पर हम कब, कहाँ और कैसे किसी ऐसे शख़्स से मिलेंगे जो अचानक ही हमारे मन मस्तिष्क पर छा जाएगा, ये भला कौन जानता है?ये भी एक सत्य है कि हम सभी के पास अपने अतीत का एक बोझा है जिसे जब चाहे अपने से अलग नहीं कर सकते। कभी तो हम जीवन में आए इस हवा के नए झोंके को एक खुशनुमा ख़्वाब समझ कर ना चाहते हुए भी बिसार देने को मजबूर हो जाते हैं या फिर रिश्तों को अपनी परिस्थितियों के हिसाब से ढालते हैं ताकि वो टूटे ना, बस चलता रहे। ऐसा करते समय हम कितने उतार चढ़ाव, कितनी कशमकश से गुजरते हैं ये हमारा दिल ही जानता है। सोचते हैं कि ऐसा कर दें या फिर वैसा कर दें तो क्या होगा? पर अंत में पलायनवादी या फिर यथार्थवादी सोच को तरज़ीह देते हुए मगर जाने दे वाला समझौता कर आगे बढ़ जाते हैं। इसीलिए राजशेखर गीत के मुखड़े में कहते हैं
वो जो था ख़्वाब सा, क्या कहें जाने दे ये जो है कम से कम ये रहे कि जाने दे क्यूँ ना रोक कर खुद को एक मशवरा कर लें मगर जाने दे आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे वो जो था ख्वाब सा ....
हम आगे बढ़ जाते हैं पर यादें बेवज़ह रह रह कर परेशान करना नहीं छोड़तीं। दिल को वापस मुड़ने को प्रेरित करने लगती हैं। उन बातों को कहवा लेना चाहती हैं जिन्हें हम उसे चाह कर भी कह नहीं सके। पर दिमाग आड़े आ जाता है। वो फिर उस मानसिक वेदना से गुजरना नहीं चाहता और ये सफ़र बस जाने दे से ही चलता रहता है। अंतरों में राजशेखर ने ये बात कुछ यूँ कही है..
हम्म.. बीता जो बीते ना हाय क्यूँ, आए यूँ आँखों में हमने तो बे-मन भी सोचा ना, क्यूँ आये तुम बातों में पूछते जो हमसे तुम जाने क्या क्या हम कहते मगर जाने दे आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे वो जो था ख्वाब सा .... आसान नहीं है मगर, जाना नहीं अब उधर हम्म.. आसान नहीं है मगर जाना नहीं अब उधर मालूम है जहाँ दर्द है वहीं फिर भी क्यूँ जाएँ वही कशमकश वही उलझने वही टीस क्यूँ लाएँ बेहतर तो ये होता हम मिले ही ना होते मगर जाने दे आदतन तो सोचेंगे होता यूँ तो क्या होता मगर जाने दे वो जो था ख्वाब सा .......
आतिफ़ की आवाज़ गीत के उतार चढ़ावों के साथ पूरा न्याय करती दिखती है। विशाल ताल वाद्यों के साथ गिटार का इंटरल्यूड्स में काफी इस्तेमाल करते हैं। वैसे आपको जान कर अचरज होगा कि राज शेखर ने इस गीत के लिए इससे भी पीड़ादायक शब्द रचना की थी। वो वर्सन तो ख़ैर अस्वीकार हो गया और फिलहाल राज शेखर की डायरी के पन्ने में गुम है। उन्होंने वादा किया है कि अगर उन्हें वो हिस्सा मिलेगा उसे शेयर करेंगे। तो चलिए अब सुनते हैं ये नग्मा
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।