जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
पिछले महीने परिस्थतियाँ ऐसी रही कि वार्षिक संगीतमाला की आख़िरी पेशकश को आप तक पहुँचाने का समय टलता रहा।चलिए थोड़ी देर से ही सही पर अब वक़्त आ गया इस संगीतमाला का सरताजी बिगुल बजाने का और इस साल ये सेहरा बँधा है जुबली के गीत वो तेरे मेरे इश्क़ का इक, शायराना दौर सा था....पर। क्या शब्द , क्या धुन और क्या ही गायिकी इन तीनों मामलों में ये गीत अपने करीबी गीतों से कोसों आगे रहा और इसलिए इस वर्ष २०२३ का सर्वश्रेष्ठ गीत चुनने में मुझे कोई दुविधा नहीं हुई। यूँ तो इस सफलता के पीछे संगीतकार अमित त्रिवेदी, गीतकार कौसर मुनीर और गायिका सुनिधि चौहान बराबर की हक़दार हैं पर मैं कौसर मुनीर का विशेष रूप से नाम लेना चाहूँगा जिनके लिखे बोलों ने तमाम संगीतप्रेमियों के सीधे दिल पर असर किया।
आप सबके मन में एक प्रश्न उठता होगा कि क्या जीवन में प्रेम का स्वरूप हर समय एक जैसा हो सकता है? मुझे तो कम से कम ऐसा नहीं लगता। जिस सच्चे प्यार कि हम बात करते हैं मन की वो पवित्र अवस्था हमेशा तो नहीं रह पाती, पर उस अवस्था में हम अपने प्रेमी के लिए निस्वार्थ भावना से अपनी ज़िंदगी तक दाँव पर लगा देते हैं। कुछ ही दिनों पहले महान विचारक ओशो का सच्चे प्यार पर कही गयी ये उक्ति सुनी थी
प्रेम कोई स्थायी, शाश्वत चीज़ नहीं है। याद रखें, कवि जो कहते हैं वह सच नहीं है। उनकी कसौटी मत लो, कि सच्चा प्रेम शाश्वत है, और झूठा प्रेम क्षणिक है - नहीं! मामला ठीक इसके विपरीत है. सच्चा प्यार बहुत क्षणिक होता है - लेकिन क्या क्षण!... ऐसा कि कोई इसके लिए पूरी अनंतता खो सकता है, इसके लिए पूरी अनंतता जोखिम में डाल सकता है। कौन चाहता है कि वह क्षण स्थायी रहे? और स्थायित्व को इतना महत्व क्यों दिया जाना चाहिए?... क्योंकि जीवन परिवर्तन है, प्रवाह है; केवल मृत्यु ही स्थायी है.
संगीतकार अमित त्रिवेदी, गीतकार कौसर मुनीर के साथ
भले ही प्रेम में पड़े होने के वे अद्भुत क्षण बीत जाते हैं पर हम जब भी उन लम्हों को याद करते हैं मन निर्मल हो जाता है और अतीत की यादों से प्रेम की इसी निर्मलता को कौसर मुनीर ने इस गीत में ढूँढने की कोशिश की है वो भी पूरी आत्मीयता एवम् काव्यात्मकता के साथ। फिर वो रात में अपने चाँद से आलिंगन की बात हो या फिर किसी की एक नज़र उठने या गिरने से दिल में आते भूचाल की कसक कौसर मुनीर प्रेम करने वाले हर इंसान को अपने उस वक़्त की याद दिला देती हैं जब इन कोमल भावनाओं के चक्रवात से वो गुजरा था। गीत में उन प्यारे लम्हों के गुजर जाने को लेकर कोई कड़वाहट नहीं है। बस उन हसीन पलों को फिर से मन में उतार लेने की ख़्वाहिश भर है।
संगीतकार अमित त्रिवेदी ने भी सारंगी, सितार, हारमोनियम के साथ तबले की संगत कर इस गीत का शानदार माहौल रचा है। इस गीत में सितार वादन किया है भागीरथ भट्ट ने, सारंगी सँभाली है दिलशाद खान ने हारमोनियम पर उँगलियाँ थिरकी हैं अख़लक वारसी की और तबले पर संगत है सत्यजीतकी।
गीत स्वरमंडल की झंकार से बीच सुनिधि के आलाप से आरंभ होता है। आरंभिक शेर के पार्श्व में स्वरमंडल, सितार और सारंगी की मधुर तान चलती रहती है.। गीत का मुखड़ा आते ही मुजरे के माहौल को तबले और हारमोनियम की संगत जीवंत कर देती है। पहले अंतरे के बाद सितार का बजता टुकड़ा सुन कर मन से वाह वाह निकलती है। गीत में नायिका के हाव भाव उमराव जान के फिल्मांकन की याद दिला देते हैं।सुनिधि की आवाज़ बीते कल की यादों के साथ यूँ डूबती उतराती हैं कि आँखें नम हुए बिना नहीं रह पातीं।
सुनिधि चौहान
बतौर गायिका सुनिधि चौहान के लिए पिछला साल शानदार रहा। अपने तीन दशक से भी लंबे कैरियर में बीते कुछ सालों से उन्हैं अपने हुनर के लायक काम नहीं मिल रहा था पर जुबली में बाबूजी भोले भाले, नहीं जी नहीं और वो तेरे मेरे इश्क़ का... जैसे अलग अलग प्रकृति के गीतों को जिस खूबसूरती से उन्होंने अपनी आवाज़ में ढाला उसकी जितनी तारीफ़ की जाए कम होगी।
क्या इश्क़ की दलील दूँ, क्या वक़्त से करूँ गिला
कि वो भी कोई और ही थी, कि वो भी कोई और ही था
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक, शायराना दौर सा था....
वो मैं भी कोई और ही थी वो तू भी कोई और ही था
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक, शायराना दौर सा था
वो आसमां छलांग के जो, छत पे यूँ गले से लगे
वो आसमां छलांग के जो, छत पे यूँ गले से लगे
वो रात कोई और ही थी…वो चाँद कोई और ही था
इक निगाह पे जल गए…इक निगाह पे बुझ गए
इक निगाह पे जल गए…इक निगाह पे बुझ गए
वो आग कोई और ही थी…चराग कोई और ही था
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक शायराना दौर सा था..
जिस पे बिछ गई थी मैं…जिस पे लुट गया था तू
बहार कोई और ही थी…वो बाग कोई और ही था
जिसपे मैं बिगड़ सी गई…जिससे तू मुकर सा गया
जिसपे मैं बिगड़ सी गई…जिससे तू मुकर सा गया
वो बात कोई और ही थी…वो साथ कोई और ही था।
वो तेरे मेरे इश्क़ का इक शायराना दौर सा था..
वैसे मुझे जुबली देखते वक़्त ये जरूर लगा कि जितनी सशक्त भावनाएँ इस गीत में निहित थीं उस हिसाब से निर्देशक विक्रमादित्य उसे अपनी कहानी में इस्तेमाल नहीं कर पाए।
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
तो ये थे मेरी पसंद के साल के पच्चीस बेहतरीन गीत। पहले नंबर के गीत का तो आज मैंने ऍलान कर दिया। बाकी गीतों की अपनी रैंकिंग मैं अपनी अगली पोस्ट में बताऊँगा। आप जरूर बताएँ कि इन गीतों में या इनके आलावा भी इस साल के पसंदीदा गीतों की सूची अगर आपको बनानी होती तो आप किन गीतों को रखते?
जुबली के गीत संगीत के बारे में इस गीतमाला में पहले भी चर्चा हो चुकी है और आगे और भी होगी क्यूँकि 2023 के पच्चीस बेहतरीन गीतों की इस शृंखला में बचे तीन गीतों में दो इसी वेब सीरीज के हैं। जहाँ उड़े उड़नखटोले ने आपको चालीस के दशक की याद दिला दी थी वहीं बाबूजी भोले भाले देखकर गीता दत्त और आशा जी के पचास के दशक गाए क्लब नंबर्स का चेहरा आँखों के सामने घूम गया था।
"नहीं जी नहीं" इसी कड़ी में साठ के दशक के संगीत की यादें ताज़ा कर देता है जब फिल्म संगीत में संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन की तूती बोलती थी। शंकर जयकिशन के संगीत की पहचान थी उनका आर्केस्ट्रा। उनके संगीत रिकार्डिंग के समय वादकों का एक बड़ा समूह साथ होता था। अमित त्रिवेदी ने अरेंजर परीक्षित शर्मा की मदद से बला की खूबसूरती से इस गीत में वही माहौल फिर रच दिया है। इस गीत में वॉयलिन की झंकार भी है तो साथ में मेंडोलिन की टुनटुनाहट भी। कहीं ड्रम्स के साथ मेंडोलिन की संगत है तो कहीं वॉयलिन के साथ बाँसुरी की जुगलबंदी। एकार्डियन जैसे वाद्य भी अपनी छोटी सी झलक दिखला कर उस दौर को जीवंत करते हैं।
वाद्य यंत्रों के छोटे छोटे टुकड़ों को अमित ने जिस तरह शब्दों के बीच पिरोया है उसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए कम होगी।
इस मधुर संगीत रचना के बीच चलती है नायक नायिका की आपसी रूमानी नोंक झोंक, जिसे बेहद प्यारे बोलों से सजाया है गीतकार कौसर मुनीर ने। हिंदी फिल्मों में आपसी बातचीत या सवाल जवाब के ज़रिए गीत रचने की पुरानी परंपरा रही है। कौसर ने श्रोताओं को इसी कड़ी में एक नई सौगात दी है। अभी ये लिखते वक्त मुझे ख्याल आ रहा है "हम आपकी आँखों में इस दिल को बसा लें का" जिसमें ये शैली अपनाई गयी थी। मिसाल के तौर पर कौसर का लिखा इस गीत का मुखड़ा देखिए
कि देखो ना, बादल तेरे आँचल से बँध के आवारा ना हो जाए, जी नहीं, जी, नहीं, कि बादल की आदत में तेरी शरारत नहीं
कि देखो ना, चंदा तेरी बिंदिया से मिल के कुँवारा ना रह जाए, जी नहीं, जी, नहीं, कि चंदा की फ़ितरत में तेरी हिमाक़त नहीं
कि हमको भी भर लो नैनों में अपने, हो सुरमे की जैसे लड़ी कि हमको भी भर लो नैनों में अपने, हो सुरमे की जैसे लड़ी नज़र-भर के पहले तुझे देख तो लें कि जल्दी है तुझको बड़ी
कि देखो ना, तारे बेचारे हमारे मिलन को तरसते हैं, जी नहीं, जी, नहीं, कि तारों की आँखों में तेरी सिफ़ारिश नहीं
कि अच्छा, चलो जी तुझे आज़माएँ, कहीं ना हो कोई कमी कि अच्छा, चलो जी तुझे आज़माएँ, कहीं ना हो कोई कमी कि जी-भर के अपनी कर लो तसल्ली, हूँ मैं भी, है तू भी यहीं
तो बैठो सिरहाने कि दरिया किनारे हमारी ही मौजें हैं, जी नहीं, जी, नहीं, कि दरिया की मौजों में तेरी नज़ाकत नहीं कि देखो ना, बादल .....नहीं, जी, नहीं
वैसे क्या आपको पता है कि जुबली का संगीत गोवा में बना था। आपको जान कर आश्चर्य होगा कि 2022 में आई कला और जुबली की संगीत रचना एक साथ हुई थी। अमित त्रिवेदी इन फिल्मों के गीतकारों स्वानंद, अन्विता और कौसर को ले कर गोवा गए। उस दौर के गीतों के मूल तत्व को पकड़ने के लिए अमित त्रिवेदी ने कई दिनों तक लगातार चालीस, पचास और साठ के दशक के गाने सुने। उस दौर के अरेंजर से संपर्क साधा और फिर एक के बाद एक गानों की रिकार्डिंग करते गए। कमाल ये कि जुबली के गीतों में एक साथ आपको उस दौर के कई गीतों की झलक मिलेगी पर हर गीत बिना किसी गीत की कॉपी लगे अपनी अलग ही पहचान लिए नज़र आएगा।
वॉयलिन और ताल वाद्यों की मधुर संगत से इस गीत का आगाज़ होता है। पापोन की सुकून देती आवाज़ के साथ सुनिधि की गायिकी का नटखटपन खूब फबता है। पापोन जहाँ हेमंत दा की आवाज़ का प्रतिबिंब बन कर उभरते हैं वहीं सुनिधि की आवाज़ की चंचलता आशा जी और गीता दत्त की याद दिला देती है। वॉयलिन और ड्रम्स से जुड़े इंटरल्यूड में वॉयलिन पर सधे हाथ चंदन सिंह और उनके सहयोगियों के हैं। अगले इंटरल्यूड में वॉयलिन के साथ बाँसुरी आ जाती है। गीत के बोलों के साथ बजती मेंडोलिन के वादक हैं लक्ष्मीकांत शर्मा। तो आइए सुनिए इस गीत को और पहचानिए कि कौन सा वाद्य यंत्र कब बज रहा है?
इस गीत में आपको जोड़ी दिखेगी वामिका गब्बी और सिद्धार्थ गुप्ता की जिन्होंने पर्दे पर अपना अभिनय बखूबी किया है।
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
जुबली वेब सीरीज उस ज़माने की कहानी कहती है जब मुंबई में बांबे टाकीज़ की तूती बोलती थी। संगीतकार अमित त्रिवेदी को जब इस सीरीज के लिए संगीत रचने का मौका दिया गया तो उनके सामने एक बड़ी चुनौती थी। एक ओर तो उन्हें चालीस और पचास के दशक में प्रचलित संगीत के तौर तरीकों को समझना और अपने संगीत को ढालना था तो दूसरी ओर तेज़ गति का संगीत पसंद करने वाली आज की इस पीढ़ी में उसकी स्वीकार्यता उनके मन में प्रश्नचिन्ह पैदा कर रही थी।
अमित अपने मिशन में कितने सफल हुए हैं वो इसी बात से स्पष्ट है कि जुबली के गीत संगीत की भूरि भूरि प्रशंसा हुई और इस गीतमाला में इसके चार गीत शामिल हैं और बाकी गीत भी सुनने लायक हैं। बाबूजी भोले भाले तो मैं पहले ही आपको सुना चुका हूँ। आज बारी है इसी फिल्म के एक दूसरे गीत "उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे.."की।
जुबली का आप कोई भी गीत सुनेंगे तो आपको एक साथ कई पुराने नग्मे याद आ जाएँगे। संगीत संयोजन, गीत में बजने वाले वाद्य, गीत के बोल, गायक के गाने का अंदाज़ और उच्चारण..सब मिलकर आपकी आंखों के सामने ऐसा दृश्य उपस्थित करेंगे कि लगेगा कि पर्दे पर उसी ज़माने की श्वेत श्याम फिल्म चल रही हो।
उड़नखटोले के इस गीत के लिए अमित त्रिवेदी ने मोहम्मद इरफान और वैशाली माडे को चुना। इरफान को मैंने सा रे गा मा पा 2005 में पहली बार सुना था और उस वक्त भी में उनकी आवाज़ का कायल हुआ था। बंजारा, फिर मोहब्बत करने चला है तू, बारिश उनके कुछ लोकप्रिय गीतों में से हैं। वैशाली ने भी सा रे गा मा पा के ज़रिए गायिकी की दुनिया में कदम रखा है। मराठी गीतों के अलावा कभी कभार उन्हें हिंदी फिल्मों में भी मौका मिलता रहा है।
अमित त्रिवेदी ने इरफान को जुबली में मुकेश की आवाज़ के लिए चुना। इरफान को कहा गया कि आपकी आवाज़ पचास प्रतिशत मुकेश जैसी और बाकी इरफान जैसी लगनी चाहिए। यानी टोनल क्वालिटी मुकेश जैसी रखते हुए भी उन्हें अपनी पहचान बनाए रखनी थी। उड़नखटोले में परिदृश्य चालीस के दशक का था जब सारे गायकों पर के एल सहगल की गायिकी की छाप स्पष्ट दिखती थी। इरफान ने इस बात को बखूबी पकड़ा। इरफान ने इस सीरीज में इठलाती चली, इतनी सी है दास्तां को अलग अंदाज़ में गाया है क्योंकि वो पचास के दशक के गीतों को ध्यान में रखकर बनाए गए थे। इरफान से ये सब करवाने के लिए अमित को उनके साथ सात आठ सेशन करने पड़ गए।
वैशाली की भी तारीफ़ करनी होगी कि उन्होंने ज़माना, हिरदय (हृदय), कईसे (कैसे) जैसे शब्दों को उस दौर की गायिकाओं की तरह हूबहू उच्चारित किया।
संगीत में कैसा आयोजन रखा जाए उसके लिए अमित ने सनी सुब्रमणियन की मदद ली। सनी के पिता ने पचास और साठ के दशक में अरेंजर की भूमिका निभाई थी। वायलिन प्रधान इस गीत में बांसुरी, मंडोलिन, वुडविंड और ढोलक की थाप सुनाई देती है। गीत में कौसर मुनीर के शब्दों का चयन भी उस दौर के अनुरूप है। प्रेम हिंडोले, अधर, हृदय जैसे शब्द तब के गीतों में ही मिलते थे।
उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे उड़े उड़नखटोले नयनों के मेरे अँखियाँ मले ज़माना ज़माना
डोले प्रेम हिंडोले तन मन में मेरे डोले प्रेम हिंडोले तन मन में तेरे कैसे हिले ज़माना ज़माना ?
बन की तू चिड़िया, बन के चंदनिया गगन से करती हैं बतियाँ मेरी तू भी तो है रसिया, गाए भीमपलसिया तेरी दीवानी सारी सखियाँ मेरी
बोले प्रेम पपीहे अधरों से तेरे बोले प्रेम पपीहे अधरों से मेरे कैसे ना सुने ज़माना ज़माना
डोले प्रेम हिंडोले तन मन में मेरे डोले प्रेम हिंडोले तन मन में तेरे कैसे हिले ज़माना ज़माना
टुकू टुकू टाँके, झरोखे से झाँके नज़र लगावे जल टुकड़ा ज़हां जिगर को वार दूँ, नज़र उतार दूँ सर अपने ले लूँ मैं तेरी बला जले प्रेम के दीये हृदय में मेरे जले प्रेम के दीये हृदय में तेरे
उड़े उड़नखटोले
तो आइए सुनें ये युगल गीत जो आपको चालीस के दशक के संगीत की सुरीली झलक दिखला जाएगा।
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
वार्षिक संगीतमाला में आज जो गीत बजने जा रहा है वो किसी फिल्म का नहीं है बल्कि एक वेब सीरीज का है। ये वेब सीरीज है जुबली। जुबली की कहानी चालीस पचास के दशक के बंबइया फिल्म जगत के इर्द गिर्द घूमती है। अमित त्रिवेदी को जब इस ग्यारह गीतों वाले एल्बम की बागडोर सौंपी गई तो उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती ये थी कि किस तरह चालीस और पचास के दौर के संगीत को पेश करें कि उसे आज की पीढ़ी भी स्वीकार ले और उस दौर के संगीत का जो मिज़ाज था वो भी अपनी जगह बना रहे।
अमित हमेशा ऐसी चुनौतियों का सामना करते रहे हैं। आमिर, देव डी, लुटेरा और हाल फिल हाल में उनकी फिल्म कला के संगीत ने खासी वाहवाहियाँ बटोरी हैं। अमित अपने इस प्रयास में कितने सफ़ल हुए हैं वो इसी बात से समझ आ जाता है कि जब भी आप इस एल्बम का कोई नग्मा सुनते हैं तो एक साथ आपके ज़ेहन में उस दौर के तीन चार गीत सामने आ जाते हैं जिसकी संगीत रचना और गायिकी का कोई ना कोई अक्स जुबली के नग्मे में नज़र आ जाता है।
अब आज जुबली के गीत बाबूजी भोले भाले की जाए तो सुनिधि चौहान की गायिकी का अंदाज़ आशा जी और गीता दत्त के अंदाज़ से मेल खाता दिखेगा वहीं गीत की संगीत रचना और फिल्मांकन आपको एक साथ शोला जो भड़के, मेरा नाम चिन चिन चू और बाबूजी धीरे चलना जैसे गीतों की याद दिला दे जाएगा।
कौसर मुनीर के मज़ाहिया बोल मन को गुदगुदाते हैं और उन बोलों के बीच में आइ डी राव का बजाया वुडविंड और वादक गिरीश विश्व के ढोलक की जुगलबंदी थिरकने पर मजबूर कर देती है। पुराने गीतों की तरह ताली का इस्तेमाल भी है। इसके अलावा आपको इस गीत में वायलिन और मेंडोलिन जैसे तार वाद्यों की झंकार भी सुनाई देगी।
अमित त्रिवेदी ने धुन तो झुमाने वाली बनाई ही है पर एक बड़ी सी शाबासी के हक़दार सनी सुब्रमण्यम भी हैं जिन्होने परीक्षित के साथ मिलकर इस गीत और एल्बम में अरेंजर की भूमिका निभाई है। इन दोनों के पिता फिल्म उद्योग ये काम करते थे और उनके अनुभव का फायदा इस जोड़ी ने सही वाद्य यंत्रों के चुनाव में बखूबी उठाया है।
बाबूजी भोले-भाले, दुनिया फ़रेबी है जी
तू भी ज़रा टेढ़ा हो ले, दुनिया जलेबी है जी बाबूजी भोले-भाले, दुनिया जलेबी है जी राजा, ज़रा गोल घूम जा, राजा, ज़रा गोल घूम जा
बाबूजी भोले-भाले, दुनिया ये गोला है जी तू भी ज़रा bat घुमा ले, बस ये ही मौक़ा है जी बाबूजी भोले-भाले, दुनिया ये गोला है जी आ जा, लगा ले चौका, आ जा
चमकीली खिड़कियों से तुझको बुलाते हैं जो shutter नीचे गिरा के ख़ुद भाग जाएँगे वो भड़कीली तितलियों से तुझको बहकाते हैं जो बत्ती तेरी बुझा के ख़ुद जाग जाएँगे वो
बाबूजी भोले-भाले, बम का धमाका बंबई
तू भी जला ले तीली, बन जा पलीता है, भाई
बाबूजी भोले-भाले, बम का धमाका बंबई
राजा, बंबइया तू बन जा
दिल को समझा ले ज़रा, धक-धक करना मना है प्यार का कलमा पढ़ना, प्यारे, सुन ले गुनाह है मन को मना ले ज़रा, गुमसुम रहना मना है ग़म में भी मार ठहाका, रोना-धोना मना है
बाबूजी-बाबूजी, दुनिया ये फ़ानी है जी तू भी ज़रा मौज मना ले, whiskey जापानी है जी बाबूजी-बाबूजी, दुनिया ये फ़ानी है जी ले-ले जवानी का मज़ा...
तो आइए मासूमियत को धता बताते हुए टेढा होने की वकालत करते इस गीत का आनंद लीजिए। इस गीत को फिल्माया गया है वामिका गब्बी पर जो इससे पहले ग्रहण में नज़र आयी थीं। साथ ही आपको दिखेंगे राम कपूर बिल्कुल अलग से गेट अप में
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
जो गीत सिनेमा की पटकथा से निकल कर आते हैं वो तभी जनता तक पहुँच पाते हैं जब फिल्म सफल होती है। 1983 विश्व कप क्रिकेट में भारत की अप्रत्याशित जीत पर बनी फिल्म 83 के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। प्रीतम का संगीत और कौसर मुनीर के लिखे गीत औसत से अच्छे थे पर उतना सुने नहीं गए जितने के वे हक़दार थे। जीतेगा जीतेगा इंडिया जीतेगा तो फिल्म की कहानी का हिस्सा नहीं बन पाया पर इसी फिल्म का अरिजीत सिंह द्वारा गाया गीत लहरा दो फिल्म में था और आज मेरी इस पिछले साल के शानदार गीतों की परेड में भी शामिल हो रहा है।
ये गीत फिल्म में तब आता है जब भारत उस प्रतियोगिता में करो और मरो वाली स्थिति में आ गया था। जितनी बात फाइनल में कपिल के पीछे भागते हुए विवियन रिचर्डस का कैच लेने की जाती है उतने ही गर्व से कपिल की उस पारी को याद किया जाता है जो उन्होंने जिम्बाब्वे के खिलाफ खेली थी। जो क्रिकेट के शौकीन नहीं हैं वो थोड़ा असमंजस में जरूर पड़ेंगे कि आख़िर जिम्बाब्वे जैसे कमज़ोर क्रिकेट खेलने वाले देश के साथ खेली गयी पारी पर इतनी वाहवाही क्यूँ? तो थोड़ा तफसील से इसकी वजह बताना चाहूँगा आपको क्यूँकि तभी आप इस गीत का और आनंद ले पाएँगे।
83 में भारत की टीम को एकदिवसीय क्रिकेट में बेहद कमज़ोर टीमों में ही शुमार किया जाता था जिसने तब तक विश्व कप कि किसी भी प्रतियोगता में सिर्फ एक मैच ही जीता था। पर उस विश्व कप में भारत पहले मैच में वेस्ट इंडीज़ जैसे देश को हराकर सनसनी फैला दी थी। वैसा ही कारनामा जिम्बाब्वे ने आस्ट्रेलिया को हरा कर रचा था। तब ग्रुप की सारी टीमें एक दूसरे से दो दो मैच खेलती थीं। दूसरे मैच में जिम्बाब्वे को हराने के बाद अपने तीसरे और चौथे मैच में भारत, आस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ से बुरी तरह हारा था।
कई खिलाड़ियों की चोट से जूझती भारतीय टीम जिम्बाब्वे के खिलाफ़ अपने अगले मैच में मजबूत प्रदर्शन देने के लिए उतरी थी। कपिल ने टॉस जीता और बल्लेबाजी करने का फैसला लिया और तरोताजा होने के लिए गर्म पानी से स्नान का आनंद लेने चल दिए। इधर वो नहा रहे थे उधर भारतीय बल्लेबाज धड़ाधड़ आउट होते जा रहे थे। गावस्कर, श्रीकांत और संदीप पाटिल जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने तो खाता खोलने की भी ज़हमत नहीं उठाई थी। नौ रन पर चार विकेट और फिर 17 के स्कोर पर जब पाँचवा विकेट गिरा कपिल तब भी नहाने में तल्लीन थे। बाहर से लगातार आवाज़ दी जा रही थी कि पाजी निकल लो। कपिल हड़बड़ाकर भींगे बालों में ही निकले और उसके बाद उन्होने 175 रनों की नाबाद पारी खेल कर भारत को मैच में वापसी दिलायी।
फिल्म में ये गीत ठीक इस मैच के पहले आता है। उत्साह बढ़ाती भीड़ और लहराते झंडों के बीच अरिजीत सिंह की दमदार आवाज़ उभरती हुई जब कहती है
अपना है दिन यह आज का, दुनिया से जाके बोल दो...बोल दो ऐसे जागो रे साथियों, दुनिया की आँखें खोल दो...खोल दो लहरा दो लहरा दो, सरकशीं का परचम लहरा दो गर्दिश में फिर अपनी, सरजमीं का परचम लहरा दो
तो मन रोमांचित हो जाता है। गर्दिश में पड़ी टीम को कप्तान की आतिशी पारी उस मुहाने पर ला खड़ा करती है जहाँ से विश्व विजेता बनने का ख़्वाब आकार लेने लगता है। पूड़ी टीम कपिल की इस पारी को उस विश्व कप का टर्निंग प्वाइंट मानती है। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसमें प्रीतम ने अंतरों को कव्वाली जैसा रूप दिया है
हो हाथ धर के बैठने से, क्या भला कुछ होता है हो हाथ धर के बैठने से क्या भला कुछ होता है जा लकीरों को दिखा क्या ज़ोर बाजू होता है हिम्मत-ए-मर्दा अगर हो संग खुदा भी होता है जा ज़माने को दिखा दे खुद में दम क्या होता है
लहरा दो लहरा दो, सरकाशी का परचम लहरा दो गर्दिश में फिर अपनी, सर ज़मीन का परचम लहरा दो लहरा दो लहरा दो...परचम लहरा दो लहरा दो लहरा दो...लहरा दो लहरा दो लहरा दो लहरा दो...लहरा दो लहरा दो..
अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत किसी क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी।
उत्तरी कारो नदी में पदयात्रा Torpa , Jharkhand
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कारो और कोयल ये दो प्यारी नदियां कभी सघन वनों तो कभी कृषि योग्य पठारी
इलाकों के बीच से बहती हुई दक्षिणी झारखंड को सींचती हैं। बरसात में उफनती ये
नदियां...
इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।