जिन्दगी यादों का कारवाँ है.खट्टी मीठी भूली बिसरी यादें...क्यूँ ना उन्हें जिन्दा करें अपने प्रिय गीतों, गजलों और कविताओं के माध्यम से!
अगर साहित्य और संगीत की धारा में बहने को तैयार हैं आप तो कीजिए अपनी एक शाम मेरे नाम..
Author: Manish Kumar
| Posted at: 1/18/2023 07:36:00 pm |
Filed Under: एम एम करीम
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संगीत हो या साहित्य हमें अपने कलाकारों का हुनर तब नज़र आता है जब वो किसी विदेशी पुरस्कार से सम्मानित होते हैं। हाल ही में एम एम करीम साहब जो दक्षिण की फिल्मों में एम एम कीरावनी के नाम से जाने जाते हैं को RRR के उनके गीत नाचो नाचो (नाटो नाटो) के लिए विश्व स्तरीय गोल्डन ग्लोब पुरस्कार से नवाज़ा गया।
सच पूछिए तो मुझे ये सुनकर कुछ खास खुशी नहीं मिली क्योंकि जिसने भी करीम के संगीत का अनुसरण किया है वो सहज ही बता देगा कि उन्होंने जो नगीने दक्षिण भारतीय और हिन्दी फिल्म संगीत को दिए हैं उनके समक्ष उनकी ये बेहद साधारण सी कृति है। पर हमारी मानसिकता तो ये है कि गोरी चमड़ी वालों ने पुरस्कार दिया नहीं और हम लहालोट होने लगे। मुझे चिंता इस बात की है ऐसे गीतों को पुरस्कार मिलता देख संगीत से जुड़ी नई पीढ़ी भारतीय संगीत की अद्भुत गहराइयों से गुजरे बिना इसे ही अपना आदर्श न मान ले।
करीम साहब तो अस्सी के दशक के आख़िर से ही दक्षिण में अपनी प्रतिभा की वज़ह से लोगों की नज़र में आने लगे थे पर हिंदी फिल्मों में पहली बार वो नब्बे के दशक के मध्य में आई फिल्म क्रिमिनल से लोकप्रिय हुए। इस फिल्म का उनका गीत तू मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए आज भी जब बजता है तो मन झूम उठता है।
पर उनका हिंदी फिल्मों में सबसे बढ़िया काम मुझे एक अनजानी सी फिल्म इस रात की सुबह नहीं में लगता है। एक बेहद कसी पटकथा लिए हुई कमाल की फिल्म थी वो जिसमें उनका संगीतबद्ध गीत मेरे तेरे नाम नये हैं ये दर्द पुराना है जीवन क्या है तेज़ हवा में दीप जलाना है मन को अंदर तक भिगो डालता है। इसी फिल्म का चुप तुम रहो भी तब बेहद पसंद किया गया था। करीम का दुर्भाग्य ये भी रहा कि जिन हिंदी फिल्मों में शुरुआती दौर में उन्होंने उल्लेखनीय संगीत दिया वो ज्यादा नहीं चलीं। फिल्म ज़ख्म का वो सदाबहार गीत जाने कितने दिनों के बाद गली में आज चांद निकला हो या रोग का दर्द भरा नग्मा "मैंने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी..." आज भी लोगों की जुबां पर रहता है चाहे उन्हें उस फिल्म का नाम याद हो या नहीं। जिस्म के गीत "आवारापन बंजारापन.." और "जादू है नशा है..." का नशा तो श्रोताओं पर सालों साल रहा। सुर जैसी संगीतमय फिल्म में उनके गीत "कभी शाम ढले..", "जाने क्या ढूंढता है..", "दिल में जागी धड़कन ऐसे.." भी काफी सराहे गए थे।
हाल फिलहाल में स्पेशल 26 में उनका गीत "कौन मेरा क्या तू लागे" इतना सुरीला था कि इस गीत को जितनी बार भी सुनूं मन नहीं भरता। बेबी में उनका संगीतबद्ध गीत "मैं तुझसे प्यार नहीं करती" भी सुनने लायक है।
हर कलाकार चाहता है कि उसे उसके बेहतरीन काम से याद किया जाए। काश ऐसे गुणी संगीतकार को हम उनकी इन बेमिसाल कृतियों के लिए सम्मान देते। संगीत की इतनी शानदार विरासत रहने के बाद भी हम अच्छे भारतीय संगीत के लिए ऐसा पुरस्कार विकसित नहीं कर पाए जिसे पाने वाले पर सारी दुनिया ध्यान देती। इसीलिए आज हम गर्वित महसूस करने के लिए किसी गोल्डन ग्लोब या ग्रैमी की बाट जोहते हैं।
विश्व स्तरीय पुरस्कार किसी भी कलाकार के लिए सम्मान की बात है पर विश्व के संगीत प्रेमियों तक हमारी सबसे अच्छी कृति कैसे पहुंचे इस प्रक्रिया में और सुधार लाने की जरूरत है।
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M M Kareem के संगीतबद्ध मेरे चार पसंदीदा नग्मे
1. कौन मेरा, क्या तू लागे
2. मेरे तेरे नाम नये हैं
3. मैने दिल से कहा ढूंढ लाना खुशी
4. तू मिले दिल खिले
आशा है आपने भी ये गीत सुने होंगे ही। अगर न सुने हों तो सुनिएगा।
बदलते वक़्त के साथ एक शाम मेरे नाम में एक नया सिलसिला शुरु करने जा रहा हूँ और वो है मशहूर गानों को आज के कलाकारों द्वारा गाए जा रहे बिना आर्केस्ट्रा वाले अनप्लग्ड वर्सन का जो कि आलेख के हिसाब से भले छोटे हों पर आपके दिलों में देर तक राज करेंगे।
क्रिमिनल नब्बे के दशक में तब रिलीज़ हुई थी जब अस्सी के दशक के उतार के बाद हिंदी फिल्म संगीत फिर अपनी जड़ें जमा रहा था। फिल्म के संगीत निर्देशक थे एम एम क्रीम। तब नागार्जुन का सितारा दक्षिण की फिल्मों में पहले ही चमक चुका था और महेश भट्ट उसे हिंदी फिल्मों में उनकी लोकप्रियता भुनाने की कोशिश कर रहे थे। फिल्म तो कोई खास नहीं चली पर गीत संगीत के लिहाज से इस फिल्म का एक ही गीत बेहद पसंद किया गया था और वो था तू मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए। हालांकि क्रीम साहब की ये कंपोजिशन पूरी तरह मौलिक नहीं थी औेर उस वक़्त के बेहद लोकप्रिय बैंड एनिग्मा की एक धुन से प्रेरित थी। पर इतना सब होते हुए भी इंदीवर के बोलों को गुनगुनाना लोगों को भला लगा था और आज भी इस गीत को पसंद करने वालों की कमी नहीं है।
कुछ दिन पहले केरल से ताल्लुक रखने वाले गायक अनूप शंकर ने एक समारोह में इस गीत को इतना बेहतरीन गाया कि सुनने वाले वाह वाह कर उठे। मजे की बात ये रही कि स्वयम् नागार्जुन भी अपनी पत्नी अमला के साथ वहाँ मौज़ूद थे। गीत को सुनते वक़्त उनके चेहरे की मुस्कान अनूप की बेहतरीन गायिकी पर मुहर लगा गयी। उस समारोह में अनूप ने कुछ और गीत भी गुनगुनाए थे और इस गीत को उन्होंने तीन मिनट के बाद गाया है। आशा है गीत का ये टुकड़ा आपको भी उतना ही पसंद आएगा जितना मुझे आया है।
42 वर्षीय शंकर संगीत से जुड़े परिवार से आते हैं। फिल्मों के लिए तो वो गाते ही रहे हैं। साथ ही साथ उन्होंने बतौर गीतकार भी काम किया है। इतना ही नहीं दक्षिण भारत में कई टीवी कार्यक्रमों में उन्होंने संचालक की भूमिका बखूबी निभाई है। अनूप की आवाज़ में पूरा गीत ये रहा।
क्या किसी से प्यार करने के लिए उसे कहा जाना भी जरूरी है? हाँ जरूर कहना चाहिए। पर कभी हम ये खुल कर स्वीकार करने से हिचकते हैं। हर रिश्ते की अपनी जटिलताएँ होती हैं और चाहते हुए भी हम अपने मन की बात होठों पर नहीं ला पाते।अलबत्ता ये भी सही नहीं कि हम 'डिनायल मोड' में ही चले जाएँ यानि जो कहना चाहते हैं उससे ठीक उलट कहें। दिमाग चाहता भी नहीं है कि स्पष्ट रूप से कह दें और दिल है कि अंदर ही अंदर परेशान किए देता है। भावनाओं का ये विरोधाभास अगर सबसे प्यारे तरीके से किसी गीत में उभरा है तो वो था फिल्म घरौंदा के लिए रूना लैला का गाया, नक़्श ल्यालपुरी का लिखा व जयदेव का संगीतबद्ध अमर अजर गीत मुझे प्यार तुमसे नहीं है नहीं है मगर ये राज मैंने अब तक न जाना..। आज भी उस गीत को ना जाने कितनी बार भी सुन लूँ मन नहीं भरता। क्या गीत था वो भी!
पर साल 2015 की इस संगीतमाला में लगभग चालीस साल पुराने इस गीत को आज मैं क्यूँ याद कर रहा हूँ? दो वज़हें हैं जनाब इसकी। संगीतमाला की पाँचवी पायदान का गीत मन और मस्तिष्क की इसी उधेड़बुन को एक बार फिर सामने ला खड़ा करता है और दूसरी बात ये कि ये गीत एक ऐसी आवाज़ को मेरे सम्मुख ले आया है जिसमें रूना लैला की प्यारी आवाज़ सी एक ख़नक जरूर है और शायद ये आवाज़ ही इस गीत को पाँचवी पायदान तक पहुँचाने में सफल रही है।
ये अनजाना सा गीत है फिल्म बेबी का ! ना तो इसे टीवी पर प्रमोट किया गया ना ही इसे फिल्म में जगह मिली। हाँ इसी मुखड़े के दूसरे वर्जन को जिसे पापोन ने अपनी आवाज़ दी फिल्म में जरूर रखा गया। बेबी के इस गीत के गीतकार हैं मनोज मुन्तशिर जो पिछले साल तेरी गलियाँ... की सफलता से आम जनता में पहचाने जाने लगे हैं। पर जहाँ तक मेरी इन वार्षिक संगीतमालाओं का सवाल है मनोज ने पहली बार मुझे The Great Indian Butterfly के गीत बड़े नटखट हैं तोरे कँगना.... से प्रभावित किया था।
इस गीत का संगीत दिया है एम एम करीम यानि एम एम कीरावानी ने। कीरावानी साहब कमाल के संगीतकार हैं। हिंदी फिल्मों में कम ही संगीत देते हैं पर जब देते हैं तो उनके गीत भुलाए नहीं भूलते। दो साल पहले उनका संगीतबद्ध स्पेशल 26 का गीत कौन मेरा मेरा क्या तू लागे..... हम सब की जुबाँ पर था। दिवंगत निदा फाज़ली साहब का लिखा मेरे तेरे नाम नहीं है और फिल्म रोग का मैंने दिल से कहा ढूँढ लाना खुशी जैसे गीतों को कौन भूल सकता है? एम एम कीरावानी बधाई के पात्र हैं कि वो हिंदी फिल्मों में युवा प्रतिभावान तेलुगू गायकों को मौका देते रहे हैं। जहाँ स्पेशल 26 में उन्होंने चैत्रा अंगादिपुदी को मौका दिया था वहीं बेबी के इस गीत के लिए उनकी पसंद रहीं राम्या बेहरा ! आख़िर कौन हैं ये राम्या बेहरा?
आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले में जन्मी राम्या संगीत के प्रति शुरु से गंभीर नहीं थीं। उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि वो पार्श्व गायिका बनेंगी। हाँ इतना जरूर था कि वो बचपन में रेडियो पर आ रहे नग्मों को गुनगुनाया करती थीं। माँ पापा ने उनके हुनर को पहचाना और उन्हें गाने के लिए प्रेरित किया। अपनी माँ के कहने पर सातवीं कक्षा से उन्होंने संगीत विद्यालय में दाखिला लिया। स्थानीय तेलुगू चैनल मा टीवी पर सुपर सिंगर के आख़िरी दौर में प्रवेश कर लेना उनके आत्मविश्वास और अवसरों दोनों को बढ़ा गया। एम एम कीरावानी ने ही सबसे पहले उन्हें तेलुगू फिल्मों में गाने का मौका दिया। बेबी के इस गीत के बारे में राम्या कहती हैं..
"ये पहले एक डमी गीत था। डमी गीत वो गीत होते हैं जिन्हें किसी से गवाकर उसकी रूपरेखा तैयार कर दी जाती है जिसकी सहायता से कोई नामी गायक उसे अपने स्वर में ढालता है। इसीलिए मैंने जब ये गीत रिकार्ड किया तो ये नहीं सोचा था कि ये फिल्म का हिस्सा बनेगा। मुझे यही लगा था कि इसे किसी बड़े गायक से गवाया जाएगा पर निर्देशक व गीतकार को मेरी आवाज़ जँच गई और इस गीत को रख लिया गया।"
राम्या का ये गीत फिल्म का तो नहीं पर एलबम का जरूर हिस्सा बना। राम्या हिंदी फिल्मों में और गीत गाने की ख़्वाहिश रखती हैं और जितनी प्यारी उनकी आवाज़ है उन्हें और मौके जरूर मिलने चाहिए।
मनोज मुन्तसिर गीत के अंतरे में अपने प्रिय से दूर रहती नारी के मानसिक हालातों को सहजता से उभारते हैं। इस गीत के लिए एम एम कीरवानी ने नाममात्र के संगीत का प्रयोग किया है। गीत के बोलों के पीछे मंद मंद बजता गिटार मन को सुकून देता है। पर दिल के तार जुड़ते हैं राम्या की आवाज़ से जिसे कीरवानी अपनी रागिनियों से प्रगाढ़ करते हैं । नायिका के हृदय की पीड़ा उनकी आवाज़ में यूँ ढल जाती हैं कि आप भी नायिका के दुख में शामिल हो जाते हैं। अगर आपको यकीन नहीं तो ख़ुद ही सुन लीजिए ना इस बेहद संवेदनशील नग्मे को
मैं तुझ से प्यार नही करती मैं तुझ से प्यार नही करती पर कोई ऐसी शाम नहीं जब मैं अपनी तन्हाई में तेरा इंतज़ार नहीं करती मैं तुझसे प्यार नहीं करती
मैं तुझसे प्यार नहीं करती पर शहर में जिस दिन तू ना हो ये शहर पराया लगता है हर फूल लगे बेगाना सा हर शज़र पराया लगता है मैं तुझसे प्यार..
वो अलमारी कपड़ो वाली लावारिस हो जाती है ये पहनूँ या वो पहनूँ ये उलझन भी खो जाती है मुझे ये भी याद नही आता रंग कौन से मुझको प्यारे हैं मेरे शौक, पसंद मेरी बिन तेरे सब बंजारे हैं
तुझसे प्यार नहीं करती मैं तुझसे प्यार नहीं करती मैं तुझसे प्यार नहीं करती मैं तुझसे प्यार नहीं करती पर ऐसा कोई दिन है क्या? जब याद तुझे तेरी बातों को सौ-सौ बार नही करती सौ-सौ बार नही करती
वार्षिक संगीतमाला की तीसरी पायदान पर एक ऐसा गीत है जिसके मुखड़े को गुनगुना कर उसमें छुपी मधुरता को आप महसूस कर लेते हैं। पिछले छः महिने से इस गीत की गिरफ्त में हूँ और आज भी इसे सुनते हुए मेरा जी नहीं भरता। ये गीत है फिल्म स्पेशल 26 से और इसके संगीतकार हैं एम एम करीम ( M M Kreem)। आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इस नाम का वो प्रयोग सिर्फ हिंदी फिल्मों के लिए करते हैं। वैसे उनका असली नाम एम एम कीरावानी (M M Keeravani) है।
आँध्रप्रदेश से आने वाले करीम ने सभी दक्षिण भारतीय भाषाओं में संगीत दिया है। हिंदी फिल्मों में अपना हुनर दिखाने का पिछले दो दशकों में जब भी उन्हें मौका मिला है, उन्होंने अपने प्रशंसकों को कभी निराश नहीं किया है। याद कीजिए नब्बे के दशक मैं फिल्म क्रिमिनल के गीत तुम मिले दिल खिले और जीने को क्या चाहिए ने क्या धमाल मचाया था। फिर फिल्म इस रात की सुबह नहीं का उनका गीत तेरे मेरे नाम नहीं है और चुप तुम रहो बेहद चर्चित हुए थे। इसके बाद जख़्म, सुर, जिस्म और रोग जैसी फिल्मों में उनका संगीत सराहा गया।
फिल्म स्पेशल 26 के लिए करीम ने बतौर गीतकार इरशाद क़ामिल को चुना और देखिए क्या मुखड़ा लिखा उन्होंने.. कौन मेरा, मेरा क्या तू लागे क्यों तू बाँधे, मन से मन के धागे बस चले ना क्यों मेरा तेरे आगे
समझ नहीं आता ना कि जब हम किसी अनजान को पसंद करने लगते हैं तो फिर दिल के तार उसकी हर बात और सोच से जुड़ने से लगते हैं और फिर ये असर इतना गहरा हो जाता है कि अपने आप पर भी वश नहीं रहता।
एम एम करीम ने इस रूमानी गीत को तीन अलग अलग कलाकारों पापोन, सुनिधि चौहान और चैत्रा से गवाया है। पर मुझे इन सबमें चैत्रा अम्बादिपुदी (Chaitra Ambadipudi) का गाया वर्सन पसंद है। करीम गीत की शुरुआत पिआनो और फिर बाँसुरी से करते हैं। इंटरल्यूड्स में वॉयलिन की धुन आपका ध्यान खींचती है पर इन सब के बीच चैत्रा अपनी मीठी पर असरदार आवाज़ से श्रोताओं का मन मोह लेती हैं।
तेलुगु फिल्मों में ज्यादातर गाने वाली बाइस वर्षीय चैत्रा के लिए हिंदी फिल्मों में गाने का ये पहला अवसर था। दिलचस्प बात यह भी है कि चैत्रा एक पार्श्व गायिका के साथ साथ सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी हैं और फिलहाल माइक्रोसॉफ्ट में कार्यरत हैं। अपनी गुरु गीता हेगड़े से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने वाली चैत्रा दक्षिण भारतीय फिल्मों में सौ से भी ज़्यादा नग्मों में अपनी आवाज़ दे चुकी हैं। वैसे उन्हें जितना संगीत से लगाव है उतना ही सॉफ्टवेयर से भी है और वे दोनों क्षेत्रों में अपना हुनर दिखाना चाहती हैं। तो आइए पहले सुनें उनकी सुरीली आवाज़ में ये बेहद मधुर नग्मा
कौन मेरा, मेरा क्या तू लागे क्यों तू बाँधे, मन से मन के धागे बस चले ना क्यों मेरा तेरे आगे
छोड़ कर ना तू कहीं भी दूर अब जाना तुझको कसम हैं साथ रहना जो भी हैं तू झूठ या सच हैं, या भरम हैं अपना बनाने का जतन कर ही चुके अब तो बैयाँ पकड़ कर आज चल मैं दूँ, बता सबको
ढूंढ ही लोगे मुझे तुम हर जगह अब तो मुझको खबर हैं हो गया हूँ तेरा जब से मैं हवा में हूँ तेरा असर है तेरे पास हूँ, एहसास में, मैं याद में तेरी तेरा ठिकाना बन गया अब साँस में मेरी
इस गीत का पापोन वाला वर्सन भी श्रवणीय है। उनकी आवाज़ का तो मैं हमेशा से कायल रहा हूँ। एम एम करीम नेबस यहाँ संगीत का कलेवर पश्चिमी रंग में रँगा है।
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नदियां...
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