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मंगलवार, नवंबर 08, 2011

शान्तनु, स्वानंद, जेब , हानीया के इस गीत पर बताएँ तो क्या ख़्याल है ?

विगत कुछ दिनों से टीवी पर निजी चैनलों ने बॉलीवुड गीतों से परे भारतीय संगीत में झाँकने की कोशिश की है। ऐसे कलाकारों को बढ़ावा दिया है जो लीक से हटकर कुछ करना चाहते हैं। जो संगीत को अपने जीवन की साधना मानते हैं और अपनी कला को बाजार के अनुरूप ढालने की बजाए अपने मूल्यों पर संगीत की रचना करते हैं। संगीत चैनल के नाम पर संगीत के आलावा सब कुछ परोसने वाला MTV पिछले कुछ महिनों में MTV Unplugged, MTV Roots और Coke Studio at MTV जैसे अलहदा कार्यक्रम ले के आया है। कुछ दिनों पहले इसी सिलसिले में मैंने आपको MTV Roots पर शंकर टकर और निराली कार्तिक की प्रस्तुतियों से रूबरू कराया था। इधर कुछ दिनों से Star World पर हर रविवार एक नए कार्यक्रम की शुरुआत हुई है। कार्यक्रम का नाम है The Dewarists । ये ऐसे संगीतज्ञों का साझा प्रयास है जिनके लिए संगीत एक जुनून है जो संगीत के माध्यम से नए ध्वन्यात्मक प्रयोगों से घबराते नहीं, जिन्हें एक नए गीत की खोज में  सरहदों की दीवार तोड़ कर एक नई जगह में साथ साथ विचरने से भी परहेज़ नहीं।

अमूमन मैं Star World नहीं देखता। पर जब मुझे पता चला कि इस कार्यक्रम में स्वानंद शान्तनु की जोड़ी के साथ पाकिस्तान की जेब हानिया (जएब, हानीया ) का गठजोड़ हो रहा है तो मन में खुशी का ठिकाना नहीं रहा। स्वानंद को बतौर गीतकार और गायक मैं बहुत पसंद करता हूँ। शान्तनु मोइत्रा के साथ गाए उनके गीत मेरी वार्षिक संगीतमालाओं की ऊपरी पॉयदानोँ पर हमेशा बजते रहे हैं। वहीं जएब का अफ़गानी गीत पैमोना.. सुनने के बाद मैं उनकी आवाज़ का कायल हो चुका हूँ. पर ऐसा मेरे साथ हुआ हो ऐसा भी नहीं है। शान्तनु  बताते हैं कि पैमोना सुनते ही मुझे लगा कि काश हम जएब हानिया के साथ कोई गीत बनाते, इसीलिए जब The Dewarists ने हमें ऐसा करने का मौका दिया तो हमने दोनों हाथ से लपक लिया। पर एक दूसरे के संगीत के प्रति ये सम्मान एकतरफा नहीं है। जएबहानीया भी बावरा मन देखने चला एक सपना की उतनी बड़ी प्रशंसक हैं जितना की मैं और आप।
 


स्वानंद और शान्तनु के सांगीतिक सफ़र के बारे में तो पहले भी बता चुका हूँ। जएब व हानिया पेशावर के संगीत से जुड़े परिवार से ताल्लुक रखती हैं। जएब बताती हैं कि उनके बचपन के समय पाकिस्तान में जिया उल हक़ की सरकार थी। जिया ने सार्वजनिक संगीत समारोह पर रोक लगा दी थी इसलिए तब महफ़िलें एक दूसरे के घरों या पारिवारिक जलसों में जमती थीं। इसलिए इन दोनों बहनों को महदी हसन, आबिदा परवीन, इकबाल बानो जैसे कलाकारों को घर में ही सुनना नसीब हो गया था। जएब फक्र से कहती हैं कि सात साल की उम्र में ही उन्हें साबरी ब्रदर्स के साथ गाने का मौका मिला। आगे की शिक्षा के लिए अमेरिका गईं तो अपना हारमोनियम और गिटार लेकर। वहाँ पढ़ाई के साथ संगीत भी चलता रहा। फिर इंटरनेट पर अपलोड एक गीत पहले अमेरिका में लोकप्रिय हुआ और फिर पूरे पाकिस्तान में। आगे की कहानी तो यहाँ है ही



The Dewarists की एक ख़ासियत ये भी है कि ये कार्यक्रम दर्शकों को एक गीत बनने से पहले जो मिल जुल कर मेहनत होती है उसकी एक झलक भी दिखलाता है। अब इस गीत की बात करें तो शान्तनु अपने दिमाग में बैठी एक धुन बार बार गुनगुनाते हैं। जएब उस धुन को पकड़ कर सत्तर के दशक में महदी हसन के गाए एक दर्री गीत की कुछ पंक्तियाँ सुनाती हैं।

दी शब के तू अज़ मेह्र बाबाम
मेह्र बाबाम आमदाबूदी..आमदाबूदी
मतलब आप आज चाँद की तरह आसमान पर आए हैं इस बात की हमें बहुत खुशी हैं।

शान्तनु सुनकर उत्साहित हो उठते हैं। कहते हैं इसे शुरुआत में रखकर हम गाने का मूड बनाएँगे। स्वानंद को भी ये गीत के मूल भाव के लिए लाजवाब लगता है। आख़िर सरहद पार से आए मेहमानों के आने से सभी का मन हर्षित है ही। आगे की पंक्तियों के लिए सब स्वानंद की ओर आस लगाए हैं। स्वानंद हँसते हुए कहते हैं घबराएँ नहीं आगे के बोल मिल जाएँगे..आख़िर इसी की तो दुकान है अपनी। ये कहते हुए वो बाथरूम की ओर चल पड़ते हैं। अब चौंकने की बारी जएब व हानिया की है कि माज़रा क्या है। शान्तनु हँसते हुए कहते हैं कि ये स्वानंद की पुरानी आदत है। गीत के बोल उन्हें टॉयलेट में ही सूझते हैं। कुछ देर बाद स्वानंद इन पंक्तियों के साथ हाज़िर हो जाते हैं

धड़कनों की ताल बाजे साँसों का इकतारा

आँगन में सजाए बैठे सूरज चंदा तारा
चलो बाँट ले हम ज़िंदगी
जरा आज यूँ कर लें
कहो क्या ख़्याल है

सबके मुँह से एक साथ वाह वाही निकलती है। उधर हानिया भी रात भर बैठ कर एक धुन बनाती रही हैं और आज उसके लिए उन्हें शब्द भी मिल गए हैं जो गीत के मुखड़े से खूब जम रहे हैं..


आप से दो बातें करने

यादों को जेबों में भरने
आए हैं हम कुछ दिनों के बाद
यारों की सोहबत में आ के
धीरे से कुछ गुनगुना के
यूँ ही कट जाते हैं दिन और रात

शान्तनु के गीतों में कभी शोर नहीं होता। गीत के अंतरों के बीच की ताली और सितार जैसा बजता गिटार मन को थपकियाँ सा देता प्रतीत होता है और उसपर जएब और स्वानंद की दमदार आवाज़ें। शान्तनु कहते हैं..मेरी लिए जएब और स्वानंद की आवाज़ें ही सबसे बड़े वाद्ययंत्र हैं।

शान्तनु ने अगले दो अंतरों की भी रचना कर ली है जिसकी काव्यात्मकता देखते ही बनती हैं। आख़िर यूँ ही स्वानंद हमारे प्रिय गीतकार नहीं ! पूरा गीत बनकर तैयार हो गया है। संगीत से एक दूसरे के करीब रहे ये कलाकार अब मन से भी एक दूसरे के करीब आ गए हैं। संगीत भला क्या सरहदों में बँटा रह सकता है?

दीशब के तू अज़ मेह्र बा बाम
मेह्र बा बाम आमदाबूदी..आमदाबूदी

धड़कनों की ताल बाजे साँसों का इकतारा
आँगन में सजाए बैठे सूरज चंदा तारा
चलो बाँट ले हम ज़िंदगी
जरा आज यूँ कर लें
कहो क्या ख़्याल है

इक ज़हाँ छोटा सा अपना
इक ज़हाँ तुम्हारा
मुस्कान चाहें मीठी हो
या आँसू एक खारा
चलो बाँट लें ग़म और खुशी
थोड़ी गुफ़्तगू कर लें
कहो क्या ख्याल है
आप से दो बातें करने
यादों को जेबों में भरने
आए हैं हम कुछ दिनों के बाद
यारों की सोहबत में आ के
धीरे से कुछ गुनगुना के
यूँ ही कट जाते हैं दिन और रात

मुट्ठी में तुम भींच लाना सावन हरा
इक धनक तुम भी तोड़ लाना फ़लक़ से ज़रा
खट्टी बट्टी बाँट लेंगे किरणों का कतरा
इक सिक्का धूप हम से लेना गर कम लगा
बेतुक ही बेमलब हँस लें हम
क्यूँ ना ही इस लमहे में हाँ जी लें हम

चलो बाँट ले हम ज़िंदगी
जरा आज यूँ कर लें
कहो क्या ख़्याल है

आप से दो बातें करने...
दीशब के तू अज़ मेह्र बा बाम
मेह्र बा बाम आमदाबूदी..आमदाबूदी



इस पोस्ट से संबंधित कड़ियाँ

गुरुवार, जून 23, 2011

क्या कहता है जएब और हानीया (Zeb and Haniya) का गाया ये लोकप्रिय अफ़गानी लोकगीत ?

कोक स्टूडिओ ये नाम सुना है आपने। अगर आप फिल्म संगीत के इतर लोक संगीत व फ्यूजन में रुचि रखते हैं और अंतरजाल पर सक्रिय हैं तो जरूर सुना होगा। वैसे भी संगीत का ये कार्यक्रम ब्राजील और पाकिस्तान का विचरण करते हुए पिछले शुक्रवार से MTV India का भी हिस्सा हो गया है। हालांकि इसके भारतीय संस्करण की पहली कड़ी उतनी असरदार नहीं रही जितनी की सामान्यतः कोक स्टूडिओ पाकिस्तान की प्रस्तुति रहा करती है। पर भारत में इस तरह के कार्यक्रम को किसी संगीत चैनल और वो भी MTV की ये पहल निश्चय ही सही दिशा में उठाया एक कदम है।

ख़ैर आज मैं आपको एक ऐसे लोकगीत से रूबरू करा रहा हूँ जिसे सत्तर के दशक में अफगानिस्तान में रचा गया। पश्तू भाषा में रचे इस गीत को गाया है जएब (Zeb) ने और उनके साथ में हैं हानीया। जएब और हानीया (Zeb and Haniya) 


पाकिस्तान की पैदाइश पाकिस्तान के उत्तर पश्चिम पश्तून इलाके से है। पाकिस्तान में इन दो चचेरी बहनों ने पहला लड़कियों का बैंड बनाया। जएब गाती हैं और हानीया गिटार वादक हैं। पाकिस्तान में इस बैंड का एक गीत 'चुप' बेहद चर्चित रहा था।

इस अफ़गानी लोकगीत की भाषा अफगानिस्तान में बोली जाने वाली फ़ारसी है जिसे 'दरी' भी कहा जाता है। गीत की शुरुआत में जो वाद्य यंत्र बजता है वो किसी भी संगीतप्रेमी श्रोता के मन के तार झंकृत कर सकता है। इस वाद्य यंत्र का नाम है रूबाब। रुबाब अफ़गानिस्तान के दो राष्ट्रीय वाद्य यंत्रों में से एक है और अफ़गानी शास्त्रीय संगीत में इसकी उपस्थिति अनिवार्य मानी जाती है। गीत का शुरुआती एक मिनट इसकी तान में खो सा जाता है और फिर पीछे से उभरता है जएब का मधुर स्वर।  

पिछले साल मेरी एक मित्र ने मुझे जब कोक स्टूडिओ पाकिस्तान के कार्यक्रम में प्रसारित इस गीत के बारे में बताया तो मुझे उत्सुकता हुई कि आख़िर रुबाब की मधुर धुन के आलावा गायिका ने इस गीत में क्या कहना चाहा है? तो आइए गीत का आनंद लें इसमें व्यक्त भावनाओं के साथ


पैमोना बेदेह के खुमार असतम
मन आशिक ए चश्मे मस्ते यार असतम
बेदेह बेदेह के खुमार असतम
पैमोना बेदेह के खुमार असतम

साकी शराब का प्याला ले आओ । आज मैं इस जाम की खुमारी में अपने आप को डुबो लेना चाहता हूँ। तुम्हारी नशीली आँखें मुझे तुम्हारा दीवाना बना रही हैं। लाओ लाओ कि इसकी ख़ुमारी मैं मैं अपने आप को खो देना चाहता हूँ।

चश्मत के बाहू ए खुतन मेमोनाए
रूयात बा गुलाब हाय चमन मेमोनाए
गुल रोब ए कुनैद वरक़ वरक़ बू ए कुनैद
बा लाला ए ज़ार ए बे वतन मींयारात
पैमोना बेदेह के खुमार.... असतम

क्या तुम्हे पता है कि तुम्हारी आँखें मेरे दिल के बगीचे में रोशनी भर देती हैं। तुम्हारा चेहरा मेरे दिल के बाग के सभी गुलाबों को खिला देता है। सच पूछो तो तुम्हारा ये चेहरा मेरे दिल की बगिया में रंग भरता है, उनकी पंखुड़ियों में सुगंध का संचार करता है।

अज ओमादान ए तगार खबर में दास्तान
पेश ए कदमात कोचा रा गुल में कोश्ताम
गुल में कोश्तम गुल ए गुलाब में कोश्ताम
खाक़ ए कदमात पद ए दम ए वादाश्ताम
पैमोना बेदेह के खुमार.... असतम
सोचता हूँ जब तुम्हारे पवित्र कदमों की आहट इस हृदय को सुनाई देगी, तब मैं तुम्हारे रास्ते में दिल के इन फूलों को कालीन की तरह बिछा दूँगा। चारों ओर फूल बिछे होंगे..गुलाब के फूल और उन फूलों के बीच पड़ती तुम्हारे चरणों की धूल में मैं खुद को न्योछावर कर दूँगा।

तो प्रेम में रससिक्ता इस गीत को सुना आपने। आपको क्या लगा कि ये किसी प्रेमिका के लिए एक प्रेमी के हृदय का क्रंदन है। ज़ाहिर सी बात है शाब्दिक तौर पर ये गीत तो हमसे यही कहता है और यही सही भी है ।

पर ये बताना जरूरी है कि ये गीत वास्तव में एक सूफी गीत से प्रेरित हैं । दरअसल मूल गीत जिसमें कई छंद हैं को मशहूर सूफ़ी कवि उमर ख़्य्याम ने ग्यारहवीं शताब्दी में लिखा था। दरअसल सूफी संतों ने अपने लिखे गीतों में शराब और साक़ी को रूपकों की तरह इस्तेमाल किया है। मजे की बात ये है कि इन संतों ने कभी मदिरा को हाथ भी नहीं लगाया।

सूफी विचारधारा में भक्त और भगवान का संबंध एक आशिक का होता है जिसे ऊपरवाले की नज़र ए इनायत का बेसब्री से इंतज़ार होता है। साक़ी सौंदर्य का वो प्रतिमान है जो उसे ईश्वर के प्रेम में डूबने को उद्यत करती है। सूफी साहित्य में कहीं कहीं इस साक़ी को अलौकिक दाता की संज्ञा दी गई है जो हम सभी को ज़िदगी रूपी मदिरा का पान कराती है।

कोक स्टूडिओ के कार्यक्रम में आप जएब और हानीया को देख सकते हैं साथ में बजते रुबाब के साथ...


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