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बुधवार, जनवरी 30, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 सरताज गीत : मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता Aahista

पूरे एक महीने की संगीत यात्रा की अलग अलग सीढ़ियों को चढ़ते हुए वक़्त आ गया है एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला की चोटी पर स्थित पायदान यानी साल के सरताज गीत के खुलासे का। सच तो ये है कि इस साल के प्रथम दस गीत सभी एक से बढ़कर एक थे। सब का एक अपना अलग रंग था। कहीं पारिवारिक विछोह था, कहीं किसी के आने की अंतहीन प्रतीक्षा थी, कहीं आर्केस्ट्रा का जादू था, कहीं देशभक्ति की पुकार थी, कहीं शास्त्रीयता की बहार थी, कहीं एक अजीब सा पागलपन था तो कहीं प्रेम से रससिक्त सुरीली तान थी। 

मैंने इस साल के सरताज गीत के लिए जो रंग चुना है वो है प्रेम में अनिश्चितता का, बेचैनी का, दूरियों का, और इन तकलीफों के बीच भी आपसी अनुराग का। ये रंग समाया है लैला मजनूँ के गीत आहिस्ता में। इस गीत की धुन बनाई नीलाद्रि कुमार ने, लिखा इरशाद कामिल ने और गाया अरिजीत सिंह और जोनिता गाँधी की जोड़ी ने। 


फिल्म लैला मजनूँ के लिए नीलाद्रि ने चार गीतों को संगीतबद्ध किया। पिछले साल के इस सबसे शानदार एलबम के कुछ  गीतों तुम, ओ मेरी लैला ,सरफिरी और हाफिज़ हाफिज़ से आप मिल ही चुके हैं। इससे पहले कि आपको इस गीत से मिलवाऊँ क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे कि इम्तियाज़ अली ने सितार/ जिटार वादक नीलाद्रि को इस संगीतमय फिल्म की आधी जिम्मेदारी भी क्यूँ सौंपी? इससे पहले नीलाद्रि ने सिर्फ एक बार हिंदी फिल्मों के एक गीत में संगीत दिया था। दरअसल इम्तियाज़ अली के एक मित्र जो अक्सर अपने नाटकों में उन्हें बुलाया करते थे ने उनको नीलाद्रि के बारे में बताया था। नीलाद्रि के व्यक्तित्व को परिभाषित करने का उनका अंदाज़ निराला था   
"एक म्यूजिकल उस्ताद है जो यंग है और क्रिकेट भी खेलता है और अपने जैसा कूल है तू मिल उससे"।
इम्तियाज़ उनसे मिले तो उन्होंने नीलाद्रि को वैसा ही पाया सिवाय इस बात के कि वो सिर्फ क्रिकेट नहीं बल्कि फुटबाल भी खेलते हैं। तब तक लैला मजनूँ के कुछ गीतों की कमान दूसरे संगीतकारों को मिल चुकी थी। नीलाद्रि एक फिल्म में एक संगीतकार वाली शैली के हिमायती हैं पर कश्मीर घाटी में पनपती एक प्रेम कहानी में संगीत देना उन्हें एक आकर्षक चुनौती की तरह लगा जिसमें वो अपने संगीत के विविध रंग भर सकते थे।

नीलाद्रि ने लैला मजनूँ के संगीत में गीतों की सामान्य शैली से हटकर संगीत दिया और उनके अनुसार ये सब स्वाभाविक रूप से होता चला गया। उनकी कही बात एक बार फिर आपसे बाँटना चाहूँगा..
"मैं अपनी रचनाओं में किसी खास तरह की आवाज़ पैदा करने का प्रयत्न नहीं करता। मेरे लिए संगीत ऐसा होना चाहिए जो एक दृश्य आँखों के सामने ला दे, बिना कहानी सामने हुए भी उसके अंदर की भावना जाग्रत कर दे। चूँकि मैं एक वादक हूँ मेरे पास बोलों की सहूलियत नहीं होती अपना संदेश श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए। शब्दों का ना होना हमारे काम को कठिन बनाता है पर कभी कभी उनकी उपस्थिति एक मनोभाव को धुन के ज़रिए प्रकट करने में मुश्किलें पैदा करती है। ऐसी ही परिस्थितियों में इरशाद कामिल जैसे गीतकार मदद करते हैं। 
मैंने अपने कैरियर में कई धुनें बनाई है अपने गीतों और वाद्य वादन के लिए। अगर मुझसे 10-15 साल बाद कहा जाए कि उन्हें फिर से बनाओ तो मैं उनमें बदलाव लाऊँगा पर आहिस्ता के लिए मैं ऐसा नहीं कह सकता।"  
नीलाद्रि कुमार  और इरशाद कामिल 

आहिस्ता  एक ऐसा गीत है जो प्रेम की विभिन्न अवस्थाओं की बात करता है। पहला दौर वो जिस में प्रेम पनप रहा होता है। नायिका आहिस्ता आहिस्ता अपने प्रेमी को दिल में जगह देना चाहती है। वहीं नायक के मन में अपने दिल की बात को उस तक पहुँचाने की उत्कंठा है। फिर उसकी बात के मर्म को ठीक ठीक ना समझे जाने का भय भी है। सबसे बड़ा संकट है पूर्ण अस्वीकृति  की हर समय लटकती तलवार का। अब ऐसे में नायक का दिल परेशां ना हो तो क्या हो और इसीलिए कामिल साहब लिखते हैं कि पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला...दिल सवालों से ही ना, दे रुला

तुम मिलो रोज ही 
मगर है ये बात भी 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता

तुम, मेरे हो रहे 
या हो गये, या है फासला
पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला 
दिल सवालों से ही ना, दे रुला 
होता क्या है, आहिस्ता आहिस्ता 
होना क्या है, आहिस्ता आहिस्ता

चलिए प्रेम हो भी गया पर सामाजिक हालातों  ने आपको अपने प्रेमी से दूर कर दिया।अब सहिए वेदना। लोग तो शायद दिलासा देंगे कि वक़्त के साथ सब ठीक हो जाएगा पर नायक नायिका जानते हैं कि ये दुनिया कितनी झूठी हैं और ये वक़्त  किस तरह प्रेमियों को छलता रहा है। इरशाद कामिल इन भावों को कुछ यूँ शब्द देते हैं

दूरी, ये कम ही ना हो 
मै नींदों में भी चल रहा 
होता, है कल बेवफा 
ये आता नहीं, छल रहा

लाख वादे जहां के झूठे हैं  
लोग आधे जहां के झूठे हैं  
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता

फिर भी देखिए ना इतनी तकलीफ के बाद भी मन में अपने प्रेमी के लिए जो अनुराग हैं ना वो खत्म नहीं होता और इस बात को इरशाद कामिल इतनी खूबसूरती से कहते हैं कि

मैंने बात, ये तुमसे कहनी है 
तेरा प्यार, खुशी की टहनी है 
मैं शाम सहर अब हँसता हूँ 
मैंने याद तुम्हारी पहनी है 
मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
होता क्या है आहिस्ता आहिस्ता 
होता क्या है आहिस्ता आहिस्ता

खुशी की टहनी और यादों को पहनने का भाव मन को रोमांचित कर जाता है। आप गीत में खो चुके होते हैं कि नीलाद्रि जिटार पर अपनी मधुरता बिखेरते सुनाई पड़ते हैं। 

अरिजीत और जोनिता 
अरिजीत और जोनिता इस गीत में जगह पाकर बहुत खुश थे और दोनों ने ही बखूबी इस गीत को अपनी आवाजें  दी हैं।। अरिजीत ने तो ये भी कहा कि गीत के बोलों से वो एक ही बार में जुड़ गए।  अरिजीत का हिस्सा थोड़ा कठिन था पर जिस कोटि के वे गायक हैं उन्होंने उसे भी पूरे भाव के साथ निभाया। 

वो कहते हैं ना कि किसी गाने में एक मीठा सा दर्द है तो ये वैसा ही गाना है़ और ऐसे गीत मुझे हमेशा से मुतासिर करते रहे हैं। आज जब रीमिक्स और रैप के ज़माने में भी नीलाद्रि और इम्तियाज अली जैसे लोग संगीत की आत्मा को अपनी फिल्मों में इस तरह सँजों के रखते हैं तो बेहद खुशी होती है और दिल में आशा बँधती है हिंदी फिल्म संगीत के सुनहरे भविष्य की। तो आइए आहिस्ता आहिस्ता महसूस कीजिए इस गीत की मधुर पीड़ा को..




इस साल की संगीतमाला का अगला और अंतिम आलेख होगा एक शाम मेरे नाम के पिछले साल के संगीत सितारों के नाम जिसमें बात होगी  कलाकारों के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत प्रदर्शन की :)

वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

गुरुवार, फ़रवरी 09, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 12: क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ Gileheriyaan

दंगल पिछले साल की सर्वाधिक चर्चित फिल्म रही है। फिल्म की पटकथा व अभिनय की तो काफी तारीफ़ हुई ही पर साथ ही इस फिल्म का गीत संगीत भी काफी सराहा गया। यही वज़ह है कि वार्षिक संगीतमाला में इस फिल्म के तीन गाने शामिल हैं और इस कड़ी में पहला नग्मा है गिलहरियाँ  जिसे नवोदित गायिका जोनिता गाँधी ने अपनी आवाज़ से सँवारा है।

बचपन से हम सभी इस मासूम से जन्तु को अपने आस पास धमाचौकड़ी मचाते देखते रहे हैं। फिर स्कूल में महादेवी वर्मा जी द्वारा लिखे गिल्लू के संस्मरण को पढ़कर गिलहरियों पर ममत्व और जाग उठा था। पर किसे पता था कि कभी इनका जिक्र एक गीत की शक़्ल में होगा। दिल की धड़कनों के लिए गिलहरियों जैसा बिम्ब सोच कर उसे गीत में पिरोने का श्रेय अर्जित किया है मेरे पसंदीदा गीतकारों में से एक अमिताभ भट्टाचार्य ने ।


यूँ तो दंगल के अधिकांश गीत फिल्म की कथावस्तु के अनुरूप हरियाणवी मिट्टी में रचे बसे हैं पर प्रीतम को इस गीत को उस परिपाटी से अलग रचने का मौका मिला। गीत की शुरुआत प्रीताम गिटार और चुटकियों की मिश्रित जुगलबंदी से करते हैं।  गाँव की बँधी बँधाई दिनचर्या से निकल कर शहरी आजादियों का स्वाद चखती एक लड़की की मनोस्थिति में क्या बदलाव आता है, ये गीत उसी को व्यक्त करता है।  इस गीत में शब्दों की ताज़गी के साथ साथ आवाज़ की भी एक नई बयार है।

अगर आप जोनिता से पहले परिचित ना हों तो ये बता दूँ कि दिल्ली में जन्मी 27 वर्षीय जोनिता की परवरिश कनाडा में हुई। पिता वैसे तो इंजीनियर थे पर संगीत के शौकीन भी। जोनिता ने अपनी पढ़ाई के साथ पश्चिमी संगीत सीखा और अब हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत भी सीख रही हैं। पाँच साल पहले यू ट्यूब में पानी दा रंग के कवर वर्सन को गाने के बाद वे सुर्खियों में आयीं। 2013 में चेन्नई एक्सप्रेस के शीर्षक गीत को गाकर उन्होंने बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआता की़। फिर ए आर रहमान के एलबम रौनक का हिस्सा बनीं। पिछले साल दंगल के आलावा उनके गया  पिंक एंथम और ऐ दिल ए मुश्किल का  ब्रेकअप सांग भी काफी लोकप्रिय हुआ।

जोनिता गाँधी

बहरहाल अमिताभ के इस गीत में गणित की उबन के साथ शरारती अशआर का भी जिक्र है, आसमान और ज़मीं की आपसी नोकझोंक भी है और सिरफिरे मौसम व मसखरे मूड में रचा बसा माहौल भी। शब्दों के साथ इस गीत  में उनकी चुहल, लुभाती भी है और गुदगुदाती भी। तो आईए जोनिता की रस भरी आवाज़ में सुनें ये हल्का फुल्का मगर प्यारा सा नग्मा

रंग बदल बदल के, क्यूँ चहक रहे हैं
दिन दुपहरियाँ, मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना
क्यूँ फुदक फुदक के धडकनों की चल रही गिलहरियाँ
मैं जानूँ ना जानूँ ना

क्यूँ ज़रा सा मौसम सिरफिरा है, या मेरा मूड मसखरा है, मसखरा है
जो जायका मनमानियों का है, वो कैसा रस भरा है
मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना
क्यूँ हजारों गुलमोहर से
भर गयी है ख्वाहिशों की टहनियाँ
मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना

इक नयी सी दोस्ती आसमान से हो गयी
ज़मीन मुझसे जल के, मुँह बना के बोले
तू बिगड़ रही है

ज़िन्दगी भी आज कल, गिनतियों से ऊब के
गणित के आंकड़ों के साथ, एक आधा शेर पढ़ रही है
मैं सही ग़लत के पीछे, छोड़ के चली कचहरियाँ
मैं जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना जानूँ ना


वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
 

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