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मंगलवार, दिसंबर 20, 2011

अदम गोंडवी (1947-2011) : एक जनकवि की दुखद विदाई !

अदम गोंडवी उर्फ रामनाथ सिंह नहीं रहे। गत रविवार को लीवरसिरोसिस से पीड़ित इस ग़ज़लकार ने दुनिया से विदा ली। उनके पैतृक जिले गोंडा मे पिछले कुछ दिनों से उनका इलाज चल रहा था। आर्थिक तंगी की वज़ह से वो पहले लखनऊ नहीं आ पा रहे थे और जब आए तब तक उनकी हालत शायद काफी बिगड़ चुकी थी। अदम गोंडवी को हिंदी ग़ज़ल में लोग दुष्यन्त कुमार की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला लेखक मानते हैं।1998 में उन्हें मध्यप्रदेश सरकार ने दुष्यन्त सम्मान से नवाज़ा था। उनके लिखे गजल संग्रह 'धरती की सतह पर'मुक्ति प्रकाशन व 'समय से मुठभेड़' के नाम से वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित हुए।

हमेशा अपने देशी परिधान धोती कुर्ते में देखे जाने वाले अदम का जीवन सादा और ग्रामीण जीवन से जुड़ा रहा। गाँव से उनके लगाव को उनके इन अशआरों से समझा जा सकता है

ग़ज़ल को ले चलो अब गाँव के दिलकश नज़ारों में
मुसल्सल फ़न का दम घुटता है इन अदबी इदारों में

न इन में वो कशिश होगी , न बू होगी , न रआनाई
खिलेंगे फूल बेशक लॉन की लम्बी कतारों में

उन्होंने लोगों की कठिनाइयों को करीब से समझा और उननी लेखनी इस वर्ग में पलते आक्रोश की जुबान बनी

घर में ठंडे चूल्हे पर अगर खाली पतीली है
बताओ कैसे लिख दूँ धूप फागुन की नशीली है

बग़ावत के कमल खिलते हैं दिल के सूखे दरिया में
मैं जब भी देखता हूँ आँख बच्चों की पनीली है

दुष्यन्त की तरह ही उनकी लेखनी समाज में व्याप्त आर्थिक असमानता और भ्रष्टाचार पर खूब चली। सहज भाषा में भ्रष्ट राजनीतिक व्यवस्था पर अपनी ग़ज़लों के माध्यम से किए कटाक्षों ने अदम को आम जनता के बीच खासी लोकप्रियता दी। मिसाल के तौर पर इन अशआरों में उनकी लेखनी का कमाल देखें..

जो उलझ कर रह गयी है फाइलों के जाल में
गाँव तक वह रौशनी आएगी कितने साल में

खेत जो सीलिंग के थे सब चक में शामिल हो गए
हम को पट्टे की सनद मिलती भी है तो ताल में

प्रचार और चमचागिरी हमारी आज की राजनीति के कितने अभिन्न अंग हैं ये अदम कितनी खूबसूरती से बयाँ कर गए इस शेर में..

तालिबे शोहरत हैं कैसे भी मिले मिलती रहे
आए दिन अख़बार में प्रतिभूति घोटाला रहे

एक जनसेवक को दुनिया में अदम क्या चाहिए
चार छ: चमचे रहें माइक रहे माला रहे

और यहाँ देखिए क्या ख़ाका खींचा था आज की विधायिका का गोंडवी साहब ने...

काजू भुने पलेट में, विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में

पक्के समाजवादी हैं, तस्कर हों या डकैत
इतना असर है ख़ादी के उजले लिबास में

अपनी किताब 'धरती की सतह पर' में एक बड़ी लंबी कविता लिखी थी गोंडवी जी ने। कविता का शीर्षक था मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको..
कविता एक दलित युवती की कहानी कहती है जिसे सवर्णों की वासना का शिकार होने के बावजूद भी हमारा सामाजिक ढाँचा न्याय नहीं दिलवा पाता। क्या ये विडंबना नहीं कि दलितों और गरीबों की बात कहने वाले शायर को वैसे प्रदेश से आर्थिक बदहाली में ही संसार से रुखसत होना पड़ता है जो तथाकथित रूप से इस वर्ग का हितैषी है?

अदम गोंडवी साहब की इस कविता को उनके प्रति विनम्र श्रृद्धांजलि के तौर पर आप तक अपनी आवाज़ में पहुँचा रहा हूँ। आशा है उनके लिखे शब्द युवाओं को इस सामाजिक व्यवस्था को तोड़ने के लिए प्रेरित करेंगे जिसकी झलक ये कविता हमें दिखलाती है।

 

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