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शुक्रवार, मार्च 29, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे..

एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला के 25 शानदार गीतों की इस शृंखला में अब आपको दस गीत ही सुनवाने बचे हैं। इन गीतों में ज्यादातर मेरे बेहद प्रिय रहे हैं। आज जो गीत मैं आपको सुनवाने जा रहा हूँ वो एक गैर फिल्मी गीत है जिसमें अरिजीत सिंह ने बतौर संगीतकार की भूमिका निभाई है। एक समय प्रीतम के सहायक रहे अरिजीत ने तीन साल पहले पगलेट के संगीत के लिए भी खासी वाहवाही लूटी थी। यहाँ भी वो अपने संगीत से श्रोताओं का दिल जीतने में सफल रहे हैं।

मानसून के मौसम में पिछले साल जुलाई में रिलीज़ हुए इस गीत को लिखा था इरशाद कामिल साहब ने। इरशाद कामिल के लिए बरखा के बोलों को लिखना अतीत की यादों में भींगने जैसा था। बारिश बहुत लोगों के लिए एक मौसम से बढ़कर है। ये अपने साथ हममें से कितनों के मन में भावनाओं का ज्वार लेकर आती है। इरशाद ने कोशिश की इस गीत के द्वारा वे इन जज़्बातों को शब्द दे सकें। 
बड़ी कोमल शब्द रचना है इरशाद की इस गीत में। कुछ पंक्तियाँ तो बस मन को यूँ ही सहलाती हुई निकल जाती हैं जैसे कि झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे.. या फिर आजा रे, आ, बरखा रे, मीठे तू कर दिन खारे। सच में बरखा सिर्फ एक गीत नहीं है बल्कि एक कैफ़ियत है जिसमें प्रेम, विरह और आख़िरकार मिलन के भाव बारिश की बूँदो में बहते चले आते हैं।
इस फिल्म का वडियो शूट बंगाल में हुआ। इस गीत का वीडियो देखते हुए मुझे परवीन शाकिर की वो नज़म याद आ गयी..

बारिश में क्या तन्हा भीगना लड़की
उसे बुला जिसकी चाहत में
तेरा तन-मन भीगा है
प्यार की बारिश से बढ़कर क्या बारिश होगी
और जब उस बारिश के बाद
हिज्र की पहली धूप खुलेगी
तुझ पर रंग के इस्म खुलेंगे
अरिजीत सिंह ने बरखा से जुड़े इस गीत में कुछ बेहद मधुर स्वरलहरियाँ सृजित की हैं। गिटार पर आदित्य शंकर का बजाया टुकड़ा जो मुखड़े के बाद और अंतरों के बीच बजता है मुझे बेहद मधुर लगा। गिटार के अलावा निर्मल्य डे की बजाई बाँसुरी भी कानों में रस घोलती है। साथ में कहीं कहीं पियानो की टुनटुनाहट भी सुनाई दे जाती है और फिर सोने पर सुहागा के तौर पर अरिजीत का एक प्यारा आलाप तो है ही
आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे
झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे
पानी की छाँव में, बूँदों के पाँव में बाँधे तू झाँझरें
हो, आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे
झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे

बहा के ले जाना दुख बीते कल के
गहरे-हल्के, पुराना धो जाना
आजा रे, आ, बरखा रे, मीठे तू कर दिन खारे
तेरी नज़र को उतारे, कब से नहीं देखा रे

आजा, बरखा
बोलो, क्या बोलूँ, मैं ना तो क्या तू?
तू ना हो तो, मैं क्या बोलूँ? तू है तो मैं हूँ

आजा रे, आ, बरखा रे, कब से नहीं देखा रे
कब से नहीं देखा रे, आजा रे, आ, बरखा रे
पानी की छाँव में, बूँदों के पाँव में
हो, आजा रे, आ, बरखा रे
झोंका हवा का पुकारे, ग़म को बहा ले जा रे

गायिकी की दृष्टि से सुनिधि के लिए पिछला साल बेहतरीन रहा। हालांकि इस गाने के एक हिस्से को मैंने श्रेया और जैन की आवाज़ में सुना तो वो मुझे बारिश की सोंधी बूँदों की तरह ही मन को और शीतल कर गया।
सुनिधि के अपने इस गीत के बारे में कहना था कि हमने कोशिश की है बारिश को समर्पित एक गीत रचने की जो उस मौसम के साथ मन में उमड़ती घुमड़ती भावनाओं को भी व्यक्त कर जाता है। तो आइए सुनते हैं इस गीत को उनकी आवाज़ में।


वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा

    शुक्रवार, जनवरी 26, 2024

    वार्षिक संगीतमाला 2023 : ओ माही ओ माही तेरी वफ़ा पर हक़ हुआ मेरा

    वार्षिक संगीतमाला की अगली कड़ी में आज एक गीत फिल्म डंकी से। ये फिल्म तो लोगों ने उतनी पसंद नहीं की, हां पर इसके एक दो गाने यू ट्यूब पर खूब बजे, इंस्टा की रीलों पर छा गए। अब इसका सबसे ज्यादा श्रेय तो मैं संगीतकार प्रीतम को देना चाहता हूं।

    प्रीतम एक ऐसे संगीतकार हैं जिनकी मेलोडी पर जबरदस्त पकड़ है। वो ये बखूबी समझते हैं कि श्रोताओं को कैसी सिग्नेचर धुन, कैसे इंटरल्यूड्स पसंद आयेंगे। ज्यादातर वे इरशाद कामिल और अमिताभ भट्टाचार्य के साथ अपने गीत रचते हैं जो उनकी बनाई धुनों के साथ न्याय करने में सक्षम हैं।


    तो डंकी फिल्म का जो गीत मेरे पसंदीदा गीतों की सूची में आया है वो है ओ माही ओ माही। मुखड़े के पहले के बीस सेकेंड में ही प्रीतम अपनी आरंभिक धुन से ध्यान खींच लेते हैं।

    माही शब्द को केंद्र में ले के दर्जनों गीत बन होंगे पर मजाल है कि श्रोता आज तक इससे ऊबे हों। इस गीत की तो ओ माही के दुहराव वाली पंक्ति ही लोगों के मन में रच बस गई है। दरअसल आज भी युवा अपने प्रेम का इज़हार करने के लिए ऐसे फिल्मी गीतों का सहारा लेते हैं जिसके बोल प्यारे पर सहज हों और जिसका संगीत कर्णप्रिय हो।

    वार्षिक संगीतमाला का ये गीत किस पायदान पर अंततः आएगा उसका खुलासा तो बाद में होगा पर इतना तो तय है कि सुरीले गीतों की इस साल की फेरहिस्त में अरिजीत सिंह का नाम बार बार आएगा।

    तो अगर आपने इरशाद कामिल का लिखा ये गीत न सुना हो तो सुन लीजिए।

    यारा तेरी कहानी में, हो जिकर मेरा
    कहीं तेरी खामोशी में, हो फिकर मेरा
    रुख तेरा जिधर का हो हो उधर मेरा
    तेरी बाहों तलक ही है ये सफ़र मेरा
    ओ माही ओ माही..ओ माही ओ माही
    तेरी वफ़ा पर हक़ हुआ मेरा
    ओ माही ओ माही...ओ माही ओ माही
    लो मैं क़यामत तक हुआ तेरा..

    बातों को बहने दो बाहों में रहने दो 
    हैं सुकून इनमें 
    रास्ते हो बेगाने, झूठे वो अफसाने 
    तू न हो जिनमें 
    हो थोड़ी उमर है प्यार ज़्यादा मेरा 
    कैसे बताएं ये सारा तेरा होगा 
    मैंने मुझे है तुझको सौंपना 
    राहों पे बाहों पे राहों पनाहों पे आहों पे बाहों पे 
    साहों सलाहों पे मेरे इश्क़ पे हुआ हक़ तेरा
    ओ माही ओ माही...ओ माही ओ माही
    लो मैं क़यामत तक हुआ तेरा..

    गुरुवार, मार्च 24, 2022

    वार्षिक संगीतमाला Top Songs of 2021 : तेरे रंग रंगा मन महकेगा तन दहकेगा Tere Rang

    वार्षिक संगीतमाला के आखिरी मोड़ तक पहुँचने में बस दो गीतों का सफ़र तय करना रह गया है। अब आज के गीत के बारे में बस इतना ही कहना चाहूँगा कि जिन्हें भी भारतीय शास्त्रीय संगीत से थोड़ा भी प्रेम होगा उन्हें संगीतमाला में शामिल इस अनूठे गीत के मोहपाश में बँधने में ज़रा भी देर नहीं लगेगी। ये गीत है ए आर रहमान के संगीत निर्देशन में बनी फिल्म अतरंगी रे का। मुझे पूरा यकीन है कि ये गीत आपमें से बहुतों ने नहीं सुना होगा पर गुणवत्ता की दृष्टि से मुझे तो ये फिल्म अंतरंगी रे ही नहीं बल्कि पिछले साल के सर्वश्रेष्ठ गीतों में एक लगा।


    यूँ तो पूरी फिल्म में रहमान साहब का संगीत सराहने योग्य है पर इस गीत को जिस तरह से उन्होंने विकसित किया है तमाम उतार चढ़ावों के साथ, वो ढेर सी तारीफ़ के काबिल है। इतनी बढ़िया धुन को अगर अच्छे बोल नहीं मिलते तो सोने पे सुहागा होते होते रह जाता। लेकिर इरशाद कामिल ने प्रेम के रंगों में रँगे इस अर्ध शास्त्रीय गीत को बड़े प्यारे बोलों से सजाया है। गीत में बात है वैसे प्रेम की जैसा राधा से कृष्ण ने किया हो। गीत का आग़ाज़ द्रुत गति के बोलों से  इरशाद कामिल कुछ यूँ करते हैं

    तक तड़क भड़क, दिल धड़क धड़क गया, अटक अटक ना माना
    लट गयी रे उलझ गयी, कैसे कोई हट गया, मन से लिपट अनजाना
    वो नील अंग सा रूप रंग, लिए सघन समाधि प्रेम भंग
    चढ़े अंग अंग फिर मन मृदंग, और तन पतंग, मैं संग संग..और कान्हा

    गीत को गाया है कर्नाटक संगीत के सिद्धस्त गायक हरिचरण शेषाद्री ने नये ज़माने की स्वर कोकिला श्रेया घोषाल के साथ। चेन्नई के एक सांगीतिक पृष्ठभूमि से आने वाले हरिचरण दक्षिण भारतीय फिल्मों के लिए नया नाम नहीं हैं पर हिंदी फिल्मों में संभवतः ये उनका पहला गीत है। 

    हरिचरण शेषाद्री श्रेया घोषाल के साथ

    रहमान साहब ने हिंदी फिल्मों में ना जाने कितने हुनरमंद कलाकारों को मौका देकर उनके कैरियर को उभारा है। साधना सरगम, नरेश अय्यर, बेनी दयाल, चित्रा, श्रीनिवास, विजय प्रकाश, अभय जोधपुरकार, चिन्मयी श्रीपदा, शाशा तिरुपति... ये फेरहिस्त दिनोंदिन लंबी होती ही जाती है। इसीलिए सारे नवोदित गायकों का एक सपना होता है कि वो रहमान के संगीत निर्देशन में कभी गा सकें। हरिचरण इसी जमात के एक और सदस्य बन गए हैं।

    हरिचरण भी रहमान के कन्सर्ट में बराबर शिरकत करते रहे हैं। जिस आसानी से इस बहते हुए गीत को उन्होंने श्रेया घोषाल के साथ निभाया है वो मन को सहज ही आनंद से भर देता है।

    मुरली की ये धुन सुन राधिके, मुरली की ये धुन सुन राधिके, मुरली की ये धुन सुन राधिके

    धुन साँस साँस में बुन के, धुन सांस सांस में बुन के
    कर दे प्रेम का, प्रीत का, , मोह का शगुन

    मुरली की ये धुन सुन राधिके...

    हो आना जो आके कभी, फिर जाना जाना नहीं
    जाना हो तूने अगर, तो आना आना नहीं
    तेरे रंग रंगा, तेरे रंग रंगा
    मन महकेगा तन दहकेगा

    तुमसे तुमको पाना, तन मन तुम..तन मन तुम
    तन से मन को जाना..उलझन गुम...उलझन गुम
    तुमसे तुमको पाना तन मन तुम
    जिया रे नैना, चुपके चुपके हारे
    मन गुमसुम, मन गुमसुम

    डोरी टूटे ना ना ना, बांधी नैनो ने जो संग तेरे
    देखे मैंने तो, सब रंग तेरे सब रंग तेरे
    फीके ना हो छूटे ना ये रंग

    तेरे रंग रंगा.. शगुन

    इस अर्ध शास्त्रीय गीत में क्या नहीं है तानें, आलाप, कोरस, मन को सहलाते शब्द, कमाल का गायन, ताल वाद्यों की थाप के बीच चलते गीत के अंत में बाँसुरी की स्वरलहरी और इन सब के ऊपर रहमान की इठलाती धुन जो तेरे रंग रंगा, तेरे रंग रंगा मन महकेगा तन दहकेगा.. तक आते आते दिल को प्रेम रस से सराबोर कर डालती है। 


    निर्देशक आनंद राय रहमान के इस जादुई संगीत से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इस म्यूजिकल के अंत में A film by A R Rahman का कैप्शन दे डाला। आनंद तो यहाँ तक कहते हैं कि मेरा बस चले तो मैं रहमान के सारे गानों को सिर्फ अपनी फिल्मों के लिए रख दूँ। वहीं श्रेया कहती हैं कि ऊपरवाला रहमान के हाथों संगीत का सृजन करता है। स्वयम् ए आर रहमान इस फिल्म की संगीत की सफलता का श्रेय इसकी पटकथा को देते हुए कहते हैं कि 

    जिस फिल्म की कथा देश के एक कोने से दूसरे कोने तक जा पहुँचती है तो बदलती जगहों और किरदारों के अनुसार संगीत को भी अलग अलग करवट लेनी पड़ती है। मैं शुक्रगुजार हूँ ऐसी कहानियों को जो संगीत में कुछ नया करने का अवसर हमें दे पाती हैं।

    वार्षिक संगीतमाला 2021 में अब तक

    बुधवार, फ़रवरी 02, 2022

    वार्षिक संगीतमाला Top Songs of 2021 जैसे रेत ज़रा सी Rait Zara Si

    राँझणा और तनु वेड्स मनु जैसी कामयाब फिल्में बनाने वाले आनंद राय जब एक बार फिर धनुष को अपनी नयी फिल्म अतरंगी रे में सारा और अक्षय कुमार के साथ ले कर आए तो आशा बँधी कि फिल्म कुछ वैसा ही जादू दोहरा पाएगी। धनुष के शानदार अभिनय के बावज़ूद अपनी लचर पटकथा की वज़ह से फिल्म तो कोई कमाल दिखला नहीं सकी जैसी आशा थी अलबत्ता संगीतकार ए आर रहमान एलबम में अपनी छाप छोड़ने में पूरी तरह सफल हुए। यही वज़ह है कि इस फिल्म के तीन गीत पिछले साल के शानदार गीतों की इस संगीतमाला में अपनी जगह बना पाए हैं।



    जहाँ तक रेत ज़रा सी का सवाल है तो यहाँ क्या मेलोडी रची है रहमान साहब ने। अगर आप दूर से भी इस गीत को सुनें तो सहज ही धुन की मधुरता आपको इसे गुनगुनाने पर मजबूर कर देगी। ज्यादातर धुनें पहले बनती हैं शब्द बाद में लिखे जाते हैं। जब भी कोई धुन बनती है तो संगीतकार या तो कच्चे बोलों से काम चलाता है या फिर अनर्गल बोलों का सहारा लेता है जिसे अंग्रेजी में Gibberish कहा जाता है। नेट पर मुझे इस गीत का ऐसा ही आडियो मिला जिसमें रहमान इस धुन को कुछ ऐसे ही बोलों से विकसित कर रहे हैं। तो सुनिए आप भी 

       

    पर आकाश में सिर्फ चाँद हो तो क्या रात अपनी सारी खूबसूरती बिखेर पाएगी? नहीं ना उसे तो ढेर सारे तारों की टिमटिमाहट भी चाहिए। शब्दों की यही जगमगाहट गीतकार इरशाद कामिल लाए हैं और उस चमक को अपनी गायिकी से हम तक पहुँचाया है अरिजीत सिंह और शाशा तिरुपति की युगल जोड़ी ने।

    इस गीत के मुखड़े को सुनकर  बचपन के वो दिन आ जाते हैं  जब रेत के टीले पर चढ़ते उतरते मस्ती करते हम बच्चे अपनी हथेलियों में मुट्ठी भर भर कर रेत का घर बनाने कर लिए ले जाया करते थे पर हर कदम के साथ रेत उँगलियों के कोनों से गिरती जाती और लक्ष्य तक पहुँचते हुए ज़रा सी ही रह जाती थी। 

    इस फिल्म में धनुष और सारा का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही है जो रेत की तरह दिल रूपी हथेली से कभी उड़ता तो कभी फिसलता चला जाता है। इन भावों को कितनी सरलता से कामिल कुछ यूँ व्यक्त करते हैं ...रोज़ मोहब्बत पढ़ता है, दिल ये तुमसे जुड़ता है...हवाओं में यूँ उड़ता है, हो जैसे रेत ज़रा सी....हाथ में तेरी खुशबू है, खुशबू से दिल बहला है...ये हाथों से यूँ फिसला है, हो जैसे रेत ज़रा सी


    होना तेरा होना, पाना तुमको पाना
    जीना है ये माना, पल भर में सदियां
    है सदियों में, जीना है ये माना
    हाथ में तेरी खुशबू है, खुशबू से दिल बहला है
    ये हाथों से यूँ फिसला है, हो जैसे रेत ज़रा सी
    रोज़ मोहब्बत पढ़ता है, दिल ये तुमसे जुड़ता है
    हवाओं में यूँ उड़ता है, हो जैसे रेत ज़रा सी

    ये हलचल, दिल की ये हलचल
    बोले आज आस पास तू मेरे
    बिखरा हूँ मैं तो, कुछ पल हवा में
    तेरे भरोसे को थामे
    चलना भी है बदलना भी है
    तुझमें ही तो ढलना भी है

    दिल थोड़ा जज़्बाती है, भर जाता है बातों से
    ये फिर छलके यूँ आँखों से, हो जैसे रेत जरा सी
    हाथ में तेरी खुशबू है, सच पुछो तो अब यूँ है
    तू चेहरे पे मेरे ठहरा, हो जैसे रेत ज़रा सी


    अरिजीत तो दर्द भरे प्रेम गीतों के बेताज बादशाह हैं ही शाशा तिरुपति ने भी दिल थोड़ा जज़्बाती है.. गाते हुए उनका बखूबी साथ दिया है। शाशा का अरिजीत के साथ गाया ये तीसरा युगल गीत हैं और वो मानती हैं कि अरिजीत के साथ उनकी आवाज़ गानों में फबती है। रहमान के बारे में उनका कहना है कि वो गीत बनाते समय ही मन में एक प्रारूप बना लेते हैं हैं कि ये गीत किससे गवाना है? रहमान ने इस गीत में ताल वाद्यों के साथ बाँसुरी और सरोद का इस्तेमाल किया है। करीम कमलाकर की बजाई बाँसुरी गीत सुनने के बाद में भी मन में बजती रहती है। रहमान का गीत है तो अंतरों के बीच कोरस का होना तो स्वाभाविक ही है।

    तो आइए सुनें इनकी आवाज़ में ये मीठा सा नग्मा।

     

    वार्षिक संगीतमाला 2021 में अब तक

    अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत किसी  क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी। 

    सोमवार, जनवरी 24, 2022

    वार्षिक संगीतमाला 2021 Top 15 हाय चकाचक चकाचक हूँ मैं Chaka Chak

    गीतकारों के लिए हर साल एक चुनौती रहती है कि कोई ऐसा शब्द गीत के मुखड़े के इर्द गिर्द बुनें जिसे सुनते ही लोगों की उत्सुकता उस गीत के प्रति बढ़ जाए। ए आर रहमान के संगीत निर्देशन में बनी फिल्म अतरंगी रे में ये काम किया चका चक वाले गीत ने जो आज पिछले साल के 15 शानदार गीतों की इस शृंखला में आज शामिल हो रहा है। इसे लिखा इरशाद कामिल ने। रिलीज़ होने के साथ कामिल का ये गीत सारा अली खाँ के लटकों झटकों और श्रेया घोषाल की गायिकी की बदौलत बड़ी आसानी से लोकप्रिय होता चला गया। 


    वैसे साफ सुंदर व्यवस्थित किये हुए किसी भी अहाते और कमरे के लिए ये कहना कि भई तुमने तो आज पूरा घर चकाचक कर रखा है पर किसी लड़की के साथ विशेषण के रूप में इस लफ़्ज़ के इस्तेमाल का श्रेय तो कामिल साहब को मिलेगा ही।

    शादी के समय में संगीत के कार्यक्रमों में गाना नाचना होता ही रहता है। पहले ज़माने में लोकगीत गाए जाते थे और उसकी भाषा भी बेबाक ही हुआ करती थी। मौका ऐसा रहता था कि ऐसे हँसी मजाक की छूट थी और आज भी है। फर्क इतना है कि आजकल लोक गीत की जगह फिल्मी गानों ने ले ली है। कोई अचरज नहीं कि इस गीत पर भी आप युवाओं को अगली शादी में नाचता गाता देखें।

    इरशाद कामिल के इस गीत के माध्यम से नायिका अपनी चाहत का खुला इज़हार कर रही है, बिना किसी संकोच के अपनी शारीरिक और भावनात्मक इच्छाओं, खूबियों और कमियों को बताते हुए ये साबित कर देना चाह रही है कि नायक के लिए वो कितना सही चुनाव रहती।

    अब इरशाद तो जो भी कहना चाह रहे हों मेरा ध्यान पहली बार पलँग टूटने से ज्यादा तपती दुपहरी, लड़की गिलहरी सी, पटना की चाट हो 16 स्वाद, माटी में मेरे प्यार की खाद जैसी मज़ेदार पंक्तियों पर पहले गया। बाकी रहमान साहब ने नादस्वरम और बाकी ताल वाद्यों से दक्षिण भारतीय शादी का ऐसा समां बाँधा है कि मन गीत के माहौल में रमता चला जाता है। श्रेया घोषाल की खनकती आवाज़ तो लुभाती ही है पर जिस मस्ती, उर्जा और उत्साह के साथ उन्होंने इस गीत को निभाया है वो काबिलेतारीफ़ है।


    वैसे कोई पटना वाला बताएगा कि सोलह स्वादों वाली चाट वहाँ कहाँ नसीब होती है? ☺

    वार्षिक संगीतमाला 2021 में अब तक

    अगर आप सोच रहे हों कि मैंने हर साल की तरह इस गीत की रैंक क्यूँ नहीं बताई तो वो इसलिए कि इस साल परिवर्तन के तौर पर गीत नीचे से ऊपर के क्रम में नहीं बजेंगे और गीतों की मेरी सालाना रैंकिंग सबसे अंत में बताई जाएगी। 

    शुक्रवार, मार्च 19, 2021

    वार्षिक संगीतमाला 2020 : गीत #3 शायद कभी ना कह सकूँ मैं तुमको Shayad

    ढाई महीने का ये सफ़र हमें ले आया है वार्षिक संगीतमाला की तीसरी पायदान पर जहाँ गाना वो जो पिछले साल की शुरुआत में आया और आते ही संगीतप्रेमियों के दिलो दिमाग पर छा गया। अब तक ये पन्द्रह करोड़ से भी ज्यादा बार इंटरनेट पर सुना जा चुका है। जी हाँ ये गाना था लव आज कल 2  से शायद

    प्रीतम, इरशाद कामिल और अरिजीत सिंह जब साथ आ जाएँ तो कमाल तो होना ही है। तीन साल पहले भी एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला में यही तिकड़ी तीसरे स्थान पर थी जब हैरी मेट सेजल के गीत हवाएँ के साथ। एक बार फिर वैसा ही  जादू जगाने में सफल हुए हैं ये तीनों इस नग्मे में ।

    प्रीतम अपनी धुनों को तब तक माँजते हैं जब तक उन्हें यकीन नहीं हो जाता कि श्रोता उसे हाथों हाथ लेंगे। उनके गीतों में सिग्नेचर ट्यून का इस्तेमाल बारहा होता है और ये ट्यून इतनी आकर्षक होती है कि सुनने वाला दूर से ही सुन के पहचान जाता है कि ये वही गीत है। यहाँ भी मुखड़े के बाद जो धुन बजती है वो तन मन प्रफुल्लित कर देती है। 



    इरशाद कामिल ने प्रेम के इकतरफे स्वरूप को इतने सहज शब्दों में इस गीत में उतारा है कि शायद ही कोई हो जो इस गीत की भावनाओं के मर्म से अछूता रह पाए । हर प्रेमी की ये इच्छा होती है कि सामने वाला बिना कहे उसकी बात समझ सके। अब ये इच्छा भगवान पूरी भी कर दें तो भी उस 'शायद' की गुंजाइश बनी रहती है क्यूँकि सामने वाला भी तो कई बार समझ के नासमझ बना रहता है। इसीलिए गीत के मुखड़े में इरशाद लिखते हैं.. शायद कभी ना कह सकूँ मैं तुमको...कहे बिना समझ लो तुम शायद...शायद मेरे ख्याल में तुम एक दिन...मिलो मुझे कहीं पे गुम शायद । देखिए कितना सुंदर और अनूठा प्रयोग है शायद शब्द का कि वो पहली और तीसरी पंक्ति की शुरु में आता है तो दूसरी और चौथी की आख़िर में। आँखों को ख्वाब देना खुद ही सवाल करके..खुद ही जवाब देना तेरी तरफ से वाली पंक्ति भी बड़ी खूबसूरत बन पड़ी है।

    अरिजीत की गायिकी के लिए युवाओं में एक जुमला खासा मशहूर है और वो ये कि अरिजीत के गाने और मम्मी के ताने सीधे दिल पे लगते हैं। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि अगर ये गाना अरिजीत के आलावा किसी और से गवाया गया होता तो उसका प्रभाव तीन चौथाई रह जाता। ऊंचे व नीचे सुरों पर उनकी गहरी पकड़ उन्हें आजकल के अपने समकालीन पुरुष गायकों से कहीं ऊपर ले जाती  है। 

    प्रीतम के संगीत संयोजन में गिटार का प्रमुखता से इस्तेमाल होता है। मजे की बात ये है कि इस गीत की प्रोग्रामिंग से लेकर एकास्टिक गिटार पर अरिजीत की उँगलियाँ ही थिरकी हैं। वुडविंड वाद्य यंत्रों से बनी मनमोहक सिग्नेचर धुन बजाने वाले हैं निर्मल्य डे। तो आइए सुनते हैं एक बार फिर इस गीत को जो शुरुआत तो एक मायूसी से होता है पर अंतरे तक पहुँचते पहुँचते आपको गीत की धुन में डुबाते हुए एक धनात्मक उर्जा से सराबोर कर देता है

    शायद कभी ना कह सकूँ मैं तुमको 
    कहे बिना समझ लो तुम शायद 
    शायद मेरे ख्याल में तुम एक दिन 
    मिलो मुझे कहीं पे गुम शायद 

    जो तुम ना हो रहेंगे हम नहीं 
    जो तुम ना हो रहेंगे हम नहीं 
    ना चाहिए कुछ तुमसे ज्यादा 
    तुमसे कम नहीं 
    जो तुम ना हो तो हम भी हम नहीं ..कम नहीं 

    आँखों को ख्वाब देना खुद ही सवाल करके
    खुद ही जवाब देना तेरी तरफ से 

    बिन काम काम करना जाना कहीं हो चाहे 
    हर बार ही गुज़रना तेरी तरफ से 
    ये कोशिशें तो होंगी कम नहीं 
    ये कोशिशें तो होंगी कम नहीं 
    ना चाहिए कुछ तुमसे ज्यादा ...जो तुम ना हो


     

    लव आज कल 2 तो लॉकडाउन के पहले आई पर इसके गाने कोविड काल में भी लोगों को सुहाते रहे। आप में से बहुत लोगों को पता ना हो कि लॉकडाउन में प्रीतम ने अरिजीत और इरशाद कामिल के साथ मिलकर गीत का एक और अंतरा रचा था जिसके बोल कुछ यूँ थे.. 

    चाहत कसम नहीं है, कोई रसम नहीं है
    दिल का वहम नहीं है, पाना है तुमको
    ख़्वाबों में गाँव जिसका, रस्ता ना आम जिसका
    चाहत है नाम जिसका ,पाना है तुमको
    हो तुम जहाँ मिलेंगे हम वहीं
    ना चाहिए कुछ तुमसे ज्यादा 
    तुमसे कम नहीं 
    जो तुम ना हो तो हम भी हम नहीं ..कम नहीं 

    चलिए चलते चलते उस वर्जन को भी सुन लिया जाए :)



    वार्षिक संगीतमाला 2020

    रविवार, फ़रवरी 07, 2021

    वार्षिक संगीतमाला 2020 : गीत # 11 ओ मेहरबाँ क्या मिला यूँ जुदा हो के बता Meharbaan

    वार्षिक संगीतमाला की ग्यारहवीं सीढ़ी पर जो गीत आपका इंतजार कर रहा है उसके शीर्षक को ले कर थोड़ा विवाद है। जब पहली बार मैंने फिल्म लव आज कल का ये गीत सुना था तो समझ नहीं आया कि इसे मेहरमा लिख कर क्यूँ प्रचारित किया जा रहा है। उर्दू में इससे एक मिलता जुलता शब्द जरूर है महरम जिसका शाब्दिक अर्थ होता है एक बेहद अतरंग मित्र। अगर आपको याद हो तो फिल्म कहानी के सीक्वल कहानी 2 ने इसी शब्द को केंद्र में रखकर अमिताभ भट्टाचार्य ने एक गीत भी लिखा था। गीत में गायक दर्शन रावल इस शब्द को मेहरवाँ जैसा उच्चारित करते हैं जो कि मेहरबाँ के करीब है। 


    क़ायदे से बात माशूका की मेहरबानी की हो रही थी तो इसे मेहरबां नाम से ही प्रमोट किया जाना चाहिए था। पता नहीं इरशाद कामिल जैसे नामी गीतकार और निर्देशक इम्तियाज़ अली का ध्यान इस ओर क्यूँ नहीं गया। बहरहाल लव आज कल का ये गीत आज गीतमाला की इस ऊँचाई पर पहुँचा है तो इसके सबसे बड़े हक़दार इसके संगीतकार प्रीतम हैं। 

    प्रीतम के बारे में एक बात सारे निर्देशक कहते हैं कि वो संगीत रिलीज़ होने के अंत अंत तक अपनी धुनों में परिवर्तन करते रहते हैं। उनकी इस आदत से निर्माता निर्देशक खीजते रहते हैं पर वे ये भी जानते हैं कि प्रीतम की ये आदत संगीत को और परिष्कृत ढंग से श्रोताओं को पहुँचाने की है। मैंने पिछली पोस्ट में प्रीतम के गीतों में सिग्नेचर ट्यून के इस्तेमाल का जिक्र किया था। यहाँ भी उन्होंने शिशिर मल्होत्रा की बजाई वॉयला की आरंभिक धुन से श्रोताओं का दिल जीता है।

    प्रीतम ने इस गीत में दर्शन रावल और अंतरा मित्रा की आवाज़ों का इस्तेमाल किया है। अंतरा प्रीतम की संगीतबद्ध फिल्मों का अभिन्न हिस्सा रही हैं। उनकर गाए सफल गीतों में दिलवाले का गेरुआ और कलंक का ऐरा गैरा याद आता है जिनमें प्रीतम का ही संगीत निर्देशन था। यहाँ उन्हें एक ही अंतरा मिला है नायिका के तन्हा मन को टटोलने का। 

    दर्शन रावल पहली बार एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला का हिस्सा बने हैं। इसलिए मेरा फर्ज बनता है कि उनसे आप सब का परिचय करा दूँ। यू ट्यूब के स्टार तो वो पहले ही से थे पर चोगड़ा तारा की सफलता के बाद से बॉलीवुड में अपनी पहचान बनाने वाले चौबीस वर्षीय दर्शन रावल गुजरात के अहमदाबाद शहर से ताल्लुक रखते हैं। बचपन से उन्हें कविता लिखने और उसे गाने का शौक़ लग चुका था। स्कूल में जब उन्हें समूह गान में पीछे की पंक्ति में रखा जाता था तो वे उतना ही जोर से गाने लगते थे ताकि उनकी आवाज़ अनसुनी ना रह जाए। अपनी इस आदत की वज़ह से उन्हें कई बार उस सामूहिक गीत से ही हटा दिया जाता था। इंजीनियरिंग में भी वे खुराफात करते रहे और एक बार पर्चा लीक करने की क़वायद में कॉलेज से बाहर कर दिए गए। पर उन्हें तो हमेशा से गायक ही बनना था और देखिए स्कूल व कॉलेज का वही नटखट लड़का अब अपनी आवाज़ की बदौलत युवाओं में कितना लोकप्रिय हो रहा है। 

    नायक नायिका के बिछोह से उपजे इस गीत का दर्द भी उनकी आवाज़ में बखूबी उभरा है।  तो आइए सुनते हैं एक बार फिर इस गीत को

    चाहिए किसी साये में जगह, चाहा बहुत बार है 
    ना कहीं कभी मेरा दिल लगा, कैसा समझदार है 
    मैं ना पहुँचूँ क्यों वहां पे. जाना चाहूँ मैं जहाँ 
    मैं कहाँ खो गया, ऐसा क्या हो गया 
    ओ मेहरवाँ क्या मिला यूँ जुदा हो के बता 
    ओ मेहरवाँ क्या मिला यूँ जुदा होके बता 
    ना ख़बर अपनी रही ना ख़बर अपनी रही 
    ना रहा तेरा पता ओ मेहरवाँ ... 

    जो शोर का हिस्सा हुई वो आवाज़ हूँ 
    लोगो में हूँ पर तन्हा हूँ मैं, हाँ तन्हा हूँ मैं 
    दुनिया मुझे मुझ से जुदा ही करती रहे 
    बोलूँ मगर ना बातें करूँ, ये क्या हूँ मैं 

    सब है लेकिन मैं नही हूँ 
    वो जो थोड़ा था सही, 
    वो हवा हो गया, क्यों खफा हो गया 
    ओ मेहरवाँ क्या मिला.... 


     .

    वार्षिक संगीतमाला 2020


    सोमवार, जनवरी 18, 2021

    वार्षिक संगीतमाला 2020 गीत # 17 : जो इक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम Mar Jaayein Hum

    विधु विनोद चोपड़ा अपनी फिल्मों के खूबसूरत फिल्मांकन और संगीत के लिए जाने जाते रहे हैं। बतौर निर्देशक परिंदा, 1942 A love story, करीब और मिशन कश्मीर का संगीत काफी सराहा गया था। इस साल थियेटर में रिलीज़ उनकी फिल्म शिकारा के गीत उतने तो सुने नहीं गए पर अगर आपको शांत बहता संगीत पसंद हो तो ये एल्बम आपको एक बार जरूर सुनना चाहिए। अगर मैं अपनी कहूँ तो मुझे इस संगीत एल्बम में ऐ वादी शहज़ादी... की आरंभिक कविता जिस अंदाज़ में पढ़ी गयी वो बेहद भायी पर जहाँ तक पूरे गीत की बात है तो इस गीतमाला में इस फिल्म का एक ही गीत शामिल हो पाया और वो है श्रद्धा मिश्रा और पापोन का गाया युगल गीत मर जाएँ हम..


    मर जाएँ हम एक प्यारा सा प्रेम गीत है ये जो संदेश शांडिल्य की लहराती धुन और झेलम नदी में बहते शिकारे के बीच इरशाद कामिल के शानदार बोलों की वज़ह से मन पर गहरा असर छोड़ता है। दरअसल जब आप  अपने अक़्स को भूल कर किसी दूसरे व्यक्तित्व की चादर को खुशी खुशी ओढ़ लेते हैं तभी प्रेम का सृजन होता है। इरशाद इन्ही भावनाओं को पहले अंतरे में उभारते हैं। 

    गीत के दूसरे अंतरे में उनका अंदाज़ और मोहक हो जाता है। अब इन पंक्तियों की मुलायमियत तो देखिए। कितने महीन से अहसास जगाएँ हैं इरशाद कामिल ने अपनी लेखनी के ज़रिए... तू कह रहा है, मैं सुन रही हूँ,मैं खुद में तुझको ही, बुन रही हूँ,....है तेरी पलकों पे फूल महके,...मैं जिनको होंठों से चुन रही हूँ,...होंठों पे आज तेरे मैं नमी देख लूँ,...तू कहे तो बुझूँ मैं, तू कहे तो चलूँ

    संगीत संयोजन में संदेश शांडिल्य ने गिटार और ताल वाद्यों के साथ संतूर का प्रयोग किया है। गीत का मुखड़ा जब संतूर पर बजता है तो मन सुकून से भर उठता है। संतूर पर इस गीत में उँगलिया थिरकी हैं रोहन रतन की।

    जो इक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम,
    जो एक पल तुमसे दूर जाएँ तो मर जाएँ हम,
    तू दरिया तेरे साथ ही भीगे बह जाएँ हम,
    जो इक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम...

    मैं तेरे आगे बिखर गयी हूँ,
    ले तेरे दिल में उतर गयी हूँ,
    मैं तेरी बाँहों में ढूँढूँ खुद को,
    यहीं तो थी मैं किधर गयी हूँ,
    खो गयी है तू मुझमें, आ गयी तू वहाँ,
    मिल रहे हैं जहाँ पे, ख्वाब से दो जहां,
    जो एक पल तुमको ना देखें तो मर जाएँ हम..

    तू कह रहा है, मैं सुन रही हूँ,
    मैं खुद में तुझको ही, बुन रही हूँ,
    है तेरी पलकों पे फूल महके,
    मैं जिनको होंठों से चुन रही हूँ,
    होंठों पे आज तेरे मैं नमी देख लूँ,
    तू कहे तो बुझूँ मैं, तू कहे तो चलूँ
    जो एक पल तुमको ना देखें... तो मर जाएँ हम,
    तू दरिया तेरे साथ ही भीगे..
    तू नदिया तेरे साथ ही भीगें, बह जाएँ  हम

    नवोदित गायिका श्रद्धा की आवाज़ की बनावट थोड़ी अलग सी है जो कि आगे के लिए संभावनाएँ जगाती हैं जबकि पापोन तो हमेशा की तरह अपनी लय में हैं। शिकारा में इस गीत को फिल्माया गया है आदिल और सादिया की युवा जोड़ी पर..

     

    वार्षिक संगीतमाला 2020


    बुधवार, जनवरी 15, 2020

    वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 20 : ये आईना है या तू है, जो रोज़ मुझको सँवारे Ye Aaina Hai..

    वार्षिक संगीतमाला की सत्रहवीं पायदान पर वो नग्मा जिसके गीतकार और संगीतकार की उपस्थिति पिछले साल के गीतों में बेहद कम रही। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ अमाल मलिक और इरशाद कामिल की। याद कीजिए 2015 और 2016 के साल अमाल मलिक एम एस धोनी, एयर लिफ्ट, नूर व रॉय जैसी फिल्मों के साथ चर्चा में बड़ी तेजी से आए थे। पिछले तीन सालों में उन्होंने मात्र दर्जन भर गीत किए हैं। एक तो उनकी दिक्कत ये रही कि उन्हें अपना ज्यादा काम मल्टी कम्पोजर फिल्मों में मिला और दूसरे उनसे जिस विविधता की उम्मीद थी उसमें वो पूरी तरह सफल नहीं हुए।

    इस साल उनके गीत दे दे प्यार दे और बदला में सुनाई दिए पर जिस गीत ने सबसे ज्यादा सुर्खियाँ बटोरीं वो था कबीर सिंह का ये आईना है या तू है। एक बड़ी ही मुलायम सी रचना जिसे इरशाद ने अपने प्यारे लफ्जों से एक अलग मुकाम पर पहुँचा दिया।


    अमाल को इस गाने के लिए निर्देशक संदीप वांगा द्वारा यही कहा गया कि आपको मुझे कुछ बताना नहीं है बस आप फिल्म की परिस्थिति देख लीजिए जहाँ इस गाने को आना है। अमाल ने अर्जुन रेड्डी ने पहले भी देखी थी। ये गीत फिल्म में तब आता है जब कबीर सिंह का ब्रेक अप हो चुका रहता है और वो पशोपेश में हैं कि अपने प्यार से छिटक जाने के ग़म में डूबा रहे या फिर ज़िंदगी में आगे बढ़े। संदीप ने इतना जरूर कहा था कि तुम्हें ये गाना लिखते समय कबीर सिंह को भूल जाना है। याद रखना है तो उस लड़की को जिसके जीवन में कबीर आया है। उसके लिए प्यार के क्या मायने हैं ये सोचना।

    अमाल कहते हैं कि वैसे तो लड़कियाँ बड़ी जटिल होती हैं पर मैंने ये चुनौती इरशाद भाई पर छोड़ दी बस उन्हें ये कहते हुए कि आपको प्यार, इश्क़, मोहब्बत जैसे शब्दों से हटकर अपनी बात रखनी है। इरशाद तो ख़ैर धुरंधर हैं ही खिलाड़ी हैं इस ज़मीं के। . रच दिया उन्होंने ये  मुखड़ा 

    ये आईना है या तू है, जो रोज़ मुझको सँवारे?
    इतना लगी सोचने क्यूँ मैं आज-कल तेरे बारे

    पिछले साल लैला मजनूँ के गीतों से रिझाने वाले इरशाद कामिल भी अमाल की तरह इस साल कबीर सिंह के आलावा अपनी दूसरी फिल्म भारत में कुछ ज्यादा कमाल नहीं दिखा सके पर इस गीत में उन्हें मौका मिला अपनी लेखनी की धार दिखाने का और नतीजे में निकली ऐसी खूबसूरत पंक्तियाँ

    तू झील खामोशियों की
    लफ़्ज़ों की मैं तो लहर हूँ
    एहसास की तू है दुनिया
    छोटा सा मैं एक शहर हूँ

    गीत का अंत भी बड़े मोहक अंदाज़ में किया है उन्होंने ये कहते हुए

    सीने पे मुझको सजा के, जो रात सारी गुज़ारे
    तो मैं सवेरे से कह दूँ "मेरे शहर तू ना आ, रे"

    संगीतमाला के पिछले गीत की तरह ही इस गीत को गाया है श्रेया घोषाल ने। पिछले गीत जैसी शास्त्रीय बंदिश हो या इस गीत की विशुद्ध रूमानियत श्रेया की आवाज़ उसके साथ पूरा न्याय करती है। इस गीत की रिकार्डिंग ने श्रेया ने बीस मिनटों में ही खत्म कर दी। इस साल उनके तीन गीत इस संगीतमाला में हैं। दो गीत तो अब आपने सुन लिए। उनका गाया तीसरा गीत जरूर आपमें से बहुतों के लिए अनसुना होगा। तो इंतज़ार कीजिए उस गीत का और फिलहाल सुनिए कबीर सिंह का ये बोल प्रधान गीत जो अपनी लय में कम से कम संगीत के बीच कानों में बहता सा चला आता है।

    पर्दे पर इस गाने को फिल्माया गया है शाहिद कपूर और निकिता दत्ता पर !


    वार्षिक संगीतमाला 2019 
    01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
    02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया 
    03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
    04. तेरा साथ हो   Tera Saath Ho
    05. मर्द  मराठा Mard Maratha
    06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए  Bharat 
    07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है  Aaj Jage Rahna
    08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र  Zikra
    09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए  Dil Royi Jaye
    10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ  Shaabaashiyaan
    11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
    12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
    13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
    14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
    15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
    16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
    17. ये आईना है या तू है Ye aaina
    18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
    19. बेईमानी  से.. 
    20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
    21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
    22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
    23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
    24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

    बुधवार, जनवरी 30, 2019

    वार्षिक संगीतमाला 2018 सरताज गीत : मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता Aahista

    पूरे एक महीने की संगीत यात्रा की अलग अलग सीढ़ियों को चढ़ते हुए वक़्त आ गया है एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला की चोटी पर स्थित पायदान यानी साल के सरताज गीत के खुलासे का। सच तो ये है कि इस साल के प्रथम दस गीत सभी एक से बढ़कर एक थे। सब का एक अपना अलग रंग था। कहीं पारिवारिक विछोह था, कहीं किसी के आने की अंतहीन प्रतीक्षा थी, कहीं आर्केस्ट्रा का जादू था, कहीं देशभक्ति की पुकार थी, कहीं शास्त्रीयता की बहार थी, कहीं एक अजीब सा पागलपन था तो कहीं प्रेम से रससिक्त सुरीली तान थी। 

    मैंने इस साल के सरताज गीत के लिए जो रंग चुना है वो है प्रेम में अनिश्चितता का, बेचैनी का, दूरियों का, और इन तकलीफों के बीच भी आपसी अनुराग का। ये रंग समाया है लैला मजनूँ के गीत आहिस्ता में। इस गीत की धुन बनाई नीलाद्रि कुमार ने, लिखा इरशाद कामिल ने और गाया अरिजीत सिंह और जोनिता गाँधी की जोड़ी ने। 


    फिल्म लैला मजनूँ के लिए नीलाद्रि ने चार गीतों को संगीतबद्ध किया। पिछले साल के इस सबसे शानदार एलबम के कुछ  गीतों तुम, ओ मेरी लैला ,सरफिरी और हाफिज़ हाफिज़ से आप मिल ही चुके हैं। इससे पहले कि आपको इस गीत से मिलवाऊँ क्या आप ये नहीं जानना चाहेंगे कि इम्तियाज़ अली ने सितार/ जिटार वादक नीलाद्रि को इस संगीतमय फिल्म की आधी जिम्मेदारी भी क्यूँ सौंपी? इससे पहले नीलाद्रि ने सिर्फ एक बार हिंदी फिल्मों के एक गीत में संगीत दिया था। दरअसल इम्तियाज़ अली के एक मित्र जो अक्सर अपने नाटकों में उन्हें बुलाया करते थे ने उनको नीलाद्रि के बारे में बताया था। नीलाद्रि के व्यक्तित्व को परिभाषित करने का उनका अंदाज़ निराला था   
    "एक म्यूजिकल उस्ताद है जो यंग है और क्रिकेट भी खेलता है और अपने जैसा कूल है तू मिल उससे"।
    इम्तियाज़ उनसे मिले तो उन्होंने नीलाद्रि को वैसा ही पाया सिवाय इस बात के कि वो सिर्फ क्रिकेट नहीं बल्कि फुटबाल भी खेलते हैं। तब तक लैला मजनूँ के कुछ गीतों की कमान दूसरे संगीतकारों को मिल चुकी थी। नीलाद्रि एक फिल्म में एक संगीतकार वाली शैली के हिमायती हैं पर कश्मीर घाटी में पनपती एक प्रेम कहानी में संगीत देना उन्हें एक आकर्षक चुनौती की तरह लगा जिसमें वो अपने संगीत के विविध रंग भर सकते थे।

    नीलाद्रि ने लैला मजनूँ के संगीत में गीतों की सामान्य शैली से हटकर संगीत दिया और उनके अनुसार ये सब स्वाभाविक रूप से होता चला गया। उनकी कही बात एक बार फिर आपसे बाँटना चाहूँगा..
    "मैं अपनी रचनाओं में किसी खास तरह की आवाज़ पैदा करने का प्रयत्न नहीं करता। मेरे लिए संगीत ऐसा होना चाहिए जो एक दृश्य आँखों के सामने ला दे, बिना कहानी सामने हुए भी उसके अंदर की भावना जाग्रत कर दे। चूँकि मैं एक वादक हूँ मेरे पास बोलों की सहूलियत नहीं होती अपना संदेश श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए। शब्दों का ना होना हमारे काम को कठिन बनाता है पर कभी कभी उनकी उपस्थिति एक मनोभाव को धुन के ज़रिए प्रकट करने में मुश्किलें पैदा करती है। ऐसी ही परिस्थितियों में इरशाद कामिल जैसे गीतकार मदद करते हैं। 
    मैंने अपने कैरियर में कई धुनें बनाई है अपने गीतों और वाद्य वादन के लिए। अगर मुझसे 10-15 साल बाद कहा जाए कि उन्हें फिर से बनाओ तो मैं उनमें बदलाव लाऊँगा पर आहिस्ता के लिए मैं ऐसा नहीं कह सकता।"  
    नीलाद्रि कुमार  और इरशाद कामिल 

    आहिस्ता  एक ऐसा गीत है जो प्रेम की विभिन्न अवस्थाओं की बात करता है। पहला दौर वो जिस में प्रेम पनप रहा होता है। नायिका आहिस्ता आहिस्ता अपने प्रेमी को दिल में जगह देना चाहती है। वहीं नायक के मन में अपने दिल की बात को उस तक पहुँचाने की उत्कंठा है। फिर उसकी बात के मर्म को ठीक ठीक ना समझे जाने का भय भी है। सबसे बड़ा संकट है पूर्ण अस्वीकृति  की हर समय लटकती तलवार का। अब ऐसे में नायक का दिल परेशां ना हो तो क्या हो और इसीलिए कामिल साहब लिखते हैं कि पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला...दिल सवालों से ही ना, दे रुला

    तुम मिलो रोज ही 
    मगर है ये बात भी 
    मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
    मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता

    तुम, मेरे हो रहे 
    या हो गये, या है फासला
    पूछे दिल तो, कहूँ मै क्या भला 
    दिल सवालों से ही ना, दे रुला 
    होता क्या है, आहिस्ता आहिस्ता 
    होना क्या है, आहिस्ता आहिस्ता

    चलिए प्रेम हो भी गया पर सामाजिक हालातों  ने आपको अपने प्रेमी से दूर कर दिया।अब सहिए वेदना। लोग तो शायद दिलासा देंगे कि वक़्त के साथ सब ठीक हो जाएगा पर नायक नायिका जानते हैं कि ये दुनिया कितनी झूठी हैं और ये वक़्त  किस तरह प्रेमियों को छलता रहा है। इरशाद कामिल इन भावों को कुछ यूँ शब्द देते हैं

    दूरी, ये कम ही ना हो 
    मै नींदों में भी चल रहा 
    होता, है कल बेवफा 
    ये आता नहीं, छल रहा

    लाख वादे जहां के झूठे हैं  
    लोग आधे जहां के झूठे हैं  
    मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
    मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता

    फिर भी देखिए ना इतनी तकलीफ के बाद भी मन में अपने प्रेमी के लिए जो अनुराग हैं ना वो खत्म नहीं होता और इस बात को इरशाद कामिल इतनी खूबसूरती से कहते हैं कि

    मैंने बात, ये तुमसे कहनी है 
    तेरा प्यार, खुशी की टहनी है 
    मैं शाम सहर अब हँसता हूँ 
    मैंने याद तुम्हारी पहनी है 
    मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
    होता क्या है आहिस्ता आहिस्ता 
    होता क्या है आहिस्ता आहिस्ता

    खुशी की टहनी और यादों को पहनने का भाव मन को रोमांचित कर जाता है। आप गीत में खो चुके होते हैं कि नीलाद्रि जिटार पर अपनी मधुरता बिखेरते सुनाई पड़ते हैं। 

    अरिजीत और जोनिता 
    अरिजीत और जोनिता इस गीत में जगह पाकर बहुत खुश थे और दोनों ने ही बखूबी इस गीत को अपनी आवाजें  दी हैं।। अरिजीत ने तो ये भी कहा कि गीत के बोलों से वो एक ही बार में जुड़ गए।  अरिजीत का हिस्सा थोड़ा कठिन था पर जिस कोटि के वे गायक हैं उन्होंने उसे भी पूरे भाव के साथ निभाया। 

    वो कहते हैं ना कि किसी गाने में एक मीठा सा दर्द है तो ये वैसा ही गाना है़ और ऐसे गीत मुझे हमेशा से मुतासिर करते रहे हैं। आज जब रीमिक्स और रैप के ज़माने में भी नीलाद्रि और इम्तियाज अली जैसे लोग संगीत की आत्मा को अपनी फिल्मों में इस तरह सँजों के रखते हैं तो बेहद खुशी होती है और दिल में आशा बँधती है हिंदी फिल्म संगीत के सुनहरे भविष्य की। तो आइए आहिस्ता आहिस्ता महसूस कीजिए इस गीत की मधुर पीड़ा को..




    इस साल की संगीतमाला का अगला और अंतिम आलेख होगा एक शाम मेरे नाम के पिछले साल के संगीत सितारों के नाम जिसमें बात होगी  कलाकारों के सर्वश्रेष्ठ व्यक्तिगत प्रदर्शन की :)

    वार्षिक संगीतमाला 2018  
    1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
    2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
    3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
    4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
    5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
    6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
    7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
    8.  एक दिल है, एक जान है 
    9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
    10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
    11 . तू ही अहम, तू ही वहम
    12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
    13. सरफिरी सी बात है तेरी
    14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
    15. तेरा यार हूँ मैं
    16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
    17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
    18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
    19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
    20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
    21. जिया में मोरे पिया समाए 
    24. वो हवा हो गए देखते देखते
    25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां
     

    मेरी पसंदीदा किताबें...

    सुवर्णलता
    Freedom at Midnight
    Aapka Bunti
    Madhushala
    कसप Kasap
    Great Expectations
    उर्दू की आख़िरी किताब
    Shatranj Ke Khiladi
    Bakul Katha
    Raag Darbari
    English, August: An Indian Story
    Five Point Someone: What Not to Do at IIT
    Mitro Marjani
    Jharokhe
    Mailaa Aanchal
    Mrs Craddock
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    Lolita
    The Pakistani Bride: A Novel


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    स्पष्टीकरण

    इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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