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बुधवार, जुलाई 16, 2025

वार्षिक संगीतमाला 2024 :Top 25 ओ सजनी रे..

कुछ व्यक्तिगत कारणों से इस संगीतमाला पर एक लंबा ब्रेक लग गया था। आप सबको मैं 18 वीं पायदान के गीत वल्लो वल्लो पर छोड़ गया था। तो आज बारी है संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर बैठे गीत की चर्चा करने की। ये गीत है ओ सजनी रे... जिसे पिछले साल लोगों द्वारा खूब पसंद किया गया। आपको याद होगा कि गत साल आई फिल्मों में लापता लेडीज़ ने खासी धूम मचाई थी। मुझे भी ये फिल्म औसत से बेहतर ही लगी थी। कलाकारों का अभिनय जानदार था और बतौर दीपक, स्पर्श श्रीवास्तव का काम तो मुझे खासा प्रभावित कर गया था। फिल्म की सफलता में इसके संगीत की भी अहम भागीदारी थी। 


इस फिल्म का संगीत निर्देशन किया था राम संपत ने। आमिर के साथ राम की सोहबत तलाश और सत्यमेव जयते के ज़माने की है। राम संपत इस गठजोड़ के बारे में अपने साक्षात्कारों में एक वाकया सुनाते हैं। जब उन्हें इस प्रोजेक्ट में लिया गया तो दुर्भाग्यवश मलेरिया के शिकार होकर वे अस्पताल में भर्ती हो गए। आमिर दुविधा में थे कि उन्हें रखें या नहीं। उन्होंने राम को फोन किया कि क्या आप इस प्रोजेक्ट को कर पाएँगे और तब राम ने उत्तर दिया कि I was born to do this project। फिर क्या था आमिर ने कहा कि अगर ऐसा है तो ये प्रोजेक्ट आप ही करेंगे। अस्पताल में रहते हुए ही राम संपत ने इस टीवी शो में प्रयुक्त गीत ओ री चिरैया की धुन तैयार की जो आज तक उसी चाव से सुनी जाती है।


राम संपत को हमेशा से ये मुगालता रहा है कि उन्हें अक्सर धीर गंभीर विषयों वाली फिल्मों को करने के मौके मिले। एक दो गीतों को छोड़ दें तो उनकी झोली में इतने दशकों के करियर में कोई रोमांटिक गीत शायद ही आया हो। इसीलिए जब ओ सजनी रे बनाने की बारी आई तो उन्होंने सोचा कि इसे बेहतर रूप कैसे दिया जाए। आख़िर दीपक का फूल से शादी के तुरंत बाद बिछड़ने के प्रसंग पर ही पूरी कहानी आधारित थी। दीपक के हृदय में फूल के यूँ गुम हो जाने की पीड़ा इस गाने में झलकानी थी। इस गीत के लिए सबसे बड़ा जोखिम लिया उन्होंने इंस्टाग्राम पर खड़ी बोली और ब्रज में लिखने वाले प्रशांत पांडे का गीतकार के रूप में चुनाव कर के जिनसे वो गीत के प्रीमियर के वक़्त पहली बार मिले। प्रशांत के इस गीत के लिए लिखे सहज बोल लोगों को बहुत जमे। मुझे इस गीत की वो पंक्ति सबसेअच्छी लगी जिसमें उन्होंने लिखा....कैसे घनेरे बदरा घिरे...तेरी कमी की बारिश लिए 🙂। वैसे पूरा गीत कुछ यूं है।

ओ सजनी रे
कैसे कटे दिन रात
कैसे हो तुझसे बात
तेरी याद सतावे रे
ओ सजनी रे...तेरी याद तेरी याद सतावे रे
कैसे घनेरे बदरा घिरे
तेरी कमी की बारिश के लिए
सैलाब जो मेरे सीने में है
कोई बताये ये कैसे थमे
तेरे बिना अब कैसे जियें
ओ सजनी रे...तेरी याद तेरी याद सतावे रे

गाँव की पृष्ठभूमि में बनी इस पटकथा के लिए विशुद्ध देशी या लोकसंगीत के बजाए राम संपत और निर्माता किरण राव ने देशी के साथ पश्चिमी वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल कर गीत को एक ताज़ी शक़्ल देने की कोशिश की गई जो आज के दौर के नायक नायिका के अनुरूप लगे। मूलतः गिटार पर आधारित इस धुन में कोरा, उदू और गोनी जैसे विदेशी वाद्य यंत्रों का भी इस्तेमाल हुआ है।

सबसे पहले ये गीत राम संपत ने अपनी आवाज़ में रिकार्ड किया था और आमिर ने उसे OK भी कर दिया था पर राम ये गीत अरिजीत से गवाना चाहते थे। जब दो तीन हफ्तों के बाद अरिजीत ने रिकार्डिग भेजी तो राम ये देख के चकित हो गए कि अरिजीत ने उसी गीत को दस अलग अलग तरह से गाया था। 

अगर आप सोच रहे हों कि ये कैसे संभव है तो उनके कुछ वर्सन के नाम सुन लीजिए ...ये किरण मैम की ब्रीफिंग के हिसाब से, ये आमिर सर के सुझाव पर , ये आपके जैसा, ये स्माइल के और ये बिना स्माइल के....😁। 

राम संपत कहते हैं गायिकी के प्रति अरिजीत की ये प्रतिबद्धता उन्हें वो मुकाम दिला पाई है जिसके वो सच्चे हक़दार हैं। खैर राम ने जो वर्सन चुना वो बेहद सराहा गया तो एक बार और आप भी सुन लीजिए ये पूरा गीत


शनिवार, मई 24, 2025

वार्षिक संगीतमाला 2024 Top 25: धीमे-धीमे चले पुरवैया

देश में युद्ध के बादल थम चुके हैं। जब हमारे पराक्रमी सैनिक और सरहदों के पास रहने वाले देशवासी युद्ध जैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हों तो फिर दिल में गीत संगीत की बात तो उठती ही नहीं, बस एक ही भाव रहता है कि जल्द से जल्द देश का अहित चाहने वालों का नाश हो और हमारी सेना अपने लक्ष्य में सफल हों। यही वज़ह थी की वार्षिक संगीतमाला पर पिछले एक महीने से मैंने बीच में ही विराम लगा दिया था।


अब जबकि युद्ध के बादलों की जगह बारिश के बादलों ने ले ली है तो इस संगीतमाला को फिर से शुरु करते हुए लौटते हैं पिछले साल के बेहतरीन गीतों की इस शृंखलाकी उन्नीसवीं पायदान के इस गीत की तरफ जिसे लिखा स्वानंद किरकिरे ने, धुन बनाई राम संपत ने और गाया श्रेया घोषाल ने। फिल्म लापता लेडीज़ तो आपमें से बहुतों ने देखी होगी और ये गीत फिल्म के सुखद अंत के समय आता है जब जया अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक नए सफ़र पर निकल पड़ती है। स्वानंद जया के मन को कुछ इन पंक्तियों में बाँधने की प्यारी कोशिश करते हैं।

धीमे-धीमे चले पुरवैया बोले, "थाम तू मेरी बैयाँ" 
संग चल मेरे, रोके क्यूँ जिया हो, 
धीमे-धीमे चले पुरवैया

रुत ये अनोखी सी आई, सजनिया
बादल की डोली में लो बैठी रे बुँदनिया
धरती से मिलने को निकली सावनिया
सागर में घुलने को चली देखो नदिया, धीमे-धीमे चले पुरवैया...

एक ऐसे अनजान गाँव से जहाँ नियति के चक्र ने उसे अचानक ला खड़ा किया था, जया अपने सपनों का मुकाम तलाशने शहर की ओर जा रही है। गाँव नदी, शहर समंदर और बादल की वो बूँद अगर जया हो तो स्वानंद का लिखा ये अंतरा कितना सार्थक हो उठता है। नई उम्मीद का संचार करता गीत का दूसरा अंतरा भी उतना ही प्रभावी है। 

नया सफ़र है, एक नया हौसला, बाँधा चिड़ियों ने नया घोंसला
नई आशा का दीपक जला, चला सपनों का नया क़ाफ़िला
कल को करके सलाम, आँचल हवाओं का थाम
देखो उड़ी एक धानी चुनरिया, हो, धीमे-धीमे चले पुरवैया...


संगीतकार राम संपत ने शांत करती गीत की धुन के साथ तार वाद्यों का न्यूनतम संयोजन रखा है। श्रेया घोषाल की आवाज़ के साथ बस आँख बंद कर इस गीत की भावनाओं को दिल में समेटिए। एक बहती धारा की कलकल ध्वनि के बगल में बैठकर  दिल में जो आनंद का अनुभव होता है कुछ वैसा ही शायद इस गीत को सुनकर आप महसूस करें।

मंगलवार, अगस्त 07, 2018

घने बदरा... चलिए याद करें बारिश के गीतों को सोना महापात्रा की इस मानसूनी पेशकश के साथ Ghane Badra

सावन की रिमझिम मेरे शहर को आए दिन भिंगो रही है। पिछले महीने शादी में पटना जाना हुआ तो गर्मी और उमस में एक पल चैन की नींद ले पाना दूभर हो गया। वहीं यहाँ राँची में जब से सावन की झड़ी शुरु हुई तो फिर रुक रुक कर फुहारें तन को शीतल कर  ही रही हैं। पिछले हफ्ते से तो आलम ये है कि अगर खिड़की खोल दें तो पंखे बंद कर मोटी चादर ओढ़ने की नौबत आ जा रही है। अब ये सब कह के आपको जलाने का मन नहीं था मेरा। मैं तो आपके मूड को थोड़ा मानसूनी बनाना चाहता था ताकि जब मैं आपसे बरसाती गीतों की चर्चा करूँ तो आप भी कानों में उनकी फुहार सुन मेरे साथ भींगते चलें।



हिंदी फिल्मों में अगर ऐसे गीतों को याद करूँ तो सबसे पहले लता दी के गाए गीत ही ज़हन में मँडराने लगते हैं।  अब भला ओ सजना बरखा बहार आई और रात भी कुछ भींगी भींगी चाँद भी है कुछ मद्धम मद्धम और रिमझिम गिरे सावन जैसे बेमिसाल गीतों को कैसे भुलाया जा सकता है। किशोर दा के गाए बरसाती गीतों का जिक्र तो यहाँ किया ही था। तलत महमूद का लता जी के साथ गाया अहा रिमझिम के ये प्यारे प्यारे गीत लिए मुझे बेहद प्रिय है। मुकेश ने भी बरखा रानी ज़रा जम के बरसो..मेरा दिलवर जा ना पाए ज़रा झूम कर बरसो से बहुतों का दिल जीता था वहीं रिमझिम के तराने ले के आई बरसात में रफ़ी की आवाज़ थी।

बरसात की यादों से ग़ज़लें भी अछूती नहीं रही हैं। तलत अज़ीज़ की गाई ग़ज़ल रसात की भींगी रातों में फिर कोई सुहानी याद आई हो या फिर जगजीत सिंह की वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी हमेशा से संगीत प्रेमियों के दिलों पर राज करती रही हैं।

वैसे बिना बादल कैसी बारिश? बादल ही तो ये अहसास कराते हैं कि आने वाली बारिश का क्या रूप होगा? इसलिए फिल्मी गीतों में बरखा की तरह काली घटाओं और बादलों का जिक्र आम है और उन्हें पुकारने का सबसे कोमल शब्द रहा है बदरा। बदरा में जितना अपनापन है वो बादल या मेघ में कहाँ? बदरा की बात से मुझे दो और गीत तुरंत याद पड़ते हैं। पहला तो लता जी का गाया नैनों में बदरा छाए, बिजली सी चमके हाए..ऐसे में सजन मोहे गरवा लगा ले और दूसरा आशा जी का गाया फिर से अइयो बदरा बिदेसी तेरे पंखों पे मोती जड़ूँगी भर के जइयो हमारी कलैया मैं तलैया किनारे मिलूँगी।  क्या कमाल के गीत थे ये दोनों भी। जितना भी सुनों मन नहीं भरता।

पर ये तो गुज़रे दिनों की बातें थीं। इस मौसम का मिज़ाज ही कुछ ऐसा है कि आज भी ये लोगों को नए नए गीत रचने को बाध्य कर रहा है और आज ऐसे ही एक गीत को सुनवाने का इरादा है जो कि एक बार फिर  "बदरा" के इर्द गिर्द रचा गया है। इस गीत को गाया है सोना महापात्रा ने और धुन बनाई है राम संपत ने। जी हाँ ये गीत लाल परी मस्तानी श्रृंखला का हिस्सा है जिसमें हर महीने सोना अपनी एक नई पेशकश श्रोताओं के सामने ला रही हैं।
पता नहीं बरखा की बूँदों में ऐसा क्या है कि उनका स्पर्श हमें कभी खुशी के अतिरेक में ले जाता है तो कभी टिप टिप गिरते पानी की ध्वनि मन में उदासी की लहरें पैदा करने लगती हैं और मन उसमें डूबने सा लगता है। मुन्ना धीमन ने बादलों का बिंब लेते हुए ऐसा ही कुछ भाव रचना चाहा है इस गीत में।

अगर इस गीत की भावनाओं को समझना चाहते हैं तो किसी मानसूनी दिन में सफ़र पर निकलिए। जब इन बादलों की नर्म मुलायम बाहें आपका रास्ता काटेंगी आप खुशी से अंदर तक नम हो जाएँगे। वहीं कभी आपको ये बादल ऐसा भी आभास देगा कि वो अपनी कालिमा के भीतर ढेर सारे दुख समेटे है ठीक वैसे ही जैसे आप अपनी पीड़ा आँखों की कोरों में छुपाए घूमते हैं। इसलिए मुन्ना लिखते हैं

बदरा के सीने में, सीने में जल धड़के
बैठा है नयनों में नयनों में चढ़ चढ़ के
बरसेगा बरसेगा आज नहीं तो कल



सोना की गहरी आवाज़ का मैं हमेशा से शैदाई रहा हूँ। राम संपत की मधुर धुन के बीच वो एक मरहम का काम करती है। संजय दास का बजाया गिटार मूड को अंत तक बनाए रखता है। हालांकि मुझे लगता है कि मुखड़े में एक ही भाव के दोहराव से मुन्ना बच सकते थे। फिर भी कुल मिलाकर ये गीत कानों में एक मीठी छाप छोड़ जाता है। सोना इस गीत के बारे में लिखती हैं कि इसे मुंबई के एक मानसूनी दिन में रचा गया था और आज भी मेरी खिड़की के बाहर बादल ठंडी हवाओं के साथ अठखेलियाँ कर रहे हैं। तो आइए कुछ पल ही सही उड़ें इस घने बदरा के साथ.

बदरा.... बदरा.... बदरा....
छाये रे घने बदरा, छाये रे घने बादल
छाये क्यूँ घने बदरा, छाये क्यूँ घने बादल
कहीं पे बरसने को घूमे ये हुए पागल

अपनी हँसी में भी शामिल किया मुझको
अपनी खुशी में भी हिस्सा दिया मुझको
जहाँ तू अकेला है वहाँ भी मुझे ले चल
छाए रे घने बदरा, छाए रे घने बादल....

बदरा के सीने में, सीने में जल धड़के
बैठा है नयनों में नयनों में चढ़ चढ़ के
बरसेगा बरसेगा आज नहीं तो कल

बदरा.... बदरा.... बदरा....

रविवार, जून 24, 2018

हुण मैं अनहद नाद बजाया.. अपने दिल का हाल सुनाया Anhad Naad by Sona Mohapatra

सोना महापात्रा एक ऐसी आवाज़ की मालकिन हैं जो सुरीलेपन के साथ साथ भरपूर उर्जा से भरी है। उनकी आवाज़ से मेरी पहली दोस्ती उनके गैर फिल्मी एलबम सोना के गीत अभी ना ही आना सजना मोहे थोड़ा मरने दे, इंतजार करने दे से हुई थी और उसके बाद तो ये बंधन फिर छूटा ही नहीं । वो एक ऐसी कलाकार हैं जिन्होंने हिंदी फिल्मी गीतों के इतर अपना मुकाम बनाया। चाहे उनके हिंदी पॉप एलबम हों या टीवी शो सत्यमेव जयते और कोक स्टूडिओ  के लिए उनके गाए गीत उनकी आवाज़ हमेशा चर्चा में रही। हिंदी फिल्मों में उनको अपने हुनर के हिसाब से काम नहीं मिला पर इसकी उन्होंने कभी परवाह नहीं की। अम्बरसरिया, नैना, मन तेरा जो रोग है जैसे यादगार गीतों को आवाज़ देने वाली सोना ने अपने पति और संगीतकार राम संपत के साथ मिलकर  लाल परी मस्तानी के नाम से संगीत की एक नई यात्रा शुरु की है जिसके गीतों में अपने व्यक्तित्व के विविध रंगों को प्रकट करेंगी। अब तक इस श्रृंखला के तीन गीत आ चुके हैं। 

पहला गीत श्याम के रंग में रँगी मीरा का प्रेम अनुरोध था जिसे श्याम पिया के नाम से रिलीज़ किया गया जबकि दूसरा अमीर खुसरों का लिखा गीत तोरी सूरत के बलिहारी  निजामुद्दीन औलिया को समर्पित था। ये गीत तो अपनी जगह प्यारे थे ही पर इस श्रृंखला का जो तीसरा गीत पिछले हफ्ते आया वो एक बार ही सुनकर मन में ऐसा रच बस गया है कि निकलने का नाम ही नहीं लेता। बुल्ले शाह और कबीर के सूफी रंगों में समाया ये गीत है अनहद नाद और इसे लिखा सोना और राम संपत की टीम के स्थायी सदस्य मुन्ना धीमन ने। 


पर इससे पहले की हम इस गीत के बारे में कुछ और बातें करें ये जानना आपके लिए दिलचस्प होगा कि आख़िर इस श्रृंखला को सोना ने लाल परी मस्तानी का नाम क्यूँ दिया है? सोना इस बारे में अपने साक्षात्कारों कहती रही हैं कि

"ये दिल्ली की बात है जब मैं एक गेस्ट हाउस में ठहरी थी। वहाँ संसार के विभिन्न भागों से आए अन्य यात्री भी ठहरे थे। उनमें एक फ्रेंच महिला भी थी जो अफगानिस्तान से आई थी। उसने मुझे बताया कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान की जो सीमा है वो सूफी संगीत का एक मुख्य केंद्र था। जब वहाँ तालिबान आए तो उन्होंने संगीत पर रोक लगा दी और औरतों को घर के अंदर बुर्कों में रहने की सख्त ताकीद कर दी। वहाँ एक औरत सदा लाल लिबास में रहती थी। वो एक बेखौफ़ स्त्री थी जो तालिबान की परवाह किए बिना दरगाह में गाती रही। उसके द्वारा बताई ये छवि मेरे दिमाग में छप सी गयी। एक ऐसी स्त्री की छवि जो तालिबान की कालिमा को ललकारती हुई गाती रही , नाचती रही ये कहते हुए कि संगीत हराम नहीं है। पन्द्रह साल पहले की इस घटना ने मेरे दिमाग में लाल परी मस्तानी का रूप गढ़ दिया।
मुझे लाल रंग से प्यार रहा है। हमारी संस्कृति में इसका बहुत महत्त्व रहा है। मेरे लिए लाल रंग शक्ति, नारीत्व और उर्जा का प्रतीक है। मेरे प्रशंसक भी लाल रंग से मेरे प्रेम की वजह से  मुझे लाल परी मस्तानी के नाम से संबोधित करते थे और इसीलिए इस सिलसिले को मैंने लाल परी मस्तानी का नाम दिया है।"

इस गीत का शीर्षक है अनहद नाद। ये अनहद नाद आख़िर है क्या? शाब्दिक रूप से देखें तो अनहद मतलब जिसकी कोई हद ना हो और नाद मतलब ध्वनि। यानि ऐसी ध्वनि जिसका कोई अंत ना हो। अध्यात्म में अनहद नाद उस अवस्था को कहते हैं जब व्यक्ति ध्यान में यूँ मगन हो जाता है कि उसे बाहरी ध्वनियाँ नहीं सुनाई देतीं। मन को इतनी गहरी चुप्पी में ले जाते हैं कि सुनाई देता है तो सिर्फ अंदर का मौन।

ड्रम पर हैं बैंगलोर के यदुनंदन नागराज

मुन्ना धीमन इस गीतों के बोलों में ध्यान की इसी अवस्था का जिक्र करते हुए दिल के  प्रफुल्लित होने की बात करते हैं। इस अवस्था का अहसास कुछ ऐसा है जो बारिश में पेड़ को नहाते वक्त होता होगा, जो रोम रोम के तरंगित होने से होता होगा। मुन्ना ने इस अहसास को दूसरे अंतरे में जिस तरह एक पंक्षी को कंधे पे रखने या नदिया को गोद में उठाने की कल्पना से जोड़ा है उसे सोना की आवाज़ में सुनकर मन सच में आनंद विभोर हो उठता है।
सोना और राजस्थान के ढोल वादक 

राम संपत ने पहली बार इस गीत को सोना और शादाब फरीदी की आवाज़ में कोक स्टूडियो सीजन चार में इस्तेमाल किया था पर वहाँ सोना की बुलंद आवाज़ के सामने शादाब की जुगलबंदी कुछ जम नहीं पाई थी। अपने इस नए रूप में इस बार गीत के वीडियो शूट के लिए जैसलमेर की गडसीसर झील को चुना गया। अब शूटिंग राजस्थान में थी तो संगीत को आंचलिक रंग देने के लिए वहाँ के स्थानीय ढोल वादकों को भी संगीत संयोजन में शामिल किया गया। चानन खाँ, स्वरूप खाँ, पापे खाँ और  सत्तार खाँ की चौकड़ी ने ड्रम्स के साथ गीत में जो रस घोला उसे आप गीत सुनते हुए महसूस कर सकेंगे। पर मुझे संगीत का टुकड़ा जो सबसे अधिक भाया वो था संचित चौधरी की वायलिन पर बजाई कमाल की धुन जो अंतरों के बीच में लगभग 1m 25s-1m 45s में आती है। 

हुण मैं अनहद नाद बजाया
अपने दिल का हाल सुनाया
हुण मैं अनहद नाद बजाया
अपने दिल का हाल सुनाया
हाल सुना के लुत्फ़ वो पाया
हो..जो बरखा विच पेड़ नहाया
हाए हाल सुना के लुत्फ़ वो पाया
हो..जो बरखा विच पेड़ नहाया
रोम रोम मेरे घुँघरू छनके
हो.. रोम रोम मेरे घुँघरू छनके
लोग कहें मस्ताना आया हुण मैं अनहद
हुण मैं अनहद नाद बजाया

अपने दिल का हाल सुनाया

नच नच मैं गलियाँ विच घूमा
इसदा उसदा माथा चूमा
हाय नच नच मैं गलियाँ विच घूमा
हो इसदा उसदा माथा चूमा
इक पंछी कंधे पर रक्खा
हो इक पंछी कंधे पर रक्खा
इक नदिया को गोद उठाया
हुण मैं अनहद
हुण मैं अनहद नाद बजाया..नाद बजाया
अपने दिल का हाल सुनाया..हाल सुनाया.

सोना ने जिस मस्ती के साथ इस गीत को निभाया है वो गीत को बार बार सुनने पर मजबूर कर देता है। तो आइए सुनें ये प्यारा सा नग्मा


 

एक शाम मेरे नाम पर सोना महापात्रा

शनिवार, जनवरी 16, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 18 : दिल की मान के, सीना तान के इश्क़ करेंगे, इश्क़ करेंगे Ishq karenge

कुछ संगीतकार, गीतकार व गायक ऐसे होते हैं जिनकी हर नई प्रस्तुति का हम सभी को बड़ी बेसब्री से इंतज़ार होता है। गुलज़ार, स्वानंद किरकिरे, प्रसून जोशी जिस फिल्म में हों उनसे ये उम्मीद हमेशा रहती है कि उनके शब्द जाल से कोई काव्यात्मक सा नग्मा निकलेगा । अमित त्रिवेदी, सचिन जिगर, प्रीतम के कुछ नए से संगीत संयोजन व रहमान, विशाल शेखर और एम एम करीम सरीखे संगीतकारों से कुछ मधुर गीतों की अपेक्षा तो रहती ही है। अगर गायिकी की बात करूँ तो सोनू निगम, राहत फतेह अली खाँ, अरिजित सिंह व श्रेया घोषाल भी ऐसी आशा जगाते हैं। पर इन गायकों के साथ एक और नाम है एक शख़्स का जिनकी आवाज़ का जादू ऐसा है कि उनके गीतों का इंतज़ार मुझे हमेशा होता है। ये आवाज़ है सोना महापात्रा की। 

सोना हिंदी फिल्मों में ज्यादातर अपने पति संगीतकार राम संपत की फिल्मों में ही गाती दिखाई पड़ती हैं। सत्यमेव जयते में उनके गाए गीतों को तो खासी लोकप्रियता मिली ही, पिछली संगीतमालाओं में उनके गाए गीत मन तेरा जो रोग है, अम्बरसरियानैना नूँ पता भी काफी सराहे गए। पिछले साल MTV के  कोक स्टूडियो में भी उन्होंने धमाल मचाया। पर इतना सब होते हुए भी मुझे हमेशा लगता है उनमें जितना हुनर है उस हिसाब से उनके और गाने हम संगीतप्रेमियों को सुनने को मिलने चाहिए।

इस साल उनका गाया जो गीत इस संगीतमाला में दाखिल हुआ है वो एक समूह गीत है। ये गीत है फिल्म बंगिस्तान का । अब जिस फिल्म का नाम इतना अटपटा हो उसके गीतों में हास्य की झलक तो मिलेगी ना। बंगिस्तान फिल्म का ये गीत लोगों को इश्क़ करने को बढ़ावा देता है और वो भी एक अलग और अनूठे अंदाज़ में।


इस गीत को लिखा है नवोदित गीतकार और मेरठ के बाशिंदे पुनीत कृष्ण ने। पुनीत को बचपन से ही कविता लिखने का शौक़ था। पहली नौकरी मुंबई में मिली तो अंदर ही अंदर फिल्म इंडस्ट्री में काम का सपना और तेजी से पैर फैलाने लगा। पहली बार तबादला होने पर पुनीत ने नौकरी ही छोड़ दी और दूसरों को नौकरी लगाने के लिए एक फर्म खोल ली। साथ ही वे फिल्म उद्योग के लोगों से भी मेल जोल बढ़ाते रहे। अपने दोस्तों के साथ मिलकर उन्होंने बंगिस्तान की कहानी लिखी जो निर्माता फरहान अख़्तर को पसंद आ गई। पटकथा के बहाने उन्हें गीत लिखने का भी मौका मिला और अब उसका नतीज़ा अब आपके सामने है। गीत में प्रयुक्त उनके दो भाव गीत को सुनने के बाद भी  याद रह जाते हैं। एक तो  तब जब वो रूमानी अंदाज़ में वो इश्क की चाशनी से दिल के कुओं से  भरने की बात करते हैं और  दूसरी ओर अपनी उन का हाथ पकड़ने से लाइफ के बैकग्राउंड स्कोर मे, सेंटी वायलिन बजने की बात होठों पर एक मुस्कुराहट छोड़ जाती है।

इस गीत में सोना मोहापात्रा का साथ दिया है अभिषेक नैलवाल और शादाब फरीदी की तिकड़ी ने। गीत को जिस जोश खरोश की जरूरत थी वो अपनी उर्जा से इस तिकड़ी ने उसमें भर दी है। राम संपत ने गीत का अंदाज़ कव्वालियों वाला रखा है। मुखड़े और इंटल्यूड्स में राम हारमोनियम का खूबसूरत प्रयोग करते हैं खासकर तीसरे मिनट के बाद आने वाले टुकड़े में। तो आप भी थोड़ा इश्क़ कर लीजिए ना इस गीत से..




चढ़ के ऊँची दीवारों पे, हम ऍलान करेंगे
दिल की सुनने वालो से ही, हम पहचान करेंगे
और नहीं कुछ पढना हमको, हम तो हीर पढेंगे
इश्क चाशनी से हम, अपने दिल के कुएँ भरेंगे
अरे और नहीं कुछ पढना हमको, हम तो हीर पढेंगे
इश्क चाशनी से हम, अपने दिल के कुएँ भरेंगे
जब भी उसका हम हौले से, हाथ ज़रा पकड़ेंगे
लाइफ के बैकग्राउंड स्कोर मे, सेंटी वायलिन बजा करेंगे
दिल की मान के, सीना तान के इश्क़ करेंगे, इश्क़ करेंगे
अरे दिल की मान के, सीना तान के इश्क़ करेंगे, इश्क़ करेंगे
हो इश्क़ करेंगे, इश्क़ करेंगे इश्क़ करेंगे

ख्वाब आँखों से यूँ छलके, हो साथी बन के दो पल के
हाँ तू भी देख ले यारा, हाँ मेरे साथ मे चलके
हो ऐसा आएगा एक दिन, हर कोई गायेगा एक दिन
जो तुझसे रूठ के बैठा, वो दर पे आएगा एक दिन
जिन गलियों से वो गुजरेगा, दिल अपना रख देंगे
रेड कार्पेट पे फ्लैश बल्बस ले, उसकी राह तकेंगे
दिल की मान के सीना तान के इश्क़ करेंगे....

तू राँझा हैं, तू मजनूँ हैं, जिधर देखू हाँ बस तू हैं
तू मिले तो झूम के नाचूँ, ख़ुशी का आलम हरसू हैं
ये तेरे हाथो की नरमी, ये तेरे बातो की नरमी
गले तेरे जो लग जाऊँ, तो मई और जून की गर्मी
हर जाड़ो मे हम थोड़ी सी, धूप ज़रा सेकेंगे
हैप्पी सा दि एंड होगा, सनसेट संग देखेंगे
दिल की मान के सीना तान के इश्क़ करेंगे....

ना तेरा हैं, ना मेरा हैं, ये जग तो रैन बसेरा हैं
ये काली रात जो जाए, तो फिर उजला सवेरा हैं
ये तेरे हाथ में प्यारे, कि बंधन तोड़ दे सारे
कि तू आज़ाद हो जाए, वो तेरे चाँद और तारे
सच कहते हैं हम तो, जब भी कोशिश ज़रा करेंगे
स्लो मोशन मे विद इमोशन, लाखो फूल झडेंगे
हम बन्दे हैं बंगिस्तान के, इश्क करेंगे, इश्क करेंगे
अरे दिल की मान के सीना तान के इश्क़ करेंगे....

वार्षिक संगीतमाला 2015

बुधवार, जनवरी 01, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान संख्या 25 : अम्बरसरिया..मुंडयावे कचिया कलियाँ ना तोड़ (Ambarsariya)

साल का शुभारंभ और स्वागत है आपका एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला के नवें वर्ष (9th year) में पिछले साल के 25 बेहतरीन गीतों के साथ। वार्षिक संगीतमाला 2013 की पच्चीस वीं पॉयदान में विराजमान है वो गीत जो पंजाब के गली मोहल्लों में पूरे साल जोर शोर से बजा और इसकी एक खास वज़ह रही गीत में एक ऐसे आंचलिक शब्द का प्रयोग जो पंजाब के एक नामी शहर से जुड़ा हुआ है। वैसे हिंदी फिल्मों में हर साल निर्माता निर्देशक अपनी फिल्मों के गीतों में कुछ अनूठे अनजाने शब्द (चाहे वो आंचलिक भाषाओं से लिए गए हों या विदेशी भाषा से) डलवाते रहें हैं ताकि लोगों की पहले उस गीत और फिर उस फिल्म के प्रति उत्सुकता बढ़े। रॉकस्टार में प्रयुक्त कतिया करूँ हो या फिर दम मारो गम का Te Amo , अपनी इसी नवीनता के कारण ये गीत लोकप्रिय हुए।


फिल्म फुकरे के लिए संगीतकार राम संपत को एक रोमांटिक गीत की तलाश थी तो वो पंजाबी लोक गीत अम्बरसरिया को ढूँढ लाए। गीतकार मुन्ना धीमन ने उस लोक गीत में थोड़ा हिंदी पंजाबी का तड़का लगाया और सोना महापात्रा की जादुई आवाज़ की चाशनी में ये गीत निखर उठा। वैसे किसी हिंदी भाषी से अंबरसरिया का मतलब पूछा जाए तो वो बेचारा या तो आसमान (अम्बर) की ओर ताकेगा या फिर लोहे की छड़ों (सरिया) के बारे में सोचेगा पर पंजाबी में अंबरसरिया का मतलब होता है अमृतसर का लड़का (थोड़े लफंगे वाले भाव में :))

गायिका सोना महापात्रा  इस गीत के बारे में बताती हैं कि
"जब इस फिल्म का एलबम विकसित हो रहा था तब इसमें केवल धूम धड़ाके वाले गाने ही थे। अम्बरसरिया वाला गीत लाने की बात एलबम को पूरा करने के थोड़े ही पहले हुई और मुझे इसे एक लड़की के लिहाज़ से इस गीत में अपने आपको प्रकट करने का मौका मिला। मुझे इस गीत को गाते हुए खूब मजा आया । आजकल के युवाओं की फिल्म होते हुए भी इसमें प्यार के उसी पुराने तौर तरीके को दिखाया गया है जो मन को सोहता है।"

सही तो कह रही हैं सोना।  मध्यम वर्गीय कॉलोनियों में गली का नुक्कड़, घर की बॉलकोनी और पड़ोसन की छत तो प्यार के बीज को अंकुरित होने के लिए मुनासिब जगहें हुआ करती थीं। अब इस गीत को ही लें, गीत में नायक के तौर तरीकों को समझती हुई हमारी नायिका  अमृतसर के मुंडे को  कुछ यूँ संबोधित कर रही है

गली में मारे फेरे, पास आने को मेरे
कभी परखता नैन मेरे तो, कभी परखता तोर (चाल)
अम्बरसरिया..मुंडयावे कचिया कलियाँ ना तोड़ 
तेरे माँ ने बोले हैं मुझे तीखे से बोल
अम्बरसरिया..हो अम्बरसरिया..


वैसे सोना को गीत की वो पंक्तियाँ सबसे अच्छी लगती हैं जब नायिका कहती है कि पहले तो मैं काजल लगा और चूड़ियाँ पहन कर खूब सजती सँवरती थी पर अब मुझे पता लग गया है कि जिसके पास मेरे जैसे नशीले नैन हों उसे ना तो किसी सूरमे की आवश्यकता है ना किसी साज श्रंगार की।

गोरी गोरी मेरी कलाई ,चूड़ियाँ काली काली
मैं शर्माती रोज़ लगाती ,काजल सुरमा लाली
नहीं मैं सुरमा पा
ना  ,रूप ना मैं चमकाना
नैन नशीले हों अगर तो सुरमे दी कि लोड़

राम संपत ने इस गीत के संगीत में गिटार का खूबसूरत प्रयोग किया है तो आइए सुनते हैं सोना की आवाज़ में ये नग्मा...


वैसे फिल्म फुकरे में प्यार के इस रासायन को पनपता देख पाना भी एक सुखद अनुभव है...


गुरुवार, अगस्त 29, 2013

सोना महापात्रा @ MTV Coke Studio : 'दम दम अंदर' और 'मैं तो पिया से नैना लड़ा आई रे...'

कोक स्टूडिओ (Coke Studio) का भारतीय संस्करण अपने तीसरे साल मे है। विगत दो सालों में अपने अग्रज पाकिस्तानी कोक स्टूडिओ की तुलना में ये फीका ही रहा है। पर अपने शैशव काल से बाहर निकलता हुआ ये कार्यक्रम हर साल कुछ ऐसी प्रस्तुतियाँ जरूर दे जाता है जिससे इसके भविष्य के प्रति और उम्मीद जगती है। इस बार मुझे अपनी चहेती पार्श्व गायिका सोना महापात्रा को इस कार्यक्रम में सुनने का बेसब्री से इंतज़ार था। मुझे हमेशा से लगता रहा है कि सोना की आवाज़ की गुणवत्ता बेमिसाल है और उनकी गायिकी की विस्तृत सीमाओं का हिंदी फिल्म जगत सही ढंग से इस्तेमाल नहीं कर पाया है। संगीतकार राम संपत जिनसे सोना परिणय सूत्र में बँध चुकी हैं इस मामले में अपवाद जरूर हैं पर सोना को अपने हुनर के मुताबिक अन्य संगीतकारों का साथ मिलता रहे तो मेरे जैसे संगीतप्रेमी को ज्यादा खुशी होगी।

 MTV के इस कार्यक्रम में राम संपत ने सोना की आवाज़ का दो बार इस्तेमाल किया और दोनों बार नतीजा शानदार रहा। तो आइए सुनते हैं आज इन दोनों गीतों को ।

पहले गीत में ईश भक्ति का रंग सर चढ़कर बोलता है। गीत की शुरुआत होती है सामंथा एडवर्ड्स की गाई इन पंक्तियों से, जिसमें दुख और सुख दोनों परिस्थितियों में ईश्वर की अनुकंपा से गदगद भक्त के प्रेम को व्यक्त किया गया है। 

When I am weak,
You give me strength,
You give me hope,
When I am down,
In the face of darkness,
You are my guide,
You are my love,
My love divine.
Help me forgive,
When I am hurt,
Help me believe,
When I am lost,
In times of trouble,
You ease my weary mind,
You are my love,
My love divine.

सामंथा, राम सम्पत के शब्दों को पूरे हृदय से आत्मसात करती दिखती हैं। मुंबई की ये बहुमुखी प्रतिभा पश्चिमी जॉज़ संगीत के साथ साथ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में समान रूप से दक्ष हैं। पिछले दो दशकों में वो एक संगीत शिक्षक, संयोजक और गायिका की विविध भूमिकाओं को भली भांति निभाती आयी हैं। सामंथा की गायिकी और राम संपत के खूबसूरत इंटरल्यूड् से स्थिर हुए मन को बदलती रिदम के साथ सोना की आवाज़ नई उमंग का संचार करती है। गीतकार मुन्ना धीमन अपने  शब्दों की लौ से  भक्त को तरंगित अवस्था में ले आते हैं।




दम दम अंदर बोले यार
हरदम अंदर बोले यार
यार में मैं बोलूँ ना बोलूँ
मेरे अंदर बोले यार

घर के अंदर बोले यार
घर के बाहर बोले यार
छत के ऊपर नाचे यार
मंदिर मस्जिद बोले यार

हम ने यार दी नौकरी कर ली
कर ली प्यार दी नौकरी कर ली
उसके द्वार पर जा बैठे हैं
वो खोले ना खोले द्वार
लौ लागी ऐसी लौ लागी
फिरती हूँ मैं भागी भागी
मैं तुलने को राजी राजी
कोई तराजू तौले यार...

When I am weak...

हिंदी और अंग्रेजी शब्दों के मेल कर से बना ये गीत अपने बेहतरीन संगीत संयोजन दिल को सुकून पहुँचाता है।

इसी कार्यक्रम के अंत में सोना महापात्रा  ने अमीर ख़ुसरो साहब की लिखी एक और रचना को पेश किया जिसे खुसरो साहब ने अपने गुरु निजामुद्दिन औलिया के लिए लिखा था। सोना की आवाज़ में जो उर्जा है वो अमीर खुसरों की भावनाओं और गीत के चुलबुलेपन से पूरा न्याय करती दिखती है..

मैं तो पिया से नैना लड़ा आई रे
घर नारी कँवारी कहे सो कहे
मैं तो पिया से नैना लड़ा आई रे
सोहनी सुरतिया मोहनी मुरतिया..
मैं तो हृदय के पीछे समा आई रे..
मैं तो पिया से..
खुसरो निज़ाम के बली बली जैये
मैं तो अनमोल चेली कहा आई रे

सोना इस गीत के बारे में कहती हैं
इस गीत में गिनती गिन कर ऊपर के सुरों तक पहुँचने के बजाए मैंने पूरी तरह गीत के उन्माद में अपने आप को झोंक दिया। अगर मैं ऐसा नहीं करती तो शायद गीत की भावनाओं से मेरा तारतम्य टूट जाता। 
दोनों ही गीतों में कोरस का राम संपत ने बड़ा प्यारा इस्तेमाल किया है।



तो बताइए सोना महापात्रा की गायिकी से सजी जनमाष्टमी की ये भक्तिमय सुबह आपको कैसी लगी?

एक शाम मेरे नाम पर सोना महापात्रा

शुक्रवार, मार्च 01, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 4 : मन तेरा जो रोग है, मोहे समझ ना आये...

इंसान की इस फितरत से भला कौन वाक़िफ़ नहीं ? अक्सर उन चीजों के पीछे भागा करता है जो पहुँच से बाहर होती है। पर दुर्लभ को प्राप्य बनाने की जुगत में बने बनाये रिश्तों को भी खो देता है। गीतकार जावेद अख्तर मनुष्य की इसी मनोदशा को वार्षिक संगीतमाला 2012 की चौथी पॉयदान पर के गीत के मुखड़े में बखूबी चित्रित करते हुए कहते हैं..मन तेरा जो रोग हैं, मोहे समझ ना आये..पास हैं जो सब छोड़ के , दूर को पास बुलाये । फिल्म तलाश के इस गीत की धुन बनाई है राम संपत ने और इस युगल गीत को गाया है सोना महापात्र और रवींद्र उपाध्याय की जोड़ी ने।

सोना महापात्र और राम संपत

इंजीनियरिंग और एमबीए कर चुकीं सोना महापात्र के संगीत के सफ़र के शुरुआती दौर की चर्चा तो एक शाम मेरे नाम पर मैं पहले भी कर चुका हूँ। पिछले साल सत्यमेव जयते कार्यक्रम में उनके गाए गीतों ने उन्हें फिर चर्चा में ला दिया था। सोना महापात्र की आवाज़ का मैं हमेशा से शैदाई रहा हूँ खासकर वैसे गीतों में जिनमें एक तरह का ठहराव है, जिनके बोल आपसे कुछ कहना चाहते हैं। कुछ तो है उनकी आवाज़ में जिसकी क़शिश श्रोताओं को अपनी ओर खींचती है। फिल्म तलाश के इस गीत को जब मैंने पहली बार सुना तो इस गीत के प्रभाव से उबरने में मुझे हफ्तों लग गए थे। खुद सोना के लिए ये गीत उनके दिल के बेहद करीब रहा है। इस गीत के बारे में वो कहती हैं

"मुझे इस गीत की रिकार्डिंग में सिर्फ दस मिनट लगे थे। ये गीत पुराने और नए संगीत को एक दूसरे से जोड़ता है । इस गीत में पुरानी शास्त्रीय ठुमरी और आज के पश्चिमी संगीत (ड्रम व बॉस इलेक्ट्रानिका) का अद्भुत संगम है । आज की हिंदी फिल्मों में शास्त्रीय रागों से जुड़ी बंदिशें कम ही सुनने को मिलती हैं। दरअसल इस गीत की पैदाइश तब हुई थी जब राम ने अपने एलबम Let's Talk के लिए वर्ष 2001 में सारे देश में घूम घूमकर शिप्रा बोस और ज़रीना बेगम जैसी नामी ठुमरी गायकिओं की आवाज़ रिकार्ड की थी। राम से मेरी पहली मुलाकात इसी एलबम के एक गीत को गाने के लिए हुई थी पर एलबम की अन्य रिकार्डिंग्स को सुनने के बाद मुझे लगा कि उनकी तुलना में मुझे अभी बहुत कुछ सीखना है और उस एलबम में शामिल होने लायक मेरी काबिलियत नहीं है। "

पर ग्यारह सालों बाद उसी प्रकृति के गीत को इतनी खूबसूरती से निभाना उनके लिए गर्वित होने का अवसर था। ये बताना जरूरी होगा कि सोना की राम संपत से ये मुलाकात आगे जाकर पति पत्नी के रिश्ते में बदल गई। आज ये युगल अपने बैंड Omgrown Music के साझा निर्माता हैं। फिल्म तलाश के इस गीत के लिए राम संपत सोना को तो बहुत पहले ही चुन चुके थे पर उन्हें इस गीत में उनका साथ देने के लिए उपयुक्त युगल पुरुष स्वर नहीं मिल पा रहा था। बहुत सारे गायकों से इस गीत को गवाने के बाद उन्होंने रवींद्र उपाध्याय को चुना। जयपुर से वकालत की डिग्री लेने वाले रवींद्र उपाध्याय वैसे तो TV पर एक रियालटी शो जीत चुके थे पर फिल्मों में उन्होंने गिनती के नग्मे ही गाए थे। पर राम को लगा कि इस गीत के बोलों के साथ रवी्द्र की आवाज़ पूरा न्याय कर सकती है।भले ही सोना की गायिकी इस गीत की जान हो पर रवींद्र ने भी अपने अंतरों में श्रोताओं को निराश नहीं किया।

तो आइए सुनते हैं इस गीत को

मन तेरा जो रोग है, मोहे समझ ना आये
पास हैं जो सब छोड़ के , दूर को पास बुलाये
जिया लागे ना तुम बिन मोरा

क्या जाने क्यों हैं, क्या जाने कैसी, अनदेखी सी डोर
जो खेंचती हैं, जो ले चली हैं, अब यूँ मुझे तेरी ओर

मैं अनजानी हूँ वो कहानी, होगी ना जो पूरी
पास आओगे तो पाओगे, फिर भी हैं इक दूरी
जिया लागे ना तुम बिन मोरा

मन अब तक जो बूझ ना पाया, तुम वो पहेली हो
कोई ना जाने क्या वो रहस हैं, जिसकी सहेली हो

मैं मुस्काऊँ, सबसे छुपाऊँ, व्याकुल हूँ दिन रैन
कब से ना आयी नैनों में निंदिया, मन में ना आया चैन

जिया लागे ना तुम बिन मोरा

सोमवार, मई 23, 2011

सोना महापात्रा और इंतज़ार का सुख : अभी ना..ही आना सजना,मोहे थोड़ा मरने दे.

आज के संगीत परिदृश्य में ऐसे गायक गायिका भी तेजी से उभर रहे हैं जिन्होंने हिंदी फिल्म संगीत के इतर भी अपना मुकाम बनाया है। आज की ये पोस्ट भी ऐसी ही एक गायिका के बारे में है जिनका नाम है सोना महापात्रा। सोना आज हिंदी पॉप जगत में जाना हुआ नाम हैं पर उनके संगीत को सिर्फ इसी श्रेणी में परिभाषित करना उनके साथ नाइंसाफी होगी। सोना ने पारम्परिक पॉप संगीत के साथ साथ कुछ ऐसा संगीत भी रचा है जिसमें भारतीयता और पश्चिमी वाद्य यंत्रों का अद्भुत मिश्रण है। पर इससे पहले कि उनकी ऐसे ही एक प्यारे गीत का जिक्र किया जाए, उनकी पारिवारिक और सांगीतिक पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बातें जानना आप सब के लिए रोचक रहेगा।

सोना महापात्रा के पिता भारतीय नौ सेना में थे और इसी वज़ह से उनका बचपन भारत और विश्व के विभिन्न देशों में बीता। सोना ने बारह साल हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा तो ली पर भिन्न भिन्न सांगीतिक परिवेशों में रहने की वज़ह से उन्हें सूफ़ी, लोक व पश्चिमी संगीत से जुड़ने का भी मौका मिला। संगीत में रुचि लेने के साथ वो पढ़ती भी रहीं। पहले इंजीनियरिंग और फिर पुणे से MBA की डिग्री लेने के बाद कुछ दिनों तक उन्होंने एक निजी कंपनी मेरिको में काम भी किया। पर संगीत के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने की उन्हें महात्त्वाकांक्षा ने उन्हें अच्छे वेतन वाली नौकरी से विमुख कर दिया।

सोना महापात्रा को अपना हुनर दिखाने का पहला मौका वर्ष 2006 में तब मिला जब Sony BMG ने उनका पहला एलबम 'सोना' रिकार्ड करवाया। सोना महापात्रा ने इस एलबम के लिए एड फिल्मों के सफल संगीतकार राम संपत को संगीत निर्देशन के लिए चुना। ये वही राम संपत हैं जिन्हें पीपली लाइव के कुछ गीतों को संगीतबद्ध किया था। संगीतकार राम संपत ने इस एलबम में सोना की गायिकी के बारे में कहा था कि

सोना किसी भी गीत की भावनाओं में अपनी आवाज़ को बड़ी सहजता से ढाल लेती हैं। उनकी आवाज़ में एक ऍसी ईमानदारी है जिसमें ताजगी भरी विलक्षणता के साथ साथ सुरीलापन भी है। उनके गले में एक ओर वही पुरातन सुर हैं तो दूसरी तरफ उनका हृदय आज की नारी का है और शायद यही सम्मिश्रण उन्हें विशिष्ट बनाता है।

यूँ तो एलबम सोना के कई गीत लोकप्रिय हुए पर मुझे उनके इस एलबम का एक गीत बहुत पसंद है। इस गीत को लिखा है मुन्ना धीमन ने। मुन्ना ने इस गीत में प्रेम को एक अलग नज़रिए से देखने की कोशिश की है। वो कहते हैं ना अगर प्रेम में वियोग नहीं हो तो वो प्रेम कैसा ? इंतज़ार की घड़ियाँ भले ही कष्टकर होती हैं पर उन पलों की तड़प, प्रेम की अग्नि को और बढ़ाने का ही तो काम करती है। इसीलिए तो मुन्ना अपने गीत में कहते हैं

अभी ना..ही आना सजना
मोहे थोड़ा मरने दे
इंतज़ार कर..ने दे

सोना इस गीत को ऍसे लहज़े में गाती हैं जो आपको दशकों पहले हिंदी फिल्मों में गाए जाने वाले उप शास्त्रीय संगीत का आभास दिलाता है। राम संपत ने संगीत में गिटार और चुटकी का बेहतरीन प्रयोग किया है। गीत के मुखड़े और इंटरल्यूड्स में गिटार वादक संजय दिवेचा द्वारा बजाई धुन सुनते ही हृदय गीत के मूड में बहने लगता है।

अभी ना..ही आना सजना
अभी ना..ही आना सजना
मोहे थोड़ा मरने दे
इंतज़ार कर..ने दे
अभी नहीं आना सजना

भेजियो संदेशा...
आप नहीं आ..ना
थोड़ी दूर रह के...
मोहे तरसा..ना
अभी तो मैं चा..हूँ
सारी सारी रात जगना
अभी ना..ही आना सजना...

रुक रुक आ..ना धीरे धीरे चल.ना
भूलना डगरिया.., रास्ते बदल..ना
नहीं अभी मो..हे
गरवा नहीं है लगना

अभी ना जगाओ
बने रहो सपना
अभी सन्मुख ना लाओ मुख अपना
अभी तो मैं चाहूँ आस लगाए रखना
अभी ना ही आना सजना



सोना महापात्रा के संगीत का सफ़र उनके पहले एलबम सोना से आगे बढ़कर आज दिलजले तक जा पहुँचा है। फिल्मों में भी उनके गाए गीत यदा कदा सुनने को मिलते रहते हैं। पिछले साल श्रेया के साथ मिलकर गाया उनका गीत बहारा बहारा बेहद लोकप्रिय हुआ था। आशा है कि सोना अपनी गायिकी के द्वारा कुछ अलग हटकर संगीत देने की अपनी प्रवृति को आगे भी बनाए रखेंगी।
 

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