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शनिवार, फ़रवरी 01, 2020

वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 10 : बोल उठा ये जग सारा, जय मर्द मराठा रे Mard Maratha

आशुतोष गोवारिकर एक ऐसे निर्देशक रहे हैं जिनकी फिल्में अपने लंबे चौड़े कैनवास के साथ साथ संगीत के लिए भी जानी जाती रही हैं। लगान, जोधा अकबर और स्वदेश में ए आर रहमान के साथ बनाए उनके गीत हर संगीतप्रेमी की पसंदीदा सूची में शामिल  होंगे। रहमान के बाद उन्होंने अपनी कुछ छोटी बजट की फिल्मों में संगीतकार सोहेल सेन का दामन थामा पर जब उन्होंने मराठा योद्धाओं पर केंद्रित फिल्म पानीपत बनानी शुरु की तो इसके लिए उन्होंने मराठी और हिंदी फिल्मों की चर्चित संगीत जोड़ी अजय अतुल को लिया। ये चुनाव वास्तव में बिल्कुल वाजिब था क्यूँकि ये विषय ऐसा था जिसके साथ अजय अतुल जैसे संगीकार पूरा न्याय कर सकते थे।



अजय अतुल कहते हैं कि बचपन से अब तक पानीपत के बारे में उन्होंने खूब पढ़ा था। इस युद्ध के पहले की परिस्थितियाँ उनके दिल के इतने करीब थीं कि अगर आशुतोष ने उन्हें इस फिल्म में मौका नहीं दिया होता तो वे ख़ुद इस विषय पर फिल्म बना देते। आशुतोष गोवारिकर ने इस फिल्म के लिए भले ही संगीतकार बदल दिया हो पर उनकी फिल्मों के गीतकार हमेशा से जावेद अख्तर रहे और इस फिल्म के सारे गीत भी जावेद साहब ने लिखे हैं। अजय अतुल के लिए भी ये पहला मौका था जावेद अख्तर के साथ काम करने का और छोटे से तीन गीतों के एलबम में अपना एक गीत वो संगीतमाला की छठी पायदान पर शामिल करवाने में सफल हुए हैं।

तन मन में जोश भरते जावेद अख्तर के शानदार बोल, ताल वाद्यों की अद्भुत रिदम और अजय अतुल, प्रियंका बार्वे के साथ ढेर सारे गायक गायिकाओं की फौज द्वारा गाया ये समूह गान मन को आनंदित कर देता है। इस गीत में अजय अतुल के साथ सुदेश भोसले और कुणाल गांजावाला जैसी कुछ पुरानी आवाज़ें भी गूँजी हैं। गीत में जो सबसे युवा आवाज़ अंत में उभरती है वो पद्मनाभ गायकवाड़ की है और प्रभावित करती है। अब जब सारे गायक मराठी हों तो गायिका भी मराठी ही होनी थी। अजय अतुल ने इस गीत के लिए प्रियंका बार्वे को चुना जिनकी अद्भुत गायिकी से मैं आपका यहाँ पहले ही परिचय करा चुका हूँ

आजकल की फिल्मों में ऐसे समूह गान कम ही सुनाई पड़ते हैं। ये गीत मराठा शूरवीरों के पराक्रम और जीवन मूल्यों की बात  बखूबी करता है और वो भी इस अंदाज़ में कि  गीत के बोलों के साथ आप भी बाकी गायकों के साथ सुर में सुर मिलाने के लिए तत्पर हो जाते हैं। जावेद साहब के बोल तो जबरदस्त हैं ही पर गीत के मुखड़े की शब्द रचना सबसे ज्यादा ध्यान आकर्षित करती है। तो आइए सुनते हैं पानीपत फिल्म का ये गीत..


हे बोले धरती जयकारा, गगन है सारा गूँजा रे
जग में लहराया न्यारा, ध्वज है हमारा ऊँचा रे
हम वो योद्धा वो निडर, हम जो भी दिशा में जाएँ
सारे पथ चरण छुएँ और पर्वत शीश नवाये
रास्ते से हट जाएँ नदियाँ हो के हवाएँ

हम हैं जियाले जीतने को हम, रण में उतरते हैं
हम सूरज हैं अंत हमी, रातों का करते हैं
युग युग की जंजीरों को हमने ही काटा रे
बोल उठा ये जग सारा, जय मर्द मराठा रे

जो रक्त है तन में बहता, वो हमसे है ये कहता
सम्मान के बदले जान भी दें, तो नही है घाटा रे
युग युग की जंजीरों ...... मर्द मराठा रे

वीरता हमने बोई और ये फल पाया
दूर तक अब है फैली अपनी ही छाया
हो.. जीवन जो रणभूमि में करता है तांडव
आज उसी ने है विजय का नगाड़ा बजाया
अपनी है जो गाथा अब है समय सुनाता
सब को है ये बताता कैसे सुख हमने बाँटा रे
युग युग की जंजीरों ...... मर्द मराठा रे

सच के सिपाही अलबेले राही
क्या जानते हो तुम
जब तुम नही थे हम कब यहीं थे
हम भी थे जैसे गुम
तुम ध्यान में थे तुम प्राण में थे
जैसे जनम जनम
जब तीर तुमपे बरसे तो
जैसे घायल हुए थे हम
हो.. देखो तो मुझसे कह के
मैं जान दे दूँ तुम पे
क्या तुम नहीं ये जानते
दुविधा के आगे जब नारी जागे
हिम्मत से काम ले
चूड़ी उतार कंगन उतार तलवार थाम ले

मैंने ली आज शपथ है
वीरों का पथ है मेरा रे
लक्ष्य अपना जो बना लूँ
वहीं पे डालूं डेरा रे

हम वो योद्धा....  मर्द मराठा रे

जितना इस गीत को सुनना मधुर लगता है उतना ही शानदार लगता है इसकी भव्यता को पर्दे पर देखना..



वार्षिक संगीतमाला 2019 
01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया 
03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
04. तेरा साथ हो   Tera Saath Ho
05. मर्द  मराठा Mard Maratha
06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए  Bharat 
07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है  Aaj Jage Rahna
08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र  Zikra
09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए  Dil Royi Jaye
10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ  Shaabaashiyaan
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी  से.. 
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

सोमवार, जनवरी 28, 2019

वार्षिक संगीतमााला 2018 पायदान # 2 : जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू Mere Naam Tu

हिंदी फिल्म संगीत में शंकर जयकिशन की जोड़ी को ये श्रेय दिया जाता है कि उन्होंने फिल्मी गानों में आर्केस्ट्रा का वृहत पैमाने पर इस्तेमाल सिर्फ फिलर की तरह नहीं बल्कि गीत के भावों का श्रोताओं तक संप्रेषण करने मे भी किया। उनके गीतों में संगीत संयोजन की एक शैली होती थी जिसे आप सुन के पहचान सकते थे कि ये गीत शंकर जयकिशन का है। मराठी फिल्मों से अब हिंदी फिल्मों में पाँव पसारने वाले अजय अतुल नए ज़माने के संगीतकारों में एक ऐसे संगीतकार हैं जिनकी धुनों को आप उनके आर्केस्ट्रा आधारित संगीत से ही पकड़ सकते हैं। 


अजय अतुल के संगीत में दो चीजें बड़ी प्रमुखता से आती हैं एक तो पश्चिमी वाद्यों वॉयलिन का कोरस और पियानो के स्वर और दूसरे हिंदुस्तानी ताल वाद्यों की धमक के साथ बाँसुरी की सुरीली तान। इस साल उनका संगीत धड़क, ठग आफ हिंदुस्तान, तुम्बाड और ज़ीरो में सुनाई पड़ा। धड़क के गीत तो इस गीतमाला में बज ही चुके हैं। आज वार्षिक संगीतमाला की दूसरी पॉयदान पर बज रहा है उनकी फिल्म ज़ीरो का गीत।

अजय व  अतुल 
इस गीत के पीछे की जो चौकड़ी है, मुझे नहीं लगता कि पहले कभी साथ आई है। अजय अतुल ज्यादातर अमिताभ भट्टाचार्य के साथ काम करते थे पर यहाँ गीत लिखने का जिम्मा मिला इरशाद कामिल को। अभय जोधपुरकर का तो ये हिंदी फिल्मों का पहला गीत था। शाहरुख भी अक़्सर विशाल शेखर या प्रीतम जैसे बड़े नामों के साथ ज्यादा दिखे हैं पर इस बार उन्होंने अजय अतुल को चुना। इस गीत की सफलता में संगीत संयोजन, बोल और गायिकी तीनों का हाथ रहा है और यही  वज़ह है कि ये गीत मेरी गीतमाला का रनर्स अप गीत बन पाया है। 

अभय जोधपुरकर

सबसे पहले तो आपकी उत्सुकता  इस नयी आवाज़ अभय जोधपुरकर के बारे में जानने की होगी। अभय संगीत की नगरी इंदौर में पले बढ़े। चेन्नई में बॉयोटेक्नॉलजी का कोर्स करने गए और वहीं शौकिया तौर पर ए आर रहमान के संगीत विद्यालय में सीखने लगे। रहमान ने दक्षिण भारतीय भाषाओं की फिल्मों में उन्हें गाने का मौका दिया। उनका पहला सबसे सफल गीत मणिरत्नम की फिल्म कदाल से था। 27 वर्षीय अभय ने कुछ साल पहले अजय अतुल की फिल्म का एक कवर गाया जिस पर अतुल की नज़र पड़ी। उन्हें उनकी आवाज़ पसंद आई और फिर ब्रदर के गीत सपना जहाँ को गाने के लिए उन्होंने अभय को बुलाया। अभय तब तो मुंबई नहीं जा पाए पर पिछले अक्टूबर में जब अतुल ने उन्हें एक बार फिर  ज़ीरो के लिए संपर्क तो वो अगले ही दिन मुंबई जा पहुँचे।

स्टूडियो में अजय  के आलावा, इरशाद कामिल और निर्देशक आनंद एल राय पहले से ही मौज़ूद थे। अभय से कुछ पंक्तियाँ अलग अलग तरह से गवाई गयीं और फिर पूरा गीत  रिकार्ड हुआ। गीत की आधी रिकार्डिंग हो चुकी थी जब अभय और निर्देशक आनंद राय को भूख लग आई पर अजय ने विराम लेने से ये कह कर मना कर दिया  कि अभी तुम्हारी आवाज़ में जो चमक है वो खाने के बाद रहे ना रहे। नतीजा ये हुआ कि अभय को इस गीत का एक हिस्सा खाली पेट ही रिकार्ड करना पड़ा जिसमेंके ऊँचे सुरों वाला दूसरा अंतरा भी था। ये गीत जितना मधुर बना पड़ा है उससे तो अब यही कहा जा सकता है कि उन्होंने "भूखे भजन ना होए गोपाला" वाली उक्ति को गलत साबित कर दिया।😀

गीत की शुरुआत वरद कथापुरकर द्वारा बजाई बाँसुरी की मोहक धुन से होती है। उसके बाद बारी बारी से पियानो और वायलिन का आगमन होता है। इरशाद कामिल के लिखे प्यारे मुखड़े के बीच भी वॉयलिन का कोरस सिर उठाता रहता है। मेरा नाम तू आते आते ताल वाद्य भी अपनी गड़गड़ाहट से अपनी उपस्थिति दर्ज करा देते हैं। अजय अतुल के आर्केस्ट्रा में संगीत का बरबस उतार चढ़ाव दृश्य की नाटकीयता बढ़ाने में सहायक होता है। यहाँ भी इंटरल्यूड्स में वैसे ही टुकड़े हैं। खास बात ये कि गीत का दूसरा अंतरा पहले अंतरे की तरह शुरु नहीं होता और अभय की आवाज़ को ऊँचे सुरों पर जाना पड़ता है। 

गीत की रूमानियत अंतरों में भी बरक़रार रहती है। वैसे तो गीत के पूरे बोल ही मुझे पसंद हैं पर ये पंक्ति खास अच्छी लगती है जब कामिल कहते हैं टुकड़े कर चाहे ख़्वाबों के तू मेरे ..टूटेंगे भी तू रहने हैं वो तेरे। अभय की आवाज़ में येसूदास की आवाज़ का एक अक्स दिखाई पड़ा। बड़े दिल ने उन्होंने इस गीत को निभाया है। तो चलिए इसे एक बार और सुन लें अगर आपने इसे पहले ना सुना हो।

वो रंग भी क्या रंग है
मिलता ना जो तेरे होठ के रंग से हूबहू
वो खुशबू क्या खुशबू
ठहरे ना जो तेरी साँवरी जुल्फ के रूबरू
तेरे आगे ये दुनिया है फीकी सी
मेरे बिन तू ना होगी किसी की भी
अब ये ज़ाहिर सरेआम है, ऐलान है
जब तक जहां में सुबह शाम है
तब तक मेरे नाम तू
जब तक जहान में मेरा नाम है
तब तक मेरे नाम तू  

उलझन भी हूँ तेरी, उलझन का हल भी हूँ मैं
थोड़ा सा जिद्दी हूँ, थोड़ा पागल भी हूँ मैं
बरखा बिजली बादल झूठे
झूठी फूलों की सौगातें
सच्ची तू है सच्चा मैं हूँ
सच्ची अपने दिल की बातें
दस्तख़त हाथों से हाथों पे कर दे तू
ना कर आँखों पे पलकों के परदे तू
क्या ये इतना बड़ा काम है, ऐलान है
जब तक जहान ... मेरे नाम तू

मेरे ही घेरे में घूमेगी हर पल तू ऐसे
सूरज के घेरे में रहती है धरती ये जैसे
पाएगी तू खुदको ना मुझसे जुदा
तू है मेरा आधा सा हिस्सा सदा
टुकड़े कर चाहे ख़्वाबों के तू मेरे
टूटेंगे भी तू रहने हैं वो तेरे
तुझको भी तो ये इल्हाम है, ऐलान है  



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

बुधवार, जनवरी 16, 2019

वार्षिक संगीतमााला 2018 पायदान # 12 : पहली बार है जी, पहली बार है जी.. Pehli Baar

दो हफ्तों के इस सफ़र में आधी दूरी पार कर के अब बारी साल के बारह ऐसे गीतों की जो मुझे बेहद पसंद रहे हैं। इन बारह गीतों में एक तिहाई शायद ऐसे भी गीत होंगे जिन्हें इस साल बेहद कम सुना गया है। कौन हैं वो गीत उसके लिए तो आपको हुजूर साथ साथ चलना होगा इस संगीतमाला के। आज एक बार फिर मैं हूँ अजय अतुल के इस गीत के साथ जिससे जुड़ी चर्चा दो सीढ़ियों पहले यानि धड़क के शीर्षक गीत के बारे में बात करते हुए मैंने की थी। बड़ा प्यारा गीत है ये। अजय अतुल ने ये गीत सबसे पहले अपनी फिल्म सैराट के लिए संगीतबद्ध किया था और फिर उसे धड़क के लिए हिंदी बोलों के साथ फिर से बनाया गया। ये गीत मिसाल है किस तरह पश्चिमी वाद्य यंत्रों से निकली सिम्फनी को हिंदुस्तानी वाद्यों के साथ मिलाकर खूबसूरत माहौल रचा जा सकता है।


अजय अतुल के आर्केस्टा में वॉयलिन बड़ी प्रमुखता से बजता है। साथ में कई बार पियानो भी होता है। छोटे शहरों से आगे निकल कर बढ़े इन भाइयों को पश्चिमी शास्त्रीय संगीत से कैसे लगाव हुआ इसकी भी अलग एक कहानी है। 1989 में इन्होंने इलयराजा की संगीतबद्ध फिल्म अप्पू राजा देखी। फिल्म में इस्तेमाल हुए संगीत से वे बहुत प्रभावित हुए । इलयराजा के संगीत को सुनते सुनते ही उनमें पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के प्रति उत्सुकता जगी। मोत्सार्ट, बीथोवन और बॉक की सिम्फनी ने उन्हें बेहद आकर्षित किया। फिर हॉलीवुड के संगीतज्ञों जॉन विलियम्स और ज़िमर की धुनों को भी उन्होंने काफी सुना। यही वज़ह कि सलिल चौधरी के अंदाज़ में उनके गीतों में पश्चिमी सिम्फनी आर्केस्ट्रा की स्वरलहरियाँ बार बार उभरती हैं।

सैराट या बाद में धड़क में पश्चिमी संगीत का ऐसा माहौल रचने के पीछे अजय अतुल के मन में एक और वजह भी थी। वो ये कि उन्होंने अक्सर गौर किया था कि वॉयलिन और गिटार से सजी धुने उच्च वर्ग की प्रेम गीतों और कहानियों तक सीमित रह जाती हैं जिसमें हीरो लंबी कारों को ड्राइव करता है और आलीशान कॉलेजों में पढ़ता है। सैराट के चरित्र ज़मीन से जुड़े थे, मामूली लोगों की बातें करते थे पर उन्होंने सोचा कि उनका प्रेम पर्दे पर बड़ा दिखना चाहिए। संगीत में नाटकीयता झलकनी चाहिए और उसका स्वरूप अंतरराष्ट्रीय होना चाहिए। इस सोच का नतीजा ये हुआ कि अजत अतुल ने इस गीत की शुरुआत वायलिन के एक कोरस से की जो प्रील्यूड के  आख़िर में बाँसुरी की मधुर धुन से जा मिलता है।

अजय अतुल 
हर अंतरे के शुरु की पंक्तियाँ के दौरान पीछे वाद्य बेहद धीमे बजते हैं और फिर जैसे जैसे गीत की लय तेज होती है संगीत भी मुखर हो उठता है और दूसरे अंतरे के शुरुआत के साथ वापस अपनी पुरानी लय में चला जाता है।  पहला इंटरल्यूड अपनी प्रकृति में पूरी तरह यूरोपीय है तो दूसरे में ताल वाद्यों के साथ बाँसुरी की वही मधुर धुन फिर प्रकट होती है। 

गीत के बोलों में गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य ने शुरुआती प्रेम के लक्षणों को इतनी सहजता से पकड़ा है कि कहीं उन्हें सुनते हुए आप मुस्कुरा उठते हैं तो कभी उन यादों में डूब जाते हैं जब ऐसा ही कुछ आपके या आपके दोस्तों के साथ घटित हुआ था। अजय ने मराठी फिल्म  में भी इस गीत को अपनी आवाज़ दी है और यहाँ भी उसे दोहराने का लोभ छोड़ नहीं सके हैं। उनकी गायिकी मुझे पसंद है पर यही गीत अरिजीत गाते तो शायद इस गीत का प्रभाव थोड़ा और बढ़ जाता...

पहली बार है जी, पहली बार है जी
इस कदर किसी की, धुन सवार है जी
जिसकी आस में, हुई सुबह से दोपहर
शाम को उसी का इंतज़ार है जी
होश है ज़रा, ज़रा-ज़रा खुमार है जी
छेड़ के गया, वो ऐसे दिल के तार है जी
पहली बार है जी ... इंतज़ार है जी

हड़बड़ी में हर घड़ी है, धड़कनें हुई बावरी
सारा दिन, उसे ढूँढते रहे, नैनो की लगी नौकरी
दिख गयी तो है उसी में, आज की कमाई मेरी
मुस्कुरा भी दे, तो मुझे लगे, जीत ली कोई लॉटरी.
दिल की हरकतें. मेरी समझ के पार है जी
हे.. इश्क है इसे, या मौसमी बुखार है जी.
पहली बार है जी..पहली बार है जी...हम्म.

सारी सारी रात जागूँ, रेडियो पे गाने सुनूँ
छत पे लेट के, गिन चुका हूँ जो
रोज वो सितारे गिनूँ
क्यूँ न जानूँ दोस्तों की, दोस्ती में दिल ना लगे
सबसे वास्ता तोड़ ताड़ के, चाहता हूँ तेरा बनूँ
अपने फैसले पे मुझको ऐतबार है जी
ओ हो. तू भी बोल दे कि तेरा क्या विचार है जी.
हम्म हम्म.ला रे ला रा रा.



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

रविवार, जनवरी 13, 2019

वार्षिक संगीतमााला 2018 पायदान # 14 : तेरे नाम की कोई धड़क है ना Dhadak Hai Na

वार्षिक संगीतमाला की इन सीढ़ियों पर अगला गीत फिल्म धड़क से जिसे शायद ही पिछले साल आपने रेडियो या टीवी पर ना सुना हो। मराठी फिल्म सैराट के हिंदी रीमेक धड़क पर वैसे ही सिनेप्रेमियों की नज़रे टिकी हुई थीं। करण जौहर अपने द्वारा निर्मित फिल्मों के प्रचार प्रसार में कोई कसर नहीं छोड़ते और यहाँ तो दो नए चेहरों का कैरियर दाँव पर लगा था जिसमें एक चेहरा मशहूर अभिनेत्री श्रीदेवी की पुत्री जाह्न्वी का था। निर्माता निर्देशक ने संगीत की जिम्मेदारी अजय अतुल की जोड़ी पर सौंपी थी जिन्होंने इसके पहले मूल मराठी फिल्म सैराट का भी संगीत दिया था। इंटरनेट के इस ज़माने में सैराट गैर हिंदी हलकों में भी इतनी देख ली गयी थी कि उसके गीतों की धुन से बहुत लोग वाकिफ़ थे। अजय अतुल पर दबाव था कि इस फिल्म के लिए कुछ ऐसा नया रचें जिससे धड़क फिल्म के संगीत को सैराट से एक पृथक पहचान मिले।

जिन्होंने अजय अतुल के संगीत का पिछले एक दशक में अनुसरण नहीं किया है उनको बता दूँ कि वे मराठी फिल्मों में एक जाना माना नाम रहे हैं। मेरा उनके संगीत से पहला परिचय 2011 में सिंघम के सुरीले गीत बदमाश दिल तो ठग है बड़ा से हुआ। फिर 2012 में अग्निपथ में सोनू निगम के गाए गीत अभी मुझ में कहीं, बाकी थोड़ी सी है ज़िंदगी से उन्होंने खास वाह वाहियाँ बटोरीं। फिर तीन साल बाद 2015 में सोनू निगम ने उनके लिए उनके भावपूर्ण गीत सपना जहाँ दस्तक ना दे से फिर उन्होंने मेरी संगीतमाला में दस्तक दी़। एक बार फिर तीन साल के अंतर पर वो पिछले साल धड़क, जीरो और ठग्स आफ हिंदुस्तान जैसी फिल्मों में कहीं थोड़ा कम कहीं थोड़ा ज्यादा कमाल दिखाते नज़र आए। रोमांस पर उनकी पकड़ गहरी रही ही है, साथ ही चिकनी चमेली, सुरैयाझिंगाट जैसे डांस नबरों से वो लोगों को झुमाने की काबिलियत रखते हैं।


महाराष्ट्र के पुणे, जुन्नार व शिरूर जैसे शहरों में पले बढ़े अजय और अतुल गोगावले जिस परिवार से आते हैं उसका संगीत से कोई लेना देना नहीं था। गोगावले बंधुओं की कठिन आर्थिक परिस्थितियों का मैंने पहले भी जिक्र किया है पर उनकी कथा इतनी प्रेरणादायक है कि उसे बार बार दोहराने की जरूरत है। छात्र जीवन में उनके पास कैसेट खरीदने के लिए भी पैसे नहीं होते थे। जहाँ से जो संगीत सुनने को मिलता उसके लिए वे अपने कान खुले रखते वे अक्सर ऐसे लोगों को अपना मित्र बनाते जिनके पास पहले से कोई वाद्य यंत्र हो ताकि उनसे माँग कर उसे बजाना सीख सकें। स्कूम में अजय गोगावले गाया करते तो अतुल हारमोनियम सँभालते। फिर उन्होंने पुणे में ही टीवी सीरियल और जिंगल के लिए संगीत देने का काम करना शुरु किया। तब निर्माताओं के यहाँ वो साइकिल पर हारमोनियम चढ़ा कर जाया करते थे। कभी कभी तो उन्हें अपनी धुनों को वाद्य यंत्र के अभाव में मुँह से सुनानी पड़ती थी।  उनके संगीत प्रेम को देखते हुए पिता ने उधार के पैसों से उन्हें कीबोर्ड ला कर दिया।
अजय और अतुल गोगावले

उनके संगीत में मराठी लोक संगीत और पश्चिमी शास्त्रीय संगीत का अनूठा मिश्रण देखने को मिलता है। छोटे शहरों से आगे निकल कर बढे इन भाइयों को पश्चिमी शास्त्रीय संगीत से कैसे लगाव हुआ उसकी चर्चा संगीतमाला में आगे करेंगे। अजय अतुल ने सैराट बनाते समय जिन धुनों पर मेहनत की थी उन्हीं में से एक पर उन्होंने दोबारा काम करना शुरु किया जो कि धड़क के शीर्षक गीत के रूप में इस शक़्ल में सामने आया। 

अग्निपथ की सफलता के बाद से अजय अतुल ने अपने गीत लिखवाने के लिए अमिताभ भट्टाचार्य का दामन नहीं छोड़ा है और अमिताभ हर बार उनके इस विश्वास पर खरे उतरे हैं। देखिए कितना खूबसूरत मुखड़ा लिखा उन्होंने इस गीत के लिए 

मरहमी सा चाँद है तू, दिलजला सा मैं अँधेरा
एक दूजे के लिए हैं, नींद मेरी ख्वाब तेरा
तू घटा है फुहार की, मैं घड़ी इंतज़ार की
अपना मिलना लिखा इसी बरस है ना..
जो मेरी मंजिलों को जाती है
तेरे नाम की कोई सड़क है ना
जो मेरे दिल को दिल बनाती है
तेरे नाम की कोई धड़क है ना


जिसे गीत की हुक लाइन (या यूँ कह लीजिए कि श्रोताओं को फाँस कर रखने वाली पंक्ति) बोलते हैं वो तो कमाल ही है जो मेरी मंजिलों को जाती है तेरे नाम की कोई सड़क है ना..जो मेरे दिल को दिल बनाती है..तेरे नाम की कोई धड़क है ना। फिल्म का नाम भी आ गया और बोल भी दिल के आर पार हो गए। गीत की इतनी अच्छी शुरुवात कि गायिका श्रेया घोषाल को भी कहना पड़ा कि ये गीत कानों को वैसा ही सुकून देता है जैसे  तपती धरती को उस पर  गिरती  बारिश की पहली बूँदें देती हैं । 

जैसे ही मुखड़ा खत्म होता है वैसे ही पियानो की टुंगटुंगाहट और पीछे बजते वॉयलिन के स्वर आपको गीत की मेलोडी में बहा ले जाते हैं और उसी  के बीच श्रेया की मीठी आवाज़ आपके कानों में पड़ती है। 

कोई बांधनी जोड़ा ओढ़ के
बाबुल की गली आऊँ छोड़ के
तेरे ही लिए लाऊँगी पिया
सोलह साल के सावन जोड़ के
प्यार से थामना.. डोर बारीक है
सात जन्मों की ये पहली तारीख है

डोर का एक मैं सिरा
और तेरा है दूसरा
जुड़ सके बीच में कई तड़प है ना

जो मेरी मंजिलों को जाती है
तेरे नाम की कोई सड़क है ना
जो मेरे दिल को दिल बनाती है
तेरे नाम की कोई धड़क है ना

बीच के अंतरे मुखड़ों जैसे प्रभावी तो नहीं है पर गीत का मूड बनाए रखते हैं। गीत का समापन संगीतकार बाँसुरी की मधुर स्वरलहरी से करते हैं। अजय गोगावले की आवाज़ की बनावट में एक नयापन है। वैसे भी आजकल का चलन ही ये है कि संगीतकार अगर गायक भी हो तो अपनी धुनों को ख़ुद गाना पसंद करता है। तो आइए एक बार फिर सुनें इस गीत को।



वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

सोमवार, फ़रवरी 15, 2016

वार्षिक संगीतमाला 2015 पायदान # 6 : सपना जहाँ दस्तक ना दे, चौखट थी वो आँखें मेरी.. Sapna Jahan...

वार्षिक संगीतमाला की अंतिम छः पायदान का एक एक नग्मा मुझे बेहद पसंद है। छठी पायदान के इस गीत को पहली बार मैंने तब सुना जब अपनी संगीतमाला के लिए गीतों का चयन कर रहा था और पहली बार सुनते ही  मैं इसके सम्मोहन में आ गया। क्या शब्द. क्या संगीत और क्या गायिकी। वैसे अगर मैं आपके सामने संगीतकार अजय अतुल, सोनू निगम व अमिताभ भट्टाचार्य की तिकड़ी का नाम लूँ तो बताइए आपके मन में कौन सा लोकप्रिय गीत उभरता है? अरे वही अग्निपथ का संवेदनशील नग्मा अभी मुझ में कहीं बाकी थोड़ी सी है ज़िदगी जिसने वार्षिक संगीतमाला के 2012 के अंक में रनर्स अप का खिताब जीता था। इन तीनों ने मिलकर एक बार फिर ब्रदर्स ले लिए एक बेहद सार्थक, मधुर, सुकून देने वाला रोमांटिक नग्मा रचा है।


मराठी संगीत के जाने माने चेहरे अजय अतुल के बारे में अग्निपथसिंघम के गीतों के ज़रिए आपका परिचय करा चुका हूँ। करण मेहरोत्रा की पहली फिल्म अग्निपथ की सफलता के पीछे उनके शानदार संगीत का भी बहुत बड़ा हाथ था। ज़ाहिर सी बात थी कि अगली फिल्म के लिए भी बतौर संगीतकार उन्होंने अजय अतुल को चुना। तो आइए जानते हैं कि क्या कहना है संगीतकार जोड़ी का इस गीत के बारे में। तो पहले जानिए कि अतुल के विचार

आजकल जिस तरह का संगीत बॉलीवुड में चल रहा है उसको देखते हुए बड़ा कलेजा चाहिए था सपना जहाँ जैसे गीत को चुनने के लिए। रोहित को एक भावपूर्ण गीत की जरूरत थी और उन्होंने इस धुन को चुना। रोहित हमारे मित्र की तरह हैं। हम जो भी करते हैं वो तभी करते हैं गर वो चीज़ हमें अच्छी लगती है। जब ये गाना बन रहा था उसी दिन मैंने कहा था कि ये भी अभी मुझ में कहीं.. जितना ही गहरा व प्यारा गीत बनेगा। सोनू की आवाज़ की बुनावट में अक्षय की सी परिपक्वता है इसीलिए हमने इस गीत के लिए उनको चुना और क्या निभाया उन्होंने इस गीत को।

वहीं अजय सोनू निगम की सहगायिका नीति मोहन के बारे में कहते हैं
उनके गाए अब तक सारे गाने मुझे अच्छे लगे थे। तू रूह है की जो लय है उसे सँभालते हुए बड़े प्यार से उन्हें गीत में प्रवेश करना था जो थोड़ा कठिन तो था पर उन्होंने बखूबी किया।

ये गीत नायक की ज़िदगी की पूरी कहानी को मुखड़ों और अंतरों में समा लेता है। गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य को अपनों से अलग थलग एक बेमानी सी जिंदगी जीते हुए इंसान की कहानी के उस मोड़ की दास्तान बयाँ करनी थी जब वो नायिका से मिलता है और देखिए तो उन्होंने कितनी खूबसूरती से लिखा.. सपना जहाँ दस्तक ना दे, चौखट थी वो आँखे मेरी...बातों से थीं तादाद में, खामोशियाँ ज्यादा मेरी.. जबसे पड़े तेरे कदम, चलने लगी दुनिया मेरी। 

सहज शब्दों में काव्यात्मक अंदाज़ में कहीं बातें जो दिल को सहजता से छू लें अमिताभ के लिखे गीतों की पहचान हैं। मुखड़े में आगे भटकते हुए बादल की आसमान में ठहरने की बात तो पसंद आती ही है, पहले अंतरे में रूह के साथ काया, उम्र के साथ साया और बैराग के साथ माया की जुगलबंदी व सोच भी बतौर गीतकार उनके हुनर को दर्शाती है।

अजय अतुल का संगीत भी बोलों की नरमी की तरह ही एक मुलायमियत लिए हुए है। पियानों की मधुर धुन से नग्मा शुरु होता है। बीच में बाँसुरी के इंटरल्यूड के आलावा गीत के साथ ताल वाद्यों की हल्की थपकी ज़ारी रहती है। गीत का फिल्मांकन भी असरदार है तो आइए सुनते हैं इस गीत को..
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सपना जहाँ दस्तक ना दे, चौखट थी वो आँखें  मेरी
बातों से थीं तादाद में, खामोशियाँ ज्यादा मेरी

जबसे पड़े तेरे कदम, चलने लगी दुनिया मेरी

मेरे दिल मे जगह खुदा की खाली थी
देखा वहाँ पे आज तेरा चेहरा है
मैं भटकता हुआ सा एक बादल हूँ
जो तेरे आसमान पे आ के ठहरा है


तू रूह है तो मैं काया बनूँ
ता-उम्र मैं तेरा साया बनूँ
कह दे तो बन जाऊँ बैराग मैं
कह दे तो मैं तेरी माया बनूँ

तू साज़ हैं, मैं रागिनी
तू रात हैं, मैं चाँदनी

मेरे दिल मे .... ठहरा हैं

हम पे सितारों का एहसान हो
पूरा, अधूरा हर अरमान हो
एक दूसरे से जो बाँधे हमें
बाहों मे नन्ही सी इक जान हो
आबाद हो छोटा सा घर
लग ना सके किसी की नज़र

मेरे दिल मे .... ठहरा है


वार्षिक संगीतमाला 2015

सोमवार, मार्च 11, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 रनर्स अप : अभी मुझ में कहीं,बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी...

वार्षिक संगीतमाला 2012 की दूसरी पॉयदान पर खड़ा है वो गीत जिसे गाया सोनू निगम ने,धुन बनाई अजय अतुल ने और बोल लिखे अमिताभ भट्टाचार्य ने। जी हाँ सही पहचाना आपने वार्षिक संगीतमाला 2012 के रनर्स अप खिताब जीता है फिल्म अग्निपथ के गीत अभी मुझ में कहीं,बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी ने।

 
अमिताभ भट्टाचार्य के बोलों में छुपी पीड़ा को इस तरह से सोनू निगम ने अपनी आवाज़ से सँवारा है कि ये गीत आम जनता और समीक्षकों दोनों का चहेता बन गया। अपनी कहूँ तो अमिताभ के दिल को छूते शब्द, सोनू की शानदार गायिकी और अजय अतुल के मन मोहने वाले इंटरल्यूड्स इस गीत को इस साल के मेरे प्रियतम गीतों की श्रेणी में ला खड़ा करते हैं।

अजय अतुल का संगीत हिंदुस्तानी और पश्चिमी वाद्य यंत्रों का बेहतरीन मिश्रण है। मुखड़े के पहले का पियानो हो या इंटरल्यूड्स में वॉयलिन की सिम्फनी, बोलों के साथ बहती जलतरंग की ध्वनि हो या सोनू की आवाज़ से खेलते ढोल और तबले जैसे ताल वाद्य, सब कुछ गीत के साथ यूँ आते हैं मानो उनकी वही जगह मुकर्रर हो। 

अजय गोगावले, सोनू निगम और अतुल गोगावले

अजय अतुल ने इस गीत के लिए सोनू निगम को ही क्यूँ चुना उसका सीधा जवाब देते हुए कहते हैं कि धुनें तैयार करते वक़्त ही हमें समझ आ जाता है कि इस पर किस की आवाज़ सही बैठेगी। सोनू जब गीत की लय को यह लमहा कहाँ था मेरा की ऊँचाई तक ले जाते हैं तो गीत में समाहित दर्द की अनुभूति आपको एकदम से द्रवित कर देती है।

कुछ साल पहले तक सोनू निगम की आवाज़ हर दूसरे गीत में सुनाई देती थी। पर नए संगीतकार, नई आवाज़ों और रिकार्डिंग के मशीनीकरण की वज़ह से पिछले कुछ सालों से उन्हें अपने मन मुताबिक मौके कम मिल रहे हैं। वे खुद इस बात से कितने आहत हैं वो पत्रिका 'अहा ज़िंदगी' को दिए गए उनके हाल के वक़्तव्य से पता चलता है जिसमें वो कहते हैं

"तकनीक का असर अब संगीत पर भी दिखने लगा है। नई नई मशीनें और सॉफ्टवेयर आ गए हैं। ऐसे सॉफ्टवेयर हैं जो सुर में ना गाने वालों को भी सुरीला बना देते हैं। इसका कुप्रभाव उन गायकों पर होता है, जो रियाज करते हैं और संगीत को गहनता से लेते हैं। इससे मनोबल भी टूटता है, क्योंकि कोई कुछ भी गा रहा है। सकारात्मक दृष्टि से देखें तो इस तकनीक की वज़ह से अब बहुत से लोग गा पा रहे हैं, लेकिन नकारात्मक पहलू ये है कि जो सही मायने में गायक है उन्हें उनका पूरा हक़ नहीं मिलता।"

पर आख़िर ये गीत हमसे क्या कहता है? यही कि ज़िंदगी में अगर कोई रिश्ते ना हो, तो फिर उस जीवन को जीने का भला क्या मक़सद? व्यक्ति ऐसे जीवन को काटता भी है तो बस एक मशीनी ढंग से। सुख दुख उसे नहीं व्यापते। पीड़ा वो महसूस नहीं कर पाता। खुशी की परिभाषा वो भूल चुका होता है। इस भावशून्यता की स्थिति में अचानक ही अगर रिश्तों की डोर फिर से जुड़ती दिखाई दे तो फिर समझ आता है कि मैंने अब तक क्या खोया ? अमिताभ इस गीत में बरसों से दरके एक रिश्ते के फिर से जुड़ने से नायक की मनोदशा को अपने शब्दों द्वारा बेहद सहज पर प्रभावी ढंग से श्रोताओं के सम्मुख लाते हैं। तो आइए सुनते हैं इस गीत को..

अभी मुझ में कहीं,बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी
जगी धड़कन नयी, जाना जिंदा हूँ मैं तो अभी
कुछ ऐसी लगन इस लमहे में है
यह लमहा कहाँ था मेरा

अब है सामने, इसे छू लूँ ज़रा
मर जाऊँ या जी लूँ ज़रा
खुशियाँ चूम लूँ
या रो लूँ ज़रा
मर जाऊँ या जी लूँ ज़रा
अभी मुझ में कहीं,बाकी थोड़ी सी है ज़िन्दगी....

धूप में जलते हुए तन को छाया पेड़ की मिल गयी
रूठे बच्चे की हँसी जैसे, फुसलाने से फिर खिल गयी
कुछ ऐसा ही अब महसूस दिल को हो रहा है
बरसों के पुराने ज़ख्मों पे मरहम लगा सा है
कुछ ऐसा रहम, इस लमहे में है
ये लमहा कहाँ था मेरा

अब है सामने, इसे छू लूँ ज़रा..

डोर से टूटी पतंग जैसी थी ये ज़िं
दगानी मेरी
आज हूँ कल हो मेरा ना हो
हर दिन थी कहानी मेरी
इक बंधन नया पीछे से अब मुझको बुलाये
आने वाले कल की क्यूँ फिकर मुझको सता जाए
इक ऐसी चुभन, इस लमहे में है
ये लमहा कहाँ था मेरा...



तो अब घड़ी पास आ गई है सरताज बिगुल के बजने की पर उससे पहले करेंगे पिछले साल के संगीत का एक पुनरावलोकन !

सोमवार, जनवरी 28, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 14 :गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे

वार्षिक संगीतमाला की चौदहवीं पॉयदान पर गाना वो जिसे आपने पिछले साल बारहा सुना होगा और जिसे सुनने के बाद गुन गुन गुनाने पर भी मज़बूर हुए होंगे। एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं में पिछले साल मराठी फिल्मों के चर्चित संगीतकार अजय अतुल ने फिल्म सिंघम के गीत बदमाश दिल तो ठग है बड़ा से पहली दस्तक दी थी। उसी पोस्ट में मैंने आपको बताया था किस तरह विकट आर्थिक परिस्थितियों में भी इस जोड़ी ने स्कूल के समय से ही संगीत के प्रति अपने रुझान को मरने नहीं दिया था। सिंघम की सफलता के बाद अजय अतुल की झोली में दूसरी बड़ी फिल्म अग्निपथ आई जिसमें उन्होंने अपने प्रशंसकों को जरा भी निराश नहीं किया। ये कहने में मुझे ज़रा भी संकोच नहीं कि अग्निपथ का संगीत इस साल के प्रथम तीन एलबमों में से एक था।

पर आज तो हम बात करेंगे इस फिल्म के मस्ती से भरे उस गीत की जिसे गाया सुनिधि चौहान और उदित नारायण ने। आजकल के संगीत के बारे में हो रहे परिवर्तन के बारे में जब भी पुराने फ़नकारों से पूछा जाता है तो वे कहते हैं कि आज के संगीत में ताल वाद्यों का प्रयोग कम से कमतर हो जाता है। एक समय था जब हिंदी फिल्म का कोई तबले की थाप के बिना अधूरा लगता था पर आज संगीत मिश्रण की नई तकनीक और सिंथेसाइसर के इस्तेमाल ने इन वाद्यों की अहमियत घटा दी है। ऐसे समय में अजय अतुल जब ताल वाद्यों की डमडमाहट से आनंद और उत्सव वाले माहौल को इस गीत द्वारा जगाए रखते हैं तो ये बीट्स पहली बारिश के बाद आती मिट्टी की सोंधी खुशबू सी लगती हैं। 


गीत की शुरुआत में घुँघरुओं की छम छम हो या शरीर में थिरकन पैदा करते इंटरल्यूड्स,  या फिर अंतरे में सुनिधि की गाई पहली कुछ पंक्तियों के बाद बड़ी शरारत से लिया गया हूँ...... का कोरस हो, अजय अतुल का कमाल हर जगह दिखता है। गीतकार अमिताभ भट्टाचार्य के बोलों में एक ताज़गी है जिसका निखार गीत के हर अंतरे में नज़र आता है। अमिताभ भट्टाचार्य के लिखे गीतों का मैं शैदाई रहा हूँ। वो एक बार संगीतमाला की सर्वोच्च सीढ़ी पर भी चढ़ चुके हैं।  गीत की परिस्थिति ऐसी है कि नायिका मुँह फुलाए नायक के चेहरे में मुस्कुराहटों की कुछ लकीर बिखेरने का प्रयास कर रही है। अमिताभ भट्टाचार्य अपनी शानदार सोच का इस्तेमाल कर हर अंतरे में ऐसे नए नवेले भाव गढ़ते हैं कि मन दाद दिए बिना नहीं रह पाता। जी हाँ मेरा इशारा रात का केक काटना, चाँद का बल्ब जलाने, ग़म को खूँटी पर टाँगने, ब्लैक में खुशी का पिटारा खरीदने, बंद बोतल के जैसे बैठने जैसे वाक्यांशों की तरफ़ है।

सुनिधि चौहान ने इस गीत को उसी अल्हड़ता और बिंदासपन के साथ गाया है जिसकी इस गीत के मूड को जरूरत थी। उदित जी की आवाज़ आज भी जब मैं किसी गीत में सुनता हूँ तो अफ़सोस होता है कि इतनी बेहतरीन आवाज़ का मालिक होने के बावज़ूद उन्हें इतने कम गीत गाने को क्यूँ मिलते हैं? तो आइए सुनते और गुनते हैं फिल्म अग्निपथ का ये गीत।


गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे

हो.. मायूसियों के चोंगे उतार के फेंक दे ना सारे
कैंडल ये शाम का फूँक रात का केक काट प्यारे
सीखा ना तूने यार हमने मगर सिखाया रे
दमदार नुस्खा यार हमने जो आजमाया रे
आसुओं को चूरण चबा के हमने डकार मारा रे

गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे-

हुँ.. है सर पे तेरे उलझनों के जो ये टोकरे
ला हमको देदे हल्का हो जा रे तू छोकरे
जो तेरी नींदे अपने नाखून से नोच ले..
वो दर्द सारे जलते चूल्हे में तू झोंक रे
जिंदगी के राशन पे, ग़म का कोटा ज्यादा है
ब्लैक में खरीदेंगे खुशी का पिटारा रे

गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे

तू मुँह फुला दे तो ये सूरज भी ढ़लने लगे
अरे तू मुस्कूरा दे चाँद का बल्ब जलने लगे
तू चुप रहे तो मानो बहरी लगे जिंदगी
तू बोल दे तो परदे कानों के खुलने लगे
एक बंद बोतल के, जैसा काहे बैठा है
खाली दिल से भर दे ना, ग्लास ये हमारा रे

गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे

हो.. बिंदास हो के हर गम को यार खूँटी पे टाँग दूँगा
थोडा उधार मै इत्मिनान तुमसे ही माँग लूँगा
है.. सीखा है मैने यार जो तुमने सिखाया रे
दमदार नुस्खा यार मैने भी आजमाया रे
आसुओं को चूरण चबा के मैने डकार मारा रे

गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना रे, गुन गुन गुना ये गाना रे

सोमवार, फ़रवरी 06, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 8: बदमाश दिल तो ठग है बड़ा...

वार्षिक संगीतमाला की आठवीं पॉयदान पर पधार रही है दो भाइयों की नवोदित संगीतकार जोड़ी जो पिछले कुछ सालों से मराठी फिल्म उद्योग में अपने संगीत का परचम लहराते रहे हैं। ये जोड़ी है अजय और अतुल गोगावले की जिन्होंने फिल्म सिंघम के लिए एक बेहद कर्णप्रिय रोमांटिक गीत बनाया। पर इससे पहले कि इस गीत को सुनें क्या आप इस संगीतकार जोड़ी की उत्कर्ष गाथा नहीं जानना चाहेंगे ? 

अजय व अतुल को स्कूल में कभी पढ़ने में दिल नहीं लगा। स्कूल के समय से ही उनकी रुचि संगीत से हो चुकी थी वो भी तब जबकि उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि में संगीत का कहीं दखल ना था। घर में वाद्य यंत्रों को खरीदने के पैसे ना थे । पर दोनों भाइयों ने इसके लिए भी एक तरकीब निकाल ली। वे ऐसे मित्र बनाते जिनके पास पहले से ही हारमोनियम,ढोल, मृदंग जैसे वाद्य मौजूद हों। कॉलेज में आने पर पिता ने कीबोर्ड खरीद दिया जो उनके नए प्रयोगों का माध्यम हो गया। मुंबई आने के बाद विज्ञापनों से लेकर नाटकों तक के लिए संगीत देते रहे। विश्वविनायक जैसे अन्तरराष्ट्रीय गैर फिल्मी एलबम की सफलता ने उनमें आत्मविश्वास भरा और मराठी फिल्म उद्योग में उनके प्रवेश का रास्ता खोल दिया। 


पिछले आठ वर्षों से वे मराठी फिल्म जगत के जाने माने नाम हैं। यहाँ तक कि मराठी फिल्म 'जोगवा' के संगीत निर्देशन के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। जहाँ तक हिंदी फिल्मों का सवाल है 2004 में फिल्म 'गायब' और वर्ष 2005 में 'विरुद्ध' के कुछ गीतों को छोड़कर उनकी झोली में कुछ नहीं आया। पर पिछले साल अजय अतुल ने सिंघम के आलावा My Friend Pinto का भी संगीत दिया। और हाँ फिलहाल फिल्म अग्निपथ के संगीत के ज़रिए वे कैसी धूम मचा रहे हैं वो तो आपको मालूम ही होगा।

तो आइए लौटें इस गीत की तरफ। मुखड़े के पहले बाँसुरी का स्वर मन को सोहता है। पर गीत का असली आनंद मुखड़े की पहली दो पंक्तियों के बाद से शुरु होता है जब गीत का टेंपो बदलता है । श्रेया दिल तो उड़ा उड़ा रे...... गाते गाते सचमुच श्रोताओं को झूमने पर विवश कर देती हैं। अजय अतुल गीत की इस कर्णप्रियता को अंत तक बरक़रार रखते हैं।

इस गीत के बोल लिखे हैं स्वानंद किरकिरे ने। स्वानंद का दिल को 'बदमाश' और 'ठग' जैसे विशेषणों से सुशोभित करना बड़ा प्यारा लगता है। गीत के इस हिस्से में अजय भी श्रेया का साथ देने आ जाते हैं। श्रेया के कोकिल कंठी स्वर की बात करते करते मेरी कलम घिसने लगी है पर क्या करें ये साल है ही इस बेहतरीन गायिका का। वैसे उनकी शान में कसीदे पढ़ने के लिए इस गीतमाला का एक और गीत बाकी है। तो आइए सुनते हैं ये मधुर गीत..




साथिया साथिया पगले से दिल ने ये क्या किया
चुन लिया चुन लिया तुझको दीवाने ने चुन लिया

दिल तो उड़ा-उड़ा रे
आसमान में बादलों के संग
ये तो मचल-मचल के
गा रहा है सुन नयी सी धुन


बदमाश दिल तो ठग है बड़ा
बदमाश दिल यूँ तुझसे जुड़ा
बदमाश दिल मेरी सुने ना ज़िद पे अड़ा


अच्छी लगे, दिल को मेरे, हर तेरी बात रे
साया तेरा, बन के चलूँ, इतना है ख्वाब रे
काँधे पे सर, रख के तेरे, कट जाए रात रे
बीते ये दिन, थामे तेरा, हाथों में हाथ रे
ये क्या हुआ, मुझे मेरा ये दिल
फिसल-फिसल गया
ये क्या हुआ, मुझे मेरा ज़हाँ
बदल-बदल गया
बदमाश दिल तो...

नींदें नहीं, चैना नहीं, बदलूँ मैं करवटें
तारे गिनूँ, या मैं गिनूँ, चादर की सलवटें

यादों में तू, ख्वाबों में तू, तेरी ही चाहतें
जाऊँ जिधर, ढूँढा करूँ, तेरी ही आहटें
ये जो है दिल मेरा, ये दिल सुना ना
कह रहा यही
वो भी क्या ज़िन्दगी, है ज़िन्दगी कि
जिसमें तू नहीं,बदमाश दिल तो...

फिल्म में ये गीत फिल्माया गया है काजल अग्रवाल व अजय देवगन की जोड़ी पर

 

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स्पष्टीकरण

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