एक सदाबहार गीत है मुकेश का जिसे मैं कॉलेज के ज़माने से आज तक अक़्सर गुनगुनाया करता हूँ। और मैं क्या.. आप सभी इसे गुनगुनाते होंगे। कौन ऐसा शख़्स है जिसे ज़िंदगी में कभी ये ना लगा हो कि दुनिया उसके जज़्बातों को समझ ही नहीं पा रही है। तरुणाई में तो खासकर जब सारी दुनिया ही बेगानी लगती है तब गीत का ये मुखड़ा हम सब के मन को सुकून देता रहा कि हाल ए दिल हमारा जाने ना बेवफा ये ज़माना ज़माना।
इतने सहज बोल लिए, आशा भरा ये गीत जब मुकेश की आवाज़ में उन दिनों रेडियो पर बजता था तो होठ ख़ुद ब ख़ुद इसकी संगत के लिए चल पड़ते थे। एक भोला सा अपनापन था इस गीत में जिससे जुड़ने में दिल को ज़रा सी भी देरी नहीं लगती थी।
इतने सहज बोल लिए, आशा भरा ये गीत जब मुकेश की आवाज़ में उन दिनों रेडियो पर बजता था तो होठ ख़ुद ब ख़ुद इसकी संगत के लिए चल पड़ते थे। एक भोला सा अपनापन था इस गीत में जिससे जुड़ने में दिल को ज़रा सी भी देरी नहीं लगती थी।
श्रीमान सत्यवादी के लिए ये गीत राज कपूर पर फिल्माया गया था। अब जहाँ राज कपूर और मुकेश साथ हों तो संगीतकार तो शंकर जयकिशन ही होंगे। इस मुगालते में मैं भी बहुत दिनों रहा। बाद में पता चला कि इस फिल्म के संगीतकार शंकर जयकिशन नहीं बल्कि दत्ताराम वाडकर थे। आप भी सोच रहे होंगे कि सुरेश वाडकर के बारे में तो सुनते आए हैं पर ये दत्ताराम वाडकर के बारे में ज्यादा नहीं सुना। चलिए हमीं बताए देते हैं।
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राजकपूर के साथ युवा दत्ताराम वाडकर |
गोवा में जन्में और दक्षिणी महाराष्ट्र के एक कस्बे सामंतवाड़ी में पले बढ़े दत्ताराम सन 1942 में अपने परिवारवालों के साथ मुंबई पहुँचे। पढ़ने में खास रूचि न लेने वाले दत्ताराम की माँ की पहल पर गुरु पांडरी नागेश्वर से उनकी तबले की शिक्षा शुरु हुई । युवा दत्ताराम तबला बजाने के साथ कसरत करने का भी शौक़ रखते थे। गिरिगाँव के जिस अखाड़े में वो कसरत करते वहीं संगीतकार जोड़ी शंकर जयकिशन वाले शंकर भी वर्जिश के लिए आते थे। एक बार शंकर ने वहीं तबला बजाना शुरु कर दिया और कसरत के बाद अंदर स्नान कर रहे दत्ताराम के मुँह से वाह वाह निकल गई। शंकर ने तबला बजाना रोक दिया। जब दत्ताराम बाहर निकले तो उन्होंने पूछा कि क्या तुम भी तबला बजाते हो? दत्ताराम ने कहा हाँ थोड़ा बहुत बजा लेता हूँ। शंकर ने उन्हें तुरंत बजाने को कहा और उनके वादन से ऐसे प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें अपनी संगीत मंडली में शामिल कर लिया।
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दत्ताराम वाडकर |
सालों साल शंकर के वादकों के साथ अभ्यास करने और नाटकों के बीच तबला बजाने के बाद फिल्म आवारा के गीत इक बेवफ़ा से प्यार किया में जब पहली बार उन्हें लता जी के साथ ढोलक बजाने का मौका मिला तो मानो उनके मन की मुराद पूरी हो गई। फिर तो राज कपूर शंकर जयकिशन की फिल्मों में बतौर वादक, वो एक स्थायी अंग बन गए। सलिल चौधरी व कल्याणजी आनंद जी के कई मशहूर गीतों का भी वो हिस्सा बनें। रिदम पर दत्ताराम की गहरी पकड़ थी। संगीत जगत में ढोलक पर उनकी शुरु की हुई रिदम दत्तू ठेका के नाम से मशहूर हुई।
शंकर जयकिशन की बदौलत उन्हें पहली बार फिल्म 'अब दिल्ली दूर नहीं' के लिए संगीत निर्देशन का काम मिला। संगीत के लिहाज़ से उनकी फिल्में परवरिश और श्रीमान सत्यवादी बहुत सराही गयी। आँसू भरी है जीवन की राहें , मस्ती भरा ये समा और चुनचुन करती आई चिड़िया जैसे गीतों को भला कौन भूल सकता है। तो आइये लौटें श्रीमान सत्यवादी के इस गीत की ओर ।
श्रीमान सत्यवादी के इस गीत में वो अंतरा मुझे सबसे प्यारा लगता है जिसमें हसरत साहब लिखते हैं कि दाग हैं दिल पर हज़ारों हम तो फिर भी शाद (आनंदित) हैं.. आस के दीपक जलाये देख लो आबाद हैं। सच, जीवन में इस मंत्र को जिसने अपना लिया वो ना केवल ख़ुद को बल्कि अपने आस पास के लोगों को भी एक धनात्मक उर्जा से भर देगा। गीत के मुखड़े के पहले का संगीत और इंटरल्यूड्स में तरह तरह के वाद्यों का इस्तेमाल दत्ताराम के संगीत संयोजन की माहिरी की गवाही देता है। ये माहिरी उन्होंने शंकर जयकिशन के साथ लगातार काम करते हुए हासिल की थी।
हाल ए दिल हमारा जाने ना बेवफा ये ज़माना ज़मानाश्रीमान सत्यवादी के इस गीत में वो अंतरा मुझे सबसे प्यारा लगता है जिसमें हसरत साहब लिखते हैं कि दाग हैं दिल पर हज़ारों हम तो फिर भी शाद (आनंदित) हैं.. आस के दीपक जलाये देख लो आबाद हैं। सच, जीवन में इस मंत्र को जिसने अपना लिया वो ना केवल ख़ुद को बल्कि अपने आस पास के लोगों को भी एक धनात्मक उर्जा से भर देगा। गीत के मुखड़े के पहले का संगीत और इंटरल्यूड्स में तरह तरह के वाद्यों का इस्तेमाल दत्ताराम के संगीत संयोजन की माहिरी की गवाही देता है। ये माहिरी उन्होंने शंकर जयकिशन के साथ लगातार काम करते हुए हासिल की थी।
सुनो दुनिया वालों आयेगा लौट कर दिन सुहाना सुहाना
एक दिन दुनिया बदलकर रास्ते पर आयेगी
आज ठुकराती है हमको कल मगर शरमायेगी
बात को तुम मान लो अरे जान लो भैया
दाग हैं दिल पर हज़ारों हम तो फिर भी शाद हैं
आस के दीपक जलाये देख लो आबाद हैं
तीर दुनिया के सहे पर खुश रहे भैया
हाल-ए-दिल हमारा ...
झूठ की मंज़िल पे यारों हम ना हरगिज़ जायेंगे
हम ज़मीं की खाक़ सही आसमाँ पर छायेंगे
क्यूँ भला दब कर रहें डरते नहीं भैया
मुकेश की शानदार आवाज़ में तो आपने ये गीत सुन लिया अगर मेरी झेल सकते हों तो ये भी सुन लीजिए :)
आज दत्ताराम हमारे बीच नहीं है। उन्हें गुजरे लगभग एक दशक होने वाला है। गोवा के एक साधारण से परिवार में जन्मे दत्ताराम अपनी मेहनत के बल पर संगीत की जिन ऊँचाइयों को छू सके वो औरों के लिए एक मिसाल है। ताल वाद्यों पर उनकी गहरी पकड़ और उनके अमर गीतों की बदौलत वो संगीत प्रेमियों द्वारा हमेशा याद रखे जाएँगे।
आज दत्ताराम हमारे बीच नहीं है। उन्हें गुजरे लगभग एक दशक होने वाला है। गोवा के एक साधारण से परिवार में जन्मे दत्ताराम अपनी मेहनत के बल पर संगीत की जिन ऊँचाइयों को छू सके वो औरों के लिए एक मिसाल है। ताल वाद्यों पर उनकी गहरी पकड़ और उनके अमर गीतों की बदौलत वो संगीत प्रेमियों द्वारा हमेशा याद रखे जाएँगे।
