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शनिवार, जनवरी 03, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 24 : पैर अनाड़ी, ढूँढे कुल्हाड़ी Pair Anaadi

हिंदी सिनेमा में व्यंग्यात्मक गीतों का प्रचलन कम ही रहा है। पर पिछले कुछ सालों में कुछ गीतकार संगीतकार जोड़ियों ने लीक से हटकर कुछ ऐसे गीत भी दिए हैं जिनके तीखे कटाक्ष आज भी मन को गुदगुदाते जरूर हैं। ऐसे गीतों की सूची मे में सबसे पहला  फिल्म गुलाल का वो गीत याद पड़ता है जिसमें पीयूष मिश्रा ने अंकल सैम की खिंचाई कुछ इन शब्दों में की थी..जैसे दूर देस के, टावर में घुस जाए रे एरोप्लेन, जैसे सरे आम इराक में जाके जम गए अंकल सैम। अशोक मिश्रा का लिखा वो गीत याद है आपको जिसमें उन्होंने आज के प्रजातंत्र के खोखलेपन को उभारा था। वो गीत था फिल्म वेलकम टू सज्जनपुर का जिसमें उन्होंने लिखा था.... अरे जिसकी लाठी उसकी भैंस आपने बना दिया...हे नोट की खन खन सुना के वोट को गूँगा किया...पार्टी फंड, यज्ञ कुंड घोटाला मंत्र है..अब तो प्रजातंत्र है, अब तो प्रजातंत्र है। अब इसी श्रेणी में एक और गीत  शामिल हो गया है जो जनता की वोट ना देने या फिर वोट बेचने की प्रवृति पर तीखी चोट करता है। ये गीत है लोकसभा चुनावों के ठीक पहले प्रदर्शित हुई फिल्म 'ये है बकरपुर' का।



वार्षिक संगीतमाला की 24वीं पॉयदान पर विराजमान इस समूह गीत को अपनी आवाज़ से सँवारा है Indian Ocean के राहुल राम और अग्नि के आर मोहन व अमित ने। साथ में MTV Roadies में अपने खड़ूस व्यक्तित्व से प्रसिद्धि पाने वाले रघु राम भी हैं। इस गीत को लिखा है अब्बास टॉयरवाला ने। ये वही टॉयरवाला हैं जिनकी फिल्म जाने तू या जाने ना ने जहाँ सफलता की सीढियाँ चढ़ी थीं वहीं झूठा ही सही बॉक्स आफिस पर ढेर हो गई थी। एक पटकथालेखक के रूप में स्थापित टॉयरवाला बतौर गीतकार भी कई बार हाथ आज़मा चुके हैं। अगर अग्नि और इंडियन ओशन की मानें तो इस गीत के असली स्टार वही हैं।

गीत में अब्बास टॉयरवाला ने पैर और कुल्हाड़ी को दो मुख्य प्रतीकों के रूप में इस्तेमाल किया है। पैर उस जनता का प्रतीक है जो अपने मताधिकार का प्रयोग सही तरह से ना करने की वज़ह से कुल्हाड़ी रूपी घटिया जनप्रतिनिधि को चुन लेती है। कई बार ये जानते हुए भी कि वो जो कर रही है सही नहीं है। बाद में यही जनता जब अपने भाग्य को कोसती है तो एक कोफ्त सी होती है। जनता की इसी प्रवृति पर टायरवाला ने अपनी कमान कसी है। गीत में जनता और उनके द्वारा चुने हुए गलत नेताओं के बीच के रिश्ते को अब्बास टॉयरवाला मुर्गी और KFC, गेहूँ और चक्की व बकरी और कसाई जैसे मज़ेदार व्यंग्यात्मक रूपकों में देखते हैं।

अब्बास टॉयरवाला ने बड़ी खूबसूरती से बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद और भैंस के आगे बीन बजाना जैसे मुहावरे को मरोड़ कर बोल रचे हैं जिसे सुन कर मन मुस्कुराए बिना नहीं रह पाता। सारे गायकों ने गीत के मूड के अनुसार आनंद लेते हुए गाया है। गिटार की धुन के बीच गीत जैसे जैसे आगे बढ़ता है श्रोता अपने आप को गीत की लय के साथ झूमने से रोक नहीं पाते। कुल मिलाकर ये एक ऐसा गीत है जो बड़े प्यारे व्यंग्य बाणों को सुरीली चाशनी में घोलकर अपना संदेश श्रोताओं तक पहुँचाता है। तो आइए एक नज़र डालते हैं गीत के बोलों पर...

घटना ये घनघोर घटी है, कोई बूझ ना पाए रे
घाट घाट का पानी पीकर, कहते गंगा नहाए रे
गटक के सौ सौ चली है हज को
फिर भी चूहों को बिल्ली से प्यार रे

अरे बंदर खोजे अदरक में, स्वाद डेमोक्रेसी का,
अरे वो बोले और हम सुन लें, कि Nobody killed Jessica
भैंस बोले मेरे आगे बीन बजा दो मैं नाचूँ
बेचूँ अपने वोट फिर भी, अपनी किस्मत को डाटूँ
भाई देखो तो कितने टशन से
कहे गीदड़ मैं शहर चला

पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी, पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी
पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी,पैर अनाड़ी search कुल्हाड़ी

आज की ताज़ा ख़बर पैर ढूँढ रहा है कुल्हाड़ी
पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी, Common कुल्हाड़ी! where are you?
हमारी माँगे पूरी करो
पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी, पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी
पैर अनाड़ी ढूँढे कुल्हाड़ी,पैर अनाड़ी search कुल्हाड़ी

गेहूँ सोचे अब तो यारी, हो गई है चक्की से
गेहूँ की friendship चक्की से हो गई
मुर्गी भी सोचे वो ज़िंदा लौटेगी Kentucky से
हा हा.. मुर्गी भी सोचे.....
आओ चुन लो अपने कसाई
ईद मुबारक तुम्हें बकरी आई

पैर अनाड़ी...
Hi my self Mister Pair You Mr Kulhadi.

और फिर देखिए इस गीत की ये live performance...



वार्षिक संगीतमाला 2014

बुधवार, जनवरी 26, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 19 : Cry Cry इतना Cry करते हम काय को..

जिंदगी में परेशानियाँ और ग़म शायद ही कभी हमारा पीछे छोड़ते हैं। बस ये जरूर है कि अलग अलग लोगों के लिए इनके आने के बीच का अंतराल कम ज्यादा होता रहता है। जो इंसान इन अंतरालों के बीच आने वाले छोटे छोटे उल्लास उमंग के इन पैकेटों को भरपूर जीता है और फिर उनसे मिली खुशनुमा यादों को सँजो कर रखता है वो ही आने वाले दुखों की खुराक को निगलने की ताकत जुटा पाता है। वार्षिक संगीतमाला की 19वीं पॉयदान का ये हल्का फुल्का गीत आपको ऐसे ही अवसाद भरे लमहों से बाहर निकालने की कोशिश करता है। ये गीत है फिल्म 'झूठा ही सही' का जिस में जॉन अब्राहम अपनी एक अलग सी छवि लेकर रूपहले पर्दे पर आए थे। इसे लिखा है अब्बास टॉयरवाला ने।

अब्बास टॉयरवाला बतौर गीतकार फिल्म 'जाने तू या जाने ना ' के गीतों की वज़ह से चर्चा में आए थे। जाने तू या जाने ना युवाओं पर केंद्रित फिल्म थी और 'झूठा ही सही' के मुख्य किरदार भी इसी वर्ग से आते हैं। अब्बास अपने गीतों के ज़रिए इस वर्ग के दिलों में अपनी पैठ बनाते रहे हैं। उनके गीतों की भाषा सहज होती है जिसे समझने के लिए आपको कोई मशक्कत नहीं करनी पड़ती।

इस गीत में उनका सिर्फ एक सीधा सा संदेश है रोने धोने से हम अपने आप को कमज़ोर करते ही हैं और साथ ही साथ उससे हमारे दुख भी दूर नहीं होते। उदासी यूँ ही नहीं भाग सकती पर अगर हम खुद उसे भागने का अवसर नहीं देंगे तो वो क्यूँ कर आपके दिल की खोली खाली करेगी? अब्बास टॉयरवाला के गीत का मुखड़ा हिंगलिश होते हुए भी मन को सुकून देता हुआ सा जाता है..

रोते काए को हम हे रोते काए को हम
होना है जो हो sad होते काए को हम

cry cry इतना cry करते हम काय को

इतना डरते  हैं काय को,पल पल मरते हैं काय को
why why ऐसा why वैसा क्यूँ होता
यूँ होता तो क्या होता, जो होता है वो होता

fly fly baby fly देखें आ उड़ के, 
देखें बादल से जुड़ के,देखें फिर ना मुड़ मुड़ के
रोते काए को हम हे रोते काए को हम
होना है जो हो sad होते काए को हम
हाँ रातों को ना सोते काए को हम

पर अंतरे में अब्बास की शब्द रचना निराश करती है और ये बेहतर हो सकती थी। पर रहमान का संगीत संयोजन और राशिद अली व श्रेया की मुलायम आवाज़ इस तरह की है कि आप कमज़ोर बोलों के बावजूद गीत को साथ साथ अनायास ही गुनगुनाने लगते हैं। मुखड़ा ताल वाद्य की पार्श्व बीट्स और साथ आती झनकार से शुरु होता है। रहमान गिटार और फिर सैक्सोफोन की मधुर धुन के इंटरल्यूड्स से गीत की मधुरता बनाए रखते हैं। राशिद अली और श्रेया घोषाल ने अपनी आवाज़ों के अनुरूप ही गीत को निभाया है। वैसे राशिद अली अगर आपके लिए नया नाम हों तो उनसे जुड़ी संगीतमाला की ये पोस्ट पढ़ें

तो अपने विचार तंतुओं को दीजिए विश्राम और गीत की सहजता से ख़ुद को कीजिए तनावमुक्त..





अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

शनिवार, जनवरी 17, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 पायदान संख्या 18 : कहीं तो होगी वो..दुनिया जहाँ तू मेरे साथ है.

तो हुजूर वक़्त आ गया है वार्षिक संगीतमाला के थोड़ा रूमानी होने का और इसीलिए यहाँ गाना वो जो पिछले महिने बनाए गए मेरे क्रम से पाँच छलाँगे ऊपर मार कर आ पहुँचा है पायदान संख्या 18 पर। जाने तू या जाने ना के इस गीत की धुन बनाई है अल्लाह रक्खा रहमान यानि वही अपने चहेते ए. आर. रहमान ने और सच कहूँ तो गीत शुरु होने के प्रथम 35 सेकेंड्स में ही आप उनकी दी हुई धुन से इस गीत के मूड को समझ जाते हैं कि ये एक प्यारा सा रोमांटिक नग्मा होगा।

मुझे ये धुन कमाल की लगती है..और धुन का असर गहरा हो ही रहा होता है कि नेपथ्य से आती है राशिद अली की आवाज और गूँजते हैं ये स्वर...
कहीं तो ..कहीं तो
होगी वो
दुनिया जहाँ तू मेरे साथ है
जहाँ मैं, जहाँ तू
और जहाँ बस तेरे मेरे जज़्बात हैं

बस मूड एकदम से बदल जाता है। मुझे इस गीत की ये पंक्तियाँ सुनकर अपनी किशोरावस्था के दिन याद आ जाते हैं जब हम ऍसी ही कितनी कल्पनात्मक उड़ानों में डूबते उतराते रहते थे। अब्बास टॉयरवाला की तारीफ करनी होगी की बेहद सरल शब्दों का प्रयोग करते हुए भी अपनी बात को हम तक पहुँचा पाते हैं। कभी कभी इस भागदौड़ भरी जिंदगी में कोरी भावुकता की भी जरूरत महसूस होती है और तब ऍसे गीत मन को बड़े भले लगते हैं।

राशिद अली के बारे में तो हम पिछली पोस्ट में विस्तार से बात कर चुके हैं इस गीत में राशिद का एक अंतरे में साथ दिया है मानसून वेडिंग में नायिका की भूमिका निभाने वाली वसुंधरा दास ने। बस इस गीत की एक ही बात नहीं जमती और वो है अंत में कोरस को लाने के लिए गीत के स्केल में लाया गया बदलाव। इसलिए चार मिनट दस सेकेंड बीतते ही मैं गीत की पुनरावृति कर लेता हूँ। तो लीजिए पहले पढ़िए इस गीत के बोल.....
कहीं तो ..कहीं तो
होगी वो
दुनिया जहाँ तू मेरे साथ है
जहाँ मैं, जहाँ तू
और जहाँ बस तेरे मेरे जज़्बात हैं
होगी जहाँ सुबह तेरी
पलकों की किरणों में
लोरी जहाँ चाँद की
सुने तेरी बाहों में

जाने ना कहाँ वो दुनिया है
जाने ना वो है भी या नहीं
जहाँ मेरी जिंदगी मुझसे
इतनी ख़फा नहीं

साँसें खो गई है किसकी आहों में
मैं खो गई हूँ जाने किसकी बाहों में
मंजिलों से राहें ढूँढती चली
खो गई है मंजिल कहीं राहों में

कहीं तो कहीं तो
है नशा
तेरी मेरी हर मुलाक़ात में
होठों से, होठों को चूमते
ओ रहते हैं हम हर बात पे
कहती है फिज़ा जहाँ
तेरी जमीं आसमान
जहाँ है तू मेरी हँसी
मेरी खुशी मेरी जाँ
जाने ना कहाँ वो दुनिया है
जाने ना वो है भी या नहीं
जहाँ मेरी जिंदगी मुझसे
इतनी ख़फा नहीं...

तो अब सुनिए रहमान, अब्बास और राशिद खाँ की इस बेहद रोमांटिक पेशकश को...


मंगलवार, जनवरी 13, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 पायदान संख्या 20 : कभी कभी अदिति जिंदगी में..

आज हम प्रवेश कर रहे हैं वार्षिक संगीतमाला २००८ के प्रथम बीस गीतों की फेरहिस्त में। पिछली पोस्ट में आप रूबरू हुए थे गायक जावेद अली से और आज २० वीं पायदान पर जो गीत है उसे आवाज़ दी है नए कलाकार राशिद अली ने !


जाने तू या जाने का के सबसे लोकप्रिय गीत को गाने वाले राशिद को ए. आर. रहमान की खोज कहा जा सकता है। राशिद के परिवार का ताल्लुक यूँ तो उत्तर प्रदेश से है पर वे लंदन में ही पले बढ़े। माँ ग़ज़ल गायिका थी इसलिए ब्रिटेन के जाने माने कलाकारों के पाश्चात्य संगीत के साथ हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत से भी उनका परिचय साथ साथ हुआ। स्कूल में जॉज (Jazz) संगीत की ओर उन्मुख हुए। फिर जब वाइलिन और गिटार के बीच अपना पसंदीदा वाद्य यंत्र को चुनने की बारी आई तो उन्होंने गिटार को चुना।

२००२ में पहली बार रहमान से एक कान्सर्ट के दौरान उनकी मुलाकात हुई और फिर २००३ में वे बतौर गिटारिस्ट उनके क़ाफिले के सदस्य बन गए। और जाने तू या जाने ना में कभी कभी अदिति में ना केवल उन्होंने अपनी प्यार अदाएगी से सबका मन मोहा बल्कि अपनी ओर से गिटार के कुछ बीट्स जोड़े। राशिद कहते हैं कि मैंने बॉलीवुड में प्रवेश के बारे में इस तरह नहीं सोचा था। हाँ इतनी तमन्ना जरूर थी कि जब स्टेज पर जाऊँ तो लोग मुझे अपनी आवाज़, अपने गिटार वादन के लिए पहचाने।

और अब जबकि रूठे हुए को मनाता ये गीत सबकी जुबाँ पर है राशिद खुशी महसूस कर सकते हैं कि बहुत जल्द ही वो अपना सपना पूरा कर पाए हैं। तो आइए एक बार फिर सुनते हैं ये गीत राशिद अली की आवाज़ में.....

कभी कभी अदिति जिंदगी में यूँ ही कोई अपना लगता है
कभी कभी अदिति वो बिछड़ जाये तो इक सपना लगता है
ऐसे में कोई कैसे अपने आँसुओ को बहने से रोके
और कैसे कोई सोच ले everything’s gonna be okay

कभी कभी तो लगे जिंदगी में रही ना खुशी और ना मज़ा
कभी कभी तो लगे हर दिन मुश्किल और हर पल एक सज़ा
ऐसे में कोई कैसे मुस्कुराये कैसे हँस दे खुश होके
और कैसे कोई सोच दे everything gonna be okay

सोच ज़रा जाने जाँ तुझको हम कितना चाहते हैं
रोते है हम भी अगर तेरी आँखों में आँसू आते हैं
गान तो आता नहीं है मगर फिर भी हम गाते हैं
के अदिति माना कभी कभी सारे जहाँ में अँधेरा होता है
लेकिन रात के बाद ही तो सवेरा होता है

कभी कभी अदिति जिंदगी में यूँ ही कोई अपना लगता है
कभी कभी अदिति वो बिछड़ जाए तो एक सपना लगता है
हे अदिति हँस दे हँस दे हँस दे हँस दे हँस दे हँस दे तू ज़रा
नहीं तो बस थोड़ा थोड़ा थोड़ा थोड़ा थोड़ा थोड़ा मुस्कुरा

तू खुश है तो लगे के जहाँ में छाई है खुशी
सूरज निकले बादलों से और बाटें जिंदगी
सुन तो ज़रा मदहोश हवा तुझसे कहने लगी
के अदिति वो जो बिछड़ते है एक न एक दिन फिर मिल जाते हैं
अदिति जाने तू या जाने न फूल फिर खिल जाते हैं

कभी कभी अदिति .................थोड़ा मुस्कुरा

मुझे लगता है कि ये साल का सबसे खुशनुमा गीत है जो किसी के भी उदास मन को प्रफुल्लित कर दे। आप क्या सोचते हैं इस गीत के बारे में

बुधवार, दिसंबर 31, 2008

वार्षिक संगीतमाला 2008 :पायदान संख्या 25 - पप्पू नाच नहीं सकता..Pappu Can't Dance Sala

२००८ खत्म होने की कगार पर है और साल को विदा करते समय वक़्त आ गया है वार्षिक संगीतमाला २००८ की उलटी गिनती शुरु करने का। संगीतमाला की २५ वीं पायदान यानि २५ वें नंबर पर गाना वो जिसका आरंभिक संगीत बजते ही बच्चे, बूढ़े और जवान एक साथ थिरकने लगते है्। ये गीत इस साल इतनी बार पार्टियों में बजा कि आप शायद सुन कर थोड़े बोर हो गए होंगे।


जी हाँ मैं उसी पप्पू की बात कर रहा हूँ जिसके पास वो सारी खूबियाँ हैं जिन्हें आज की पीढ़ी बेहद महत्त्व देती है पर जिसे कमबख्त नाचना ही नहीं आता। खैर नाचना तो मुझे भी नहीं आता पर अनुपमा देशपांडे, बेनी दयाल, सतीश सुब्रमनियम, तन्वी, दर्शना और असलम के सम्मिलित स्वर में गाए इस गीत ने कई बार मुझे बच्चों के साथ मुझे भी झूमने पर विवश किया है। जाने तू या जाने ना फिल्म के इस गीत को ए.आर रहमानऔरअब्बास टॉयरवाला अपने संगीत और गीत बदौलत साल का सबसे मस्ती भरा गीत बनाने में सफल रहे हैं।

इस गीत में 'साला'शब्द के प्रयोग पर बहस हो सकती है। अब्बास और रहमान साला की जगह 'बाबा' शब्द का प्रयोग कर सकते थे पर शायद गाने को एक मसालेद्वार स्वाद देने के लिए उन्होंने 'साला'शब्द चुना। वैसे छोड़िए इन बातों को, फिलहाल तो पिछले साल को खुशी खुशी अलविदा करना है इसलिए एक बार पप्पू के साथ और थिरक लें तो तैयार हैं ना आप....


और अगर तेज बैंडविड्थ आपके पास हो तो ये रहा यू ट्यूब पर इस फिल्म का वीडिओ



३१ दिसंबर की इस रात को मैं एक शाम मेरे नाम के तमाम पाठकों और अपने साथी चिट्ठाकारों को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। आशा है आप सब नए साल में भी इस चिट्ठे के साथी बने रहेंगे..........
 

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इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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