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सोमवार, फ़रवरी 27, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 6 : होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ Hone Do Batiyan

वार्षिक संगीतमाला की छठी पॉयदान के हीरो हैं संगीतकार अमित त्रिवेदी जिन्होंने गीतकार स्वानंद किरकिरे के साथ मिलकर एक बेहद प्यारा युगल गीत रचा है फिल्म फितूर के लिए। जेबुन्निसा बंगेश व नंदिनी सिरकर का गाया ये नग्मा जब आप पहली बार सुनेंगे तो ऐसा लगेगा मानो दो बहनें आपस में बात कर रही हों। अब ये बात अलग है कि फिल्म में ये गीत नायक व नायिका की बोल बंदी को तोड़ने का प्रयास कर रहा है।


जेबुन्निसा बंगेश या जेब से आपकी मुलाकात मैं पहले भी करा चुका हूँ जब उन्होंने स्वानंद और शांतनु के साथ मिलकर टीवी शो The Dewarist के लिए एक गाना रचा था जिसे काफी पसंद किया गया था। जेब बंगेश उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान से ताल्लुक रखती हैं और हाल फिलहाल में इनकी आवाज़ आपने फिल्म मद्रास कैफे के आलावा हाइवे के गीत  सूहा साहा में भी सुनी होगी।

यूँ तो जेब मुंबई आते जाते कई बार अमित त्रिवेदी से मिल चुकी थीं पर उनके मित्र स्वानंद ने उन्हें अमित से तब मिलवाया जब वे फितूर के लिए काम कर रहे थे।  ये मुलाकात उन्हें इस युगल गीत का हिस्सा बना गयी। इस गीत में जेब का साथ दिया नंदिनी सिरकर ने। विज्ञान की छात्रा और कंप्यूटर प्रोफेशनल रही नंदिनी यूँ तो संगीत के क्षेत्र में दो दशकों से सक्रिय हैं पर रा वन के गीत भरे नैना से वो हिंदी फिल्म संगीत के आकाश में चमकीं। मुझे उनका फिल्म शंघाई के लिए गाया नग्मा जो भेजी  थी दुआ सबसे अच्छा लगता है और इस गीत में भी अपनी आवाज़ की खनक से वे मन को खुश कर देती हैं।

चार्ल्स डिकन्स की किताब ग्रेट एक्सपेक्टेशन से प्रेरित फितूर की कहानी कश्मीर में पलती बढ़ती है और इसीलिए फिल्म के गानों में अमित ने इलाके के संगीत का अक़्स लाने की कोशिश की है। अब इस गीत के संगीत संयोजन को ही लीजिए। अफ़गानिस्तान के राष्ट्रीय वाद्य रबाब और ग्रीस के वाद्य यंत्र बोजूकी के साथ अमित त्रिवेदी आरमेनिया के साज़ और अपने संतूर को मिलाते हए ऐसी रागिनी पैदा करते है जो हर बार सुनते हुए मन में बसती चली जाती है। गीत की शुरुआत का रबाब और पहले इंटरल्यूड में बोजूकी की धुन के साथ मन झूम उठता है। गीत के बोलों के साथ संतूर भी थिरकता है।


तापस रॉय
 अक्सर गीतों को सुनते वक़्त हम वाद्य यंत्रों को बजाने वाले गुमनाम चेहरों से अपरिचित ही रह जाते हैं। पर जब मुझे ये पता चला कि इस गीत में रबाब, बोजूकी, साज़ और संतूर चारों एक ही वादक तापस रॉय ने बजाए हैं तो उनके हुनर को नमन करने का दिल हो आया। तापस के पिता पारितोष राय मशहूर दोतारा वादक थे। सत्यजित रे से लेकर रितुपूर्ण घोष के साथ काम कर चुके तापस को  इन वाद्यों के आलावा मेंडोलिन और दोतारा में भी महारत हासिल है।

मुझे आपका तो पता नहीं पर मैं तो बेहद बातूनी इंसान हूँ और जिन लोगों को पसंद करता हूँ उनसे घंटों बातें कर सकता हूँ।  मेरा ये मानना है कि किसी की अच्छाई को जानने के लिए, उसके व्यक्तित्व के पहलुओं से रूबरू होने के लिए उसके मन तक के कई दरवाजों को खोलना पड़ता है और वो बातों से ही संभव है। इसलिए स्वानंद जब कहते हैं सुनों बातों से बनती है बातें बोलो.. तो वो मन की ही बात लगती है।

गीतकार स्वानंद किरकिरे इस गीत में ऐसे दो संगियों की बातें कर रहे हैं जो एक साथ बड़े हुए, एक ही माटी में पैदा हुए, बातों बातों में ही प्यार कर बैठे पर फिलहाल चुप चुप से हैं। तो आइए सुनते हैं ये गीत और तोड़ते हैं दो दिलों के बीच का मौन..


होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ
कोने में दिल के प्यार पड़ा
तन्हा.. तन्हा..
दिलों की दिल से
होने दो बतियाँ, होने दो बातें
होने दो बतियाँ, होने दो बातें

होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ
सीने में छुपके धड़के दिल
तनहा तनहा, दिलों की दिल से
होने दो बतियाँ, होने दो बातें
होने दो बतियाँ, होने दो बातें

रात के दर पे कबसे खड़ी है
भीनी-भीनी सुबह
खोले झरोखे फिज़ा हैं बेनूर..
संग चले हैं, संग पले हैं
धूप छैंया दोनों
सुनों बातों से बनती है बातें बोलो..
होने दो बतियाँ.. होने दो बातें

हाँ मैं भी हूँ माटी, तू भी है माटी
तेरा मेरा क्या है
क्यूँ हैं खड़े हम, खुद से इतनी दूर..
साँसों में तेरी, साँसों में मेरी
एक ही तो हवा है
मर जायेंगे हम, यूँ ना हमको छोड़ो..

आ.. होने दो बतियाँ.. होने दो बातें


और ये है गीत का संक्षिप्त वीडियो


स्वानंद इस गीत के माध्यम से नायक नायिका के बीच के मौन को तोड़ पाए या नहीं ये तो फिल्म देख के पता ही चलेगा पर अपने किसी खास से आगर हल्की फुल्की तनातनी हो गयी तो बस इस गीत के मुखड़े को गुनगुना दीजिए.. :)
वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
14. मासूम सा Masoom Saa
15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
16.फिर कभी  Phir Kabhie
17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

रविवार, फ़रवरी 17, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 8 : जो भेजी थी दुआ ..वो जा के आसमान से यूँ टकरा गयी...

जिंदगी की राहें हमेशा सहज सपाट नहीं होती। कभी कभी ये ज़िंदगी बड़े अज़ीब से इम्तिहान लेने लगती है। आपके और आपके करीबियों के साथ कुछ ऐसा होता है जो आप एकदम से स्वीकार नहीं कर पाते। मन अनायास ही ये सवाल कर उठता है..ऐसा मेरे साथ ही क्यूँ भगवन ? पर उस सवाल का जवाब देने के लिए ना आपके संगी साथी ही आते हैं ना ये परवरदिगार। अपने आँसुओं के बीच की ये लड़ाई ख़ुद आपको लड़नी पड़ती है। मन की इन्हीं परिस्थितियों को उभारता हैं वार्षिक संगीतमाला की आठवी पॉयदान का ये संवेदनशील नग्मा जिसे लिखा है कुमार राकेश ने और जिसे संगीतबद्ध किया है विशाल शेखर की जोड़ी ने। 


गीतकार कुमार, जिनसे आपकी मुलाकात मैंने 2010 की वार्षिक संगीतमाला में बहारा बहारा हुआ दिल पहली बार रे  गीत के साथ कराई थी ने गीत की इन भावनाओं के लिए कमाल के बोल लिखे हैं। ज़िंदगी के कठोर हालातों से उपजी बेबसी और हताशा उभर कर सामने आती है जब कुमार कहते हैं पसीजते है सपने क्यूँ आँखो में..लकीरें जब छूटे इन हाथो से यूँ बेवजह..जो भेजी थी दुआ ..वो  जा के आसमान से यूँ टकरा गयी कि आ गयी है लौट के सदा ...

फिल्म शंघाई के इस गीत को गाया है एक ऐसी गायिका ने जिनकी आवाज़ में कुछ ऐसा जरूर है जिसे पहली बार सुनकर आप ठिठक से जाते हैं। ये आवाज़ है नंदिनी सिरकर (Nandini Sirkar) की। नंदिनी की आवाज़ पर  हिंदी फिल्म संगीत प्रेमियों का ध्यान भले ही 2011 में प्रदर्शित फिल्म रा वन के गीत भरे नैना.. से गया हो पर बहुमुखी प्रतिभा की नंदिनी पिछले एक दशक से सांगीतिक जगत में सक्रिय रही हैं। 

नंदिनी को सांगीतिक विरासत अपनी माँ शकुंतला चेलप्पा से मिली जो कर्नाटक संगीत की हुनरमंद गायिका थी। बारह साल की उम्र तक नंदिनी ने वीणा, सितार और फिर एकाउस्टिक गिटार बजाना सीख लिया था। पर नंदिनी ने युवावस्था में संगीत को एक शौक़ की तरह ही लिया । संगीत की तरह पढ़ने लिखने में नंदिनी अपना कमाल दिखलाती रही। गणित में परास्नातक की डिग्री लेने वाली और भौतिकी को बेहद पसंद करने वाली नंदिनी सूचना प्राद्योगिकी से जुड़ी नौकरी में लीन थीं जब संयोग से हरिहरण जी ने उनका गाना सुना।  इस तरह पहली बार 1998 में एक तमिल फिल्म में उन्हें पार्श्व गायिका का काम मिला। पिछले एक दशक में उन्हें दक्षिण  भारतीय  और हिंदी फिल्मों में गाने के इक्का दुक्का अवसर मिलते रहे। पर 2011में रा वन  (भरे नैना..) और फिर 2012 में एजेंट विनोद  (दिल मेरा मुफ्त का ..)  में उनके गाए गीतों ने खूब सुर्खियाँ बटोरीं।

शंघाई के इस गीत में जिस दर्द की आवश्यकता थी वो नंदिनी के स्वर में स्वाभाविक रूप से फूटती नज़र आती है। इस गीत में नंदिनी का बतौर गायक साथ दिया है संगीतकार शेखर रवजियानी ने। विशाल शेखर ने इस गीत में अपने हिप हाप संगीत से अलग हटकर संगीत संयोजन देने की कोशिश की है। जब गीत की लय शुरुआती सवालों से उठती हुई जो भेजी थी दुआ.. तक पहुँचती है तो वो पुकार सीधे दिल से टकराती प्रतीत होती है।

तो आइए कुमार के दिल को छूते शब्दों के साथ महसूस करें इस गीत की पीड़ा को..

 

किसे पूछूँ, है ऐसा क्यूँ
बेजुबाँ सा ये ज़हाँ है
ख़ुशी के पल, कहाँ ढूँढूँ
बेनिशान सा वक्त भी  यहाँ है
जाने कितने लबो पे गिले हैं
ज़िन्दगी से कई फासले हैं
पसीजते है सपने क्यूँ आँखो में
लकीरें जब छूटे इन हाथो से यूँ बेवजह

जो भेजी थी दुआ ..वो  जा के आसमान
से यूँ टकरा गयी
कि आ गयी है लौट के सदा

साँसो ने कहाँ रूख मोड़ लिया
कोई राह नज़र में न आये
धड़कन ने कहाँ दिल छोड़ दिया
कहाँ छोड़े इन जिस्मो ने साए
यही बार बार सोचता हूँ
तनहा मैं यहाँ
मेरे साथ साथ चल रहा है
यादों का धुआँ
....
 

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