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गुरुवार, अप्रैल 07, 2022

वार्षिक संगीतमाला 2021 Top Songs of 2021 तेरी झलक अशर्फी श्रीवल्ली Srivalli

वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल के शानदार पन्द्रह गीतों की कड़ी में आख़िरी गीत फिल्म पुष्पा से। ये गीत कौन सा है ये तो आप समझ ही गये होंगे क्यूँकि पिछले साल के अंतिम महीने से लेकर आज तक ये गीत लगातार बज रहा है वो भी अलग अलग भाषाओं में। देशी कलाकार तो एक तरफ, ये गीत विदेशी कलाकारों को भी अपने मोहपाश में बाँध चुका है। हाल ही में मुंबई पुलिस के बैंड द्वारा सामूहिक रूप इसकी धुन की प्रस्तुति चर्चा का विषय बनी हुई है। जी हाँ ये गीत है श्रीवल्ली जिसकी अद्भुत संगीत रचना करने वाले देवी श्री प्रसाद बताते हैं कि इस धुन की रूप रेखा उन्होंने पाँच मिनट में ही गिटार पर बजा कर बना डाली थी। इस गीत की धुन इतनी पसंद की जायेगी ये उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था🙂



उत्तर भारतीय संगीत प्रेमियों के लिए देवी श्री प्रसाद भले ही अनजान हों पर तेलुगू फिल्म उद्योग में वो जाना पहचाना नाम हैं। शायद ही आपको पता हो कि उन्हें उनके प्रशंसक प्यार से  DSP RockStar के नाम से बुलाते हैं। पच्चीस सालों के अपने लंबे कैरियर में नौ फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित DSP अपनी धमाकेदार धुनों के लिए जाने जाते हैं। इसी फिल्म के लिए उनका गीत उ अन्टवा मावा..उ उ अन्टवा मावा.. इस साल का सबसे जबरदस्त डांस नंबर साबित हुआ है पर जहां तक श्रीवल्ली का सवाल है तो वो एक ऐसे आशिक का प्रेम गीत है जिसे ये शिकायत है कि उसकी महबूबा उसके प्यार को अनदेखा कर रही है।

देवी श्री प्रसाद 

DSP ने इस फिल्म के हिंदी वर्जन को लिखने के लिए अपने पुराने मित्र रक़ीब आलम को चुना जो उनकी पहली फिल्म देवी में भी उनके साथ रहे थे। रक़ीब बहुभाषी गीतकार हैं। दक्षिण भारतीय भाषाओं में लिखने के आलावा वे स्लमडॉग मिलयनियर और गैंगस्टर जैसी फिल्मों के गीत लिख चुके हैं।

दक्षिण भारतीय फिल्में जब डब होकर हिंदी में आती हैं तो गीतकार के पास वो रचनात्मक आज़ादी नहीं होती क्यूँकि तब तक मूल भाषा में गीत बन चुका होता है और हिंदी में बस उसका भावानुवाद करना होता है। रक़ीब आलम को जब इसके मूल तेलुगू बोल मिले तो मुखड़े की एक पंक्ति का अर्थ कुछ यूँ था कि तुम्हारी झलक सोने की चमक सी बेशकीमती है। अब हिंदी में मुखड़े का मीटर जम नहीं पा रहा था तो रक़ीब  उर्दू जुबान की शरण में गए और नायिका के लिए जो विशेषण चुना वो था अशर्फी।

अशर्फी में सोना और चमक दोनों मायने निहित थे। उर्दू से अनजान लोग मुखड़े में इस्तेमाल किए जुमले "बातें करे दो हर्फी" को सुनकर असमंजस में पड़ जाते हैं। दरअसल फिल्म की नायिका नायक को ज़रा भी भाव नहीं देती और कुछ पूछने पर भी दो हर्फी जवाब देती है जैसे हाँ, ना, क्यूँ, अच्छा। यहाँ हर्फ का मतलब अक्षर से है। 

वहीं मदक बर्फी से गीतकार का अभिप्राय नायिका की नशीली मादक आँखों से हैं। गीत में हिंदी का वही मादक शब्द मीटर में लाने के लिए मदक में बदल दिया गया है। हालांकि आंखों की तुलना बर्फी से करना सोहता तो नहीं पर अशर्फी से तुक मिलान  के लिए शायद गीतकार को ये करना पड़ा। कई लोगों ने मुझसे मुखड़े की इस गुत्थी को सुलझाने के लिए कहा था। तो अब तो आप समझ गए होंगे मुखड़े के पीछे गीतकार की सोच

तेरी झलक अशर्फी श्रीवल्ली, नैना मदक बर्फी
तेरी झलक अशर्फी श्रीवल्ली, बातें करे दो हर्फी

भगवान जो कि छुपा हुआ है उस के लिए तो नायिका पूजा अर्चना में लीन है पर नायक की आँखों में बसा प्रेम उसे नज़र नहीं आता। इसी भाव को गीत में उतारते हुए रक़ीब ने लिखा

नज़रें मिलते ही नज़रों से, नज़रों को चुराये
कैसी ये हया तेरी, जो तू पलकों को झुकाये
रब जो पोशीदा है, उसको निहारे तू
और जो गरवीदा है, उसको टाले तू

बाकी गीत की भाषा रकीब ने ऐसी रखी है जो नायक के किरदार के परिवेश के अनुरूप है। जावेद अली ने इस गीत में अपनी आवाज़ की बनावट में जगह जगह परिवर्तन किया है। वो कहते हैं आवाज़ में बदलाव का ऐसा प्रयोग उन्होंने इस गीत के लिए पहली बार किया और ऐसा करते समय उन्होंने  किरदार के थोड़े रूखे आक्रामक व्यक्तित्व का भी ध्यान रखा। 

जावेद अली और रक़ीब आलम के साथ देवी श्री प्रसाद

पर इस गीत के असली हीरो देवी श्री प्रसाद ही हैं। ये उनकी इस मधुर धुन की ही ताकत है कि भाषा की दीवार लाँघता हुआ ये गीत देश विदेश में इतना लोकप्रिय हो रहा है। गीत की शुरुआत वो गिटार और ताल वाद्यों की संगत में सारंगी पर बजाई गीत की सिग्नेचर ट्यून से करते हैं। गीत में जो सवा दो मिनट के बाद से बैंजो पर मधुर टुकड़ा बजता है उसे स्वयम् देवी प्रसाद ने बजाया है जबकि सारंगी पर मनोनमणि की उँगलियाँ थिरकी हैं।

इस गीत में अभिनेता अल्लू अर्जुन का चप्पल निकलने वाला स्टेप आम लोगों से लेकर बड़े बड़े कलाकारों और खिलाड़ियों को इतना पसंद आया कि उस पर सबने हजारों छोटे छोटे वीडियो  बना डाले। गीत की बढ़ती लोकप्रियता में उनके स्टाइल का भी असर जबरदस्त है।



वैसे तो श्रीवल्ली को इतने लोगों ने गाया है कि उसका कोई एक कवर वर्सन चुन कर सुनाना एक मुश्किल काम है पर जिस तरह जुड़वाँ बहनों किरण और निवि साईशंकर ने ये इस गाने का टुकड़ा गाया है उससे मुझे गीत के  तेलुगू शब्द भी भाने लगे। गीत के मुखड़े और अंतरे के अंत में लिया उनका आलाप इस गीत को अलग ही ऊँचाइयों पर ले जाता है।

वार्षिक संगीतमाला 2021 

इस संगीतमाला के सारे गीतों की चर्चा तो हो चुकी। अब इन पन्द्रह गीतों को अपनी पसंद के क्रम में सजाइए और मुझे भेज दीजिए मेरे फेसबुक पेज मेल या यहाँ कमेंट में। जिसकी पसंद का क्रम मेरे से सबसे ज्यादा मिलेगा वो होगा हर साल की तरह एक छोटे से इनाम का हक़दार।

गुरुवार, जनवरी 16, 2020

वार्षिक संगीतमाला 2019 Top 20 : ऐरा गैरा नत्थू खैरा Aira Gaira

हिंदी फिल्मी गीतों का मुखड़ा किसी मुहावरे या लोकोक्ति पर हो ऐसा आपको कभी याद आता है। मुझे तो ये लिखते हुए ऐसा कुछ याद नहीं पड़ रहा है पर इस साल इस कमाल को कर दिखाया है अमिताभ भट्टाचार्य ने कलंक के इस चटपटे और झुमाने वाले गीत में जो कि गीतमाला की सोलहवीं सीढ़ी पर विराजमान है। 

इस साल संगीतमाला में शामिल होने वाला ये इकलौता मस्ती भरा गीत है जिसे आप समूह में गुनगुनाते हुए थिरक सकते हैं। आजकल डांस नंबर का मतलब जब उल्टे सीधे शब्दों से भरे पंजाबी मिश्रित रैप और रिमिक्स किये हुए गीतों को बनाना हो गया है, तो ऐसे गीत एक ताज़ी हवा की तरह मन को प्रफुल्लित कर देते हैं। चाहे प्रीतम का मस्त संगीत संयोजन हो, अमिताभ के शब्द हों, अंतरा की शुरुआती चुहल भरी गायिकी हो या फिर जावेद अली और तुषार जोशी की गीत के मध्य में अद्भुत जुगलबंदी.. सुनकर आय हाय करने का जी कर उठता है।

मुखड़े के पहले और अंतरों के बीच की सांगीतिक व्यवस्था में  प्रीतम और उनकी लंबी चौड़ी टीम का काम सुनने लायक है। गीत की शुरुआत के आधा मिनट में बजते तार वाद्य और अंतरों के बुलबुल तरंग के साथ बजते ताल वाद्य आपको गीत के मूड में ले आते हैं। प्रीतम द्वारा रचे इस कर्णप्रिय संगीत को रचने में दर्जन भर वादकों की मेहनत शामिल है। 

गीत का विषय तो ख़ैर वही पुराना है यानी नाच की महफिल में दो मसखरे आशिकों को अपना रंग ज़माना है। नाच वाली तो उन्हें ऍरा गैरा नत्थू खैरा कह कर बिना किसी गत का बता चुकी है। अमिताभ को तो बाजी दोनों ओर से खेलनी थी। नचनिया के वार को सँभालते हुए अमिताभ ने आशिकों का रंग कुछ इन शब्दों में जमाया है

फूल सा चेहरा ईरानी, और लहजा हिंदुस्तानी
झील सी तेरी आँखों में, एक हलचल है तूफानी
देख महफिल में आए हैं, जान की देने कुर्बानी
एक महबूबा की खातिर, आज दो दो दिलबर जानी

मुझे गीत सुनते समय गायिकी के लिहाज़ से मजा तब आता है जब जावेद अली तुषार के साथ आए हाए हाए कहते हुए ये अंतरा गाते हैं

रात ले के आई है, जश्न तारी आए हाए हाए
ग़म गलत करने की है, अपनी बारी आए हाए हाए
आज नाचे गाएँ, ज़रा इश्क़ विश्क फरमाएँ
और जान जलाने वाली भाड़ में जाए सारी
दुनिया दारी आए हाए हाए




बिल्लौरी निगाहों से करे है सौ इशारे
खिड़की के नीचे नासपीटा सीटी मारे
बिल्लौरी निगाहों से...
इश्क में हुआ है थोड़ा अंधा थोड़ा बहरा
सैयां मेरा ऐरा गैरा नत्थू खैरा
ऐरा गैरा नत्थू खैरा 

फूल सा चेहरा ईरानी
और लहजा हिंदुस्तानी
झील सी तेरी आँखों में
एक हलचल है तूफानी
देख महफिल में आए हैं
जान की देने कुर्बानी
एक महबूबा की खातिर
आज दो दो दिलबर जानी

जिनके दिल का इंजन तेरे
टेसन पे है ठहरा
हो जिनके दिल का इंजन तेरे
टेसन पे है ठहरा
समझे काहे ऐरा गैरा नत्थू खैरा...

रात लेके आई है
जश्न तारी आए हाए हाए
ग़म गलत करने की है
अपनी बारी आए हाए हाए
ओ रात ले के आई है...
आज नाचे गाएं
ज़रा इश्क विश्क फरमाएँ
और जान जलाने वाली भाड़ में जाए सारी
दुनिया दारी आए हाए हाए
हो दिल के आईने में झाँके सुंदरी का चेहरा
हो दिल के आईने में झाँके सुंदरी का चेहरा
इश्क में हुआ है थोड़ा अंधा थोड़ा बहरा
सैयां मेरा ऐरा गैरा नत्थू खैरा
सैयां मेरा ऐरा गैरा नत्थू खैरा
सैयां मेरा ऐरा गैरा नत्थू खैरा

तो आइए सुनते हैं कलंक का ये गीत 




वार्षिक संगीतमाला 2019 
01. तेरी मिट्टी Teri Mitti
02. कलंक नहीं, इश्क़ है काजल पिया 
03. रुआँ रुआँ, रौशन हुआ Ruan Ruan
04. तेरा साथ हो   Tera Saath Ho
05. मर्द  मराठा Mard Maratha
06. मैं रहूँ या ना रहूँ भारत ये रहना चाहिए  Bharat 
07. आज जागे रहना, ये रात सोने को है  Aaj Jage Rahna
08. तेरा ना करता ज़िक्र.. तेरी ना होती फ़िक्र  Zikra
09. दिल रोई जाए, रोई जाए, रोई जाए  Dil Royi Jaye
10. कहते थे लोग जो, क़ाबिल नहीं है तू..देंगे वही सलामियाँ  Shaabaashiyaan
11 . छोटी छोटी गल दा बुरा न मनाया कर Choti Choti Gal
12. ओ राजा जी, नैना चुगलखोर राजा जी  Rajaji
13. मंज़र है ये नया Manzar Hai Ye Naya 
14. ओ रे चंदा बेईमान . बेईमान..बेईमान O Re Chanda
15.  मिर्ज़ा वे. सुन जा रे...वो जो कहना है कब से मुझे Mirza Ve
16. ऐरा गैरा नत्थू खैरा  Aira Gaira
17. ये आईना है या तू है Ye aaina
18. घर मोरे परदेसिया  Ghar More Pardesiya
19. बेईमानी  से.. 
20. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ? Kaise Hua
21. तेरा बन जाऊँगा Tera Ban Jaunga
22. ये जो हो रहा है Ye Jo Ho Raha Hai
23. चलूँ मैं वहाँ, जहाँ तू चला Jahaan Tu chala 
24.रूह का रिश्ता ये जुड़ गया... Rooh Ka Rishta 

मंगलवार, फ़रवरी 11, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 8 :'तुम तक' (Tum Tak)

पिछला हफ्ते कार्यालय और व्यक्तिगत व्यस्तताओं की वज़ह से वार्षिक संगीतमाला अपना अगला कदम नहीं बढ़ा सकी। आइए देखें कि संगीतमाला की अगली सीढ़ी पर कौन सा गीत आसन जमाए बैठा है? संगीतमाला की आठवीं पायदान पर प्यार की मीठी मीठी खुशबू फैलाता ये नग्मा है फिल्म रांझणा का जिसे लिखा इरशाद क़ामिल ने और संगीतबद्ध किया ए आर रहमान ने। गीत को स्वर दिया है जावेद अली और कीर्ति सागथिया ने।


शब्द रचना की दृष्टि से ये गीत थोड़ा अनूठा है। इरशाद क़ामिल और रहमान ने मिलकर पूरे गीत में 'तुम तक' की पुनरावृति कर प्रेम का जो माहौल रचा है वो अद्भुत है। एक बार व्यक्ति किसी के प्रेम में पड़ जाए तो उसका दृष्टि संसार बस अपने प्रिय तक ही सीमित रह जाता है। उसके सारे तर्क, सारी इच्छाएँ बस अपने प्रिय का ख्याल आते ही उस में विलीन हो जाती हैं। सोते जागते, उठते बैठते  कोई भी सोच घूम फिर कर बस उनकी बातों और यादों पर ही विराम लेती है। इरशाद क़ामिल ने प्रेम के इसी रासायन को 'तुम तक' के शाब्दिक जाल में बखूबी बाँधा है।

ए आर रहमान हमेशा अपनी फिल्मों में जावेद अली को मौके देते रहे हैं और जावेद ने हर बार अपनी गायिकी से संगीतप्रेमियों को मंत्रमुग्ध ही किया है। वर्ष 2008 में जोधा अकबर में उनका मन को सहलाता नग्मा कहने को जश्ने बहारा ..हो या फिर सूफ़ियत के रंग में रँगा फिल्म रॉकस्टार का गीत कुन फाया कुन या दिल्ली 6 का अर्जियाँ हो, उन्होंने हमेशा अपनी गायिकी का लोहा मनवाया है। रहमान के इतर गाए उनके गीतों में भी उनकी गायिकी की विविधता नज़र आती है। जब वी मेट के गीत नगाड़ा में जहाँ उनकी आवाज़ में एक जोश नज़र आता है तो वहीं फिल्म ये साली ज़िंदगी के गीत कैसे कहें अलविदा में उनकी आवाज़ दर्द से छटपटाती सी महसूस होती है।

संगीतज्ञों के परिवार से ताल्लुक रखने वाले और ग़ज़ल गायक गुलाम अली के शागिर्द रह चुके जावेद मुंबई ग़ज़ल गायक बनने आए थे। मुंबई की फिल्मी दुनिया में आकर उन्हें एहसास हुआ कि बतौर पार्श्व गायक उन्हें अपनी आवाज़ को गायिकी के अलग अलग रंगों के अनुरूप ढालने के ज्यादा अवसर मिलेंगे। भले ही उन्होंने खालिस ग़ज़ल गायिकी का दामन नहीं पकड़ा पर अपने गुरु के सम्मान में अपना नाम जावेद हुसैन से बदलकर जावेद अली कर लिया।

क्या आप नहीं जानना चाहेंगे कि जावेद इस गीत के बारे में क्या सोचते हैं ? जावेद इस गीत के बारे में कहते हैं
'तुम तक'  एक आम प्रेम गीत से अलग है। किशोरों के बीच की चाहत को दर्शाते इस गीत में मस्ती है चंचलता है और अपने महबूब को पाने की विकलता भी । इस गीत में इतनी ताकत है कि ये आपको फिर प्यार करने पर मजबूर कर दे।। रहमान सर का संगीत एक मीठा ज़हर है जो धीरे धीरे चढ़ता है। गीत में उनके द्वारा रचा माधुर्य अद्भुत है। हमने शब्दों के साथ खेलते हुए इस गीत को एक बनारसी रंग में रँगा है।"

सच, मुझ पर भी इस गीत का असर धीरे धीरे ही हुआ और इतना हुआ कि ये गीत 'एक शाम मेरे नाम' के प्रथम दस गीतों का हिस्सा बन गया। तो आइए सुनते हैं फिल्म राँझणा के इस गीत को...


मेरी हर मनमानी बस तुम तक
बातें बचकानी बस तुम तक
मेरी नज़र दीवानी बस तुम तक
मेरे सुख-दु:ख आते जाते सारे
तुम तक, तुम तक, तुम तक, सोणे यार

तुम तक तुम तक अर्ज़ी मेरी
फिर आगे जो मर्ज़ी
तुम तक तुम तक अर्ज़ी मेरी
फिर तेरी जो मर्ज़ी
मेरी हर दुश्वारी बस तुम तक
मेरी हर होशियारी बस तुम तक
मेरी हर तैयारी बस तुम तक
तुम तक, तुम तक, तुम तक, तुम तक
मेरी इश्क़ खुमारी बस तुम तक

इक टक इक टक, ना तक, गुमसुम
नाज़ुक नाज़ुक दिल से हम तुम
तुम ... तुम तुम तुम तुम तुम तुम ...

तुम चाबुक नैना मारो
मारो तुम तुम तुम तुम तुम तुम!
तुम... मारो ना नैना तुम
मारो ना नैना तुम

तुम तक
चला हूँ तुम तक
चलूँगा तुम तक
मिला हूँ तुम तक
मिलूँगा तुम तक

तुम तक, तुम तक, तुम तक
तुम तक, तुम तक, तुम तक, तुम तक ...

हाँ उखड़ा उखड़ा
मुखड़ा मुखड़ा
मुखड़े पे नैना काले
लड़ते लड़ते लडे, बढ़ते बढ़ते बढ़े
हाँ अपना सजना कभी, सपना सजना कभी
मुखड़े पे नैना डाले

नैनो के घाट ले जा, नैनो की नैय्या
पतवार तू है मेरी, तू खेवैय्या
जाना है पार तेरे
तू ही भँवर है
पहुँचेगी पार कैसे
नाज़ुक सी नैय्या

तुम तक, तुम तक, तुम तक ...

मेरी अकल दीवानी तुम तक
मेरी सकल जवानी तुम तक
मेरी ख़तम कहानी तुम तक
मेरी ख़तम कहानी बस तुम तक

तुम तक, तुम तक, तुम तक, तुम तक


वैसे आपकी क्या राय है इस गीत के बारे में?

सोमवार, फ़रवरी 27, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 रनर अप : कुन फाया कुन जब कहीं पे कुछ नहीं, भी नहीं था, वही था, वही था !

वक़्त आ गया वार्षिक संगीतमाला 2011 के रनर अप गीत के नाम की घोषणा करने का। एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला का ये खिताब जीता है फिल्म रॉकस्टार की कव्वाली 'कुन फाया कुन' ने। यूँ तो ख़ालिस कव्वालियों का दौर तो रहा नहीं पर ए आर रहमान ने अपनी फिल्मों में बड़ी सूझबूझ और हुनर से इनका प्रयोग किया है। इससे पहले फिल्म जोधा अक़बर में उनकी कव्वाली ख़्वाजा मेरे ख़्वाजा बेहद लोकप्रिय हुई थी। यूँ तो रॉकस्टार के अधिकतर गीत लोकप्रिय हुए हैं पर कुछ गीतों में रहमान का संगीत इरशाद क़ामिल के बेहतरीन बोलों को उस खूबसूरती से उभार नहीं पाया जिसकी रहमान से अपेक्षा रहती है। पर जहाँ तक फिल्म रॉकस्टार की इस कव्वाली की बात है तो यहाँ गायिकी, संगीत और बोल तीनों बेहतरीन है और इसीलिए इस गीत को मैंने इस पॉयदान के लिए चुना।

अगर संगीत की बात करें तो जिस खूबसूरती से मुखड़े या अंतरों में हारमोनियम का प्रयोग हुआ है वो वाकई लाजवाब है। कव्वाली की चिरपरिचित रिदम में बड़ी खूबसूरती से गिटार का समावेश होता है जब मोहित सजरा सवेरा मेरे तन बरसे गाते हैं। रहमान ने इस गीत के लिए अपना साथ देने के लिए जावेद अली को चुना, मोहित तो रनबीर कपूर की आवाज़ के रूप में तो पहले से ही स्वाभाविक चुनाव थे। इन तीनों ने मिलकर जो भक्ति का रस घोला है उसे मेरे लिए शब्दो में बाँधना मुश्किल है। बस इतना कहूँगा कि ये कव्वाली जब भी सुनता हूँ तो रुहानी सुकून सा मिलता महसूस होता है।

इरशाद क़ामिल के बोलों की बात करने से पहले कुछ बातें कव्वाली की पंच लाइन 'कुन फाया कुन' के बारे में। अरबी से लिया हुए  इस जुमले का क़ुरान में कई बार उल्लेख है। मिसाल के तौर पर क़ुरान के द्वितीय अध्याय के सतरहवें छंद में इसका उल्लेख कुछ यूँ है "... and when He decrees a matter to be, He only says to it ' Be' and it is." यानि एक बार परवरदिगार ने सोच लिया कि ऐसा होना चाहिए तो उसी क्षण बिना किसी विलंब के वो चीज हो जाया करती है।

अब थोड़ा इरशाद साहब के शब्दों के चमत्कार को भी देखिए। मुखड़े में एक कितने प्यारे शब्दों में वो ख़ुदा को अपने चाहनेवाले के घर में आकर दिल के शून्य को भरने की बात करते हैं। चाहे अंतरे में भगवन को शाश्वत सत्य मानने की बात हो, या अल्लाह के रूप में रंगरेज़ की कल्पना इरशाद के बोल दिल में समा जाते हैं

या निजाममुद्दीन औलिया, या निजाममुद्दीन सरकार
कदम बढ़ा ले, हदों को मिटा ले
आजा खालीपन में, पी का घर तेरा,
तेरे बिन खाली, आजा खालीपन में..तेरे बिन खाली, आजा खालीपन में
रंगरेज़ा रंगरेज़ा रंगरेज़ा हो रंगरेज़ा….

कुन फाया कुन, कुन फाया, कुन फाया कुन,
फाया कुन, फाया कुन ,फाया कुन,
जब कहीं पे कुछ नहीं, भी नहीं था,
वही था, वही था, वही था, वही था
वो जो मुझ में समाया, वो जो तुझ में समाया
मौला वही वही माया
कुन फाया कुन, कुन फाया, कुन
सदाकउल्लाह अल्लीउल अज़ीम

रंगरेज़ा रंग मेरा तन मेरा मन
ले ले रंगाई चाहे तन चाहे मन

अब गीत के इस टुकड़े को लें

सजरा सवेरा मेरे तन बरसे
कजरा अँधेरा तेरी जान की लौ
क़तरा मिले तो तेरे दर पर से
ओ मौला….मौला…मौला….


इरशाद यहाँ कहना चाहते हैं वैसे तो तुम्हारे दिए हुए शरीर  के कृत्यों से मैं कालिमा फैला रहा था पर तुम्हारे आशीर्वाद के एक क़तरे से मेरी ज़िदगी की सुबह आशा की नई ज्योत से झिलमिला उठी है। अगले अंतरे में इरशाद पैगंबर से अपनी आत्मा को शरीर से अलग करने का आग्रह करते हैं ताकि उन्हे अल्लाह के आईने में अपना सही मुकाम दिख जाए। कव्वाली के अंत तक गायिकी और इन गहरे बोलों का असर ये होता है कि आप अपनी अभी की अवस्था भूल कर बस इस गीत के होकर रह जाते हैं।

कुन फाया कुन, कुन फाया कुन,
कुन फाया कुन, कुन फाया कुन
कुन फाया कुन, कुन फाया, कुन फाया कुन,
फाया कुन, फाया कुन ,फाया कुन,
जब........वही था

सदकल्लाह अल्लीउम अज़ीम
सदक रसुलहम नबी युनकरीम
सलल्लाहु अलाही वसललम, सलल्लाहु अलाही वसललम,

ओ मुझपे करम सरकार तेरा,
अरज तुझे, करदे मुझे, मुझसे ही रिहा,
अब मुझको भी हो, दीदार मेरा
कर दे मुझे मुझसे ही रिहा, मुझसे ही रिहा…
मन के, मेरे ये भरम, कच्चे  मेरे ये करम
ले के चले है कहाँ, मैं तो जानू ही ना,

तू ही मुझ में समाया, कहाँ लेके मुझे आया,
मैं हूँ तुझ में समाया, तेरे पीछे चला आया,
तेरा ही मैं एक साया, तूने मुझको बनाया
मैं तो जग को ना भाया, तूने गले से लगाया
हक़ तू ही है ख़ुदाया, सच तू ही है ख़ुदाया

कुन फाया, कुन..कुन फाया, कुन
फाया कुन, फाया कुन, फाया कुन, ,फाया कुन,
जब कहीं.....

सदकउल्लाह अल्लीउल अज़ीम
सदकरसूलहम नबी उलकरीम
सलल्लाहु अलाही वसल्लम, सलल्लाहु अलाही वसललम,
वैसे अगर इरशाद क़ामिल के बारे में आपकी कुछ और जिज्ञासाएँ तो एक बेहतरीन लिंक ये रही

निर्देशक इम्तियाज़ अली ने इस कव्वाली को फिल्माया है दिल्ली में स्थित हजरत निजामुद्दीन औलिया की दरगाह में


तो ये था साल का रनर अप गीत? पर हुजूर वार्षिक संगीतमाला का सरताजी बिगुल अभी बजना बाकी है। अगली पोस्ट में बातें होगीं मेरे साल के सबसे दिलअज़ीज गीत और उन्हें रचने वालों के बारे में। तब तक कीजिए इंतज़ार.

गुरुवार, फ़रवरी 16, 2012

वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 5 : कैसे कहें अलविदा, मेहरम...कैसे बने अजनबी, हमदम ?

शास्त्रीय संगीत के महारथी कलाकारों का हिंदी फिल्म संगीत में संगीत निर्देशन करना कोई नई बात नहीं रही है। आपको तो याद ही होगा कि यशराज फिल्म के बैनर तले संतूर वादक शिव कुमार शर्मा और बाँसुरी वादक हरि प्रसाद चौरसिया ने 'शिवहरि' के नाम से तमाम फिल्मों में सफल संगीत निर्देशन किया था। इसी सिलसिले में एक नया नाम जुड़ा है प्रसिद्ध सितार वादक उस्ताद निशात खान का जिनकी संगीत निर्देशित फिल्म 'ये साली ज़िंदगी' का गीत है वार्षिक संगीतमाला की पाँचवी पॉयदान पर। सवाल ये उठता है कि सितार की परंपरा को पीढ़ियों से निभाने वाले परिवार से ताल्लुक रखने वाले उस्ताद इमरत खाँ के सुपुत्र को संगीत निर्देशन का ख़्याल क्यूँ आया ?

दरअसल अमेरिका में बसे निशात खान पश्चिमी शास्त्रीय संगीत के धुरंधरों के साथ सितार की जुगलबंदी करते रहे हैं। कुछ सालों पहले मुंबई में उनकी मुलाकात फिल्म निर्देशक सुधीर मिश्रा से हुई जिन्हें उन का विदेशी कलाकारों के साथ किया गया फ़्यूजन बहुद पसंद आया। वर्षों बाद जब सुधीर को अपनी फिल्म 'ये साली ज़िंदगी' के लिए इस तरह के संगीत की दरकार हुई तो उन्हें निशात खान का ख्याल आया। निशात साहब ने पारंपरिक शास्त्रीय संगीत के इतर एक बॉलीवुड थ्रिलर का संगीत देने की सुधीर मिश्रा की पेशकश को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। निशात साहब के संगीत निर्देशन का अपना एक नज़रिया है जिसके बारे में वो कहते हैं

"..मैं जब संगीत बनाता हूँ तो बहुत ज्यादा सोचता नहीं हूँ कि ये फिल्म में कैसा लगेगा वो कैसा लगेगा। जो मेरे दिल को बहुत अच्छा लगता है मैं वो सब सामने रख देता हूँ। उनमें से जो संगीत फिल्म के निर्देशक को पटकथा की परिस्थितियों के अनुरूप लगता है वो रख लेते हैं। इसी तरह जब मैं अपने कनसर्ट में जाता हूँ तो ज्यादातर मेरे को मालूम नहीं होता कि मैं कौन सा राग बजाऊँगा? मैं वहाँ जाता हूँ बैठता हूँ आवाज जाँचता हूँ और फिर उस पल जो मन में आता है वही बजा देता हूँ।.."

निशात खान ने इस गीत को गवाया है जावेद अली से। ये वही जावेद हैं जिन्हें पिछले साल आप बच्चों के सा रे गा मा पा में बतौर जज टीवी के पर्दे पर देख चुके हैं। जोधा अकबर से अपनी पहचान बनाने वाले जावेद ने रावण, जब वी मेट, गजनी, युवराज,दिल्ली ६, आक्रोश और रॉकस्टार में गाए गीतों से अपनी कामयाबी का सफ़र ज़ारी रखा है। जावेद को जो शोहरत आज मिली है वो उनकी फिल्म जगत में पिछले एक दशक से की गई लगातार मेहनत का नतीजा है।

पाँचवी पॉयदान का ये गीत पिछली पॉयदानों पर बजने वाले रूमानी गीतों से अलहदा है क्यूँकि यहाँ प्रेम की उमंग नहीं बल्कि जुदाई की पीड़ा है। नायक के लिए अलविदा कहने का वक़्त तो आ गया है पर कैसे वो उन साथ गुजारे लमहों, उन खुशनुमा यादों को एक झटके से अपने दिल से अलग कर ले? विरह की वेदना को मन में समाए जब जावेद ये गीत गाते हैं किरदार का दर्द अपना सा लगता है। निशात खाँ का संगीत गीत के मूड के अनुरुप है और गीतकार स्वानंद किरकिरे के बोल दिल में नश्तर की तरह चुभते हें जब वो कहते हैं

जिए जाओ जो तुम, जी ही जाएँगे हम
यादों के ज़ख़्म पर जिंदगी मरहम

तो आइए डूबते हैं इस उदास करते भावनात्मक नग्मे में



कैसे कहें अलविदा, मेहरम
कैसे बने अजनबी, हमदम
भूल जाओ जो तुम, भूल जाएँगे हम
ये जुनूँ ये प्यार के लमहे नम
कैसे कहें अलविदा, मेहरम
कैसे कहें....

गेसू रेशम, लब पर शबनम
वो बहकता सा दिल
वो दहकता सा तन
भूल जाओ जो तुम, भूल जाएँगे हम
ये जुनूँ ये प्यार के लमहे नम
कैसे कहें अलविदा, मेहरम
कैसे कहें

वो रातें वो सहर
वो सुकूँ के पहर
भूल जाएँगे हम, भूले क्यूँ हम मगर ?
जिए जाओ जो तुम, जी ही जाएँगे हम
यादों के ज़ख़्म पर जिंदगी मरहम


फिल्म ये साली ज़िंदगी में इस गीत को फिल्माया गया है इरफान खान और चित्रांगदा सिंह पर



गीत तो आप ने सुन लिया पर ये तो बताइए क्या इस गीत के संगीत में कहीं भी सितार का प्रयोग हुआ है?

गुरुवार, मार्च 19, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 रनर्स अप - कहने को जश्न-ऐ-बहारा है....

वार्षिक संगीतमाला का ये पिछले ढाई महिने का सफ़र तय कर के आ गए हैं हम वर्ष 2008 के दूसरे नंबर के गीत पर। और ये गीत है फिल्म जोधा अकबर से जिसके संगीत को आस चिट्ठे की साइडबार पर कराई गई वोटिंग में साल के सर्वश्रेष्ठ संगीत के लिए सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। जावेद अली का गाया, जावेद अख्तर का लिखा और अल्लाह रक्खा रहमान का संगीतबद्ध ये गीत संगीत, बोलों और गायिकी तीनों ही दृष्टिकोणों से ग़ज़ब का प्रभाव डालता है।


वैसे तो जावेद अख्तर साहब को इस साल का फिल्मफेयर एवार्ड इसी फिल्म के एक और खूबसूरत नग्मे इन लमहों के दामन के लिए मिला है पर इस गीत के बोल भी कमाल के हैं। इस गीत में उन्होंने अकबर और जोधा के बीच के प्रेम और शादी की परिस्थितियों से पैदा तनाव को उभारा है वो गीत की हर पंक्ति में सहज ही महसूस किया जा सकता है।

जिंदगी में मनचाहा हमसफ़र अगर साथ हो तो खुशियाँ कभी बेहद नज़दीक सी महसूस होती हैं। पर उन खुशियों को दिल तक पहुँचने के लिए अपने बीच की अहम की दीवार को गिराना पड़ता है। पूर्वाग्रह मुक्त होना पड़ता है। कई बार हम ये सब जानते बूझते भी अपने को इस दायरे से बाहर नहीं निकाल पाते। और फिर मन मायूसी के दौर से गुज़रने लगता है।

देखिए इन भावनाओं से गुँथे जावेद के शब्दों को जावेद अली ने किस खूबसूरती से अदा किया है और पीछे से रहमान का बहता निर्मल संगीत दिल को गीत में रमने में मजबूर कर देता है।

और अगर जावेद अली आपके लिए नए नाम हों तो उनके बारे में इसी साल की संगीतमाला की ये पोस्ट देखिए....



कहने को जश्न-ऐ-बहारा है
इश्क यह देख के हैरां है
फूल से खुशबू ख़फा ख़फा है गुलशन में
छुपा है कोई रंज फ़िज़ा की चिलमन में
सारे सहमे नज़ारें हैं
सोये सोये वक़्त के धारे हैं
और दिल में खोई खोई सी बातें हैं

कहने को जश्न-ऐ-बहारा है....
कैसे कहें क्या है सितम
सोचते हैं अब यह हम
कोई कैसे कहे वो हैं या नहीं हमारे
करते तो हैं साथ सफर
फासले हैं फिर भी मगर
जैसे मिलते नहीं किसी दरिया के दो किनारे
पास हैं फिर भी पास नहीं
हमको यह गम रास नहीं
शीशे की इक दीवार है जैसे दरमियां
सारे सहमे नज़ारें हैं.....

कहने को जश्न-ऐ-बहारा है....
हमने जो था नगमा सुना
दिल ने था उसको चुना
यह दास्तान हमें वक़्त ने कैसी सुनाई
हम जो अगर है गमगीन
वो भी उधर खुश तो नहीं
मुलाकातों में है जैसे घुल सी गई तन्हाई

मिल के भी हम मिलते नहीं
खिल के भी गुल खिलते नहीं
आँखों में है बहारें दिल में खिज़ा
सारे सहमे नज़ारे हैं
सोये सोये वक़्त के धारे हैं......


कहने को जश्न-ऐ-बहारा है....

और

 

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