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सोमवार, नवंबर 25, 2013

नी मै जाणा जोगी दे नाल : क्या आप भी इस जोगी के साथ नहीं जाना चाहेंगे ? 'Jogi' by Fariha Pervez

लोकगीतों में उस माटी की खुशबू होती है जिनमें वो पनप कर गाए और गुनगुनाए जाते हैं। पर भारत, पाकिस्तान, बाँग्लादेश की सांस्कृतिक विरासत ऐसी है कि हमारा संगीत आपस में यूँ घुल मिल जाता है कि उसे सुनते वक़्त भाषा और सरहदों की दीवारें आड़े नहीं आतीं। कुछ दिन पहले सूफी संत बुल्ले शाह का लिखा सूफ़ियत के रंग में रँगा ये पंजाबी लोकगीत नी मै जाणा जोगी दे नाल ... सुन रहा था और एक बार सुनते ही रिप्ले बटन दब गया और तब तक दबता रहा जब तक मन जोगीमय नहीं हो गया।


कोक स्टूडियो के छठे सत्र में इस गीत को अपनी आवाज़ से सँवारा है पाकिस्तानी गायिका फारिहा परवेज़ ने। टीवी पर सूत्रधार और धारावाहिकों में अभिनय करते हुए फारिहा ने 1995 में शास्त्रीय संगीत की विधिवत शिक्षा लेनी शुरु की। 1996 से लेकर आज तक उनके सात एलबम आ चुके हैं और बेहद मकबूल भी रहे हैं। फारिहा सज्जाद अली और आशा भोसले को अपना प्रेरणास्रोत मानती हैं।

नी मै जाणा जोगी दे नाल
कन्नी मुंदड़ा पाके, मत्थे तिलक लगा के
नी मै जाणा जोगी दे नाल

ऐ जोगी मेरे मन विच बसया, ऐ जोगी  मेरा जूड़ा कसया
सच आख्याँ मैं कसम कुराने, जोगी मेरा दीन ईमाने

जोगी मेरे नाल नाल, मैं जोगी दे नाल नाल
जोगी मेरे नाल नाल, मैं जोगी दे नाल नाल

जोगी दे नाल नाल, जोगी दे नाल नाल
कोई किस दे नाल, कोई किस दे नाल ते
मैं जोगी दे नाल नाल...

जदोंदी मैं जोगी दी होई, मैं विच मैं ना रह गई कोई
जोगी मेरे नाल नाल, मैं जोगी दे नाल नाल
सा मा गा मा गा रे गा रे गा सा...सा मा गा मा पा ....

नायिका कहती हैं मुझे तो अब अपने जोगी के साथ ही जाना है। कानों में बड़े से झुमके पहन और माथे पे तिलक लगा कर मैं अपने जोगी को रिझाऊँगी। और क्यूँ ना करूँ  मैं ऐसा ? आख़िर ये जोगी मेरे मन में जो बस गया है। मेरा जूड़ा मेरे जोगी ने ही बनाया है। सच, पवित्र कुरान की कसम खा कर कहती हूँ ये जोगी मेरा दीन-ईमान बन गया है। अब तो जोगी मेरे साथ है और मैं जोगी के साथ हूँ । वैसे इसमें विचित्र लगने वाली बात क्या है ? इस दुनिया में कोई किसी के साथ है तो कोई किसी और के साथ। मैंने जोगी को अपना सहचर मान लिया है और जबसे ऐसा हुआ है मेरा कुछ अपना अक़्स नहीं रहा।

जोगी नाल जाणा..जोगी नाल जाणा.. जोगी नाल जाणा.
नी मै जाणा जाणा जाणा , नी मै जाणा जोगी दे नाल

सिर पे टोपी ते नीयत खोटी, लैणा की टोपी सिर तर के ?
तस्बीह फिरी पर दिल ना फिरया, लैणा की तस्बीह हथ फड़ के ?
चिल्ले कीते पर रब ना मिलया, लैणा की चिलेयाँ विच वड़ के ?

बुल्लेया झाग बिना दुध नयीं कढ़दा, काम लाल होवे कढ़ कढ़ के
जोगी दे नाम नाल नाल, नी मै जाणा जोगी दे नाल
कन्नी मुंदड़ा पाके, मत्थे तिलक लगा के
नी मै जाणा जोगी दे नाल....

तुम्हें इस जोगन की भक्ति सही नहीं लगती ? तुम सर पर टोपी रखते हो पर दूसरों के प्रति तुम्हारे विचारों में शुद्धता नहीं है। फिर ऐसी टोपी किस काम की? तुम्हारे दोनों हाथ प्रार्थना के लिए उठे हुए हैं पर उसके शब्द दिल में नहीं उतर रहे। फिर ऐसी पूजा का अर्थ ही क्या है? तुम सारे रीति रिवाज़ों का नियमपूर्वक अनुसरण करते हो पर तुमने कभी भगवान को नहीं पाया। फिर ऐसे रीति रिवाज़ों का क्या फायदा ? इसीलिए बुल्ले शाह कहते है कि जैसे बिना जोरन के दूध से दही नहीं बनता वैसे ही बिना सच्ची भक्ति के भगवान नहीं मिलते। सो मैं तो चली अपने जोगी की शरण में..


नुसरत फतेह अली खाँ की इस कव्वाली को रोहेल हयात ने फाहिदा की आवाज़ का इस्तेमाल कर एक गीत की शक़्ल देनी चाही है जिसमें एक ओर तो सबर्यिन बैंड द्वारा पश्चिमी वाद्य यंत्रों (Trumpet, Saxophone, Violin etc.) से बजाई जाती हुई मधुर धुन है तो दूसरी ओर पंजाब की धरती में बने इस गीत की पहचान बनाता सामूहिक रूप से किया गया ढोल वादन भी है। मुअज्जम अली खाँ की दिलकश सरगम गीत की अदाएगी में निखार ले आती है। फाहिदा परवेज़ की गायिकी और कोरस जोगी की भक्ति में मुझे तो झूमने पर मजबूर कर देता है> देखें आप इस गीत से आनंदित हो पाते हैं या नहीं ?..
 

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