"..............इस प्रकार हम देखते हैं कि दूसरे महायुद्ध के बाद नई पीढ़ी के जो शायर बड़ी तेजी से उभरे और जिन्होंने उर्दू की ‘रोती-बिसूरती’ शायरी के सिर में अन्तिम कील ठोंकने, विश्व की प्रत्येक वस्तु को सामाजिक पृष्ठभूमि में देखने और उर्दू शायरी की नई डगर को अधिक-से-अधिक साफ, सुन्दर, प्रकाशमान बनाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, उनमें ‘क़तील’ शिफ़ाई का विशेष स्थान है। बल्कि संगीतधर्मी छंदों के चुनाव, चुस्त सम्मिश्रण और गुनगुनाते शब्दों के प्रयोग के कारण उसे शायरों के दल में से तुरन्त पहचाना जा सकता है।
समय, अनुभव और साहित्य की प्रगतिशील धारा से सम्बन्धित होने के बाद जिस परिणाम पर वह पहुँचा, उसकी आज की शायरी उसी की प्रतीक है। उसकी आज की शायरी समय के साज़ पर एक सुरीला राग है- वह राग, जिसमें प्रेम-पीड़ा, वंचना की कसक और क्रान्ति की पुकार, सभी कुछ विद्यमान है। उसकी आज की शायरी समाज, धर्म और राज्य के सुनहले कलशों पर मानवीय-बन्धुत्व के गायक का व्यंग्य है।......"
प्रकाश पंडित द्वारा क़तील शिफ़ाई के लिए कहे गए ये शब्द सही माएने में उनकी शायरी को सारगर्भित करते हैं।
आज क़तील शिफ़ाई की पुण्यतिथि है। आज से आठ साल पहले ये महान शायर इस दुनिया से कूच कर गया था। इसलिए इस अवसर पर ये प्रविष्टि पुनः प्रकाशित की गई है।
मोहब्बतों के इस शायर ने अपने लेखन में प्रेम के आलावा भी अन्य विषयों का समावेश किया। मिसाल के तौर पर उनकी इस ग़ज़ल पर गौर करें..
रक़्स1 करने का मिला हुक्म जो दरयाओं में
हम ने खुश हो के भँवर बाँध लिए पाँवों में
1. नृत्य
देखिए क्या खूब व्यंग्य किया है क़तील ने...
उन को भी है किसी भीगे हुए मंज़र की तलाश
बूँद तक बो ना सके जो कभी सहराओं में
ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम भी थके-हारे हो
धूप की तुम तो मिलावट ना करो छाँव में
पाकिस्तान में निरंतर बदलती राजनीतिक सत्ता परिवर्तन पर व्यंग्य करते हुए इस ग़ज़ल के अगले शेर में वो कहते हैं ...
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
बँट ना जाए तेरा बीमार मसीहाओं में
अब अगला जो शेर है वो आप तभी समझ पाएँगे जब आपको इस्लाम धर्म से जुड़ी इस कथा के बारे में आपको पता हो। मुझे ये जानकारी एक पुस्तक से मिली उसे ज्यों का त्यों आप तक पहुँचा रहा हूँ। तो जनाब यूसुफ़ हजरत याकूब के पुत्र थे जो परम सुंदर थे और जिन्हें उनके भाइयों ने ईर्ष्यावश बेच दिया था। आगे चल कर इन पर मिश्र की रानी जुलैख़ा आसक्त हो गईं थीं और वे मिश्र के राजा बन गए। उनकी और जुलैखा की कहानी को आम जिंदगी में मँहगाई की समस्या के साथ किस तरह पिरोया है क़तील ने ये देखें आप इस शेर में...
हौसला किसमें है युसुफ़ की ख़रीदारी का
अब तो मँहगाई के चर्चे है ज़ुलैख़ाओं में
और जब टीवी चैनल से लेकर पत्र पत्रिकाएँ सब आपके भाग्य की खुशहाली बयाँ कर रही हों और आपके दिन नागवार गुजर रहे हों तो ये शेर क्या आप नहीं कहना चाहेंगे..
जिस बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है
उस को दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में
वो ख़ुदा है किसी टूटे हुए दिल में होगा
मस्जिदों में उसे ढूँढो न कलीसाओं में
भारत और पाक के लोगों के बीच में दीवार खड़ी करने वाले शासक वर्ग के बारे में वो कहते हैं...
हम को आपस में मुहब्बत नहीं करने देते
इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में
और फिर वापस अपने रंग में लौटते हुए ये याद दिलाना भी नहीं भूलते :)..
मुझसे करते हैं "क़तील" इस लिये कुछ लोग हसद
क्यों मेरे शेर हैं मक़बूल हसीनाओं में
क्यूँ ना इस बेहतरीन ग़ज़ल को खुद क़तील की आवाज़ में सुना जाए...
११ जुलाई २००१ को क़तील इस दुनिया से कूच कर गए। अपने ८१ वर्षों के इस जीवन के सफ़र में उनके करीब बीस काव्य संग्रह छपे और करीब २५०० गीत हिंदी और पाकिस्तानी फिल्मों का हिस्सा बने। मोहब्बत के एहसास को पुरज़ोर ढंग से अपने काव्य में ढालने वाले इस शायर को हम सब कभी नहीं भुला पाएँगे। खुद क़तील ने कहा था..
‘क़तील’ अपनी ज़बाँ का़बू में रखना
सुख़न से आदमी पहचाना जाए
आज इस श्रृंखला के समापन पर क़तील शिफाई की एक गीतनुमा ग़ज़ल याद आ रही है जिसे गुनगुनाना मुझे बेहद पसंद है। दरअसल जिंदगी में पहली बार इंटरनेट का प्रयोग मैंने इसी ग़ज़ल को खोजने के लिए किया था। इसका मतला बेहद खूबसूरत है
प्यार तुम्हारा भूल तो जाऊँ, लेकिन प्यार तुम्हारा है
ये इक मीठा ज़हर सही, ये ज़हर भी आज गवारा है
यूँ तो इस ग़ज़ल को तलत अज़ीज साहब ने गाया है पर आज इसके कुछ अशआरों को झेलिए मेरी आवाज़ में :) !
आशा है क़तील शिफ़ाई के बारे में पाँच किश्तों की ये पेशकश आपको पसंद आई होगी...
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
समय, अनुभव और साहित्य की प्रगतिशील धारा से सम्बन्धित होने के बाद जिस परिणाम पर वह पहुँचा, उसकी आज की शायरी उसी की प्रतीक है। उसकी आज की शायरी समय के साज़ पर एक सुरीला राग है- वह राग, जिसमें प्रेम-पीड़ा, वंचना की कसक और क्रान्ति की पुकार, सभी कुछ विद्यमान है। उसकी आज की शायरी समाज, धर्म और राज्य के सुनहले कलशों पर मानवीय-बन्धुत्व के गायक का व्यंग्य है।......"
प्रकाश पंडित द्वारा क़तील शिफ़ाई के लिए कहे गए ये शब्द सही माएने में उनकी शायरी को सारगर्भित करते हैं।
आज क़तील शिफ़ाई की पुण्यतिथि है। आज से आठ साल पहले ये महान शायर इस दुनिया से कूच कर गया था। इसलिए इस अवसर पर ये प्रविष्टि पुनः प्रकाशित की गई है।
मोहब्बतों के इस शायर ने अपने लेखन में प्रेम के आलावा भी अन्य विषयों का समावेश किया। मिसाल के तौर पर उनकी इस ग़ज़ल पर गौर करें..
रक़्स1 करने का मिला हुक्म जो दरयाओं में
हम ने खुश हो के भँवर बाँध लिए पाँवों में
1. नृत्य
देखिए क्या खूब व्यंग्य किया है क़तील ने...
उन को भी है किसी भीगे हुए मंज़र की तलाश
बूँद तक बो ना सके जो कभी सहराओं में
ऐ मेरे हम-सफ़रों तुम भी थके-हारे हो
धूप की तुम तो मिलावट ना करो छाँव में
पाकिस्तान में निरंतर बदलती राजनीतिक सत्ता परिवर्तन पर व्यंग्य करते हुए इस ग़ज़ल के अगले शेर में वो कहते हैं ...
जो भी आता है बताता है नया कोई इलाज
बँट ना जाए तेरा बीमार मसीहाओं में
अब अगला जो शेर है वो आप तभी समझ पाएँगे जब आपको इस्लाम धर्म से जुड़ी इस कथा के बारे में आपको पता हो। मुझे ये जानकारी एक पुस्तक से मिली उसे ज्यों का त्यों आप तक पहुँचा रहा हूँ। तो जनाब यूसुफ़ हजरत याकूब के पुत्र थे जो परम सुंदर थे और जिन्हें उनके भाइयों ने ईर्ष्यावश बेच दिया था। आगे चल कर इन पर मिश्र की रानी जुलैख़ा आसक्त हो गईं थीं और वे मिश्र के राजा बन गए। उनकी और जुलैखा की कहानी को आम जिंदगी में मँहगाई की समस्या के साथ किस तरह पिरोया है क़तील ने ये देखें आप इस शेर में...
हौसला किसमें है युसुफ़ की ख़रीदारी का
अब तो मँहगाई के चर्चे है ज़ुलैख़ाओं में
और जब टीवी चैनल से लेकर पत्र पत्रिकाएँ सब आपके भाग्य की खुशहाली बयाँ कर रही हों और आपके दिन नागवार गुजर रहे हों तो ये शेर क्या आप नहीं कहना चाहेंगे..
जिस बरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है
उस को दफ़्नाओ मेरे हाथ की रेखाओं में
वो ख़ुदा है किसी टूटे हुए दिल में होगा
मस्जिदों में उसे ढूँढो न कलीसाओं में
भारत और पाक के लोगों के बीच में दीवार खड़ी करने वाले शासक वर्ग के बारे में वो कहते हैं...
हम को आपस में मुहब्बत नहीं करने देते
इक यही ऐब है इस शहर के दानाओं में
और फिर वापस अपने रंग में लौटते हुए ये याद दिलाना भी नहीं भूलते :)..
मुझसे करते हैं "क़तील" इस लिये कुछ लोग हसद
क्यों मेरे शेर हैं मक़बूल हसीनाओं में
क्यूँ ना इस बेहतरीन ग़ज़ल को खुद क़तील की आवाज़ में सुना जाए...
११ जुलाई २००१ को क़तील इस दुनिया से कूच कर गए। अपने ८१ वर्षों के इस जीवन के सफ़र में उनके करीब बीस काव्य संग्रह छपे और करीब २५०० गीत हिंदी और पाकिस्तानी फिल्मों का हिस्सा बने। मोहब्बत के एहसास को पुरज़ोर ढंग से अपने काव्य में ढालने वाले इस शायर को हम सब कभी नहीं भुला पाएँगे। खुद क़तील ने कहा था..
‘क़तील’ अपनी ज़बाँ का़बू में रखना
सुख़न से आदमी पहचाना जाए
आज इस श्रृंखला के समापन पर क़तील शिफाई की एक गीतनुमा ग़ज़ल याद आ रही है जिसे गुनगुनाना मुझे बेहद पसंद है। दरअसल जिंदगी में पहली बार इंटरनेट का प्रयोग मैंने इसी ग़ज़ल को खोजने के लिए किया था। इसका मतला बेहद खूबसूरत है
प्यार तुम्हारा भूल तो जाऊँ, लेकिन प्यार तुम्हारा है
ये इक मीठा ज़हर सही, ये ज़हर भी आज गवारा है
यूँ तो इस ग़ज़ल को तलत अज़ीज साहब ने गाया है पर आज इसके कुछ अशआरों को झेलिए मेरी आवाज़ में :) !
आशा है क़तील शिफ़ाई के बारे में पाँच किश्तों की ये पेशकश आपको पसंद आई होगी...
इस श्रृंखला की सारी कड़ियाँ
मोहब्बतों का शायर क़तील शिफ़ाई : भाग:१, भाग: २, भाग: ३, भाग: ४, भाग: ५
