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शनिवार, फ़रवरी 10, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 दिल झूम झूम जाए

2023 के बेहतरीन गीतों की इस वार्षिक संगीतमाला में अगला गीत है एक sequel से जो कि अंत अंत में आकर इस गीतमाला में शामिल हुआ है। ये गीत है फिल्म गदर 2 का।


आज से दो  दशक पहले जब फिल्म गदर रिलीज़ हुई थी तो फिल्म के साथ-साथ उसके संगीत में भी काफी धमाल किया था। उड़ जा काले कावां कह लीजिए या फिर मैं निकला गड्डी लेकर तो जबरदस्त हिट हुए ही थे, साथ ही साथ मुसाफ़िर जाने वाले और आन मिलो सजना ने तो दिल ही को छू लिया था। इस फिल्म के लिए उदित नारायण की गायकी को आज तक सराहा जाता है।

इसकी पुनरावृत्ति गदर दो में होनी तो मुश्किल ही थी फिर भी संगीतकार मिथुन ने एक ईमानदार कोशिश जरूर की। फिल्म के दो गीत तो  पुरानी फिल्म से ही ले लिए गए पर दो-तीन गीत और जोड़े गए और उनमें एक गीत ऐसा जरूर रहा जिसका मुखड़ा गुनगुनाना मुझे अच्छा लगता है। ये गीत है दिल झूम झूम जाए और इसके बोल लिखे हैं सईद क़ादरी साहब ने जो कि बतौर गीतकार तीन दशकों से सक्रिय हैं और मिथुन की संगीतबद्ध फिल्मों में अक्सर नज़र आते हैं। 

गीत का मुखड़ा कुछ यूं है

ये शोख़ ये शरारत, ये नफ़ासत नज़ाकत
बहुत खूबसूरत हो आप सर से पांव तक
दिल झूम झूम, दिल झूम झूम, दिल झूम झूम जाए
तुम्हें हूर हूर, तुम्हें हूर हूर, हां, हूर सा ये पाए
दिल झूम झूम, दिल झूम झूम, दिल झूमता ही जाए

अब अगर गीत रूमानी तबीयत का हो तो आज की तारीख़ में लगभग हर संगीतकार अरिजीत पर सबसे ज्यादा विश्वास  रखते हैं । इसमें तो कोई शक ही नहीं कि अरिजीत अच्छी धुनों को अपनी गायिकी से और कर्णप्रिय बना देते हैं। अब देखिए ये गीत आपको झुमा पता है या नहीं 


वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा

    बुधवार, फ़रवरी 03, 2021

    वार्षिक संगीतमाला 2020 : गीत # 13 : आप हमारी जान बन गए Jaan Ban Gaye

    एक महीने का सांगीतिक सफ़र जो हमें ले आया है वार्षिक संगीतमाला के पच्चीस गीतों की फेरहिस्त के ठीक मध्य में। गीतमाला के अगले दोनों गीत मेलोडी और रूमानियत से भरपूर हैं। गीतमाला की तेरहवीं सीढ़ी है पर है फिल्म ख़ुदाहाफिज़ का एक और गीत। ख़ुदाहाफिज़ फिल्म के इस गीत को लिखा और संगीतबद्ध किया है मिथुन शर्मा ने जो फिल्म उद्योग में सिर्फ मिथुन के नाम से जाने जाते हैं। मज़े की बाद ये  है कि इसे गाया भी एक संगीतकार ने ही है। जी हाँ, इस गीत की पीछे की आवाज़ है विशाल मिश्रा की जो अपनी संगीतबद्ध रचनाओं को पहले भी आवाज़ दे चुके हैं।

    पिछले साल उनका कबीर सिंह में गाया गीत तू इतना जरूरी कैसे हुआ खासा लोकप्रिय हुआ था। जहाँ तक एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं की बात है तो विशाल का फिल्म करीब करीब सिंगल का संगीतबद्ध गीत जाने दे साल 2017 का रनर्स अप गीत रह चुका है। वैसे आपको ताज्जुब होगा कि विशाल एक समय कानून के विद्यार्थी रहे हैं और उन्होंने संगीत सुन सुन के सीखा है। आज देखिए अपने हुनर को माँजते माँजते वो गाने के साथ ढेर सारे वाद्य यंत्र बजाने की महारत भी रखते हैं। विशाल ने इस गीत को गाया भी बहुत डूब के है और यही वज़ह है कि इस गीत में उनकी आवाज़ सीधे दिल में उतर जाती है। 

    इस गीत में विशाल का साथ दिया है असीस कौर ने जिनकी आवाज़ को पहले बोलना (Kapoor & Sons) और फिर पिछले साल वे माही (केसरी) में काफी सराहा गया था। पानीपत की इस कुड़ी ने गुरुबानी गा कर संगीत का ककहरा पढ़ा था जो बाद में गुरुओं की संगत में और निखरा। रियालटी शो उन्हें मायानगरी तक खींच लाया। उनकी आवाज़ की बनावट थोड़ी हट के है जो उनकी गायिकी को एक अलग पहचान देने में सफल रही है।

    मिथुन गिटार और तबले के नाममात्र संगीत संयोजन में भी शुरु से अंत तक धुन की मधुरता की बदौलत श्रोताओं को बाँधे रहते हैं। फिल्म में ये गीत नायक नायिका के पनपते प्रेम को दर्शाते इस गीत को उन्होंने बड़ी सहजता से अपनी लेखनी में बाँधा है।

    अहसास की जो ज़ुबान बन गए
    दिल में मेरे मेहमान बन गए
    आप की तारीफ़ में क्या कहें
    आप हमारी जान बन गए
    आप ही रब आप ईमान बन गए
    आप हमारी जान बन गए

    किस्मत से हमें आप हमदम मिल गए
    जैसे कि दुआ को अल्फाज़ मिल गए
    सोचा जो नहीं वो हासिल हो गया
    चाहूँ और क्या की खुदा दे अब मुझे

    रब से मिला एक अयान बन गए
    ख्वाबों का मेरे मुकाम बन गए
    आप की तारीफ़ में क्या कहें
    आप हमारी जान बन गए

    दीन है इलाही मेरा मान है माही
    मैं तो सजदा करूँ उनको
    अर्ज रुबाई मेरी फर्ज़ दवाई मेरी
    इश्क़ हुआ मुझको...जान बन गए

    तो आइए सुनते हैं इस मीठे मुलायम गीत को..



    वार्षिक संगीतमाला 2020


    रविवार, जनवरी 10, 2021

    वार्षिक संगीतमाला 2020 : गीत # 20 : तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक ... Aakhiri Kadam Tak

    वार्षिक संगीतमाला अब अपने दूसरे चरण यानी शुरु के बीस गानों के पड़ाव तक पहुँच चुकी है और इस पड़ाव से आगे का रास्ता दिखा रहे हैं सोनू निगम। सोनू निगम ज्यादा गाने आजकल तो नहीं गा रहे पर जो भी काम उन्हें मिल रहा है वो थोड़ा अलग कोटि का है। पियानो और की बोर्ड पर महारत रखने वाले संगीतकार मिथुन शर्मा को ही लीजिए। मेरी संगीतमाला में पिछले पन्द्रह सालों से उनके गीत बज रहे हैं पर ये पहला मौका है उनकी बनाई किसी धुन को सोनू निगम की आवाज़ का साथ मिल रहा है। 


    पिछले साल ये मौका आया फिल्म ख़ुदाहाफिज़ में। डिज़्नी हॉटस्टार पर रिलीज़ हुई इस फिल्म का संगीत भी हैप्पी हार्डी एंड हीर की तरह काफी प्रभावशाली रहा। इस फिल्म के तीन गाने इस गीतमाला  में शामिल होने की पंक्ति में थे पर इसी फिल्म का अरमान मलिक का गाया हुआ गाना मेरा इंतज़ार करना बड़े करीब से अंतिम पच्चीस की सूची के बाहर चला गया। 

    बहरहाल जहाँ तक इस गीत में सौनू और मिथुन की पहली बार बनती जोड़ी का सवाल है तो लाज़िमी सा प्रश्न बनता है कि आख़िर मिथुन को इतनी देर क्यूँ लगी सोनू को गवाने में ? मिथुन का मानना है कि सोनू निगम तकनीकी रूप से सबसे दक्ष गायक हैं। उनकी प्रतिभा से न्याय करने के लिए मिथुन को एक अच्छी धुन की तलाश थी जो  ख़ुदाहाफिज़ के गीत 'आख़िरी कदम तक' पर जाकर खत्म हुई। 

    मिथुन ने जब सोनू को इस गीत को गाने का प्रस्ताव दिया तो वो एक बार में ही सहर्ष तैयार हो गए। वैसे तो मिथुन के संगीतबद्ध ज्यादातर गीत सईद क़ादरी लिखते आए हैं पर इधर हाल फिलहाल में अपने गीतों को लिखना भी शुरु कर दिया है। शायद आशिकी 2 में उनके लिखे गीत क्यूँकि तुम ही हो की सफलता के बाद उन्हें अपनी लेखनी पर ज्यादा आत्मविश्वास आ गया हो। अब दिक्कत सिर्फ ये थी कि सोनू निगम लॉकडाउन में दुबई में डेरा डाले थे जबकि मिथुन मुंबई में। पर तकनीक के इस्तेमाल ने इन दूरियों को गीत की रिकार्डिंग में आड़े नहीं आने दिया। 

    ख़ुदाहाफिज़ एक ऐसे मध्यमवर्गीय युवा दम्पत्ति की कहानी है जो शादी के बाद देश में बेरोज़गार हो जाने पर विदेश में नौकरी कर करने का फैसला लेता है। कथा में नाटकीय मोड़ तब आता है जब नायिका परदेश में गुम हो जाती है। पर नायक हिम्मत नहीं हारता और अपने जी को और पक्का कर जुट जाता है अपनी माशूका की खोज में। उसे बताया जाता है कि उसका क़त्ल हो चुका है। साथ साथ जीवन और मरण का जो सपना नायक ने देख रखा था वो पल में चकनाचूर हो जाता है। अपनी पत्नी की अंतिम यात्रा में नायक के मन में उठते मनोभावों को मिथुन कुछ इस तरह शब्दों में ढालते हैं।

    नज़रों से करम तक 
    ईमां से धरम तक, हक़ीक़त से लेकर भरम तक 
    दुआ से असर तक, ये सारे सफ़र तक 
    फरिश्तों के रोशन शहर तक, आँसू से जशन तक 
    जन्मों से जनम तक, सेहरे को सजा के कफ़न तक 
    तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक
    ....

    ये रात काली ढल जाएगी 
    उल्फ़त की होगी फिर से सुबह 
    जिस देश आँसू ना दर्द पले 
    है वादा मैं तुझसे मिलुँगा वहाँ 
    ज़ख़्मों से मरहम तक, जुदा से मिलन तक 
    डोली में बिठा के दफ़न तक 
    तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक 
    तेरे संग हूँ आख़़िरी क़दम तक ...

    गीत की शुरुआती पंक्तियाँ वाकई बेहद संवेदनशील बन पड़ी हैं। शब्दों के अंदर बिखरे भावनाओं के सैलाब को सोनू निगम ने अपनी आवाज़ में इस तरह एकाकार किया कि नायक का दर्द सीधे दिल में महसूस होता है। सोनू की सशक्त आवाज़ के पीछे मिथुन ने नाममात्र  का संगीत संयोजन रखा है जो उनके प्रिय पियानो तो कभी गिटार के रूप में प्रकट होता है। अगर आप सोनू निगम की आवाज़ और गायिकी के प्रशंसक हैं तो ये गीत अवश्य पसंद करेंगे।


    वैसे सोनू निगम की आवाज़ से इस संगीतमाला में एक बार फिर आगे भी मुलाकात होगी हालांकि वो गीत बिल्कुल अलग मूड लिये हुए है।

    वार्षिक संगीतमाला 2020


    रविवार, जनवरी 18, 2015

    वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 17 : कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर Banjara..

    वार्षिक संगीतमाला में आज बारी है सत्रहवी पायदान के गीत की। ये गीत है फिल्म 'एक विलेन' का जो  साल 2014 के सफल एलबमों में से एक रहा है।  मोहित सूरी के निर्देशन में बनी ज्यादातर फिल्में संगीत के लिहाज़ से सफल रही हैं और इसकी एक बड़ी वज़ह है संगीतकार मिथुन शर्मा के साथ उनका बढ़िया तालमेल। इस आपसी समझ का ही कमाल था कि इस जोड़ी ने मौला मेरे मौला, तेरे बिन मैं यू कैसे जिया, वो लमहे वो रातें, तुम ही हो जैसे गीत दिए जो बेहद लोकप्रिय हुए। इस समझ के पीछे के राज के बारे में मिथुन कहते हैं

    "मोहित के साथ काम करने का मज़ा ये है कि वो आपको वक़्त देते हैं। गीत में संगीत कैसा होगा इसमें वो कभी दखल नहीं देते। वो फिल्म की परिस्थिति या चरित्र के बारे में इस तरह बताते हैं कि मन में एक भावनात्मक आवेश सा आ जाता है और वही धुन को विकसित करने में काम आता है। मोहित मुझसे यही कहते हैं कि जब तक धुन से तुम संतुष्ट नहीं हो जाते, तुम मेरे पास मत आओ और ना हीं मैं तुम्हें उसके बारे में पूछूँगा। उनके इस तरीके की वज़ह से ही शायद मैं उनके साथ अब तक अच्छा काम कर सका हूँ।"

    लक्ष्मीकांत प्यारेलाल की जोड़ी वाले प्यारेलाल से दो साल की शागिर्दी में  मिथुन को ये स्पष्ट हो गया था कि उन्हें आगे चलकर संगीत में ही मुकाम बनाना है। अगर मिथुन के पिछले साल के कुछ गीतों पर ध्यान दें तो वो सारे आपको एक ही विषय से जुड़े मिलेंगे और वो है रोमांस। मिथुन की इस बारे में बड़ी प्यारी सोच है। वे इस बारे में कहते हैं

    "रोमांस मुझे प्रेरणा देता है। मैं जब दो लोगों एक दूसरे के प्रेम में डूबा देखता हूँ, जब मैं उन्हें इस प्यार की वज़ह से ही लड़ते झगड़ते देखता हूँ या जब उन्हें अपनी पूरी ज़िंदगी इसी प्यार पर कुर्बान होते देखता हूँ तो मुझे लगता है कि ऐसा संगीत बनाऊँ जो इस जज़्बे को समर्पित हो।"


    एक ज़माना था जब मिथुन अपने गीत अक़्सर सईद क़ादरी साहब से लिखवाया करते थे पर आजकल वो अपने गीत वे ख़ुद ही लिखते हैं। मोहित सूरी ने नायक का जो चरित्र मिथुन के सामने रखा वो ही बंजारा का रूप लेकर इस गीत की शक्ल में आया। अमूल स्टार वॉयस आफ इंडिया और सा रे गा मा में प्रतिभागी रह चुके मोहम्मद इरफ़ान से उन्होंने ये गीत गवाया। इरफ़ान की गायिकी के बारे में दिल सँभल जा ज़रा फिर मोहब्बत करने चला है तू  की चर्चा करते वक़्त आपको पहले भी बता चुका हूँ। वे एक बेहद सुरीली आवाज़ के मालिक हैं और इस गीत में उनकी आवाज़ बोलों की तरह ही सुकूँ के कुछ पल मुहैया कराती है। 

    मिथुन के संगीत संयोजन में हमेशा पियानो का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है और इस गीत की शुरुआत में एक बार फिर उन्होंने अपने चहेते वाद्य यंत्र का सहारा लिया है।जैसे कोई किनारा देता हो सहारा ... के पहले के इंटरल्यूड में हारमोनियम का जो प्रयोग उन्होंने किया है उसे सुनकर दिल खुश हो जाता है।

    मिथुन के बोल सहज होते हैं पर मधुर धुन की चाशनी में वो हौले से दिल को सहला जरूर जाते हैं। तो आइए सुनते हैं ये गीत..




    जिसे ज़िन्दगी ढूँढ रही है, क्या ये वो मकाम मेरा है
    यहाँ चैन से बस रुक जाऊँ, क्यूँ दिल ये मुझे कहता है
    जज़्बात नये से मिले हैं, जाने क्या असर ये हुआ है
    इक आस मिली फिर मुझको, जो क़ुबूल किसी ने किया है

    किसी शायर की ग़ज़ल, जो दे रूह को सुकूँ के पल
    कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर
    नए मौसम की सहर, या सर्द में दोपहर
    कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर

    जैसे कोई किनारा, देता हो सहारा, मुझे वो मिला किसी मोड़ पर
    कोई रात का तारा, करता हो उजाला, वैसे ही रोशन करे वो शहर
    दर्द मेरे वो भुला ही गया. कुछ ऐसा असर हुआ
    जीना मुझे फिर से वो सिखा रहा, जैसे बारिश कर दे तर, या मरहम दर्द पर
    कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर...

    मुस्काता ये चेहरा, देता है जो पहरा, जाने छुपाता क्या दिल का समंदर
    औरों को तो हरदम साया देता है, वो धूप में है खड़ा खुद मगर
    चोट लगी है उसे फिर क्यूँ, महसूस मुझे हो रहा
    दिल तू बता दे क्या है इरादा तेरा, मैं परिंदा बेसबर, था उड़ा जो दरबदर
    कोई मुझको यूँ मिला है, जैसे बंजारे को घर...

    वैसे क्या कभी आपने मुस्काते चेहरों के पीछे छुपे दिल के समंदर को टटोलने की कोशिश की है? शायद ये गीत आपको ऐसे ही किसी शख़्स की याद दिला दे..

      वार्षिक संगीतमाला 2014

        सोमवार, जनवरी 20, 2014

        वार्षिक संगीतमाला 2013 पायदान संख्या 16 : क्यूँकि तुम ही हो, ज़िंदगी..अब तुम ही हो (Tum Hi Ho..)

        कुछ गीत ऐसे होते हैं जिन्हें संगीत के बिना भी सुना जाए तो वो लगभग वही असर छोड़ते हैं। पर ऐसे गीतों को दिल में उतरने में वक़्त लगता है। वार्षिक संगीतमाला की 16 वीं पायदान पर ऐसा ही एक गीत है। सच बताऊँ तो जब कुछ महिने पहले इस गीत को पहली बार सुना था तो गीत श्रवणीय होने के बावज़ूद मुझ पर उतना असर नहीं कर पाया था।  पर  जैसे जैसे इस गीत की लोकप्रियता बढ़ी मुझे इस गीत को कई बार सुनने का अवसर मिला और मैंने पाया कि सीधे सहज बोलों को गायक ने जिस गांभीर्य और प्रबलता से निभाया है और गीत के अंदर की जो मधुरता व दर्द है वो दिल में धीरे धीरे घर कर जाती है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ आशिक़ी 2 के गीत तुम ही हो की जिसे अपनी आवाज़ दी है उदीयमान गायक अरिजित सिंह ने और जिसकी धुन बनाई और लिखा है मिथुन ने



        पर पहले बात अरिजित की। अरिजित सिंह का नाम भले ही आशिक़ी 2 की सफलता के बाद चारों ओर लिया जा रहा है पर जहाँ तक एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं का सवाल है अरिजित के गाए दो गीतों साँवली सी रात हो..खामोशी का साथ हो और फैली थी स्याह रातें ने पिछले साल के प्रथम दस गीतों में अपनी जगह बनाई थी। अगर आपको याद हो तो सोनी टीवी में आज से आठ साल पहले यानि 2005 में फेम गुरुकुल नाम का रियालिटी शो प्रसारित हुआ था। अरिजित उस शो में छठे स्थान पर रहे थे पर उस कार्यक्रम ने इतना नाम तो दिया कि संगीत समारोहों में बंगाल के इस गायक को मौके मिलते रहे। पिछले सात सालों के संघर्ष के बाद इस गीत को जो लोकप्रियता मिली है उससे वो खुश जरूर हैं पर उन्हें मालूम है कि ये उनके सांगीतिक सफ़र का प्रारंभिक मोड़ ही है। आशिकी 2 के इस गीत से जुड़े अनुभवों के बारे में बताते हुए अरिजित कहते हैं

        "मैं इस गीत को गाते समय बिल्कुल नर्वस नहीं था क्यूँकि तब मुझे ये पता ही नहीं था कि ये गाने आशिक़ी के लिए प्रयुक्त होने हैं। मुझे ये गीत इसलिए पसंद है क्यूँकि इसमें मधुरता है। इसे और कोई भी गाता तो भी मुझे ये गीत पसंद आता। मुझे बड़ी खुशी है कि डान्स नंबर या फड़कता हुआ संगीत ना होते हुए भी ये गीत मशहूर हुआ। ये ऐसा सुरीला नग्मा है जिसे आप शांति से बैठकर सुनना चाहेंगे। रिकार्डिंग के समय मुझसे ये गीत पाँच से छः बार गवाया गया। कभी तो मुझे लगता था कि कितना करेंगे बहुत ज़्यादा हो रहा है। फिर मुकेश (मुकेश भट्ट) आ कर कहते ये अच्छा है पर और कोशिश करो बेहतर परिणाम आएँगे।"

        ख़ैर अरिजित की मेहनत के साथ इस गीत की सफलता में संगीतकार मिथुन शर्मा का भी कम योगदान नहीं है। संगीतज्ञ नरेश शर्मा के पुत्र मिथुन पिछले छः सात सालों से हिंदी फिल्म जगत में सक्रिय हैं। पर तेरे बिना मैं कैसे जिया (बस एक पल), ज़िंदगी ने ज़िंदगी भर गम दिए (दि ट्रेन) और दिल सँभल जा ज़रा फिर मोहब्बत करने चला है तू (मर्डर 2) मौला मेरे मौला मेरे (अनवर) जैसे लोकप्रिय गीतो् को संगीतबद्ध करने वाले मिथुन को खूब सारा काम करने की कोई जल्दी नहीं है। अगर आप ध्यान दें तो पाएँगे कि उनके गीतों में पियानो का इस्तेमाल बड़ी खूबसूरती से होता है। इस गीत की शुरुआत और इंटरल्यूड्स में पियानो और गीत के पार्श्व में गिटार की ध्वनि आपको गीत के साथ मिलेगी।

        अक्सर गीतकार सईद क़ादरी के साथ काम करने वाले मिथुन ने इस बार ख़ुद बोलों को लिखा भी है। उनका कहना है कि आशिक़ी दो में प्रेम के जिस स्वरूप का चारित्रिक निरूपण किया गया है ये गीत उसी की अभिव्यक्ति है। मुझे लगता है कि अगर मिथुन बोलों में थोड़ी और गहराई ला पाते तो ये गीत मेरी इस सूची में और ऊपर होता।तो आइए एक बार फिर सुनें इस गीत को..


        हम तेरे बिन अब रह नही सकते
        तेरे बिना क्या वजूद मेरा
        तुझ से जुदा अगर हो जायेंगे
        तो खुद से ही हो जायेंगे जुदा
        क्योंकि तुम ही हो, अब तुम ही हो
        ज़िंदगी, अब तुम ही हो
        चैन भी, मेरा दर्द भी
        मेरी आशिकी, अब तुम ही हो

        तेरा मेरा रिश्ता हैं कैसा
        इक पल दूर गवारा नही
        तेरे लिये हर रोज़ हैं जीते
        तुझको दिया मेरा वक़्त सभी
        कोई लम्हा मेरा ना हो तेरे बिना
        हर साँस पे नाम तेरा
        क्योंकि तुम ही हो

        तेरे लिये ही जिया मैं
        खुद को जो यूँ दे दिया हैं
        तेरी वफ़ा ने मुझको संभाला
        सारे ग़मों को दिल से निकाला
        तेरे साथ मेरा हैं नसीब जुड़ा
        तुझे पा के अधूरा ना रहा
        क्योंकि तुम ही हो

        वैसे अरिजित की आवाज़ से आगे भी मुलाकात होगी इस संगीतमाला में...:)

        गुरुवार, जनवरी 26, 2012

        वार्षिक संगीतमाला 2011 - पॉयदान संख्या 13 : दिल सँभल जा ज़रा, फिर मोहब्बत करने चला है तू...

        वार्षिक संगीतमाला की अगली तीन पॉयदानों की खासियत है कि उन पर विराजमान गीत न केवल बेहद सुरीले हैं पर रूमानियत के अहसास से लबरेज भी। ये गीत ऐसे हैं जिनकी धुन अगर आप एक बार भी सुन लें तो उसे गुनगुनाने के लोभ से आप अपने आप को शायद ही ज्यादा देर तक दूर रख पाएँ। इसी कड़ी में आज आपके सामने है युवा संगीतकार मिथुन शर्मा का संगीतबद्ध मर्डर 2 का ये नग्मा। 


        वार्षिक संगीतमालाओं में पहले भी तीन दफ़े शिरक़त करने वाले 26 वर्षीय मिथुन ने ग्यारह साल की उम्र से नामी संगीत संयोजक नरेंद्र शर्मा (जो उनके पिता भी हैं) से संगीत सीखना शुरु किया था। बाद में उन्होंने पियानो और की बोर्ड की भी शिक्षा ली। हिंदी फिल्मों की दुनिया में 'बस एक पल' से शुरुआत करने वाले मिथुन अनवर, दि ट्रेन. लमहा जैसी चर्चित फिल्मों में संगीतनिर्देशन कर चुके हैं। मर्डर 2 के इस गीत में मिथुन का साथ दिया है गीतकार सईद क़ादरी और युवा गायक मोहम्मद इरफ़ान ने।


        मिथुन के समव्यस्क हैदराबाद से ताल्लुक रखने वाले मोहम्मद इरफ़ान अली को भी कमल खान की तरह ही रियालटी शो की पैदाइश माना जा सकता है। वैसे तो इरफ़ान एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं पर अमूल स्टार वॉयस आफ इंडिया 2007 के प्रतिभागी के तौर पर उन्हें पहली बार संगीतप्रेमियों के बीच बतौर गायक की पहचान मिली। उस प्रतियोगिता में तो इरफ़ान सफ़ल नहीं हुए पर गायिकी की दुनिया में प्रवेश करने के लिए वे पूरी मेहनत के साथ लग गए।

        एक कार्यक्रम में एस पी बालासुब्रमणियम उनके गायन से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने वादा किया कि वे रहमान से उनकी गायिकी की चर्चा करेंगे। इरफ़ान बताते हैं कि इस कार्यक्रम के डेढ़ साल बाद एक दिन सचमुच रहमान साहब का फोन आ गया और इस तरह उनकी आवाज़ फिल्म रावण के चर्चित गीत बहने दे... का हिस्सा बन गई। इरफ़ान की आवाज़ की बनावट या texture बहुत कुछ आज के लोकप्रिय पाकिस्तानी गायकों से मिलता है। इस बात का अंदाजा आपको इस गीत को सुनने से मिल जाएगा।

        गीत की शुरुआत गिटार की मधुर धुन से होती है जिसमें मन रम रहा होता ही है कि इरफ़ान की आवाज़ गूँजती सी कानों में पड़ती है।

        जब जब तेरे पास मै आया इक सुकून मिला
        जिसे मैं था भूलता आया वो वज़ूद मिला
        जब आए मौसम ग़म के तुझे याद किया
        जब सहमे तनहापन से तुझे याद किया
        दिल सँभल जा ज़रा, फिर मोहब्बत करने चला है तू
        दिल यहीं रुक जा ज़रा, फिर मोहब्बत करने चला है तू


        मिथुन ने गिटार के संयोजन में गीत का मुखड़ा बड़ी खूबसूरती से रचा है और जब इरफ़ान गीत की पंच लाइन दिल सँभल जा ज़रा, फिर मोहब्बत करने चला है तू तक पहुँचते हैं, सँभला हुआ दिल भी गीत के आकर्षण में होश खो बैठता है। मिथुन के इंटरल्यूड्स शानदार हैं। अंतरों में सईद क़ादरी के बोल और बेहतर हो सकते थे पर मिथुन का संगीत और इरफ़ान की गायिकी इस कमी को महसूस होने नहीं देती। तो आइए सुनते हैं ये गीत जिसे फिल्माया गया है इमरान हाशमी पर..




        शुक्रवार, जनवरी 11, 2008

        वार्षिक संगीतमाला २००७ : पायदान २० - जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए, जितने भी मौसम दिए...सब नम दिए

        जैसे-जैसे वार्षिक संगीतमाला की ऊपर की पायदानों की ओर रास्ता खुल रहा है गीतों को क्रम देने की मशक्कत बढ़ती जा रही है। एक बार क्रम बना लेने के बाद मैं बार-बार उन गीतों को सुनता रहता हूँ और फिर लगता है कि नहीं, इस गीत को कुछ और ऊपर बजना चाहिए । इसी वज़ह से २० वीं पायदान के गीत ने पाँच पायदानों की छलाँग लगा कर रुख किया है १५ वीं पायदान का :)। और २० वीं पायदान पर सीधे विराज रहा है ये नया गीत।

        इस संगीतमाला में ये दूसरी बार ऍसा हुआ है कि किसी पायदान पर संगीतकार ही गायक का किरदार सँभाल रहे हैं। और मजे की बात ये है कि इस युवा संगीतकार का आज यानि ११ जनवरी को २२ वाँ जन्मदिन है.

        जी हाँ दोस्तों मैं बात कर रहा हूँ मिथुन शर्मा की जिन्होंने पहली बार मेरी २००६ की संगीतमाला के ५वें नंबर के गीत 'तेरे बिन मैं कैसे जिया....' के रूप में प्रवेश किया था और जिनके फिल्म अनवर के दो गीत 'मौला मेरे' और 'तो से नैना लागे सांवरे' २००६ की मेरी सूची में आते-आते रह गए थे। खैर मिथुन प्रतिभावान हैं इसमें तो कोई शक नहीं है पर ये प्रतिभा बहुत कुछ उन्हें खानदानी विरासत के रूप में मिली है। वे संगीतज्ञ नरेश शर्मा के पुत्र और प्यारेलाल (लक्ष्मीकांत प्यारेलाल वाले) के भतीजे हैं।

        बीसवीं पायदान पर जो गीत मैंने चुना है वो फिल्म 'दि ट्रेन' से है। मिथुन का गाने का अंदाज बहुत कुछ आतिफ असलम जैसा है और बहुधा लोग उनकी आवाज़ को सही नहीं पकड़ पाते हैं। पर २० वीं पायदान पर इस गीत के होने की वज़ह सईद कादरी के बोल भी हैं। गीत का ये अंतरा मुझे सबसे पसंद है

        जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए
        जितने भी मौसम दिए...सब नम दिए


        इक मुकम्मल कशमकश है जिंदगी
        उसने हमसे की कभी ना...दोस्ती

        जब मिली, मुझको आँसू के, वो तोहफे दे गई
        हँस सके हम, ऍसे मौके कम दिये


        जिंदगी ने जिंदगी भर गम दिए
        जितने भी मौसम दिए...सब नम दिए


        तो सुनिए २० वीं पायदान का ये गीत जो मौसम के नाम से भी जाना जाता है



        और हाँ चलते-चलते एक बात और इस गीतमाला के आगे के सारे गीतों में आप मनभावन गीत का टैग देखेंगे यानि ये ऍसे गीत हैं जिनका ना केवल संगीत पर उनके बोल भी मुझे दिल से छूते हैं।


        इस संगीतमाला के पिछले गीत

        शनिवार, फ़रवरी 17, 2007

        पायदान # 5 : तेरे बिन मैं यूँ कैसे जिया...

        पिछला हफ्ता कार्यालय के दौरों में बीता । नतीजा ये कि इस गीतमाला की गाड़ी वहीं की वहीं रुक गई । अब इससे पहले कि फिर बाहर निकलूँ अपनी गाड़ी को ५ वीं सीढ़ी तक पहुँचा ही देता हूँ। आज का ये गीत यहाँ इसलिए है क्योंकि इसे जिस अंदाज में गाया गया है वो अपनेआप में काबिले तारीफ है ।
        'बस एक पल' के इस गीत के असली हीरो आतिफ असलम हैं। स्कूल के दिनों में आतिफ पढ़ाई के बाद अपना सारा समय क्रिकेट के अभ्यास में लगाते थे। उनका ख्वाब था पाकिस्तान की टीम में एक तेज गेंदबाज की हैसियत से दाखिल होना । अपनी लगन से वो कॉलेज टीम में भी आ गए । कॉलेज के जमाने में ही दोस्तों के सामने ये राज खुला कि उनकी आवाज भी उनकी गेंदबाजी की तरह धारदार है । सो फिर क्या था दोस्तों ने उनका नाम एक संगीत प्रतियोगिता में डलवा दिया । फिर तो जो हुआ वो अब इतिहास है। उसके बाद काँलेज की हर संगीत प्रतियोगिता वो जीतते रहे ।
        फिर जल , आदत आदि एलबमों की सफलता के बाद वो संगीत से पूरी तरह जुड़ गए । फिर जहर के लोकप्रिय ट्रैक ने उन्हें भारत में भी प्रसिद्धि दिला दी । आतिफ की गायिकी में सबसे खास बात ये है कि ये ऊपर के सुर सहजता से लगा लेते हैं । सईद कादरी ने प्रेम और फिर विरह की भावना को केन्द्र बिन्दु रख कर ये गीत लिखा है और आतिफ ने अपनी आवाज द्वारा उस विरह वेदना को बखूबी उभारा है ।

        तेरे बिन मैं यूँ कैसे जिया
        कैसे जिया तेरे बिन
        लेकर याद तेरी, रातें मेरी कटीं
        मुझसे बातें तेरी करती है चाँदनी
        तनहा है तुझ बिन रातें मेरी
        दिन मेरे दिन के जैसे नहीं
        तनहा बदन, तनहा है रुह, नम मेरी आँखें रहें
        आजा मेरे अब रूबरू
        जीना नहीं बिन तेरे
        तेरे बिन ....

        कबसे आँखें मेरी, राह में तेरे बिछीं
        भूले से ही कहीं, तू मिल जाए कहीं
        भूले ना.., मुझसे बातें तेरी
        भींगी है हर पल आखें मेरी
        क्यूँ साँस लूँ, क्यूँ मैं जियूँ
        जीना बुरा सा लगे
        क्यूँ हो गया तू बेवफा, मुझको बता दे वजह
        तेरे बिन....

        मिथुन द्वारा संगीतबद्ध इस गीत को आप यहाँ और यहाँ सुन सकते हैं ।

        शनिवार, जनवरी 06, 2007

        गीत # 22 : तेरे प्यार में ऐसे जिए हम...

        22 वीं सीढ़ी पर चढ़ने के पहले मैं उन साथियों का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मेरे इस चिट्ठे पर अपने प्यार की मुहर लगाई है। आशा है आपका ये प्रेम इस चिट्ठे के प्रति आगे भी बना रहेगा । मैं पूरी कोशिश करूँगा कि आने वाले वक्त में भी अपने लेखन के जरिये आपके इस विश्वास पर खरा उतरूँ ।


        अब गीत की बात करूँ तो 22 वीं पायदान पर गाना वो जिसे गाया उस गायक ने जिन्हें लोग किशोर दा के initials से ज्यादा और 'कृष्ण कुमार मेनन' के नाम से कम जानते हैं । पिछले साल टी.वी. के पर्दे पर ये फेम गुरुकुल की जूरी पर भी नजर आए थे । अब तो आप समझ ही गए होंगे कि ये और कोई नहीं बल्कि 'केके' हैं । पहली बार केके के 'हम दिल दे चुके सनम के गीत' तड़प - तड़प के इस दिल से आह निकलती रही ...

        को जब सुना तभी इस गायक की काबिलियत पर भरोसा हो गया था । पर इन्हें अभी भी पर्याप्त मौके नहीं मिले हैं अपने हुनर को दिखाने के और मुझे तो इनसे बहुत उम्मीदें हैं आगे के लिए ।

        बस एक पल के इस गीत की धुन बनाई है 21 वर्षीय युवा संगीतकार मिथुन ने और बोल लिखे हैं अमिताभ वर्मा ने ! केके की गूँजती आवाज में ये पंक्तियाँ सुनिए.........

        सुना है मोहब्बत की तकदीर में, लिखे हैं अँधेरे घने
        तभी आज शायद सितारे सभी जरा सा ही रौशन हुए
        मेरे हाथ की इन लकीरों में लिखे अभी और कितने सितम
        खफा हो गई है खुशी, वक्त से हो रहे हैं मेहरबान गम


        तेरे प्यार में ऐसे जिए हम, जला है ये दिल
        ये आखें हुईं नम, बस एक पल...


         

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        स्पष्टीकरण

        इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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