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शुक्रवार, जनवरी 03, 2014

वार्षिक संगीतमाला 2013 पॉयदान संख्या 24 : सितारे भी जिनको ना दे सके पनाह...हमने कर दिया जिन्हें धुआँ...Dhuan

वार्षिक संगीतमाला 2013 की अगली सीढ़ी पर है एक बेहद संवेदनशील नग्मा जिसे लिखा निरंजन अयंगार ने धुन बनाई शंकर अहसान लॉए ने और आवाज़ दी राहुल राम व सिद्धार्थ महादेवन ने। 

इस गीत की व्यक्त भावनाएँ मुझे माखन लाल चतुर्वेदी की स्कूल में पढ़ी उस कविता की याद दिला देती हैं जिसमें चतुर्वेदी जी एक पुष्प की अभिलाषा को कुछ यूँ व्यक्त करते हैं।

मुझे तोड़ लेना वन माली 
उस पथ पर देना तुम फेंक 
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने 
जिस पथ जायें वीर अनेक

पर क्या इस अनुकरणीय सोच को हमारा समाज वास्तव में अपने मन में डाल पाया है?


ये गीत हमें अपने उन वीर जवानों की याद दिलाता है जो अपनी जान की परवाह किए बिना देश के बाहरी और भीतरी शत्रुओं से हमारी रक्षा करते हैं। जब ये जवान शहीद होते हैं तो सारा देश कुछ दिनों तक उनकी वीरता की गाथा गाता है और फिर कुछ दिनों बाद लोग उस शहीद की यादों को अपने दिमाग से निकाल देते हैं। निरंजन की कलम हमारी इसी प्रवृति पर इस गीत में कटाक्ष करती नज़र आती है।

शंकर एहसान लॉए ने इंडियन ओशन बैंड के गिटार वादक और मुख्य गायक राहुल राम की ज़ोरदार आवाज़ का गीत में बेहतरीन उपयोग किया है। इस गीत के अंतरों के बीच निरंजन ने गीत की सबसे मारक पंक्तियाँ लिखी हैं जिन्हें सुनकर मन में शर्मिंदगी का अहसास घर करने लगता है। सितारे भी जिनको ना दे सके पनाह...कहानी ये उनकी जिन्हें भूले दो जहाँ..हमने कर दिया जिन्हें धुआँ । संगीतकार त्रयी ने इन पंक्तियों को शंकर महादेवन के सुपुत्र सिद्धार्थ महादेवन से गवाया है। वैसे आपको ध्यान होगा कि बतौर गायक सिद्धार्थ ने इस साल भाग मिल्खा भाग में ज़िदा हैं तो प्याला पूरा भर ले को भी अपनी आवाज़ दी है।




जा रहा कहीं यादों का कारवाँ
मिट चुका यूँ हीं होने का हर निशाँ
क्यूँ भूली इन्हें ज़मीं क्यूँ भला ये आसमाँ
ना जाने ये खो गए कहाँ

रंग ख़्वाबों के जिनके खून से रँगे
रास्ते नए जुनून से बने
क्यूँ भूली इन्हें ज़मीं
क्यूँ भला ये आसमाँ
ना जाने ये खो गए कहाँ

सितारे भी जिनको ना दे सके पनाह
कहानी ये उनकी जिन्हें भूले दो जहाँ
हमने कर दिया जिन्हें धुआँ

माँगना नहीं बस देना है जिनकी जुबाँ
लूटकर जिन्हें हमनें बाँधा है ये समा
जो भूली इन्हें ज़मीं जो भूला ये आसमाँ
ना कहलाएँगे हम इंसान

सितारे भी जिनको ना दे सके पनाह
कहानी ये उनकी जिन्हें भूले दो जहाँ
हमने कर दिया जिन्हें धुआँ
क्यूँ हमने कर दिया उन्हें धुआँ ?.

ये गीत हमारे हृदय को झकझोरने और इस माटी के वीर सपूतों के बलिदान को उचित सम्मान देने के लिए कटिबद्ध करता है। तो आइए सुनें फिल्म डी डे के इस गीत को...

शुक्रवार, जनवरी 18, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 18 : ख़्वाहिशों का चेहरा क्यूँ धुंधला सा लगता है ?

वार्षिक संगीतमाला की 18 वीं पॉयदान पर इस गीतमाला में आखिरी बार अपनी उपस्थिति दर्ज करा रही है सलीम सुलेमान की जोड़ी। जोड़ी ब्रेकर और हीरोइन के अधिकांश गीतों में वो कोई नया कमाल नहीं दिखा सके। उनके कई गीतों में उनकी पुरानी धुनों की झलक भी मिलती रही। अगर हीरोइन का ये दूसरा गीत इस गीतमाला में दाखिला ले रहा है तो इसकी वज़ह सलीम सुलेमान का संगीत नहीं बल्कि गीतकार और पटकथा लेखक निरंजन अयंगार के बोल हैं।

फैशन या कुर्बान के गीतों को याद करें तो आपको पियानों पर  इन दोनों भाइयों की पकड़ का अंदाजा हो जाएगा।  हीरोइन फिल्म का ये गीत भी पियानों की मधुर धुन से शुरु होता है। पर जैसे ही पौने दो मिनटों बाद इंटरल्यूड में संगीत सॉफ्ट रॉक का स्वरूप ले लेता है गीत का आनंद आधा रह जाता है।

पर सलीम सुलेमान जहाँ चूकते हैं उसके बाद भी निरंजन अयंगार के शब्द अपनी मजबूती बनाए रखते हैं। एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं में शामिल होने वाला निरंजन का ये तीसरा गीत है। वार्षिक संगीतमाला 2010 में My Name is Khan के दो गीत सजदा.... और नूर ए ख़ुदा... शामिल हुए थे और तभी मैंने इस तमिल मूल के लेखक की गीतकार बनने की कहानी आपसे बाँटी थी। हीरोइन फिल्म के इस गीत में कमाल की काव्यात्मकता है।इसलिए गीत के बोल पढ़ते हुए भी गीतकार की लेखनी को दाद देने को जी चाहता है। अपनी तारीफ़ पर वो कुछ ऐसी प्रतिक्रिया देते हैं
मुझे अच्छा लगता है जब लोग मेरा काम सराहते हैं। पर एक मँजा हुआ गीतकार समझे जाने के लिए मुझे अभी ढेर सारा काम करना है। जब हम गुलज़ार साहब के कृतित्व पर टिप्पणी करते हैं तो हमारे ज़ेहन में उनका वर्षों से किया गया अच्छा काम रहता है। मैं अपनी एक सफलता से खुश नहीं होना चाहता और ना ही किसी एक विफलता से निराश।
निरंजन का ये गीत हमारी उस मानसिकता की पड़ताल करता है जो हमें अपनी इच्छाओ का दास बना देती है। एक चाह पूरी हुई कि दूसरी ने डेरा डाल दिया। उनको पूरा करने की सनक कब हमारी छोटी छोटी खुशियों , हमारे बने बनाए रिश्तों को डस लेती हैं इसका हमें पता ही नहीं चलता। इसलिए निरंजन गीत में कहते हैं

ख़्वाहिशों का चेहरा क्यूँ धुंधला सा लगता है
क्यूँ अनगिनत ख़्वाहिशें हैं
ख़्वाहिशों का पहरा क्यूँ, ठहरा सा लगता है
क्यूँ ये गलत ख़्वाहिशें हैं

हर मोड़ पर, फिर से मुड़ जाती हैं
खिलते हुए, पल में मुरझाती हैं
हैं बेशरम, फिर भी शर्माती हैं ख़्वाहिशें

ज़िंदगी को धीरे धीरे डसती हैं ख़्वाहिशें
आँसू को पीते पीते हँसती हैं ख़्वाहिशें
उलझी हुई कशमकश में उमर कट जाती है


निरंजन हमें आगाह करते हैं कि ख़्वाहिशों के इस भँवर में फँसे इंसान की नियति उसी भँवर में डूबने की होती है। खुशियों की चकाचौंध में आँखें मिचमिचाने से क्या ये अच्छा नहीं कि उसकी एक हल्की किरण की गुनगुनाहट का हम आनंद लें ?

आँखें मिच जाएँ जो उजालों में
किस काम की ऐसी रोशनी
भटका के ना लाए जो किनारों पे
किस काम की ऐसी कश्ती

आँधी है, धीरे से हिलाती है
वादा कर धोखा दे जाती है
मुँह फेर के, हँस के चिढ़ाती हैं ख़्वाहिशें

ज़िंदगी को धीरे धीरे डसती हैं ख़्वाहिशें


इस गीत को  गाया है श्रेया घोषाल ने। इस में कोई दो राय नहीं कि नीचे और ऊँचे सुरों में भी वो गीत के शब्दों की गरिमा के साथ पूरी तरह न्याय करती हैं। तो आइए श्रेया की आवाज़ के साथ डूबते हैं हम ख़्वाहिशों के इस समर में...

गुरुवार, मार्च 10, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : सजदा तेरा सजदा, दिन रैन करूँ .ना ही चैन करूँ..

वार्षिक संगीतमाला का सरताज बिगुल बजने में अब सिर्फ दो पॉयदानों की दूरी है। यानि आज है तीसरी पॉयदान की बारी। गीतमाला की इस सीढ़ी पर जो गीत है उसकी खास बात ये है कि ये गीतकार का रचा पहला गीत है। गीतकार वही जो नूर ए ख़ुदा के साथ आपसे बीसवीं पॉयदान पर मुख़ातिब हुए थे। जी हाँ फिल्म My Name Is Khan का लिखा गीत सज़दा निरंजन अयंगार का बतौर गीतकार रचा पहला गीत है।

निरंजन के कच्चे गीतों से पक्के गीतकार बनने का वाक़या मैं आपसे पहले ही बाँट चुका हूँ। संगीतकार शंकर अहसान लॉए ने फिल्म की पटकथा के हिसाब से एक ऐसे गीत की दरकार थी जिसमें प्रेम के साथ सूफ़ियत का रंग भी हो और जिसकी शुरुआत सज़दा जैसे शब्द से हो। निरंजन को इसी आधार पर एक कच्चे गीत को लिखने का काम सौंपा गया। निरंजन ने जो गीत रचा उसे जब करण ज़ौहर घर ले के गए तो गीत के बोल सुन कर उनकी माँ ने पूछा क्या इसे जावेद साहब ने लिखा है? बाद में करण और शंकर एकमत हुए कि जो गीत निरंजन ने लिखा है वो ही फिल्म में जाएगा।

पर क्या आपके मन में ये प्रश्न नहीं आ रहा कि एक तमिल होते हुए भी निरंजन अयंगार ने अपने पहले कुछ गीतों में ही सूफ़ियत का इतना प्यारा रंग कैसे डाल दिया? दरअसल निरंजन को सूफ़ी और उर्दू कवियों की रचनाएँ शुरु से भाती रही हैं और वे बुल्ले शाह, गुलाम फ़रीद, ज़िगर मुरादाबादी और अहमद फ़राज़ जैसे शायरों को निरंतर पढ़ते रहे हैं।

सज़दा एक ऍसा गीत है जिसका संगीत संयोजन और गायिकी अव्वल दर्जे की है। गीत शुरु होता है ॠचा शर्मा के गहरे स्वर में। ॠचा प्रेम में अपने रोम रोम डूब जाने की बात खत्म करती ही हैं कि राहत अपनी रुहानी आवाज़ में सज़दा शब्द को इस तरह उठाते हैं कि दिल वाह वाह कर उठता है। पर जब इन गायकों के सुरीले स्वर के बाद कोरस उभरता है ये गीत एक अलग ही धरातल पर पहुँच जाता है और क्या आम क्या खास सभी संगीतप्रेमी इसे गुनगुनाने नज़र आते हैं।

शंकर अहसान लॉए ने इंटरल्यूड्स में सिंथेसाइजर और तबले के संयोजन से जो धुन निकाली है वो सहज ही आपका ध्या

न खींचती है। शंकर इस गीत के बारे में कहते हैं कि एक सहज गीत को संगीतबद्ध करना मुश्किल होता है। खासकर तब जब वो दिल को छूते वो एक सही और प्यारी सी बात भी कहता चले। पर इस मुश्किल काम को निभाने में शंकर अहसान लॉए की जोड़ी सफल रही है।

आइए सुनें ये नग्मा जो प्रेम की बात को एक आध्यात्मिक रंग देता हुआ चला जाता है...



रोम रोम तेरा नाम पुकारे
एक हुए दिन रैन हमारे
हम से हम ही छिन गए हैं
जब से देखे नैन तिहारे
सजदा ….

तेरी काली अँखियों से ज़िंद मेरी जागे
धड़कन से तेज दौडूँ, सपनों से आगे
अब जान लुट जाए, ये ज़हाँ छूट जाए
संग प्यार रहे, मैं रहूँ ना रहूँ

सजदा तेरा सजदा, दिन रैन करूँ .ना ही चैन करूँ
सजदा तेरा सजदा, लख बार करूँ मेरी जान करूँ

अब जान ....सजदा तेरा सजदा....

रांझणा.. नैनो के तीर चल गए..
साजना.. साँसों से दिल सिल गए…
पलकों में छुपा लूँ, तेरा सजदा करूँ
सीने में समा लूँ, दिन रैन करूँ
पलकों में छुपा लूँ, सीने में समा लूँ
तेरे अंग अंग रंग मेरा बोले
अब जान ....सजदा तेरा सजदा....

बेलिया…क्या हुआ जो दिल खो गया
माहिया.. इश्क़ में ख़ुदा मिल गया
जरा अँख से पिला दे..तेरा सजदा करूँ
जरा ख़्वाब सजा दे..ओ दिन रैन करूँ
अब जान ....सजदा तेरा सजदा....
तेरी काली ... ना रहूँ
सजदा तेरा सजदा.....

वैसे इस गीत के दौरान शाहरुख और काजोल की शादी को फिल्माया जाना था। शूटिंग स्थल था कॉलेज आफ फाइन आर्टस कैलीफोर्निया। पर शादी के लिए सजावट के लिए रंग बिरंगे कपड़े से पंडाल सजाना था। पर शूटिंग के दौरान हवा इतनी तेज हो गई कि शादी को एक बड़े पेड़ के नीचे शूट करना पड़ा।

शनिवार, जनवरी 22, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 - पॉयदान संख्या 20 : नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा तू कहाँ छुपा है हमें ये बता...

वार्षिक संगीतमाला 2010 में बचे हैं अब बीस और नग्मे और बीसवीं पॉयदान पर है सूफ़ियत की रंग में रँगा वो गीत जिससे ख़ुदा का नूर टपक रहा है। हिंदी फिल्म संगीत में दक्षिण भारत के संगीतकार तो रह रह कर अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराते रहे हैं पर दक्षिण भारतीय गीतकारों की उपस्थिति ना के बराबर ही रही है। इसलिए जब मैंने इस सूफ़ी गीत के गीतकार के रूप में एक तमिल का नाम देखा तो मन आश्चर्य मिश्रित हर्ष से भर उठा। जिस तरह 21 वीं पॉयदान पर आप मिले थे एक नए संगीतकार आर अनध से उसी तरह बीसवीं पॉयदान पर स्वागत कीजिए इस नए गीतकार 'निरंजन अयंगार' का।

गीतकार की हैसियत से निरंजन का मुंबई की फिल्मी दुनिया में सफ़र जयदीप साहनी से मिलता जुलता रहा है। गीतकार से ज्यादा आज भी वे संवाद लेखक के रूप में जाने जाते हैं। करण ज़ौहर की फिल्मों 'कभी अलविदा ना कहना' और 'कल हो ना हो' के संवाद लेखन से जुड़े रहने की वज़ह से उन्हें फिल्म के लिए किए जाने वाले संगीत सत्रों का हिस्सा बनना पड़ा। इन संगीत सत्रों के दौरान निरंजन की उपस्थिति का फ़ायदा उनके मौके पर लिखे गए कच्चे गीतों (जिसे बॉलीवुड की चालू जबान में डमी लिरिक्स कहा जाता है) से लिया जाता रहा। अंततः तो इन फिल्मों में गीतों को पक्का करने का काम जावेद साहब को ही दिया गया।

पर जब माई नेम इज खान (My Name is Khan) में यही प्रक्रिया दोहराई गई तो निरंजन के लिखे ये कच्चे गीत करण जौहर को इतने अच्छे लगे कि वे बिना किसी ज्यादा बदलाव के फिल्म का हिस्सा बन गए।
लगभग ऐसा ही वाक़या फिल्म कुर्बान की संगीत रचना के समय भी हुआ और ये संवाद लेखक एक गीतकार भी बन गया। पर अपना पहला गीत उन्होंने माई नेम इज खान के लिए ही लिखा। वो गीत तो इस गीतमाला के प्रथम दस गीतों के साथ बजेगा और उस गीत की चर्चा के समय निरंजन के बारे में कुछ और बातें आपसी बाँटी जाएँगी।


आज इस पॉयदान पर उसी फिल्म का एक दूसरा गीत है 'नूर ए ख़ुदा...'. जिसे गाया है शंकर महादेवन,अदनान सामी और श्रेया घोषाल की तिकड़ी ने। निरंजन जब इस दुनिया के लाचार और बेबस लोगों की तरफ से भगवान से फ़रियाद करते हैं तो बात सीधे दिल पर लगती है।

उजड़े से लमहों को आस तेरी, ज़ख़्मी दिलों को है प्यास तेरी
हर धड़कन को तलाश तेरी, तेरा मिलता नहीं है पता
खाली आँखें खुद से सवाल करें, अमन की चीख बेहाल करें,
बहता लहू फ़रियाद करें, तेरा मिटता चला है निशाँ,

शंकर महादेवन की गायिकी की बुलंदियाँ से तो सभी संगीत प्रेमी भली भांति परिचित हैं ही पर अदनान और श्रेया ने भी अपना हिस्सा ठीक ठाक ही निभाया है। पर मुझे इस गीत का सबसे मजबूत पहलू लगता है गीत के अंतरों के बीच आता नूर ए ख़ुदा का कोरस जिसे दोहराकर आप अपने आप को ऊपरवाले से कुछ और करीब पाते हैं। पूरे गीत में शंकर अहसान लॉय का संगीत लफ़्जों के पीछे ही रहता है ताकि उनसे निकलती भावनाएँ की वज़ह से संगीत से श्रोताओं तक पहुंचने के पहले भटक ना जाएँ।

तो आइए इस गीत के माध्यम से याद करें उस ख़ुदा को जो पास रहकर भी जीवन के कठिन क्षणों में दूर जाता सा प्रतीत हो रहा है...

नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा ...

अजनबी मोड़ है,खौफ़ हर और है
हर नज़र पे धुआँ छा गया
पल भर में जाने क्या खो गया ?
आसमां ज़र्द है, आहें भी सर्द है,
तन से साया जुदा हो गया
पल भर में जाने क्या खो गया ?

साँस रुक सी गयी, जिस्म छिल सा गया
टूटे ख्वाबों के मंज़र पे तेरा ज़हाँ चल दिया

नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा ...
तू कहाँ छुपा है हमें ये बता
नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा ...
यूँ ना हमसे नज़रें फिरा.
नूर ए ख़ुदा ...

नज़र-ए-करम फ़रमा ही दे, दीनों-धरम को जगा ही दे
जलती हुई तन्हाइयाँ, रूठी हुई परछाइयाँ
कैसी उडी ये हवा, छाया ये कैसा समां
रूह जम सी गई, वक़्त थम सा गया
टूटे ख्वाबों के मंज़र ...नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा ...

उजड़े से लमहों को आस तेरी, ज़ख़्मी दिलों को है प्यास तेरी
हर धड़कन को तलाश तेरी, तेरा मिलता नहीं है पता
खाली आँखें खुद से सवाल करें, अमन की चीख बेहाल करें,
बहता लहू फ़रियाद करें, तेरा मिटता चला है निशाँ,
रूह जम सी गई,वक़्त थम सा गया
टूटे ख्वाबों के मंज़र ...नूर ए ख़ुदा नूर ए ख़ुदा ...

 

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