दुख फसाना नहीं की तुझसे कहूँ
दिल भी माना नहीं की तुझसे कहूँ
आज तक अपनी बेकली का सबब
खुद भी जाना नहीं की तुझसे कहूँ
दहेज के लोभी अपनी नहीं तो किसी और की बिटिया को क्यूँ जलाते ?
शिक्षा के मंदिर / आश्रमों में भी पढ़ाई की आड़ में यौन शोषण की जुर्रत कोई कैसे करता ?
बलात्कर जैसे घिनौने अपराध के दोषी भी सीना तान के बिना किसी शर्मिन्दगी के न्यायालय में जाते और बेदाग छूट कर कैसे आते ?
रिचा शर्मा की आवाज में जब भी ये गीत सुनता हूँ ,ये सारे प्रश्न दिलो दिमाग को सोचने पर मजबूर करते हैं ....
ये गीत इसलिए भी मेरी पहली पायदान का गीत है क्यूँकि इस गीत को सुनने के बाद ये जज्बा मजबूत होता है कि जो हो चुका उसे तो नहीं बदल सकते पर आने वाले कल में कुछ तो करें जिससे किसी कि बेटी इस गीत की व्यथा से न गुजरे ।
जावेद साहब ने इस गीत में एक बिटिया के दर्द को अपनी लेखनी के जादू से इस कदर उभारा है कि इसे सुनने के बाद आँखें नम हुये बिना नहीं रह पातीं । ऋचा जी की गहरी आवाज , अवधी जुबान पर उनकी मजबूत पकड़ और पार्श्व में अनु मलिक का शांत बहता संगीत आपको अवध की उन गलियों में खींचता ले जाता है ।गीत,संगीत और गायिकी के इस बेहतरीन संगम को शायद ही कोई संगीतप्रेमी सुनने से वंचित रहना चाहेगा।
अब जो किये हो दाता, ऐसा ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो ऽऽऽऽ
जो अब किये हो दाता, ऐसा ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो
हमरे सजनवा हमरा दिल ऐसा तोड़िन
उ घर बसाइन हमका रस्ता मा छोड़िन
जैसे कि लल्ला कोई खिलौना जो पावे
दुइ चार दिन तो खेले फिर भूल जावे
रो भी ना पावे ऐसी गुड़िया ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो
जो अब किये हो दाता, ऐसा ना कीजो...
ऐसी बिदाई बोलो देखी कहीं है
मैया ना बाबुल भैया कौनो नहीं है
होऽऽ आँसू के गहने हैं और दुख की है डोली
बन्द किवड़िया मोरे घर की ये बोली
इस ओर सपनों में भी आया ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो
जो अब किये हो दाता, ऐसा ना कीजो...
दिल भी माना नहीं की तुझसे कहूँ
आज तक अपनी बेकली का सबब
खुद भी जाना नहीं की तुझसे कहूँ
अहमद फराज
ये दुख भी अजीब सी चीज है । एक बार अंदर पलने लगे तो जी घुटता सा रहता है। इच्छा भी नहीं होती कि किसी को कहें। पर दिल की चारदीवारी के अंदर कोई भी बाँध कितना भी ऊँचा क्यूँ ना बनाएँ,...एक दिन तो वो बाँध भरेगा ही और उससे बह कर निकलने वाली पीड़ा दूसरों को भी दर्द में डुबायेगी ही । मेरी इस संगीत श्रृंखला के शिखर पर विराजमान इस गीत में कुछ ऐसी ही पीड़ा अन्तरनिहित है जो गीत के प्रवाह के साथ मन में रिसती हुई नक्श सी हो जाती है ।
आखिर उमराव जान 'अदा' की अमीरन ने उस बाँध के टूट जाने के बाद ही तो ऐसा कहा होगा ।
ये दुख भी अजीब सी चीज है । एक बार अंदर पलने लगे तो जी घुटता सा रहता है। इच्छा भी नहीं होती कि किसी को कहें। पर दिल की चारदीवारी के अंदर कोई भी बाँध कितना भी ऊँचा क्यूँ ना बनाएँ,...एक दिन तो वो बाँध भरेगा ही और उससे बह कर निकलने वाली पीड़ा दूसरों को भी दर्द में डुबायेगी ही । मेरी इस संगीत श्रृंखला के शिखर पर विराजमान इस गीत में कुछ ऐसी ही पीड़ा अन्तरनिहित है जो गीत के प्रवाह के साथ मन में रिसती हुई नक्श सी हो जाती है ।
आखिर उमराव जान 'अदा' की अमीरन ने उस बाँध के टूट जाने के बाद ही तो ऐसा कहा होगा ।
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो....
तनिक अमीरन को क्षण भर के किए पीछे कर अपने चारों ओर के हालातों पर नजर दौड़ायें तो पाते हैं कि अभी भी हमारे समाज का एक वर्ग लड़की के रूप में जन्म लेने को एक अभिशप्त जिंदगी की शुरुआत मानता है ।
तनिक अमीरन को क्षण भर के किए पीछे कर अपने चारों ओर के हालातों पर नजर दौड़ायें तो पाते हैं कि अभी भी हमारे समाज का एक वर्ग लड़की के रूप में जन्म लेने को एक अभिशप्त जिंदगी की शुरुआत मानता है ।
अगर ऐसा नहीं होता तो पंजाब जैसे समृद्ध और अपेक्षाकृत विकसित राज्य में मादा भ्रूण हत्याएँ इतनी ज्यादा क्यूँ कर होतीं ?
दहेज के लोभी अपनी नहीं तो किसी और की बिटिया को क्यूँ जलाते ?
शिक्षा के मंदिर / आश्रमों में भी पढ़ाई की आड़ में यौन शोषण की जुर्रत कोई कैसे करता ?
बलात्कर जैसे घिनौने अपराध के दोषी भी सीना तान के बिना किसी शर्मिन्दगी के न्यायालय में जाते और बेदाग छूट कर कैसे आते ?
रोज-रोज ऐसा देखते हुए भी हमारा समाज चेतनाशून्य सा क्यूँ बना रहता है ?.
सच तो ये है कि मस्तिष्क के किसी कोने में हमारी सोच नहीं बदली है ।

ये गीत इसलिए भी मेरी पहली पायदान का गीत है क्यूँकि इस गीत को सुनने के बाद ये जज्बा मजबूत होता है कि जो हो चुका उसे तो नहीं बदल सकते पर आने वाले कल में कुछ तो करें जिससे किसी कि बेटी इस गीत की व्यथा से न गुजरे ।
जावेद साहब ने इस गीत में एक बिटिया के दर्द को अपनी लेखनी के जादू से इस कदर उभारा है कि इसे सुनने के बाद आँखें नम हुये बिना नहीं रह पातीं । ऋचा जी की गहरी आवाज , अवधी जुबान पर उनकी मजबूत पकड़ और पार्श्व में अनु मलिक का शांत बहता संगीत आपको अवध की उन गलियों में खींचता ले जाता है ।गीत,संगीत और गायिकी के इस बेहतरीन संगम को शायद ही कोई संगीतप्रेमी सुनने से वंचित रहना चाहेगा।
अब जो किये हो दाता, ऐसा ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो ऽऽऽऽ
जो अब किये हो दाता, ऐसा ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो
हमरे सजनवा हमरा दिल ऐसा तोड़िन
उ घर बसाइन हमका रस्ता मा छोड़िन
जैसे कि लल्ला कोई खिलौना जो पावे
दुइ चार दिन तो खेले फिर भूल जावे
रो भी ना पावे ऐसी गुड़िया ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो
जो अब किये हो दाता, ऐसा ना कीजो...
ऐसी बिदाई बोलो देखी कहीं है
मैया ना बाबुल भैया कौनो नहीं है
होऽऽ आँसू के गहने हैं और दुख की है डोली
बन्द किवड़िया मोरे घर की ये बोली
इस ओर सपनों में भी आया ना कीजो
अगले जनम मोहे बिटिया ना कीजो
जो अब किये हो दाता, ऐसा ना कीजो...
