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सोमवार, फ़रवरी 23, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 4 : शीशे का समंदर, पानी की दीवारें. Sheeshe ka Samundar !

वार्षिक संगीतमाला की चौथी पायदान पर एक ऐसा गीत है जिसे शायद ही आपमें से ज्यादातर लोगों ने पहले सुना हो। बड़े बजट की फिल्मों के आने के पहले शोर भी ज़रा ज्यादा होता है। प्रोमो भी इतनी चतुराई से किये जाते हैं कि पहले उसके संगीत और बाद में फिल्मों के प्रति उत्सुकता बढ़ जाती है। पर छोटे बजट की फिल्मों को ये सुविधा उपलब्ध नहीं होती। फिल्म रिलीज़ होने एक दो हफ्ते पहले एक दो गीत दिखने को मिलते हैं। फिल्म अगर पहले हफ्ते से दूसरे हफ्ते में गई तो बाकी गीतों का नंबर आता हैं नहीं तो बेचारे बिना बजे और सुने निकल जाते हैं।  पर इतना सब होते हुए भी हीमेश रेशमिया की अभिनीत और संगीतबद्ध फिल्म Xpose पहले हफ्ते में इतना जरूर चल गई कि अपना खर्च निकाल सके। फिल्म की इस आंशिक सफलता में इसके कर्णप्रिय संगीत का भी बड़ा हाथ था।


हीमेश रेशमिया की गणना मैं एक अच्छे संगीतकार के रूप में करता हूँ जो  गायिकी के लिहाज़ से एक औसत गायक हैं और आजकल धीरे धीरे अभिनय के क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने में जुटे हैं। एक वो भी दौर था कि लोग उनकी गायिकी की Nasal tone के इस क़दर दीवाने थे कि उनका हर एलबम और यहाँ तक की पहली फिल्म आप का सुरूर खूब चली थी। पर वक़्त ने करवट ली। अगली फिल्मों में उन्हें विफलता का मुख देखना पड़ा। दो साल उन्होंने फिर इंडस्ट्री को अपनी शक़्ल नहीं दिखाई। पर इस अज्ञातवास में भी वो अपनी धुनों पर काम करते हुए हर दिन लगभग एक रचना वो संगीतबद्ध करते रहे। Xpose के इस गीत में उनकी मेहनत रंग लाई दिखती है।

हीमेश ने फिल्म के एलबम में इस गीत के दो वर्सन डाले हैं। एक जिसे अंकित तिवारी ने गाया है और दूसरा जिसे रेखा भारद्वाज जी ने आपनी आवाज़ दी है। हीमेश के साथ रेखा जी का ये पहला गीत नहीं हैं। आपको अगर याद हो तो पाँच साल पहले भी हीमेश ने उनसे अपनी फिल्म रेडियो का गीत पिया जैसे लड्डू मोतीचूर वाले भी गवाया था। रेखा जी की गायिकी का तो मैं पहले से ही मुरीद हूँ और इस गीत में तो मानो उन्होंने बोलों से निकलता सारा दर्द ही अपनी आवाज़ में उड़ेल दिया है।

बुजुर्ग ऐसे नहीं कह गए हैं कि प्रेम आदमी को निकम्मा कर के छोड़ देता है। सोते जागते उठते बैठते दिलो दिमाग पर बस एक ही फितूर सवार रहता है। उसकी यादें, उसकी बातें इनके आलावा कुछ सूझता ही नहीं। जरा सोचिए तो अगर इतनी भावनात्मक उर्जा लगाने के बाद उस रिश्ते की दीवार ही दरक जाए तो कैसे ख्याल मन  में आएँगे..सारी दुनिया ही उलटी घूमती नज़र आएगी। किसी पर विश्वास करने का जी नहीं चाहेगा। कितने भी सुंदर हों, नज़ारे सुकून नहीं दे पाएँगे। संगीतमाला की चौथी सीढ़ी पर का गीत कुछ ऐसे ही भावों को अपने में समेटे हुए है..।

Xpose के इस गीत को लिखा है समीर ने। यूँ तो समीर साहब का लिखा हुआ मुझे कुछ खास पसंद नहीं आता पर इस गीत में उनकी सोच ने लीक से थोड़ा हटकर काम जरूर किया है़। समीर अपने लफ्ज़ों में इन असहाय परिस्थितियों में व्यक्ति के हृदय में उठते इस झंझावात को अपनी अनूठी उपमाओं के ज़रिए टटोलते हैं। जब व्यक्ति का अपनों से भरोसा उठ जाए तो फिर जगत का कौन सा सत्य उसे प्रामाणिक लगेगा ? ऐसे में बादल सोने के और बारिशें पत्थर सरीखी लगें तो क्या आश्चर्य? ये छलावा पानी की दीवारों और शीशे के समंदर का ही तो रूप लेगा ना ।

हीमेश का गिटार पर आधारित संगीत संयोजन दुख की इस बहती धारा को और प्रगाढ़ कर देता है। रेखा जब माया है भरम है...इस दुनिया में जो भी गया वो तो गया  गाती हैं दिल अपने आपको एक गहरी नदी में डूबता पाता है... यकीं नहीं तो इस गीत को सुन के देखिए जनाब


शीशे का समंदर, पानी की दीवारें
माया है, भरम है मोहब्बत की दुनिया
इस दुनिया में जो भी गया वो तो गया

बर्फ की रेतों पे, शरारों का ठिकाना
गर्म सेहराओं में नर्मियों का फ़साना
यादों का आईना टूटता है जहाँ
सच की परछाइयाँ हर जगह आती हैं नज़र


सोने के हैं बादल, पत्थरों की बारिश
माया है, भरम है मोहब्बत की दुनिया
इस दुनिया में जो भी गया वो तो गया

दिल की इस दुनिया में सरहदें होती नहीं
दर्द भरी आँखों में राहतें सोती नहीं

जितने अहसास हैं अनबुझी प्यास हैं
ज़िंदगी का फलसफ़ा प्यार की पनाहों में छुपा

धूप की हवाएँ, काँटों के बगीचे
माया है, भरम है मोहब्बत की दुनिया
इस दुनिया में जो भी गया वो तो गया


वार्षिक संगीतमाला 2014

गुरुवार, जनवरी 15, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 18 : पलकें ना भिगोना, ना उदास होना...नानी माँ. Nani Maan

भारतीय समाज में जिस ढाँचे के भीतर रहकर हम पलते बढ़ते हैं उसमें माता पिता व भाई बहन के आलावा कई रिश्ते साथ फलते फूलते हैं। दादा दादी और नाना नानी के साथ बीते पल आप में से कइयों की ज़िंदगी के अनमोल पल रहे होंगे। ये चरित्र भारतीय हिंदी फिल्मों का भी हिस्सा रहे हैं और समय समय पर उनको केंद्र में रखकर गीत भी बनते रहे हैं।

बुजुर्गों पर बने दो गीतों को तो मैं कभी नहीं भुला सकता। एक तो दादी अम्मा दादी अम्मा मान जाओ, छोड़ो भी ये गुस्सा ज़रा हँस के दिखाओ.. और दूसरा नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए, बाकी जो बचा वो काले चोर ले गए....। बचपन में ना केवल इन गीतों को गुनगुनाने में मज़ा आता था पर साथ ही जब बाहर से कोई आता तो उसके सामने इसकी कुछ पंक्तियाँ दोहराते ही ढेर सारी शाबासी मिल जाया करती थी। थोड़े बड़े हुए तो ये गीत अंत्याक्षरी के बहाने याद कर लिए जाते थे। आज भी इन गीतों को याद कर बचपन सामने आ जाता है।

इसीलिए पिछले साल के गीतों में फिल्म सुपर नानी में नानी माँ को समर्पित ये गीत दिखाई दिया तो सुखद आश्चर्य हुआ। नानी के प्रति अपनी कृतज्ञता को प्रदर्शित करते इस गीत को सोनू निगम ने जिस भावप्रवणता से गाया है वो काबिलेतारीफ़ है। पर अगर ये गीत इतना प्रभावी बन पड़ा है तो इसमें संगीतकार हर्षित सक्सेना का बेहतरीन संगीत संयोजन और समीर के सहज पर मन को छूते शब्दों का भी हाथ है।

अगर आप टीवी चैनलों पर संगीत से जुड़े कार्यक्रम देखते हों तो हर्षित सक्सेना को जरूर पहचानते होंगे। अमूल स्टार वॉयस आफ इ्डिया में बतौर गायक अपने हुनर का परचम लहराने वाला लखनऊ का ये जवान आज उस गायक के साथ बतौर संगीत निर्देशक के काम कर रहा है जो कभी रियालटी शो में उनके जज की भुमिका निभाते थे। तोशी शाबरी की तरह हर्षित उन कुछ प्रतिभागियों में है जो संघर्ष कर कुछ हद तक मु्बई के फिल्म जगत में पैठ बनाने में सफ़ल हुए हैं। आज भी संगीतकार से ज्यादा वो अपने आप को गायक मानते हैं पर उस दिशा में अरिजित जैसी सफलता प्राप्त करने के लिए उन्हें एक लंबे और कठिन सफ़र के लिए तैयार रहना होगा।

फिल्म सुपर नानी के इस गीत का आरंभ गिटार व बाँसुरी की धुन से होता है। इंटरल्यूड्स में बाँसुरी का साथ देता आर्केस्ट्रा मन को सोहता है। सोनू  निगम ने गीत में हो रहे सुरो से उतार चढ़ाव को बड़ी खूबसूरती से निभाया है। इस साल उनके गाए गीतों से ऐसा लग रहा है कि हिंदी फिल्मों में पार्श्व गायिकी के प्रति पिछले कुछ सालों में उनके मन में जो उदासीनता आ गई थी उसे दूर हटाते हुए अपना पूरा ध्यान अब वो अपनी गायिकी पर लगा रहे हैं। तो आइए सुनते हैं उनकी आवाज़ में ये नग्मा..

पलकें ना भिगोना, ना उदास होना
तुझको है कसम मेरी, अब कभी ना रोना

तूने मुस्कान दी, सबको पहचान दी
सबपे वार दी ज़िन्दगी
दुःख सबका लिया,दी है सबको ख़ुशी
कोई शिकवा किया ना कभी
सूरज, चंदा, ज़मीन, आसमान
कोई तुझसा नहीं है यहाँ, नानी माँ.. नानी माँ ..

मेरी माँ भी बुलाये तुझे कह के माँ
तेरा दर्ज है रब से भी ऊँचा यहाँ
तेरे आँचल में धूप है साया
तूने ही जीना सबको सिखाया
सबपे लुटाती है जान नानी माँ.. नानी माँ ..

चोट खाती रही ज़ख्म सीती रही
तू तो औरों की खातिर ही जीती रही
तूने खुद को ना पहचाना
मोल तेरा तूने ना जाना
तेरे दम से दोनों जहाँ, नानी माँ.. नानी माँ ..



    वार्षिक संगीतमाला 2014

      बुधवार, मई 08, 2013

      इक ये आशिक़ी है...इक वो आशिक़ी थी !

      आशिक़ी 2 फिल्म और उसके गीतों के आज काफी चर्चे हैं। सोचा आज इसके गीतों को सुन लिया जाए। सुन रहा है..और कुछ हद तक तुम ही हो के आलावा फिल्म के बाकी गीत सामान्य ही लगे। हाँ ये जरूर हुआ कि जिस फिल्म की वज़ह से ये दूसरा भाग अस्तित्व में आया  है उसके गीत संगीत की इस फिल्म ने यादें ताज़ा कर दीं।

      1990 में जब आशिक़ी आई थी तब मैं इंजीनियरिंग कर रहा था। फिल्म के रिलीज़ होने के पहले ही इसके संगीत ने ऐसी धूम मचा दी थी कि हॉस्टल के हर कमरे से इसका कोई ना कोई गीत बजता ही रहता था। राँची के संध्या सिनेमा हाल में फिल्म देखने के बाद फिल्म की कहानी से ज्यादा उसके गीत ही गुनगुनाए गए थे और आज भी इस फिल्म के बारे में सोचने से इसकी पटकथा नहीं पर इसके गाने जरूर याद आ जाते हैं।


      आशिक़ी के गीतों की लोकप्रियता ने नदीम श्रवण की संगीतकार जोड़ी को फर्श से अर्श तक पहुँचा दिया था। अस्सी का दशक इस जोड़ी के लिए संघर्ष का समय था। छोटी मोटी फिल्में करते हुए उन्होंने उस ज़माने में ही अपनी बनाई धुनों का बड़ा जख़ीरा बना लिया था जो नब्बे के दशक में गुलशन कुमार द्वारा आशिक़ी में बड़ा ब्रेक दिए जाने के बाद खूब काम आया। आशिक़ी हिंदी फिल्म उद्योग की उन चुनिंदा फिल्मों का हिस्सा रही है जिसका हर गीत हिट रहा था। नदीम श्रवण के संगीत में कर्णप्रिय धुनों के साथ मेलोडी का अद्भुत मिश्रण था।


      आज भी आशिक़ी के गीतों के मुखड़ों को याद करने के लिए दिमाग पर ज़रा भी जोर देना नहीं पड़ता। शीर्षक गीत साँसों की जरूरत हो जैसे ज़िंदगी के लिए बस इक सनम चाहिए आशिक़ी के लिए या फिर नज़र के सामने जिगर के पास कोई रहता है वो हो तुम या फिर धीरे धीरे से मेरी ज़िंदगी में आना धीरे धीरे से दिल को चुराना या अब तेरे बिन जी लेंगे हम जहर ज़िदगी का पी लेंगे हम  ये सारे गीत एक बार ज़ेहन में जो चढ़े वे कभी वहाँ से उतरे ही नहीं।

      आशिक़ी ने बतौर संगीतकार नदीम श्रवण की जोड़ी के साथ गायक कुमार शानू और अनुराधा पोडवाल को सीधे शिखर पर पहुँचा दिया और पूरे नब्बे के दशक में इन्हीं कलाकारों की हिंदी फिल्म संगीत पर तूती बोलती रही। यहाँ तक कि गीतकार समीर का परचम भी इसी दौर में फहरा। गुलशन कमार की कंपनी टी सीरीज़ का कारोबार यूँ बढ़ा कि HMV के कदम भी डगमगाने लगे।

      आशिक़ी फिल्म का मेरा सबसे प्रिय गीत वो हे जो ऊपर के गीतों की तुलना में उतना तो नहीं बजा पर मेरे दिल के बेहद करीब रहा है। मेरी समझ से इस फिल्म में कुमार शानू द्वारा गाया ये सबसे मधुर गीत था। तो आइए सुनते हैं कुमार शानू को आशिक़ी फिल्म के इस गीत में..


      तू मेरी ज़िन्दगी है,तू मेरी हर खुशी है
      तू ही प्यार तू ही चाहत
      तू ही आशिक़ी है
      तू मेरी ज़िन्दगी है....

      पहली मुहब्बत का अहसास है तू
      बुझ के भी बुझ न पाई, वो प्यास है तू
      तू ही मेरी पहली ख्वाहिश,तू ही आखिरी है
      तू मेरी ज़िन्दगी है...........

      हर ज़ख्म दिल का मेरे, दिल से दुआ दे
      खुशियां तुझे ग़म सारे, मुझको खुदा दे
      तुझको भुला ना पाया, मेरी बेबसी है
      तू मेरी ज़िन्दगी है...........

      वैसे पुरानी वाली आशिक़ी का आप को कौन सा गीत सबसे पसंद है?

      मंगलवार, फ़रवरी 05, 2013

      वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 12 : तोरे नैना बड़े दगाबाज रे...

      हिंदी फिल्म संगीत में आज का दौर प्रयोगधर्मिता का दौर है। युवा संगीतकार लीक से हटकर नए तरह के संगीत संयोजन को बेहतरीन आयाम दे रहे हैं। पिछले कुछ सालों से अमित त्रिवेदी और पिछले साल गैंग आफ वासीपुर में स्नेहा खानवलकर का काम इसी वज़ह से सराहा भी गया था। पर प्रयोगधर्मिता तभी तक अच्छी लगती है जब तक उसका सुरीलापन बरक़रार रहे। मेलोडी के बिना कभी कभी ये प्रयोग कौतुक तो जगाते हैं पर इनका असर कुछ दिनों में ही हल्का पड़ने लगता है।

      वार्षिक संगीतमाला की बारहवीं पॉयदान पर विशुद्ध भारतीय मेलोडी की चाशनी में डूबा गीत पाश्चात्य संक्रमण और प्रयोगधर्मिता की परिधि से परे है और एक बार में ही कानों के रास्ते सीधे हृदय में जगह बना लेता है। संगीतकार साज़िद वाज़िद का संगीतबद्ध ये गीत है फिल्म दबंग 2 का और इसे लिखा है समीर ने।

      गाने की परिस्थिति ऐसी है कि नायक अपनी रूठी पत्नी को मना रहा है। ज़ाहिर सी बात है समीर को गीत में मीठी तकरार का पुट देना था। समीर सहज शब्दों में ही इस नोंक झोंक को गीत के दो अंतरों की सहायता से आगे बढ़ाते हैं। समीर ने गीत के बोलों में इस बात का ध्यान रखा है कि उसमें उत्तर प्रदेश की बोली का ज़ायका मिले आखिर हमारे चुलबुल पांडे इस प्रदेश के जो ठहरे।

      पर गीत का असली आनंद है राहत की सुकून भरी गायिकी और साज़िद वाज़िद के मधुर संगीत संयोजन में। मुखड़े में तबले ताली और हारमोनियम का अद्भुत मिश्रण गीत की मस्ती को आत्मसात किए चलता है। इंटरल्यूड्स में पहले सितार और फिर हारमोनियम का प्रयोग बेहद मधुर लगता है। जिस मुलायमियत की जरूरत इस गीत को थी उसे राहत अपनी दिलकश आवाज़ से साकार करते दिखते हैं। उनकी गायिकी का असर ये होता है कि मन श्रेया के हिस्से से जल्द निकलने को करने लगता है।

      तो आइए सुनें इस गीत को राहत और श्रेया की आवाज़ों में..



      तोरे नैना बड़े दगाबाज रे
      कल मिले, कल मिले ई हमका भूल गए आज रे
      दगाबाज रे, हाए दगाबाज रे..तोरे नैना बड़े दगाबाज रे


      काहे ख़फा ऐसे, चुलबुल से बुलबुल
      काहे ना तू माने बतियाँ
      काहे पड़ा पीछे, जान पे बैरी
      ना जानूँ क्या तोरी बतियाँ
      ज़िंदगी अपनी हम तोका दान दई दें
      मुस्कुराके जो माँगे परान दई दें
      कल मिले, कल मिले ई हमका भूल गए आज रे..
      दगाबाज रे, हाए दगाबाज रे..तोरे नैना बड़े दगाबाज रे

      डरता ज़हाँ हमसे, हम तोसे डरते
      इ सब जानें मोरी रनिया हाए
      मसका लगाओ ना छोड़ो जी छोड़ो
      समझती है तोरी धनिया
      इस अदा पे तो हम कुर्बान गए जी
      तोहरी ना ना में हामी है जान गए जी
      कल मिले, कल मिले ई हमका भूल गए आज रे..
      तोरे नैना बड़े दगाबाज रे

      सोमवार, जनवरी 21, 2013

      वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 17 : आओ यारों आओ तुमको राह बताऊँ दिल्ली की...

      हिंदी सिनेमा में बाल फिल्मों का दायरा बड़ा सीमित रहा है। हर साल रिलीज़ होने वाली फिल्मों में उनका हिस्सा पाँच फीसदी से भी कम रहता है और उसमें भी कई फिल्में बनने के बाद भी उन बच्चों की पहुँच के बाहर रहती हैं जिनके लिए वो बनाई गयी हैं। कार्टून चरित्रों को टीवी पर देखने के लिए बच्चे कितना लालायित रहते हैं ये तो जगज़ाहिर है और यही वज़ह है कि आज डिस्नी चरित्र हों या जापानी डोरेमोन या शिंगचाँग, बच्चों की पहली पसंद बने हुए हैं। हिंदी चरित्रों में 'छोटा भीम' ने विदेशी चरित्रों के बच्चों के मन पर किए गए एकाधिकार को तोड़ा जरूर है पर जातक कथाओं, पंचतंत्र और तमाम राजा रानियों की कहानियों से भरी हमारी सांस्कृतिक धरोहर के लिए इस क्षेत्र में हिंदी फिल्मों और टेलीविजन को कुछ नया करने की गुंजाइश बहुत है। 

      पिछले साल जंगल के चरित्रों को लेकर एक फिल्म बनी नाम था दिल्ली सफ़ारी । संयोग से पिछले महिने जब इसे टीवी पर दिखाया गया तो मैंने भी इस फिल्म को देखा और पर्यावरण को बचाने का संदेश देता हुआ इसी फिल्म का एक गीत आज विराजमान है वार्षिक संगीतमाला की सत्रहवीं पॉयदान पर।

      विकास के नाम पर जंगलों की अंधाधु्ध कटाई को विषय को लेकर बनाई गयी इस फिल्म में ये गीत तब आता है जब जंगल के जानवर अपने घटते रिहाइशी इलाके के ख़िलाफ़ दिल्ली की संसद में अपनी आवाज़ बुलंद करने का फ़ैसला लेते हैं। दिल्ली की इस लंबी राह पर चलते चलते वो भटक जाते हैं पर रास्ते में पूछताछ करते हुए जो उन्हें बताया जाता है वो व्यक्त होता है इस गीत के माध्यम से।

      इस गीत को लिखा है समीर ने और धुन बनाई है शंकर अहसान लॉय ने। हम किस तरह अपने आस पास की प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं इसे गीत के हर अंतरे में बड़ी खूबी से चित्रित किया गया है। गीत को आगे बढ़ाने का ढंग मज़ेदार है। पहले गायक उस स्थिति का बयान करते हैं जिस हालत में हमारी ये भारत भूमि पहले थी। फिर एक कोरस उभरता है नहीं भाई नहीं, नहीं भाई नहीं, नहीं भाई नहीं, नहीं भाई नहीं। फिर आज की स्थिति बताई जाती है। बच्चों को अपने आस पास के वातावरण को बचाए रखने के प्रति सजग रखने के लिए ये सुरीला अंदाज़ बेहद प्रभावशाली बन पड़ा है।

      इस गीत को गाया है मँहगाई डायन खावत जात है.. को गाने वाले रघुवीर यादव ने। जिस तरह किसी नाटक में कोई सूत्रधार गा गा कर कहानी को आगे बढ़ाता है वैसे ही रघुवीर यहाँ दिल्ली के रास्ते का बखान करते जंगली जानवारों को आगे का रास्ता दिखाते हैं। इंसानों पर समीर के मारक व्यंग्यों के साथ रघुवीर की आवाज़ खूब फबती है। गीत की शुरुआत से अंत तक शंकर अहसॉन लाय घड़े जैसे ताल वाद्यों के साथ एक द्रुत लय रचते हैं जिसे सुनते सुनते रघुवीर के साथ सुर में सुर मिलानी की इच्छा बलवती हो जाती है।

      तो आइए गीत के बोलों को पढ़ते हुए सुनिए ये शानदार गीत
      धड़क धड़क धड़क धड़क..,धड़क धड़क धड़क धड़क..
      आओ यारों आओ तुमको राह बताऊँ दिल्ली की
      जाओ यहाँ से सीधा जाओ, हिम्मत रखो मत घबराओ
      हरियाली का डेरा होगा, जंगल यहाँ घनेरा होगा

      नहीं भाई नहीं नहीं भाई नहीं नहीं भाई नहीं नहीं भाई नहीं.....
      हरे भरे इस जंगल की इंसानों ने मारी रेड़
      काट दिया सारे जंगल को छोड़ दिया इक सूखा पेड़

      वहाँ से फिर तुम आगे जाना, हुआ जो उसपे ना पछताना
      बहती हुई लहरों का जहाँ, मिलेगी तुमको नदी वहाँ

      नहीं भाई नहीं नहीं भाई नहीं नहीं भाई नहीं नहीं भाई नहीं
      अरे नदी जहाँ पर कल बहती थी आज वहाँ पर नाला है
      मत पूछो इंसानों ने हाल उसका क्या कर डाला है

      थोड़ी दूरी तुम तय करना, बस इंसानों से तुम डरना
      खेतों की दुनिया सुनसान वहाँ पे होगा रेगिस्तान

      नहीं भाई नहीं नहीं भाई नहीं नहीं भाई नहीं नहीं भाई नहीं
      खो गई बंजारों की टोली रहे ना वो मस्ताने हीर
      खेतों की वो सुंदर हील गई हाइवे में तब्दील

      सबकी दुआ रंग लाएगी संसद वहाँ से दिख जाएगी
      संसद में खामोश ना रहना, इंसानों से बस ये कहना

      सुनो सुनो वहशी इंसानों सुनो सुनो वहशी इंसानों
      अब तो इसका कहना मानो
      क़ुदरत ये कहती है हर दम, हमसे तुम हो और तुमसे हम
      हमको अगर मिटाओगे तो ख़ुद भी मिट जाओगे।



      तो आपसे ये गुजारिश है कि इस गीत को ख़ुद तो सुने ही पर अपने बच्चों को जरूर सुनवाएँ । बहुत बार हमारी और आपकी कही बात से ज्यादा असर ये गीत डाल सकते हैं ...

      मंगलवार, जून 03, 2008

      मुझे रात दिन बस मुझे चाहती हो..कहो ना कहो मुझको सब कुछ पता है

      1999 में एक फिल्म आई थी, नाम था संघर्ष ! अक्षय कुमार, प्रीति जिंटा और आशुतोष राणा जैसे कलाकारों से सजी इस फिल्म की बेसिरपैर कहानी को दर्शकों ने एक सिरे से नकार दिया था। पर गीतकार समीर और संगीतकार जतिन-ललित की जोड़ी ने अपना काम बखूबी निभाते हुए इस फिल्म में कर्णप्रिय संगीत दिया था।

      'पहली पहली बार वलिए ..' और 'नाराज़ सवेरा...' तो चर्चित हुए ही पर मुझे जिस गीत ने सबसे ज्यादा आनंदित किया वो था सोनू निगम द्वारा गाया हुआ ये एकल गीत जिसकी रूमानियत मुझे इसे सुनते वक़्त हमेशा ही गुदगुदा जाती है। इसलिए ये सोनू के गाए रोमांटिक गीतों में मेरी पहली पसंद है।

      सोनू निगम की गायिकी से तो हम आप परिचित ही हैं। जिस भाव प्रवणता के साथ इस गीत को सोनू ने अपनी आवाज़ दी है उसका जवाब नहीं। पहले अंतरे के बाद आप लता जी का पार्श्व से लहराता स्वर सुन सकते हैं।

      ये गीत वैसे गीतों में है जिसकी लय पहली बार में ही दिल पर सीधा असर करती है। जब भी मैं इस गीत को गुनगुनाता हूँ, अपने मन को हल्का और खुशमिज़ाज पाता हूँ। 

      मुझे रात दिन बस मुझे चाहती हो
      कहो ना कहो मुझको सब कुछ पता है
      हाँ करूँ क्या मुझे तुम बताती नहीं हो
      छुपाती हो मुझसे ये तुम्हारी खता है
      हाँ मुझे रात दिन ...

      मेरी बेकरारी को हद से बढ़ाना
      तुम्हें खूब आता है बातें बनाना
      निगाहें मिलाके यूँ मेरा चैन लेना
      सताके मोहब्बत में यूँ दर्द देना
      मुझे देखके ऐसे पलकें झुकाना
      शरारत नहीं है तो फिर और क्या है
      हाँ मुझे रात दिन ...

      तुम्हें नींद आएगी अब ना मेरे बिन
      मुझे है यकीं ऐसा आएगा इक दिन
      खुली तेरी ज़ुल्फ़ों में सोया रहूँगा
      तेरे ही ख्यालों में खोया रहूँगा
      कभी गौर से मेरी आँखों में देखो
      मेरी जां तुम्हारा ही चेहरा छुपा है
      हाँ मुझे रात दिन ...


      और अब सुनिए सोनू की दिलकश आवाज़ में ये नग्मा....

       

       वैसे ये बताएँ कि आपको ये गीत कैसा लगता है?

      गुरुवार, फ़रवरी 14, 2008

      वार्षिक संगीतमाला २००७ : पायदान ८ - वैलेंटाइन डे स्पेशल !

      आज वैलेंटाइन डे है। पहली बार जब वैलेंटाइन डे के चर्चे सुने थे तो मन ही मन एक मुस्कुराहट जरूर दौड़ गई थी कि चलो भाई हमारी ना सही, अब आज की पीढ़ी को इज़हार-ए-दिल करने के लिए कोई तो दिन मिला। वर्ना एक ज़माने वो भी था कि लोग बाग अपनी उन तक पहुँचने के लिए घर, कॉलेज और कोचिंग तक रिक्शे का पीछा करते थे। मामला घर के बगल का हुआ तो प्रेम पत्र पत्थर से छत पर फेंका जाता था, या सिर्फ खिड़कियों से हाथ हिलाने से ही रात की नींदे हराम हो जाया करती थीं। और अगर दिल की अंदरुनी हालत काबू के बाहर हो जाए तो वो अनायास ही उनके सामने जा कर आई लव यू बोल देने की हिम्मत भी कुछ वीर बांकुड़े दिखा ही जाते थे। जो कुछ ज्यादा दूरदर्शी होता वो फेल सेफ कंडीशन लॉजिक का प्रयोग कर जेब में एक डोरी भी रखता कि मामला कुछ उलटा पड़ा तो उनके थप्पड़ के पहले अपनी भूल का अहसास करने वाले भाई का हाथ आगे होगा।:)

      तो ना हम ऊपर की किसी कवायद का हिस्सा बन पाए ना ही वैलेंटाइन डे से अपने आप को जोड़ सके। पर ये स्पष्ट करना चाहूँगा कि प्रेम को महिमामंडित करते हुई कोई पर्व मनाने में मेरी पूरी आस्था है । भले ही हम, "है प्रीत जहाँ की रीत वहाँ..... जैसे गीत गाते रहें फिर भी इस बात को नज़रअंदाज नहीं कर सकते कि ये देश वैसे लोगों का भी है जो भाषा, धर्म, जाति के आधार पर नफ़रत के बादल सदा फैलाते आए हैं और रहेंगे। प्रेम में वो शक्ति है जो इन व्यर्थ की दीवारों को तोड़ने के लिए हमें प्रेरित करती है।

      और हम साल दर साल इसी बात को एक पर्व के माध्यम से नई पीढ़ी के सामने रखें तो इसमें बुराई क्या है? हाँ ये जरूर है कि अगर ये पर्व, वसंतोत्सव या अपनी संस्कृति से जुड़े किसी अन्य रूप में मनाया जाए तो समाज का हर वर्ग इसे अपने से जोड़ कर देख सकता है।

      ये सुखद संयोग है कि इस गीतमाला की आठवीं पायदान का गीत प्रेम के रस से पूरी तरह सराबोर है। इसे गाया शान ने, बोल लिखे समीर ने और इस गीत की धुन बनाई मोन्टी शर्मा ने। मोन्टी शर्मा संगीतकार प्यारेलाल के भतीजे और अपने दादा पंडित राम प्रसाद शर्मा के शिष्य हैं। मोन्टी खुद एक कीबोर्डप्लेयर हैं और इससे पहले उन्होंने फिल्म ब्लैक का बैकग्राउंड स्कोर दिया था। इस गीत की खूबसूरती है इसकी मधुर लय और संगीत में, जिसे शान ने अपनी आवाज़ के जादू से और उभारा है

      मेरे मित्रों और एक शाम मेरे नाम के पाठकों को इस दिन की हार्दिक बधाई। मेरी मनोकामना है कि आप सब प्रेम के अभूतपूर्व अनुभव से अपने जीवन में आज नहीं तो कल जरूर गुजरें।

      तो आइए प्रेम का ये पर्व मनाएँ सांवरिया से लिखे इस प्यारे से गीत के साथ....
      जब से तेरे नैना..., मेरे नैनों से, लागे रे
      तबसे दीवाना हुआ, सबसे बेगाना हुआ
      रब भी दीवाना लागे रे..........




      पुनःश्च (१५.२.२००८)
      कल रात अपने ६ वर्षीय बेटे से बात हो रही थी की वेलेंटाइन डे के दिन लोग एक दूसरे को फूल भेंट करते हैं और वो भी खास गुलाब के। बेटे ने झट से कहा गुलाब...मुझे तो वो ज़रा भी पसंद नहीं।
      तो फिर आप क्या लोगे किसी से?
      तपाक से उत्तर मिला बस "एक केला दे दे तो कितना अच्छा लगेगा।"

      बेटे के इस उत्तर को सुन कर हमारा हँसते हँसते बुरा हाल हो गया। सोचा आप सब से बाँटता चलूँ। :)
       

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      इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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