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गुरुवार, जनवरी 18, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : मैं परवाना तेरा नाम बताना

पिछले साल से एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमालाओं का सिलसिला रुका रुका सा है। इसका मुख्य कारण कोविड के बाद से बहुतेरी फिल्मों का OTT प्लेटफार्म पर रिलीज़ होना है। कई बार इन फिल्मों के गाने ढूँढने से भी नहीं मिलते। पहले मैं साल में प्रदर्शित हर फिल्म के गीतों को सुनकर अपनी संगीतमाला को अंतिम रूप देता था पर अब ये दावा करना मुश्किल है। पर पिछले कुछ दिनों से एक शाम मेरे नाम के कई पुराने पाठकों ने गुजारिश करी है कि ये सिलसिला फिर से शुरु किया जाए। अब उनके प्रेम को नज़रअंदाज़ करना मुश्किल था इसलिए लगा कि एक कोशिश तो करनी ही चाहिए।

तो चलिए आरंभ करते हैं इस साल की संगीतमाला को तड़कते फड़कते गीत से जिसे लिखा शैली ने,धुन बनाई ए आर रहमान ने और आवाज़ दी अरिजीत सिंह ने।


भारत बांग्लादेश युद्ध पर बनी फिल्म पिप्पा के इस गीत की खासियत है अरिजीत सिंह ने किस तरह अपनी आवाज़ और गाने के तरीके में बदलाव किया। ये गीत उनकी बहुआयामी गायिकी का एक जीता जाता उदहारण है। इस गीत में अरिजीत का बखूबी साथ दिया है सहगायिका पूजा तिवारी और निशा शेट्टी ने। ट्रम्पेट,गिटार, एकार्डियन और ताल वाद्यों से रहमान की सजी सँवरी धुन आपको थिरकने पर मजबूर कर देगी। एक बार सुनिये तो सही..

इस गीत द्वारा इशान खट्टर ने भी दिखा दिया है कि वे डांस करने में किसी से कम नहीं हैं। पूरा गीत तो ब्लॉग पर ही सुन पाएँगे पर यहाँ देखिए उसकी एक झलक

मैं परवाना.. तेरा नाम बताना 
तेरे प्यार में जलना जलाना 
यूँ नज़रें उठाना यूँ नज़रें गिराना 
तू शम्मा मैं हूँ मस्ताना 
दिल पे वार वार वार ऐसा किया 
Arrow आर पार यार कर दिया 
चढ़ी हुई है गरारी अड़ी हुई है 
मैं फौजी आज टिप्सी हो गया


वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा

    मंगलवार, फ़रवरी 14, 2017

    वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 10 : आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg

    वार्षिक संगीतमाला में अब बारी है साल के दस शानदार गीतों की। मुझे विश्वास है कि इस कड़ी की पहली पेशकश को सुन कर आप मुसाफ़िरों वाली मस्ती में डूब जाएँगे। ये गीत है फिल्म जुगनी से जो पिछले साल जुगनुओं की तरह तरह टिमटिमाती हुई कब पर्दे से उतर गयी पता ही नहीं चला। इस गीत को लिखा शैली उर्फ शैलेंद्र सिंह सोढ़ी ने और संगीतबद्ध किया क्लिंटन सेरेजो ने जो बतौर संगीतकार दूसरी बार कदम रख रहे है इस संगीतमाला में। इस गीत से जुड़ी सबसे रोचक बात ये कि विशाल भारद्वाज ने पहली बार किसी दूसरे संगीतकार के लिए अपनी आवाज़ का इस्तेमाल किया है।


    पहले तो आपको ये बता दें कि ये शैली हैं कौन? अम्बाला से आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाले शैली के पिता हिम्मत सिंह सोढ़ी ख़ुद कविता लिखते थे और एक प्रखर बुद्धिजीवी  थे। उनके सानिध्य में रह कर शैली गा़लिब, फ़ैज़ और पाश जैसे शायरों के मुरीद हुए। शिव कुमार बटालवी के गीतों ने भी उन्हें प्रभावित किया। चंडीगढ़ से स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल करने के बाद आज 1995 में वो गुलज़ार के साथ काम करने  मुंबई आए पर बात कुछ खास बनी नहीं। हिंदी फिल्मों में पहली सफलता उन्हें 2008 में देव डी के गीतों को लिखने से मिली। इसके बाद भी छोटी मोटी फिल्मों के लिए लिखते रहे हैं। पिछले साल उड़ता पंजाब के गीतों के कारण वो चर्चा में रहे और जुगनी के लिए तो ना केवल उन्होंने गीत लिखे बल्कि संवाद लेखन का भी काम किया।

    चित्र में बाएँ से शेफाली, शैली, जावेद बशीर व क्लिंटन
    शैली को फिल्म की निर्देशिका शेफाली भूषण ने बस इतना कहा था कि फिल्म के गीतों में लोकगीतों वाली मिठास होनी चाहिए। इस गीत के लिए क्लिंटन ने शैली से पहले बोल लिखवाए और फिर उसकी धुन बनी। क्लिंटन को हिंदी के अटपटे बोलों को समझाने के लिए शैली को बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। पर जब क्लिंटन ने उनके बोलों को कम्पोज़ कर शैली के पास भेजा तो वो खुशी से झूम उठे और तीन घंटे तक उसे लगातार सुनते रहे।

    क्लिंटन के दिमाग में गीत बनाते वक़्त विशाल की आवाज़ ही घूम रही थी। जब उन्होंने ये गीत विशाल के पास भेजा तो विशाल की पहली प्रतिक्रिया थी कि गाना तो तुम्हारी आवाज़ में जँच ही रहा है तब तुम मुझे क्यूँ गवाना चाहते हो? पर क्लिंटन के साथ विशाल के पुराने साथ की वज़ह से उनके अनुरोध को वो ठुकरा नहीं सके। गीत में जो मस्ती का रंग उभरा है उसमें सच ही विशाल की आवाज़ का बड़ा योगदान है।

    शैली चाहते थे कि इस गीत के लिए वो कुछ ऐसा लिखें जिसमें उन्हें गर्व हो और सचमुच इस परिस्थितिजन्य गीत में उन्होंने ये कर दिखाया है। ये गीत पंजाब की एक लोक गायिका की खोज करती घुमक्कड़ नायिका के अनुभवों का बड़ी खूबसूरती से खाका खींचता है । गिटार और ताल वाद्य के साथ मुखड़े के पहले क्लिंटन का बीस सेकेंड का संगीत संयोजन मन को मोहता है और फिर तो विशाल की फुरफराहट हमें गीत के साथ उड़ा ले जाती है उस मुसाफ़िर के साथ।

    हम जब यात्रा में होते हैं तो कितने अनजाने लोग अपनी बात व्यवहार से हमारी यादों का अटूट अंग बन जाते हैं। शैली एक यात्री की इन्हीं यादों को आवभगत में मुस्कानें,फुर्सत की मीठी तानें..भांति भांति जग लोग दीवाने, बातें भरें उड़ानें ...राहें दे कोई फकर से, कोई खुद से रहा जूझ रे ....एक चलते फिरते चित्र की भांति शब्दों में उतार देते हैं। निर्देशिका शेफाली भूषण की भी तारीफ़ करनी होगी कि उन्होंने इस गीत का फिल्मांकन करते वक़्त गीत के बोलों को अपने कैमरे से हूबहू व्यक्त करने की बेहतरीन कोशिश की। तो आइए  हम सब साथ साथ हँसते मुस्कुराते गुनगुनाते हुए ये डुगडुगी बजाएँ


    फुर्र फुर्र फुर्र नयी डगरिया
    मनमौज गुजरिया
    रनझुन पायलिया नजरिया
    मंन मौज गुजरिया

    ये वास्ते रास्ते झल्ले शैदां, रमते जोगी वाला कहदा
    आवभगत में मुस्कानें,फुर्सत की मीठी तानें
    दायें का हाथ पकड़ के, बाएँ से पूछ के
    ओये ओये होए डुग्गी डुग्गी डुग्ग
    ओये ओये होए डुग्गी डुग्गी डुग्ग 
    ओये ओये होए डुग्गी डुग्गी डुग्ग डुग्गी डुग्ग डुग्गी डुग्ग

    फिर फिर फिर राह अटरिया 
    सुर ताल साँवरिया
    साँझ की बाँहों नरम दोपहरिया
    सुर ताल सँवरिया
    परवाज़ ये आगाज़ ये है अलहदा
    रौनक से हो रही खुशबू पैदा
    भांति भांति जग लोग दीवाने, बातें भरें उड़ानें
    राहें दे कोई फकर से, कोई खुद से रहा जूझ रे
    ओये ओये  होए ...   डुग्ग ,

    बहते हुए पानी से, इस दुनिया फानी से ,
    है रिश्ता खारा, रंग चोखा हारा ,
    और जो रवानी ये,
    धुन की पुरानी है ये नाता अनोखा
    हाँ कूबकु के माने, दहलीज़  लांघ  के  जाने ,
    दायें का हाथ पकड़ के, बाएँ से पूछ के
    ओये ओये होए डुग्गी डुग्गी डुग्ग


    वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
     

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    इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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