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शनिवार, जनवरी 05, 2019

वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 21 : जिया में मोरे पिया समाए Piya Samaye

इस साल की शुरुआत से चल रही एक शाम मेरे नाम की वार्षिक संगीतमाला की कड़ियों में आज का गीत है एक कव्वाली की शक़्ल में फिल्म मुल्क से और इसे अपनी आवाज़ से सँवारा है शफ़क़त अमानत अली खाँ ने। इक ज़माना था जब पुरानी हिंदी फिल्मों में अलग अलग परिस्थितियों में कव्वालियों का इस्तेमाल हुआ करता था। पुरानी फिल्मों की कव्वालियों को याद करूँ तो मन में तुरंत ना तो कारवाँ की तलाश है, तेरी महफिल में किस्मत आज़मा कर हम भी देखेंगे, निगाहें मिलाने को जी चाहता है, पर्दा है पर्दा और हैं अगर दुश्मन जैसे तमाम गीतों की याद उभरती है। 

पिछले कुछ दशकों से कव्वाली, फिल्मों में सूफ़ियत से रँगे गीतों में ही सिमट कर रह गयी है। अगर आज के फिल्मी परिदृश्य में कव्वालियों का इतना स्वरूप भी बचा है तो इसमें ए आर रहमान व नुसरत फतेह अली खाँ का खासा योगदान है। रहमान ने पिछले दशक में  ख्वाजा मेरे ख्वाजा, कुन फाया कुन और पिया मिलेंगे जैसे अपने संगीतबद्ध  गीतों से कव्वालियों  को फिर लोकप्रियता के नए शिखर तक पहुँचाया। 


मुल्क की इस कव्वाली पिया समाए को लिखा है शकील आज़मी ने। पिछले एक दशक में दर्जन भर फिल्मों में गीत लिखने वाले शकील एक गीतकार से ज्यादा एक लोकप्रिय शायर के रूप में चर्चित रहे हैं। अपने साहित्यिक जीवन में उनके पाँच छः काव्य संकलन छप चुके हैं। मेरे ख्याल से मुल्क के इस गीत में पहली बार शकील को अपना हुनर सही ढंग से दिखाने का मौका मिला है।

गीत में पिया शब्द से ईश्वर को संबोधित किया गया है। शकील ने इस गीत के माध्यम से कहना चाहा है कि सबका परवरदिगार एक है भले ही उसके रंग अलग अलग हों। इसलिए लोगों में धर्म के नाम पर भ्रम जाल पैदा करने वाले लोगों के लिए वो लिखते हैं..सात रंग हैं सातों पिया के...देख सखी कभी तू भी लगा के...सातों से मिल के भयी मैं उलझी...कोई हरा कोई गेरुआ बताए। ।गीत में शकील ने गौरैया, पीपल,कबूतर जैसे बिंबों का बड़ी खूबसूरती से प्रयोग किया है।


अनुराग सैकिया व शकील आज़मी
इस कव्वाली की धुन बनाई है इस साल कारवाँ और मुल्क जैसी फिल्मों से अपना सांगीतिक सफ़र शुरु करने वाले असम के लोकप्रिय संगीतकार अनुराग सैकिया ने। मुल्क में ये मौका देने के पहले अनुभव सिन्हा ने उन्हें अपने स्टूडियो में बुलाया और उनके संगीतबद्ध गीतों को सुनने की इच्छा ज़ाहिर की। अनुराग बताते हैं कि तब उन्होंने आनन फानन में अपनी ई मेल मे पड़े गीतों को  बजाया पर अनुभव जी ने उन्हें कुछ और सुनाने को कहा। तब जाकर अनुराग ने अनुभव सिन्हा को वो गीत सुनाए जो व्यक्तिगत तौर पर पसंद थे पर उनकी ऐसी मान्यता थी कि इसे शायद ही कोई निर्माता निर्देशक पसंद करेगा। इन गीतों में एक निदा फ़ाज़ली का लिखा गीत भी था जो अनुभव को पसंद आ गया। कुछ दिनों दोनों की आपस में बात होती रही और अंततः मुल्क की इस  कव्वाली को संगीतबद्ध करने का जिम्मा अनुराग को मिला।

परम्परागत भारतीय ताल वाद्यों ढोलक व तबला के साथ अनुराग ने गीत में हारमोनियम व गिटार का इस्तेमाल किया। गीत के बीच में इस्तेमाल की गयी उनकी सरगम मन मोहती है। इस गीत में शफक़त का साथ दिया है अरशद हुसैन और साथियों ने। गीत के बोल बनारसी लहजे में रँगे हैं। शफक़त की गायिकी तो हमेशा की तरह जानदार है पर एक जगह सातों से मिल के भयी मैं उलझी की जगह वो उझली बोलते सुनाई पड़े हैं। तो आइए सुनते हैं मुल्क फिल्म की ये कव्वाली

मोरे पिया, मोरे पिया..
सब सखियों का पिया प्यारा
सब में है और सब स्यूं न्यारा
सब सखियों का पिया प्यारा
भा गिया ये मुझे भा

जागी है मिलने की चाह
सब सखियों का पिया प्यारा ...हो..
पिया समाए पिया समाए
जिया में मोरे पिया समाए
नि सा सा नि सा रे सा...
मा पा धाा पा मा गा रे...

हो.. सात रंग हैं सातों पिया के

देख सखी कभी तू भी लगा के
सात रंग हैं सातों पिया के
देख सखी कभी तू भी लगा के
सातों से मिल के...
सातों से मिल के भयी मैं उलझी
कोई हरा कोई गेरुआ बताए
पिया समाए ....पिया समाए

ओ पिया समाए पिया समाए
जिया में मोरे पिया समाए

हो.. काशी भी मुझ में, काबा भी मुझ में

घी मोरा दर मोरी चौखट
इश्क़ है मोरे पिया का मज़हब
केहू से मोरा काहे का झंझट
काहे का झंझट
मंदिर के छज्जे मैं गौरैया

पीपल है मोरा रैन बसेरा
मस्जिद के गुंबज की मैं कबूतर
मैं जो उड़ूँ तो होवे सवेरा

तू है ऐसी रंगानी

भयी ना पुरानी
इंद्रधनुष है मोरी चुनरिया
पिया को मोरे महू ना देखूँ
देखे मगर मोरे मॅन की नज़रिया
मोरे मॅन की नज़रिया
सात रंग हैं ...गेरुआ बताए
पिया समाए पिया समाए


वार्षिक संगीतमाला 2018  
1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
8.  एक दिल है, एक जान है 
9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
11 . तू ही अहम, तू ही वहम
12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
13. सरफिरी सी बात है तेरी
14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
15. तेरा यार हूँ मैं
16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
21. जिया में मोरे पिया समाए 
24. वो हवा हो गए देखते देखते
25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

मंगलवार, फ़रवरी 03, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 10 : अल्लाह वारियाँ..... Allah Waariyaan

फरवरी की शुरुआत हो गई और लीजिए वक़्त आ गया इस वार्षिक संगीतमाला की आरंभिक दस पायदानों का। दसवीं पायदान पर संगीतकार वो जिनसे आपका परिचय मैं सोनू निगम के गाए गीत दिलदारा में पहले भी करवा चुका हूँ। यानि अर्को प्रावो मुखर्जी जिनकी संगीत के प्रति अभिरुचि उन्हें डॉक्टरी करने के बाद भी मुंबई की मायानगरी में खींच लाई। क्या धुन बनाई हे अर्को ने इस गीत की ! ताल वाद्यों और गिटार का अनूठा संगम जो बाँसुरी की शह पाकर और मधुर हो उठता है। जब इस सुरीली धुन को शफक़त अमानत अली खाँ की आवाज़ का साथ मिलता है तो होठ खुद ही उनकी संगत के लिए मचल उठते हैं और मन झूम उठता है। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ पिछले साल जनवरी में प्रदर्शित फिल्म यारियाँ के गीत अल्लाह वारियाँ की।



अर्को को ये गीत कैसे मिला उसकी भी अपनी कहानी है। जिस्म 2 के सफल संगीत की बदौलत अर्को को निर्माता भूषण कुमार से मिलने का मौका मिला। उन्होंने उनसे कुछ गीतों को बजाने को कहा। अर्को ने अपने प्रिय वाद्य गिटार पर अल्लाह वारियाँ की धुन सुनाई और वो चुन ली गई। प्रीतम और मिथुन जैसे स्थापित संगीतकारों के साथ अपनी धुन का चुन लिया जाना अर्को के लिए गौरव की बात थी। गायक के नाम पर काफी चर्चा हुई। अंततः शफक़त अमानत अली को चुना गया। अर्को कहते हैं कि कॉलेज के दिनों से ही वो शफक़त की आवाज़ के शैदाई थे।

जीवन में  कुछ रिश्ते हमें अपना परिवार देता है और कुछ हम ख़ुद बनाते हैं। पारिवारिक रिश्ते तो ज़िदगी भर की वारण्टी के साथ आते हैं पा यारी दोस्ती में ये सुविधा नहीं होती। दरअसल यही असुविधा ही इसकी सबसे बड़ी सुविधा है। क्यूँकि ये थोपा हुआ रिश्ता नही् बल्कि धीरे धीरे भावनाओं द्वारा सींचा गया वो रिश्ता है जो एक पादप के समान पोषित पल्लवित होकर कभी फूलों सी महक देता है तो कभी फल जैसी मिठास। पर जैसे एक पौधा बिना रख रखाव के मुरझा उठता है वैसा ही मित्रता के साथ भी तो हो सकता है। अर्को अपने लिखे इस गीत में ऐसे ही बिछड़े यारों को मिलाने की बात करते हैं उनके साथ बिताए खूबसूरत लमहों को याद करते हुए। शफक़त ने अर्को के सहज शब्दों में अपनी आवाज़ और गायिकी के लहजे से ऐसा प्राण फूँका है कि मन दोस्त के पास ना होने की पीड़ा को मन के अन्तःस्थल तक महसूस कर पाता है।


तो आइए सुनें यारियाँ फिल्म का ये नग्मा


अर्को को गीत लिखने का तजुर्बा है पर मुझे लगता है कि जिस पृष्ठभूमि से वो आए हैं, ये देखते हुए उन्हें अपना ध्यान पूरी तरह संगीत रचना में ही लगाना चाहिए। अब इसी गीत को देखिए दूसरे अंतरे में वो दास्तान शब्द के दोहराव से नहीं बच पाए हैं। दोस्तों के साथ बाँटी हुई स्मृतियों को सँजोने के लिए उन्होंने होली के रंगों और पतंगों का तो सही इस्तेमाल किया है पर उड़ती पतंगों में की जगह गायक से उड़ते पतंगों  कहलवा गए हैं। इतने बेहतरीन संगीत संयोजन के बाद ये बातें मन में खटकती हैं। आशा है अर्को भविष्य में इन बातों का ध्यान रख पाएँगे।

अपने रूठे, पराये रूठे, यार रूठे ना
ख्वाब टूटे, वादे टूटे, दिल ये टूटे ना
रूठे  तो  ख़ुदा भी रूठे...साथ  छूटे  ना 

ओ अल्लाह वारियाँ, ओ मैं तो हारियाँ
ओ टूटी यारियाँ मिला दे ओये !

उड़ते पतंगों में, होली वाले रंगों में
झूमेंगे फिर से दोनों यार
वापस तो आजा यार
सीने से लगा जा यार
दिल तो हुए हैं ज़ार -ज़ार

अपने रूठें... मिला दे ओये !

रह भी न पाएं यार, सह भी न पाएं यार
बहती ही जाए दास्तान
उम्र भर का इंतज़ार, इक पल भी न क़रार
ऊँगली पे नचाये दास्तान

अपने रूठें... मिला दे ओये ! 


वार्षिक संगीतमाला 2014

गुरुवार, जनवरी 10, 2013

वार्षिक संगीतमाला 2012 पॉयदान # 20 : कुछ तो था तेरे मेरे दरमियाँ...

वार्षिक संगीतमाला की पॉयदान संख्या 20 पर पहली बार इस साल दाखिल हो रही है संगीतकार सलीम सुलेमान और इरशाद कामिल की जोड़ी, फिल्म जोड़ी ब्रेकर के इस गीत के साथ। इरशाद कामिल रूमानी गीतों में हमेशा से अपना हुनर दिखाते आए हैं और ये गीत भी उसकी एक मिसाल है। प्रेमानुभूति की गहनता कवि हृदयों को नए नए तरीके से अपनी बात कहने का अवसर देती रही है। यही वज़ह है कि दशकों से ऍसे गीतों को सुनते रहने के बावज़ूद भी हर साल हमें कुछ ऐसे गीत सुनने को मिल ही जाते हैं जिनकी काव्यात्मकता दिल को छू जाती है। 


प्रेम में रिश्ते बनते हैं, पलते हैं, प्रगाढ़ होते हैं और फिर टूट भी जाते हैं। पर रिश्तों को तोड़ना किसी के लिए आसान नहीं होता। बरसों लगते हैं उन साझी यादों को मिटाने के लिए। जो मंजिलें साथ साथ चल कर सामने दिखती थीं वो एकदम से आँखों से ओझल हो जाती हैं और हम भटकने लगते हैं मन के बियावान जंगलों में निरुद्देश्य..... दिशाविहीन.....

इरशाद क़ामिल इन्ही भावनाओं को अपने बोलों में खूबसूरती से उतारते हैं।.सलीम सुलेमान का संगीत तो मधुर है पर एक Déjà vu का सा आभास देता है। गीत के पार्श्व में गिटार और तबले की संगत अंत तक चलती है। प्रीतम और विशाल शेखर की हिंदी अंग्रेजी मिश्रित शैली को यहाँ सलीम सुलेमान भी कुशलता से अपनाते नज़र आते हैं। तो आइए सुनें शफक़त अमानत अली खाँ की आवाज़ में ये गीत..



लफ़्ज़ों से जो था परे
खालीपन को जो भरे
कुछ तो था तेरे मेरे दरमियाँ
रिश्ते को क्या मोड़ दूँ
नाता यह अब तोड दूँ
या फिर यूँ ही छोड़ दूँ ,
दरमियाँ
बेनाम रिश्ता वो ..बेनाम रिश्ता वो ,
बेचैन करता जो हो ना .. सके जो बयान , दरमियाँ दरमियाँ
दरमियाँ दरमियाँ दरमियाँ दरमियाँ कुछ तो था तेरे मेरे दरमियाँ

Oh its a special feeling
These moments between us
How will I live without you

आँखों में तेरे साये चाहूँ तो हो न पाए
यादों से तेरी फासला हाय
जा के भी तू ना जाए
ठहरी तू दिल में हाए
हसरत सी बन के क्यूँ भला
क्यूँ याद करता हूँ मिटता हूँ बनता हूँ
मुझको तू लाई यह कहाँ
बेनाम  रिश्ता  वो..दरमियाँ

Hard for us to say
It was so hard for us to say
Can't close a day by day
But Then the world's got me in way

चलते थे जिन पे हम तुम
रास्ते वो सारे हैं गुम
अब  ढूँढें कैसे  मंजिलें
रातें हैं जैसे मातम
आते हैं दिन भी गुमसुम
रूठी हैं सारी महफ़िलें
इतना सताओ ना, यूँ याद आओ ना
बन जाएँ आँसू ही जुबाँ
बेनाम  रिश्ता  वो..दरमियाँ

इस गीत के एक अंतरे को श्रेया घोषाल ने भी गाया है। श्रेया से ये गीत धीमे टेम्पो में गवाया गया है। गिटार की बीट्स की जगह पियानो की टनटनाहट के बीच से आती श्रेया की मधुर आवाज़ दिल पर सीधे चोट करती है।


शनिवार, मार्च 05, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे... कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे...

वार्षिक संगीतमाला 2010 का सफ़र अब अपने अंतिम दौर में पहुँच गया है। और अब बात बची है संगीतमाला के प्रथम पाँच गीतों की। ये पाँचों नग्मे ऍसे हैं जिनको सुन कर मन उनमें डूबता सा जाता है। वैसे भी जब कोई गीत आपको अपने अभी के मूड से हटाकर सीधे गीत की भावनाओं में बहा ले जाता है तो वो आपके लिए विशिष्ट हो उठता है। पाँचवी पॉयदान के इस गीत को गाया है शफक़त अमानत अली खाँ और सुनिधि चौहान ने। फिल्म का नाम तो आप समझ ही चुके होंगे 'I Hate Luv Storys'.

मैंने ये फिल्म नहीं देखी पर इसके गीत संगीत पर विशाल शेखर ने जो काम किया है वो निश्चय ही प्रशंसनीय है। जैसा कि अनजाना अनजानी के गीत तू ना जाने आस पास है ख़ुदा ... के बारे में बातें करते वक़्त मैंने आपको बताया था कि विशाल और शेखर एकदम भिन्न संगीतिक परिवेश से आए हैं। पर इस भिन्नता को इन्होंने अपनी ताकत की तरह इस्तेमाल किया है। कुछ दिनों पहले मैं कोमल नाहटा द्वारा उनके टीवी पर लिए साक्षात्कार को सुन रहा था। साक्षात्कार में उनसे पूछा गया कि अपना संगीत वो किस तरह रचते हैं। क्या उनके पास कोई म्यूजिक बैंक है ? विशाल शेखर का कहना था..

आज का युग धुनों को इकट्ठा करके उन्हें इस्तेमाल करने का नहीं रह गया है। आज तो सारे निर्देशक हमें स्क्रिप्ट लिखने के समय से ही हमें विचार विमर्श में शामिल कर लेते है। हमारी खुशकिस्मती है कि अब तक हम लोगों ने जितने निर्देशकों के साथ काम किया है उनमें ज्यादातर हमारे निकट के मित्र थे। इसलिए धुन सुनाते समय हमें उनकी निष्पक्ष राय मिलती रही। वैसे भी अगर हम सफल हैं तो बस ऊपरवाले की वजह से। चाहे हम कितनी भी मेहनत कर लें पर विश्वास मानिए वो मेहनत गीत का मुखड़ा हमारे मन में नहीं लाती। हमारे अधिकांश लोकप्रिय नग्मों का सृजन कॉफी शाप में, गाड़ी में ड्राइव पर या ऐसी ही किसी अनौपचारिक अवस्था में हुआ है । इसीलिए हम अपने आप को बस एक माध्यम मानते हैं उसका जो हमसे ये करा रहा है। कोई गीत हिट होगा या नहीं इससे ज्यादा हमें ये बात ज्यादा मायने की लगती है कि हम अपने रचे संगीत का आनंद ले पा रहे हैं या नहीं।

विशाल ददलानी इस गीत के गीतकार भी हैं। गीतकार और संगीतकार की दोहरी भूमिकाएँ वो पहले भी निभा चुके हैं। वैसी भी रॉक बैंड से अपने संगीत के सफ़र की शुरुआत करने वाले विशाल को ये काम आसान लगता है क्यूँकि बैंड में काम करने वालों को गीत लिखने से लेकर उसके संगीत और गायन का काम खुद ही करना पड़ता है।

गिटार की धुन और फिर शुरुआती अंग्रेजी कोरस से इस गीत का आगाज़ होता है।

Lost n lonely coz you're the only
One that knows me
That I can't be without you
Lost n lonely coz you're the only
One that knows me
That I can't be without you


फिर उभरती है पार्श्व से शफक़त अमानत अली खाँ की आवाज़ जो मुखड़े के साथ ही आपको गीत की उदासी में भिंगो लेती है। बन कर बिगड़ते रिश्तों की पीड़ा गीत में सहज ही व्यक्त होती है। नतीजा ये कि नायक की जिंदगी का एकाकीपन आपको भी काटने सा दौड़ता है । खासकर तब जब अमानत तरह तरह से बिन तेरे..कोई ख़लिश है हवाओं में को अपने अलग अलग अंदाजों में दोहराते हैं। शफक़त अमानत अली खाँ , राहत की तरह हिंदी फिल्मों में निरंतरता से तो नहीं गाते पर अपने गिने चुने गीतों में वो खासा असर छोड़ जाते हैं। मितवा... और मोरा सैयाँ मोसे बोले ना... में उनकी गायिकी का मैं हमेशा से मुरीद रहा हूँ। तो आइए सुने उनकी व सुनिधि की आवाज़ में इस बेहतरीन नग्मे को...



है क्या ये जो तेरे मेरे दरमियाँ है
अनदेखी अनसुनी कोई दास्तां है
लगने लगी अब ज़िन्दगी खाली, है मेरी
लगने लगी हर साँस भी खाली
बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे
कोई ख़लिश है हवाओं में बिन तेरे

अजनबी से हुए क्यूँ पल सारे
ये नज़र से नज़र ये मिलाते ही नहीं
इक घनी तन्हाई छा रही है
मंजिलें रास्तों में ही गुम होने लगी
हो गयी अनसुनी हर दुआ अब मेरी
रह गयी अनकही बिन तेरे
बिन तेरे. बिन तेरे..बिन तेरे

राह में रौशनी ने है क्यूँ हाथ छोड़ा
इस तरफ शाम ने क्यूँ है अपना मुँह मोड़ा
यूँ के हर सुबह इक बेरहम सी रात बन गयी
है क्या ये ......

ये गीत इरफान खान और सोनम कपूर पर फिल्माया गया है और कोई ताज्जुब नहीं कि दोनों ही इसे इस फिल्म का सबसे अच्छा गीत मानते हैं।


इस गीत का एक और वर्सन भी फिल्म में है जिसे लिखा है कुमार ने और गाया है शेखर ने। इस वर्सन की खास बात ये है कि इसमें वाद्य यंत्र के रूप में सिर्फ गिटार का इस्तेमाल हुआ है।



चलते चलते गीत के मूड को क़ायम रखना चाहता हूँ कंचन जी की इन पंक्तियों के साथ

हँसी बेफिक्र वही और हमारी फिक्र वही,
तेरी शरीर निगाहों में मेरा ज़िक्र वही,
दिखाई देती न हो उसकी इबारत लेकिन,
है सारी बात फिज़ा में वही, हवा में वही...


तुम्हारी खुशबू अभी भी यही पे बिखरी है
तुम्हारी मुस्कुराहटें हैं आस पास वही...

रविवार, जून 28, 2009

राग 'ख़माज' पर आधारित एक प्यारा नग्मा "मोरा सैयां मोसे बोले ना....."

'सा रे गा मा पा' जी टीवी का एक ऍसा कार्यक्रम है जिसके प्रतिभागी हर साल कुछ ऍसे गीत जुरूर चुनते हैं जिसमें उनकी गायन प्रतिभा निखरकर आ सके। अभी पिछले हफ्ते की बात है, पीसी के सामने बैठकर कीबोर्ड पर उंगलियाँ घिस रहा था कि बगल के कमरे से इस गीत का मुखड़ा सुना। दौड़ कर गया तो देखा तो दुबई से आए गायक 'अमानत अली' इस गीत को बड़ी संजीदगी से गा रहे हैं। गाना तो खत्म हो गया पर गीत का ये जुमला "मोरा सैयां मोसे बोले ना....." मन में रच-बस गया। मन ही मन अपने को कोसा कि ये गीत अगर इतना लोकप्रिय है, कि दिया मिर्जा , जी टीवी के उस शो में आने के पहले उसे अपनी गाड़ी में सुन रहीं थीं तो मैं अब तक इसे क्यूँ नहीं सुन पाया।



अंतरजाल पर खोज के बाद पता चला कि ये किसी फिल्म का गीत नहीं बल्कि पाकिस्तान के म्यूजिक बैंड फ्यूजन की एलबम 'सागर' का एक ट्रैक है। ये बैंड शफकत अमानत अली खाँ (गायन), इमरान मोमिन ( कीबोर्ड ) और शालुम जेवियर( गिटॉर) का सम्मिलित प्रयास है। इस गीत की खासियत ये है कि इस गीत की बंदिश राग ख़माज पर आधारित है और शफ़कत ने इसे गाया भी बेहद खूबसूरती से है। अगर शफकत अमानत अली खाँ आपके लिए नया नाम हो तो ये बता देना जरूरी होगा कि ये वही शफ़कत है जिनके गाए 'कभी अलविदा ना कहना' के गीत मितवा... पर सारा देश झूम उठा था। पटियाला घराने से जुड़े शफ़कत से जब ये पूछा गया कि ठेठ शास्त्रीय गायन को छोड़ कर उन्हें इस तरह का एलबम करने की क्या सूझी तो उनका जवाब था कि

"शास्त्रीय संगीत में थोड़ी मीठी चाशनी लगा हम आज के युवाओं को परोस रहे हैं। आज हमारे कार्यक्रमों में युवा आते हैं और कहते हैं कि 'ख़माज' गाईए। उनमें से अधिकतर को इस राग के बारे में पता नहीं होता। पर ये भी जरूर होगा कि उनमें से कईयों में इसे सीखने की रुचि जाग्रत होगी।"

इस गीत के बोल बिलकुल सीधे सरल हैं...अपने पिया के विरह वियोग में डूबी नायिका की करुण पुकार। इस सलीके से शफ़कत ने उन भावनाओं को अपने सुर के उतार चढ़ाव के साथ समाहित किया है कि इसे सुनते सुनते मन खोने सा लगता है ..कुछ क्षणों के लिए अपने चारों ओर की दुनिया बेमानी सी लगने लगती हैं...सच्ची लगती हैं तो बस इस गीत की भावनाएँ ..

सावन बीतो जाए पीहरवा
मन मेरा घबड़ाए
ऍसो गए परदेश पिया तुम
चैन हमें नही आए
मोरा सैयां मोसे बोले ना....
मैं लाख जतन कर हारी
लाख जतन कर हार रही
मोरा सैयां मोसे बोले ना....

तू जो नहीं तो ऍसे पिया हम
जैसे सूना आंगना
नैन तेरी राह निहारें
नैनों को तरसाओ ना
मोरा सैयां मोसे बोले ना....
मैं लाख जतन कर हारी..
लाख जतन कर हार रही
मोरा सैयां मोसे बोले ना....

प्यार तुम्हें कितना करते हैं
तुम ये समझ नहीं पाओगे
जब हम ना होंगे तो पीहरवा
बोलो क्या तब आओगे ?
मोरा सैयां मोसे बोले ना....
मैं लाख जतन कर हारी
लाख जतन कर हार रही
मोरा सैयां मोसे बोले ना....


 

मेरी पसंदीदा किताबें...

सुवर्णलता
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उर्दू की आख़िरी किताब
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English, August: An Indian Story
Five Point Someone: What Not to Do at IIT
Mitro Marjani
Jharokhe
Mailaa Aanchal
Mrs Craddock
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मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
Lolita
The Pakistani Bride: A Novel


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स्पष्टीकरण

इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

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