स्वानंद किरकिरे लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
स्वानंद किरकिरे लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, मई 24, 2025

वार्षिक संगीतमाला 2024 Top 25: धीमे-धीमे चले पुरवैया

देश में युद्ध के बादल थम चुके हैं। जब हमारे पराक्रमी सैनिक और सरहदों के पास रहने वाले देशवासी युद्ध जैसी परिस्थितियों का सामना कर रहे हों तो फिर दिल में गीत संगीत की बात तो उठती ही नहीं, बस एक ही भाव रहता है कि जल्द से जल्द देश का अहित चाहने वालों का नाश हो और हमारी सेना अपने लक्ष्य में सफल हों। यही वज़ह थी की वार्षिक संगीतमाला पर पिछले एक महीने से मैंने बीच में ही विराम लगा दिया था।


अब जबकि युद्ध के बादलों की जगह बारिश के बादलों ने ले ली है तो इस संगीतमाला को फिर से शुरु करते हुए लौटते हैं पिछले साल के बेहतरीन गीतों की इस शृंखलाकी उन्नीसवीं पायदान के इस गीत की तरफ जिसे लिखा स्वानंद किरकिरे ने, धुन बनाई राम संपत ने और गाया श्रेया घोषाल ने। फिल्म लापता लेडीज़ तो आपमें से बहुतों ने देखी होगी और ये गीत फिल्म के सुखद अंत के समय आता है जब जया अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक नए सफ़र पर निकल पड़ती है। स्वानंद जया के मन को कुछ इन पंक्तियों में बाँधने की प्यारी कोशिश करते हैं।

धीमे-धीमे चले पुरवैया बोले, "थाम तू मेरी बैयाँ" 
संग चल मेरे, रोके क्यूँ जिया हो, 
धीमे-धीमे चले पुरवैया

रुत ये अनोखी सी आई, सजनिया
बादल की डोली में लो बैठी रे बुँदनिया
धरती से मिलने को निकली सावनिया
सागर में घुलने को चली देखो नदिया, धीमे-धीमे चले पुरवैया...

एक ऐसे अनजान गाँव से जहाँ नियति के चक्र ने उसे अचानक ला खड़ा किया था, जया अपने सपनों का मुकाम तलाशने शहर की ओर जा रही है। गाँव नदी, शहर समंदर और बादल की वो बूँद अगर जया हो तो स्वानंद का लिखा ये अंतरा कितना सार्थक हो उठता है। नई उम्मीद का संचार करता गीत का दूसरा अंतरा भी उतना ही प्रभावी है। 

नया सफ़र है, एक नया हौसला, बाँधा चिड़ियों ने नया घोंसला
नई आशा का दीपक जला, चला सपनों का नया क़ाफ़िला
कल को करके सलाम, आँचल हवाओं का थाम
देखो उड़ी एक धानी चुनरिया, हो, धीमे-धीमे चले पुरवैया...


संगीतकार राम संपत ने शांत करती गीत की धुन के साथ तार वाद्यों का न्यूनतम संयोजन रखा है। श्रेया घोषाल की आवाज़ के साथ बस आँख बंद कर इस गीत की भावनाओं को दिल में समेटिए। एक बहती धारा की कलकल ध्वनि के बगल में बैठकर  दिल में जो आनंद का अनुभव होता है कुछ वैसा ही शायद इस गीत को सुनकर आप महसूस करें।

गुरुवार, अप्रैल 18, 2024

वार्षिक संगीतमाला 2023 : बोलो भी, बोलो ना

वार्षिक संगीतमाला के अब अंतिम चरण में प्रवेश करते हुए ऊपर की इस पायदान पर मधुर स्वरलहरी गूंज रही है श्रेया घोषाल की। ये नग्मा है फिल्म 12th Fail का जिसने पिछले साल खासी तारीफ़ बटोरी थी।निर्माता निर्देशक विधु विनोद चोपड़ा ने इस फिल्म के गीत संगीत की जिम्मेदारी दी थी शांतनु मोइत्रा और स्वानंद किरकिरे की जोड़ी को। स्वानंद के बारे में तो पहले भी आपको बता ही चुका हूँ आज थोड़ी बातें शांतनु की।

12th फेल के मुख्य किरदार की तरह ही शांतनु का आरंभिक जीवन मध्यमवर्गीय परिवार में बीता जो संगीत को शौक़ की तरह लेने का हिमायती तो था पर पढ़ाई लिखाई के साथ। शांतनु के पिता अपनी नौकरी के साथ साथ सरोद बजाने में भी माहिर थे। पिता के संगीत से इस जुड़ाव ने शांतनु को भी इस विधा को अपनाने के लिए प्रेरित किया। शांतनु ने उस ज़माने में रेडियो पर तरह तरह के कार्यक्रमों को सुनकर अपनी सांगीतिक समझ को पुख्ता किया और इसीलिए परिणिता जैसी पीरियड फिल्म से लेकर Three Idiots जैसी युवा चरित्रों से जुड़ी फिल्मों में बेहतरीन संगीत रचने  में सफल साबित हुए।


हजारों ख्वाहिशें ऐसी, परिणिता, Three Idiots, PK, लगे रहो मुन्ना भाई, खोया खोया चाँद जैसी तमाम फिल्मों में कमाल का गीत संगीत दिया है इस जोड़ी ने। 

शांतनु ने फिल्म की पटकथा पढ़ी। मनोज और श्रद्धा के किरदार के बीच पनप रहे अव्यक्त प्रेम के लिए जब उन्होंने धुन बनानी शुरू की तो उनके मन में जो शब्द गूँजे, वो थे.... बोलो भी बोलो ना...। फिर वे स्वानंद के पास गए और कहा तुम इस पंक्ति और धुन के इर्द गिर्द गीत लिख दो। स्वानंद का पहला जवाब था मुझसे ना हो पाएगा।

शांतनु का कहना है कि स्वानंद के साथ पिछले दो दशकों के साथ ने उन्हें सिखा दिया है कि वे डेडलाइन के दबाव में काम करना पसंद नहीं करते। उनको धुन दे दो, खुला छोड़ दो तो ख़ुद मिनटों में गीत लेकर तैयार हो जाते हैं। जैसी उम्मीद थी स्वानंद गीत ले के आए और शांतनु ने ये गीत श्रेया घोषाल और शान की आवाज़ में रिकार्ड कर लिया।

बेहद मधुर धुन बनाई हैं शांतनु ने इस गीत के लिए। गिटार की प्यारी टुनटुनाहट से गीत शुरु होता है और फिर श्रेया की आवाज़ में गीत का सुरीला मुखड़ा सुनकर मन खुश हो जाता है। पहले अंतरे के बाद शान गीत में आते जरूर हैं पर बेहद कम समय के लिए। स्वानंद गीत के बोलों में प्रेम की अंतरध्वनि को प्राकृतिक बिबों के सहारे बखूबी ढूँढते हैं। गीत में बाँसुरी बजाई है आश्विन श्रीनिवासन और गिटार पर हैं रिकराज नाथ।

ये पतंगें अम्बर से कहती हैं क्या, सुन लो
ये हवाएँ कहती क्या बादल से, हाँ, सुन लो, हाँ
क्या कहें दिल से धड़कनें पागल
सुन लो क्या बोले साँसों की हलचल

बाँसुरी होंठों से जो कहे, तुम लबों से बोलो ना
तितलियाँ जो फूलों से कहें, तुम नज़र से बोलो ना
हौले से बोलो ना, चुपके से बोलो ना
बोलो ना, हाँ, बोलो ना, बोलो भी, बोलो ना


सुन लो क्या बोलें बूँदें सावन से
सुन लो क्या बोलें बूँदें सावन से
क्या कहें आँसू भीगे काजल से
बोलो ना, हाँ, बोलो ना, बोलो भी, बोलो ना


तो आइए सबसे पहले सुनते हैं ये गीत श्रेया और शान की आवाज़ में

   

गाना तो श्रेया और शान की आवाज़ में रिकार्ड हो चुका था पर पर विधु विनोद चोपड़ा के मन में कुछ और ही चल रहा था। फिल्म में वो ये गीत किरदारों से लोकेशन पर गवाना चाहते थे ताकि वो दृश्य ज्यादा से ज्यादा स्वाभाविक लग सके। इसीलिए नायिका का चुनाव करते समय एक पात्रता ये रखी गयी कि उसे अभिनय के आलावा गायिकी भी आनी चाहिए। मेधा शंकर को चुनने के पीछे एक कारण ये भी रहा कि उन्होंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा ली हुई थी। 

फिल्म में जब ये गाना आता है तो विधु विनोद चोपड़ा ने मेधा की आवाज़ शूट के साथ ही रिकार्ड की थी। नतीजा ये हुआ कि इस गीत को गवाते हुए नायिका के मन का असमंजस और भावों की कोमलता को चोपड़ा स्वाभाविक रूप में दिखा सके। 

और ये है इस गीत का फिल्म वर्सन जिसमें आवाज़ है मेधा की

 
वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
  1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
  2. तुम क्या मिले
  3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
  4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
  5. आ जा रे आ बरखा रे
  6. बोलो भी बोलो ना
  7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
  8. नौका डूबी रे
  9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
  10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
  11. वे कमलेया
  12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
  13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
  14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
  15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
  16. बाबूजी भोले भाले
  17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
  18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
  19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
  20. ओ माही ओ माही
  21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
  22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
  23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
  24. दिल झूम झूम जाए
  25. कि रब्बा जाणदा

    गुरुवार, फ़रवरी 15, 2024

    वार्षिक संगीतमाला 2023 : नौका डूबी रे

    वार्षिक संगीतमाला में पिछले साल के बेहतरीन गीतों के इस सिलसिले में आज का जो गीत है उसका नाम है नौका डूबी। ऐसे तो नौका डूबी रवीन्द्रनाथ टैगोर का एक मशहूर उपन्यास भी है जिसकी कहानी पर कई बार हिंदी और बंगाली में फिल्में बनी हैं पर आज इसी नाम के जिस गीत की चर्चा मैं करने जा रहा हूँ उसका टैगोर के उपन्यास से बस इतना ही लेना देना है कि वहाँ भी एक नौका डूबती है और कहानी में उथल पुथल मचा देती है जबकि इस गीत में रिश्तों की नैया डूबती उतरा रही है। 

    ये गीत है पिछले साल आई फिल्म Lost का और इसे लिखा है मेरे प्रिय गीतकार स्वानंद किरकिरे ने, धुन बनाई है उनके पुराने जोड़ीदार शांतनु मोइत्रा ने। चूंकि ये फिल्म एक ऐसे OTT प्लेटफार्म पर आई जो उतना लोकप्रिय नहीं है इसी वज़ह से आप में से अधिकांश ने शायद ये गीत न सुना हो। पर इस गीत के साथ साथ किसी गुमशुदा इंसान की खोज करती एक महिला पत्रकार की कहानी भी बेहद सराही गई थी।


    एक ज़माना था जब मदनमोहन जैसे कई संगीतकार लता जी की आवाज़ और क्षमतको ध्यान में रखकर गीत की धुनें बनाते थे और आज वही रुतबा श्रेया घोषाल ने अपने लिए अर्जित किया है। आज की तारीख़ में उनकी कोशिश यही रहती है कि वे ऐसे गाने लें जिसमें उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिले।

    किशोरावस्था में देवदास से अपना फिल्म संगीत का सफ़र शुरू करने वाली श्रेया को आज फिल्म जगत में बीस से ज्यादा साल हो चुके हैं पर आज भी आवाज़  की उस मिश्री सी खनक के साथ साथ उनमें नया कुछ करने की वैसी ही ललक है जैसी मुझे सोनू निगम और अरिजीत में दिखाई देती है। 

    कमाल गाया है उन्होंने ये गीत। ऊँचे से एकदम नीचे सुरों का उतार चढ़ाव वे इतनी सहजता से लाँघती है कि सुन के आनंद आ जाता है। शांतनु का शांत संगीत तार वाद्यों, हारमोनियम और बाँसुरी की मदद से गीत के साथ बहता चलता है।

    शहर समंदर ये दिल का शहर समंदर
    दो कश्तियाँ थी तैरती, यहाँ बनके हमसफ़र 
    ओ कितना हसीं दिखता था, वो इश्क़ का मंज़र
    तभी वक्त की एक आँधी उठी आया बवंडर

    खोया मेरा प्यार, खोया ख़्वाब खोया, नौका डूबी रे
    तेरा मेरा साथ छूटा, फिर बने हम अजनबी रे
    खोया मेरा चाँद खोया, चाँदनी अम्बर से टूटी रे
    तेरा मेरा साथ छूटा, फिर बने हम अजनबी रे

    शहर समंदर ये दिल का, शहर समंदर
    दो कश्तियाँ थी तैरती, यहाँ हो के बेखबर
    तू रात में ही उलझा था मैं बन गई सहर
    तू साँसें माँगता था और मैं पी गयी ज़हर 

    हम दोनों दो किनारे, पास नहीं हैं
    कैसे कह दें, हम जुदा हैं, हम दूर नहीं हैं
    परछाइयाँ बन दूर रह के साथ चलेंगे
    कभी आना तुम ख़्यालों में, हम बातें  करेंगे

    खोया मेरा प्यार...हम अजनबी रे
    खोया मेरा चाँद खोया, हम अजनबी रे
    अजनबी रे... अजनबी रे.

    अंबर से चांदनी के टूटने का बिंब तो प्रभावी लगता ही है पर अगले अंतरे में स्वानंद की लेखनी दिल में टीस सी पैदा करती है जब वो लिखते हैं तू रात में ही उलझा था मैं बन गई सहर..तू साँसें माँगता था और मैं पी गयी ज़हर

    ZEE5 पर प्रदर्शित फिल्म Lost के इस गीत को बेहद खूबसूरती से  फिल्माया है यामी गौतम और नील भूपालम पर


    गीत के आडियो वर्सन में स्वानंद का लिखा एक और अंतरा भी है और हां उन्होंने ख़ुद भी इस गीत को गाया है एल्बम में।

    शहर समंदर ये दिल का, शहर समंदर
    दो कश्तियाँ थी तैरती, यहाँ हो के बेखबर
    तू रात में ही उलझा था मैं बन गई सहर
    तू साँसें माँगता था और मैं पी गयी ज़हर 


    वार्षिक संगीतमाला का ये गीत फिलहाल प्रथम दस के आप पास मँडरा रहा है। आशा है आप लोगों को भी ये उतना ही पसंद आएगा।

    वार्षिक संगीतमाला 2023 में मेरी पसंद के पच्चीस गीत
    1. वो तेरे मेरे इश्क़ का
    2. तुम क्या मिले
    3. पल ये सुलझे सुलझे उलझें हैं क्यूँ
    4. कि देखो ना बादल..नहीं जी नहीं
    5. आ जा रे आ बरखा रे
    6. बोलो भी बोलो ना
    7. रुआँ रुआँ खिलने लगी है ज़मीं
    8. नौका डूबी रे
    9. मुक्ति दो मुक्ति दो माटी से माटी को
    10. कल रात आया मेरे घर एक चोर
    11. वे कमलेया
    12. उड़े उड़नखटोले नयनों के तेरे
    13. पहले भी मैं तुमसे मिला हूँ
    14. कुछ देर के लिए रह जाओ ना
    15. आधा तेरा इश्क़ आधा मेरा..सतरंगा
    16. बाबूजी भोले भाले
    17. तू है तो मुझे और क्या चाहिए
    18. कैसी कहानी ज़िंदगी?
    19. तेरे वास्ते फ़लक से मैं चाँद लाऊँगा
    20. ओ माही ओ माही
    21. ये गलियों के आवारा बेकार कुत्ते
    22. मैं परवाना तेरा नाम बताना
    23. चल उड़ चल सुगना गउवाँ के ओर
    24. दिल झूम झूम जाए
    25. कि रब्बा जाणदा

      सोमवार, जनवरी 11, 2021

      वार्षिक संगीतमाला 2020 : गीत # 19 : रात है काला छाता... Raat Hai Kala Chhata

      आज जिस गीत को आपके सामने ले के आ रहा हूँ वो ज्यादातर लोगों के लिए अनजाना ही होगा। दरअसल ये एक ऐसा गीत है जो उस दौर के गीत संगीत की याद दिला आता है जिसे फिल्म संगीत का स्वर्णिम काल कहा जाता है। श्री वल्लभ व्यास के लिखे इस गीत के बोल थोड़े अटपटे से हैं पर उसे स्वानंद किरकिरे अपनी खुशमिजाज़ आवाज़ से यूँ सँवारते हैं कि उन्हें सुनते सुनते इस गीत को गुनगुनाने का दिल करने लगता है। वही ठहराव और वही मधुरता जो आजकल के गीतों में बहुत ढूँढने से मिलती है।

      ये गीत है फिल्म सीरियस मेन का जो नेटफ्लिक्स पर पिछले अक्टूबर में रिलीज़ हुई थी। वैज्ञानिकों के बीच छोटे पद पर काम करते हुए अपने को कमतर माने जाने की कसक नायक के दिलो दिमाग में इस कदर घर कर जाती है कि वो प्रण करता है कि अपने बच्चे को ऐसा बनाएगा कि सारी दुनिया उसकी प्रतिभा को नमन करे। पर इस काली रात से सुबह के उजाले तक पहुँचने के लिए वो अपने तेजाबी झूठ का ऐसा जाल रचता जाता है कि गीतकार को कहना पड़ता है...रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद.... तेजाब उड़ेला किसने इस पर जान ना पाए भेद


      इस गीत की मूल धुन का क्रेडिट गीत में फ्रांसिस मेंडीज़ को दिया गया है पर इसे इस रूप में लाने का श्रेय है असम से ताल्लुक रखने वाले अनुराग सैकिया को जो पहले भी अनुभव सिन्हा की फिल्मों में अपने बेहतरीन काम से हिंदी फिल्म जगत में अपना सिक्का जमा चुके हैं। प्रवासी मजदूरों पर गीतकार सागर के लिखे लोकप्रिय गीत मुंबई में का बा का संगीत निर्देशन भी उन्होंने ही किया था। इस गीत के संगीत संयोजन में उन्होंने गिटार और बैंजो के आलावा पियानिका और मेंडोलिन का प्रयोग किया है। इन वाद्य यंत्रों पर उँगलियाँ थिरकी हैं सोमू सील की।

      रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद
      तेजाब उड़ेला किसने इस पर जान ना पाए भेद
      ता रा रा रा.रा रा ... रा रा रा.रा रा .

      अब खेलेगा खेल विधाता, चाँद बनेगा बॉल, बॉल... 
      सभी लड़कियाँ सीटी होंगी सारे शहर को कॉल
      खेल में गड़बड़ नहीं चलेगी, सीटी हरदम बजी रहेगी
      जारा ध्यान से इसे बजाना, खुल जाएगी पोल

      हम आवारा और लफंगे हैं, लेते सबसे पंगे हैं
      लेकिन पंगे सँभल के लेना, वर्ना पड़ जाएगा लेने को देना
      रात है काला छाता जिस पर इतने सारे छेद...

      तो आइए सुनें स्वानंद की आवाज़ में सीरियस मेन के इस गीत को..


      है ना मजेदार गाना? वैसे अगर आप में से किसी ने इसकी मूल धुन सुनी हो तो मुझे जरूर बताएँ। 

      वार्षिक संगीतमाला 2020


      शुक्रवार, जनवरी 25, 2019

      वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 5 : मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा.... Manwaa

      साल के पच्चीस शानदार गीतों के सफ़र का अंतिम पड़ाव अब नजदीक आ रहा है। बचे पाँच गीतों में तीन तो आपने अवश्य सुने होंगे पर जो दो नहीं सुने उनमें से एक से आपको आज मिलवाने का इरादा है। ये गीत है फिल्म अक्टूबर का  और इसे बनाने वाली जो गीतकार संगीतकार की जोड़ी है वो मुझे बेहद प्रिय रही है। आप समझ ही गए होंगे कि मैं स्वानंद किरकिरे और शांतनु मोइत्रा की बात कर रहा हूँ। संगीतमाला के पन्द्रह वर्षों के  सफ़र में इस जोड़ी ने कमाल के गीत दिए हैं। इनके द्वारा सृजित बावरा मन, चंदा रे, रात हमारी तो, बहती हवा सा था वो, क्यूँ नए नए से दर्द.., अर्जियाँ दे रहा है दिल आओ जैसे तमाम गीत हैं जो मेरी संगीतमालाओं में अलग अलग सालों में बज चुके हैं। विगत कुछ सालों से इन मित्रों ने दूसरे संगीतकारों और गीतकारों के साथ काम किया है। शांतनु अंतिम बार दो साल पहले पिंक के अपने गीत के साथ संगीतमाला में दाखिल हुए थे। 



      शांतनु तो कहते हैं कि उनके लिए फिल्मों में संगीत देना एक शौकिया काम है। असली मजा तो उन्हें घूमने फिरने में आता है। घूमने फिरने के बीच वक़्त मिलता है तो वो संगीत भी दे देते हैं। एक समय किसी एक फिल्म पर काम करने वाले शांतनु फिल्म संगीत में कैसे दाखिल हुए इसकी कहानी भी बड़ी रोचक है।  नब्बे के दशक में वे एक विज्ञापन कंपनी के ग्राहक सेवा विभाग में काम कर रहे थे जब अचानक कंपनी के एक निर्देशक प्रदीप सरकार को एक जिंगल संगीतबद्ध करने की जरूरत पड़ी। जब वक़्त पर कोई नहीं मिला तो शांतनु ने जिम्मेदारी ली। जानते हैं क्या था वो जिंगल बोले मेरे लिप्स आइ लव अंकल चिप्स। उन्हीं प्रदीप सरकार ने बाद में उन्हें परिणिता का संगीत देने का मौका दिया।  
      स्वानंद  किरकिरे व शांतनु मोइत्रा 

      स्वानंद की थियेटर से जुड़ी पृष्ठभूमि उनसे गीत भी लिखवाती है और साथ साथ अभिनय भी करवाती है। हाल ही अपनी मराठी फिल्म में अभिनय के लिए उन्हें पुरस्कार मिला है और पिछले साल उनकी कविताओं की किताब आपकमाई भी बाजार में आ चुकी है।

      अक्टूबर तो एक गंभीर विषय पर बनाई गयी फिल्म है जहाँ नायिका एक हादसे के बाद कोमा में है। नायक उसका सहकर्मी है पर उसकी देख रेख करते हुए वो उससे भावनात्मक रूप से जुड़ जाता है। शायद उसके मन में एक आशा है कि नायिका के मन में भी शायद ऐसा कोई भाव उसके प्रति रहा हो। ये आशा भी इसलिए है  कि हादसे के ठीक पहले उसने नायक के बारे में पूछा था। बता सकने की हालत में तो ख़ैर नायिका है नहीं पर इस नायक के मन का क्या किया जाए? वो तो उदासी की चादर लपेटे रुआँसा इस इंतजार में है कि कभी तो प्रिय जगेगी अपनी नींद से। स्वानंद मन के इस विकल अंतर्नाद को बेकल हवा, जलता जियरा और चुभती बिरहा जैसे बिंबों का रूप देते हैं। 

      कहना ना होगा कि ये नग्मा साल के कुछ चुनिंदा बेहतर लिखे गए गीतों में अपना स्थान रखता है। मुझे उनकी सबसे बेहतरीन पंक्ति वो लगती है जब वो कहते हैं सोयी सोयी एक कहानी..रूठी ख्वाब से, जागी जागी आस सयानी..लड़ी साँस से। फिल्म की पूरी कथा बस इस एक पंक्ति में सिमट के रह जाती है।
      सुनिधि चौहान 

      इस गीत के संगीत में गिटार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। प्रील्यूड की मधुर धुन का तो कहना ही क्या। गिटार के पीछे हैं एक बार फिर अंकुर मुखर्जी जिनकी बजाई मधुर धुन अपने चाव लगा में सुनी थी। मुखड़े के बाद गिटार और ताल वाद्य की मिश्रित रिदम गीत के अंत तक साथ चलती है। मेरा मानना है कि 2018 में सुनिधि चौहान  के गाए बेहतरीन गीतों में मनवा सबसे ऊँचा स्थान रखता है। गीत का दर्द  उनकी आवाज़ से रिसता सा महसूस होता है। गीत में पार्श्व से उभरता आलाप प्रणव विश्वास का है।

      मनवा एक ऐसा गीत है जिसे आप फिल्म के इतर भी सुनें तो उसके प्रभाव से आप घंटों मुक्त नहीं होंगे। रिमिक्स और रैप के शोर में ऐसी धुनें आजकल कम ही सुनाई देती हैं। शांतनु चूँकि मेरी पीढ़ी के हैं इसलिए उनकी बात समझ आती है जब वो कहते हैं..
      "मैं जब बड़ा हो रहा था तो आल इंडिया रेडियो पर लता मंगेशकर, पंडित रविशंकर के साथ पश्चिमी शास्त्रीय संगीत सुना करता था। एक रेडियो स्टेशन पर तब हर तरह का संगीत बजा करता था। उस वक़्त हमारे पास चैनल बदलने का विकल्प नहीं था। मुझे हमेशा लगा है कि संगीत में ऍसी ही विभिन्नता होनी चाहिए और ये श्रोता को निर्णय लेना है कि उसे क्या सुनना है, क्या नहीं सुनना है? जो संगीत की विविधता इस देश में है वो अगर आप बच्चों और युवाओं को परोसेंगे नहीं तो वो उन अलग अलग शैलियों में रुचि लेना कैसे शुरु करेंगे?"
      युवा निर्माता निर्देशक व संगीतकार शांतनु के उठाए इस प्रश्न की गंभीरता समझेंगे ऐसे मुझे विश्वास है।
      तो चलिए अब सुनते हैं सुनिधि का गाया ये नग्मा 

      मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
      मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा
      जलता जियरा, चुभती बिरहा
      जलता जियरा, चुभती बिरहा
      सजनवा आजा, नैना रो रो थके
      सजनवा आजा, नैना रो रो थके
      मनवा रुआंसा...

      धीमे धीमे चले, कहो ना 
      कोई रात से
      हौले हौले ढले, कहो ना 
      मेरे चाँद से
      सोयी सोयी एक कहानी 
      रूठी ख्वाब से
      जागी जागी आस सयानी
      लड़ी साँस से
      साँवरे साँवरे, याद में बावरे
      नैना. नैना रो रो थके
      मनवा रुआँसा...नैना रो रो थके


       

      वार्षिक संगीतमाला 2018  
      1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
      2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
      3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
      4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
      5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
      6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
      7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
      8.  एक दिल है, एक जान है 
      9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
      10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
      11 . तू ही अहम, तू ही वहम
      12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
      13. सरफिरी सी बात है तेरी
      14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
      15. तेरा यार हूँ मैं
      16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
      17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
      18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
      19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
      20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
      21. जिया में मोरे पिया समाए 
      24. वो हवा हो गए देखते देखते
      25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

      मंगलवार, जनवरी 08, 2019

      वार्षिक संगीतमाला 2018 पायदान # 18 : खोल दे ना मुझे, आजाद कर Azaad Kar

      संगीतमाला का अगला गीत है फिल्म दास देव से। वैसे दास देव कुछ अजीब सा नाम नहीं लगा आपको? अगर लगा तो इसे अब पलट कर देखिए। आपको  देव दास नज़र आएगा। सुधीर जी की ये फिल्म इस ज़माने के देवदास और पारो का एक नया रूप खींचती है। फिल्म का जो गीत आज आपके सामने है वो पहले दरअसल फिल्म में था ही नहीं। लेखक और गीतकार गौरव सोलंकी की एक बड़ी भूमिका रही इस गीत को फिल्म में लाने की। 


      वैसे जो लोग गौरव सोलंकी से परिचित नहीं हैं वो उनके UGLY फिल्म के गीत पापा जो कि साल 2014 में एक शाम मेरे नाम का सरताज गीत बना था के बारे में अवश्य पढ़ें। रुड़की में इंजीनियरिंग की पढ़ाई से लेकर गीत, पटकथा व कहानी लेखन तक का उनका सफ़र उनकी गहरी बौद्धिक और साहित्यिक क्षमता की गवाही देता है। हाल ही में सत्याग्रह को दिये साक्षात्कार में उन्होंने दास देव के इस गीत के बनने की कहानी कुछ यूँ बयाँ की थी।

      ‘दास देव’ की रिलीज से पहले सुधीर जी इसे अपने दोस्तों, फिल्मों से जुड़े लोगों को दिखा रहे थे, उनका फीडबैक ले रहे थे. उनका कहना था कि मैं बहुत वक़्त से जुड़ा हूँ  इस फिल्म से तो मेरी ऑब्जेक्टिविटी चली गई है, तुम बाहरी की नजर से देखो और कुछ जोड़ना हो तो बताओ। तो हमने बैठकर उसमें कुछ चीजें जोड़ीं, कुछ घटाईं। इसी दौरान वे जब सभी से पूछ रहे थे कि तुम्हारी क्या राय है तो मैंने कहा कि अगर अंत में कोई गाना हो तो फिल्म का क्लोजर बेहतर हो जाएगा। फिल्म देखकर उस गाने का एब्सट्रेक्ट-सा थॉट मेरे दिमाग में था भी. मैंने कहा कि आपके पास पहले से जो गाने रिकॉर्डेड हैं उनमें से कोई इस्तेमाल कर लीजिए अगर सिचुएशन पर फिट हो तो, नहीं तो मैं लिखने की कोशिश करता हूँ . इस तरह ‘आजाद हूँ ’ ईजाद हुआ!
      दास देव की कहानी एक ऐसे चरित्र पर केंद्रित है जो एक जाने माने सोशलिस्ट नेता  की अय्याश संतान है और जिसे विकट परिस्थितियों में राजनीति के दलदल में उतरना पड़ता है। ये गाना उस किरदार के बीते हुए जीवन के अच्छे बुरे लमहों. अपेक्षाओं, निराशाओं आदि से आजाद होकर एक नई राह पकड़ने की बात करता है । जिंदगी के ब्लैकबोर्ड से सब मिटाकर एक नए पाठ की शुरुआत जैसा कुछ करने की सोच डाली है गौरव ने इस गीत में।

      स्वानंद किरकिरे 
      स्वानंद किरकिरे जब भी गायिकी की कमान सँभालते हैं कुछ अद्भुत हो होता है। सुधीर मिश्रा की ही फिल्म हजारों ख्वाहिशें ऐसी में भी उनकी गहरी आवाज़ बावरा मन देखने चला एक सपना से गूँजी थी। परिणिता में उनका गाया रात हमारी तो चाँद की सहेली थी आज भी बारहा अकेलेपन में दिल के दरवाजों पर दस्तक देता रहा है। इस गीत में भी उनकी आवाज़ की गहनता नायक के दिल की कातर पुकार से एकाकार होती दिखती है।

      गीत में अगर कोई कमी दिखती है तो वो इसका छोटा होना। वास्तव में ये गीत लंबा था और एक कविता की शक्ल लिए था। गीत का दूसरा अंतरा सुधीर मिश्रा ने हटवा दिया ये कहते हुए कि ज्यादा लंबा होने से गीत की सादगी चली जाएगी।

      अनुपमा राग व  गौरव सोलंकी 

      इस शब्द प्रधान गीत का संगीत संयोजन किया है अनुपमा राग ने। हिंदी फिल्म संगीत में संगीत संयोजन एक ऍसी विधा रही है जहाँ महिलाओं की उपस्थिति नगण्य ही रही है। पुरानी फिल्मों में उषा खन्ना और पिछले दशक में स्नेहा खनवलकर को छोड़ दें तो शायद ही किसी ने अपनी अलग पहचान बनाई हो पर पिछले साल से एक नए परिवर्तन की झलक मिलनी शुरु हो गयी है। अब महिलाएँ भी पूरे आत्मविश्वास के साथ इस विधा में कूद रही हैं और उनमें से तीन की संगीतबद्ध रचनाएँ इस वार्षिक संगीतमाला के पच्चीस बेहतरीन गीतों में अपनी जगह बनाने में सफल हुई हैं। अब तक मैंने आपकी मुलाकात हिचकी की संगीत निर्देशिका जसलीन कौर रायल से कराई थी। जहाँ तक अनुपमा राग का सवाल है ये गीत हिन्दी फिल्मों में की गयी उनकी पहली संगीत रचना है। नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों के खानदान से ताल्लुक रहने वाली अनुपमा खुद उत्तर प्रदेश की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत हैं। 

      लखनऊ की भातखंडे विश्वविद्यालय से संगीत विराशद अनुपमा फिलहाल अपनी सरकारी नौकरी से एक विराम लेकर मुंबई की मायावी दुनिया में अपनी किस्मत आजमा रही हैं। हिंदी फिल्मों में पिछले पाँच सालों में उन्होंने गुलाबी गैंग, जिला गाजियाबाद, बिन बुलाये बाराती जैसी फिल्मों में कुछ नग्मे गाए हैं। फिल्म संगीत के इतर उनके निजी एलबम और सिंगल्स भी बीच बीच में आते रहे हैं।

      अनुपमा का संगीत गीत की गंभीरता के अनुरूप है और वो शब्दों पर हावी होने की कोशिश नहीं करता। 

      हम थे कहाँ, ना याद कर
      फिर से मुझे ईजाद कर
      खोल दे ना मुझे, आजाद कर

      हर इक तबाही से, सारे उजालों से
      मुझको जुलूसों की सारी मशालों से
      सारी हक़ीकत से, सारे कमालों से
      मुझको यकीं से तू, सारे सवालों से
      आजाद कर आजाद कर

      ना तुम हुकुम देना
      ना मुझ से कर फरियाद
      मुझ को गुनाहों से
      माफी से कर आजाद
      सारी हक़ीकत से, सारे कमालों से
      मुझको यकीं से तू, सारे सवालों से
      आजाद कर आजाद कर

      तो आइए सुनते हैं इस गीत को...




      वार्षिक संगीतमाला 2018  
      1. मेरे होना आहिस्ता आहिस्ता 
      2जब तक जहां में सुबह शाम है तब तक मेरे नाम तू
      3.  ऐ वतन, वतन मेरे, आबाद रहे तू
      4.  आज से तेरी, सारी गलियाँ मेरी हो गयी
      5.  मनवा रुआँसा, बेकल हवा सा 
      6.  तेरा चाव लागा जैसे कोई घाव लागा
      7.  नीलाद्रि कुमार की अद्भुत संगीत रचना हाफिज़ हाफिज़ 
      8.  एक दिल है, एक जान है 
      9 . मुड़ के ना देखो दिलबरो
      10. पानियों सा... जब कुमार ने रचा हिंदी का नया व्याकरण !
      11 . तू ही अहम, तू ही वहम
      12. पहली बार है जी, पहली बार है जी
      13. सरफिरी सी बात है तेरी
      14. तेरे नाम की कोई धड़क है ना
      15. तेरा यार हूँ मैं
      16. मैं अपने ही मन का हौसला हूँ..है सोया जहां, पर मैं जगा हूँ 
      17. बहुत दुखा रे, बहुत दुखा मन हाथ तोरा जब छूटा
      18. खोल दे ना मुझे आजाद कर
      19. ओ मेरी लैला लैला ख़्वाब तू है पहला
      20. मैनू इश्क़ तेरा लै डूबा  
      21. जिया में मोरे पिया समाए 
      24. वो हवा हो गए देखते देखते
      25.  इतनी सुहानी बना हो ना पुरानी तेरी दास्तां

      मंगलवार, मार्च 07, 2017

      वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 4 : पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina

      वार्षिक संगीतमाला की चौथी पॉयदान पर गीत वो जो अपने आप में अनूठा है। ये अनूठापन है इस गीत के उतार चढ़ावों में, इसके खूबसूरत संगीत संयोजन में, इसके साथ बहने वाले शब्दों में। फिल्म फितूर का एक गीत होने दो बतिया आप पहले ही सुन चुके हैं और वहीं मैंने जिक्र किया था कि फिल्म की प्रेम कहानी कश्मीर में जन्म लेती है़। वहीं पलती बढ़ती है।


      उसी प्रेम को परिभाषित करने के लिए गीतकार स्वानंद किरकिरे को एक रूपक की तलाश थी जो उसी मिट्टी का हो और पश्मीना के रूप में उनकी वो खोज साकार हो गयी। पश्मीना है भी तो क्या? एक बेहद पतला मुलायम धागा जो लद्दाख की एक खास किस्म की बकरियों के रोएँ से निकाला जाता है। प्रेम आख़िर नर्म मुलायम सा ही तो अहसास है जो पश्मीना से बने ऊन की तरह चाहत की गर्मी से दिल को तरो ताजा बनाए रखता है।

      पश्मीना धागों के संग
      कोई आज बुने ख़्वाब ऐसे कैसे
      वादी में गूँजे कहीं
      नये साज़ ये रवाब ऐसे कैसे
      पश्मीना धागों के संग..


      कलियों ने बदले अभी ये मिज़ाज
      अहसास ऐसे कैसे
      पलकों ने खोले अभी नये राज
      जज़्बात ऐसे कैसे
      पश्मीना धागों के संग
      कोई आज बुने ख्वाब ऐसे कैसे

      जब प्यार कच्चा होता है या यूँ कहे पनप रहा होता है तो दिल और दिमाग काबू में नहीं रहते। एक अनजानी डोर उन्हें खींचती रहती है और अगर वो डोर पश्मीना जैसा अहसास जगाए तो फिर उसका साथ छोड़ने का दिल कहाँ करता है? वो कह उठता है मैं साया बनूँ, तेरे पीछे चलूँ, चलता रहूँ....

      कच्ची हवा कच्चा धुआँ घुल रहा
      कच्चा सा दिल लम्हे नये चुन रहा
      कच्ची सी धूप कच्ची ड़गर फिसल रही
      कोई खड़ा चुपके से कह रहा
      मैं साया बनूँ, तेरे पीछे चलूँ, चलता रहूँ....
      पश्मीना धागों के संग
      कोई आज बुने ख्वाब ऐसे कैसे ..


      स्वानंद दूसरे अंतरे में इन प्रेमसिक्त हृदयों की तुलना उन ओस की बूँदों से करते हैं जो एक दूसरे के पास सरकती हुई यूँ घुल जाती हैं कि उनमें कोई भेद ही नहीं रह जाता। फिर वो अलग भी हो जाएँ तो  दिल और दिमाग का ये बंधन उन्हें ख़यालों से जुदा कब होने देगा?

      शबनम के दो कतरे यूँ ही टहल रहे
      शाखों पे वो मोती से खिल रहे
      बेफिक्र से इक दूजे में घुल रहे
      जब हो जुदा ख्यालों में मिल रहे
      ख्यालों में यूँ, ये गुफ्तगू, चलती रहे.. ओ..

      पानी में गूँजे कहीं, मेरे साज़ ये रवाब
      ऐसे कैसे, ऐसे कैसे, ऐसे कैसे, ऐसे कैसे

      अमित त्रिवेदी ने इस गीत में गायक और संगीतकार दोनों की भूमिका निभाई  है जिसमें संगीतकार की भूमिका में वो सौ फीसदी खरे उतरे हैं। गिटार के साथ आइ डी राव की बजाई मधुर बाँसुरी प्रील्यूड का हिस्सा बनती है। डेढ़ मिनट बाद पहले इंटरल्यूड में  वॉयलिन के साथ अन्य वाद्यों का समावेश यूँ किया गया है कि मन वाह वाह कर उठता है। संगीत के साथ गीत की उठती गिरती लय आपको अंत तक इससे बाँध कर रखती है। 

      हाँ ये जरूर है कि इस गीत को उन्होंने किसी मँजे हुए पार्श्व गायक से गवाया होता तो वो अपनी आवाज़ के कुछ और रंग इसमें भर पाता। ये गीत धीरे धीरे दिल में अपनी जगह बनाता है और जितना इसमें डूबते हैं उतना ही दिल में घर करता  जाता है..


      वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
      4. पश्मीना धागों के संग कोई आज बुने ख़्वाब Pashmina
      5. बापू सेहत के लिए तू तो हानिकारक है   Hanikaarak Bapu
      6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
      7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
      8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
      9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
      10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
      11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
      12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
      13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
      14. मासूम सा Masoom Saa
      15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
      16.फिर कभी  Phir Kabhie
      17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
      18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
      19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
      20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

      सोमवार, फ़रवरी 27, 2017

      वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान # 6 : होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ Hone Do Batiyan

      वार्षिक संगीतमाला की छठी पॉयदान के हीरो हैं संगीतकार अमित त्रिवेदी जिन्होंने गीतकार स्वानंद किरकिरे के साथ मिलकर एक बेहद प्यारा युगल गीत रचा है फिल्म फितूर के लिए। जेबुन्निसा बंगेश व नंदिनी सिरकर का गाया ये नग्मा जब आप पहली बार सुनेंगे तो ऐसा लगेगा मानो दो बहनें आपस में बात कर रही हों। अब ये बात अलग है कि फिल्म में ये गीत नायक व नायिका की बोल बंदी को तोड़ने का प्रयास कर रहा है।


      जेबुन्निसा बंगेश या जेब से आपकी मुलाकात मैं पहले भी करा चुका हूँ जब उन्होंने स्वानंद और शांतनु के साथ मिलकर टीवी शो The Dewarist के लिए एक गाना रचा था जिसे काफी पसंद किया गया था। जेब बंगेश उत्तर पश्चिमी पाकिस्तान से ताल्लुक रखती हैं और हाल फिलहाल में इनकी आवाज़ आपने फिल्म मद्रास कैफे के आलावा हाइवे के गीत  सूहा साहा में भी सुनी होगी।

      यूँ तो जेब मुंबई आते जाते कई बार अमित त्रिवेदी से मिल चुकी थीं पर उनके मित्र स्वानंद ने उन्हें अमित से तब मिलवाया जब वे फितूर के लिए काम कर रहे थे।  ये मुलाकात उन्हें इस युगल गीत का हिस्सा बना गयी। इस गीत में जेब का साथ दिया नंदिनी सिरकर ने। विज्ञान की छात्रा और कंप्यूटर प्रोफेशनल रही नंदिनी यूँ तो संगीत के क्षेत्र में दो दशकों से सक्रिय हैं पर रा वन के गीत भरे नैना से वो हिंदी फिल्म संगीत के आकाश में चमकीं। मुझे उनका फिल्म शंघाई के लिए गाया नग्मा जो भेजी  थी दुआ सबसे अच्छा लगता है और इस गीत में भी अपनी आवाज़ की खनक से वे मन को खुश कर देती हैं।

      चार्ल्स डिकन्स की किताब ग्रेट एक्सपेक्टेशन से प्रेरित फितूर की कहानी कश्मीर में पलती बढ़ती है और इसीलिए फिल्म के गानों में अमित ने इलाके के संगीत का अक़्स लाने की कोशिश की है। अब इस गीत के संगीत संयोजन को ही लीजिए। अफ़गानिस्तान के राष्ट्रीय वाद्य रबाब और ग्रीस के वाद्य यंत्र बोजूकी के साथ अमित त्रिवेदी आरमेनिया के साज़ और अपने संतूर को मिलाते हए ऐसी रागिनी पैदा करते है जो हर बार सुनते हुए मन में बसती चली जाती है। गीत की शुरुआत का रबाब और पहले इंटरल्यूड में बोजूकी की धुन के साथ मन झूम उठता है। गीत के बोलों के साथ संतूर भी थिरकता है।


      तापस रॉय
       अक्सर गीतों को सुनते वक़्त हम वाद्य यंत्रों को बजाने वाले गुमनाम चेहरों से अपरिचित ही रह जाते हैं। पर जब मुझे ये पता चला कि इस गीत में रबाब, बोजूकी, साज़ और संतूर चारों एक ही वादक तापस रॉय ने बजाए हैं तो उनके हुनर को नमन करने का दिल हो आया। तापस के पिता पारितोष राय मशहूर दोतारा वादक थे। सत्यजित रे से लेकर रितुपूर्ण घोष के साथ काम कर चुके तापस को  इन वाद्यों के आलावा मेंडोलिन और दोतारा में भी महारत हासिल है।

      मुझे आपका तो पता नहीं पर मैं तो बेहद बातूनी इंसान हूँ और जिन लोगों को पसंद करता हूँ उनसे घंटों बातें कर सकता हूँ।  मेरा ये मानना है कि किसी की अच्छाई को जानने के लिए, उसके व्यक्तित्व के पहलुओं से रूबरू होने के लिए उसके मन तक के कई दरवाजों को खोलना पड़ता है और वो बातों से ही संभव है। इसलिए स्वानंद जब कहते हैं सुनों बातों से बनती है बातें बोलो.. तो वो मन की ही बात लगती है।

      गीतकार स्वानंद किरकिरे इस गीत में ऐसे दो संगियों की बातें कर रहे हैं जो एक साथ बड़े हुए, एक ही माटी में पैदा हुए, बातों बातों में ही प्यार कर बैठे पर फिलहाल चुप चुप से हैं। तो आइए सुनते हैं ये गीत और तोड़ते हैं दो दिलों के बीच का मौन..


      होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ
      कोने में दिल के प्यार पड़ा
      तन्हा.. तन्हा..
      दिलों की दिल से
      होने दो बतियाँ, होने दो बातें
      होने दो बतियाँ, होने दो बातें

      होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ
      सीने में छुपके धड़के दिल
      तनहा तनहा, दिलों की दिल से
      होने दो बतियाँ, होने दो बातें
      होने दो बतियाँ, होने दो बातें

      रात के दर पे कबसे खड़ी है
      भीनी-भीनी सुबह
      खोले झरोखे फिज़ा हैं बेनूर..
      संग चले हैं, संग पले हैं
      धूप छैंया दोनों
      सुनों बातों से बनती है बातें बोलो..
      होने दो बतियाँ.. होने दो बातें

      हाँ मैं भी हूँ माटी, तू भी है माटी
      तेरा मेरा क्या है
      क्यूँ हैं खड़े हम, खुद से इतनी दूर..
      साँसों में तेरी, साँसों में मेरी
      एक ही तो हवा है
      मर जायेंगे हम, यूँ ना हमको छोड़ो..

      आ.. होने दो बतियाँ.. होने दो बातें


      और ये है गीत का संक्षिप्त वीडियो


      स्वानंद इस गीत के माध्यम से नायक नायिका के बीच के मौन को तोड़ पाए या नहीं ये तो फिल्म देख के पता ही चलेगा पर अपने किसी खास से आगर हल्की फुल्की तनातनी हो गयी तो बस इस गीत के मुखड़े को गुनगुना दीजिए.. :)
      वार्षिक संगीतमाला  2016 में अब तक 
      6. होने दो बतियाँ, होने दो बतियाँ   Hone Do Batiyan
      7.  क्यूँ रे, क्यूँ रे ...काँच के लमहों के रह गए चूरे'?  Kyun Re..
      8.  क्या है कोई आपका भी 'महरम'?  Mujhe Mehram Jaan Le...
      9. जो सांझे ख्वाब देखते थे नैना.. बिछड़ के आज रो दिए हैं यूँ ... Naina
      10. आवभगत में मुस्कानें, फुर्सत की मीठी तानें ... Dugg Duggi Dugg
      11.  ऐ ज़िंदगी गले लगा ले Aye Zindagi
      12. क्यूँ फुदक फुदक के धड़कनों की चल रही गिलहरियाँ   Gileheriyaan
      13. कारी कारी रैना सारी सौ अँधेरे क्यूँ लाई,  Kaari Kaari
      14. मासूम सा Masoom Saa
      15. तेरे संग यारा  Tere Sang Yaaran
      16.फिर कभी  Phir Kabhie
      17 चंद रोज़ और मेरी जान ...Chand Roz
      18. ले चला दिल कहाँ, दिल कहाँ... ले चला  Le Chala
      19. हक़ है मुझे जीने का  Haq Hai
      20. इक नदी थी Ek Nadi Thi

      शनिवार, फ़रवरी 27, 2016

      वार्षिक संगीतमाला 2015, रनर्स अप : तू किसी रेल सी गुज़रती है, Tu Kisi Rail si Guzarti hai

      हिंदी फिल्मों में गीतकार पुराने दिग्गज़ों की कालजयी कृतियों से प्रेरणा लेते रहे हैं और जब जब ऐसा हुआ है परिणाम ज्यादातर बेहतरीन ही रहे हैं। पिछले एक दशक के हिंदी फिल्म संगीत में ऐसे प्रयोगों से जुड़े दो बेमिसाल नग्मे तो तुरंत ही याद आ रहे हैं। 2007 में एक फिल्म आई थी खोया खोया चाँद और उस फिल्म में गीतकार स्वानंद ने  मज़ाज लखनवी की बहुचर्चित नज़्म आवारा से जी में आता है, मुर्दा सितारे नोच लूँ... का बड़ा प्यारा इस्तेमाल किया था। फिर वर्ष 2009 में प्रदर्शित फिल्म गुलाल में पीयूष मिश्रा ने फिल्म प्यासा में साहिर के लिखे गीत ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है.. को अपने लिखे गीत ओ री दुनिया... में उतना ही सटीक प्रयोग किया था।

      वार्षिक संगीतमाला के इस साल का रनर्स अप का खिताब जीता है एक ऐसे ही गीत ने जिसके बारे में मैं पहले भी इस ब्लॉग पर लिख चुका हूँ। इस गीत की ख़ास बात ये भी है कि इसे लिखा एक गीतकार ने और गाया एक दूसरे गीतकार ने। इंडियन ओशन बैंड द्वारा संगीतबद्ध फिल्म मसान के इस गीत को आवाज़ दी है स्वानंद किरकिरे ने और इसे लिखा है वरुण ग्रोवर ने जो इस फिल्म के पटकथा लेखक भी हैं।

      दरअसल इस तरह के गीतों को फिल्मों के माध्यम से आम जनता और खासकर आज की नई पीढ़ी तक पहुँचाने के कई फायदे हैं। एक तो जिस कवि या शायर की रचना का इस्तेमाल हुआ है उसके लेखन और कृतियों के प्रति लोगों की उत्सुकता बढ़ जाती है। दूसरी ओर गायक, गीतकार और संगीतकार ऐसे गीतों पर पूरी ईमानदारी से मेहनत करते हैं ताकि मूल रचना पर किसी तरह का धब्बा ना लगे। यानि दोनों ओर से श्रोताओं की चाँदी !

      वरुण ने मसान के इस गीत के लिए हिंदी के सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार दुष्यन्त कुमार की रचना का वो शेर लिया है जिसे लोग अनोखे बिंबो के लिए हमेशा याद रखते हैं यानि तू किसी रेल सी गुज़रती है,..मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ

      पर इस गीत के लिए वरुण के दिमाग में दुष्यन्त साहब की ग़ज़ल का मतला आया कैसे इसकी भी एक लंबी दास्तान है। वरुण ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था
      जब मैं लखनऊ में दसवीं में पढ़ रहा था तो मेरे सपनों का भारत पर निबंध लिखते समय मैंने पहली बार दुष्यन्त कुमार के मशहूर शेर कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता....एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों का इस्तेमाल किया था। उन स्कूली दिनों में दुष्यन्त कुमार के शेर वाद विवाद प्रतियोगिता का अहम हिस्सा हुआ करते थे। आगे के सालों में दुष्यन्त जी की कविताओं से साथ छूट गया। पर लखनऊ में ही एक दोस्त की शादी ने उनकी कविता से फिर मुलाकात करा दी। मेरे दोस्त के पिता ने वहाँ उनकी ग़ज़ल सुनाई मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ.....जिसमें ये तू किसी रेल सी गुजरती है वाला शेर भी है। तभी से ये ग़ज़ल और खासकर ये शेर मेरे ज़ेहन में बस गया।
      अजीब रूपक था ये एक लड़की का रेल की तरह गुजरना और उसके प्रेमी का उसे देख पुल की तरह थरथराना। देखने से कितना सूखा सा बिंब लगता है। यंत्रवत चलती ट्रेन और लोहे का पुल। पर मेरे ये लिए हिन्दी कविताओं में प्रायः इस्तेमाल किये जाने वाले बिंबों से एक दम अलग था। जरा दूसरे नज़रिए से सोचिए, इंजन और रेल का ये रोज का क्षणिक पर दैहिक मिलन कितना नर्म, मादक अहसास जगाता है मन में उस चित्र के साथ जिसमें हम सभी पल बढ़ के बड़े हुए हैं।

      मसान के लिए जब निर्देशक नीरज घायवान से वरूण की फिल्म के संगीत को लेकर बात हुई तो  उन्होंने ये निर्णय लिया कि फिल्म के गीत काव्यात्मक होने चाहिए क्यूँकि नायिका शालू का चरित्र एक कविता प्रेमी का है जिसने ग़ालिब, बशीर बद्र, निदा फ़ाजली जैसे धुरंधरों को अच्छी तरह पढ़ रखा है। उदय प्रकाश के मुक्त छंद से लेकर उन्होंने फ़ैज़ और बद्र साहब की ग़ज़ले पढ़ीं पर तभी वरुण के दिमाग में दुष्यन्त कुमार की ग़ज़ल का मिसरा वापस लौट आया। गीत रचने में वरुण के समक्ष चुनौती थी सहज ज़मीनी शब्दों से वो वैसे रूपक रचें जो दुष्यन्त कुमार के शेर की सी ऊँचाइयाँ लिये हुए हों और ये काम उन्होंने  बखूबी कर भी दिखाया।


      बनारस की गलियों में दो भोले भाले दिलों के बीच पनपते इस फेसबुकिये प्रेम को जब वरुण अपने शब्दों के तेल से छौंकते हैं तो उसकी झाँस से सच ये दिल रूपी पुल थरथरा उठता है। वो फिर या तो उसका नाम हर वक़्त बुदबुदाने की बात हो या सफ़र में उसकी यादों का अलाव जलाने की।

      पर मन सिर्फ मन जीतने से थोड़े ही मान जाता है। उसे तो तन भी चाहिए। सो दूसरे अंतरे में बदमाशी भरे लहजे में गीतकार  काठ के तालों को इशारों की चाभियों से तोड़ने की बात भी करते हैं। गीत के बोलों में छुपी शरारत खूबसूरत रूपकों के ज़रिए  उड़ा ले जाती है प्रेम के इस बुलबुले को उसकी स्वाभाविक नियति के लिए.

       

      तू किसी रेल सी गुज़रती है,
      मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ


      तू भले रत्ती भर ना सुनती है... 
      मैं तेरा नाम बुदबुदाता हूँ..

      किसी लंबे सफर की रातों में
      तुझे अलाव सा जलाता हूँ


      काठ के ताले हैं, आँख पे डाले हैं
      उनमें इशारों की चाभियाँ लगा
      रात जो बाकी है, शाम से ताकी है
      नीयत में थोड़ी खराबियाँ लगा.. खराबियाँ लगा..

      मैं हूँ पानी के बुलबुले जैसा
      तुझे सोचूँ तो फूट जाता हूँ

      तू किसी रेल सी गुज़रती है.....थरथराता हूँ


      बतौर गायक स्वानंद की आवाज़ को मैं हजारों ख्वाहिशें ऐसी, परीणिता, खोया खोया चाँद जैसी फिल्मों में गाये उनके गीतों से पसंद करता आया हूँ। इस बार भी पार्श्व में गूँजती उनकी दमदार आवाज़ मन में गहरे पैठ कर जाती है। इंडियन ओशन ने भी गीत के बोलों को न्यूनतम संगीत संयोजन से दबने नहीं दिया है। तो आइए सुनते हैं नए कलाकारों श्वेता त्रिपाठी और विकी कौशल पर फिल्माए ये नग्मा..



      वार्षिक संगीतमाला 2015

       

      मेरी पसंदीदा किताबें...

      सुवर्णलता
      Freedom at Midnight
      Aapka Bunti
      Madhushala
      कसप Kasap
      Great Expectations
      उर्दू की आख़िरी किताब
      Shatranj Ke Khiladi
      Bakul Katha
      Raag Darbari
      English, August: An Indian Story
      Five Point Someone: What Not to Do at IIT
      Mitro Marjani
      Jharokhe
      Mailaa Aanchal
      Mrs Craddock
      Mahabhoj
      मुझे चाँद चाहिए Mujhe Chand Chahiye
      Lolita
      The Pakistani Bride: A Novel


      Manish Kumar's favorite books »

      स्पष्टीकरण

      इस चिट्ठे का उद्देश्य अच्छे संगीत और साहित्य एवम्र उनसे जुड़े कुछ पहलुओं को अपने नज़रिए से विश्लेषित कर संगीत प्रेमी पाठकों तक पहुँचाना और लोकप्रिय बनाना है। इसी हेतु चिट्ठे पर संगीत और चित्रों का प्रयोग हुआ है। अगर इस चिट्ठे पर प्रकाशित चित्र, संगीत या अन्य किसी सामग्री से कॉपीराइट का उल्लंघन होता है तो कृपया सूचित करें। आपकी सूचना पर त्वरित कार्यवाही की जाएगी।

      एक शाम मेरे नाम Copyright © 2009 Designed by Bie