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सोमवार, मार्च 07, 2011

वार्षिक संगीतमाला 2010 प्रथम पाँच : फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक, धरती जितनी प्यासी है, उतना तो जल दे मालिक...

कभी कभी सीधी सहज बातें भी ग़जब का असर करती हैं खासकर जब वो दिल से कही गई हों। वार्षिक संगीतमाला की चौथी सीढ़ी का गीत एक ऐसा ही गीत है। जब भी मैं इस गीत को सुनता हूँ तो आँखें नम हो जाती हैं और अगर गुनगुनाने की कोशिश करूँ तो गला भर्रा जाता है।

देश के आम आदमी के जीवन की दरिद्रता को दर्शाता ये गीत भारत में व्याप्त आर्थिक असमानता को एक दम से सामने ला खड़ा करता है। गीत में ईश्वर से की जा रही प्रार्थना आपको ये सोचने पर मजबूर कर देती है हैं कि क्यूँ इतनी तरक्की के बावज़ूद हम अपने नागरिकों की छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने में आज तक असमर्थ हैं?

ग़ज़लगायिकी के बादशाह जगजीत सिंह ने फिल्मों में गीत यदा कदा ही गाए हैं। पर जब जब उनकी गायिकी फिल्मी पर्दे पर आई है तब तब उनकी आवाज़ का जादू सर चढ़कर बोला है। होठों से छू लो तुम.., तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो.., तुमको देखा तो ये ख्याल आया.., जाग के काटी सारी रैना.., होशवालों को ख़बर क्या ....जितना भी सोचता हूँ उनके गाई फिल्मी गीतों ग़ज़लों की फेरहिस्त सालों साल बाद भी उसी तरह ज़ेहन में तुरंत आ जाती है।


फिल्म लाइफ एक्सप्रेस में जब गायक रूप कुमार राठौड़ जिन्होंने इस फिल्म में संगीत दिया है, जगजीत के पास गए तो गिरते स्वास्थ के चलते कम सक्रिय रहने के बावज़ूद वो उनकी इल्तज़ा को ठुकरा नहीं सके। इस गीत के बारे में जगजीत कहते हैं कि

"रूप कुमार राठौड़ मेरे छोटे भाई की तरह हैं। बतौर संगीतकार ये उसकी तीसरी फिल्म है और ये मेरा उसके साथ गाया दूसरा गीत। फिल्म के लिए उसने बहुत बढ़िया संगीत रचा है। खासकर मेरे द्वारा गाए गीत का संगीत तो एकदम सहज मगर असरदार है।"
अफ़सोस ये रहा कि 'सरोगेट मदर' पर केंद्रित पटकथा पर बनी ये फिल्म अपने निर्माण की अन्य ख़ामियों की वज़ह से ज्यादा नहीं चली। इसलिए जगजीत का गाया ये बेहतरीन गीत ज्यादा चर्चा नें नहीं आया। रूप कुमार राठौड़ ने इस करुणामयी प्रार्थना के मूड के हिसाब से ही संगीत रचना की है। इस गीत का एक वर्जन रूप कुमार राठौड़ की आवाज़ में भी है पर जब शक़ील आज़मी के लिखे इस गीत को जगजीत की रुहानी आवाज़ का स्पर्श मिलता है तो सुननेवाले के मन में भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। आज इस गीत के प्रति मेरी भावनाओं को मैं शब्दों के बजाए इस गीत को गुनगुनाकर व्यक्त करना चाहूँगा।



फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक,
धरती जितनी प्यासी है, उतना तो जल दे मालिक

वक़्त बड़ा दुखदायक है, पापी है संसार बहुत,
निर्धन को धनवान बना, दुर्बल को बल दे मालिक

कोहरा कोहरा सर्दी है, काँप रहा है पूरा गाँव,
दिन को तपता सूरज दे, रात को कम्बल दे मालिक

बैलों को इक गठरी घास, इंसानों को दो रोटी,
खेतों को भर गेहूँ से, काँधों को हल दे मालिक

हाथ सभी के काले हैं, नजरें सबकी पीली हैं,
सीना ढाँप दुपट्टे से, सर को आँचल दे मालिक

अब सुनिए इस गीत को जगजीत सिंह के स्वर में...




अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...

मंगलवार, फ़रवरी 17, 2009

वार्षिक संगीतमाला 2008 - पायदान संख्या 8 :रूप कुमार राठौड़ की मखमली आवाज़ जो दिखाती है रब का रास्ता...

वार्षिक संगीतमाला २००८ में डेढ़ महिने का सफ़र पूरा कर हम सब आ चुके हैं आठवीं पॉयदान पर। और इस पॉयदान पर गीत उस फिल्म का जिसे लोकप्रियता में एक शाम मेरे नाम के हिंदी और रोमन संस्करणों के पाठकों ने कुल मिलाकर अबतक सबसे ज्यादा वोट दिए हैं। जी हाँ इस संगीतमाला की आठवीं पॉयदान पर फिल्म रब ने बना दी जोड़ी का वो गीत जिसे लिखा जयदीप साहनी ने, धुन बनाई सलीम सुलेमान ने और अपनी मखमली आवाज़ से निखारा रूप कुमार राठौड़ ने..


रूप कुमार राठौड़ एक ऍसे गायक हैं जिन्हें बतौर पार्श्व गायक , चुनिंदा गीत ही मिलते हैं पर उसमें वे वो प्रभाव पैदा करते हैं जो सालों साल मन से नहीं निकल पाता। अब वो चाहे बार्डर का गीत संदेशे आते हों हो या अनवर का मौला मेरे मौला। और पिछले साल मनोरमा फिल्म का गीत तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना, दे ना सकूँ में उनके लगाए बेहतरीन ऊँचे सुर, उस गीत को मेरी संगीतमाला की छठी पॉयदान तक ले गए थे।

क्या आप जानते हैं कि इतनी सधी आवाज़ के मालिक रूप कुमार राठौड़ ने संगीत का ये सफ़र एक गायक के तौर पर नहीं बल्कि तबला वादक की हैसियत से शुरु किया था? अस्सी के दशक की शुरुआत में जब ग़जलों का स्वर्णिम काल चल रहा था तब रूप कुमार राठौड़ सारे मशहूर गज़ल गायकों के चहेते तबला वादक थे। बाद में जब पत्नी सोनाली राठौड़ ने उनसे गाने के लिए प्रेरित किया तो वो गायिकी के क्षेत्र में आ गए।

रूप कुमार राठौड़ का परिवार संगीतिक विभूतियों से भरा पड़ा है। पिता पंडित चतुर्भुज राठौड़ खुद एक शास्त्रीय गायक थे। बड़े भाई श्रवण एक मशहूर संगीतकार रहे जिन्होंने नदीम के साथ मिलकर नब्बे के दशक में कई हिट फिल्में दीं और छोटे भाई विनोद भी पार्श्व गायक हैं।

अगर इस गीत को रूप साहब की आवाज़ में सुनकर आप गीत की भावपूर्ण मेलोडी से अभिभूत हो जाते हैं तो उसका श्रेय गीतकार और संगीतकार की जोड़ी को भी जाता है। जयदीप साहनी के लिए इस तरह के गीत को रचना एक अलग अनुभव था। अपने प्यार को अपना अराध्य मानने का ख्याल भारतीय संस्कृति में कोई नया नहीं है पर आजकल इस परिकल्पना को लेकर बनाए गए गीतों की तादाद बेहद कम रह गई है। जयदीप के लिए मुश्किल ये थी कि वो खुद भी इस तरह की सोच से मुतास्सिर नहीं थे फिर भी उन्होंने कहानी की माँग के हिसाब से इस विचार को अपने बोलों में ढाला और जो परिणाम निकला वो तो आप देख ही रहे हैं। जयदीप खुद अपने प्रयास से बेहद संतुष्ट हैं और कहते हैं कि
"अपनी सोच की चारदीवारी में जो गीतकार बँध के रह गया वो अलग अलग पटकथाओं के अनुरूप गीतों की रचना कैसे कर पाएगा?"

चलिए बातें तो आज बहुत हो गईं अब सुनते हैं ये बेहद प्यारा सा नग्मा


तू ही तो जन्नत मेरी, तू ही मेरा जूनून
तू ही तो मन्नत मेरी, तू ही रूह का सुकून
तू ही अँखियों की ठंडक, तू ही दिल की है दस्तक
और कुछ ना जानूँ, मैं बस इतना ही जानूँ
तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ
सज़दे सर झुकता है, यारा मैं क्या करुँ

कैसी है ये दूरी, कैसी मजबूरी
मैंने नज़रों से तुझे छू लिया
कभी तेरी खुशबू, कभी तेरी बातें
बिन माँगे ये जहां पा लिया
तू ही दिल की है रौनक, तू ही जन्मों की दौलत
और कुछ ना जानूँ, बस इतना ही जानूँ
तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ...

छम छम आए, मुझे तरसाए
तेरा साया छेड़ के चूमता..
तू जो मुस्काए, तू जो शरमाये
जैसे मेरा है ख़ुदा झूमता..
तू मेरी है बरक़त, तू ही मेरी इबादत
और कुछ ना जानूँ, बस इतना ही जानूँ
तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ ...

और पर्दे पर शाहरुख अनुष्का की जोड़ी पर फिल्माए इस मधुर गीत की झलक आप यहाँ देख सकते हैं

रविवार, फ़रवरी 17, 2008

वार्षिक संगीतमाला २००७ : पायदान संख्या ६ - तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना दे ना सकूँ...

बॉलीवुड में अक्सर ऍसा होता रहा है कि जब कोई फिल्म विराट स्तर पर प्रदर्शित नहीं होती या फिर ज्यादा दिन नहीं चलती तो उसके गीत लोगों तक पहुँच ही नहीं पाते और गीतकार संगीतकार की सारी मेहनत पानी में चली जाती है। अब मुझे पूरा यक़ीन है कि आप में से बहुतों ने 'मनोरमा सिक्स फीट अंडर' के बारे में ज्यादा चर्चा नहीं सुनी होगी। समीक्षकों द्वारा अच्छा करारे जाने पर भी ये फिल्म सिनेमाघरों की शोभा ज्यादा दिनों तक नहीं बढ़ा पाई।

इसी फिल्म का एक गीत जो इसके प्रोमो को सुनते समय मन में अटक गया था आज आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ। इस गीत को गाया रूप कुमार राठौड़ और महालक्ष्मी ऐयर ने और इसके बोल लिखे मनोज तापड़िया ने। इस गीत की धुन बनाई जयेश गाँधी ने जो बतौर गायक तो कई फिल्मों में अपना स्वर दे चुके हैं पर संगीतकार की हैसियत से शायद उनकी ये पहली फिल्म है।

आतिफ असलम, मुस्तफ़ा ज़ाहिद सरीखे पाकिस्तानी गायकों के ऊँचे सुरों को पूरे कौशल से लगा सकने की महारत को जो लोकप्रियता भारत में मिली है उससे प्रभावित होकर संगीतकार यहाँ के गायकों को भी वैसे गीत दे रहे हैं। ज़ुबीन गर्ग हों , कृष्णा हों या फिर मिथुन शर्मा इन सबने इस genre के गीतों में कमाल किया है। इसलिए जब रूप कुमार राठौड़ को ऊँचे सुरों में मैंने गाते सुना
आँखों के, आलों में, चाहत की लौ जलने दो...

तो विस्मय के साथ साथ मन मुग्ध हो गया।

शब्दों की बात करें तो मनोज तापड़िया के बोल प्रेमियों की आपसी कशमकश को व्यक्त करते दिखते हैं। जिंदगी में अपने करीबी से कई बार आप कुछ नहीं कह कर भी बहुत कुछ कह जाते हैं। रिश्तों के उलझे धागों में से कई सवाल बाहर निकल कर ऐसे आते हैं जिनके जवाब आँखें , होठों से ज्यादा बेहतर तरीकें से दे पाती हैं...


तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना दें ना सकूँ
पिघले से अरमां हैं, दो पल के मेहमां हैं
आँखों के, आलों में, चाहत की लौ जलने दो
तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना दें ना सकूँ


कह रही है जो नज़र तुझे है खबर की नहीं
कह रही है तेरी नज़र तू बेखबर तो नहीं
तेरे बिना जिंदगी है अधूरी, तेरे बिना क्या है जीना
पिघले से अरमां हैं, दो पल के मेहमां हैं
आँखों के आलों में चाहत की लौ जलने दो


तुम कहो तो मैं रोक लूँ, जो तुम कहो तो नहीं
सीने में है ये कैसी खलिश, तेरी कशिश तो नहीं
तेरे बिना जिंदगी है अधूरी, तेरे बिना क्या है जीना
पिघले से अरमां हैं, दो पल के मेहमां हैं
आँखों के आलों में चाहत की लौ जलने दो

तेरे सवालों के वो जवाब जो मैं दे ना दें ना सकूँ
तेरे बिना जिंदगी है अधूरी, तेरे बिना क्या है जीना


तो आइए सुनते हैं छठी पायदान के इस गीत को

इस संगीतमाला के पिछले गीत

 

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