कभी कभी सीधी सहज बातें भी ग़जब का असर करती हैं खासकर जब वो दिल से कही गई हों। वार्षिक संगीतमाला की चौथी सीढ़ी का गीत एक ऐसा ही गीत है। जब भी मैं इस गीत को सुनता हूँ तो आँखें नम हो जाती हैं और अगर गुनगुनाने की कोशिश करूँ तो गला भर्रा जाता है।
देश के आम आदमी के जीवन की दरिद्रता को दर्शाता ये गीत भारत में व्याप्त आर्थिक असमानता को एक दम से सामने ला खड़ा करता है। गीत में ईश्वर से की जा रही प्रार्थना आपको ये सोचने पर मजबूर कर देती है हैं कि क्यूँ इतनी तरक्की के बावज़ूद हम अपने नागरिकों की छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने में आज तक असमर्थ हैं?
ग़ज़लगायिकी के बादशाह जगजीत सिंह ने फिल्मों में गीत यदा कदा ही गाए हैं। पर जब जब उनकी गायिकी फिल्मी पर्दे पर आई है तब तब उनकी आवाज़ का जादू सर चढ़कर बोला है। होठों से छू लो तुम.., तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो.., तुमको देखा तो ये ख्याल आया.., जाग के काटी सारी रैना.., होशवालों को ख़बर क्या ....जितना भी सोचता हूँ उनके गाई फिल्मी गीतों ग़ज़लों की फेरहिस्त सालों साल बाद भी उसी तरह ज़ेहन में तुरंत आ जाती है।
फिल्म लाइफ एक्सप्रेस में जब गायक रूप कुमार राठौड़ जिन्होंने इस फिल्म में संगीत दिया है, जगजीत के पास गए तो गिरते स्वास्थ के चलते कम सक्रिय रहने के बावज़ूद वो उनकी इल्तज़ा को ठुकरा नहीं सके। इस गीत के बारे में जगजीत कहते हैं कि
फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक,
अब सुनिए इस गीत को जगजीत सिंह के स्वर में...
अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...
देश के आम आदमी के जीवन की दरिद्रता को दर्शाता ये गीत भारत में व्याप्त आर्थिक असमानता को एक दम से सामने ला खड़ा करता है। गीत में ईश्वर से की जा रही प्रार्थना आपको ये सोचने पर मजबूर कर देती है हैं कि क्यूँ इतनी तरक्की के बावज़ूद हम अपने नागरिकों की छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने में आज तक असमर्थ हैं?
ग़ज़लगायिकी के बादशाह जगजीत सिंह ने फिल्मों में गीत यदा कदा ही गाए हैं। पर जब जब उनकी गायिकी फिल्मी पर्दे पर आई है तब तब उनकी आवाज़ का जादू सर चढ़कर बोला है। होठों से छू लो तुम.., तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो.., तुमको देखा तो ये ख्याल आया.., जाग के काटी सारी रैना.., होशवालों को ख़बर क्या ....जितना भी सोचता हूँ उनके गाई फिल्मी गीतों ग़ज़लों की फेरहिस्त सालों साल बाद भी उसी तरह ज़ेहन में तुरंत आ जाती है।
फिल्म लाइफ एक्सप्रेस में जब गायक रूप कुमार राठौड़ जिन्होंने इस फिल्म में संगीत दिया है, जगजीत के पास गए तो गिरते स्वास्थ के चलते कम सक्रिय रहने के बावज़ूद वो उनकी इल्तज़ा को ठुकरा नहीं सके। इस गीत के बारे में जगजीत कहते हैं कि
"रूप कुमार राठौड़ मेरे छोटे भाई की तरह हैं। बतौर संगीतकार ये उसकी तीसरी फिल्म है और ये मेरा उसके साथ गाया दूसरा गीत। फिल्म के लिए उसने बहुत बढ़िया संगीत रचा है। खासकर मेरे द्वारा गाए गीत का संगीत तो एकदम सहज मगर असरदार है।"अफ़सोस ये रहा कि 'सरोगेट मदर' पर केंद्रित पटकथा पर बनी ये फिल्म अपने निर्माण की अन्य ख़ामियों की वज़ह से ज्यादा नहीं चली। इसलिए जगजीत का गाया ये बेहतरीन गीत ज्यादा चर्चा नें नहीं आया। रूप कुमार राठौड़ ने इस करुणामयी प्रार्थना के मूड के हिसाब से ही संगीत रचना की है। इस गीत का एक वर्जन रूप कुमार राठौड़ की आवाज़ में भी है पर जब शक़ील आज़मी के लिखे इस गीत को जगजीत की रुहानी आवाज़ का स्पर्श मिलता है तो सुननेवाले के मन में भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ता है। आज इस गीत के प्रति मेरी भावनाओं को मैं शब्दों के बजाए इस गीत को गुनगुनाकर व्यक्त करना चाहूँगा।
फूल खिला दे शाखों पर, पेड़ों को फल दे मालिक,
धरती जितनी प्यासी है, उतना तो जल दे मालिक
वक़्त बड़ा दुखदायक है, पापी है संसार बहुत,
निर्धन को धनवान बना, दुर्बल को बल दे मालिक
कोहरा कोहरा सर्दी है, काँप रहा है पूरा गाँव,
दिन को तपता सूरज दे, रात को कम्बल दे मालिक
बैलों को इक गठरी घास, इंसानों को दो रोटी,
खेतों को भर गेहूँ से, काँधों को हल दे मालिक
हाथ सभी के काले हैं, नजरें सबकी पीली हैं,
सीना ढाँप दुपट्टे से, सर को आँचल दे मालिक
अब सुनिए इस गीत को जगजीत सिंह के स्वर में...
अब 'एक शाम मेरे नाम' फेसबुक के पन्नों पर भी...
