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शनिवार, जनवरी 07, 2017

वार्षिक संगीतमाला 2016 पायदान #22 : टुक टुक टुक टुक करती चलती, मीठी थारी ज़िंदगी Tuk Tuk

संगीतकार विशाल शेखर के लिए साल 2015 कोई बहुत अच्छा नहीं रहा था। पर इस साल फिल्म सुल्तान के लिए दिया गया उनका संगीत औसत से बेहतर था। प्रेम की बाती में भींगा राहत फतेह अली खाँ का गाया जग घूमेया, सुखविंदर का जोश दिलाता सुल्तान का  शीर्षक गीत और नूरा बहनों की आवाज़ में ज़िदगी की टुक टुक से रूबरू कराता नग्मा मुझे इस एलबम के कुछ खास नगीने लगे थे ।  पर इन गीतों में 22वीं पॉयदान पर अपनी जगह बनाने में कामयाब हुआ है नूरा बहनों का गाया ये नग्मा। नूरा बहनों के  सांगीतिक सफ़र के बारे में यहाँ  पहले भी लिख चुका हूँ। 
 


दो साल पहले पटाखा गुड्डी से अपना पहला पटाखा फोड़ने वाली जालंधर की नूरा बहनें ने इस साल तीन नामी फिल्मों मिर्जया, दंगल और सुल्तान में अपनी दमदार आवाज़ श्रोताओं तक पहुंचाई है। नूरा बहनों का बिंदास अंदाज़ मुझे हाइवे में उनके गाए गीत में इतना फबा था कि उसने सीधे साल के दस बेहतरीन गीतों में जगह बना ली थी। इस बार भी नूरा बहनों के गाए दो गीत इस संगीतमाला में हैं।

विशाल शेखर को संगीत में नए नए प्रयोग करने में हमेशा आनंद आता रहा है। हालांकि मुझे विशाल की हर गीत में घुसायी जाने वाली रॉक  रिदम उतनी पसंद नहीं आती पर संगीत संयोजन में उनके नित नए प्रयोग कई बार मेलोडी से भरपूर होते हैं। टुक टुक के संगीत संयोजन के लिए विशाल शेखर अलग से नहीं बैठे। मीका के गाने चार सौ चालीस वोल्ट के संगीत को अंतिम रूप देने के पहले अचानक ही शेखर को टुक टुक की आरंभिक धुन सूझी और फिर  कुछ घंटों में ही इस  गीत ने अपनी शक्ल ले ली ।

गीत का आरंभिक संगीत संयोजन जहाँ मन में मस्ती का मूड ले आता है वहीं गायिकाओं का हो.. सजके दिखाएगी....  हो.. हँस के बुलाएगी कहना बड़ा प्यारा लगता है। अलग से सुनते वक़्त  विशाल का रैप खाने में कंकड़ की तरह लगता है पर फिल्म देखते समय लगा कि वो पश्चिमी रंग में रँगे हुए एक शहरी किरदार के लिए शायद गीत की जरूरत बन गया हो। फिल्म में ये गीत पार्श्व से आता है जब दर्शकों को निर्देशक हरियाणा के कस्बों देहातों से मिलवा रहे होते हैं।

इरशाद कामिल
इरशाद कामिल के लिए पंजाब हरियाणा की भूमि एक 'होम टर्फ' की तरह है जिसकी जुबान, ठसक, लोक रंग सबसे वो भली भांति परिचित हैं। इसलिए उनके बोल ज़मीन से जुड़े हुए दिखते हैं। हाल ही में उन्होंने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि आप अपनी जड़ों से कटकर आसमान नहीं छू सकते। कम से कम कामिल में आसमान छूने की काबिलियत पूरी तरह से है। ज़िदगी के फलसफ़े के बारे में इरशाद क़ामिल ने सहजता के साथ कितनी प्यारी पंक्तियाँ रची हैं। ज़रा गौर फरमाइए ओ पारे जैसी चंचल है, रेशम है या मलमल है...या फिर गहरी दलदल है, ज़िंदगी या रा रा रा…दिन दिन घटती जाती है, फसल ये कटती जाती है..नज़र से हटती जाती है, ज़िंदगी या रा रा रा… 


दूरी दर्द, मिलन है मस्ती, दुनिया मुझको देख के हँसती
इश्क़ मेरा बदनाम हो गया, करके तेरी हुस्न परस्ती

कोई जोगी, कोई कलंदर, रहता है अपणे में
कोई भुला हुआ सिकंदर, रहता है अपणे में

हो.. सजके दिखाएगी. हो.. हँस के बुलाएगी
हो.. रज्ज के नचाएगी, टुक टुक टुक करती चलती
थारी म्हारी ज़िंदगी, रे बोले, रे बोले ढोला ढोल धड़क धिन, धड़क धिन, धड़क धिन
रे टुक टुक टुक टुक करती चलती, मीठी थारी ज़िंदगी
रे बोले, रे बोले ढोला ढोल धड़क धिन, धड़क धिन, धड़क धिन

अपनी मर्ज़ी से बणती बिगड़ती, बणती बिगड़ती
धुआँ नही, आग नही फिर भी है जलती
ओये होये, ओये होये, ओये होये, ओये…

ओ पारे जैसी चंचल है, रेशम है या मलमल है
या फिर गहरी दलदल है, ज़िंदगी या रा रा रा…
दिन दिन घटती जाती है, फसल ये कटती जाती है
नज़र से हटती जाती है, ज़िंदगी या रा रा रा…

दिल समझे नही पतंदर, रहता है अपने में
बस बनता फिरे धुरंधर रहता है अपने में
हो.. सजके दिखाएगी. हो.. हँस के बुलाएगी...धड़क धिन

तो ज़िदगी का ये गीत आप भी गुनगुनाइए मेरे साथ..

शनिवार, फ़रवरी 14, 2015

वार्षिक संगीतमाला 2014 पायदान # 7 : नूरा बहनों की आवाज़ का बारूद है पटाखा गुड्डी ! (Patakha Guddi)

खुले आसमान में उड़ने की चाहत भला किसे ना होगी। भगवान ने कुछ सोच समझ कर ही ये बरक़त इंसानों को ना दे के पंछियों को दी है पर बदले में हमें ऐसा मन भी दे दिया जो पंक्षियों से भी लंबी उड़ाने भरने में सक्षम है।  वार्षिक संगीतमाला का अगला गीत ऐसी ही स्वछंदता की बात कर मन में पवित्रता और उन्माद दोनों का भाव एक साथ जगाता है। इस गीत को लिखा इरशाद क़ामिल ने और इसकी धुन बनाई संगीतकार ए आर रहमान ने। फिल्म हाइवे के इस गीत को गाया है जालंधर की पॉवरहाउस बहनों ज्योति नूरा और सुल्ताना नूरा ने। इन बहनों की आवाज़ इतनी दमदार है कि रहमान साहब को भी रिकार्डिंग के बाद उनके पिता से पूछना पड़ा कि आख़िर आप इन्हें खिलाते क्या हो ?


ज्योति नूरा और सुल्ताना नूरा एक ऐसे परिवार से जुड़ी हैं जो पिछली कई पीढ़ियों से संगीत सेवा में जुटे हैं। उनकी दादी बीबी नूरा अपने ज़माने की जानी मानी गायिका थीं। पर उनके गुजरने के बाद नूरा परिवार के हालात आर्थिक तौर पर बिगड़ने लगे। पिता गुलशन मीर ने गुजारा चलाने के लिए संगीत सिखाने का काम शुरु कर दिया। एक बारपिता ने ज्योति और नूरा को खेलते हुए बुल्ले शाह की एक रचना गाते सुनी। उन्होंने उन्हें बुलाया और हारमोनियम और तबले की संगत में गवाया। सुर ताल के उनके लाजवाब समन्वय को देख उन्हें आभास हुआ कि सिखाते हुए घर पर पड़ा हुनर ही उनसे अनदेखा रह गया है। तब उनकी बेटियाँ ज्योति पाँच और सुल्ताना सात साल की थीं।
 

इसके बाद पिता ने गुरू की भूमिका सँभाल ली और सूफ़ी संगीत में उन्हें इतना प्रवीण कर दिया कि वो शहर और देश की सीमाओं को पार करते हुए हजार मीलों दूर कनाडा तक सुनी जानें लगी। रहमान के साथ काम करने के पहले नूरा बहनें स्नेहा खानवलकर के शो Sound Trippin और फिर कोक स्टूडियो के भारतीय संस्करण में अपनी गायिकी का ज़ौहर दिखला चुकी हैं। वे पटाखा गुड्डी को मस्ती, मिठास और शैतानी से जोड़ती हैं। इस गीत की रिकार्डिंग के लिए रहमान के साथ बिताए छः घंटे उनके लिए जीवन के अनमोल क्षण रहे हैं। रिकार्डिंग के वक़्त रहमान के चेहरे की खुशी को देखते ही उन्होंने समझ लिया था कि इस गीत को उन्होंने अच्छी तरह निभाया है।

जिन्होंने हाइवे (Highway) फिल्म नहीं देखी हो उन्हें बता दूँ कि अलिया का किरदार एक ऐसी उच्च मध्यम वर्ग की लड़की का है जो तथाकथित रूप से आजाद होते हुए भी मन से स्वतंत्र नहीं है। इस आजादी, इस स्वछंदता का अनुभव वो तब कर पाती है जब उसका अपहरण होने की वज़ह से उसे देश के एक कोने से दूसरे कोने तक अपने अपहरणकर्ताओं के साथ घूमना पड़ता है। इरशाद क़ामिल ने इसी किरदार को एक 'पटाखा गुड्डी' की शक्ल दी। यानि एक ऐसी पतंग सा व्यक्तित्व रचा जिसमें अरमानों का बारूद है। इरशाद इस गीत के बारे में कहते हैं..

"मेरी भावनाएँ मेरी जुबान, सूफी विचारधारा और मेरी अपनी सोच का मिश्रण है़। उर्दू मेरे ख़ून में है, पंजाबी मेरी मातृ भाषा है और हिंदी से मैंने पीएचडी की है। जब मैं लिखता हूँ तीनों भाषाएँ घुल मिल जाती हैं। पटाखा गुड्डी एक स्वछंद आत्मा का गीत है। एक ऐसी लड़की जो सामाजिक अंकुशों से निकल कर खुली हवा में साँस लेती अपनी स्वतंत्रता का आनंद ले रही है। जब उसकी सारी गाठें खुल जाती हैं तो एक लड़की उड़ना शुरु कर देती है। उसकी आँखों की चमक, उसके ख़्वाब उन्हें पाने की महत्त्वाकांक्षा उसे विशिष्ट बनाते हैं पर समाज उसे ऐसा करने नहीं देता। हमारा जीवन और बेहतर हो सकता है अगर हम समाज की इन पटाखा गुड्डियों को जीने का सही मौका दें."


हाँ… मीठे पान दी गिल्लौरी, लट्ठा सूट दा लाहोरी , फट्टे मार दी बिल्लोरी
जुगनी मेल मेल के , कूद फाँद के चक चकौटे जावे

मौला तेरा माली यों हरियाली जंगल वाली
तू दे हर गाली पे ताली उसकी क़दम क़दम रखवाली
ऐंवे लोक लाज की सोच सोच के क्यूँ है आफत डाली
तू ले नाम रब का, नाम साईं का अली अली अली अली ...
शर्फ़ ख़ुदा का, जर्फ़ ख़ुदा का अली अली अली अली
अली हो… अली हो… चली ओ… रे चली चली, चली ओ…
अली अली तेरी गली वोह तो चली अली अली तेरी गली चली ओ...

ओ जुगनी ओ… पटाखा गुड्डी ओ नशे में उड़ जाए रे हाय रे
सज्जे खब्बे धब्बे किल्ली ओ पटाखा गुड्डी ओ नशे में उड़ जाए रे हाय रे , सज्जे खब्बे धब्बे किल्ली ओ
मौला तेरा माली ... अली अली

पान की मीठी गिल्लौरियों का स्वाद लेते हुए लाहौरी सूट में बिल्ली सी आँखों सी चमक लिए हमारी जुगनी सबसे मिलती जुलती, इधर उधर उछलती कूदती मजे कर रही है। जुगनी जंगल की वो हरियाली है जिसका माली ऊपरवाला है। समाज के इन ऊँच नीच, लोक लाज के बंधनों से मुक्त तुझे तो  हर ताने, हर गाली.. एक ताली के साथ उड़ा देनी है। बस तू उस परमप्रिय परवरदिगार का नाम ले जो  हर मुसीबत से तुम्हारी रक्षा करेगा। देख हमारी जुगनी, हमारी ये पटाखा गुड्डी कैसे भावनाओं के उन्माद में उड़ी जा रही है हर तरफ.,हर दिशा में..

मैंने तो तेरे तेरे उत्ते छड्डियाँ डोरियाँ, मैंने तो तेरे तेरे उत्ते छड्डियाँ डोरियाँ
तू तो पाक रब का बाँका बच्चा राज दुलारा तू ही
पाक रब का बाँका बच्चा उसका प्यारा तू ही
मालिक ने जो चिंता दी तो दूर करेगा वो ही
नाम अली का ले के तू तो नाच ले गली गली
ले नाम अली अली…  नाच ले गली गली अली …  अली ओ.
तू ले नाम रब का, नाम साईं का अली अली अली अली
नाम रब का, नाम साईं का अली अली अली अली ओ...

जुगनी रुख पीपल दा होई जिस नूँ पूजता हर कोई
जिसदी फ़सल किसे ना बोयी घर वी रख सके ना कोई
रास्ता नाप रही मरजाणी, पट्ठी बारिश दा है पाणी
जब नज़दीक जहां दे आणी जुगनी मैली सी हो जाणी
तू ले नाम रब दा अली अली झल खलेरण चली
नाम रब दा अली अली हर दरवाज़ा अली साईं रे…साईं रे…
मैंने तो तेरे तेरे उत्ते छड्डियाँ डोरियां ओ…

मैंने इसीलिए तुम्हारे सारे बंधन ढीले छोड़ रखे हैं क्यूँकि तू तो उस पवित्र भगवन की निर्भय संतान है। जब भी तू तनाव में होगी वो ख़ुद तुम्हारी चिंता दूर करने आएगा। तू तो बस उसकी याद में गली गली नृत्य किये जा। जुगनी तू उस पीपल की छवि की तरह है जिसे पूजते तो सब हैं पर उसे ना कोई बोता है ना ही अपने पास रख सकता है। यानि कामिल कहते हैं कि बिना किसी नियंत्रण के जुगनी का असली प्यारा रूप देखा जा सकता है। हर दरवाज़े पर अली का नाम लेती जुगनी उन्माद में बहती जा रही है। ना जाने कितने रास्तों से भटकी है वो।। वो बारिश की उन बूँदों की तरह है जो आसमान की गहराइयों में तो पाक होती हैं पर इस ज़हान के करीब आने से मलिन हो
जाती है।

द्रुत गति से संगीतबद्ध इस गीत में नूरा बहनों के करारी आवाज़ को ताल वाद्यों और इंटरल्यूड्स में बाँसुरी का मधुर साथ मिला है। तो आइए इस पटाखा गुड्डी के साथ उड़ते हैं आज थोड़ा आसमान में.. 



वार्षिक संगीतमाला 2014
 

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